अभी और चौंकाने वाले बडेÞ फैसले लेगी मोदी सरकार, बजट सत्र में कई विधेयकों को पास कराने करेगी कोशिश

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नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने संसद के 14 दिनों के बजट सत्र का फैसला किया है, जो 31 जनवरी से शुरू होगा। चूंकि, चुनाव से पहले बजट संबंधी औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए महज कुछ दिनों का सत्र पर्याप्त होता है, लिहाजा इतने लंबे बजट सत्र के फैसले से यह कयास लगने लगे हैं कि सरकार सामान्य श्रेणी के गरीबों के लिए कोटा के तर्ज पर कुछ और ‘चौंकाने’ वाले बड़े फैसले ले सकती है। यह संकेत है कि सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक, तीन तलाक को दंडनीय बनाने वाले बिल जैसे लंबित विधेयकों को भी पास कराने की कोशिश कर सकती है।
More shocking and ugly decisions will be taken by the Modi government, it will try to pass several bills in the budget session
दरअसल, आम चुनाव से पहले सरकार पूर्ण बजट पेश करने की स्थिति में नहीं होती, लिहाजा कुछ महीनों का खर्च उठाने के लिए लेखानुदान मांग पेश करती है। इसे वोट आॅन अकाउंट या फिर अंतरिम बजट भी कहा जाता है। वोट आॅन अकाउंट के लिए कुछ दिनों का सत्र ही पर्याप्त होता है लेकिन सरकार ने 14 दिनों का सत्र बुलाया है। 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश हो जाएगा, ऐसे में सियासी गलियारों में ऐसी अटकलें तेज हो गई हैं कि चुनाव से पहले सरकार अपने तरकश से ‘जनरल कोटा’ जैसे कुछ और तीर छोड़ सकती है।

बजट सत्र आम चुनाव से ठीक पहले शुरू हो रहा है, ऐसे में इस बात की संभावना वैसे भी बहुत कम है कि विपक्ष विवादित मुद्दों पर सहयोगी रुख अपनाए। हालांकि, 10 प्रतिशत ‘जनरल कोटा’ से जुड़े बिल पर यह भी देखा गया कि ज्यादातर पार्टियों को इसका विरोध करते नहीं बना। इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि सरकार इसी तरह के कुछ और दांव खेल सकती है, जिसमें विपक्ष को भी विरोध में हिचक हो।

शीतकालीन सत्र में संसद का काम काफी प्रभावित हुआ और खासकर राज्यसभा तो मुश्किल से कुछ काम कर पाई। जनरल कोटा बिल इसका अपवाद रहा, जिस पर पूरे दिन उच्च सदन में कार्यवाही चलती रही। जिस तरह अचानक लाए गए इस बिल को कैबिनेट से मंजूरी मिलने के 2-3 दिनों के भीतर ही संसद की मंजूरी भी मिल गई, उसी तरह सरकार चुनाव से पहले कुछ और कदम उठा सकती है। इसमें ऐसे कदम भी शामिल हो सकते हैं, जिनमें संसद की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। उदाहरण के तौर पर, किसानों को वित्तीय राहत पहुंचाने जैसे फैसले।

अयोध्या में राम मंदिर मसले पर विश्व हिंदू परिषद जैसे हिंदूवादी संगठन और आरएसएस सरकार से मांग कर रहे हैं कि इसके लिए संसद से कानून पास कराया जाए। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि राम मंदिर पर वह कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे और अदालती प्रक्रिया में विधायिका द्वारा दखल नहीं देंगे।