मप्र भाजपा : संगठन की ताकत में शाह पॉलिटिक्स का पैंतरा

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पंकज शुक्ला

यूं तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के आगमन और भोपाल में रात्रि विश्राम को लेकर भाजपा कई दिनों से तैयारियां कर रही थी लेकिन रविवार को उनके आगमन के दिन व्यवस्थाएं कुछ अधिक ही चाक चौबंद थी। हर व्यक्ति अधिक तत्पर, अधिक तैयार, सजग दिखाई दे रहा था। वरिष्ठ नेताओं की आवाजाही, बैठकों और शाह के साथ होने वाली मुलाकातों के लिए स्वयं को अपडेट करने का अंतिम चरण था। यह तत्परता शाह की धमक से जितनी पनपी थी उतनी ही संगठन की निरंतर सक्रियता का परिणाम भी थी।
MP BJP: Patronage of Shah Politics in the strength of the organization
मप्र में भाजपा का 2003 से शासन है और इस वर्ष पार्टी राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्मशती वर्ष मना रही है। राजमाता पार्टी के उन चुनिंदा शिल्पकारों में से एक हैं जिन्होंने मप्र में भाजपा को खड़ा किया है। इन शिल्पकारों में कुशाभाऊ ठाकरे, प्यारेलाल खंडेलवाल, सुंदरलाल पटवा, वीरेंद्र कुमार सकलेचा जैसे नेताओं का जिक्र किया जाता है। ये वे लोग हैं जिन्होंने मप्र में भाजपा का संगठन तैयार किया, उसकी जड़ें गहरी की तो सत्ता का शीर्ष भी दिखलाया। मप्र के भाजपा संगठन को बरसों से करीब से देखने वाले जानते हैं कि यहां कैसे पार्टी खड़ी हुई है। नेताओं ने अपना सर्वस्व न्यौच्छावर कर इसे सींचा है।

साधनविहीनता के काल में घंटों यात्राएं करना, अत्यावश्यक वस्तुओं के साथ गुजर करना तथा वक्त पड़े तो चने खा कर पेट भर लेना। यही कारण है कि मप्र के भाजपा संगठन की पूरे देश में नजीर दी जाती है। वही भाजपा अब टैक्नोक्रेट होती जा रही है। इस के हर कार्य में सम्पन्नता झलकती है। अब गले में सादा सा गमछा नहीं होता बल्कि हाथों में आई-फोन है।

मैनेजमेंट के गुर हैं और आधुनिकता का बाना है। पार्टी का यह रूपांतरण अमित शाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद बहुत तेज गति से हुआ है। संगठन को राष्ट्रीय अध्यक्ष शाह की प्रबंधन राजनीति रूपी नया पैंतरा मिल गया है। यह पैंतरा आक्रामक हो कर काम करने के साथ साम, दाम, भेद की रणनीतियों वाला है और इसी पैंतरे के दम पर भाजपा अब तक की सबसे बड़ी सफलता पाना चाहती है।

शाह के नेतृत्व में भाजपा ने देश में विभिन्न चुनाव लड़े हैं और इन अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि पार्टी तंत्र के समानांतर शाह का अपना तंत्र काम करता है। वह जानकारियां जुटाता है, उन्हें अपने ढंग से विश्लेषित करता है तथा रणनीतियों को अंजाम देता है। शाह ने हर चुनाव में बूथ मैनेजमेंट और कार्यकर्ता अभियान पर बल दिया है। बड़े नेताओं की सुनी लेकिन की अपने मन की। मप्र में वे भी वे यही कर रहे हैं। जनसभाओं से अधिक कार्यकतार्ओं के साथ सामूहिक संवाद पर बल है।

बारीक विवरण जुटाए जा रहे हैं। हर स्तर पर कई-कई निगरानी तंत्र हैं। स्थानीय संगठन के साथ केन्द्रीय नेतृत्व को लगाया गया है। यानि मप्र भाजपा की ताकत को शाह का ह्यबूस्टर डोजह्ण मिला हुआ है। शाह विपक्षी नेताओं की ह्यमेन टू मेनह्ण मार्किंग कर उन्हें अपने क्षेत्र में व्यस्त रखने के सूत्र को आजमाते हैं। मप्र में अपने पिछले दौरों के दौरान वे यही मंत्र देकर गए थे। केन्द्रीय मंत्रियों और संगठन पदाधिकारियों को कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के क्षेत्र का प्रभार दिया गया है। मप्र में फिलहाल यह संभव नहीं हुआ है।

हालांकि, यह सब 2019 की तैयारियों का एक हिस्सा है और विधानसभा चुनाव उस तैयारी का एक हिस्सा भर है। अपनी रणनीतियों के सहारे शाह इस बार मप्र में भाजपा विधायकों की संख्या 200 पार ले जाने का सपना देख रहे हैं और उधर कांग्रेस मजबूती से अपने कदम बढ़ा रही है। ऐसी स्थिति में भाजपा प्रदेश संगठन की चुनौतियां बढ़ गई हैं। प्रदेश भाजपा सूत्रधारों के लिए शाह स्टाइल की यह राजनीति एक नया अनुभव लेकर आई है। यह तो वक्त ही बताएगा कि कौन इससे पार पाया और कौन खेत रहा।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है