मप्र पंचायत चुनाव : रिजर्वेशन पर फैलता रायता…

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राघवेंद्र सिंह

मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर रिजर्वेशन में रोटेशन की प्रक्रिया के पालन को लेकर रायता फैलना शुरू हो गया है। कांग्रेस नेताओं ने जो याचिका अदालत में दायर की थी उस पर सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी के आरक्षण पर स्वतः संज्ञान लिया है। इसका नतीजा यह हुआ कि ओबीसी के लिए पंचायतों में आरक्षित लगभग 70 हज़ार पंच-सरपंच जनपद पंचायत और जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव रोक दिए गए हैं। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर अदालत और जनता के बीच ठीक से अपना पक्ष नही रखा तो यह दाव उसके लिए उल्टा भी पड़ सकता है। इस मामले में फिलहाल कांग्रेस पर यह कहावत मुफीद लगती है कि वह नमाज़ पढ़ने गई थी और रोज़े गले पड़ गए।
दरअसल रोज़े पड़ने वाली कहावत समझने के लिए इसके पीछे की कथा जानना जरूरी है। संक्षेप में कहें तोकेके जनाब अपने बच्चे के नमाज़ नही पढ़ने की आदत से परेशान थे। रमज़ान की शुरुआत के मौके पर वह अपने दोस्तो के आग्रह पर नमाज़ पढ़ लेता है यह खबर जब उसके परिजनों को पता चलती है तो वे खुश होते हैं और कहते हैं पवित्र रमज़ान की शुरुआत में नमाज़ पढ़ी है तो उसे रोज़े भी रखने पड़ेंगे। इस तरह रोज़े गले पड़ गए। कांग्रेस भी पंचायत चुनाव के मसले में कुछ इसी किस्म के दौर में फंस गई लगती है।
भाजपा ने इस पूरे मामले में कांग्रेस को ओबीसी के खिलाफ बताने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने इस काम को अभियान के तौर पर प्रचारित करना शुरू कर दिया है। इस काम में भाजपा ने पंचायत स्तर तक संगठन को सक्रिय कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पंचायत चुनाव में 69 हज़ार 839 ओबीसी के सीट पर निर्वाचन बाद में किया जाएगा। कांग्रेस खुद को यदि यह साबित नही कर पाई कि वह ओबीसी समर्थक है तो उसे ग्राम पंचायत से लेकर जनपद और जिला पंचायत में नुकसान उठाना पड़ सकता है। भाजपा यह प्रचार कर रही है की ओबीसी आरक्षण पर रोक के लिए कांग्रेस ज़िम्मेदार है। उधर कांग्रेस सांसद और याचिका की पैरवी करनेवाले वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा कहते हैं की कांग्रेस में ओबीसी आरक्षण को लेकर कोई याचिका नही लगाई है। असल में सर्वोच्च न्यायालय ने ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर महाराष्ट्र के मामले को ध्यान में रखकर मध्य प्रदेश में भी चुनावी आरक्षण को लेकर खिलवाड़ नही करने को कहा है। साथ ही यह भी कहा है कि संवेदनशील मुद्दों से छेड़छाड़ से बचना चाहिए। कुलमिलाकर मामला फंस गया है भाजपा इस मुद्दे पर आरक्षण को लेकर अपने हिसाब से दाव चलेगी। इस मामले में बैकफुट पर आई कांग्रेस जनता में सफाई देती दिखाई पड़ रही है। आने वाले दिनों में ओबीसी आरक्षण को लेकर रायता और फैलेगा और इसकी कीचड़ सब जगह दिखाई देगी।
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खर्च दोगुना हो जाएगा…
प्रदेश में 70 हज़ार ओबीसी सीट पर चुनाव रोकने से निर्वाचन पर होने वाला खर्च भी बढ़ जाएगा। अभी तक की जानकारी के मुताबिक निर्वाचन व्यय 70 करोड़ आने की संभावना है जो बढ़कर 140 करोड़ के आसपास हो जाएगा। सूत्रों का कहना है कि उसे ओबीसी सीटों पर चुनाव के लिए दोबारा जब व्यवस्था करनी पड़ेगी तो उसमें खर्च काफी ज़्यादा बढ़ जाएगा। उल्लेखनीय है कि इस संवेदनशील मुद्दे पर कांग्रेस में एक राय नहीं थी। कुछ नेता चुनाव को लेकर अदालत जाने की बात कर रहे थे, तो कुछ बड़े नेता मौन साधे हुए थे। बाद में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा था कि रिजर्वेशन में रोटेशन की प्रक्रिया का पालन नही होने से कमज़ोर और दलित वर्ग की उपेक्षा होगी। इसके पूर्व भाजपा सरकार ने कमलनाथ सरकार द्वारा 1200 पंचायतों का जो परिसीमन किया था उसे भी रद्द कर दिया है। विवाद की एक बड़ी वजह यह भी है।
प्रदेश में करीब 22 हज़ार 800 ग्राम पंचायतें हैं। इन्ही में से जनपद और जिला पंचायतों में सदस्य चुने जाते हैं जो बाद में जनपद व जिला पंचायत के अध्यक्ष बनते हैं। यह अध्यक्ष ही आगे जाकर विधायक और लोकसभा प्रत्याशी के दावेदार बनते हैं।


रोटेशन मामले में 21 दिसंबर को
हाई कोर्ट में होगी सुनवाई

एमपी हाईकोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गुरुवार 16 दिसंबर को एमपी हाईकोर्ट में दमोह निवासी डॉ. जया ठाकुर और छिंदवाड़ा निवासी जफर सैयद की ओर से लगाई गई याचिका पर भी सुनवाई हुई थी। याचिकाकर्ताओं ने 2014 के आरक्षण के आधार पर चुनाव कराने और रोटेशन की प्रक्रिया का पालन न किए जाने की संवैधानिकता को चुनौती दी है। अधिवक्ता वरुण सिंह ठाकुर के तर्कों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने मामले में 21 दिसंबर को अगली सुनवाई तय की है।