मेरी जन साधारण यात्रा

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दिमाग की बात
सुधीर निगम

भारत वर्ष में यात्राओं का बहुत महत्व है। शायद इसलिए प्राचीन समय से ही सभी यात्राओं पर इतना ध्यान देते रहे। ऐसा नहीं है कि अब यात्राओं का महत्व खत्म हो गया है, बस देखने का नजरिया बदल गया है। पहले यात्रा पैदल होती थी, अब सदल बदल होती है। पैदल चलना किसे सुहाता है (हर कोई बीपी या शुगर का मरीज थोड़े ही है), इसलिए हेलीकॉप्टर और लक्जरी बस की व्यवस्था की गई है। जब जनता ने उनके लिए ये व्यवस्थाएं की हैं, तो वो पैदल क्यों चलें। आखिर जनता के लिये ही तो चल रहे हैं।
My public trip
जनता से याद आया, अब मुख्यमंत्री हफ्ते में चार दिन जो यात्रा कर रहे हैं आशीर्वाद लेने के लिये, वही जन आशीर्वाद यात्रा, वह जनता के लिये ही तो है। अब भाई उनके विरोधी कैसे पीछे रहते, सो कांग्रेस ने भी निकाली है जन जागरण यात्रा। अपने अपने फंडे हैं। ये बता रहे हैं क्या क्या किया , वो बता रहे हैं क्या क्या नहीं किया। और जनता उन्हें सुनकर धन्य हो रही है, ये सोचकर कि भाई लोगों को हमारी कितनी चिंता है।

एक घोषणा करते हैं चंदला जिला बनेगा, तो दूसरे कहते हैं कि मैहर जिला बनेगा। आप लोगों से मेरी एक मांग है कृपया मेरे मोहल्ले को मोहल्ला बना दो, फिर आगे की बात करेंगे। इन भाइयों की इतनी कर्मठता देखकर मेरा मन भी कुछ तूफानी करने को उतावला हो उठा, तो मैंने भी सोचा कि एक यात्रा निकाली जाए। तो हम भी निकल पड़े जन साधारण यात्रा लेकर। हमारा, हमारे लिये, हमारा शासन, के ध्येय वाक्य को लेकर।

अब हम तो ठहरे साधारण यात्रा वाले, सो पैदल ही निकल पाए। निकलते ही गली का कुत्ता पीछे पड़ा तो हम भी भागे अमेरिका से अच्छी सड़कों पर, लेकिन एक गड्ढे ने सब सत्यानाश कर दिया और कुत्ता हमारे शरीर से अपने हिस्से का मीट लेकर रवाना हो गया। सरकारी अस्पताल जाना पड़ा इंजेक्शन की तलाश में। इंजेक्शन तो नहीं मिला, पर एक निजी डॉक्टर का पता दे दिया गया।

जैसे तैसे इंजेक्शन लगवाए और चल पड़े आगे। रास्ते में एक युवा से मुलाकात हो गई, तो जिज्ञासावश पूछ लिया कि क्या चल रहा है। वो बोला ‘पहले नेट पैक डलवा लूं, फिर बताऊंगा क्या चल रहा है’। नेट पैक डलवाकर ट्विटर, व्हाट्सएप और फेसबुक में कई महत्वपूर्ण जानकारियां साझा करने के बाद जनाब हमसे मुखातिब हुए। हमने पूछा ‘कहीं रोजगार मिला’, इतना सुनना था कि वह उखड़ गया और कहने लगा ‘तुम देशद्रोही हो, देश में इतनी समस्याएं हैं और तुम्हें रोजगार की पड़ी है’। तब तक कई लोग वहां जमा हो गए थे, अचानक दिमाग में ‘मॉब लिंचिंग’ शब्द गूंजा और हम खिसक लिए।

यात्रा के दौरान सोचा थोड़ा गांव की चिंता भी कर ली जाए। वहां पहुंचते ही कुछ किसान मिल गए, उनसे पूछा ‘फसल अच्छी है, कमाई हो रही है, 2020 तक आय दोगुनी करनी है’। वो बताने लगे ‘पहले से तो अच्छी है। इतने बड़े आयोजन करके हमें बीमा और मुआवजे की राशि दी जाती है। पहले कहाँ इतनी इज्जत थी’, तभी एक बोला ‘अरे दगड़ू कहाँ गया, उसे भी तो ऐसे ही समारोह में 70 रुपए मिले थे, बीमा के’। हम आयोजन की गरिमा से अभिभूत आगे बढ़ गए।

तरह तरह के लोगों से मिलकर घर पहुंचे तो अर्धांगनी जली भुनी बैठी थी। देखते ही उबल पड़ी ‘सुबह से कहाँ आवारागर्दी कर रहे थे’। हमने कहा ‘भागवान, देश और जनता की चिंता में यात्रा पर गया था’। सुनते ही झोला मुंह पर फेंका और आदेशात्मक लहजे में कहा ‘उनकी चिंता के लिए हमने कुछ लोग रख छोड़े हैं, तुम घर की चिंता करो और सब्जी दूध लेकर आओ’। हम मुंह लटकाए निकल लिए बाजार की तरफ और क्या करते और तो और हमारी बीवी को ही देश की चिंता नहीं तो औरों की क्या कहें।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है