राजकुमार जी से हुई मेरी बातें,मुलाकातें

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मई,2021 महीने को हम समाज की संपदा खोने के लिए याद रखेंगे

अशोक मनवानी

(लेखक जनसंपर्क मे उपसंचालक है)

जब सागर विश्वविद्यालय में वर्ष 1984 में हम पत्रकारिता की डिग्री कर रहे थे उस दरमियान भोपाल गैस त्रासदी घटित हुई । पूरे विश्व मीडिया ने श्री राजकुमार केसवानी की प्रतिभा को पहचाना। हिंदुस्तान ही नहीं विदेशों में भी पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य और आपदाओं को रोकने के लिए जागरूकता से संबंधित व्याख्यान होने लगे। इनमें राजकुमार जी आमंत्रित किए जाते थे।

दो पीढ़ियों के ताल्लुकात

इसके पहले मैं केसवानी परिवार में दादा लक्ष्मण दास जी और शशि भाई से ही परिचित था। हुआ यूं कि किसी सिलसिले में दादा लक्ष्मण दास जी सागर आए थे। मेरे पिता से भी उनकी भेंट हुई मेरे पिताजी सिंधी साहित्य अकादमी के सदस्य थे।दादा ने सिंधी साहित्य संवर्धन संबंधी कुछ सुझाव दिए। दादा केसवानी द्वारा दिए गए सुझाव मेरे पिताश्री ने नोट किए और तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह को अकादमी की आगामी बैठक में पढ़कर सुनाए। सिंधी साहित्य में अनुवाद कार्य के संबंध में तब पहली बार पहल हुई। दादा केसवानी ने एक उपन्यास भी लिखा था जो मेरे पिता को भेंट कर गए थे।बोले थे,आप इतिहास के प्रोफेसर हैं। जरा फिक्शन भी पढ़िए।दादा के चेहरे पर सौम्य मुस्कान उभर आती थी। अक्सर एक पोस्टकार्ड दादा लक्ष्मण दास जी भेजते थे, जिसमें चैलेंज के ग्राहकों को वार्षिक शुल्क अदा करने का आग्रह होता था। मैं कार्य वश भोपाल आया था और हमीदिया रोड जाकर चेलेंज प्रिंटिंग प्रेस और कार्यालय में दादा केसवानी के पास अखबार का शुल्क जमा करवाया। तभी शशि जी से पहली बार मेरी भेंट और बातचीत हुई थी।

व्याख्यान के लिए सागर आने का निमंत्रण

सागर के पत्रकारिता के विद्यार्थियों को हमारी प्राध्यापक दविंदर कौर उप्पल और श्री भुवन भूषण देवलिया वकील साहब चाहते थे, कि राजकुमार जी का सानिध्य मिले। उनको विभाग में व्यवख्यान के लिए आमंत्रित किया गया लेकिन समय के अभाव के कारण श्री राजकुमार सागर ना सके।

इसके पश्चात पत्रकारिता करते हुए 3 या 4 बरस बाद 1987 में मैंने भी शासकीय सेवा में चयन होने पर जनसंपर्क ज्वाइन किया।भोपाल में 1988 में पोस्टिंग हो जाने पर केसवानी परिवार से जुड़ गया।

मेरा पारिवारिक जुड़ाव

मुझे राजकुमार जी हिंदी सिनेमा पर लिखने वाले देश के चुनिंदा उत्कृष्ट लेखकों में एक लगते थे। मेरी उनसे अक्सर भेंट होती थी। सप्रे संग्रहालय में हमारी मुलाकात हो जाती थी। उनका बेटा रौनक और मेरा बेटा रमित,श्रीमती मीना अजय सिंह यादव के ग्रीन फील्ड्स स्कूल, शिवाजी नगर में प्राइमरी में साथ पढ़ते थे। एक संयोग यह भी हुआ कि मुझे रायसेन से भोपाल तबादला होने पर 1995 में
बोर्ड ऑफिस के पास कोठारी कांप्लेक्स में जो सरकारी क्वार्टर एलाट हुआ उसमें पूर्व में कुछ साल राज कुमार जी भी रहे । यहां जब उनके पिता दादा लक्ष्मण दास जी एक बार मेरे घर सुंदरकांड में पधारे तो उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा ,बोले मैं तो अपने बेटे के घर आ गया। मैंने कहा दादा, मैं आपका बेटा ही तो हूं।तब दादा बोले हां, तुम मेरे तीसरे बेटे हो। इस तरह केसवानी परिवार का स्नेह मुझे मिलता रहा। राजकुमार जी की बहन शालिनी के साथ आकाशवाणी भोपाल के कार्यक्रमों में कहानियां और वार्ताएं रिकॉर्ड होती थीं। इनका प्रसारण हम दोनों परिवार सुनते थे।

दुख की घड़ी में भी माहौल सामान्य बना देते थे

जब दादा लक्ष्मण दास जी की धर्मपत्नी नहीं रही थीं तब मुख्यमंत्री जी का शोक पत्र लेकर मैं उनके इतवारा स्थित निवास पहुंचा था। तब दादा लक्ष्मण दास जी बहुत भावुक हो गए थे । राजकुमार जी घर में गमगीन बैठे थे।तब वे एन डी टी वी से जुड़े थे। सिंधी परिवारों में ऐसा सख्त नियम नहीं है कि कोई गमी के अवसर पर घर आए तो उसे चाय पानी सर्व ना करें और आगंतुक भी चाय, पानी ग्रहण करने में कोई संकोच नहीं करते हैं। मैंने शुरू में थोड़ा संकोच किया तो राजकुमार जी बोले देखो अशोक, अब कुछ प्रगतिशील बन जाओ। यहां से फिर ड्यूटी जाओगे। भाग दौड़ करते हो ।अब 10 मिनट तसल्ली से बैठो और चाय पियो। तब पुराने शहर की एक बैकरी से आए कराची बिस्किट्स खाने का आग्रह उन्होंने किया और बोले एक कराची हमारे दादा सिंध में छोड़ आए हैं लेकिन बिस्कुट ने पीछा नहीं छोड़ा । उस शोक के वातावरण में उन्होंने छोटा सा ठहाका लगाया था और मिठास घोल दी थी। मन पर कोई बोझ नहीं रखते थे। बहुत बिंदास रहे। उनका ही प्रतिरूप उनके भाई भी हैं। शशि भैया भी मुझे बहुत स्नेह करते हैं । दोनों भाइयों को मैंने अक्सर मित्रवत व्यवहार करते देखा।

आरुषि से जुड़ाव

एक प्रसंग यादगार है।
वर्ष 2008 में मेरा एक्सीडेंट हुआ था।हाथ में फ्रेक्चर हुआ था।हड्डी जुड़ गई,अब फिजियोथेरेपी होनी थी। राजकुमार जी अक्सर आरुषि संस्था में विजिट कर बच्चों से मिलते थे।वे अनिल मुदगल जी के साथ बैठे थे। रेडक्रास हॉस्पिटल के पास आरुषि संस्था में तब एक विशेषज्ञ आते थे जो सी पी (सेरेब्रल पाल्सी) अर्थात मस्तिष्क पक्षाघात से प्रभावित बच्चों को एक्साइज करवाते थे। मुझे किसी ने इस केंद्र में फिजियो थेरेपी करवाने की सलाह दी थी। मैं जब पहुंचा तो मुझे कंधे पर हाथ रख कर उन्होंने कहा कि तुमने यह तोता तो पाल ही लिया है, दो-तीन हफ्ते घर रहोगे। अच्छी किताबें पढ़ लेना। हां, मेरे से मत मांगना।

किताबें न मांगिए,बस

वे कभी भी पुस्तक लेकर पढ़ने में विश्वास नहीं रखते थे। उनका कहना था अपनी लाइब्रेरी बनाना चाहिए। हर लिखने वाले के घर एक छोटा सा पुस्तकालय होना चाहिए। मैं परिवार के साथ उनके घर एक बार गया था। तब उनकी बुक्शेल्फ में सजी किताबें विशेषकर कथा साहित्य देख रहा था। उनके विषय पढ़ रहा था। रुचि पूर्वक किताबों के शीर्षक पढ़ रहा था तो भाभी जी बोलीं, ये आपको कोई किताब देने वाले नहीं हैं।तब मैंने कहा, मैं खुद किताब मांगना पसंद नहीं करता। पसंद की किताब का शीर्षक नोट कर लेता हूं । कोशिश करता हूं कि किसी पुस्तकालय से उसे इशू करवा लूं या बुक शॉप से खरीद लूं। पत्नी की बात पर भी उन्होंने चिर परिचित अंदाज में ठहाका लगाया था ।

लेखन से पहले करते थे दो बार पुष्टि

अभिनेत्री साधना पर पुस्तक लेखन के दौरान 2011 और 2012 में उन्होंने मुझे कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दी थीं। मुंबई में उनके संपर्क अच्छे थे।यदि मैं उनका लाभ लेता तो डेढ़ सौ पृष्ठ की मेरी पुस्तक 300 पृष्ठ की बन सकती थी ।लेकिन इतना समय खर्च करने की गुंजाइश नहीं थी। इसी तरह दैनिक भास्कर के स्तंभ आपस की बात में उन्होंने संगीतकार बुलो सी रानी और सिंधी गायक मास्टर चंद्र पर जब लिखा तो मेरे संदर्भ का भी उपयोग किया।ये भी पूछते थे,कुछ गलत तो नहीं बता रहे,पक्का है न ये । दो बार प्रसंग या तथ्य की पुष्टि जरूर करते थे।

अतिथियों को देते थे सम्मान

एक बार जयपुर से कुछ लेखकों का भोपाल आगमन हुआ तब उन्हें मिलवाने मैं राजकुमार जी के घर ले गया था। तब बहुत आत्मीयता से उन्होंने सभी का स्वागत किया था। हिंदुस्तान के किसी शहर में लेखक सम्मेलन में जाने पर कोई न कोई लेखक राजकुमार जी के हाल चाल लेते ही थे। उनकी ख्याति अखिल भारतीय थी। स्वभाव से कठोर नजर आने वाले राजकुमार जी वास्तव में बहुत विनम्र रहे। अपने से छोटों को भी सम्मान देते थे।

उनसे आखिरी भेंट

करीब सवा साल पहले फरवरी,2020 की बात है। “द संस्कार वैली स्कूल भोपाल ” में गीतकार गुलजार का आगमन हुआ।कार्यक्रम शुरू नहीं हुआ था।गुलजार साहब परिसर का भ्रमण कर रहे थे। तब मैं संस्कृति मंत्री के साथ गुलजार जी से चर्चा कर रहा था। इस बीच छायाकारों ने फोटो लेना प्रारंभ की। मैंने राजकुमार जी को आग्रह किया कि आप भी इस फोटो सेशन में शामिल हो जाइए तो वह शर्माते हुए बोले आप लोग अभी चले जाएंगे तो कार्यक्रम के बाद हमारा बातचीत का एक सेशन है। हम तब खिंचवा लेंगे।वैसे बहुत तस्वीरें खिंची हैं पहले भी।राजकुमार जी ने आगे यह भी जोड़ा कि प्रोग्राम के बाद श्रीमती ज्योति अग्रवाल जी के कक्ष में बैठकर हम लोग कुछ गपशप करेंगे। उनको हम आज भोपाल के कुछ कवियों ,शायरों की गजलें और नज्में भी सुनाएंगे और गुलजार साहब से भी उनकी रचनाएं सुनेंगे।

यह संयोग है कि हिंदी वर्णमाला के कुछ अक्षर जिनमें नुक्ता लगता है ,उनकी पुस्तिका जब तैयार हो रही थी और आरुषि संस्था से जुड़े दिव्यांग बच्चों ने वर्णमाला के लिए बहुत से चित्र बनाए थे। इसके साथ ही कुछ अन्य बच्चों ने भी चित्र बनाए थे जिसमें रोनक और रमित के बनाए चित्र भी शामिल थे। मैंने गुलजार साहब को उस पुस्तिका की याद दिलाई और बताया कि जिन बच्चों ने इस पुस्तिका के लिए चित्र बनाए थे वे आज ब् 25 और 30 वर्ष के हो गए हैं और मेरा बेटा भी उनमें शामिल है।टी सी एस में है। आप से मुंबई में कभी जरूर भेंट करेगा। सुनकर गुलजार साहब मुस्कुराए और तब राजकुमार जी ने कहा आज की जनरेशन गुलजार साहब के गीतों को क्या जानेगी और समझेगी।लेकिन आज के बच्चे इतना जरूर जानते हैं कि गुलजार नामक व्यक्ति बहुत बड़े गीतकार हैं।ठहाके के साथ उनकी यह बात पूरी होती है।

राजकुमार जी के साथ इस तरह के वार्तालाप अनेक लोगों के संग्रह में होंगे।

अपने शहर के गीतकार पर फिल्म निर्माण की प्रेरणा दी

मेरी डेली डायरी से आज कुछ अनजानी जानकारियां निकली हैं।मेरे होम टाउन सागर में गीतकार विट्ठल भाई जी पटेल की 75 वीं जन्म वर्षगांठ पर एक विशेष कार्यक्रम हो रहा था जिसमें श्री जयप्रकाश चौकसे आदि भी शामिल हुए थे । तब सागर में राधेश्याम भवन में मेरे कजिन राजेश ने राजकुमार जी से भेंट की और बुंदेली में फिल्म निर्माण की गतिविधियों की जानकारी दी। तब राजकुमार जी बोले विट्ठल भाई जी पर कोई डॉक्यूमेंट्री बनाओ । अशोक से कहना उनका इंटरव्यू ले ले।एक दिन सागर आकर। नौकरी तो चलती रहेगी।सुखद संयोग रहा कि ऐसा संभव हुआ । दो साल बाद यह फिल्म बनकर तैयार भी हुई।राजकुमार जी उन्हीं लोगों को कोई सुझाव देते थे जिनसे उस पर अमल की पूरी आशा हो। यह परख करने वाले लेखक भी आज बहुत कम होंगे।
मुलाकातें होती रहीं,समय बीतता रहा।इस बीच कभी उनका स्वास्थ्य गड़बड़ हुआ हो,यह ज्ञात नहीं हुआ।उनकी रचनात्मकता शबाब पर थी।मुगले आजम पर कृति छप जाए,यह उनका ड्रीम प्रोजेक्ट था। वर्ष 2020 में यह साकार हुआ और इसकी चर्चा पूरे देश में हो रही थी।

पूरी दुनिया में इसके बाद कोविड का आगमन हो जाने से बीते एक वर्ष में परस्पर मिलना जुलना कम रहा सभी का। मुलाकातें लगभग समाप्त हो गई थीं लेकिन दूरभाष पर तो सभी की बातचीत हो जाया करती थी।

हमसे बहुत वरिष्ठ होने से,कभी फोन पर उन्हें डिस्टर्ब करने का साहस नहीं होता था। सेकंड वेव आ गई। यह पीक पच्चीस ,तीस दिन चला होगा । सोशल मीडिया और अखबारों में उनके अस्पताल में दाखिल होने की खबर आती है।इस बीच मैं खुद ऑक्सिजन स्तर कम हो जाने और निरंतर बुखार होने से भर्ती होता हूं।हर कोई अपने परिवार तक सिमट जाता है।समाज की संपदा हमसे अलग होने लगती है।

राजकुमार जी के भाई शशि जी और बेटे रौनक से संवाद होता है।वे बताते हैं,राजकुमार जी की सेहत में सुधार हो रहा।लेकिन एक दिन अचानक दुखद खबर आ जाती है।इस महीने 21 मई 2021 को हम अपने समाज का श्रेष्ठ खो देने के लिए याद रखेंगे। क्षति तो हुई है।भरपाई कैसे होगी,मालूम नहीं।
ओम शांति।