नासा की खोज: पराली जलाने से दिल्ली हो रही प्रदूषित, बताया उसका हल भी

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नई दिल्ली । दिल्ली में मॉनसून के बाद और सर्दी के मौसम से पहले हर साल प्रदूषण बढ़ने की सबसे बड़ी वजह का नासा ने पता लगाया है। अमेरिकी एजेंसी के वैज्ञानिकों ने अपनी नई स्टडी में कहा है कि पंजाब और हरियाणा में फसलों के अवशेष जलाए जाने का दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने से सीधा संबंध है। रिपोर्ट के मुताबिक फसलों के अवशेष जलाए जाने का सीधा असर दिल्ली पर पड़ता है क्योंकि पंजाब और हरियाणा की हवा यहां आती हैं। ऐसे में यदि इन दोनों राज्यों में फसलों के अवशेष जलाए जाते हैं तो ढट 2.5 के स्तर पर में इजाफा हो जाता है।
NASA discovery: Delhi pollution caused by burning of pollution
फसलों के अवशेष जलाए जाने से दिल्ली पर कितना विपरीत असर पड़ता है, इस बात का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि आम दिनों में दिल्ली में ढट 2.5 का स्तर 50 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होता है, जबकि नवंबर की शुरूआत में यह 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो जाता है। इन्हीं दिनों में आमतौर पर किसान धान की पराली जलाते हैं। 2016 की सर्दियों में यह समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिली थी, जबकि पराली जलाए जाने के चलते ढट 2.5 का स्तर 550 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गया था।

खासतौर पर नवंबर महीने में स्मॉग की समस्या बहुत बढ़ गई थी और 5 नवंबर को तो ढट 2.5 का स्तर 700 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गया था। हालांकि स्टडी में यह भी कहा गया है कि पराली के अलावा 95 लाख स्थानीय वाहनों, इंडस्ट्रीज और कंस्ट्रक्शन भी एयर पलूशन के लिए जिम्मेदार हैं। इस स्टडी में सरकार को स्मॉग की समस्या से निपटने के लिए कुछ अहम सुझाव भी दिए गए हैं।

स्टडी में एक अहम बात और कही गई है कि पराली पहले भी जलाई जाती थी, लेकिन उसका समय अक्टूबर महीने का होता था। बीते कुछ सालों में धीरे-धीरे यह टाइमिंग नवंबर तक आ गई, जब हवा धीमी होती है और सर्दियों का मौसम शुरू होता है। ऐसे में पराली जलने के कारण पैदा हुआ धुआं हवा में उड़ नहीं पाता।