नई दिल्ली। राजस्थान में अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश में कमलनाथ और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री पद के शपथ समारोह में सोमवार को 18 विपक्षी पार्टियों के नेता शामिल हुए। इसके जरिये इन नेताओं ने विपक्षी एकजुटता का संदेश देने की कोशिश की। मगर विपक्षी खेमे के तीन अहम चेहरों मायावती, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने इससे किनारा कर संकेत दे दिया कि विपक्ष को एकजुट करने की कांगे्रस की कसरत आसान नहीं है।
Not seen in the swearing-in of three states, Maya, Mamta and Akhilesh shared the shores
ममता खुद तो नहीं आईं, मगर सांसद दिनेश त्रिवेदी को पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में इन तीनों समारोहों में जरूर भेजा। राजस्थान में अखिलेश का प्रतिनिधि मौजूद था। लेकिन, बसपा ने अपना नुमाइंदा भी नहीं भेजा। तीन बड़े हिंदीभाषी राज्यों में कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद भी विपक्षी खेमे के अहम दलों का यह रुख गठबंधन की चुनौतियों की ओर साफ इशारा करता है।खासकर यह देखते हुए कि समाजवादी पार्टी और बसपा तो मध्य प्रदेश ही नहीं राजस्थान में भी कांग्रेस सरकार का समर्थन करने का एलान कर चुकी हैं।
मध्य प्रदेश में बसपा के दो विधायकों का समर्थन बहुमत के लिए तो अपरिहार्य है। अगले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश को विपक्षी गठबंधन का लिटमस टेस्ट माना जा रहा। हालांकि, मायावती और अखिलेश कांग्रेस को सस्पेंस में रख रहे हैं। पिछले हफ्ते विपक्षी पार्टियों की बैठक में भी ये दोनों नेता शामिल नहीं हुए थे। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इन तीनों समारोहों में विपक्षी नेताओं के शिरकत की अगुआई की। सुबह साढ़े दस बजे जयपुर में, दोपहर डेढ़ बजे भोपाल में और शाम साढ़े चार बजे रायपुर में विपक्षी नेताओं की फौज में कांग्रेस की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मल्लिकार्जुन खड़गे भी मौजूद थे।
जेडीएस से पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा, कर्नाटक के सीएम कुमारस्वामी, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, द्रमुक नेता स्टालिन और कनीमोरी, राजद नेता तेजस्वी यादव, हम नेता जीतन राम मांझी, नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, झामुमो के हेमंत सोरेन, जेवीएम के बाबूलाल मरांडी, लोकतांत्रिक जनता दल के शरद यादव के अलावा आरएलडी, एआइयूडीएफ, केरल कांग्रेस मणि, आरएसपी, स्वाभिमानी पक्ष आदि के नेता शपथ समारोह के गवाह बने।
आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह राजस्थान में कांग्रेस सरकार के सत्ता संभालने के गवाह बने, मगर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के समारोह में शामिल नहीं हुए। कमलनाथ पर सिख विरोधी दंगों को लेकर कथित रूप से लगाए गए आरोपों के मद्देनजर आप ने भोपाल समारोह से दूरी बनाई। विपक्षी एकता के लिहाज से तीनों कांग्रेस सरकारों के शपथ समारोह में मुख्य वामपंथी दलों के नेताओं का शामिल नहीं होना भी काबिले गौर रहा। भाजपा के खिलाफ विपक्ष की सभी बैठकों में शामिल होने वाली माकपा और भाकपा के प्रतिनिधि भी शपथ समारोहों में शामिल नहीं हुए।