इंदौर से कीर्ति राणा
आकाशवाणी से 5 मई 1968 की शाम के समाचारों में जानकारी प्रसारित हुई कि इंदौर वाले मास्टर चंदगीराम ने हिंद केसरी मेहरदीन पहलवान को हरा कर ’भारत केसरी’ का खिताब जीत लिया है। काछी मोहल्ला में दूधवाले (स्व) नारायण सिंह यादव के निवास पर जश्न का माहौल हो गया। शहर भर के अखाड़ों के उस्ताद-खलीफा जुट गए। तय हुआ कि मास्टर चंदगीराम का इंदौर में विजय जुलूस निकाल कर अभिनंदन किया जाए।एक पखवाड़े बाद की तारीख तय हो गई।2जून को मास्टर इंदौर आए, अखाड़ों के उस्तादों-शागिर्दों के साथ बैंडबाजों के साथ काछी मोहल्ला से जुलूस शुरु हुआ। खुली जीप में मास्टर चंदगीराम बुर्ज लिए खड़े थे, कंधे पर बंदूक लटकाए नारायण सिंह यादव समीप खड़े थे।जीप के पिछले हिस्से में दोनों बेटे गोपाल, मदनसिंह व अन्य लोग बैठे थे। जवाहर मार्ग से होता विजय जुलूस बंबई बाजार में चेतना होटल के सामने पहुंचा(पहले भाजपा नेता बालकृष्ण अरोरा लालू इसी बिल्डिंग में रहते थे)। भाजपा नेता बाबू सिंह रघुवंशी के रिश्ते के भाई रामप्रसाद और श्रीनिवास सिंह चौहान होटल संभालते थे।यहां स्वागत होना था कि अचानक कड़ावघाट चौराहे से बंबई बाजार वाली सड़क से एसिड बम के साथ पथराव होने लगा और भगदड़ शुरु हो गई।इस हमले का एक कारण यह भी सामने आया था कि बेग परिवार के घर जवाई राजकुमार पहलवान को चंदगीराम एकाधिक बार अजमेर में हरा चुके थे।
मास्टर को सुरक्षित निकालने के लिए यादव ने बंदूक से हवाई फायर किए।जीप चला रहे थे खजराना वाले ओम वर्मा पहलवान ( सज्जन वर्मा के भाई)।भगदड़ और भीड़ के हुजूम को चीरते हुए जीप की स्पीड इतनी कर दी कि जीप पिछले दो पहियों पर उठ गई, गाड़ी की चपेट में न आ जाएं इस भय से लोग किनारे हो गए और ओम पहलवान उन्हें सुरक्षित निकाल कर यादव के काछीमोहल्ला वाले घर पर ले आए।
चंदगीराम न तो इंदौर में जन्मे और न ही उनके रिश्तेदार यहां रहे। उनके इंदौर से जुड़ाव की रोचक कहानी के नायक रहे हैं दूध विक्रेता नारायण सिंह यादव।रामचंद्र पहलवान के पुत्र-कुश्ती प्रेमी नारायण सिंह की योग्य पहलवान की खोज किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है।
किस्सा यह कि 60 के दशक में बड़वाली चौकी वाले सैयद ठेकेदार कुश्ती के लिए पहलवानों को बाहर से बुलाया करते थे।कल्लू पहलवान मेरठी, मेहरदीन आदि पहलवान दंगल जीतने के बाद दर्शकों में बैठे नारायण सिंह यादव की तरफ देखते हुए व्यंग्य से कहते थे है कोई और पहलवान।ये बात उन्हें सालती रहती थी। अपने घर पर एक शाम ओम पहलवान, छब्बू पहलवान, गिरधारी कुशवाह मास्टर, डालचंद, भूरालाल यादव, नाहर सिंह पहलवान आदि के साथ बैठक में उन्होंने अपने मन की व्यथा सुनाते हुए कहा रहने-खाने का सारा खर्चा मैं उठाऊंगा, देश में ऐसा कोई योग्य पहलवान ढूंढो जो इनका गुरुर तोड़ सके।कुछ दिनों बाद ही अजमेर में राष्ट्रीय चैम्पियनशीप में मप्र केसरी रामऔतार और अमर सिंह पहलवान भी जाने वाले थे।इनसे भी यादव ने कहा वहां कोई पहलवान समझ आए तो बात करना।
अजमेर में सेना की तरफ से (ड्राइंग) मास्टर चंदगीराम भी लड़ने आए और जीते भी। इन दोनों ने चंदगीराम से बात की, वो दोनों पहलवानों के साथ इंदौर आ गए, यादव ने मकान के एक कमरे में रहने-खुराक की व्यवस्था कर दी।कुछ महीनों बाद ही सैयद ठेकेदार मेहरदीन पहलवान को ले आए, यादव ने बयाना दे दिया कि हमारा चंदगीराम लड़ेगा इससे।कुश्ती वाले दिन चंदगीराम ने ताकत और फुर्ती के लिए जीवन में पहली बार थोड़ी सी भांग खाली, नशा ऐसा चढ़ा कि मेहरदीन के हाथों बुरी तरह हार गए।दूसरे दिन यादव के घर सभी मित्र जब हार को लेकर दुखी हो रहे थे।उन्होंने चंदगीराम को बुलाया, उनका सामान सड़क पर फेंकते हुए कहा तुमने तो नाक कटा दी, जाओ अपने घर।यादव के मित्र ने चंदगीराम को छोटी ग्वालटोली की एक होटल में रुकवाया कि कल तक उनका गुस्सा ठंडा हो जाएगा। दूसरे दिन यादव ने भूरा यादव से कहा जाओ लेकर आओ उसे।तब चंदगीराम ने कसम खाई कि मेहरदीन को हरा कर ही दिखाउंगा, मैं सतारा में जाकर बड़े पहलवानों के बीच प्रैक्टिस करुंगा। दो डिब्बे शुद्ध घी, दस बोरी बादाम ट्रक से खुराक के लिए रवाना कराए। दिल्ली के चिरोंजी गुरु की देखरेख में मास्टर चंदगीराम की तैयारी चलती रही। आखिर वह दिन भी आ गया।
दिल्ली में होने वाले भारत केसरी दंगल के विजेता के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन ने 30 तोला सोने की चैन, दिल्ली में फ्लैट की घोषणा कर रखी थी।मेहरदीन से चंदगीराम का मुकाबला देखने इंदौर से नारायण सिंह यादव व अन्य पहलवान भी पहुंचे थे। कुश्ती से पहले गुरु चिरोंजी ने समझाया कि कुश्ती लड़ने से पहले मेहरदीन को मैदान में खूब रगड़ना।चंदगीराम ने उस पर पकड़ मजबूत रखी और मैदान में घिसटा-रगड़ा और उसकी ऐसी हालत कर दी कि 38 मिनट में वह चित हो गया।इस दंगल में जब चंदगीराम की जीत के समाचार और फोटो छपे तो पहलवानी की भाषा में यह लिखा गया था ‘जग प्रसिद्ध पहलवान मास्टर चंदगीराम ने ‘हिंद केसरी’ मेहरदीन पहलवान को पूर्णतया धराशायी एवं पराजित कर ‘भारत केसरी’ की उपाधि धारण की।’
स्व यादव के पुत्र गोपाल यादव पहलवान (विक्रम अवार्डी 1988-89) ने ‘प्रजातंत्र’ से कहा इस जीत पर आकाशवाणी से ‘इंदौर के चंदगीराम’ उल्लेख इसलिए किया गया कि उन्हें तैयार इंदौर में ही हमारे बाबूजी ने किया था। दिल्ली की इस जीत के एक पखवाड़े बाद ही इंदौर के पहलवानों ने भारत केसरी चंदगीराम का विजय जुलूस और सम्मान का कार्यक्रम तय किया था। जुलूस बंबई बाजार के समीप पहुंचा, चेतना होटल पर उनका स्वागत होना था कि ठीक सामने वाली बंबई बाजार से कड़ावघाट को जाने वाली सड़क से पथराव, एसिड बम फेंकने के साथ ही भगदड़ मच गई।दंगल के विजय जुलूस में दंगा होने की भी यह पहली घटना थी।यादव परिवार से जुड़े दाऊलाल व्यास दावा करते हैं कि यह दंगा विजय जुलूस के कारण नहीं, मोहनपुरा में बाला के अड्डे पर जुएं की हारजीत में विवाद से हुआ था।
उस रात दंगा ऐसा भड़का कि दूसरी सुबह ही तत्कालीन एसपी सुरजीत सिंह मय फोर्स के यादव के घर पहुंच गए और अनुरोध किया कि चंदगीराम को तत्काल दिल्ली रवाना करो। पुलिस संरक्षण में इंदौर से रतलाम जंक्शन तक सड़क मार्ग और वहां से ट्रेन द्वारा दिल्ली भेजा गया।तब 15 दिन पूरा और दस दिन आधा (रात का) कर्फ्यू रहा तब कहीं शहर में शांति स्थापित हुई।पीसी सेठी के चुनाव संचालकों में से एक यादव ने बाद में चंदगीराम को अखाड़े के लिए दिल्ली में जमीन भी अलॉट करवाई जब सेठी केंद्रीय गृहमंत्री थे।
पचास साल पहले महिला पहलवान
ताराबाई सेंडो भी लड़ती रही हैं कुश्ती
वरिष्ठ भाजपा नेता बाबू सिंह रघुवंशी बताते हैं पिताजी ठाकुर रामगोपाल सिंह जी ‘सेठबा’ भी कुश्ती के शौकीन तथा पहलवानों को संरक्षण देने वाले थे।
लगभग 5-6दशक पहले ताराबाई सेंडो नाम की एक महिला पहलवान थी जो पुरुष पहलवानों के साथ कुश्ती लड़ती थी।शेरू सैंडो नामक पहलवान के साथ कुश्ती का मैं भी चश्मदीद रहा हूं। इन्हीं शेरू सैंडो से विश्व प्रसिद्ध चंदगीराम पहलवान की इंदौर में प्रथम कुश्ती भी हुई थी। चंदगीराम पहलवान तब युवा थे, वे कुछ दिनों हमारे निवास पर भी रुके थे।बाद में काछी मोहल्ला में नारायण सिंह यादव के निवास पर इंदौर में रहते थे।
इंदौर के श्रेष्ठतम पहलवानों में से कुछ मध्य प्रदेश केसरी रहे और भारत भर में कुश्ती में नाम कमाया। छोटे भगवती पहलवान जो भारत भीम भी कहलाते थे।अमर सिंह पहलवान बाणगंगा वाले, बुद्धा पहलवान जिन्हें शांति सागर की उपाधि दी गई थी। वैसे ही कुश्ती को तथा पहलवानों को मदद कर उनका पोषण करने वाले नारायण सिंह यादव, इंदौर में गद्दे की कुश्ती का सबसे पहले प्रशिक्षण देने वाली चंदन गुरु व्यायामशाला और उसके संचालक गण।कुश्ती के निर्णायक मंडल के स्वर्गीय राधाकिशन बहल। मन्नू इक्का पहलवान आदि। कुश्ती कला के संबंध में ’भारतीय कुश्ती’ पत्रिका से पूर्व विधायक स्व रतन पाटोदी और अब नकुल पाटोदी इस कला का प्रचार कर रहे हैं।
क्रॉस कुश्ती की अनुमति नहीं देने
पर कुश्ती ही निरस्त कर दी थी
कड़ाबीन स्थित बाहुबली व्यायामशाला के संचालक पहलवान नारायण सिंह कुशवाह कहते हैं महाराजा तुकोजीराव होल्कर ने कुश्ती और पहलवानों को खूब सम्मान दिया।यही वजह रही कि छत्रीबाग वाले मेला मैदान में बाहर के पहलवान भी लड़ने आते रहे।किशनपुरा पुल के नीचे नदी वाले मैदान, बाणगंगा, किला मैदान, कंडेलपुरा, बड़ा गणपति, श्रमिक क्षेत्र के साथ ही आसपास के शहरों में भी नागपंचमी पर दंगलों की धूम रहती थी।
2011 में कुश्ती परिषद ने इंदौर में क्रॉस कुश्ती कराने की घोषणा की लेकिन जिला प्रशासन ने अनुमति नहीं दी तो कुश्ती ही निरस्त कर दी। यादव का कहना है प्रशासन के ऐसे ही रुख से दंगल का उत्साह खत्म हो रहा है। यादव और ऑल इंडिया गोल्ड मेडल विजेता-इंदौर केसरी रमेश यादव का कहना है देवास, महू, उज्जैन में क्रॉस कुश्ती हो सकती है तो इंदौर में 30 साल से अनुमति क्यों नहीं।छोटा स्टेडियम को इन डोर स्टेडियम बनाने की मांग मधुकर वर्मा से लेकर महापौर रही मालिनी गौड़ तक से कर चुके हैं, किसी की दिलचस्पी नहीं है। इससे पहले तक ग्वालटोली में लेखराज एरिना में लकड़ी की गैलरी में 20,50,100रु के टिकट लेकर देखते थे।
बड़े भाई (स्व) बनवारी लाल यादव मप्र कुश्ती परिषद के अध्यक्ष रहे, खूब पहलवान तैयार किए।उनके निधन पश्चात स्मृति में हर साल इंदौर भीम दंगल स्पर्धा कराने वाले-कुश्ती परिषद के महामंत्री नारायण सिंह मानते हैं कि दंगल की लोकप्रियता के चलते ही नगर निगम ने छोटा नेहरु स्टेडियम पहलवानों के लिए निर्मित किया।1973 में इसका उदघाटन करने तत्कालीन उप राष्ट्रपति आए थे।इस स्टेडियम में पहली कुश्ती कोल्हापुर के सदाशिव पाटिल और इंदौर के छोटा रतन पहलवान के बीच हुई थी।यहां देश भर के पहलवानों के बीच खुली स्पर्धा होती थी। ओपन वेट में जीतने वाले को बुर्ज और नकद राशि भेंट की जाती थी। ये दंगल के प्रति जुनून ही रहा कि शहर में कुश्ती आयोजित करने वाले ठेकेदार भागीरथ दादा, राम स्वरूप गुरु, मच्छी बाजार वाले बेनी भैया, छोटी ग्वालटोली वाले हाजी शहाबुद्दीन कुरैशी, सैयद कुरैशी अपने खर्चे पर बाहर से पहलवानों को बुलाते थे, बाकी खर्चा अखाड़े वाले और संस्थाएं उठाती थीं।नागपंचमी पर होने वाले दंगल के ओम प्रकाश खत्री, गोपाल पहलवान, महापौर केसरी के सचिन यादव, रमेश यादव और इंदौर भीम केसरी दंगल के रैफरी विजय यादव, अजय यादव, मुन्ना बौरासी,कोच वेदप्रकाश रहते थे।इन आयोजनों में पूर्व मंत्री महेश जोशी, कृपाशंकर शुक्ला, आरसी सलवाड़िया, खजराना वाले ओम प्रकाश वर्मा पहलवान का सहयोग मिलता रहा।