भोपाल। मध्य प्रदेश की सियासत पिछले कई दशकों से किसानों के मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमती है. चाहें सत्ताधारी पार्टी हो या फिर विपक्ष हर कोई किसानों का सहारा लेकर अपनी सियासत मजबूत करने की होड़ में नजर आता है. लेकिन, चुनाव नजदीक आते ही सियासतदां किसानों के सबसे अहम मुद्दों को दरकिनार करते नजर आ रहे हैं.
On the Mandsaur shootout in electoral bela, politicians go silenced by the silence of the farmers, issues of farmers
चुनावी बेला में मंदसौर गोलीकांड और किसान के मुद्दे पर पहले तो सियासी दलों ने चुप्पी साध ली और जब मुंह खोला तो बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने इसे पंचायत स्तर का मुद्दा करार दे दिया. संबित पात्रा के इस बयान पर प्रदेश स्तर पर वैसी हलचल नहीं हुई, जैसी अक्सर ऐसे मुद्दों पर होती है, लेकिन मंदसौर के किसान इस बयान के बाद दोनों ही पार्टियों पर भड़क उठे.
आक्रोशित किसानों का कहना है कि किसान गोलीकांड सबसे बड़ा मुद्दा है, सभी पार्टियों ने उन्हें धोखा दिया है, लेकिन आंदोलन की आग अभी धीमी नहीं हुई है, न ही वे मुद्दे खत्म हुए हैं जिसके लिए उन्होंने आंदोलन किया था. किसानों ने चेतावनी दी कि अगर सियासी दलों ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो इसका खामियाजा चुनाव में तो देखने को मिलेगा ही साथ ही वे एक बार फिर उग्र आंदोलन करेंगे. प्रदेश स्तर के नेता भले ही इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हों, लेकिन संबित पात्रा के बयान ने मंदसौर के प्रत्याशियों को जरूर मुश्किल में डाल दिया है.
जहां कांग्रेस इस मुद्दे पर बीजेपी को घेर रही है, तो वहीं बीजेपी प्रत्याशी का कहना है कि कांग्रेस नेताओं ने आंदोलन को जानबूझकर भड़काया जिससे ये हिंसक हो गया. बहरहाल जिन मुद्दों के लिए आंदोलन हुआ था, वे मुद्दे चुनावी बेला में मंदसौर के किसानों के लिए और भी अहम हो गए हैं कि आखिर क्यों किसानों पर गोली चलाई गई?
आखिर क्यों किसान आंदोलन की नौबत आई? आखिर क्यों किसान को उसकी फसलों की वाजिब कीमत नहीं मिलती? आखिर क्यों बढ़ती बेरोजगारी का इलाज नहीं ढूंढा जा रहा? आखिर क्यों आजादी के 70 साल बाद भी ये सवाल यक्ष प्रश्न बनकर जवाब ढूंढ रहे हैं? ये वो चंद सवाल हैं जिनका जवाब मंदसौर की जनता हुक्मरानों-सियासतदानों से पूछ रही है, लेकिन इनका जवाब शायद सियासतदानों के पास नहीं.