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सेक्सवर्धक दवाओं के लिए मार दी गई 20 हजार शार्क मछलियां, कीमत 30 से 40 करोड़

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मुंबई। खुफिया राजस्व निदेशालय (डीआरआई) ने मुंबई और गुजरात के समुद्री तटों से 8,000 किलोग्राम शार्क फिन जब्त की हैं। माना जा रहा है कि इसके लिए करीब 20 हजार शार्क मछलियों को मार दिया गया। इस मामले में 4 लोगों की गिरफ्तारी की गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में शार्क फिन की कीमत 35 से 40 करोड़ लगाई गई है। शार्क मछलियों के इस पिछले हिस्से को चीन और हॉन्ग कॉन्ग भेजा जाना था। कुछ देशों में सेक्सवर्धक दवाओं में भी इसका इस्तेमाल होता है।
20 thousand sharks bred for sexually transmitted drugs, price 30 to 40 million
एमबीए किंगपिन सहित चार गिरफ्तार
डीआरआई ने बताया कि गुजरात के सेवरी और वेरावल में ग्लोबल इम्पेक्स ट्रेडिंग कंपनी में छापेमारी करने के बाद यह बरामदगी की गई। फर्म के मालिक एमबीए ग्रेजुएट सराफत अली, उसके भाई हमीद सुल्तान, मैनेजर आर अहमद असिक और गोदाम के इंचार्ज आर शिवारामन को गिरफ्तार किया गया है। अधिकारियों ने बताया कि अली इसका किंगपिन है। वह मछुआरों के सात शिकारियों को हायर करके समुद्र में भेजता था।

फरवरी में जाने वाली थी तीन खेप
अधिकारियों ने बताया कि आरोपी असरफ ने फिन के लिए वेरावली और सेवरी में 1,500 स्क्वॉयर फीट प्लांट बना रखा है। ये लोग वहां फिन को सुखाकर वहीं से निर्यात करते थे। एक खेप को लाकर तैयार करने में लगभग एक महीने का समय लगता था। गैंग ने दो टन की तीन खेप तैयार कर ली थी और वे इसे फरवरी में निर्यात करने वाले थे।

फिन काटकर छोड़ देते थे, मर जाती थीं
फिन को काटने के बाद शार्क मछलियों को समुद्र में छोड़ दिया जाता था। छोड़ते समय ये जिंदा रहती थीं। समुद्र में छोड़ते ही ये कुछ दूर बहाव में दूर चली जाती थीं लेकिन थोड़ी देर में इनकी मौत हो जाती थी। दरअसल, फिन कटने के बाद मछलियां तैर नहीं पाती हैं।
वास्तव में, शार्क के तैरने में उसका ऊपरी पिछला हिस्सा सहायक होता है। इसी हिस्से के हड्डीनुमा भाग को सुखाया जाता है। फिर इसे पीसकर इसका सूप बनाया जाता है। एशियाई देशों में इस सूप की लोकप्रियता ने शार्क मछली के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है।

विदेशों में है डिमांड
चीन-हॉन्ग कॉन्ग में इस शार्क फिन का सूप बनाते हैं जिससे काफी ताकत मिलती है। इस सूप की बहुत ज्यादा कीमत होती है। साथ ही इससे दवा भी बनाई जाती है। बता दें कि शार्क मछलियों का शिकार करना प्रतिबंधित है और गैरकानूनी तौर पर इन मछलियों का शिकार किया जाता है।

जिन पहाड़ियों में गूंजती थी मओवादियों के गोलियों की आवाज, वहां जवानों ने बना लिया ट्रेनिंग सेंटर

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नई दिल्ली। जवाधु हिल्स इलाके के लिए गोलियों की तड़तड़ाहट की आवाज कोई नई बात नहीं है। तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई और वेल्लोर जिले में फैली इन पहाड़ियों पर कभी माओवादियों ने शरण ले रखी थी और यहां से अपने कुख्यात इरादों को अंजाम देते थे। गोलियां यहां अब भी चलती हैं, लेकिन अब माओवादी नहीं बल्कि सीआरपीएफ के जवानों के लिए यह ट्रेनिंग ग्राउंड बन गया है। जंगलों से घिरी ये पहाड़ियां छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित इलाकों सरीखी हैं, यही वजह है कि सीआरपीएफ ने यहां अपना ट्रेनिंग ग्राउंड स्थापित कर लिया है।
The noise of gunfire in the hills which resonated, the soldiers made the training center
यहां बड़ा जंगल और कठिन परिस्थितियां होने के चलते दुनिया की सबसे बड़ी पैरा मिलिट्री फोर्स को माओवादियों से निपटने की पूरी तैयारी करने का मौका मिल रहा है। खासतौर पर जंगलों के बीच नक्सलियों से निपटने का यहां अनुभव लिया जा सकता है। यहां से प्रशिक्षित 60 पर्सेंट से ज्यादा सीआरपीएफ कर्मियों को माओवाद प्रभावित छत्तीसगढ़ के सुकमा और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में तैनात किया गया है। सीआरपीएफ के डेप्युटी आईजी और सेंटर के प्रिंसिपल परवीन सी. घाग ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स आॅफ इंडिया को यह जानकारी दी।

6 अप्रैल, 2010 को दंतेवाड़ा में 75 सीआरपीएफ कर्मियों के मारे जाने के बाद अथॉरिटीज को यह महसूस हुआ था कि जवानों का स्पेशल प्रशिक्षण होना चाहिए ताकि जंगलों में अभियान छिड़ने की स्थिति में नक्सलियों को मात दी जा सके। 2010 के अंत में तमिलनाडु काडर आईपीएस अधिकारी विजय कुमार ने सीआरपीएफ के डीजी के तौर पर कमान संभाली थी और वामपंथी अतिवादी समूहों की सक्रियता वाले इलाकों जैसे माहौल में ट्रेनिंग का फैसला लिया।

सीआरपीएफ के डेप्युटी कमांडेंट आर. अरुमुगम ने कहा, ‘इसी मकसद से उन्होंने जवाधु हिल्स का दौरा किया और वहां कुछ ऐसे पॉकेट्स की पहचान की, जो माओवाद से प्रभावित छत्तीसगढ़ के इलाकों जैसे थे। 2011-12 से ही हम नई भर्ती पाने वाले लोगों को 29 दिनों की ट्रेनिंग के लिए जवाधु हिल्स लेकर आते हैं।’ यहां सीआरपीएफ के दो कैंप हैं।

कभी माओवादियों का गढ़ था यह इलाका
तमिलनाडु पुलिस के रिटायर्ड एसपी एम. अशोक कुमार बताते हैं कि 4 दशक पहले आॅपरेशन अजंथा के तहत यहां से माओवाद का सफाया किया गया था। तब सूबे में एमजी रामचंद्रन की सरकार थी। उस दौर में जवाधु और येलागिरी हिल्स माओवादियों के गढ़ के तौर पर कुख्यात थे। हिंसा के साथ ही अपने अजेंडे को फैलाने वाले माओवादियों के लिए उस दौर में यह सुरक्षित पनाहगाह थी, लेकिन अब यहां सीआरपीएफ का बसेरा है।

भारी सुरक्षा में रहेंगे मुख्यमंत्री, मंत्री और सांसद-विधायक , -जिलाधिकारी स्थिति को देखते हुए लगाएं धारा 144

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भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के काफिले पर हमले के बाद प्रदेश में जमकर राजनीति हो रही है, लेकिन इस बीच सरकार ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत सभी प्रमुख नेताओं की सुरक्षा बढ़ा दी है। अब मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक अन्य जनप्रतिनिधियों को विशेष सुरक्षा मुहैया होगी।
Keep in mind the Chief Minister, the minister and the MP-MLA, -holding the status of the Collector in high security Section 144
जिला कलेक्टर एवं एसपी स्थिति को देखते हुए जिले में शाति व्यवस्था कायम करने के लिए धारा 144 लागू कर सकते हैं, एवं इंटरनेट सेवा बंद करा सकते हैं। इधर एससी-एसटी एक्ट के विरोध में कल से शुरू हो रहे बंद के अभियान को देखते हुए ग्वालियर-चंबल के शिवपुरी, ग्वालियर, भिंड एवं मुरैना में धारा 144 लागू कर दी गई है।

एससी-एसटी एक्ट के विरोध में आज ग्वालियर में विशाल सभा हो रही है। जिसमें आधा दर्जन से ज्यादा संगठन शामिल हो रहे हैं। कथाकार देवकीनंदन ठाकुर भी इस आंदोलन में कूद पड़े हैं। ग्वालियर के फूलबाग मैदान पर हो रही सभा में 10 हजार से ज्यादा लोगों के भीड़ उमड़ने की संभावना है।

ध्यान बांटने की काशिश है जूता-चप्पल: त्रिवेदी
सपाक्स के संरक्षण हीरालाल त्रिवेदी ने हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के काफिले पर पत्थर फेंके जाने और जूता फेंके जाने की घटना को कांग्रेस-भाजपा का आंदोलन से ध्यान भटकाने का षड्यंत्र करार दिया है। त्रिवेदी ने कहा कि दोनों ही दल एसटी-एससी एक्ट को लेकर घिरे हुए हैं। इनसे सपाक्स वर्ग बेहद नाराज हैं। इस तरह की घटनाएं सिर्फ ध्यान भटकाने के लिए हैं।

विशेष घेरा में रहेंगे मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कल से फिर जनआशीर्वाद यात्रा पर निकल रहे हैं। इस दौरान मुख्यमंत्री विशेष सुरक्षा घेरे में रहेंगे। अब आगे की यात्राओं में मुख्यमंत्री को विशेष सुरक्षा दी जाएगी। वे नेताओं से घिरे नहीं रहेंगे, बल्कि सुरक्षाकर्मी उनके आसपास रहेंगे। राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री की सुरक्षा को रिव्यू किया है। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री, सांसद, मंत्री एवं विधायकों की सुरक्षा को लेकर भी सतर्कता बरती जा रही है। राज्य शासन की ओर से पुलिस अधीक्षकों से कहा गया है कि यदि विधायक अतिरिक्त सुरक्षा की मांग करता है तो दी जाए।

नेताओं ने संसद में बैठकर समाज बांट दिए: देवकीनंदन
कथाकार देवकीनंदन ठाकुर देश के सभी राजनीतिक दलों के रवैए से नाराज हैं। उन्होंने कहा कि देश के जो नेता हैं, वो समाजों को आपस में बांटने की राजनीति कर रहे हैं। संसद में इस कानून का विधेयक मंजूर हो गया और कोई भी एक नेता इसका विरोध करते हुए सामने नहीं आया। सभी ने मौन धारण कर सामाजिक ढांचे के विपरीत इस कानून को स्वीकार क्यों कर लिया?

नेताओं को इसका जवाब जरूर देना चाहिए। यदि अभी भी ऐसी विसंगतियों को दूर कर सामाजिक ढांचा व न्याय व्यवस्था को नहीं सुधारा गया तो आने वाले समय में विभिन्न समाजों के लोग एक-दूसरे के साथ बैठना भी पसंद नहीं करेंगे। संसद में मौन रहकर सभी ने इस एक्ट को पास होने दिया। क्या इन सभी नेताओं को सिर्फ एससी/एसटी वर्ग का ही वोट चाहिए? यदि ऐसा है तो राजनीतिक दल घोषणा कर दें, कि उन्हें सवर्ण व दूसरे वर्गों के वोट नहीं चाहिए।

03-09-2018

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very happy Janmashthmi

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Daffodils Higher Secondary School, Bhopal wishes a very happy Janmashthmi…

JANAMASTHAMI CELEBRATIONS AT SHARDA VIDYA MANDIR

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Janamasthami was celebrated with great zeal and pomp by the children of Pre-Primary at Sharda Vidya Mandir.
Children came dressed in, as Krishna and Radha and other colourful outfits.. The Pre-primary was decorated colourfully with Jhankis depicting the birth of Lord Krishna and Krishna Jhoola. A special assembly was conducted to mark the birth of the deity.

Children at SVMKotra and SVMChunabhatti made torans and decorated handies. Children at SVMBaghmugalia celebrated the occasion by singing and dancing with great joy in the presence of their grandparents. SVMRatibad organised various activities involving all the parents and children in the festivities.

JANMASHTAMI CELEBRATION

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International Public School celebrated Janmashtami with great joy and devotion today with children performing different Krishna leelas . Our adorable tiny tots dressed as gwalas and gopis participated in matki phod which was the highlight of the day.

प्रिटी पैटल्स फाउंडेशन स्कूल में जन्माष्टमी की धूम…

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कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवन श्री कृष्ण ने अधर्म के नाश के लिए इस दुनिया में जनम लिया। इस दिन को देश के कई भागों में बड़ी धूम धाम व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कृष्ण जन्मोस्त्सव के इसी पावन पर्व को प्रीटी पेटल्स फाउंडेशन स्कूल के नन्हे बाल गोपाल व गोपियों ने एक विशेष ढंग से मनाया।

कृष्ण व राधा की परम्परागत वेशभूषा में सजे ये नन्हें बच्चे हमें सन्देश दे रहे थे, की अब अधर्म का नाश हमें ही कृष्ण बनकर करना है। इस अवसर पर इन् बच्चों ने श्री कृष्ण भगवान के प्रिय भोजनों व गीतों पर नृत्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अंत में बच्चों को कृष्ण जन्मोस्त्सव के पावन अवसर पर माखन, मिश्री एवं मिठाई खिलाई गयी। साथ ही मटकी फोड़ कॉम्पिटिशन का भी आयोजन किया गया जिसका बच्चों लुत्फ़ उठाया।

मतदाताओं के लिए बिछने लगे हैैं जाल

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बाखबर
राघवेंद्र सिंह
बचपन से अब तक स्कूलों में पढ़ते और बड़े बुजुर्गों से एक किस्सा खूब सुनते आ रहे हैैं कि किस तरह से लोगों को झांसा देकर फंसाया जाता है। इसे समझने के लिए पक्षियों से जुड़ी भूली बिसरी सी एक कहानी याद आ रही है। इसमें बताया जाता है किस तरह बहेलिया जाल और दाने लेकर जंगल में जाता है और जाल बिछाने के बाद उन पर दाने डाल पक्षियों को फसाता है। कुछ समझदार पक्षी अपनी बिरादरी वालों को अक्सर बचने की सलाह दिया करते हैैं जिसमें कहा जाता है कि शहर से जाल और दाने लेकर शिकारी आता है और वह पहले जाल बिछाता है और फिर उसमें दाने डाल देता है।
Trapping for voters
उपर उड़ रहे पक्षी दानों को देखकर जाल पर बैठते हैैं और दानें चोंच में भरकर जैसे ही उड़ते हैैं उनके पैर जाल के फंदे में फंस जाता हैैं। इसलिए जब जाल के साथ दाने दिखें तो वहां कोई भी पक्षी दाना खाने नहीं जाए। परिदों की बिरादरी के तजुर्बेेकार अपनी नई पीढ़ी के युवा पक्षी और पंख निकल रहे बच्चों को समझाते हैैं कि उनकी यह समझाइश रट लो। इसके बाद देखते यह हैैं कि पक्षियों से भरा एक जाल आसमान में उड़ रहा है और उसमें फंसे पक्षी यह रट रहे हैैं कि बहेलिया आएगा जाल बिछाएगा, दाने डालेगा और हमें फंसाएगा।

लेकिन इस लालच में आकर हमें फंसना नहीं है। कमोबेश भारतीय राजनीति में अभी ऐसा ही हो रहा है। महात्मा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और  उन जैसे मोहल्ला से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेता मतदाताओं को पिछले सत्तर सालों से ऐसे ही कुछ समझा रहे हैैं ताकि सियासत के झांसे में मतदाता न फंसे और गलत पार्टी और गलत लोगों को पांच साल के लिये अपना और देश का भाग्य न सौैंपे।

2018 के आखिर में मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में विधानसभा के चुनाव होने हैैं। इसके बाद चार-पांच माह बाद 2019 में मई तक लोकसभा चुनाव भी होने हैैं। एक तरह से चुनाव का माहौल शुरू हो गया है। कह सकते हैैं शिकारी आएंगे, जाल बिछाएंगे, वादे और घोषणाओं के दाने डालेंगे, आशीर्वाद मांगेंगे और चुनाव जीतने के बाद पांच साल तक आशीर्वाद देंगे और दाने खिलाएंगे कम और दिखाएंगे ज्यादा। यह दौर विधानसभा चुनाव के चक्कर में शुरू हो गया है।

मध्यप्रदेश में मतदाताओं को दाना डालते हुए प्रदेश कांग्र्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ कहते हैैं हम सरकार में आते ही डीजल, पेट्रोल के दाम घटा देंगे। युवाओं को व्यवसायिक परीक्षाओं में जमा फीस लौटाने का वचन दिया है। पार्टियों और उनके कर्ताधर्ताओं की भाषा और भाव बदल रहे हैैं इसलिए चुनाव पूर्व पहले जिन वादों को घोषणा पत्र कहा जाता था उनका नया नामकरण किया है-दृष्टिपत्र, संकल्प पत्र और वचन पत्र। मतदाताओं को जाल में लेने की यह नई शब्दावली है।

भावुक करने वाले नारे और जुमलों में शामिल किया जाए तो इन दिनों जनआशीर्वाद यात्रा पर निकले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह कहना भी खूब चर्चाओं में है – आप मुझे आशीर्वाद दो मैैं आपकी जिंदगी बदल दूंगा। इसे राजनीतिक दलों का मायाजाल और काला जादू भी कह सकते हैैं। हालांकि जादूगरी और टोने टोटके की दुनिया में अब यह बातें बहुत दुर्लभ हो गई हैैं। मगर राजनीति के जादूगर शब्दजालों से पहले अपने कार्यकर्ताओं को लुभाते हैैं और फिर वादों के दाने डालकर मतदाताओं को फंसाते हैैं। आजादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का लुभावना नारा दिया था।

इसकी दम पर लंबे समय तक उन्होंने राज किया। अलग बात है कि पाकिस्तान को 1971 में युद्ध हराने के बाद उन्हें देवी और दुर्गा का अवतार भी कहा गया था। विस्तार में जाने की बजाए हम सीधा 2014 पर आते हैैं जब नारों के साथ दृष्टिपत्र और संकल्प पत्रों में पार्टी की नीतियों की जगह जुमलों ने हथिया ली। गरीबों के खाते में लाखों रुपये आएंगे, विदेशों से कालाधन भारत लेकर आएंगे, हर साल एक करोड़ नौकरियां देंगे। मगर कुछ नहीं हुआ तो यह कहने में भी संकोच नहीं आया कि वे तो जुमले थे।

हम इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओं से लेकर नरेंद्र मोदी के मैक इन इंडिया की बात कर रहे हैैं। उन्होंने कहा था मनरेगा कांग्र्रेस का स्मारक बनेगा। बाद में वोट के लालच में इसी मनरेगा में मोदी सरकार ने बजट बढ़ाया और जनसंख्या की शक्ति को चीन तरह विकास में लगाने के बजाए आलस और मक्कार की तरफ धकेल दिया। केंद्र मनरेगा में पैसा बढ़ा रहा है और राज्य एक रुपये किलो गेंहू और दो रुपये किलो चावल देकर मेन पावर को कुशल श्रमिक बनाने के बजाए आलसी श्रमिक बनाने के अभियान में जुट गए हैैं।

गांव में खेती के लिये मजदूर नहीं मिल रहे हैैं और शहरों में उत्कृष्ट काम करने के लिए कुशल श्रमिक। चीन ने जनसंख्या जो मुसीबत बन रही थी उसे अपने ताकत बना महाशक्ति अमेरिका तक को हिला कर रख दिया। भारत में पार्टी और लीडर बातें तो देश भक्ति की करते हैैं और सरकार में आते ही वोटरों को मुफ्त भोजन की अफीम चटा देते हैैं। गरीब आदमी वोट का जरिया बन जाता है और सरकार में आने के बाद पार्टियां मनमानियां करने लगती हैैं। गरीब मुफ्त के रोटी, चावल के नशे में है और शिकारियों से बचने की सारी सलाहों को अनसुना कर रहा है।

किसानों को कर्ज माफी की बातें 90 के दशक से पार्टियां कहती आई हैैं। कुछ ने कर्ज माफ भी किए मगर कर्ज में पैदा और कर्ज में ही मरने वाला किसान अब कहता है उसे अब कर्ज माफी की खैरात नहीं चाहिए। किसान का कहना है उसे सब चीजें बाजार मूल्य पर ही मिलें लेकिन उसके कृषि उत्पादन का लागत मूल्य और उसमें 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर बाजार मूल्य तय कर दिया जाए। अब उसे रियायत की अफीम की दरकार नहीं है। अनुदान और रियायत ने उसे दिनरात की मेहनत के बाद भी आत्महत्या के मुहाने पर पहुंचा दिया है। इस पर जले पर नमक यह है कि किसान नशा करने से, प्यार में पागल होने, जादू टोने और फिजूलखर्ची के कारण आत्महत्या कर रहा है।

उससे वादा किया था लागत का डेढ़ गुना बाजार मूल्य दिलाया जाएगा। वह तो मिला नहीं। अब 2022 तक उसकी आय दौगुनी करने की बात हो रही है। मगर कोई यह नहीं बता रहा है वह दौगुनी होगी कितनी क्योंकि अभी किसान की आय कम घाटा ज्यादा है। पहले तो उसकी आय प्रति एकड़ कितनी है यह तय करने की जरूरत है। इस पर किसी शिकारी का ध्यान नहीं हैैं। सब दौगुनी करने का दाने डालने में लगे हैैं।

रोजगार के मामले में यही हालत युवाओं की है। घटिया शिक्षा के चलते प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक पढऩे वालों की बदहाली है और सेहत के मामले में भी मध्यप्रदेश समेत राज्यों की हालत रुलाने वाली ज्यादा है। अस्पताल हैैं तो डाक्टर नहीं हैैं, डाक्टर हैैं तो जांच करने वाली मशीनें काम नहीं कर रही है। सब कुछ है तो दवाएं नहीं हैैं। मगर जाल लेकर आने वाले शिकारियों के पास दृष्टिपत्र से लेकर वचन पत्र तक के दाने खूब हैैं।

एक और बार चुनाव लडऩे वाले दल और उनके माई बापों के लिए यह जो कार्यकर्ता नाम का प्राणी है यह भी अब एक बोझ की तरह हो गया है। इसलिए उसकी अनदेखी लगतार की जा रही है सभी दलों में। चाहे वह सत्ता में हो या विपक्ष में। बहुत उदारता के साथ अगर सोचें तो 2024 तक ही कार्यकर्ताओं की कुछ थोड़ी बहुत पूछपरख रहेगी। इसके बाद जो काम कार्यकर्ता कर रहे हैैं वह इवेंट की कंपनियां करेंगी। ठीक वैसे ही जैसे शादी ब्याह के इवेंट्स कंपनियां मैनेज करती हैैं।

खाना बनाने, परसने, खिलाने, मेहमानों का स्वागत करने से लेकर गाने बजाने और नाचने तक की टीम होती है। आपको कुछ नहीं करना केवल स्टेज पर आना है और वरमाला पहनाने से लेकर हनीमून पैकेज तक कारपोरेट सेक्टर के हवाले हो रहा है। ऐसे में मतदाता तो ठीक कार्यकर्ताओं के भी दिन अब लद जाएंगे।

साधो, ठगे गए मतदाता

यह जनगीत मशहूर कवि और व्यंग्यकार संपत सरल से बहुत पहले ही सुना था लेकिन अब गाजे बाजे के साथ धूम मचा रहा है।
साधो, ठगे गए मतदाता
घूमन   में  मदमस्त  जुलाहा,  एक  सूत  नहीं  काता।।
अच्छे दिन  के जुमले झांसे, जाल बिछाकर पंछी फांसे।
काला  धन   कबहूं   आएगा,  रीता   जन-धन  खाता।।
हांकत फेंकत  कैसी-कैसी, पाक-चीन  की  ऐसी-तैसी।
अपनी  थोथी  जय  सुन-सुनकर,  हंसती भारत माता।।
कसमें   वादे   हवा  हवाई,  सूट-बूट की  हद है भाई।
मन  की  बात  करत  इकतरफा, बोलत नहीं अघाता।।
जनता   चावै   धंधा  रोटी,  आप  लगावै दाढ़ी-चोटी।
उस ज्ञानी की  क्या  कहिए  जो, घी से आग बुझाता।

सांची कहौं

मैं शुद्ध अन्त:करण से मोदी जी की कार्यपद्धति से असहमत एवमं असंतुष्ट हूँ, क्योंकि वह सर्वसमावेशी न होकर नितांत व्यक्तिवादी और अहम से परिपूर्ण हैं, इसीलिए वे सफल भी नहीं हो पा रहे हैं।
इतना ही नहीं उनकी कार्य प्रणाली बीजेपी की मूल मान्यताओं, अर्थ और सत्ता के विकेंद्रीकरण के  विरुद्ध है। यह बहुत ही गम्भीर चिंता का विषय है। दीनदयाल जी और अटलजी की सोच से एक दम उलट। अधिकांश मंत्रियों की स्थिति चपरासियों से बेहतर नहीं है। अफसरशाही और भ्रष्टाचार चरम पर है। कभी मोदी जी का अनन्य प्रशंसक रहा हूँ मैं। प्रधानमंत्री बनने से पूर्व मोदी जी की ग्वालियर के फूलबाग की सभा का संचालन भी मैंने ही किया था किन्तु इससे क्या अपनी ऑंखें बन्द कर लूं? मोदी जी ने मेरा कोई व्यक्तिगत नुकसान नहीं किया है मेरी यदि कुछ निजी शिकायतें हैं तो वे प्रदेश सरकार अथवा स्थानीय नेताओं से हो सकती हैं, पर देश हित के सामने वे नगण्य हैं। एक राज चड्ढा के मिट जाने से कोई अंतर नहीं पड़ता, किन्तु लोकतंत्र नष्ट हो गया तो कुछ भी नहीं बचेगा। इसीलिए चिंतित हूं।
(भाजपा नेता रहे राज चड्ढा की फेसबुक से, श्री चड्ढा ग्वालियर जिला भाजपा के अध्यक्ष से लेकर म.प्र. भाजपा के मंत्री भी रहे हैैं।)
(लेखक न्यूज चैनल IND24 MP/CG समूह के प्रबंध संपादक )

कमलनाथ बता रहे थे विकास का मॉडल, तभी छिंदवाड़ा में फंसी सीईओ की गाड़ी

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भोपाल। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ मु यमंत्री के गृह नगर विदिशा के शमशाबाद में छिंदवाड़ा के विकास का मॉडल गिना रहे थे और लोगों को विकास देखने के लिए छिंदवाड़ा आने का न्यौता दे रहे थे, तभी वहां के जिला पंचायत सीईओ की गाड़ी कीचड़ में फंस गए। वे अफसरों के साथ बैलगाड़ी हांककर गांव में निरीक्षण करने पहुंचे थे। सोशल मीडिया पर यह घटनाक्रम खूब ट्रोल हुआ।
Kamal Nath was telling the model of development, then the CEO’s car stuck in Chhindwara
दरअसल, जिला पंचायत सीईओ रोहित सिंह निरीक्षण के लिए चौरई गांव पहुंचे थे, लेकिन बारिश और कीचड़ होने के कारण उनका वाहन आगे न बढ़ सका। सीईओ ने बिना वक्त गवांए अपनी गाड़ी छोड़ी और एक बैलगाड़ी पर बैठकर गांव की ओर रवाना हो गए। यहाँ पहुंचकर उन्होंने जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत खूट पिपरिया मे प्रधानमंत्री आवास योजना अंतर्गत वनने वाले मकानों और निर्मल कूप सामुदायिक कुआं निर्माण का निरीक्षण किया।

जब यह घटनाक्रम चल रहा था तभी कमलनाथ विदिशा में मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर आरोप लगा रहे थे और छिंदवाड़ा मॉडल की जमकर तारीफ कर रहे थे। कमलनाथ ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश की आर्थिक स्थिति जर्जर हो गई है।

नाथ ने बासौदा की भीड़ भरी सभा में कहा कि विदिशा लोकसभा क्षेत्र से शिवराज सिंह चौहान पांच बार सांसद रहे, दूसरी बार सुषमा स्वराज यहां से सांसद बनी, लेकिन क्षेत्र विकास नहीं कर सका। उल्लेखनीय है कि मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार के मंत्री लंबे समय से मप्र की सड़कों को अमेरिका से बेहतर बताते नहीं थक रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि प्रदेश के दूरदराज के अंचल में सड़कों की स्थिति बेहद खराब है। जिलों के दूरस्तर मार्गों की स्थिति ठीक नहीं है।