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जेपी ने पूछा था :’आंदोलन क्या बूढ़े चलाएँगे ?

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श्रवण गर्ग

पचास साल से ज़्यादा का वक्त होने आया ! जिस एक व्यक्तित्व का चेहरा देश के इन कठिन दिनों में सबसे अधिक स्मरण हो रहा है, जिसकी छवि आँखों की पुतलियों में तैर रही हैं वह जयप्रकाश नारायण (जेपी ) का है। ऐसा होने के पीछे कुछ ईमानदार कारण भी हैं ! साल 1972 में जेपी के समक्ष हुए दस्युओं के ऐतिहासिक आत्म-समर्पण के पहले चम्बल घाटी में बिताया गया लगभग तीन महीने का समय और फिर 1974 में बिहार आंदोलन के दौरान जेपी के सान्निध्य में गुज़र एक लम्बा अरसा , उनके साथ विमान, ट्रेन और कार में कीं गईं यात्राएँ आज भी स्मृतियों में ज्यों की त्यों आज भी क़ायम हैं।

हाल ही की एक यूट्यूब चैनल की बहस में मैंने ज़िक्र किया था कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान मैसूर में भारी बारिश के बीच ज़रा भी विचलित हुए बिना भाषण करते बावन साल के राहुल गांधी का चित्र जब दुनिया ने देखा और वायरल हुए उस सभा के वीडियो में हज़ारों ग़ैर-हिंदी भाषी श्रोताओं की भीड़ को निहारा तो मुझे 1974 के इलाहाबाद की एक ऐतिहासिक जनसभा की याद हो आई।

जून 1974 में इलाहाबाद के टंडन पार्क में ‘सम्पूर्ण क्रांति’ आंदोलन के समर्थन में आयोजित हुई छात्रों की विशाल सभा में बहत्तर-वर्षीय जेपी ने मूसलाधार बरसात के बीच भी अपने उद्बोधन को जारी रखा था और श्रोता भी शांत भाव से लोकनायक के कहे एक-एक शब्द के साथ भीगते रहे थे। मेरा लिया जेपी का उस समय का चित्र आज की तरह तब वायरल नहीं हो पाया था। परिस्थितियाँ तब भिन्न थीं। उस समय न मोबाइल था, न टीवी चैनल्स थे और न ही सोशल मीडिया था। इस सबके बावजूद जेपी की ‘सम्पूर्ण क्रांति’ सफल हो गई।

स्मृतियों से बिंधा हुआ है कि 1974 में जेपी के साथ पटना से कलकत्ता के लिए ट्रेन में यात्रा के दौरान मैं देखता था कि रात के बारह-एक बजे भी किस तरह लोकनायक की एक झलक पाने के लिए स्टेशनों पर जगह-जगह लोगों की भीड़ उनके डिब्बे के बाहर जमा हो जाती थी । जेपी और प्रभावती जी के साथ जून 1972 में चूरू (राजस्थान) की यात्रा पर निकलते वक्त पुरानी दिल्ली के प्लेटफ़ार्म पर उपस्थित लोग अपने आप को आश्वस्त नहीं कर पा रहे थे कि ट्रेन की प्रतीक्षा में बिना किसी सुरक्षा और भीड़ के खड़े हुए शख़्स लोकनायक जयप्रकाश नारायण भी हो सकते हैं !

चूरू में उस शाम जेपी ने अचानक से पूछ लिया था : श्रवण कुमार टहलने के लिए चलते हो ? यह एक दुर्लभ क्षण था। मेरे मुँह से शब्द ही नहीं फूट पाए। शहर के बाहर शांत एकांत में जेपी और प्रभावती जी के साथ टहलते वक्त लोकनायक से पूछे गए कई सवालों में साहस करके किया गया एक यह भी था कि क्या इंदिरा गांधी की हुकूमत आपको स्वतंत्रता सेनानी नहीं मानती ? यह वह वक्त था जब दिल्ली में आज़ादी की ‘रजत जयंती’ मनाई जा रही थी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को ताम्रपत्र दिए जा रहे थे, उनका सम्मान किया जा रहा था।

मेरे सवाल के उत्तर में जेपी कुछ क्षणों के लिए मौन हो गए थे जैसे शून्य में कुछ तलाश कर रहे हों। फिर अपनी चिर-परिचित विनम्रता के साथ बग़ैर मेरी ओर देखे जवाब दिया : ‘शायद ऐसा ही हो।’ जेपी ने दो शब्दों में बहुत बड़ा उत्तर दे दिया था । मैं आगे कुछ भी बोल नहीं पाया। प्रभावती जी जेपी के कहे हरेक शब्द को ध्यान से सुन रहीं थीं। डॉक्टर लोहिया के बारे में पूछे गए एक सवाल का जवाब अब पाँच दशकों के बाद तो ठीक से याद नहीं पर वह दिवंगत समाजवादी राजनेता के प्रति खूब आदर से भरा हुआ था। जेपी की चूरू में उपस्थिति से अणुव्रत आंदोलन के प्रणेता आचार्य तुलसी की पुस्तक ‘अग्नि परीक्षा’ को लेकर उत्पन्न हुआ साम्प्रदायिक तनाव समाप्त हो गया था। जेपी के आग्रह पर आचार्य तुलसी ने अपनी विवादास्पद पुस्तक वापस ले ली थी।

‘बिहार आंदोलन ‘ के दौरान पटना में रहते हुए मैं आंदोलन से सम्बंधित सामग्री के प्रकाशन आदि के कामों में जेपी की मदद कर रहा था। कदम कुआँ स्थित जेपी के निवास स्थान पर उनके दो अत्यंत विश्वस्त सहयोगी ( श्री अब्राहम और सच्चिदा बाबू ) काफ़ी पहले से कार्यरत थे।प्रभाष जोशी जी ने मुझे बिहार आंदोलन की रिपोर्टिंग के लिए दिल्ली से कुछ दिनों के लिए भेजा था पर जेपी ने अपने काम में सहयोग के लिए पटना में ही रोक लिया।

पटना में दोपहर बाद अथवा शाम का कोई वक्त रहा होगा। जेपी अपने निवास स्थान के निचले खंड (ग्राउंड फ़्लोर) पर स्थित बैठक से काम निपटा कर विश्राम के लिए ऊपरी तल पर पर बने शयन कक्ष के लिए सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे। पटना पहुँचे मुझे तब ज़्यादा समय नहीं हुआ था। 15 अप्रैल 1973 को प्रभावती जी के चले जाने के बाद से जेपी अकेले पड़ गए थे। सीढ़ियों के पास खड़ा हुआ मैं जेपी को धीरे-धीरे कदम उठाकर शयन कक्ष की ओर सीढ़ियाँ चढ़ते देख रहा था। मैंने तभी अत्यंत विनम्रतापूर्वक कहा :’ बाबूजी मैं दिल्ली वापस लौटना चाहता हूँ।’ जेपी कुछ क्षणों के लिए रुक गए, जैसे कुछ समझने की कोशिश कर रहे हों। फिर धीमे से बोले :’ तुम जवान लोग ही अगर चले जाओगे तो फिर यह आंदोलन क्या हम बूढ़े चलाएँगे ?’ मैंने ज़ाहिर नहीं होने दिया कि उनके कहे के बाद मैं अंदर से कितना संताप कर रहा था।

जेपी ने बाद में बुलाकर दिल्ली वापस लौटने की मंशा का कारण पूछा । मैंने बताया कि सर्वोदय के कुछ स्थानीय पदाधिकारी काम में सहयोग नहीं कर रहे हैं इसलिए आंदोलन के प्रकाशनों का काम ठीक से नहीं हो पा रहा है। वे सब कुछ समझ गए। मुझे अपने साथ शयन कक्ष में रखी अपनी निजी अलमारी तक ले गए। फिर चाबी से अलमारी खोल उसमें से रुपयों की एक गड्डी निकाल मुझे सौंप दी और कहा : ‘ये ख़त्म हो जाएँ तो और माँग लेना।’ जेपी ने मेरे पैर बिहार की ज़मीन के साथ हमेशा के लिए बांध दिए थे।

कुछ महीनों के बाद जेपी ने मुझे कहा कि बिहार आंदोलन का एक विश्वसनीय इतिहास लिखा जाना चाहिए। बिहार छोड़ने से पहले मैंने ‘ बिहार आंदोलन एक सिंहावलोकन’ लिखकर पुस्तक की पांडुलिपि जेपी को सौंप दी। जेपी ने पूरी पांडुलिपि पढ़ी और उसे पुस्तक रूप में सर्व सेवा संघ से प्रकाशित करवा दिया। किताब के पहले पन्ने पर जो शब्द उन्होंने अपनी कलम से लिखे मैं जीवन की अंतिम साँस तक के लिए जेपी के स्नेह का ऋणी हो गया। जेपी ने लिखा :’ बड़े परिश्रम और सावधानी से यह पुस्तिका श्रवणकुमार ने लिखी है। बिहार आंदोलन का यह निष्पक्ष और सहनुभूतिपूर्ण सिंहावलोकन है।’

महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी के बारे में 1944 में कहा था :’आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था।’ जेपी एक ऊर्जा थे ,रोमांच थे, आत्मीयता से भरी हुई एक प्रतीक्षा थे।आज़ादी के इतिहास को नए सिरे से लिखने की क्रूरता जब किसी दिन थक कर पस्त हो जाएगी , आइंस्टीन जैसा ही कोई संवेदनशील वैज्ञानिक विनोबा और जेपी जैसे हाड़-मांस वाले व्यक्तियों की उपस्थिति के चमत्कार के बारे में भी लिखेगा।( चित्र जून 1974 में इलाहाबाद के पी डी टंडन पार्क में हुई जेपी की जनसभा का )

भोपाल में स्वैच्छिक रक्तदान शिविर एवं दशहरा मिलन समारोह हुआ संपन्न

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TIO BHOPAL

श्री राष्ट्रीय प्रताप फाउंडेशन भारत द्वारा विजन ब्लड सेंटर भोपाल में स्वैच्छिक रक्तदान शिविर एवं दशहरा मिलन समारोह हुआ संपन्न जिसमें बड़ी संख्या में रक्तवीरो ने किया रक्तदान जो भोपाल में किसी ज़रूरतमंद को निशुल्क अवस्यकता पड़ने पर दिया जायगा अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों से आए मरीज और उनके परिजनों को ब्लड की व्यवस्था करने में काफी परेशानी होती है और पैसे भी लगते है कई बार मरीज की ब्लड के अभाव में मृत्यु तक हो जाती है अब हर मरीज का एक परिवार भोपाल में भी है श्री राष्ट्रीय प्रताप फाउंडेशन भारत साथ ही श्री राष्ट्रीय प्रताप फाउंडेशन भारत जल्द लंपी वायरस की रोकथाम के लिए गाय के लिए वैक्सिनेशन अभियान शुरू करेगा जिससे गो माता की लंपि वायरस से सुरक्षा हो सके जिसमे श्री राष्ट्रीय प्रताप फाउंडेशन भारत के समस्त योद्धा उपस्थित रहे

सैफई में होगा मुलायम सिंह का अंतिम संस्कार, UP में 3 दिन का राजकीय शोक

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TIO NEW DELHI

सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का आज निधन हो गया है। वह पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में आखिरी सांस ली। यूपी में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित कर दिया गया है।

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जताया दुख
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ट्वीट कर कहा, मुलायम सिंह यादव जी का राजनीतिक कौशल अद्भुत था। दशकों तक उन्होंने भारतीय राजनीति का एक स्तंभ बनकर समाज व राष्ट्र की सेवा की। जमीन से जुड़े परिवर्तनकारी,सामाजिक सद्भाव के नेता,आपातकाल में लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्षधर के रूप में वे सदैव याद किए जाएंगे। उनका जाना अपूर्णीय क्षति है।

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दुख जताया
उन्होंने लिखा, “देश के पूर्व रक्षा मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में मुलायम सिंह का योगदान हमेशा अविस्मरणीय रहेगा।”
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को पत्र लिखा।
राजनाथ सिंह कल मुलायम सिंह यादव के अंतिम संस्कार में शमिल होने सफाई जाएंगे।

  1. बेटे अखिलेश यादव से जबरदस्त प्रेम की कहानी
    पहली पत्नी मालती देवी की हृदयाघात से मौत के बाद अखिलेश की किशोरावस्था उनके दादी के सानिध्य में गुजरी। मुलायम के अखिलेश के प्रति ज्यादा प्रेम की एक बड़ी वजह ये भी है। अखिलेश और मुलायम सैफई में उस स्थान पर नियमित जाते हैं जहां उनका (मालती देवी) अंतिम संस्कार किया गया था। 1982 का समय था। मुलायम सिंह बेटे अखिलेश को लेकर सड़क के रास्ते ग्वालियर जा रहे थे, जहां उनका एडमिशन प्रतिष्ठित सिंधिया कॉलेज में होना था। अचानक उनकी गाड़ी रास्ते में दुर्घटनाग्रस्त हो गई। किसी को चोट नहीं आई थी। मुलायम ने अपने बगल में बैठे साथी से कहा, ‘यार, मेरा केवल एक बेटा है वो भी अकेले यात्राएं करता हैं। अगर उसे कुछ हो गया तो?’ मुलायम ने कुछ देर सोचा फिर ड्राइवर से कहा, गाड़ी वापस करो, मुझे टीपू को यहां इतनी दूर नहीं पढ़ाना।
  2. डकैतों के सामने सीना ताने खड़े हुए
    विधान परिषद के पूर्व सभापति चौधरी सुखराम सिंह यादव बताते हैं, ‘मुझे वर्ष तो नहीं याद है। पर, मौका माधोगढ़ (जालौन) सीट के विधानसभा उप चुनाव का था। मेरे पिता और मुलायम सिंह के मित्र चौधरी हरमोहन सिंह वहां चुनाव प्रचार कर रहे थे। मैं भी साथ में था। उन दिनों रात-रात भर गांवों में जाकर लोगों से मिलने-जुलने और वोट मांगने की परंपरा थी। हम लोग एक गांव से निकलकर दूसरे गांव जा रहे थे। रात का वक्त था। कुठवन के पास एक गांव में फायरिंग की आवाज सुनाई दी। ‘नेताजी’ ने मुझसे कहा कि जीप गांव की तरफ ले चलो। शायद, डकैती पड़ रही है। उन्होंने पड़ोस के गांव के कुछ लोगों को भी जगवाया। हम सभी लोग उस गांव के पास पहुंचे। नेताजी सबसे आगे। गांव से थोड़ा पहले रुककर उन्होंने डकैतों को ललकारा तो उधर से हम लोगों पर फायरिंग हुई। पर, नेताजी पूरी तरह बेखौफ। आखिरकार, डकैतों को गांव से भागना पड़ा। गांव वाले सभी लोग सुरक्षित बच गए।’
    सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव
  3. कवि अदम गौंडवी की मदद को आगे आए
    ऐसा ही एक किस्सा और भी है। मशहूर हास्य कवि अदम गोंडवी जब गंभीर रूप से बीमार पड़े तो उन्हें जरूरी इलाज नहीं मिल सका। गोंडवी के पुत्र लगातार नेताओं के चक्कर काटते रहे कि कोई पिता के लिए सिफारिश कर दे तो उन्हें अच्छा इलाज मिल सके, लेकिन बात नहीं बनी। लखनऊ के संजय गांधी मेडिकल कालेज में भी बीमार गोंडवी को जगह नहीं मिल सकी। इसकी जानकारी जैसे ही मुलायम सिंह को हुई तो उन्होंने तुरंत अस्पताल प्रबंधन से बात कर गोंडवी को अस्पताल में भर्ती कराया, हालांकि बाद में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।
  4. भैंसागाड़ी में गई थी मुलायम की बारात
    मुलायम सिंह यादव की पहली शादी घरवालों ने 18 साल की उम्र में ही कर दी थी। मुलायम उस वक्त दसवीं की पढ़ाई कर रहे थे। लोग बताते हैं कि उस वक्त गाड़ी-मोटर का इतना चलन नहीं था इसलिए मुलायम की बारात भैंसागाड़ी में गई थी। मुलायम 5 भैंसागाड़ी लेकर अपनी शादी में पहुंचे थे।
  5. लोगों के कपड़ों, जूतों और किराये तक की व्यवस्था कराई
    नेताजी की कोठी व पार्टी कार्यालयों में बहुत सारे ऐसे लोग भी आते थे जिनके पास सर्दियों में गर्म कपड़े नहीं होते थे, जूते नहीं थे या जो बीमार थे। ऐसे तमाम उदाहरण हैं कि नेताजी ने उनकी समस्या हल करने के साथ ही उनके लिए कपड़ों, जूतों और किराये तक की व्यवस्था कराई। विधानसभा 2012 का चुनाव चल रहा था। नेताजी को चुनावी सभा में जाना था। मैं उन्हें छोड़ने एयरपोर्ट जा रहा था। कृष्णानगर के पास यातायात व्यवस्थित रखने के लिए पुलिस ने एक दूधिये को रोका तो उसकी साइकिल गिर गई और दूध बिखर गया। नेताजी ने गाड़ी रुकवाई। डरे-सहमे दूधिये को बुलाकर पूछा कि उसका कितना नुकसान हुआ है। उसे तत्काल दो हजार रुपये दिए। गाड़ी में जाते हुए नेताजी से राजनीतिक चर्चा चल रही थी लेकिन इस घटना के बाद एयरपोर्ट तक दूधिये पर ही चर्चा होती रही। नेताजी कह रहे थे कि कितनी जल्दी उठकर कितने घरों से दूध लाया होगा। घर जाकर वह क्या जवाब देता? नेताजी इतने संवेदनशील हैं कि किसी को दुखी देख ही नहीं सकते थे।
  6. जब पीएम बनते-बनते रह गए मुलायम
    बात साल 1996 की है। इस साल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को काफी कम सीटें मिली थीं। 161 सीट जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में गठबंधन में सरकार बनाई थी। हालांकि, यह सरकार 13 दिनों में ही गिर गई। इसके बाद पीएम पद की रेस में उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव का नाम सामने आया। हालांकि, ऐसा माना जाता है कि लालू प्रसाद यादव के विरोध के कारण मुलायम पीएम न बन सके। उनकी जगह एचडी देवगौड़ा और इसके बाद आईके गुजराल को पीएम बनाया गया।

राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में किस्सों की कमी नहीं

मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में किस्सों की कमी नहीं है। लेकिन उनके जीवन में साधना गुप्ता का आना किसी बड़ी चर्चा से कम नहीं था। साधना उनकी दूसरी पत्नी कैसे बनीं और उनकी प्रेम कहानी घरवालों को रास क्यों नहीं आई इसकी भी एक रोचक दास्तान है। मुलायम सिंह यादव जब राजनीति के शिखर पर थे उसी वक्त उनकी जिंदगी में साधना गुप्ता का आगमन हुआ। कहते हैं कि 1982 में जब मुलायम लोकदल के अध्यक्ष बने, उस वक्त साधना पार्टी में एक कार्यकर्ता की हैसियत से काम कर रही थीं। बेहद खूबसूरत और तीखे नैन-नक्श वाली साधना पर जब मुलायम की नजर पड़ी तो वह भी बस उन्हें देखते ही रह गए। अपनी उम्र से 20 साल छोटी साधना को पहली ही नजर में मुलायम दिल दे बैठे थे। मुलायम पहले से ही शादीशुदा थे और साधना भी। साधना की शादी फर्रुखाबाद के छोटे से व्यापारी चुंद्रप्रकाश गुप्ता से हुई थी लेकिन बाद में वह उनसे अलग हो गईं। इसके बाद शुरू हुई मुलायम और साधना की अनोखी प्रेम कहानी। 80 के दशक में साधना और मुलायम की प्रेम कहानी की भनक अमर सिंह के अलावा और किसी को नहीं थी। इसी दौरान 1988 में साधना ने एक पुत्र प्रतीक को जन्म दिया। कहते हैं कि साधना गुप्ता के साथ प्रेम संबंध की भनक मुलायम की पहली पत्नी और अखिलेश की मां मालती देवी को लग गई। नब्बे के दशक में जब मुलायम मुख्यमंत्री बने तो धीरे-धीरे बात फैलने लगी कि उनकी दो पत्नियां हैं लेकिन किसी की मुंह खोलने की हिम्मत ही नहीं पड़ती थी। इसके बाद 90 के दशक के अंतिम दौर में अखिलेश को साधना गुप्ता और प्रतीक गुप्ता के बारे में पता चला। कहते हैं कि उस समय मुलायम साधना गुप्ता की हर बात मानते थे।
1993-2007 के दौरान मुलायम के शासन में साधना गुप्ता ने अकूत संपत्ति बनाई। आय से अधिक संपत्ति का उनका केस आयकर विभाग के पास लंबित है। साल 2003 में अखिलेश की मां मालती देवी की बीमारी से निधन हो गया और मुलायम का सारा ध्यान साधना गुप्ता पर आ गया।
हालांकि, मुलायम अब भी इस रिश्ते को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं थे। मुलायम और साधना के संबंध की जानकारी मुलायम परिवार के अलावा अमर सिंह को थी। मालती देवी के निधन के बाद साधना चाहने लगी कि मुलायम उन्हें अपनी आधिकारिक पत्नी मान लें, लेकिन पारिवारिक दबाव, ख़ासकर अखिलेश यादव के चलते मुलायम इस रिश्ते को कोई नाम नहीं देना चहते थे।
अखिलेश कतई तैयार नहीं थे
2006 में साधना अमर सिंह से मिलने लगीं और उनसे आग्रह करने लगीं कि वह नेताजी को मनाएं। अमर सिंह नेताजी को साधना गुप्ता और प्रतीक गुप्ता को अपनाने के लिए मनाने लगे। साल 2007 में अमर सिंह ने सार्वजनिक मंच से मुलायम से साधना को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का आग्रह किया और इस बार मुलायम उनकी बात मानने के लिए तैयार हो गए लेकिन अखिलेश इसके लिए कतई तैयार नहीं थे।

केदारनाथ-विश्वनाथ के बाद महाकाल लोक में मोदी..

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राघवेंद्र सिंह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अक्टूबर को बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन आ रहे हैं। कारण है महाकाल कॉरिडोर का लोकार्पण। एक माह के भीतर प्रधानमंत्री की मध्यप्रदेश में यह दूसरी यात्रा है। इसके पहले नामीबिया से लाए गए सात चीतों- तीन नर और चार मादा के कुनबे को पालपुर कूनो अभ्यारण में छोड़ा था। चीतों को लेकर भारी आशंकाएं जताई गई थी लेकिन यहां की आबोहवा लगता है सूट कर गई। सब ठीक ठाक है। लेकिन मप्र के सियासी सीन में जैसा ऊपर से दिखता है वैसा सब अच्छा भला नही है। बात चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की। दोनो दल- गुटबाजी, चापलूसी, चमचागिरी और चुगलखोरी के मामले में किसी से कम नही हैं। यह रोग नेताओं के साथ समर्थकों में खूब फैला हुआ है। कांग्रेस के लिए तो यह सब चोली दामन के साथ जैसा है। भाजपा में अभी यह बीमारी नई सी है। करीब डेढ़ दशक से जोर पकड़ रही है। संघ परिवार की एंट्री ने इसे और भी क्रिटिकल बना दिया है।
शुरूआत हुई थी बाबा महाकाल लोक के गलियारे से और चली गई सियासत तक। चिट्टी को तार, फेक्स, ईमेल, और वाट्सएप आदि मानते हुए पीएम मोदी को नेताओं से एक यात्रा या मुलाकात केवल सत्ता- संगठन और संघ को लेकर करनी चाहिए। उनसे नीचे के क्रम के नेता एमपी जैसे सूबे को सम्हालने में असफल हो चुके हैं। इसी तरह प्रदेश कांग्रेस को सम्हालने के लिए राहुल- प्रियंका के अलावा सोनिया गांधी को भी मोर्चे पर आना पड़ेगा। कमलनाथ की सरकार का गिर जाना इसका उदाहरण है। कमलनाथ सरकार के शपथ समारोह के बाद अब तक राहुल गांधी आए न सोनिया जी आईं।
खैर , लौटते हैं बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन। पहले चरण में सौंदर्य और सफाई में यहां लगभग चार सौ करोड़ रु से ज्यादा के काम हो चुके हैं। इसमे कोई संदेह नही महाकाल लोक के गलियारे की काया पलट हो गई है। देश में भोलेनाथ बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के कायाकल्प के बाद उज्जैन दूसरा स्थान है जहां पीएम मोदी इस कॉरिडोर के लोकार्पण के लिए आ रहे हैं। स्वतन्त्र भारत में बाबा सोमनाथ के बाद काशी होते हुए उज्जैन तीसरा नगर है जहां बहुत बड़े पैमाने पर भगवान शिव के कॉरिडोर का भवन निर्माण हो रहा है हालांकि पीएम मोदी बाबा केदारनाथ के भी दर्शन करते हैं और कुछ वर्ष पहले वहां आई आपदा के बाद बाबा केदारनाथ तक पहुंचने के मार्ग और उनके आसपास के स्थान को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर व्यवस्थित और विकसित किया जा रहा है। इसमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महाकाल लोक और उसके गलियारे के निर्माण के काम को सरकार की प्राथमिकता सर्वोच्चता पर रखा है। इस ऐतिहासिक काम से मध्य प्रदेश काशी अर्थात वाराणसी के साथ पूरी दुनिया में प्रसिद्धि हासिल करेगा। इससे भक्ति के साथ पर्यटन और रोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा।
यद्यपि कुछ वर्षों पूर्व भी उज्जैन में सिंहस्थ संपन्न हुआ है। इसके चलते लगभग साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थे। उम्मीद की जानी चाहिए महाकाल लोक का जो गलियारा लोकार्पित होना है उसके कार्य पहले से भी ज्यादा उच्च गुणवत्तापूर्ण होंगे। ताजा निर्माण कार्य और सौंदर्यीकरण को लेकर कुछ लापरवाही के चलते स्थानीय शासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने उज्जैन निगमायुक्त पर नाराजी जताई थी। इसके चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें 24 घंटे के भीतर स्थानांतरित कर दिया था। इस निर्णय से सरकार लापरवाह अधिकारियों के बीच कड़ा संदेश देने में काफी हद तक सफल हुई लगती है। पूरे मामले में राजनीतिक तौर पर यह बात भी देखी समझी जा रही है कि पीएम मोदी और सीएम शिवराज सिंह चौहान के बीच सम्बन्ध पहले से अधिक प्रगाढ़ हुए हैं।


रातापानी की बैठक में सब ठीक नही था…
भाजपा सत्ता संगठन की पिछले दिनों रातापानी में हुई बैठक की धीरे धीरे जो चर्चा छनकर आ रही है वह सुखद नही है। उसमे नेताओं ने सत्ता की तुलना में संगठन को ज्यादा निशाने पर लिया।इंदौर के एक वरिष्ठ नेता ने कहा उन्होंने भाजपा की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए। केंद्रीय मंत्रियों के साथ प्रदेश के कैबिनेट मंत्रियों ने संगठन से लेकर कुलपतियों के चयन में उन्हें अंधेरे में रखा गया। चर्चा में नगर सरकार के चुनाव और मेयर प्रत्याशी से पार्षदों के उम्मीदवार को लेकर सामाजिक संवाद व समन्वय पर सवाल किए गए।


कांग्रेस में दिग्गी समर्थकों को नई आस…
कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी से कदम खींचने वाले दिग्विजय सिंह को लेकर उनके समर्थकों में अभी उम्मीद खत्म नहीं हुई है। मल्लिकार्जुन खड़गे के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की औपचारिक घोषणा होने के बाद राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली हुआ है उस पर दिग्विजय सिंह की ताजपोशी हो सकती है। हालांकि इस दौड़ में पी चिदंबरम से लेकर प्रमोद तिवारी, रणजीत सिंह सुरजेवाला जैसे नेताओं के नाम भी शामिल है। असल में कांग्रेस को उत्तर भारत से भी मजबूत नेता की जरूरत है। जो हिंदी भाषी राज्यों में पार्टी के आधार को विस्तार देने के साथ और भी मजबूत कर सके ऐसे में दिग्विजय सिंह राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष के दावेदार होने के साथ संगठन की नई व्यवस्था में कार्यकारी अध्यक्ष जैसे पद गठित होने पर भी वे अपना दावा कर सकते हैं। आने वाले दिनों में कांग्रेस की राजनीति में दिग्गी राजा की भूमिका महत्वपूर्ण होने से कोई इनकार नहीं कर सकता। हालांकि इसे लेकर मध्यप्रदेश में कमलनाथ कैंप के नेताओं का रिएक्शन अहम होगा।

JNCH: कैन्सर अस्पताल में निर्मम भ्रष्टाचार के साथ-साथ अब कर्मचारियों के विरुद्ध दमनकारी कार्रवाई

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डायरेक्टर को अकस्मात् बर्खास्त करने पर प्रबंधन के खिलाफ़ नारेबाजी करने वाले कर्मचारियों को नोटिस

TIO BHOPAL

ईदगाह हिल्स स्थित जवाहरलाल कैन्सर अस्पताल एवं अनुसन्धान केन्द्र में प्रबंधन तानाशाही पर उतर आया है, उसने डेढ़ सौ से ज्यादा डॉक्टरों और स्टाफ़ के सदस्यों को कारण बाताओं नोटिस पकड़ा दिया जिन्होंने डायरेक्टर और सीनियर कंसल्टेंट् डॉ प्रदीप कोलेकर को हटाने के विरोध में स्वस्फूर्त प्रदर्शन में भाग लिया था. यह प्रोटेस्ट पूरी तरह से शांति पूर्ण था और कर्मचारी व डॉक्टर्स अपने संचालक के समर्थन एकजुटता प्रदर्शित कर पौन घंटे में अपने काम पर वापस चले गए थे. लेकिन उन्हें अगले कार्य दिवस बुला-बुला कर नोटिस थमाया गया और एक सप्ताह के अंदर जवाब नहीं देने पर निष्कासित करने की चेतावनी दी.

इन्क्यान्वें वर्षीय डायरेक्टर डॉ पंड्या ने दिए नोटिस..!
दिलचस्प यह है कि प्रबंधन ने जिन डायरेक्टर को अधिक आयु का आधार बना कर एकदम से निकाल दिया था और इस निर्णय के विरोध में और चिकित्सक के समर्थन में सभी डॉक्टर्स और कर्मचारी एकजुट हो गए थे,इन कर्मचारियों को प्रबंधन की ओर से नोटिस देने वाले डायरेक्टर डॉ पंड्या की उम्र 91 वर्ष है, वे कस्तूरबा अस्पताल से रिटायर होकर विगत तीन दशक से अस्पताल से वैतानिक पद पर जुड़े हुए हैं और कई वर्षों से उनका स्वास्थ्य भी ख़राब रहता है. लेकिन उनको गाड़ी भेज कर बार बार बुलाया जाता है और समिति तथा अस्पताल के ऐसे हर कार्य में हस्ताक्षर करवाए जाते हैं, यहाँ उल्लेखनीय है कि लोकायुक्त संगठन में प्रबंधन से जुड़े छह पदाधिकारियों और प्रभारियों की शिकायत हुई है उनमें डॉक्ह पंड्या भी शामिल है.

विज्ञापन निकाल कर किया अपने प्लान का आग़ाज..!
गौर तलब है कि प्रबंधन की ओर से प्रदर्शन के दिन शनिवार को 15 डॉक्टरों को निकालने की दी गुई थी धमकी और अगले दिन अख़बार में डॉक्टरों की भर्ती के लिए विज्ञापन दिया गया, दरअसल अस्पताल में पिछले छह माह से इन्दौर दवा दलालों की लॉबी सक्रिय हो गई है…. इसी लॉबी के मार्फ़त प्रबंधन ने ये धमकी दी थी कि एक नहीं जल्दी ही 15-16… चिकित्सकों को टर्मिनेट कर दिया जाएगा और उनकी जगह इन्दौर के 20 डॉक्टरों को यहा ज्वाइन करवा दिया जाएगा जो पहले तैयार बैठे है. और प्रबंधन की ओर से भास्कर में विज्ञापन निकाल कर और फिर डेढ़ सौ से ज्यादा कर्मचारियों को शोकाज नोटिस देकर इसका प्रमाण दे दिया. लेकिन अब इन हथकंडों के बावजूद भ्रष्टाचार का भांडा फूटना तय है और “जोपा परिवार” की “जागीर” बचना मुमकिन नहीं है.सच्चाई की जीत जरूर होगी.

प्रबंधन ने पिछले दिनों अस्पताल के विभिन्न कार्यकलापों निर्माण, दवा खरीदी,नई भर्ती आदि चार समितियों का गठन किया जिनमें सभी कमेटियों में यह मैनेजर शामिल है और अस्पताल की अधीक्षक को एक भी कमेटी में नहीं रखा है.आख़िर उसे हर कमेटी में क्यों न रखा जाए- वो हर उलटे सीधे कार्यों को ‘मैनेज’ करने के फन में माहिर जो हैं.उसने कई हदें पार कर ली है…और अस्पताल के सीईओ
पद का भी दावेदार है.

क्या है अगला गेमप्लान ?
सूत्रों के मुताबिक पहले अध्यक्षा यानी अपनी सासुमाँ से स्वेच्छा से इस्तीफा दिला कर दामाद होगा अध्यक्ष पद पर काबीज और फिर अपनी पत्नी सीईओं की जगह उक्त मैनेजेर की होगी नियुक्ति. मौजूदा सीईओ जो पहले से ही अस्पताल के पैरा मेडिकल इंस्टीट्यूट की ‘ED’ है फुल फ्लैज़ड तरीके से यह पॉवर फुल पद सम्हालेंगी और इन दोनों का बेटा दवाओं की खरीद-फरोख्त के ‘बड़े कार्य’ को अंजाम देता रहेगा और इस तरह कैन्सर चिकित्सा समिति हो जाएगी पूरी तरह जोपा परिवार का ‘जेबी संगठन’.

डॉक्टरों और स्टाफ़ का गुस्सा किसलय पर भी निकला…
कैसे चार गुना वेतन बढ़ कर हो गया दो लाख दस हजार?
चूँकि कई माहों से इस मैनेजेर किसलय शर्मा की खुराफ़ाती हरकतें और बदसलूकी की वारदातें बढ़ती ही जा रही हैं…..डेढ़ साल पहले इसे पचास हजार की तनखा पर रखा गया था और पता नहीं उसने प्रबंधन पर क्या जादू चलाया की 20 महीने में ही ‘छोटी मैडम’ ने उसकी तनखाह चारगुना बढ़ कर दो लाख दस हजार कर दी जबकि 15-20 मेडिकल आफिसर ऐसी हैं जिनकी सैलरी 20-25 साल बाद की सेवा के बाद भी अभी डेढ़ लाख तक नहीं पहुँची है. इस बात से भी अनेक डॉक्टर्स और सह कर्मियों में नाराजगी है.

करवा चौथ मूहर्त नियम राशि अनुसार पहने वस्त्र

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डा पंडित गणेश शर्मा

हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण व्रतों से एक करवा चौथ व्रत की तैयारियां जोरों-शोरों पर हैं। आमतौर पर यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है। लेकिन जो महिलाएं पहली बार यह व्रत करने जा रही हैं, उनके लिए भी कुछ विशेष नियम है पहली बार व्रत रखने वाली स्त्रियों को किन चीज़ों का ध्यान रखना चाहिए, इस दिन राशि अनुसार किस रंग के कपड़े पहनने चाहिए,
करवा चौथ की दिन, तिथि और शुभ मुहूर्त पर।
करवा चौथ 2022: तिथि और शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी यानी कि चौथे दिन करवा चौथ व्रत रखा जाता है। इस वर्ष यह तिथि 13 अक्टूबर, 2022 को पड़ रही है।
दिन: गुरुवार/बृहस्पतिवार
हिंदी महीना: कार्तिक
पक्ष: कृष्ण पक्ष
तिथि: चतुर्थी
करवा चौथ पूजा मुहूर्त: 13 अक्टूबर, 2022 की शाम 05 बजकर 54 मिनट से 07 बजकर 03 मिनट तक
चंद्रोदय: 13 अक्टूबर, 2022 की शाम 08 बजकर 10 मिनट पर
डा पंडित गणेश शर्मा स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषाचार्य ने बताया कि जो महिलाएं पहली बार करवा चौथ का व्रत करने जा रही हैं, उन्हें किन-किन चीज़ों का ध्यान रखना चाहिए।

पहली बार करवा चौथ व्रत करने के नियम डा पंडित गणेश शर्मा स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषाचार्य बताया की सोलह श्रृंगार- करवा चौथ का व्रत पति की लंबी उम्र की कामना के लिए किया जाता है। ऐसे में करवा चौथ के दिन सोलह श्रृंगार अवश्य करें, जैसे कि हाथों में मेहंदी लगाएं और पूरा श्रृंगार करें। मान्यता है कि ऐसा करने से चौथ माता प्रसन्न होकर अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं।


लाल रंग के कपड़े- करवा चौथ के दिन लाल रंग के कपड़े पहनना बेहद शुभ माना जाता है। जो महिलाएं पहली बार यह व्रत करने जा रही हैं, उन्हें शादी का जोड़ा पहनना चाहिए। हालांकि लाल रंग की कोई अन्य ड्रेस भी पहनी जा सकती है। लेकिन भूल कर भी काले, भूरे या सफ़ेद रंग के कपड़े न पहनें।
जो महिलाएं पहली बार करवा चौथ का व्रत करती हैं, उनके मायके से बाया भेजा जाता है। जिसमें कपड़े, मिठाइयां एवं फल आदि होते हैं। शाम की पूजा से पहले बाया हर हाल में पहुँच जाना चाहिए।


व्रत पारण- पूजा, चंद्र दर्शन और अर्घ्य देने के बाद प्रसाद खाएं और अपने पति के हाथों से पानी पानी पीकर व्रत का पारण करें। रात में सिर्फ़ सात्विक भोजन ही करें। प्याज़, लहसुन जैसे तामसिक भोजन के सेवन से परहेज करें।
करवा चौथ के दिन राशि अनुसार पहनें इस रंग के कपड़े।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, करवा चौथ के दिन सुहागिन महिलाओं को सोलह श्रृंगार में चंद्र देव की पूजा करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक प्रत्येक राशि किसी न किसी ग्रह के अधीन होती है। ऐसे में यदि आप राशि अनुसार कपड़ों का चयन करते हैं तो आपको ज़्यादा अनुकूल परिणामों की प्राप्ति होगी


मेष राशि- करवा चौथ के दिन मेष राशि की विवाहित महिलाएं लाल या नारंगी रंग की साड़ी/लहंगा पहन सकती हैं क्योंकि मेष राशि के स्वामी मंगल हैं।
वृषभ राशि- वृषभ राशि के स्वामी बुध हैं, जिन्हें हरा रंग बेहद पसंद होता है। ऐसे में आप हरे रंग के कपड़े पहन सकती हैं।
मिथुन राशि- चूंकि मिथुन राशि के स्वामी भी बुध हैं, इसलिए आप हरे रंग के कपड़े पहन सकती हैं और साथ में हरे रंग की चूड़ियाँ भी।
कर्क राशि- कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा हैं, जिन्हें सफ़ेद रंग के लिए जाना जाता है। लेकिन शुभ अवसरों पर सुहागिन महिलाओं का सफ़ेद रंग के कपड़े पहनना अशुभ माना जाता है, इसलिए आप कोई ऐसा कपड़ा पहनें जिसमें थोड़ा बहुत सफ़ेद रंग शामिल हो।
सिंह राशि- ग्रहों के राजा सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं। ऐसे में इस राशि की महिलाएं लाल, नारंगी या गोल्डेन रंग के कपड़े पहन सकती हैं।
कन्या राशि- बुध कन्या राशि के भी स्वामी हैं। ऐसे में आप पीले या हरे रंग के कपड़ों के साथ पीले या हरे रंग की चूड़ियाँ चुन सकती हैं।
तुला राशि- तुला राशि पर शुक्र ग्रह का शासन है, इसलिए आप गोल्डेन रंग के कपड़े पहन सकती हैं।
वृश्चिक राशि- वृश्चिक राशि का स्वामित्व मंगल को प्राप्त है। ऐसे में इस राशि की महिलाएं लाल रंग के कपड़े पहन सकती हैं।
धनु राशि- धनु राशि बृहस्पति ग्रह के अधीन है, इसलिए आप पीले या गोल्डेन रंग के कपड़े पहन सकती हैं।
मकर राशि- मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जिनके लिए नीले रंग को शुभ माना जाता है। ऐसे में आप करवा चौथ के दिन नीले रंग की साड़ी या लहंगा पहन सकती हैं।
कुंभ राशि- कुंभ राशि के भी स्वामी शनि देव हैं, इसलिए आपको नीले रंग रंग के वस्त्र धारण करने की सलाह दी जाती है।
मीन राशि- ज्योतिष के अनुसार, बृहस्पति ग्रह को मीन राशि का स्वामित्व प्राप्त है। ऐसे में करवा चौथ के दिन आप पीले या गोल्डेन रंग के कपड़े पहनें तो ज़्यादा शुभ फल प्राप्त होता है।

केएफएल शोस्टॉपर 2022 का कैलेंडर शूट भोपाल मे आयोजित

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TIO भोपाल


चार महीने की लगातार मशक्कत के बाद के.एफ.एल मिस्टर एंड मिसेस इंडिया 2022 का पेजन्ट सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ।इसमे तीन राउंड थे जिसमे देशभर से चुने हुए करीब 24 फाइनलिस्ट ने हिस्सा लिया।उसके बाद उनकी आपस मे कडी टक्कर हुई।इसमे दिल्ली के रिनाउनड ग्रूमर मिस्टर अंकित नागपाल, मिसेज नीना छाबरा,लेफ्टिनेंट कर्नल अंकिता श्रीवास्तव, मिसेज पूजा नरुला एवं के.एफ.एल की नेशनल डायरेक्टर मिसेस रंजीता सहाय अशेष ज्यूरी मे थे। प्रतिभागियों को एथनिक वियर, टैलेंट राउंड एवं क्वेश्चन आंसर राउंड के आधार पर परखा गया।इसमे नासिक की मिसेज आकांक्षा साठे मिसेज इंडिया 2022 घोषित हुई।गुुरुग्राम से मिस्टर रविन्दर सिंह विरदी मिस्टर इंडिया 2022 रहे दिल्ली से सरमिष्टा मुखर्जी मिसिज इंडिया क्लासिक 2022 घोषित हुई।

के. एफ. एल के पेजन्ट का यह पहला सीजन बहुत खूबसूरत रहा।के एफ एल अपने सभी फाइनलिस्ट को बधाई देता है जिनको टाइटल एवं अवार्ड आॅफ अप्प्रेसिएशन दिये गए हैं । विजेताओं के साथ के.एफ.एल ने कैलेंडर शूट का आयोजन भोपाल के एक प्रसिद्ध रिसार्ट मे किया ।

इसमे गुरुग्राम से रविन्द्र जी,प्रयागराज से प्रिया,नासिक से आकांक्षा,गाजियाबाद से देव,एवं टीम के एफ एल (अंश एवं ऋषभ )दिल्ली से आए थे।भोपाल से पेजेन्ट विनर डॉ तपस्या,डॉ मेधावी ,निरूपमा जी एवं डॉ हेमलता ने हिस्सा लिया। के एफ एल की नैशनल डायरेक्टर रंजीता जी ने बताया ,के एफ एल का कॉन्सेप्ट एक ऐसी शख्सियत को चुन ना था जो समाज के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन सके । अपने यूनिक कॉन्सेप्ट की वजह से के एफ एल बहत ज्यादा चर्चा मे रहोसफल आयोजन के लिए मीडिया जगत एवं फैशन इंडस्ट्री के लोगों ने के एफ एल की नेशनल डायरेक्टर रंजीता सहाय अशेष को बधाइयाँ दी वरिष्ठ पत्रकार एवं द इंर्फोमेटिव आब्जर्वर/चैलेंज के संपादक शशी कुमार केसवानी विशेष अतिथि थे।

राजवाड़ा-2-रेसीडेंसी

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अरविंद तिवारी

बात यहां से शुरू करते हैं…’डेंजर जोन’ के विधायक और पार्टी में ही दोहरी घेराबंदी- मध्यप्रदेश में अपनी सत्ता बरकरार रखना भारतीय जनता पार्टी के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। यही कारण है कि भाजपा फूंक-फूंककर कदम रख रही है। चौंकाने वाली जानकारी यह सामने आ रही है कि सत्ता में भाजपा की मौजूदगी और संगठन के पूरी ताकत झोकने के बाद दो साल पहले उपचुनाव जीतने वाले ज्यादातर विधायक जिनमें आधा दर्जन मंत्री और कई निगम और मंडल के अध्यक्ष शामिल हैं, इस बार डेंजर जोन में हैं। इन्हें फिर मौका दिए जाने की स्थिति में पार्टी नुकसान उठाना पड़ सकता है। दरअसल, इन विधायकों का दोहरा विरोध हो रहा है। जिन भाजपा नेताओं को हराकर इन्होंने 2018 का चुनाव जीता था, वे तो मोर्चा खोलकर बैठे ही हैं, साथ ही इस बार जो टिकट के दावेदार हैं, वे भी निपटाने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं।

आखिर क्यों नेतृत्व की पसंद नहीं बन पाए दिग्विजय- दिग्विजय सिंह कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नामांकन दाखिल करने से ऐनवक्त पर पीछे हट गए। इसके पीछे जो कारण दिग्विजय ने दिया, उससे तो यही अहसास होता है कि पार्टी के एक निष्ठावान नेता के नाते उन्होंने यह कदम उठाया। हकीकत कुछ और ही है। दरअसल जैसे ही अध्यक्ष पद के लिए दिग्विजय सिंह की दावेदारी सामने आई, पार्टी के एक बड़े वर्ग ने कांग्रेस अध्यक्ष के सामने इस पर विरोध दर्ज करवा दिया। उस समय जो स्थिति थी, उसमें दिग्विजय का जीतना भी तय था। इसी विरोध के बाद ‘नेतृत्व’ ने मल्लिकार्जुन खडग़े को इशारा किया और यह संदेश भी सामने आया कि खडग़े ही नेतृत्व की पसंद हैं। इतना इशारा ही काफी था और दिग्विजय ने बिना विलंब के नाम वापस ले लिया। मुद्दा यह भी है कि आखिर दिग्विजय नेतृत्व की पसंद क्यों नहीं बन पाए।

ग्रीन मिडास से निकली चिट्ठी से भाजपा में मची हलचल- अरेरा हिल्स पर बनी ग्रीन मिडास भोपाल की सबसे पॉश कालोनी में से एक है। इस कालोनी के रहवासियों के नाम से एक पत्र पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा तक पहुंचाया गया। इस पत्र में कालोनी में रहने वाली एक भाजपा नेत्री के नाम का उल्लेख करते हुए कहा गया कि उक्त नेत्री के निवास पर हलचल रात 10 बजे बाद प्रारंभ होती हैं और तड़के तक चलती रहती है। यहां तक तो ठीक था, इसी पत्र में भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी और कुछ मंत्रियों का भी जिक्र है, जिनके बारे में कहा गया है कि वे भी यहां समय-समय पर आते रहते हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि ग्रीन मिडास सोसायटी के नाम का उपयोग कर यह पत्र भाजपा के ही किसी शुभचिंतक ने आगे बढ़ाया है।

दिग्गजों के बीच काम आने लगा है कमलनाथ का टोटका- कमलनाथ की टेबल पर मध्यप्रदेश के 230 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस की स्थिति का आकलन आ चुका है। संभावना ठीक-ठाक ही बताई जा रही है और पूर्व मुख्यमंत्री एक बार फिर मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार को लेकर आशान्वित हैं। जीत की सबसे ज्यादा संभावना वाले चेहरे भी चिह्नित किए जा रहे हैं। इस मामले में वे कोई समझौता करने के पक्ष में नहीं हैं। इसी का नुकसान पार्टी के कुछ दिग्गजों को उठाना पड़ सकता है, जिनके बारे में यह फीडबैक मिला है कि इस बार उनके लिए राह बहुत कठिन है। इन क्षेत्रों में अब उनसे बेहतर विकल्प कांग्रेस के पास उपलब्ध है। मैदान में कमजोर पड़ रहे दिग्गजों को इशारा भी कर दिया गया है।

शंकर लालवानी यानी बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना- इसे बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना ही कहा जाएगा। स्वच्छता के मामले में इंदौर के लगातार छठी बार देश में नंबर वन आने के बाद जो टीम महामहिम राष्ट्रपति से सम्मान लेनी पहुंची, उसकी अगुवाई सांसद शंकर लालवानी को करता देख सब चौंक पड़े। वह भी एक नहीं चार बार। उन्हें टीवी पर देखते ही लोगों की टिप्पणी यह थी कि इनका यहां क्या काम। अब लोगों को कौन समझाए कि जब लालवानी इंदौर में ही फोटो या वीडियो का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं, तो फिर राष्ट्रपति के सामने वे यह मौका कैसे छोड़ते। एक सवाल यह भी उठा है फोटो खिंचवाने में आगे रहने वाले लालवानी को यह जरूर बताना चाहिए कि इंदौर को नंबर वन पर लाने में उनकी भूमिका क्या रही है।

सेल्फ ब्रांडिंग सीखना हो तो स्वप्निल कोठारी से मिलें- सेल्फ ब्रांडिंग कैसे हो सकती है, यह सीखना हो तो स्वप्निल कोठारी की शरण में जाना चाहिए। पिछले दिनों द इन्टरैक्टिव स्टुडियो के बैनर तले हुआ एक डॉयलाग इसी का नतीजा था। इस संवाद में कोठारी के सामने इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव थे। शहर के कुछ और फोरम भी इस सेल्फ ब्रांडिंग में भागीदार हैं। इसका नतीजा आने वाले समय में देखने को मिलेगा। एक जमाने में ज्योतिरादित्य सिंधिया के खासमखास रहे कोठारी अब कमलनाथ के खास सिपहासालारों में एक हैं। उनकी नजर पांच नंबर विधानसभा पर है और यहां से टिकट पाने के लिए वे कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं।

कद के मुताबिक ही है आकाश त्रिपाठी की नई भूमिका

  • मध्यप्रदेश कॉडर के बेहद काबिल और योग्य अधिकारी, इंदौर में नगर निगम कमिश्नर, कलेक्टर, बिजली कंपनी के एमडी और संभागायुक्त रह चुके आकाश त्रिपाठी ने भी आखिरकार दिल्ली के लिए रवानगी ले ही ली। त्रिपाठी की गिनती उन अफसरों में होती है, जिन्होंने जिस पद पर भी रहे उसे एक नई ऊंचाई प्रदान की। दिल्ली की नई भूमिका भी उनके कद के मुताबिक ही है, लेकिन पिछले कुछ समय से मध्यप्रदेश में क्यों उनकी अनदेखी हो रही थी, यह भी एक बड़ा मुद्दा है।

चलते-चलते

राज्यपाल मंगूभाई पटेल इन दिनों आदिवासी जिलों के कामकाज पर नजर रखे हुए हैं और लगातार समीक्षा भी कर रहे हैं। उनके इस एजेंडे में झाबुआ जिला सबसे ऊपर है। इस जिले में एसपी पद पर तमाम अनुशंसाओं को दरकिनार कर राज्यपाल के एसीडी रहे अगम जैन की नियुक्ति को महामहिम की पसंद का ही नतीजा बताया जा रहा है।

एक ही विधानसभा क्षेत्र से टिकट के दावेदार माने जा रहे दो नेताओं जीतू पटवारी और जीतू जिराती ने ताल ठोक दी है। लक्ष्य और सादगी संस्थाओं के बैनर तले दोनों नेता पूरे दमखम के साथ नवरात्र महोत्सव के दौरान मैदान में दिखे और इस बात में पूरी ताकत लगा दी कि ज्यादा से ज्यादा लोग उनके आयोजन में उपस्थिति दर्ज करवाएं। इससे इतर, हिंदरक्षक के गरबों में मालिनी गौड़ की अनदेखी भी एक दूसरा पहलू है।

पुछल्ला

भोपाल के संभागायुक्त गुलशन बामरा का लगातार अवकाश पर रहना किसी को समझ में नहीं आ रहा है। यह भी समझना मुश्किल है कि इस महत्वपूर्ण पद पर सरकार किसी दूसरे नाम पर विचार करने से परहेज भी क्यों कर रही है। वैसे बड़े साहब की सेवानिवृत्ति की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, कई अफसर राम-राम करते समय काट रहे हैं।

अब बात मीडिया की

नईदुनिया इंदौर से दो बड़े विकेट डाउन होने के बाद स्टेट एडिटर सदगुरुशरण अवस्थी एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं। अवस्थी जिस अंदाज में मार्निंग मीटिंग में अपने स्टॉफ से पेश आते हैं, वह संस्थान के लिए बड़ी परेशानी का कारण हैं। अवस्थी के बोलवचन इन दिनों मीडिया जगत में चर्चा में हैं।

लंबे समय तक नईदुनिया इंदौर के संपादक रहे और फिर स्टेट एडिटर की भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ पत्रकार आशीष व्यास पत्रिका से अपनी नई पारी शुरू कर रहे हैं। श्री व्यास अब पत्रिका में मध्यप्रदेश के रीजनल हेड की भूमिका में नजर आएंगे। नईदुनिया अधिग्रहित करने के बाद दैनिक जागरण समूह ने सबसे पहले म.प्र. और छत्तीसगढ़ के रीजनल नेटवर्क पर फोकस किया था, उस प्रोजेक्ट को भी श्री व्यास ने ही हेड किया था।

दैनिक भास्कर के प्रतिष्ठापूर्ण आयोजन अभिव्यक्ति गरबा महोत्सव में इस बार हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ता जिस अंदाज में पेश आए वह समझ से परे है। इन कार्यकर्ताओं के तेवर चौंकाने वाले थे और व्यवस्था में लोग इनके सामने असहाय थे।

दैनिक सत्तावादी के नाम से एक और नया अखबार मार्केट में आ गया है। इसकी अगुवाई रजत राठौर के नेतृत्व में एक बिल्कुल नई टीम कर रही है।

सत्ता का सुख पाने जमीं पर उतरे नेता

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शशी कुमार केसवानी

एक जमाने में मप्र के सीएम शिवराज सिंह चौहान पांव-पांव वाले भैय्या के नाम से जाने जाते थे, लेकिन जब से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने नर्मदा यात्रा की ओर उसके बाद से कांग्रेस की सरकार बनी तो यात्राओं पर नेताओं का भरोसा बढ़ गया। जहां अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे है तो मप्र में भी कांग्रेस नेताओं की उपयात्राएं शुरू हो गई है और होने वाली है जो राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा में समाहित होगी। समय-समय की बात है जहां एसी कमरों में बैठकर पार्टी की रणनीति बनाने वाले नेता अब खुद पैदल चलकर जनता से समर्थन मांग रहे है।


मध्य प्रदेश में भी यात्राओं को लेकर चर्चाओं के दौर गर्म हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अगले साल विधानसभा के चुनाव हैं। लिहाजा विधायकों को टिकट का संकट सताने लगा है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टी सर्वे के आधार पर टिकट देने की तैयारी में हैं। ये माना जा रहा है कि नॉन परफॉर्मर और जनता पर पकड़ कमजोर कर चुके विधायकों का टिकट कटना तय है। टिकट कटने से घबराए विधायक अभी से अपनी जमीन मजबूत करने की तैयारी में जुट गए हैं। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव अभी एक साल दूर हैं, लेकिन विधायक सियासी धार्मिक यात्राओं के जरिए अपनी जमीन बचाने की कवायद में जुट गए हैं। खास बात ये है कि यात्राओं की होड़ में बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों के विधायक शामिल हैं। यात्राओं का मकसद वैसे तो धार्मिक और समाजिक सौहार्द्र बताया जा रहा है लेकिन इनका मकसद सियासी है। जहां तक बात बीजेपी के विधायकों की है तो बीजेपी में चुरहट से विधायक शरदेंदु तिवारी और मैहर से विधायक नारायण त्रिपाठी यात्रा पर निकल चुके हैं। शरदेंदु तिवारी शिव शक्ति सेवा संकल्प यात्रा निकाल रहे हैं। इस यात्रा में उनकी पत्नी भी साथ हैं। यात्रा उनके विधानसभा क्षेत्र चुरहट में ही निकल रही है।

बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी भी पद यात्रा निकाल रहे हैं। त्रिपाठी चित्रकूट के कामदगिर से पद यात्रा पर निकले हैं। दोनों यात्राओं को धार्मिक स्वरूप दिया गया है। लेकिन इनका मकसद आगामी चुनाव के लिए अपनी जमीन तैयार करना है। जबकि कांग्रेस नेता अजय सिंह रीवा से लेकर चुरहट तक काफी बड़े क्षेत्रफल में लंबे समय से अपनी जमीन बड़ी मजबूती के साथ तैयार कर रहे है। बस उसका प्रचार-प्रसार इतने बड़े स्तर पर नहीं हो रहा जितनी जमीनी तैयारी चल रही है। यहीं कारण है कि कमलनाथ भी उनकी इस तैयारी से कई बार बेचैन नजर आते है। हालांकि स्थानीय चुनाव में जिसका नतीजा स्पष्ट दिखाई दिया था। कांग्रेस विधायक जयवर्र्धन सिंह और पांचीलाल मेड़ा पदयात्रा पर हैं। आरिफ मसूद भोपाल से बुरहानपुर तक करीब 350 किमी यात्रा निकालेंगे पर उनके समर्थक रोज टूटते जा रहे है, जिसका कारण है स्थानीय चुनाव में काफी लोगों का टिकट कटवाने से लेकर केवल आश्वासनों पर उम्मीद बंधाए रखी। अब उनके साथी ही उनकी जमीन उखाड़ने में लगे है। जयवर्धन सिंह ग्वालियर चंबल में 425 किमी यात्रा निकालेंगे। जयवर्धन एक युवा वर्ग को अपने साथ चुपचाप से जोड़े चले जा रहे है, जो आने वाले समय में उनका एक बड़ा शक्तिशाली गु्रप नजर आएगा। वहीं कांग्रेस के आदिवासी विधायक पांचीलाल मेड़ा पदयात्रा निकाल रहे थे जिसे पुलिस ने भोपाल में लालघाटी पर रोक लिया था।


इधर राजनीतिक गलियारों में चर्चा है  कि वीडी शर्मा को अप्रैल-मई 2024 तक के लिए एक्सटेंशन मिल सकता है। यानी विधानसभा चुनाव तक वीडी शर्मा ही मप्र में पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालेंगे। अभी फिलहाल प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष के लिए चुनाव नहीं होगा। वहीं लोकसभा चुनाव और कुछ महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर फैसला लिया गया है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी चुनाव नहीं होगा। भाजपा के संविधान के अनुसार, पार्टी अध्यक्ष को तीन-तीन साल के लगातार दो कार्यकाल मिल सकते हैं। इसी तरह ये भी प्रावधान है कि कम से कम 50 प्रतिशत राज्य इकाइयों में संगठन चुनाव होने के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। राज्यों में चुनाव की प्रक्रिया अगस्त से शुरू हो जानी चाहिए थी, लेकिन अभी तक नहीं हो सकी। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष शर्मा के कार्यकाल को करीब पौने तीन साल हो रहे हैं। उन्होंने फरवरी 2020 में पद संभाला था, उस समय भाजपा सत्ता में नहीं थी। करीब डेढ़ महीने बाद प्रदेश में सियासी उथल-पुथल के बाद भाजपा सत्तासीन हो गई। भाजपा विधानसभा चुनाव 2023 में भी जीत सुनिश्चित करने संगठन ऐप तैयार कर 65 हजार बूथों का डिजिटलाइजेशन किया है। इसके अलावा हर बूथ पर 10 फीसदी वोट शेयर बढ़ाने के जतन भी शुरू किए गए हैं। पर पिछले कुछ दिनों से वीडी शर्मा के सीएम के साथ व कुछ अन्य लोगों के साथ रिश्तों की खटास की खबरें बराबर आ रही है। जिसके चलते उनकी छवि पर भी असर पड़ा है। जबकि उन्हें अलग प्रदेश का मुख्यमंत्री भी देखा जा रहा था। पिछले दिनों भाजपा की एक महिला नेत्री को सरकार में पद दिलवाने के लिए भी कोशिश की गई लेकिन सफलता नहीं मिली उलटा उनके कुछ विरोधियों ने नई कहानियां बनाना बनने लगी है। अब मध्यप्रदेश में भाजपा के पहले से ही कई गु्रप बन चुके है, लेकिन वीडी शर्मा का भी एक अलग गु्रप तैयार हो गया है, जो एक तरह से अपने राजनैतिक समीकरण बैठाने में लगा रहता है। गृहमंत्री अमित शाह के दौरे के दौरान यह चीज स्पष्ट नजर आ रही थी। बाकी सब बातें तो वक्त के गर्भ में छुपी हुई है। फिलहाल जय हो…

परिवार के लिए पार्टी दांव पर..!

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राघवेंद्र सिंह

आजादी के आंदोलन से जन्मी कांग्रेस पार्टी इन दिनों बाहर कम अपने ही भीतर ज्यादा संघर्ष करती हुई दिख रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्वाचन को लेकर यह आशंका और भी साफ होती दिखती है। ‘मास बेस पार्टी फेमली बेस’ में इस कदर तब्दील हो गई है कि गांधी परिवार से काबिल कोई भी उसे रास नही आता।आजादी के बाद लगभग 65 साल तक राष्ट्र पर एक छत्र राज करने वाली कांग्रेस से कांग्रेसी गुत्थमगुत्था है। पटखनी पर पटखनी दिए जा रहे हैं। हालात ऐसे हैं की क्या कहा जाए और क्या नहीं कुछ समझ में नहीं आ रहा लेकिन इसका नेतृत्व अच्छा है यह साबित करने के लिए एक कहानी बताना जरूरी लगता है।


असल में एक गांव में एक बहुत ही अपयश प्राप्त व्यक्ति रहा करता था वह अक्सर घर के सामने दरवाजे पर बैठता था और जो भी निकलता उससे अपशब्द बोलता और झगड़ा करता इस वजह से पूरे गांव के लोग उससे बच के चलते और पीठ पीछे उससे भला बुरा बोलते लेकिन जब वह बुजुर्ग मरणासन्न नेता उसने अपने पुत्रों से कहा कि तुम कम से कम ऐसा काम करना कि लोग यह कहे तुम्हारे पिता बहुत अच्छे थे इसके बाद दिवंगत व्यक्ति के पुत्र परेशानी में पड़ गए क्या खेल ऐसा क्या करें कि लोग कहे कि इनके पिता अच्छे से बहुत विचार करने के बाद पुत्रों ने तय किया कि अब घर के सामने से जो भी गुजरेगा उसे हम पिता की भांति अपशब्द तो कहेंगे साथ में लाठियों से पिटाई भी करेंगे। अप्रिय और कष्टकारी निर्णय था लेकिन इसका नतीजा यह निकला की पूरा गांव कहने लगा इनसे अच्छे तो उनके पिताजी थे कम से कम मारते तो नहीं थे। यह कहानी केवल समझने के लिए है कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर प्रदेशों के ज्यादातर मुखिया इसी तरह की कहानी से मेल खाते नजर आए तो इससे केवल एक इत्तेफाक समझा जाए।
कांग्रेस नेतृत्व के मामले में अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर पार्टी में नई जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं और इस बात पर कायम है कि कोई गैर गांधी पार्टी का अध्यक्ष होगा। लेकिन ऐसा लगता है पार्टी के नेता राहुल बाबा से कमजोर लीडर राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए ढूंढने में लगे हैं। ताकि यह साबित किया जा सके कि जो नया अध्यक्ष है उनसे तो 100 गुना अच्छे राहुल बाबा थे वरना क्या वजह है कि उत्कृष्ट विकल्प होने के बावजूद दक्षिण भारत के उम्र दराज नेता को राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए सुना जा रहा है।

ऐसा भी नहीं है कि दक्षिण भारत के यह लीडर इतने कद्दावर है कि वह पूरे देश में पार्टी का परचम ठहरा सकें उनके गृह राज्य कर्नाटक में कांग्रेस की हालत खराब है वे स्वयं पिछला लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं। इसके बाद आलाकमान ने उन्हें राज्यसभा में चुनकर भेजा और ऊर्जावान नेताओं की अनदेखी कर उन्हें नेता प्रतिपक्ष भी बनाया। इससे भी आगे 65 फ़ीसदी युवा वोटरों के भारत में कांग्रेस की कमान बुजुर्ग बाद नेता के हाथ में सौंपने की चाल चलकर नेतृत्व क्या संदेश देना चाहता है किसी को समझ नही आ रहा है। दक्षिण से उत्तर पूर्व से पश्चिम तक पूरे देश में कांग्रेस साफ है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में कांग्रेस का सोनिया गांधी के रूप में मात्र एक सांसद है। बिहार,मप्र, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा,छत्तीसगढ़, उड़ीसा जैसे राज्यों का माहौल पार्टी को जिताने और केंद्र के साथ राज्य में सरकार बनाने का अवसर देता है। इन राज्य में लोकसभा में कांग्रेस का एक तरह से सूपड़ा साफ है। उत्तर भारत जहां से लोकसभा के लिए करीब ढाई सौ से ज्यादा सीटें आती हैं उसकी अनदेखी कर आखिर कांग्रेस किन नेताओं और कौन से गणित से 2024 में केंद्र में सरकार बनाने में अपनी भूमिका देखती है। मध्यप्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट के चेहरे सामने रखकर चुनाव लड़े गए थे। राजस्थान में पीसीसी चीफ पायलट थे और मुख्यमंत्री बने अशोक गहलोत मध्यप्रदेश में शिवराज बनाम सिंधिया थे और मुख्यमंत्री बने कमलनाथ। मध्यप्रदेश में सरकार के शपथ समारोह में जरूर राहुल गांधी आए लेकिन उसके बाद मध्यप्रदेश में क्या हो रहा है कितना असंतोष है देखने के लिए राहुल बाबा पलट कर नहीं आए। उपेक्षित सिंधिया ने बगावत कर दी।नतीजतन15 महीने में कांग्रेस सरकार के बाहर हो गई। राजस्थान में भारी असंतोष और पायलट की बगावत की खबरें थी। किसी तरह सरकार बच गई। लेकिन दो बारा आएगी इस पर सभी को संदेह है।

कांग्रेस सिर्फ राजस्थान और छग में ही सत्तारूढ़ है। पंजाब में दलित कार्ड के रूप में चरनजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाया था। दांव उल्टा पड़ा।अब वहां आम आदमी पार्टी सरकार में है। कठिन समय है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए भी दलित कार्ड खेला जा रहा है। दक्षिण भारत के 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस की कमान सौंपी जा रही है। खड़गे में ऐसा करिश्मा नही है कि वे देश मे कांग्रेस को खड़ा कर पाएंगे। वे न तो दक्षिण के एन टी रामाराव, एमजी रामचन्द्रन, करुणाकरण, रामकृष्ण हेगड़े जैसे नेताओं में शुमार हैं कि बाजी पलट दें। पार्टी को जिताना तो दूर वे खुद ही कर्नाटक से लोकसभा चुनाव हार गए।एक तरह से चलने फिरने दिन रात दौरे करने जनता और कार्यकर्ताओं से का कठिन काम कैसे कर पाएंगे। इस तरह के निर्णय खुद आलाकमान करेगा तो फिर पार्टी के लिए दुश्मन ढूढ़ने की जरूरत नही है। कमजोर नेतृत्व को सूबेदार अपने निर्णय सुना रहे हैं कि वे छग, राजस्थान और मप्र नही छोड़ेंगे।इसके बाद भी कुछ बचता है तो यही कहा जाएगा उम्मीदों पर आसमान टिका है। गोरों से लड़ कर आजादी दिलाने वाली यह पार्टी फिर से उठ खड़ी होती आई है। लेकिन कब तक…? अब उसका कमजोर हाईकमान अपने – पराए सब से डरा हुआ सा है।


दिग्विजय की वफादारी …
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का नाम भी खूब चला कह सकते हैं कि उन्होंने इसे चलाया भी खूब लेकिन अंदर खाने जो अनुमान निकल कर आ रहे हैं उसे लगता है गांधी परिवार में भी समन्वय और संवाद घट रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष के लिए दिग्विजय सिंह का चुनाव मैदान में उतरने के संकेत बताते थे गांधी परिवार से उन्हें ग्रीन सिग्नल मिला हुआ है। लेकिन ऐन वक्त पर सोनिया गांधी और प्रियंका की चर्चा ने पूरा गणित व उलट दिया। इसका मतलब कुछ लोग और भी हैं जो पार्टी के निर्णय को प्रभावित करते हैं। ये अलग बात है कि उसमें पार्टी और गांधी परिवार का कितना भला होगा। फिलहाल तो पार्टी दांव पर है।


खड़गे जी सनातन विरोधी भी हैं…
कांग्रेस के भावी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे आरआरएस के साथ सनातन विरोधी भी है। उनका एक वीडियो बहुत वायरल हो रहा है जिसमे वे कह रहे हैं – मोदी को और शक्ति मिली तो ऐसे में सनातन और आरआरएस की हुकूमत आएगी। जिस सनातन का ध्येय वाक्य है विश्व का कल्याण हो, प्राणियों में सद्भावना हो, धर्म की जय और अधर्म का नाश हो…ऐसे सनातन का विरोध कर खड़गे जी किस तरह के धर्म और कैसी राजनीति का सपना लेकर कांग्रेस को मजबूत कर पाएंगे। सनातन न तो धर्मांतरण कराता है और न ही आतंकवाद का समर्थन करता है। वह तो सभी धर्म, मत- पन्थों को ईश्वर तक पंहुचने और उन्हें पाने का माध्यम मानता है। आने वाले समय मे कांग्रेस के लिए चिंता और चिंतन का विषय हो सकता है।


कमलनाथ के गढ़ में कांग्रेस कमजोर…
मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में कांग्रेस कमजोर हो रही है। हाल के नगरीय चुनाव में सौंसर ऐसा कस्बा है जहां कांग्रेस बुरी तरह हार गई है। 46 नगर पालिका- नगर पंचायतों में से मात्र 10 में ही उसे सफलता मिल सकी है। इन नतीजों को पीसीसी चीफ की लोकप्रियता के मामले में हांडी के चावल के रूप में देखने की जरूरत है। मुख्यमंत्री रहते विधानसभा चुनाव में जीत का अंतर लगभग 25 हजार 837 वोट का ही था। यह हाल तब है जब उनके खिलाफ भाजपा ने मामूली से कार्यकर्ता बंटी साहू को मैदान में उतारा था। इसी तरह छिंदवाड़ा संसदीय सीट से नाथ के पुत्र नकुलनाथ भी बहुत मामूली अंतर करीब 37 हजार वोट से सीट बचा पाए थे। जबकि कमलनाथ ने यह सीट एक लाख सोलह हजार वोट से जीती थी।