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राहुल गांधी के साए से नहीं उबर पाएंगे नए अध्यक्ष

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TIO NEW DELHI

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कांग्रेस का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की चर्चा चल रही है। माना जा रहा है कि यह चुनाव तो होगा चुनाव प्रक्रिया के माध्यम से ही, लेकिन राजनीतिक गलियारों में सवाल यह उठ रहा है कि अगर गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो क्या वे पार्टी के सबसे मजबूत राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर पहचाने जाएंगे? राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के साथ ही क्या अशोक गहलोत भारत जोड़ो यात्रा के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर राहुल गांधी को रिप्लेस कर सकेंगे? क्या वे खुद कांग्रेस की सबसे बड़ी यात्रा में बतौर पार्टी के सबसे बड़े मुखिया के रूप में आगे चलेंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का स्पष्ट मानना है कि जिस तरीके से भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ‘वन मैन शो‘ की तरह दिख रहे हैं उससे ऐसा कम ही लगता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष की भूमिका राहुल गांधी की भूमिका से बड़ी होने वाली है। 

आज दिल्ली में गहलोत, राहुल को मना पाएंगे ?

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। चुनाव से पहले बुधवार को अशोक गहलोत का दिल्ली पहुंचना बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक अशोक गहलोत पार्टी के प्रमुख नेताओं की पहली पसंद माने जा रहे हैं। ऐसे में गांधी परिवार समेत उन से जुड़े सभी नेता अशोक गहलोत के पक्ष में खड़े भी हैं। पार्टी ने अपने सबसे भरोसेमंद नेता अशोक गहलोत को आगे कर चुनाव लड़ने की भूमिका बनानी शुरू की है। गहलोत ने मंगलवार देर रात जयपुर में पार्टी के विधायकों के साथ बैठक की। बैठक में उन्होंने इस बात की जानकारी दी कि वे बुधवार को दिल्ली पहुंचेंगे। पहले वे राहुल गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए नामांकन भरने को राजी करेंगे। इस दौरान अगर बात नहीं बनी तो वह खुद चुनावी मैदान में होंगे। और उन्होंने राजस्थान के विधायकों को ऐसे दौर में दिल्ली आने को भी कहा है।

गांधी परिवार के सबसे करीबी हैं गहलोत
अशोक गहलोत के नाम की चर्चाओं के साथ कांग्रेस पार्टी और राजनीतिक गलियारों में भी कई तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि निश्चित तौर पर अशोक गहलोत का नाम आगे करने का सबसे बड़ा मकसद यही है कि वे पार्टी के न सिर्फ वरिष्ठ नेता हैं बल्कि गांधी परिवार के सबसे करीबियों में शामिल भी हैं। यही वजह है कि गांधी परिवार और पार्टी के प्रमुख नेताओं ने गहलोत के नाम को फिलहाल राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में आगे बढ़ाया है। 

थरूर व गहलोत में होगा मुकाबला ?
लेकिन अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि इस बार कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव दो लोगों के बीच में होगा। दूसरा नाम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर का सबसे आगे चल रहा है। थरूर ने इस संबंध में सोनिया गांधी से मुलाकात भी की है। ऐसे में एक बात तो बिल्कुल स्पष्ट है कि पार्टी ने दो धड़े खुलकर आमने-सामने आएंगे। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता यह सवाल भी उठाते हैं कि गांधी परिवार जिस नेता को आगे करके चुनाव लड़ाना चाहता है क्या वह चुनाव जीतकर अपनी मनमर्जी से सभी फैसले ले सकेगा या वह भी कठपुतली अध्यक्ष की तरह ही काम करेगा? इसको लेकर राजनीतिक गलियारों में तमाम तरह की चर्चाएं चल रही हैं। 

राहुल अध्यक्ष बनें या नहीं, फर्क नहीं पड़ेगा
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक और कांग्रेस की राजनीति को लंबे समय से समझने वाले डी. दिनेश कुमार कहते हैं कि कांग्रेस के भावी राष्ट्रीय अध्यक्ष की ताकत को इस वक्त चल रहे भारत जोड़ो अभियान के साथ जोड़कर ही देखना होगी। वे कहते हैं कि कांग्रेस का बीते कुछ दिनों का यह सबसे बड़ा अभियान राहुल गांधी की अगुवाई में चल रहा है। कुमार कहते हैं कि इस पूरे अभियान में अभी तक अगर कोई चेहरा सामने आया है तो वह सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी का ही रहा है। उनका कहना है कि राहुल गांधी जिस तरीके से इस पूरे भारत जोड़ो अभियान को लीड कर वन मैन शो की तरह आगे लेकर चल रहे हैं उससे इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है वो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें या ना बनें, लेकिन उनकी स्वीकारोक्ति पार्टी में कितनी जबरदस्त है।

दिनेश कुमार कहते हैं कि जिन नेताओं का नाम राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए लिया जा रहा है वह सब इस भारत जोड़ो यात्रा में महज सिर्फ एक चेहरा बनकर ही रह गए हैं। जबकि पूरा का पूरा भारत जोड़ो अभियान राहुल गांधी के चेहरे के साथ ही चल रहा है। वे कहते हैं कि अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष का चेहरा बहुत प्रभावशाली होगा तो निश्चित तौर पर भारत जोड़ो यात्रा अभियान में उन्हीं के चेहरे को सबसे आगे रखकर पूरी यात्रा की जाएगी, क्योंकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव अगले एक महीने के भीतर हो जाएगा जबकि भारत जोड़ो यात्रा लंबी चलनी है।

राहुल गांधी ही सबसे बड़ा चेहरा
राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र पांडे कहते हैं कि यह बात अलग हो सकती है कि राहुल गांधी को लेकर पार्टी में दो मत हों। लेकिन कांग्रेस को जोड़ने की सबसे बड़ी जमीनी मुहिम भारत जोड़ो यात्रा सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी की लीडरशिप में ही चल रही है। वे कहते हैं कि संगठन को जोड़ने का वैसे तो काम हर कार्यकर्ता का होता है लेकिन जिसका चेहरा आगे होता है वही सबसे बड़ा नेता माना जाता है। फिलहाल इस लिहाज से कम से कम भारत जोड़ो यात्रा की बड़ी मुहिम के माध्यम से पार्टी में राहुल गांधी ही सबसे बड़ी चेहरे माने जा रहे हैं।

पांडे कहते हैं कि जब खुद गहलोत यह कहकर जयपुर से दिल्ली पहुंच रहे हैं कि वे सबसे पहले राहुल गांधी को मनाएंगे कि वह राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन करें और अगर वे नहीं मानते हैं तो गहलोत अपना नामांकन दाखिल करेंगे। ऐसे में यह सोचना कि अगर अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो वह सबसे मजबूत राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे, जल्दबाजी होगी।

इश्क में ‘इकरा’ से ‘इशिका’ बनी लड़की, मुस्लिम युवती ने हिंदू धर्म अपना कर की शादी, अब अपनों का डर

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TIO मंदसौर

मंदसौर जिले में एक बार फिर धर्म परिवर्तन का मामला सामने आया है। इस बार एक मुस्लिम लड़की ने हिंदू धर्म अपना लिया है। गायत्री परिवार में इकरा से इशिका बनी युवती पंचतत्व स्नान और पूजन कर हिंदू धर्म अपना लिया।

बता दें कि यह पूरा मामला प्रेम-प्रसंग से जुड़ा हुआ है। मुस्लिम लड़की को हिंदू लड़के से प्यार हो गया और वह युवक के साथ रहने के लिए हिंदू धर्म अपनाने को तैयार हो गई। लेकिन अब धर्म परिवर्तन के बाद लड़की का परिवार और समाज धमकी दे रहा है। वहीं दोनों अब सुरक्षा की मांग कर रहे हैं।

राजस्थान के जोधपुर निवासी इकरा को वहां रहने वाले राहुल वर्मा नाम के लड़के से प्यार हो गया था। राहुल मूल रूप से मध्यप्रदेश में मंदसौर जिले का रहने वाला है। उनका परिवार मंदसौर में रहता है। लेकिन वे बचपन से ही जोधपुर में रह रहे थे। तीन साल पहले जब इन दोनों के बीच प्यार शुरू हुआ तो दोनों नाबालिग थे। लेकिन अब वयस्क होते ही दोनों ने भागकर शादी करने का फैसला किया।

इस दौरान जब राहुल ने लड़की को हिंदू होने की बात बताई तो लड़की भी युवक राहुल वर्मा से शादी कर हिंदू धर्म अपनाने को तैयार हो गई। इससे राहुल के परिवार को कोई दिक्कत नहीं है। इसलिए परिवार ने भी दोनों की शादी हिंदू रीति रिवाज से मंदसौर के गायत्री परिवार में उदयपुर में एग्रीमेंट मैरिज कर की। लेकिन उससे पहले स्नान कर पंचतत्व की पूजा करके इकरा को इशिका बनाया गया था।

इकरा से इशिका बनी लड़की का कहना है, उसने अपनी मर्जी से यह कदम उठाया है। लेकिन अब वह जोधपुर में मौजूद अपने परिवार और मुस्लिम समुदाय के लोगों से खतरे की बात कर रही हैं। वहीं, युवक राहुल अब उन्हें सुरक्षा देने की मांग कर रहा है। दोनों मिडिल फैमिली से आते हैं। युवक अभी पढ़ाई कर रहा है तो वही लड़की 19 साल की है और 9वीं तक पढ़ी है।

गौरतलब है, चैतन्य सिंह के बाद धर्म परिवर्तन का यह दूसरा मामला है। जो पहले मंदसौर में हिंदू धर्म अपना चुके थे। चैतन्य सिंह ने भी उनके धर्म परिवर्तन में उनकी मदद की है।

भिंड जिले की दबोह पुलिस ने मुठभेड़ के बाद चार बदमाशाें को दबोचा

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TIO BHIND

भिंड जिले की दबोह पुलिस ने मुठभेड़ के बाद चार बदमाशाें को दबोचा है। बदमाश एक सप्ताह से किसानों से मारपीट कर उन्हें लूट रहे थे। सभी बदमाश आसपास के गांवों के ही रहने वाले हैं। पुलिस ने घेराबंदी की तो सबसे पहले इन्होंने फायर किया। जब पूरी तरह से घिर गए तो हथियारों को कुएं में फेंककर भागने लगे। पुलिस पीछे दौड़ी तो पथराव भी किया। पुलिस मौके से हथियारों की बरामदी के लिए कुएं को खंगाल रही है। इन बदमाशों का आपराधिक रिकॉर्ड भी तलाशा जा रहा है।

लहार एसडीओपी अवनीश बंसल का कहना है कि ये बदमाश स्थानीय हैं। वे किसानों से मारपीट कर लूटपाट करते थे। रात में पुलिस ने जब बदमाशों को पकड़ने के लिए दबिश दी। ये बदमाश खेतों पर बिछी चारपाई पर सो रहे थे। पुलिस की आहट से सभी खेत पर बने एक कमरे में जा छिपे। यहां से उन्होंने पुलिस पर हवाई फायर किए। दो से तीन राउंड फायर किए गए। इसके बाद पुलिस ने जब घेराबंदी की तो इन सभी ने कुएं में हथियार फेंक दिए। जब पुलिस बदमाशों को पकड़ने कमरे के नजदीक पहुंची तो उन्होंने पथराव भी किया।

खेतों पर जाने से डरते थे किसान

बदमाशों में एक फरदुआ गांव का रहने वाला है। पुलिस और बदमाशों की मूठभेड़ फरदुआ व करियावली के खेतों के पास की है। ये फरदुआ के एक किसान की खेत में बनी झोपड़ी में छिप गए थे। इन बदमाशों का मूवमेंट एक सप्ताह से अरूसी, रूरई, फरदुआ, करियावली, लोटमपुरा, निसार, चुरली के हार में था।

बोलो भुट्टा है महान !

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राकेश अचल 

सियासत पर बहुत मुबाहिसा हो लिया,इसलिए आज सियासत का ‘ स ‘ भी नहीं | आज हम केवल और केवल एक ऐसे विषय पर बात कर रहे हैं जिसका महत्व राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय हो चुका है | आप अनुमान नहीं लगा पाए न आज के ‘ सब्जेक्ट ‘ का ! आज का विषय है ही अनुमानों से परे | आज हम ‘ भुट्टे ‘ की बात कर रहे हैं | भुट्टे ने देश में समाजवाद लाने में अहम भूमिका अदा की है |
भुट्टे कई प्रकार के होते हैं ,लेकिन जो शोहरत मक्के के भुट्टे  ने देश-विदेश में हासिल की है वैसी शौहरत न बराक ओबामा को हासिल हुई न जवाहरलाल नेहरू को  | दूसरे किसी नेता का नाम लेना बर्र के छत्ते में हाथ डालने जैसा है | भुट्टा ज्वार का भी होता है ,लेकिन उसे लोकमान्यता हासिल नहीं है | वजह साफ़ है क्योंकि ज्वार का भुट्टा एक तो बेशर्मों की तरह दिखाई देता है और दूसरे उसका आकार -प्रकार भी आम जनता को आकर्षित नहीं करता | असल आकर्षण तो मक्के के भुट्टे में ही है |
भुट्टा दरअसल  मोटा अन्न है लेकिन बेहद सुघड़ और पर्दानशीं | सुघड़ इतना कि आप इसके दानों की तुलना किसी भी अभिनेत्री की दंतपंक्ति से कर सकते हैं | विशिष्ट इतना कि दुनिया के वैज्ञानिकों ने नकली चाँद बना लिया किन्तु नकली  भुट्टा आज तक नहीं बना पाए | ईश्वर ने भुट्टे का निर्माण करने में अपना तमाम कौशल उड़ेलकर रख दिया | भुट्टे को भगवान ने इतने पर्दों में लपेटा की आप सीधे उसके दर्शन नहीं कर सकते  | ज्वार के भुट्टे तो बेशर्मों की तरह खड़े रहते हैं ,ज्वार के भुट्टे अक्सर तोतों के शिकार हो जाते हैं | लेकिन मक्के के भुट्टे का स्वाद लेने के लिए तोते तक तरस जाते हैं | भुट्टों का स्वाद कभी-कभी बेशर्म इल्लियां जरूर ले लेतीं हैं |
हमारे देश में भुट्टा आदिलकाल से तो नहीं हाँ पांच-छह सदियों से पैदा किया जा रहा है ,इसलिए हम कह सकते हैं की भुट्टा हमारा आदि खाद्य है | भुट्टे को अपने ऊपर उतना ही गर्व होता है जितना कि  किसी विश्व सुंदरी को अपने रूप के ऊपर | भुट्टा खेतों में इतराता है तो इसके सर से सुनहरे बाल हवा में लहराने लगते हैं | भुट्टा अपने भुट्टतत्व  के लिए मशहूर है|  दादी-नानियों के साथ ही वैद्य ,हकीम ही नहीं ,आधुनिक चिकित्सा शास्त्री भी भुट्टे को स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं और अक्सर अपने मरीजों से भुट्टा खाने के लिए कहते हैं |
यानी भुट्टे को लेकर न कहीं कोई विवाद है और न कोई किंवदंती | भुट्टा सिर्फ भुट्टा है | पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक भुट्टा कांग्रेस और भाजपा की तरह लोकप्रिय है | परशुराम भगवान ने धरती को क्षत्रियविहीन करने की शपथ भले ही ली हो किन्तु भुट्टा विहीन करने की शपथ कभी नहीं ली | परशुराम को छोड़िये किसी ने भी भुट्टे से अदावत नहीं मानी | { एक जुल्फकार अली भुट्टो और उनकी बेटी बेनजीर जरूर अपने उपनाम के साथ भुट्टो लगा ओने की वजह से शहीद हुईं ] भुट्टा असल समाजवादी चीज है | मुझे तो लगता है आज  दुनिया में जब चारों और नफरत ही नफरत है तब भुट्टे भाईचारा स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं |
अपने अध्ययन के आधार पर मै दावे के साथ कह सकता हूँ कि हमारा देश भुट्टा प्रधान देश है | भुट्टा प्रेमी अक्सर भुट्टों की जात-पांत के बारे में नहीं पूछते ,लेकिन मै आपको बता दूँ कि हमारे यहां भारत मे 7 प्रकार के भुट्टे  पाए जाते है इनमें   -पॉप कॉर्न , स्वीट कॉर्न, फ्लिंट कॉर्न ,वैक्सि कॉर्न ,पॉड कॉर्न ,फ्लोर कॉर्न और डेंट कॉर्न प्रमुख हैं | .लेकिन आपको भुट्टों की प्रजातियों में उलझने की जरूरत रहीं |आपतो केवल भुट्टे खाइये | ‘ जात न पूछो साधू की ‘ तरह आपको भी भुट्टों की जाति नहीं पूछना चाहिए |
भुट्टा भले ही मोटे अनाज में शुमार किया जाता हो लेकिन इसे खाने से आजतक कोई मोटा नहीं हुआ | भुट्टा मक्के का ही भला ,क्योंकि ये मक्का हर मिटटी में पैदा हो जाता है | मिटटी बलुई है या दोमट इससे मक्के यानि भुट्टे की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता | ये खूबसूरत भुट्टा आप मैदानी इलाकों से लेकर तीन हजार फीट ऊंचे पहाड़ों पर भी आसानी से हासिल कर सकते हैं |भुट्टा मारुती-सुजकी के सर्विस स्टेशन की तरह हर जगह उपलब्ध है | मै तो मक्के के सीजन का बेसब्री से इन्तजार करता हूँ|  मुझे आग पर सकते भुट्टों के जिस्म से उठने वाली खुशबू दूर से ही खींच लेती है |
भुट्टे खाने और पैदा करने के मामले में हमारा मुकाबला हमेशा अमेरिका से रहा है | इस मामले में हमें मलाल है कि हम अमेरिका से आगे नहीं निकल पाए  | हमारे कृषि वैज्ञानिक अमरीकी भुट्टों की तरह बड़े दाने वाले भुट्टे तैयार करने में अभी कामयाब नहीं हुए हैं | हालाँकि हमारे यहां रंग-बिरंगे भुट्ट मिलने लगे हैं | हम भुट्टे भूनकर खाते हैं जबकि अमेरिका वाले उबालकर | वे भुट्टे खाने के मामले में हमसे आगे नहीं हैं ये संतोष का विषय है | हमें एक ही तकलीफ है कि हमारी सरकार देश के जिन 80  करोड़ लोगों को मुफ्त का अन्न मुहैया कराती है उसमें भुट्टे को शामिल नहीं किया   गया | भुट्टा प्रेमियों को इसके लिए आगे आना चाहिए |
दुनिया में चीन,ब्राजील और मैक्सिको वाले भी हमारी तरह ही भुट्टा प्रेमी हैं | दुनिया में भुट्टा प्रेमी प्रति वर्ष 05  से लेकर 100  किलो प्रति व्यक्ति के हिसाब से भुट्टा सेवन कर लेते हैं |  भुट्टा आपका है इसलिए मर्जी है आपकी |.आप भुट्टे को भूने,उबाले, सुखाएं ,पीसें ,दलें.रोटी बनाएं बनाएं,ब्रेड बनायें ,पॉपकॉर्न बनाये | भुट्टा हर शक्ल सूरत में ढलने के लिए हमेशा राजी रहता है लेकिन उसे जो मजा सुर्ख कोयलों पर नृत्य करने में आता है उसका कोई तोड़ नहीं | आग पर नंगे जिस्म नृत्य केवल भुट्टा ही कर सकता है ,ज्वार के भुट्टे में ये दम कहाँ ? बाजरा हालाँकि भुट्टे की ही तरह भूना जाता है लेकिन वो भी भुट्टे का मुकाबला नहीं कर सकता| क्योंकि भुट्टा तो भुट्टा है |
भुट्टा खाने के लिए आपकी दंतपंक्ति मजबूत होना चाहिए | हमारे एक मित्र की दंतपंक्ति क्षतिग्रस्त हो गयी थी लेकिन उन्होंने भुट्टा खाने के लिए नयी बत्तीसी लगवाई |  वे भुट्टा खाये बिना रह ही नहीं सकते थे | भुट्टा खाने के लिए आप ऊके जिस्म पर  नीबू लगएं या लालमिर्च   के साथ नमक ,उसे कोई फर्क नहीं पड़ता | आपकी हैसियत है तो आप उसे बटर में भी लपेट सकते हैं |]लेकिन आम आदमी तो निब्बू,नमक और लाल मिर्च वाला भुट्टा ही पसंद करता है | भुट्टे खाने के पूरे दस फायदे हैं ,लेकिन इन्हें गिनाने की क्या जरूरत ? आपतो भुट्टा खाइये क्योंकि अभी तक ये जीएसटी से मुक्त है | सीता बाई की दृष्टि सड़क किनारे सिंकते भुट्टे पर अब तक नहीं पड़ी है |
भुट्टा इतना उदार होता है कि आप इसे किसकर कोई भी व्यंजन  बना सकते हैं |  मालवा वाले इसकी कचौड़ी,पकोड़ी तक बना लेते हैं  | भुट्टे का स्टार्च तो असंख्य कामों में आता है | मेरी मान्यता है कि जिस आदमी ने भुट्टा नहीं खाया उसका जन्म अकारथ गया | भुट्टा खाने के लिए ही मनुष्य  योनि में जन्म मिलता है | इसलिए जैसे भी हो एक बार भुट्टे का सेवन अवश्य कीजियेअन्यथा आपको भुट्टा खाने के लिए पुनर्जन्म लेना पद सकता है | ,मै तो देश के कम्युनिष्टों से भी कहता हूं कि वे अपने ध्वज से गेंहूं की बालियां हटाकर हमारा भुट्टा स्थापित करें | भोजपुरी फिल्मों में तो भुट्टे   के बिना कोई गीत बनता ही नहीं | भोजपुरी फिल्म का नायक नायिका को भुट्टा खिलाने का इसरार गाना गाकर करता ही है |’ मै जब पटना में   था तो मैंने एक गीत सुना था | उसके  बोल थे ‘ भुट्ट  तोइर के भागल जाय छे ,छोरा कोइर फुट्टा ‘ | रम्पत और रजनीबाला कीनौटंकी में तो मोटा भुट्टा ही नायक है |बहरहाल भुट्टा जरूर बापरें क्योंकि ‘ भुट्टा है महान,भुट्टा है जग की शान ‘.भुट्टा ईश्वर,भुट्टा अल्ला ,भुट्टा है भगवान | अमरीका का कृषि विभाग कहता है कि दुनिया भर में वर्ष 2021-22 के लिए 120.46 करोड़ टन भुट्टा पैदा होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2020-21 में यह पैदावार 111.90 करोड़ टन थी।

राजवाड़ा-2-रेसीडेंसी

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अरविंद तिवारी

बात यहां से शुरू करते हैं…नरोत्तम ने दिल्ली दरबार में दस्तक दी और शिवराज देव दर्शन पर निकल पड़े गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की दिल्ली यात्रा और संघ के दिग्गजों से संवाद मध्यप्रदेश की आने वाले समय की भाजपा राजनीति के लिए एक अलग संकेत दे रहा है। भाजपा के कई दिग्गज अब यह तो मानने लगे हैं कि मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान अब उतने मजबूत नहीं रहे हैं, जितने अपने पहले तीन कार्यकाल में हुआ करते थे। भाजपा के मैदानी कार्यकर्ताओं से भी जो फीडबैक दिल्ली पहुंच रहा है, वह भी ‘सरकार’ के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इसका फायदा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर निगाह रखने वाले कई नेता उठाना चाहते हैं, लेकिन फिलहाल तो इनमें डॉ. मिश्रा नंबर वन पर हैं। यह भी संयोग ही है कि जब नरोत्तम दिल्ली में डेरा डाले हुए थे तब मुख्यमंत्री देव दर्शन पर थे।

– अभी से तेवर दिखाने लगे हैं नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह: नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह के तेवरों को अंदाज अभी से होने लगा है। वह दिन दूर नहीं, जब यह सुनने को मिले कि नेता प्रतिपक्ष ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को पत्र लिखकर कहा है कि प्रदेश में संगठन से जुड़े निर्णयों में उनकी भी भागीदारी होना चाहिए, यानि निर्णये होने के पहले उन्हें भी भरोसे में लिया जाए। दरअसल कमलनाथ का काम करने का जो स्टाइल है, उससे पार्टी के जो बड़े नेता परेशान हैं, वे डॉ. गोविंदसिंह के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने के लिए तैयार बैठे हैं। बस उन्हें वक्त का इंतजार है। देखते हैं ये वक्त कितना जल्दी आता है।

जामवाल की पैनी निगाहें भाजपा नेताओं के लिए बन सकती है परेशानी का कारण

सह-संगठन महामंत्री शिवप्रकाश के स्थान पर संघ के जिन खांटी अजय जामवाल को मध्यप्रदेश पर निगाह रखने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वे मध्यप्रदेश के मंत्रियों और संगठन में बड़े पदों पर काबिज दिग्गजों की लकदक लाइफ स्टाइल से चौंके हुए हैं। जामवाल के लिए चौंकने का एक बड़ा मुद्दा संघ से भाजपा में भेजे गए दिग्गजों की लाइफ स्टाइल भी है। तय है कि बरास्ता जामवाल यह संदेश अब दिल्ली पहुंचना ही है। देखना यह भर है कि इससे किसे नफा और किसे नुकसान होता है। पर यह तय है कि सत्ता और संगठन के शीर्ष के लिए जरूर यह पैनी निगाहें परेशानी का कारण बनेगी।

सरकार का इशारा और पुलिस का फरियादी के चाचा को ही आरोपी बनाना

मध्यप्रदेश अजब है, गजब है। यह बिलकुल ही सही कहा गया है। पंडोखर सरकार और बागेश्वर धाम के अधिष्ठाता धीरेंद्र के बीच मेल-मिलाप की खबरों के बाद अब एक नया वाक्या सामने आया है। मर्डर के आरोपी का पता करने के लिए एक एएसआई पंडोखर सरकार के दरबार में जा पहुंचा। दरबार से जो राय मिली, उसके बाद पुलिस ने फरियादी के चाचा को ही अंदर कर दिया। फरियादी ने शोर मचाया तो तहकीकात शुरू हुई, अफसरों ने एएसआई को तलब किया तो उसने कहानी बयां कर दी। सुनते ही अफसरों के होश उड़ गए। आखिरकार दरबार की सलाह मानने वाले अफसर को निलंबित होना पड़ा।

ना यह मानने को तैयार ना सरकार इनसे निपटने की स्थिति में

– स्टेच्यू ऑफ यूनिटी की तर्ज पर ओंकारेश्वर के ओंकार पर्वत पर शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित करने का मध्यप्रदेश सरकार का महाभियान उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद भले ही धीमा पड़ गया है, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बहुत नजदीकी रखने वाले एक वर्ग ने धार्मिक भावनाओं की दुहाई देते हुए जिस तरह से इसके विरोध में मैदान संभाल रखा है, उसने सरकार की नींद तो हराम कर दी है। ये लोग पीछे हटने को तैयार नहीं हैं और सरकार इनसे निपटने की स्थिति में नहीं है। विरोध कर रहे लोगों की मदद करने वालों के हाथ भी बहुत लंबे हैं।

नाराज विधायकों को मनाने में एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं बाकलीवाल

– इंदौर शहर कांग्रेस अध्यक्ष का पद दो दिग्गजों के बीच फंसा हुआ है। जीतू पटवारी, विशाल पटेल और संजय शुक्ला की नाराजगी और नगर निगम चुनाव के बाद जो फीडबैक ऊपर तक पहुंचा, उसके बाद विनय बाकलीवाल की रवानगी तय मानी जा रही है। विकल्प के रूप में अश्विन जोशी, अरविंद बागड़ी, सुरजीत चड्ढा और के.के. यादव के नाम सामने आए थे। मैनेजमेंट के कारण अरविंद बागड़ी का नाम सबसे आगे हो गया। इसकी भनक लगते ही बाकलीवाल ने कमलनाथ के दरबार में दस्तक दी। वहां से मिली नसीहत के बाद अब वे शुक्ला और पटेल की परिक्रमा में लग गए हैं। इन दोनों के सामने दुविधा यह है कि जो पहले कह आए उससे कैसे पलटें। और इनके पलटे बिना कुछ होना नहीं है। देखते हैं आगे क्या होता है।

जोगा का जलवा और रेंज के कुछ अफसरों के बगावती तेवर

दक्षिण की मजबूत भाजपा लॉबी के दम पर पिछले 18 साल में हमेशा अच्छी पोस्टिंग पाने वाले आईपीएस अफसर उमेश जोगा के खिलाफ उन्हीं की रेंज के कुछ अफसरों ने मोर्चा खोल दिया है। बात ऐसी वैसी भी नहीं है इन अफसरों ने मय प्रमाण के पुलिस मुख्यालय तक अपनी बात पहुंचा दी है। प्रारंभिक तहकीकात में इनके आरोप सही भी पाए गए हैं। देखना यह है कि इसके बाद भी कुछ होता है या फिर जोगा का जलवा ही बरकरार रहता है।

चलते-चलते

विनीत नवाथे के आरएसएस के मालवा प्रांत के प्रांत कार्यवाह की भूमिका में आने के बाद इंदौर विभाग के संघचालक शैलेंद्र महाजन भी दोहरी भूमिका में आ गए हैं। उन्हें प्रांत का ग्राम संपर्क सह प्रमुख बनाया गया है।

इंदौर के नए महापौर पुष्यमित्र भार्गव की सक्रियता कई नेताओं को प्रभावित कर सकती है। जिस दिन से भार्गव महापौर पद पर निर्वाचित हुए हैं, उस दिन से शहर के आयोजनों में दूसरे नेताओं के बजाय उन्हें ही तवज्जो मिल रही है। जिन्हें सबसे नुकसान हो रहा है, उनमें सांसद शंकर लालवानी का नाम सबसे ऊपर है।

पुछल्ला

म.प्र. क्रिकेट एसोसिएशन में अभिलाष खांडेकर ही अध्यक्ष रहेंगे या कोई नया चेहरा देखने को मिलेगा। पिछले दिनों संगठन की एक बैठक में जब भविष्य से जुड़े कुछ बड़े प्रोजेक्ट पर बात शुरू हुई तो खांडेकर ने आगे होकर कहा कि यह यह फैसला नई टीम के लिए छोड़ दो। इसे क्या संकेत माना जाए।

बात मीडिया की

  • दैनिक भास्कर के इंदौर संस्करण में इन दिनों बड़ी हलचल है। यह हलचल आने वाले समय में किसी बड़े बदलाव का संकेत भी दे रही है। देखना यह है कि इस बदलाव से कौन-कौन प्रभावित हो सकता है।
  • यदि सबकुछ ठीकठाक रहा तो सितंबर से भास्कर का ई-पेपर पेड हो रहा है। दिसंबर से एप भी पे-वाल के पीछे चला जाएगा। भास्कर अपने इस डिजिटल वेंचर पर अब तक 250 करोड़ रुपए लगा चुका है।
  • हाल ही में लांच हुआ नेशनल सैटेलाइट चैनल भारत 24 ने जिस मजबूती से छत्तीसगढ़ में अपने पांव जमाए हैं, वह मजबूती उसे मध्यप्रदेश में क्यों नहीं मिल पा रही है, यह चर्चा का विषय है।
  • सांध्य दैनिक हिंदुस्तान मेल का यू-ट्यूब चैनल भी अस्तित्व में आ गया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुछ साथियों के लिए यह एक अच्छी खबर है।

भारतीय मजदूर संघ की ओर से केंद्रीय श्रममंत्री भूपेंद्र यादव को सोपा मांगो निवेदन

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TIO

कोरोना की स्थिति के बाद उद्योगों और श्रम क्षेत्रों की स्थिति चुनौतीपूर्ण हो गई है। काम और मजदूरी में अस्थिरता ने श्रम क्षेत्र में भय और असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है। ऐसे में भारतीय मजदूर संघ के प्रतिनिधिमंडल ने पुणे में केंद्रीय के श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव से मुलाकात कर उनको बधाई दी गयी, साथ ही संगठन के पदाधिकारियों के साथ बैठक में कार्यकर्ताओं की निम्न महत्वपूर्ण समस्याओं के समाधान की मांग की गई है. मा श्रममंत्री पुणे में स्वावलंबी भारत अभियान my PORTAL के उद्घाटन समारोह के लिए आये थे ।
मुंबई में औद्योगिक न्यायाधीशों की रिक्त स्थान त्वरित भर्ती करिये, इसी कारण न्याय प्रकिया गतिमान होने के लिए मदत होंगी ।
असंगठित कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना बनानी चाहिए और लागू की जानी चाहिए,ठेका श्रमिकों की रोजगार सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं और ठेका कर्मियों के वेतन में कार्य अनुभव के अनुसार वृद्धि की जाए और किए गए कार्य के लिए ग्रेच्युटी दी जाए, उद्योग मे न्यूनतम मजदूरी मे अनुभवों के आधार पर वेतनमान बढोतरी होनी चाहिए ।
ठेका श्रमिक, संविदा कर्मियों को न्याय दिलाने के हेतु बिजलियों हटाकर प्रबंधन व्दारा मजदूरों वेतन देना चाहिए ।
बिजलियों की गलत निति के कारण ही श्रमिकों को कम मजदूरी मिल रही है। सरकार को सभी श्रमिकों को ईएसआई और पीएफ योजना लागू करनी चाहिए और श्रमिकों की योगदान राशि का भुगतान होना चाहिए तथा भारतीय मजदूर संघ इस संबंध में श्रम संहिता के नियमों, आपत्तियों और सुझावों पर भारतीय मजदूर संघ के भीतर त्रिपक्षीय चर्चा का आयोजन करे और मजदूरों को न्याय दिलाये,इस अवसर पर भारतीय मजदूर संघ के प्रतिनिधिमंडल में भारतीय संघ महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष अनिल ठुमने, अखिल भारतीय ठेका मजदूर संघ महासचिव सचिन मेंगाळे, असंगठित प्रभारी उमेश विश्वाद, पुणे जिला सचिव बालासाहेब भुजबल, पुणे जिलाध्यक्ष अर्जुन चव्हाण, मुंबई भामसंघ अध्यक्ष बापू दडस , शासकीय कर्मचारी संघ विवेक ठकार ,भामसंघ महाराष्ट्र सहसचिव राधेश्याम कुलकर्णी, भामसंघ संघटन सचिव श्रीपाद कुटास्कर, हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स कंपनी के सचिव विजय पाटिल उपस्थित थे।

Love by a thousand cuts Published worldwide by Amazon

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TIO SPECIAL

Padmini Dutta Sharma’s ‘Love by a thousand cuts’ is a fiercely objective collection of short stories and poems angling various dimensions of love. ‘Nostalgia’ is about a woman that eternally waits near the phone for her lover till they unite after a lot of upheavals and trauma, but we know not if that was love, dependability, empathy, companionship or merely a social agreement. Love is rarely kind and barely dependable or why would the ‘Beduin’ go missing suddenly?

According to Padmini, Love mostly acts as a temporary sedative, to resurface in all its splendor after a while when things apparently seem a bit settled apparently. ‘Love by a thousand cuts’ is a magnificently mordant work, with hypnotic nihilistic depictions of people trapped in strange, lonely, dystopian situations, surrounded by unforgiving vicissitudes . According to Padmini Dutta Sharma, love does not heal, transcend or emancipate the lovers from the horrors they face during their overtly passionate phase; rather, it evokes unbearable memories and despicable moments of relentless pain after the lovers part ways. The blind belief that love forgives, is simply a myth that has been created to help the lovers to move on, from the shackles of blinded fettered love. Love happens only after a thousand cuts and profuse bleeding, to stay momentarily like a butterfly for creating an artificial euphoria filled with dopamine and adrenal rush, and then there is the inevitable nose drive, a downward plunge from the hill top into the dead pan of hysteria – the lethal trap from where there is no escape.

Stories and poems in ‘Love by a thousand cuts’ has a lot of drama and suspense complemented by high voltage romance; the ingenious connections between startlingly unrelated subjects make the book absolutely astounding. Padmini ‘s book is a complete departure from the run of the mill types; every piece is intense and holds a lot of grey in them.
Padmini Dutta Sharma has carved an exceptional niche for herself in the literary world through distinctive portrayal of different genre books using her non conventional style; that range from fiction to non fiction; poems to short stories, essays to novels. Being a profound and prolific writer and columnist she has always lend her thoughts and pen to ongoing social issues of her time. Love and satire intertwined as we know by now is her primary forte but Dutta Sharma likes to keep them subtle and elusive. Although her first career choice was journalism she subsequently switched to literary writing, selecting books as her preferred medium for interacting with her readers. Her earlier books on different genres have received rare reviews from the media and literary laureates especially because of her incisive analysis of unrequited love; also considered a hard boiled writer of loveless magic. Her writing always carries that rare sense of belonging from a distance; Padmini is like one of the key transitional figures between literary realism and literary fancy.

मुंबई में 26/11 जैसे हमले की धमकी

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TIO MUMBAI

मायानगरी मुंबई को एक बार फिर से दहलाने की साजिश रची जा रही है। इस संबंध में मुंबई पुलिस के व्हाट्सएप पर एक धमकी भरा मैसेज आया है। इस मैसेज में कहा गया हे कि मुंबई को उड़ाने की पूरी तैयारी है। कभी भी हमला किया जा सकता है। धमकी देने वाले ने कहा है कि यह हमला 26/11 हमले जैसा होगा।

इस मैसेज के बाद मुंबई पुलिस अलर्ट मोड में आ गई है। कहा गया है कि मैसेज भेजने वाले की पड़ताल की जा रही है। प्राथमिक जांच में पता चला है कि यह मैसेज पाकिस्तान के नंबर से आया है। मैसेज में कहा गया है कि मेरी जांच करोगे तो लोकेशन पाकिस्तान दिखाएगी, लेकिन धमाका मुंबई में होगा। धमकी देने वाले ने मैसेज में लिखा है कि भारत में इस हमले को छह लोग अंजाम देंगे।

राजवाड़ा-2-रेसीडेंसी

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(अरविंद तिवारी)

बात यहां से शुरू करते हैं…- मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का त्रिकोण लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं। इनमें से कब किसे निपटा दे और किसका नजदीकी हो जाए यह समझ में नहीं आता। पिछले 6 महीने में कई मौके ऐसे आए, जब एक-दूसरे को निपटाने में कोई कसर बाकी नहीं रखने वाले ये नेता खुलकर एक-दूसरे की तारीफ करते दिखे। हालांकि पर्दे के पीछे निपटाने का खेल पूरी ताकत से जारी है। तीनों को बस मौके का इंतजार है।

– नरेंद्रसिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में होते हुए भी ग्वालियर और मुरैना में महापौर के चुनाव में जिस तरह भाजपा के पटिये उलाल हुए, उसने दिल्ली और भोपाल में बैठे पार्टी के दिग्गजों की नींद हराम कर दी है। हालांकि कुछ लोग मन ही मन खुश भी हैं। मुद्दा यह है कि तोमर और सिंधिया दोनों ही ग्वालियर-चंबल संभाग में अपनी सल्तनत कायम रखना चाहते हैं। समर्थकों को उपकृत करने में भी पीछे नहीं रहते हैं। किसी ओर नेता की दखलंदाजी इन्हें पसंद भी नहीं है, लेकिन नतीजे दोनों ही नहीं दे पा रहे हैं। हालात के मद्देनजर पार्टी में इस बात पर जरूर विचार मंथन शुरू हो गया है कि आखिर कैसे इस पेंच को सुलझाया जाए, नहीं तो 2023 के विधानसभा चुनाव में बुरी गत होना तय है।
– बंगाल के प्रभार से मुक्त किए जाने के बाद कैलाश विजयवर्गीय की अगली भूमिका पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में क्या होगी, इस पर सबकी निगाहें हैं। अमित शाह के प्रिय पात्र माने जाने वाले विजयवर्गीय दिल्ली में ही बरकरार रहेंगे या उनकी मध्यप्रदेश में वापसी होगी, यह भी चर्चा का एक हिस्सा है। ज्यादा संभावना इस बात की है कि बजाय मध्यप्रदेश भेजने के विजयवर्गीय को दिल्ली में ही रखा जाएगा और किसी ऐसे राज्य का जिम्मा सौंपा जाएगा, जहां आने वाले समय में विधानसभा चुनाव होना है। विजयवर्गीय को मध्यप्रदेश भेजना यानि शिवराज के लिए खलल पैदा करना और ऐसा केंद्रीय नेतृत्व कभी नहीं चाहेगा।
– नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव नतीजों के बाद कमलनाथ का बहीखाता तैयार हो गया है। विदेश यात्रा लौटने के बाद कमलनाथ ने इस बहीखाते के पन्ने पलटना शुरू कर दिए हैं। इस बहीखाते को 2023 के विधानसभा चुनाव के नजरिए से बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जिन नेताओं के नाम इस खाते में दर्ज हैं, उन्हें जल्दी ही तलब किया जाकर हिसाब-किताब बताया जाएगा। दरअसल टिकट बांटते समय ही कमलनाथ ने यह स्पष्ट कर दिया था कि जिसे टिकट दिलवा रहे हो उसे जितवाने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी है। टिकट दिलाने में उत्साह दिखाने वाले नेता जितवाने के मामले में लगभग विफल ही रहे।
– प्रदेश कांग्रेस ने हाल ही में सभी जिलों के लिए प्रभारी नियुक्त कर दिए हैं। सूची पर गौर करें तो दिग्विजय सिंह यहां भी बाजी मार ले गए हैं। खाली बैठे अपने कई समर्थकों को उन्होंने प्रभारी का दायित्व दिलवा दिया है। इसमें भी उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि जहां उनका प्रभाव है, वहां उन्हीं का पसंदीदा नेता प्रभारी बने। प्रभारी की भूमिका में ये समर्थक अपने से सम्बद्ध जिलों में राजा के हितों का कितना ध्यान रख पाते हैं, यह तो वक्त ही बताएगा। हां, इतना जरूर हुआ है कि बड़े जिलों में कमलनाथ ने अपने भरोसेमंद नेताओं को मौका दिलवाया है।
– संबंध बनाने, उन्हें साधने और संपर्क में केंद्रीय मंत्री प्रहलादसिंह पटेल की कोई जोड़ नहीं है, लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र दमोह में इस खासियत के बावजूद वे अपनी ही पार्टी के लोगों को साध नहीं पा रहे हैं। नतीजा दमोह में जिला पंचायत और नगर पालिका के चुनाव में भाजपा की हार के रूप में सामने आ ही गया। दमोह की राजनीति में अब दो ध्रुव हो गए हैं, एक मुहाने पर प्रहलाद पटेल हैं तो दूसरे पर जयंत मलैया। मलैया तो अभी भाजपा में ही हैं, पर उनके बेटे सिद्धार्थ पार्टी से बाहर होने के बाद बगावती तेवर दिखा रहे हैं। सिद्धार्थ के मैदान संभालने के कारण ही जिला पंचायत और नगर पालिका भाजपा की पहुंच से दूर रही।
– सांसद शंकर लालवानी के खेमे में इस बात की पड़ताल चल रही है कि आखिर क्यों महेश जोशी, कमल गोस्वामी, सतीश शर्मा और पंकज फतेहचंदानी जैसे अपने खासमखास नेताओं की सांसद दमदारी से पैरवी क्यों नहीं कर पाए और ये सब नगर निगम चुनाव में उम्मीदवारी से नकार दिए गए। पड़ताल इस बात की भी चल रही है कि आखिर किस आधार पर संध्या यादव और मुद्रा शाी टिकट की दौड़ में इन खासमखास लोगों को पीछे छोड़ आगे निकल गईं। सांसद तो चुप हैं, लेकिन पंच प्यारों की उनके इर्द-गिर्द गैरमौजूदगी जरूर चर्चा का विषय है।
– इंदौर पुलिस में इन दिनों मौखिक आदेश की बड़ी चर्चा है। यह मौखिक आदेश कब किसे पद से हटवा दे और किसी को कहां मौका दिलवा दे इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। क्राइम ब्रांच के टीआई धर्मेन्द्रसिंह भदौरिया को उपायुक्त की अनुशंसा पर अपर पुलिस आयुक्त ने हटा दिया। कुछ ही दिन बाद पुलिस आयुक्त ने उन्हें मौखिक आदेश से फिर क्राइम ब्रांच में बैठा दिया। आचार संहिता के कारण राजेंद्र नगर टीआई मनीष डाबर को हटाया गया था। कुछ दिनों पहले उनकी भी मौखिक आदेश से वापसी हो गई।

चलते-चलते

– डबरा की राजनीति में जिस तरह इमरती देवी सारे सूत्र अपने हाथ में लेकर चल रही है, उसका त्वरित नुकसान भले ही गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा को होता दिख रहा है, लेकिन इसका दूरगामी खमियाजा अंतत: इमरती देवी को ही उठाना पड़ेगा, यह तय है। मंत्री जी को बस वक्त का इंतजार है, जो ज्यादा दूर नहीं।

पुछल्ला

  • इंदौर नगर निगम में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि मालिनी गौड़ का पांच साल के कार्यकाल में नौकरशाह जिस तरह हावी रहे, वही स्थिति अब भी बरकरार रहेगी या इससे निजात मिलेगी। वैसे नए महापौर पुष्यमित्र भार्गव के तेवर तो इससे निजात मिलने का ही संकेत दे रहे हैं।

अब बात मीडिया की

  • दैनिक भास्कर प्रबंधन ने इंदौर संस्करण की जिस तरह री-लांचिंग की है और खबरों को अलग-अलग कैटेगरी में स्थान दिया जा रहा है, उसे पाठकों ने सराहा है।
  • इंदौर से नए सांध्य दैनिक हिंदुस्तान मेल के प्रकाशन की पूरी तैयारी हो गई है। इसका डिजिटल एडीशन प्रसारित भी होने लगा है। यदि इंदौर संस्करण के डिक्लेरेशन में किसी कारण से विलंब होता है तो फिर अखबार का प्रकाशन भोपाल डेटलाइन से होगा।
  • वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा और संजय गुप्ता अब टीम हिंदुस्तान मेल का हिस्सा हो गए हैं। राणा वहां संपादक की भूमिका में रहेंगे तो गुप्ता डिप्टी एडिटर की भूमिका में।
  • इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कई धुरंधर नए लांच होने वाले टीवी चैनल `भारत 24′ का इंदौर ब्यूरो प्रमुख बनने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं।
  • वरिष्ठ पत्रकार पंकज भारती टीम प्रजातंत्र का हिस्सा हो गए हैं।
  • क्राईम रिपोर्टिंग में अलग पहचान रखने वाले हेमन्त नागले ने भास्कर डिजिटल को अलविदा कह दिया है।

नीतीश के ‘तेजस्वी’ क्षण की आडवाणी को भी प्रतीक्षा होगी !

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श्रवण गर्ग

प्रधानमंत्री बारह जुलाई को पटना में थे। वे वहाँ बिहार विधान सभा के शताब्दी समारोह में भाग लेने पहुँचे थे। इस अवसर पर मोदी की मुलाक़ात तेजस्वी यादव से होनी ही थी। तेजस्वी के साथ संक्षिप्त बातचीत में पीएम ने राजद नेता को सलाह दे डाली कि उन्हें अपना वज़न कुछ कम करना चाहिए। तेजस्वी ने मोदी के चैलेंज को मंज़ूर कर लिया। एक महीने से भी कम वक्त में तेजस्वी ने न सिर्फ़ खुद का वज़न कम करके उसे नीतीश कुमार के साथ बाँट लिया, बिहार का राजनीतिक होमोग्लोबीन भी दुरुस्त कर दिया।

दो मत नहीं कि नीतीश ने तेजस्वी के साथ मिलकर मोदी के समक्ष 2024 में वापसी के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। तेजस्वी के साथ मिलकर किए गए राजनीतिक विस्फोट के बाद जब पत्रकारों ने नीतीश से सवाल किया कि क्या वे 2024 में पीएम पद के उम्मीदवार हैं ? बिहार के मुख्यमंत्री द्वारा शब्दों को तौलकर दिया गया जवाब था: ‘’मैं किसी चीज़ की उम्मीदवारी की दावेदारी नहीं करता। केंद्र सरकार को 2024 के चुनाव में अपनी सम्भावना को लेकर चिंता करनी चाहिए।’’

नीतीश द्वारा की गई टिप्पणी के कोई एक सप्ताह और लाल क़िले से अपने बहुचर्चित उद्बोधन के दो दिन बाद ही मोदी ने चिंता प्रकट करने की शुरुआत भी कर दी। नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान पार्टी की सर्वोच्च नीति-निर्धारक इकाई संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति से बाहर कर दिए गए। इन दोनों ही नेताओं और कुछ अन्य मुख्यमंत्रियों (यथा हरियाणा और हिमाचल ) के भविष्य को लेकर नई सूचनाएँ भी जल्द ही प्राप्त हो सकतीं हैं। पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधि के तौर पर जिन नए लोगों की पुनर्गठित संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में भर्ती की गई है उससे पार्टी की ग़रीबी और बेचैनी दोनों उजागर हो गईं। आश्चर्य व्यक्त किया जा सकता है कि कट्टर हिंदुत्व के प्रतीक योगी आदित्यनाथ को जगह नहीं दी गई। 2024 के लोकसभा चुनावों के नतीजे भाजपा शायद धुन बदल कर सुनना चाहती है !

मध्य प्रदेश ,राजस्थान और छत्तीसगढ़ सहित जिन राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं वे मोदी की 2024 में वापसी के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण सिद्ध होने वाले हैं । 2024 के लिहाज़ से वर्तमान में विपक्षी दलों की सरकारों वाले सिर्फ़ नौ राज्यों (बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, पंजाब, छत्तीसगढ़,राजस्थान, झारखंड ) में ही लोकसभा की सीटों की गिनती लगा लें तो आँकड़ा 221 का होता है। उड़ीसा और आंध्र को भी जोड़ लें तो कुल सीटें 267 हो जातीं हैं।

उक्त राज्यों में केवल बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में ही भाजपा मोदी के करिश्मे के दम पर विपक्ष को चुनौती दे सकने की स्थिति में आज है। अन्दाज़ लगाया जा सकता है कि सीटों की ऐसी स्थिति में भाजपा अपने 303 के वर्तमान आँकड़े को 2024 में कैसे क़ायम रख पाएगी ? नीतीश कुमार ने 2024 को लेकर मोदी की चिंता बढ़ाने से पहले कुछ तो होमवर्क किया ही होगा !

जो लोग नीतीश कुमार की राजनीति को अंदर से जानते हैं, दावे के साथ कह सकते हैं कि ‘सुशासन बाबू’ की महत्वाकांक्षाएँ नरेंद्र मोदी से क़तई कम नहीं हैं। इसीलिए जब बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने आरोप लगाया कि नीतीश के विद्रोह के पीछे उनकी इस माँग को भाजपा द्वारा नहीं माना जाना था कि उन्हें उपराष्ट्रपति पद दिया जाए तो किसी ने भी यक़ीन नहीं किया। नीतीश कुमार द्वारा भाजपा से उपराष्ट्रपति पद की माँग करना ऐसा ही नज़र आता है जैसे नरेंद्र मोदी 2024 में देश का राष्ट्रपति बनने की इच्छा व्यक्त करें।

दो मत नहीं कि भ्रष्टाचार के मामलों में ममता बनर्जी के अत्यंत क़रीबियों पर हुई केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई, गिरफ़्तारियों और राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति के चुनावों में तृणमूल कांग्रेस द्वारा निभाई गई संदेहास्पद भूमिका ने 2024 के चुनावों में मोदी के ख़िलाफ़ विपक्ष का नेतृत्व करने के सारे समीकरण बदल दिए हैं।ममता ने, तात्कालिक रूप से ही सही, अपने को विपक्षी एकता के परिदृश्य से बाहर कर लिया है। सोनिया, राहुल और प्रियंका ने सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों की लड़ाई को चाहे अभी नहीं छोड़ा हो, गांधी परिवार के ख़िलाफ़ जाँच एजेंसियों का दबाव बराबर बना हुआ है। प्रधानमंत्री द्वारा लाल क़िले से घोषित की गई ‘परिवारवाद’ के ख़िलाफ़ लड़ाई के असली परिणाम सामने आना अभी शेष हैं। उनके निशाने पर गांधी परिवार ही हुआ तो देश को कोई आश्चर्य नहीं होगा।

उपरोक्त परिस्थितियों में नीतीश अगर विपक्ष की अगुवाई के अवसर को इस बार चूक जाते और बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन में ही बने रहते तो कहा नहीं जा सकता था कि 2024 के परिणामों के बाद उनका और जद(यू) का भविष्य क्या बचता ! नीतीश कुमार ने अपने कदम से इतना तो सुनिश्चित कर ही दिया है कि जद(यू) और राजद सहित तमाम क्षेत्रीय दल भाजपा के बुलडोज़र के नीचे आने से अभी बच गए हैं। इसी तरह, झारखंड की सोरेन सरकार भी आगे की किसी तारीख़ तक के लिए सुरक्षित हो गई ।

इसे महज़ संयोग नहीं माना जा सकता कि पटना में नीतीश के धमाके के दो दिन बाद ही एक मीडिया समूह द्वारा प्रधानमंत्री की लोकप्रियता को लेकर किया गया सर्वे दिल्ली में जारी हो गया। विभिन्न समस्याओं को लेकर जनता में व्याप्त व्यापक असंतोष के बीच भी सर्वे में दावा किया गया कि देश के 53 प्रतिशत लोग मोदी को ही 2024 में प्रधानमंत्री के पद पर देखना चाहते हैं। सर्वे में लोकप्रियता के दूसरे क्रम पर राहुल (नौ प्रतिशत)और तीसरे पर केजरीवाल (सात प्रतिशत) को बताया गया। मोदी को चुनौती देने वालों में भी ममता और राहुल के नामों का ही ज़िक्र किया गया। सर्वे की सबसे उल्लेखनीय यह थी कि नीतीश कुमार को नेतृत्व की दौड़ में कहीं बताया ही नहीं गया।

नीतीश कुमार राजनीति में आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वाले जेपी युग की उपज हैं। जनता के बीच मौन धारणा है कि परिस्थितियाँ आपातकाल से बहुत ज़्यादा भिन्न नहीं हैं पर देश के पास कोई जेपी नहीं है। हक़ीक़त यह है कि जनता और विपक्ष दोनों को ही इस समय ज़रूरत किसी जेपी की है। नीतीश कुमार अगर साहस दिखाएं तो उस ज़रूरत को पूरा कर सकते हैं। परिवर्तनों के लिए देशव्यापी संघर्ष की ज़मीन भी बिहार में ही तैयार हो सकती है।

लालू यादव ने तीस साल पहले (सितम्बर 1990 में) लालकृष्ण आडवाणी के ‘राम रथ’ को बिहार के समस्तीपुर में रोकने का साहस दिखाया था। नीतीश कुमार अगर संकल्प कर लें तो इस बार लालू के बेटे तेजस्वी की मदद से मोदी के ‘विजय रथ’ को रोकने की हिम्मत दिखा सकते हैं। बहुत मुमकिन है 94-वर्षीय आडवाणी भी उम्र के इस पड़ाव पर पहुँचकर अपने पुराने रथ-यात्री अनुयायियों तथा ‘मार्गदर्शक मंडल’ में धकेले जा रहे नए-नए सदस्यों के साथ बिहार से प्रकट हो सकने वाले किसी ‘तेजस्वी’ क्षण की साँसें बचाकर प्रतीक्षा कर रहे हों !