अहमदाबाद
विश्व कप का फाइनल मुकाबला आज दोपहर दो बजे से अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में खेला जाएगा। खिताबी मुकाबले में भारत का सामना ऑस्ट्रेलिया से है। दोनों टीमें 20 साल बाद विश्व कप के फाइनल में एक-दूसरे से खेलेंगी। पिछली बार 2003 में ऑस्ट्रेलिया ने टीम इंडिया को हराया था। भारत उस हार का बदला लेने के लिए मैदान पर उतरेगा।
सोशल मीडिया पर कई क्रिकेट पंडितों ने टीम इंडिया को यह सुझाव दिया कि ऑस्ट्रेलियाई टीम को देखते हुए रविचंद्रन अश्विन को मौका दिया जाना चाहिए। अश्विन इस विश्व कप में एक ही मैच खेले हैं। उन्हें चेन्नई में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत के पहले मैच खेलने का मौका मिला था। उन्होंने 34 रन देकर एक विकेट लिया था। ऑस्ट्रेलियाई टीम के दो ओपनर डेविड वॉर्नर और ट्रेविस हेड बाएं हाथ के बल्लेबाज हैं। उनके खिलाफ अश्विन काफी प्रभावी साबित हो सकते हैं। स्टीव स्मिथ के खिलाफ भी उनका रिकॉर्ड शानदार है। कहा जा रहा है कि रोहित शर्मा को मोहम्मद सिराज की जगह अश्विन को मौका देना चाहिए। हालांकि, ऐसा होना काफी मुश्किल माना जा रहा है और रोहित प्लेइंग-11 में बदलाव करने के मूड में नहीं दिख रहे हैं।
सूर्यकुमार ने इंग्लैंड के खिलाफ लखनऊ में खेले गए मुकाबले में 49 रन की अहम पारी खेली थी। हालांकि, उसके बाद उन्हें बहुत ही कम मौके मिले और वह उस दौरान अपने नाम के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाए। इसके बावजूद उनका फाइनल में खेलना तय है। अगर उन्हें मौका मिलता है तो वह क्रिकेट के सबसे बड़े मुकाबले में छा जाना चाहेंगे। इस बात की उम्मीद काफी कम है कि रोहित शर्मा प्लेइंग-11 में कोई बदलाव करें।
सवा लाख से ज्यादा दर्शकों के बीच भारत और ऑस्ट्रेलियाई टीम को यह मैच खेलने का अवसर मिला है। दोनों की नजर इसे यादगार बनाने पर होगी। भारत की नजर तीसरी बार विश्व कप चैंपियन बनने पर है। उसने 1983 और 2011 में टूर्नामेंट को अपने नाम किया था।
फाइनल में भारत के सामने ऑस्ट्रेलिया की चुनौती
मतदान की वजह से प्रशासन ने तोड़ा था पुल, अब मार्ग बदलने से रेत में वाहन फंसे कई वाहन
मुरैना। मध्य प्रदेश में शुक्रवार को 230 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ। प्रदेश से लगे अन्य राज्यों के बॉर्डर पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। इस बीच मुरैना जिले में एमपी- यूपी को जोडऩे वाले पुल को प्रशासन ने तोड़ दिया था। ताकि मतदान के दिन बाहरी राज्यों से कोई भी व्यक्ति जिले की सीमा में प्रवेश न कर पाए। लेकिन अब लोगों को पुल टूटने की वजह से अवागमन में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
दरअसल, यह पूरा मामला मुरैना के पिनाहट चंबल घाट पर स्थित प्लाटून पुल का है। पुल टूटने की वजह से सुबह से सभी वाहन चालकों को नीचे से जाना पड़ रहा है। इसकी वजह से कई चार पहिया वाहन रेत में दबकर फंसते दिखे। वहीं, कई घंटों तक जाम की स्थिति बनी रही। जिसके बाद ट्रैक्टर की मदद से वाहनों को खींचकर निकाला गया। तब जाकर यातायात बहाल हुआ।
थानों में जमा 8 हजार 496 लाइसेंसी हथियार
भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले जमा कराए लाइसेंसी हथियार चुनाव परिणामों की घोषणा के सात दिनों बाद वापस किए जाएंगे। चुनाव से पहले सभी तरह के लाइसेंसी हथियार के लाइसेंस समाप्त होने के चलते हथियारों को पुलिस थाने या गन शॉप पर जमा कराया गया था। इसके तहत राजधानी के 10 हजार 658 लाइसेंसी हथियार में से 8 हजार 496 लाइसेंसियों ने अपने-अपने हथियार जमा कराए हैं। इन सभी लोगों को 3 दिसंबर को चुनाव परिणामों की घोषणा के 7 दिन बाद वापस दे दिए जाएंगे। इसके लिए उन्हें किसी भी तरह के नए आदेश की जरूरत नहीं होगी। जिसे जहां पर भी लाइसेंसी हथियार जमा किए हैं, वे वहां जाकर सीधे इन्हें वापस ले सकेंगे। कलेक्टर आशीष सिंह ने निर्देशों का पालन नहीं करने पर इस बार 102 की लाइसेंस निरस्त, जबकि 38 लाइसेंसी हथियार जप्त हुए थे। बता दें कि मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद बतौर सुरक्षा के लिए सभी लाइसेंसी हथियार जमा कराए गए थे।
डीपफेक ने बदलकर रख दिया असली नकली का रंग, अब सरकार के लिए भी दर्द बनी
TIO खास खबर
नई दिल्ली। वैष्णव ने यह भी स्पष्ट किया कि आईटी अधिनियम के तहत मंचों को वर्तमान में जो ‘सुरक्षित हार्बर प्रतिरक्षा’ प्राप्त है, वह तब तक लागू नहीं होगी जब तक कि वे पर्याप्त कार्रवाई नहीं करते। इससे पहले शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगाह किया था कि कृत्रिम मेधा (एआई) द्वारा बनाए गए डीपफेक बड़े संकट का कारण बन सकते हैं और समाज में असंतोष पैदा कर सकते हैं। उन्होंने मीडिया से इसके दुरुपयोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने और लोगों को शिक्षित करने का आग्रह किया। हाल ही में प्रमुख अभिनेताओं को निशाना बनाने वाले कई डीपफेक वीडियो वायरल हुए, जिनसे आक्रोश फैल गया। हालांकि इसकी शुरुआत भाजपा के कुछ छुटभैये नेताओं ने ही की थी और सरकार के लिए यह चुनौती बनते जा रहे हैं। अब सरकार के लिए जब गले की हड्डी बन गई है तब सरकार जाग रही है।
केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्री अश्विनी वैष्णव ने शनिवार को कहा कि सरकार जल्द ही डीपफेक मुद्दे परसोशल मीडिया मंचों से चर्चा करेगी और अगर मंचों ने इस संबंध में पर्याप्त कदम नहीं उठाए तो उन्हें आईटी अधिनियम के ‘सेफ हार्बर’ प्रतिरक्षा खंड के तहत संरक्षण नहीं मिलेगा। वीडियो में किसी व्यक्ति के चेहरे या शरीर को डिजिटल रूप से बदलने की डीपफेक कहते हैं। मशीन लर्निंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता से बने ये वीडियो किसी को भी आसानी से धोखा दे सकते हैं। वैष्णव ने संवाददाताओं से कहा कि सरकार ने हाल ही में डीपफेक मुद्दे पर कंपनियों को नोटिस जारी किया था और प्लेटफार्मों ने जवाब भी दिया। उन्होंने कहा कि लेकिन कंपनियों को ऐसी सामग्री पर कार्रवाई करने में अधिक आक्रामक होना होगा। वैष्णव ने संवाददाताओं से कहा, वे कदम उठा रहे हैं…लेकिन हमें लगता है कि कई और कदम उठाने होंगे।
..और हम बहुत जल्द …शायद अगले 3-4 दिनों में सभी मंचों की एक बैठक करने जा रहे हैं। हम उन्हें इस पर विचार-मंथन के लिए बुलाएंगे और सुनिश्चित करेंगे कि मंच इसे (डीपफेक) रोकने के लिए पर्याप्त प्रयास करें और अपने तंत्र को साफ़ करें। यह पूछे जाने पर कि क्या बैठक के लिए मेटा और गूगल जैसे बड़े मंचों को बुलाया जाएगा, मंत्री ने सकारात्मक जवाब दिया।
वैष्णव ने यह भी स्पष्ट किया कि आईटी अधिनियम के तहत मंचों को वर्तमान में जो ‘सुरक्षित हार्बर प्रतिरक्षा’ प्राप्त है, वह तब तक लागू नहीं होगी जब तक कि वे पर्याप्त कार्रवाई नहीं करते। इससे पहले शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगाह किया था कि कृत्रिम मेधा (एआई) द्वारा बनाए गए डीपफेक बड़े संकट का कारण बन सकते हैं और समाज में असंतोष पैदा कर सकते हैं। उन्होंने मीडिया से इसके दुरुपयोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने और लोगों को शिक्षित करने का आग्रह किया। हाल ही में प्रमुख अभिनेताओं को निशाना बनाने वाले कई डीपफेक वीडियो वायरल हुए, जिनसे आक्रोश फैल गया।
मप्र सीएम का ‘ताज’ या रेस से आउट-पीएम मोदी या चुनावी समीकरण कौन तय करेगा शिवराज का कद?
TIO खास खबर
अगर मध्य प्रदेश में बीजेपी हार जाती है तो क्या राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहानकी राजनीतिक पारी का भी अंत हो जाएगा? अगर बीजेपी जीतती है तो भी क्या वह मुख्यमंत्री बनेंगे? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो 17 नवंबर को मतदान के लिए तैयार मध्य प्रदेश में पूछे जा रहे हैं. इन सवालों का जवाब दो नेताओं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान के बीच के जटिल समीकरण पर निर्भर करता है. चुनावी तौर पर देखें तो पीएम मोदी और सीएम शिवराज भाजपा के सबसे सफल राजनेताओं में से हैं. जहां मोदी पार्टी के सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले प्रधानमंत्री हैं, वहीं शिवराज बीजेपी के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं.
दोनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पृष्ठभूमि से आने वाले ओबीसी नेता हैं, लेकिन दोनों की राजनीतिक शैली एक-दूसरे से जुदा है. जहां मोदी ने बहुत विशाल छवि बना ली है, वहीं शिवराज ने विनम्र और सहज ‘मामाजी’ की छवि कायम रखी है.
दोनों नेताओं के बीच सटीक समीकरण बता पाना मुश्किल है. उनके बीच कोई दुश्मनी नहीं रही है. हालांकि, यह सच है कि मोदी के पीएम बनने के बाद से शिवराज चौहान के कद में कटौती हुई है.
उन्हें हमेशा एक जिम्मेदार और मेहनती राजनेता के रूप में जाना जाता है, लेकिन किस्मत और सही समय पर सही जगह पर होना, शिवराज चौहान की राजनीतिक यात्रा में खास फैक्टर रहे हैं.
शिवराज कॉलेज के दिनों में ही राजनीति में आ गए थे, पहले अपने कॉलेज के छात्र संघ में एक नेता के रूप में छात्र राजनीति में कदम रखा और फिर इमरजेंसी के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए. उन्होंने भारतीय जनता युवा मोर्चा में पद संभाला और फिर 1990 की बीजेपी लहर में बुधनी से विधायक बने.
उस साल के अंत में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की भोपाल यात्रा के दौरान उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन से शिवराज को पहचान मिली. ओबीसी आरक्षण के लिए वीपी सिंह के दबाव ने भी बीजेपी को शिवराज जैसे ज्यादा ओबीसी चेहरों को आगे बढ़ाने के लिए मजबूर किया था, जो ओबीसी किरार समुदाय से आते हैं.
शिवराज को अपने अगले ब्रेक के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा. 1991 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने दो सीटों-उत्तर प्रदेश की लखनऊ और मध्य प्रदेश की विदिशा से चुनाव लड़ा. दोनों में जीत के बाद वाजपेयी ने विदिशा सीट खाली कर दी. बीजेपी ने उपचुनाव में शिवराज चौहान को उतारा, जिसे उन्होंने आसानी से जीत लिया और महज 32 साल की उम्र में सांसद बन गए.
उनकी जीत आश्चर्यजनक नहीं थी क्योंकि विदिशा बीजेपी के पूर्ववर्ती जनसंघ के दिनों से ही एक मजबूत हिंदुत्व समर्थक सीट रही है. जनसंघ ने 1967 और 1971 में यहां से जीत हासिल की थी.
उन्होंने 1996, 1998, 1999 और 2004 में फिर यह सीट जीती. साल 2003 में फायरब्रांड नेता उमा भारती के नेतृत्व में बीजेपी मध्य प्रदेश में सत्ता में आई लेकिन एक साल से भी कम समय के अंदर कर्नाटक के हुबली में 1994 के दंगा मामले में उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया.
इसके चलते उन्हें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. उनकी जगह वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर ने ली, लेकिन गौर प्रभाव नहीं छोड़ पाए और 2005 में गौर की जगह शिवराज को लाया गया.
इस दौरान पार्टी में उमा भारती के समीकरण तेजी से खराब होते गए. लालकृष्ण आडवाणी के साथ उनका सार्वजनिक विवाद हुआ और उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया. बार-बार ‘कारण बताओ नोटिस’ की अनदेखी करने के बाद उन्हें बीजेपी से निकाल दिया गया. उन्होंने 2006 में भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया. 2008 के चुनाव में इससे बीजेपी को हालांकि थोड़ा नुकसान हुआ, लेकिन वह शिवराज को सत्ता में वापसी से नहीं रोक सकीं.
साल 2011 में उमा भारती की पार्टी में वापसी हुई लेकिन शिवराज को आश्वासन दिया गया कि वह मध्य प्रदेश की राजनीति से दूर रहेंगी. इसकी जगह उन्हें 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी का चेहरा बनाया गया, जो दो दशक में राज्य में बीजेपी के सबसे खराब प्रदर्शनों में से एक था.
उदाहरण के लिए भूमि अधिग्रहण विधेयक का मसौदा तैयार करने के दौरान राज्यों से सलाह लेने की कोई जरूरत नहीं थी, फिर भी तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने शिवराज से इनपुट लिया. संसद में विधेयक पेश करते समय जयराम ने दलीय सीमा से ऊपर उठकर इन संशोधनों को ‘शिवराज चौहान संशोधन’ कहा था.
हालांकि, उमा भारती को राज्य से बाहर कर दिया गया था, फिर भी वे मन में नाराजगी पाले रहीं. मगर शिवराज के लिए बड़ा खतरा मध्य प्रदेश बीजेपी में उनके अपने समकालीन लोग थे. तत्कालीन राज्य इकाई प्रमुख प्रभात झा के साथ उनके मतभेद जगजाहिर थे और आखिर में झा का दिल्ली तबादला कर दिया गया. कैलाश विजयवर्गीय पर आरोप है कि उन्होंने शिवराज के विरोधियों के साथ गुप्त बैठकें कीं. ऐसी अफवाहें भी थीं कि उनमें से कुछ लोगों ने उन्हें ‘गब्बर सिंह’ का नाम दिया था.
मुख्यमंत्री के रूप में कम से कम अपने शुरुआती 10 सालों के दौरान जब मुसलमानों के साथ रिश्तों की बात आती थी तो शिवराज को तुलनात्मक रूप से ज्यादा समावेशी बीजेपी नेता के रूप में देखा जाता था.
मोदी के उलट, जिन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में एक मुस्लिम शख्स द्वारा उन्हें दी गई टोपी पहनने से इनकार कर दिया था, शिवराज को टोपी पहने मुस्लिम समारोहों में शामिल होते देखा गया था. नीचे दी गई यह तस्वीर 2013 में ईद-उल-फितर की है.
शिवराज की कई योजनाएं मुसलमानों में भी काफी लोकप्रिय हुईं जैसे कि कन्या विवाह एवं निकाह योजना, जिसमें लड़कियों की शादी पर नकद राशि दी जाती है. राज्य सरकार की तीर्थ दर्शन योजना में अजमेर शरीफ भी शामिल है.
शिवराज के नजरिये की वजह से ही बीजेपी ने 2018 के विधानसभा चुनावों में 16 फीसद मुस्लिम वोट (सीएसडीएस के आंकड़े के अनुसार) हासिल किए, जो किसी भी राज्य में पार्टी का सबसे बड़ा हिस्सा है.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने जून 2013 में यह कहकर शिवराज को मोदी के खिलाफ पेश कर दिया कि मोदी को विरासत में एक विकसित राज्य मिला” जबकि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को राज्य के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ी.
बताते हैं कि उस साल की शुरुआत में आडवाणी ने शिवराज को बीजेपी के संसदीय बोर्ड में शामिल करने की कोशिश की थी, ऐसा कहा जाता है कि इस कोशिश को मोदी और तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नाकाम कर दिया था.
अगस्त 2013 में एक और विवाद हुआ जब शिवराज की मौजूदगी में बॉलीवुड अभिनेता रजा मुराद ने समावेशी नहीं होने के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज किया और उन्हें एमपी के मुख्यमंत्री से सबक सीखने को कहा. उन्होंने ईद पर मुसलमानों को बधाई देते समय टोपी पहनने के लिए शिवराज की प्रशंसा की.
मामला निपट गया होता लेकिन शिवराज की पुरानी आलोचक उमा भारती ने इसका इस्तेमाल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री से हिसाब बराबर करने और उन्हें मोदी के खिलाफ खड़ा करने के लिए किया.
मैं बहुत आहत हूं कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के बगल में खड़े एक सी-ग्रेड अभिनेता ने नरेंद्र मोदी का मजाक उड़ाया. मैं अचंभित हूं कि यह कैसे हुआ. उन्होंने मुस्लिम टोपी पहनने के लिए शिवराज की आलोचना भी की थी.
इस घटना के कुछ महीनों बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में, शिवराज ने अपने अभियान में मोदी के सलाहकारों के दखल का कथित तौर पर विरोध किया, यहां तक कि प्रचार सामग्री में उनका नाम शामिल करने से भी इनकार कर दिया.
शिवराज चौहान के करीबी सूत्रों का कहना है कि कभी भी उनका इरादा संभावित पीएम उम्मीदवार के रूप में अपना नाम उछालने या मोदी के लिए चुनौती बनने का नहीं था. मध्य प्रदेश के एक बीजेपी विधायक नाम न छापने की शर्त के साथ कहते हैं,
मुझे लगता है कि वह (शिवराज चौहान) सिर्फ इतना चाहते थे कि मध्य प्रदेश को चलाने में उन्हें खुली छूट मिले. यह हमेशा उनकी मुख्य प्राथमिकता रही है.
2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने बीजेपी सहित देश में राजनीतिक परिदृश्य को अपने हिसाब से ढालना शुरू कर दिया. सत्ता केंद्रों का आकार छोटा कर दिया गया, कई प्रमुख नेताओं को किनारे लगा दिया गया.
शिवराज के कुछ विरोधियों को मोदी और शाह के तहत प्रमुखता मिली. इनमें सबसे उल्लेखनीय नाम कैलाश विजयवर्गीय का है, जिन्हें 2014 के हरियाणा चुनावों के लिए बीजेपी प्रभारी बनाया गया था और बाद में पार्टी का महासचिव बनाया गया.
उमा भारती 2014 में केंद्र सरकार में मंत्री बनीं. प्रभात झा का भी कद बढ़ गया. फिर दो और विरोधी प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते 2019 में मंत्री बनाए गए.
उनकी यह भी दलील है कि बीजेपी की हार में योगदान देने वाली कुछ वजहों पर शिवराज का वश नहीं था- नोटबंदी और त्रस्ञ्ज दोनों केंद्र सरकार के फैसले थे, एससी और एसटी (अत्याचार) कानून को कमजोर करने का काम सुप्रीम कोर्ट ने किया, जिससे एससी/एसटी तबका नाराज हो गया. बदलावों को पलटने वाला कानून बनाने का फैसला केंद्र सरकार द्वारा लिया गया और इससे दबंग जातियां नाराज हो गईं. 2019 में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके वफादार विधायकों ने कांग्रेस से बगावत कर दी और राज्य में कमलनाथ सरकार गिरा दी. बीजेपी के पास नाजुक बहुमत होने के कारण पार्टी आलाकमान को शिवराज चौहान की शरण में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. लेकिन चूंकि सिंधिया की एंट्री करीब-करीब पूरी तरह केंद्र की बदौलत हुई थी, इसलिए साफ था कि शिवराज की नई पारी का श्रेय मोदी और शाह को जाना था. शिवराज चौहान ने मोदी और शाह के नेतृत्व में बीजेपी के वैचारिक रूप से ज्यादा कट्टर तौर-तरीकों को अपनाने की भी कोशिश की. मुसलमानों के प्रति समावेशी नजरिये का त्याग कर दिया गया है. मिलनसार ‘मामा’ की जगह ‘बुलडोजर मामा’ ने ले ली है. वहीं तबलीगी जमात, जिसने एक दशक पहले शिवराज की तारीफ में कशीदे पढ़े थे, पहली कोविड लहर के दौरान उनके जुबानी हमलों का शिकार हुई.
आज शिवराज लगभग पूरी तरह बीजेपी आलाकमान के रहमो-करम पर हैं. एक ऐसे नेता से, जिसने कथित तौर पर 2013 में प्रचार सामग्री में मोदी को शामिल करने से इनकार कर दिया था, अब वह 17 साल सरकार चलाने के बावजूद आधिकारिक तौर पर पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में नामित किए जाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं.
हालांकि, इसका कतई यह मतलब नहीं है कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो मोदी और शाह ने शिवराज को बदलने का फैसला ले लिया है. उनकी मुख्य प्राथमिकता 2024 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतना है. अगर इसके लिए शिवराज को सीएम बनाना जरूरी है तो वे ऐसा करेंगे. अगर इसके लिए उन्हें दिल्ली भेजना जरूरी है, तो वे वैसा करेंगे. मौजूदा समय में शिवराज को जाति जनगणना के चलते थोड़ा फायदा हो सकता है, जिसे विपक्ष एक प्रमुख मुद्दा बना रहा है. बीजेपी के लिए मौजूदा समय में अपने इकलौते ओबीसी मुख्यमंत्री को दरकिनार करना आसान नहीं होगा, खासकर तब जबकि विपक्ष राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी के लिए आरक्षण बढ़ाने का वादा कर सकता है.
विरासत में ब्रायन सिलास के मधुर पियानो धुन से मंत्रमुग्ध हुए देहरादून के लोग
देहरादून। TIO
विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2023 के 15वें दिन एवं समापन समारोह के सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभांरंभ श्री रंजन प्रकाश ठाकुर, सीवीओ, ओएनजीसी, रीच विरासत के महासचिव श्री आर.के.सिंह एवं अन्य सदस्यों ने दीप प्रज्वलन के साथ किया।
सांस्कृतिक कार्यक्रम की पहली प्रस्तुति में ब्रायन सिलास द्वारा पियानो वादन की प्रस्तुति दी गई। उन्होंने अपने प्रस्तुति के शुरूआत ’फुल तुम्हें भेजा है खत में ’ की धुन पियानो पर बजाई उसके बाद उन्होंने ’लग जा गले की फिर कहीं’, उसके बाद फिर उन्होंने ’होठों पर ऐसी बात’ धुन बजाया, फिर ’ आ चल के तुझे मैं ले चलूँ.’ एवं अन्य कई गानों के छुन बजायें। ब्रायन सिलास के साथ तबले पर तुलसीराम माधवा और गिटार पर जयदीप लखटकिया ने संगत दिया एवं वे सिलास के साथ पिछले दो दशकों से संगत देते आ रहे हैं।
ब्रायन सिलास जी एक भारतीय पियानो वादक हैं, उन्हें संगीत में उत्कृष्टता के लिए प्रतिष्ठित यश भारती पुरस्कार भी मिल चुका हैं। ब्रायन सिलास जी की वाद्ययंत्र में महारत हासिल करने का अदम्य जुनून ही उन्हें एक महान कलाकार बनाती हैं। ब्रायन के प्रारंभिक वर्ष कानपुर में संगीत परंपरा से जुड़े एक परिवार में बीते, अपने माता-पिता के आग्रह के बावजूद भी उन्होंने संगीत में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया, जैसे-जैसे ब्रायन जी बड़े हुए, संगीत की दुनिया उनके लिए देवी बन गई जिसने उन्हें लगातार मेहनत करने के लिए प्रेरित किया। पियानो के साथ उनके जुड़ाव को लेकर ब्रायन को भारत और विदेशों में दर्शकों से प्रसिद्धि और प्रशंसा मिली।

ब्रायन जी को भारत के 51वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर न्यूयॉर्क के यूएन हॉल में उन्हें पियानो की प्रस्तुति प्रदर्शन के लिए निमंत्रण से सम्मानित किया गया। उन्होंने श्री बिल क्लिंटन के सामने न्यूयॉर्क के रॉकर फ़ेलर सेंटर में इंडो-अमेरिकन सोसाइटी में भी अपनी प्रस्तुति दि । वह ब्रिटेन में भारतीय कमिशन के लिए भी प्रस्तुति दे चुके हैं। उन्होंने अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, मध्य पूर्व, यूरोप और मॉरीशस में कई सफल आयोजनों में भी अपना सहयोग दिया है। ब्रायन सिलास जी के लिए उनका संगीत उनके लिए एक स्तुति है जो की रोमांस, दर्शन, खुशी या उदासी और संगीत के सभी पहलुओं को शामिल करता है। ब्रायन ने संगीत में जो कुछ भी उत्कृष्ट है उसका सार खूबसूरती से दर्शाया है। उन्होंने 20 से भी अधिक एल्बम भी रिलीज़ की हैं। उन्होंने सांस्कृतिक और सामाजिक संवेदनशीलता के प्रति जमीनी स्तर पर पुलिस के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम के हिस्से के रूप में पुलिस कर्मियों को शिक्षित करने के लिए “कोर” नामक एक गैर सरकारी संगठन द्वारा आयोजित एचआईवी एड्स के बारे में जागरूकता के उद्देश्य का समर्थन किया है। ब्रायन के दिल में बच्चों के लिए एक विशेष स्थान है और वह विशेष बच्चों के लिए एक संगठन “तमना” से जुड़े हुए हैं।
सांस्कृतिक कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति में रिकी केज द्वारा अर्थ कॉन्सर्ट आयोजित कि गई। उनकी पहली प्रस्तुति मेरे देश में रहा उसके बाद उन्होंने किसानों को समर्पित…जय किसान नामक गाना प्रस्तुत किया फिर उनके ग्रैमी विजेता एल्बम, साउंड्स ऑफ़ संसार से एक बंदिश जिसका नाम लॉन्गिंग है, एक प्रेम श्रद्धांजलि प्रस्तुत किया उसके बाद उन्होंने डब कुनाकोम….एक दक्षिण भारतीय लय गीत प्रस्तुत किया एवं अगला गाना एक कन्नड़ लोक गीत बंजे होनम्मा रहा। रिकी केज के साथ इंद्रप्रीत सिंह- वोकेलिस्ट, सिद्धार्थ बसरूर -वोकेलिस्ट एवं गिटार, सुधीर यदुवंशी -वोकल, सिद्धार्था बिलमानू -वोकल, रवि चंद्रा- बांसुरी, मंजूनाथन-परक्यूशन, राजेश नायर- साउंड इंजीनियर एवं निशांत वीडियो टेक ने सहयोग किया।
रिकी केज तीन बार ग्रैमी पुरस्कार विजेता भारतीय संगीतकार और एक पर्यावरणविद् हैं। उन्होंने न्यूयॉर्क और जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय सहित 30 से अधिक देशों में प्रदर्शन किया है। दिसंबर 2022 में, केज को यूएनएचसीआर “सद्भावना राजदूत” के रूप में घोषित किया गया था। केज ने अपने करियर की शुरुआत बेंगलुरु स्थित प्रगतिशील रॉक बैंड एंजेल डस्ट के कीबोर्डिस्ट के रूप में की थी। बैंड में दो साल बिताने के बाद, वह पूर्णकालिक संगीतकार बन गए और 2003 में अपना खुद का स्टूडियो, रिवोल्यूशन स्थापित किया। अंतत: उन्होंने 3,000 से अधिक विज्ञापन जिंगल और कन्नड़ फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया। उन्होंने 2011 क्रिकेट विश्व कप उद्घाटन समारोह के लिए संगीत तैयार किया है। राजस्थान सरकार ने उन्हें सेव द चिल्ड्रन के नए वैश्विक अभियान, एवरी लास्ट चाइल्ड के लिए सद्भावना राजदूत के रूप में नामित किया है।
2016 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयॉर्क में एक वैश्विक मानवतावादी कलाकार के रूप में उत्कृष्टता और नेतृत्व पुरस्कार से सम्मानित किया गया और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा हॉल में शांति संसार के अंशों का लाइव प्रदर्शन किया। केज ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने प्रदर्शन का समापन यह कहते हुए किया, “अंत में, मैं स्पष्ट कहना चाहता हूं… जलवायु परिवर्तन वास्तविक है… जलवायु परिवर्तन मानव प्रेरित है। जलवायु परिवर्तन हम सभी को प्रभावित कर रहा है… और हमारा कार्रवाई दुनिया के दूसरी तरफ के देशों को प्रभावित करती है।”
रिकी केज बेंगलुरु में रहते हैं और उन्होंने बेंगलुरु के ऑक्सफोर्ड डेंटल कॉलेज से दंत चिकित्सा की है, लेकिन इसके बजाय उन्होंने संगीत में अपना करियर चुना है। हालांकि केज का काम कई शैलियों का मिश्रण है, उन्होंने कहा है कि उनके काम का सार उनकी भारतीय जड़ों के सौंदर्य को बरकरार रखता है, जो काफी हद तक हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और थोड़ा कर्नाटक संगीत पर आधारित है। उन्होंने अपनी संगीत सीमाओं को लगातार चुनौती देने और आगे बढ़ाने के लिए पाकिस्तानी कव्वाल नुसरत फतेह अली खान और ब्रिटिश गायक पीटर गेब्रियल को प्रेरणा के रूप में उद्धृत किया है। केज एक स्व-सिखाया संगीतकार है।
समापन समारोह को संबोधित करते हुए रिच विरासत के महासचिव श्री आर के सिंह ने कहा कि यह 2023 का जो विरासत है वह एक सफल आयोजन रहा। मैं उन तमाम सहयोगी एवं वॉलिंटियर्स को धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने इसको आज सक्सेसफुल बनाया है, साथ ही साथ मैं अपने स्पॉन्सर, मेहमानों और कलाकारों का भी धन्यवाद अदा करना चाहूंगा कि जिन्होंने विरासत में अपनी प्रस्तुति देकर विरासत को इस मुकाम तक पहुंचा है। उन्होंने मीडिया कर्मियों को भी धन्यवाद दिया कि उनकी मदद और योगदान के बिना विरासत को वह सफलता और प्रशंसा नहीं मिल पाती जो उसे मिल रही है। उन्होंने सांस्कृतिक कार्यक्रम के मकसद के बारे में बात की और कहा ’यह आयोजन विरासत को संरक्षित करने और संस्कृति के प्रसार के लिए आयोजित किया जाता है ताकि लोग पर्यटन के लिए विभिन्न देशों से उत्तराखंड आ सकें।
रीच की स्थापना 1995 में देहरादून में हुई थी, तबसे रीच देहरादून में विरासत महोत्सव का आयोजन करते आ रहा है। उदेश बस यही है कि भारत की कला, संस्कृति और विरासत के मूल्यों को बचा के रखा जाए और इन सांस्कृतिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाया जाए। विरासत महोत्सव कई ग्रामीण कलाओं को पुनर्जीवित करने में सहायक रहा है जो दर्शकों के कमी के कारण विलुप्त होने के कगार पर था। विरासत हमारे गांव की परंपरा, संगीत, नृत्य, शिल्प, पेंटिंग, मूर्तिकला, रंगमंच, कहानी सुनाना, पारंपरिक व्यंजन, आदि को सहेजने एवं आधुनिक जमाने के चलन में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इन्हीं वजह से हमारी शास्त्रीय और समकालीन कलाओं को पुण: पहचाना जाने लगा है।
छत्तीसगढ़ के इन मतदान केंद्रों ने फिर रचा इतिहास
रायपुर। छत्तीसगढ़ प्रदेश का प्रथम विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-1 भरतपुर-सोनहत का आधा एरिया कोरिया और आधा मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले में है। यहां का एक मतदान केंद्र शेराडांड है, जहां सिर्फ पांच मतदाता हैं। इनमें तीन पुरुष और दो महिला हैं।
यह वही मतदान केंद्र हैं, जहां लगभग 15 वर्ष पूर्व सिर्फ दो ही मतदाता पति और पत्नी थे, जिनके लिए पहली बार प्रशासन ने मतदान केंद्र बनाया था। तब यह केंद्र देश में सुर्खियों में रहा। अब परिवार का कुनबा बढऩे के बाद इस परिवार में मतदाताओं की संख्या बढक़र पांच हो गई है।
शेराडांड में एकमात्र यह परिवार जंगल के बीच निवास करता है। यहां कोई भी शासकीय भवन उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण प्रशासन द्वारा चुनाव कार्य संपन्न कराने के लिए झोपड़ी तैयार की जाती है। यहां तक पहुंचने के लिए मतदान दलों को ट्रैक्टर से ले जाया जाता है।
भरतपुर-सोनहत विधानसभा क्षेत्र के मतदान केंद्र क्रमांक-139 केंद्र कांटो में सिर्फ 12 मतदाता हैं। इनमें सात पुरुष औप पांच महिला हैं। यहां अभी तक सडक़ नहीं है। जब से सेराडांड में मतदान केंद्र बना है, तब से 100 प्रतिशत मतदान विधानसभा और लोकसभा चुनाव में होता है।
दिग्विजय ने आरोपी पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की शह होने का लगाया आरोप, कहा- मृतक के परिवार को कांग्रेस गोद लेकर करेगी मदद
भोपाल। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के राजनगर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम सिंह नातीराजा पर मतदान से पहले गुरुवार रात जानलेवा हमला हुआ था। इस दौरान उन्हें बचाने की कोशिश में उनके साथी व ड्राइवर सलमान खान की मौत हो गई थी। हत्या व प्राणघातक हमले के प्रयास के मामले में खजुराहो थाने में बीजेपी प्रत्याशी अरविंद पटेरिया व उनके समर्थकों के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास से संबंधित कई धाराओं में केस दर्ज किया गया है।
वहीं इस मामले में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ङ्ग पर ट्वीट कर पुलिस प्रशासन को आड़े हाथ लिया है। साथ ही आरोपी को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की शह होने का आरोप लगाया है। वहीं पूर्व सीएम ने मृतक के परिवार को कांग्रेस द्वारा गोद लेकर मदद करने की बात भी कही है। दिगिवजय ने कहा सलमान की हत्या की गई है। दोषियों में भाजपा का उम्मीदवार अरविंद पटेरिया भी है। मुझे इस बात की हैरानी है कि इतनी बड़ी घटना के बाद भी छत्तरपुर पुलिस ने कल शाम तक ना तो गाड़ी जब्त की ना दोषियों को गिरफ्तार किया। अरविंद को बीडी शर्मा की शह है और पूरा प्रशासन उसके कहने पर चलता है।
भाजपा प्रत्याशी के समर्थकों पर आरोप
दरअसल सलमान खान निवासी खजुराहो गुरुवार की रात भाजपाइयो द्वारा बांटी जा रही शराब की सूचना मिली थी। जिसके बाद कांग्रेस प्रत्याशी नातीराजा के साथ मौके पर पहुंचे। कांग्रेस प्रत्याशी नातीराजा के मुताबिक रनेफाल रोड अकोना क्षेत्र के पहाड़ी इलाके में रात 2 से 3 बजे के बीच भाजपा समर्थकों ने गाड़ी के सामने अपना वाहन लगाकर गालियां दीं। इस दौरान उन्होंने कहा कि इन लोगों पर गाड़ी चढ़ा दो। इस दौरान बचाने निकले सलमान खान के ऊपर 20-25 लोगों ने धारदार हथियार व डंडों से वार किया। उसके बाद हथियारों से लगातार 6 फायर किए और सलमान के ऊपर गाड़ी चढ़ाकर हमलावर भाग निकले, जिससे सलमान की मौके पर मौत हो गई।
दीपावली के पांच दिन बाद भी प्रदूषित है शहर की हवा, 294 एक्यूआइ
जबलपुर। दीपावली पर हुई आतिशबाजी को पांच दिन बीतने के बाद भी शहर की हवा स्वच्छ नहीं हो पाई है। हवा में प्रदूषण का स्तर 294 पर बना हुआ है जो प्रदूषण बोर्ड के लिहाज से खराब है। हालांकि इसमें कुछ कमी आई है, क्योंकि दीपावली पर वायु गुणवत्ता सूचकांक 331 था, जो बेहद खराब स्थिति मानी जाती है।
वायु प्रदूषण स्थिर होने की एक वजह भारत का क्रिकेट वल्र्डकप का सेमीफाइनल की जीत भी है। शहर में जीत के जश्न मनाने के लिए जमकर आतिशबाजी की गई थी। इधर फ्लाईओवर निर्माण की वजह से धूल-मिट्टी के कण हवा में बने हुए हैं।
वरिष्ठ विज्ञानी डा. एस के खरे ने बताया कि ठंड के समय हवा में उडऩे वाले धूल के कण ऊंचाई पर नहीं जाते हैं और कम ऊंचाई पर ही बने होते हैं इस वजह से धूल-मिट्टी अधिक नजर आती है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण को कम करने के लिए जरूरी है कि निर्माण स्थलों पर लगातार पानी का तीन समय छिडक़ाव किया जाए, ताकि प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।
एयर क्वालिटी इंडेक्स के मुताबिक 100 के भीतर यदि आंकड़ा है तो हवा को साफ माना जाता है। आमतौर पर जबलपुर शहर में प्रदूषण का स्तर 145-180 के बीच होता है जिसके लिए लगातार हो रहे निर्माण कार्य, सडक़ में धूल और वाहनों को जिम्मेदार माना जाता है। दीपावली की आतिशबाजी के बाद स्थिति बिगड़ गई। जबलपुर के मढ़ाताल में लगे एयर क्वालिटी स्टेशन में प्रदूषण का स्तर 294 दर्ज हुआ। इसमें पीएम टेन 191 औसत और पीएम 2.5 का स्तर 118 औसत दर्ज किया गया। यह स्तर प्रदूषण के लिहाज से बहुत ज्यादा है। ऐसी हवा में स्वस्थ्य व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी हो सकती है।
पीएम 10 क्या
प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी डा. आलोक जैन ने कहा कि पीएम 10 के बढऩे का मतलत है कि धूल-मिट्टी के बारीक कण हवा में घुल जाना। ये ऐसे कण होते हैं जो हवा में तैरते समय भी सामान्य रूप से दिखाई देते हैं। पीएम 2.5- पीएम 2.5 में धूल मिट्टी के ऐसे कण जिन्हें सामान्य आंखों ने नहीं देखा जा सकता है इन्हें देखने के लिए उपकरण की मदद ली जाती है। बोर्ड की हो रही निगरानी-मप्र प्रदूषण बोर्ड ने दीपावली के एक हफ्ते पहले से 19 नवंबर तक लगातार 24-24 घंटे वायु प्रदूषण के आंकड़ों की मॉनीटरिंग कर रहा है। विजय नगर चौक और मढ़ाताल, मौसम विभाग, रामपुर, हाई कोर्ट चौक, रिछाई में आंकड़ों पर नजर रखने के लिए तीन-तीन लोगों की टीम लगी है। यहां आंकड़ों को मैन्युअली जांचा जा रहा है। बोर्ड अधिकारी 19 नवंबर तक जांच के नतीजों की रिपोर्ट बनाकर मुख्यालय भेजेंगे।
ईवीएम में कैद प्रत्याशियों की किस्मत, कड़ी सुरक्षा के बीच रखी सभी मशीनें
भोपाल। मध्य प्रदेश में सरकार चुनने के लिए होने वाले विधानसभा चुनाव की वोटिंग 17 नवंबर यानि कि कल पूरी हो चुकी है। वोटिंग होने के बाद ईवीएम मशीनों को सुरक्षित तरीके से जमा कराने का काम देर रात तक चलता रहा। वोटिंग के बाद ईवीएम और वीवीपैट मशीन स्ट्रांग रूम में सुरक्षित पहुंचाई गई। तीन लेयर के सुरक्षा घेरे के अंदर जनादेश को रखा गया है। सेंट्रल फोर्स, सीआरपीएफ, सीएपीएफ और स्थानीय प्रशासन के जिम्मे सुरक्षा है। वहीं ईवीएम पर तीसरी आंख का भी पहरा है।
एमपी में 230 सीटों पर प्रत्याशियों की किस्मत शुक्रवार को ईवीएम में पूरी कैद हो गई है। इन सभी प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला अब 3 दिसबंर को होगा जिसका इंतजार एमपी की जनता को बेसब्री से है। बता दें कि इस बार एमपी में रिकॉर्ड मतदान हुआ और लोकतंत्र के पर्व को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिला।
बता दें प्रदेश में बने कुल 64 हजार 626 मतदान केंद्रों में बंपर वोटिंग हुई। 230 विधानसभा सीटों पर रिकॉर्ड 76.22 फीसदी मतदान हुआ है। ये आंकड़ा पिछले चुनाव से ज्यादा है। 2018 के चुनाव में 75.63त्न वोटिंग हुई थी। प्रदेश की सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ रहे 2533 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है, जिसका फैसला अब 3 दिसंबर को आएगा।