Home Blog Page 43

गोवा में भी दल-बदल का हौवा

0

राकेश अचल

चौथे दशक में चल रहे गोवा राज्य में सब  कुछ ठीक-ठाक चल रहा था ,लेकिन यहां भी भाजपा ने कांग्रेस विधायकों के दाम लगाकर हलचल पैदा कर दी.दल-बदल के हौवे ने कांग्रेस की नींद उड़ा दी .कांग्रेस को आनन-फानन में विधानसभा में अपने नेता को हटाना पड़ा क्योंकि विधायकों की बिक्री का माध्यम प्रतिपक्ष के नेता ही कथित रूप से बने थे .
गोवा में भाजपा की सरकार है और उसने सौ दिन पूरे भी कर लिए हैं. भाजपा को सरकार चलाने के लिए अभी किसी के समर्थन की कोई जरूरत नहीं थी, किन्तु भाजपा कांग्रेस को निर्मूल करने के अपने राष्ट्रीय अभियान के तहत गोवा में भी कांग्रेस के विधायक खरीदने पर आमादा हो गयी. आमादा क्या हो गयी उसने सौदा भी कर लिया लेकिन पोल खुलने से सब खेल खराब हो गया .कांग्रेस ने अपनी पार्टी के बिभीषण को चिन्हित कर पद से हटा दिया . गोवा मेंकांग्रेस के  प्रभारी दिनेश गुंडू राव ने कहा, गोवा में पार्टी को कमजोर करने के लिए भाजपा के साथ मिलकर हमारे ही कुछ नेताओं ने साजिश की थी। वे विधायकों को तोड़ना चाहते थे। इसमें हमारे नेता प्रतिपक्ष माइकल लोबो और दिगंबर कामत शामिल थे।


अब सवाल ये है कि रोजाना देश को नए पाठ पढ़ने वाली भाजपा आखिर इतनी उतावली क्यों है कि गोवा में जनादेश से बनी अपनी सरकार चलाने  में दिलचस्पी लेने के बजाय कांग्रेस के विधायकों को खरीदने में जुट गयी है .कांग्रेस नेता राव की मानें तो भाजपा ,कांग्रेस के दो तिहाई विधायकों को तोड़ना चाहती थी। विधायकों को बड़ी रकम ऑफर की गई। राव ने कहा कि मुझे आश्चर्य है कि  इतनी बड़ी रकम ऑफर की गई। लेकिन मेरे 6 विधायक अडिग रहे। मुझे उनपर गर्व है।
आश्चर्य तो पूरे देश कि है कि आखिर भाजपा को हो क्या गया है ? भाजपा क्यों देश में दलबदल का प्रतीक बन गयी है ? भाजपा क्यों हर जगह विधायक   खरीदने में जुटी हुई है .भाजपा ने हाल ही में एक बड़ा सौदा महाराष्ट्र में शिव सेना के विधायकों का किया और वहां महाराष्ट्र अगाडी की सरकार गिराकर अपनी सरकार बना ली .गोवा में भाजपा की सरकार पहले से है इसलिए वहां कांग्रेस विधायकों  को खरीदने की कोशिश प्रमाणित कर चुकी है कि भाजपा की दाढ़ में खून लग चुका है .भाजपा को जरूरत हो या न हो वो खरीद-फरोख्त में ही सुखानुभूति करती है.


आपको याद होगा कि गोवा में दल-बदल की बीमारी असाध्य हो गयी है. यहां कब,किसकी सरकार बन जाये और कब किसकी सरकार गिर जाये, कहा नहीं जा सकता .गोवा में कांग्रेस के कुल 11 ही विधायक हैं। अगर इनमें से 9 भाजपा में चले जाते हैं तो केवल दो विधायक कांग्रेस के पास रह जाएंगे।  जिन माइकल लोबो पर साजिश का आरोप लगाया गया है और उन्हें नेता प्रतिपक्ष पद से हटाया गया है उन्होंने ने ही चुनाव के बाद कहा था कि जल्द ही गोवा में कांग्रेस सरकार बनाएगी। उन्होंने कहा था कि 10 महीने में बदलाव देखने को मिल जाएगा।
जैसा कि मैंने कहा कि विधायकों   कि खरीद -फरोख्त के मामले में गोवा देश का अग्रणीय राज्य है. तीन साल पहले भी कुछ ऐसी ही घटना हो चुकी है। कांग्रेस के 10 विधायकों ने पाला बदल लिया था और वे भाजपा में शामिल हो गए थे। ऐसे में इस बार सावधानी बरती गई और राहुल गांधी के सामने प्रत्याशियों ने जीत के बाद पाला न बदलने की शपथ ली थी। हालांकि इसका कोई खास मतलब  निकलता नजर नहीं आ रहा है।गोवा में कांग्रेस मार्च 2012  में सत्ताच्युत हुई थी और तभी से भाजपा कांग्रेस को लंगड़ा बनाने  में लगी हुई है .एक समय गोवा में कांग्रेस के विधायक बेचने का आरोप दिग्विजय सिंह पर भी लग चुका है. उस समय वे राज्य के प्रभारी थे .
गोवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष गिरीश चोडनकर ने दावा किया है कि विधायकों को भाजपा में शामिल होने के लिए 40 करोड़ रुपए की पेशकश की गई है। चोडनकर ने बताया कि बिजनेसमैन और कोयला माफियाओं द्वारा कांग्रेस विधायकों को फोन किया जा रहा है।भाजपा ने जिन 3 विधायकों से संपर्क किया है, उन्होंने कांग्रेस के गोवा प्रभारी दिनेश गुंडू राव से इस बात का खुलासा किया।हालांकिभाजपा  ने आरोपों को खारिज कर दिया है। भाजपा के  प्रदेश अध्यक्ष सदानंद तनावडे ने कहा कि कांग्रेस का आरोप निराधार है।
दरअसल गोवा में भाजपा की सरकार तो है लेकिन आत्मनिर्भर सरकार नहीं है. उसे आत्मनिर्भर होने के लिए अभी भी एक और विधायक की जरूरत है .गोवा विधानसभा में 40 सीटें हैं। कांग्रेस के पास 11 और भाजपा के पास 20 विधायक हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी के 2, निर्दलीय 3 विधायक हैं। गोवा विधानसभा चुनाव 2022 में राज्य में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था। भाजपा  को राज्य की कुल 40 में से 20 सीटें मिली थीं, जबकि बहुमत का आंकड़ा 21 है। इस तरह गोवा में बीजेपी पूर्ण बहुमत से महज एक कदम दूर रह गई। हालांकि भाजपा नेताओं ने निर्दलीय के सहयोग से राज्य में सरकार बना ली थी।
मजे की बात ये है कि गोवा कि जनता भाजपा को बार-बार ख़ारिज करती है लेकिन भाजपा भी बार-बार जनता को ठेंगा दिखाकर प्रदेश में अपनी सरकार बना लेती है .आपको जानकार हैरानी होगी कि पिछले चुनाव में गोवा के दोनोंउप मुख्य मंत्री  चुनाव हार गए थे। उप मुख्यमंत्री  मनोहर अजगांवकर को विपक्ष के नेता व कांग्रेस उम्मीदवार दिगंबर कामत ने मडगांव विधानसभा सीट से करीब 6,000 मतों से हराया था जबकि दूसरे उप मुख्य मंत्री चंद्रकांत कावलेकर क्यूपेम सीट से कांग्रेस प्रत्याशी अल्टोन डी’कोस्टा से हार गए थे। कवळेकर पुराने दल बदलू हैं ,वे  2017 में कांग्रेस के टिकट पर यहां से जीते थे। इसके बाद वह 9 कांग्रेस विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हुए थे और उन्हें उप मुख्यमंत्री का पद दिया गया था। पहली बार इस सीट से चुनाव लड़ने वाले कोस्टा ने कावलेकर को 3,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया था।
देश में जनादेश को एक जींस बनाने वाली भाजपा के पास इस समय पैसे की कोई कमी नहीं है. देश में भाजपा को सबसे जयादा चन्दा मिलता है इसीलिए भाजपा भी विधायकों को मुंहमांगी कीमत पर खरीदने का माद्दा रखती है .मध्यप्रदेश में भाजपा पर 35 -35  करोड़ में विधायक खरीदने का आरोप लगा था.महाराष्ट्र में शिवसेना ने 50 -50  करोड़ में कथित रूप से अपने विधायक बेचे .गोवा में ये दर 40 -40  करोड़ रूपये रही .देश की सियासत से कांग्रेस का सफाया करने कि भाजपा कि ये सनक लोकतंत्र की जड़ों में मठा डाल रही है किन्तु भाजपा के भीतर और बाहर कोई भी ऐसा नेता नहीं है जो इस धंधे को रोक सके .अब देश में वही होगा जो राम जी ने रच कर रखा हुआ है.

जापान नहीं भूलेगा पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे का बलिदान

0

TIO RAKESH ACHAL

जापान के पूर्व पीएम शिंजो आबे दुनिया में चौतरफा फैली नफरत की भेंट चढ़ गए। उनकी हत्या ठीक उसी तरह हुई जिस तरह 74 साल पहले भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हुई थी। शिंजो आबे और गांधी में फर्क सिर्फ इतना था कि वे खानदानी राजनीतिज्ञ थे और महात्मा नहीं थे।
दुनिया में जापानी राष्ट्रवाद सबसे अलग और अनुकरणीय माना जाता है। जापान बुद्ध का अनुयाई देश है। वहां हिंसा अतीत का काला अध्याय है। जापान ने एटमी हथियारों की मार को झेला है। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि जापान में भी कोई गांधी की तरह गोली का शिकार बनेगा। लेकिन हत्यारे भूल जाते हैं कि बारूद कभी मनुष्यता को भस्मीभूत नहीं कर सकती।

शिंजो क्या थे और क्या नहीं थे, ये बताने की जरूरत नहीं है। उन्होंने अपने कार्यकाल में जापान को बनाने में अभूतपूर्व योगदान दिया। उन्होंने जापान को एक अलग औपहचान देने की कोशिश की और शायद यही कोशिश शिंजो की हत्या की एक वजह हो। जापानी मीडिया के पास भारतीय मीडिया की तरह तीसरी आंख नहीं है अन्यथा अब तक हम शिंजो की हत्या का सच जान चुके होते। भारत -जापान संबंध बनाने में शिंजो की लंबी भूमिका रही है। मोदी युग के पहले से वे भारत के खैर ख्वाह रहे हैं। डॉ मनमोहन सिंह के जमाने से शिंजो का भारत आना जाना लगा रहा। मोदी युग में ये प्रगाढ़ता और बढ़ रही थी। शिंजो की छवि बड़ी मोहक रही है। उन्हें सत्ताच्युत नहीं किया गया था। वे स्वास्थ्य कारणों से खुद कुर्सी से हटे थे। ऐसा कम ही होता है। शिंजो ने भारत के साथ अनेक परियोजनाओं पर काम शुरू किया था, वे अब अधर में हैं। उनकी हत्या से भारत स्तब्ध है । शिंजो का जाना इस बात का प्रमाण है कि फांसीवाद जिंदा है। उसे मारना आसान नहीं। ये लड़ाई अनवरत जारी है। भारत के लिए नफरत पहले से एक बड़ा मुद्दा है।

संदर्भ के लिए बता दूं कि एक प्रमुख राजनीतिक परिवार में जन्मे आबे 1993 के चुनाव में प्रतिनिधि सभा के लिए चुने गए थे। सितंबर 2005 में उन्हें प्रधान मंत्री और एलडीपी अध्यक्ष के रूप में बदलने से पहले सितंबर 2005 में प्रधान मंत्री जुनिचिरो कोइजुमी द्वारा मुख्य कैबिनेट सचिव नियुक्त किया गया था। बाद में उन्हें राष्ट्रीय डायट के एक विशेष सत्र द्वारा प्रधान मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया, जो जापान के सबसे युवा और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पैदा होने वाले पहले व्यक्ति प्रधान मंत्री बने। आबे ने कार्यालय में एक वर्ष के बाद ही प्रधान मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था जिसका कारण चिकित्सा जटिलताताएँ थीं, ऐसा उनकी पार्टी के उस वर्ष के हाउस आॅफ काउंसिलर्स चुनाव हारने के तुरंत बाद हुआ था।

भंवरलाल और कन्हैयालाल एक ही इंसान के दो नाम हैं !

0

श्रवण गर्ग

भंवरलाल और कन्हैयालाल दो अलग-अलग इंसान नहीं हैं। दोनों एक जैसे ही हाड़-मांस के जीव थे। दोनों के दिल एक जैसे ही धड़कते थे। उनके रहने के ठिकाने भी एक दूसरे से ज़्यादा दूर नहीं थे। दोनों को ही मार डाला गया।सिर्फ़ दोनों को मारने वाले और उनके तरीक़े ही अलग थे। राजस्थान के उदयपुर में कन्हैयालाल को जिस बर्बरता से मारा गया उसने हमारी आत्माओं को हिला दिया। हम कन्हैयालाल को मारे जाने से ज़्यादा विचलित और भयभीत हैं। हमने अपने को टटोलकर नहीं देखा कि भंवरलाल को जब मध्यप्रदेश के नीमच शहर में मारा गया तब हमारी प्रतिक्रिया उतनी तीव्र और उत्तेजनापूर्ण क्यों नहीं थी ? यह भी हो सकता है कि हम भंवरलाल की हत्या को अब तक भूल ही गए हों।

नागरिकों की दहशत भरी याददाश्त में या तो व्यक्तियों को मारे जाने का तरीक़ा होता है या हमलावर और मृतक की धार्मिक पहचान या फिर दोनों ही। एक तीसरी स्थिति अख़लाक़ जैसी भी हो सकती है जिसके प्रति बहुसंख्यक प्रतिक्रिया संवेदनशून्यता की थी यानी पूर्व में उल्लेखित दोनों स्थितियों से भिन्न। हम कई बार तय ही नहीं कर पाते हैं कि अमानवीय और नृशंस तरीक़ों से अंजाम दी जाने वाली मौतों के बीच किस एक को लेकर कम या ज़्यादा भयभीत होना चाहिए। नागरिक भी ऐसे अवसरों पर हुकूमतों की तरह ही बहुरूपिये बन जाते हैं।

कारणों को पता करने की कभी कोशिश नहीं की गई कि भंवरलाल की मौत ने व्यवस्था और नागरिकों को अंदर से उतना क्यों नहीं झकझोरा जितना उदयपुर को लेकर महसूस किया या करवाया जा रहा है ! भंवरलाल को घर से बाहर निकलते वक्त रत्ती भर भी अन्दाज़ नहीं रहा होगा कि वह कभी मारा भी जा सकता है। हरेक आदमी भंवरलाल की तरह ही रोज़ घर से बाहर निकलता है। इसके विपरीत, कन्हैयालाल को अपनी सिलाई की दुकान पर काम करते हुए भय या आशंका बनी रहती थी कि उसके साथ कुछ अप्रिय घट सकता है।

भाजपा की निलम्बित प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा की गई टिप्पणी से कन्हैयालाल का सम्बंध जाने-अनजाने या असावधानी से जुड़ गया था। उसने अपने को असुरक्षित महसूस करते हुए पुलिस से सुरक्षा की माँग भी की थी। सुरक्षा प्राप्त होना संदेहास्पद भी था। सरकारें प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा नहीं प्रदान कर सकतीं पर प्रत्येक नागरिक से अपने लिए सुरक्षा की माँग अवश्य कर सकतीं हैं। भंवरलाल पूरी तरह से बेफ़िक्र था। न तो उसका संबंध किसी आपत्तिजनक टिप्पणी से था और न ही उसने किसी तरह की सुरक्षा की माँग की थी। वह फिर भी मारा गया। आश्चर्यजनक यह है कि दोनों ही हत्याओं के वीडियो बनाकर जारी किए गए।

हुकूमतों के कथित पक्षपात के विपरीत मेरी आत्मा भंवरलाल और कन्हैयालाल दोनों के साथ बराबरी से जुड़ी है। उसके पीछे कारण भी हैं। मैं दोनों हत्याओं की नृशंसता के बीच एक सामान्य नागरिक की हैसियत से कोई फ़र्क़ नहीं करना चाहता हूँ। उदयपुर मेरे पिता और पुरखों का शहर है। पिता की अंगुली पकड़कर बचपन में उदयपुर घूमता रहा हूँ। वहाँ अब भी जाता रहता हूँ। नीमच मेरे ननिहाल से जुड़ा हुआ शहर है। माँ के साथ वहाँ जाता रहता था। अब अकेला जाता हूँ। उदयपुर और नीमच के बीच सिर्फ़ सवा सौ किलोमीटर की दूरी है।

मैं अनुमान लगा सकता हूँ कि भंवरलाल और कन्हैयालाल एक जैसे नेक इंसान रहे होंगे। दोनों को ही दो अलग-अलग जगहों पर एक जैसी नज़र आने वाली परिस्थितियों का शिकार होना पड़ा। कन्हैयालाल के चले जाने का दुःख मनाते हुए भंवरलाल को इसलिए विस्मृत नहीं होने देना चाहिए कि अगर चीजें नहीं बदली गईं तो सड़क पर चलने वाला कोई भी व्यक्ति उसी तरह की मौत को प्राप्त हो सकता है और फिर हत्यारे के द्वारा जारी किए जाने वाले वीडियो से ही उसकी शिनाख्त हो पाएगी।

कन्हैयालाल, भंवरलाल या इन दोनों के पहले हुईं मौतों के लिए असली ज़िम्मेदार किसे माना जाना चाहिए ? क्या नूपुर शर्मा को ही देश की सारी तकलीफ़ों का एकमात्र कारण और गुनाहगार बताते हुए उन तमाम धार्मिक नेताओं, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, आदि को बरी कर दिया जाना चाहिए जो धार्मिक उन्माद और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के ज़रिए सत्ता की राजनीति करना चाहते हैं? हमने गौर नहीं किया होगा : अचानक ऐसा क्या हो गया है कि धार्मिक विध्वंस फैलाने वाली तमाम आवाज़ें एकदम से धीमी पड़ गईं हैं। क्या नागरिक नहीं बल्कि कोई केंद्रीय शक्ति इस बात को नियंत्रित करती है कि देश में कब किस तरह का माहौल बनना या नहीं बना रहना चाहिए ?

देश के अलग-अलग भागों में अपने ख़िलाफ़ दर्ज हुए प्रकरणों को दिल्ली स्थानांतरित करने सम्बन्धी नूपुर शर्मा की याचिका को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख़ टिप्पणी की थी कि :’जिस तरह से उन्होंने पूरे देश की भावनाओं को आग लगा दी है, देश में फ़िलहाल जो हो रहा है उसके लिए यह महिला अकेली ज़िम्मेदार है।’

सुप्रीम कोर्ट का ऐसा कहना क्या पूरी तरह से सही मान लिया जाए ?

धार्मिक नगरी हरिद्वार में पिछले साल दिसम्बर में हुई साधु-संतों की ‘धर्म संसद’ में अत्यंत उत्तेजना के साथ हिंदू बहुसंख्यक समुदाय का आह्वान किया गया था कि उसे अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ शस्त्र उठाना होगा। हरिद्वार की इस विवादास्पद ‘धर्म संसद’ के बाद एक बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों, न्यायविदों, सेवानिवृत अफ़सरों, पूर्व सैन्य अधिकारियों, आदि ने चिंता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री से अपील की थी कि वे अपनी चुप्पी तोड़ें। यह आशंका भी ज़ाहिर की गई थी कि देश को गृह-युद्ध की आग में धकेला जा रहा है। न तो प्रधानमंत्री, आरएसएस के किसी नेता, अथवा सत्तारूढ़ दल के मंत्री-मुख्यमंत्री ने ही हरिद्वार और उसके बाद अन्य स्थानों पर उगले गए धार्मिक ज़हर की निंदा की।

इसी साल जनवरी में वरिष्ठ पत्रकार क़ुर्बान अली और पटना हाई कोर्ट की पूर्व जज अंजना प्रकाश ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान देश के विभिन्न स्थानों पर आयोजित होने वाले धार्मिक जमावड़ों के ज़रिए फैलाए जा रहे साम्प्रदायिक विद्वेष की ओर आकर्षित किया था पर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान किसी भी स्तर पर उस तरह की टिप्पणी नहीं की गई जैसी नूपुर शर्मा की याचिका को निरस्त करते हुए की गईं । क़ुर्बान अली-अंजना प्रकाश की याचिकाओं पर अगली (या अंतिम )सुनवाई माह के अंत में सम्भावित है।

भंवरलाल और कन्हैयालाल की हत्याओं को सत्ता की राजनीति के लिए धार्मिक उन्माद का शोषण करने की बेलगाम प्रवृत्ति की हिंसक परिणति के रूप में भी देखा जा सकता है। नूपुर शर्मा की टिप्पणियाँ भी हरिद्वार जैसे धार्मिक जमावड़ों और सत्ता में आसीन लोगों के मौन से पैदा होने वाले उन्माद की ही उपज हैं। निर्दोष लोगों की हत्याओं और देश की भावनाओं को आग लगाने वाले असली दोषियों के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी आना अभी बाक़ी हैं। धर्मनिरपेक्ष नागरिक उसकी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं।

प्रदेशभर में सुबह 9 बजे तक यानी 2 घंटे में 18% वोटिंग, थानों में भी बुलडोजर खड़े करवा दिए

0

TIO BHOPAL

मध्यप्रदेश में तीसरे चरण के पंचायत चुनाव के लिए आज वोटिंग हो रही है। प्रदेशभर में सुबह 9 बजे तक यानी 2 घंटे में 18% वोटिंग हो चुकी है। मतदान से पहले मुरैना प्रशासन ने बुलडोजर के साथ फ्लैग मार्च निकाला। इतना ही नहीं थानों में भी बुलडोजर खड़े करवा दिए। साथ ही हिदायत दी कि अगर चुनाव में उपद्रव किया तो उनके अवैध मकान बुलडोजर से ध्वस्त कर दिए जाएंगे। बता दें कि मुरैना में पंचायत चुनाव के पहले चरण के मतदान में छह जगह उप्रदव हुआ था। इसमें तहसीलदार समेत 6 लोग घायल हो गए थे। इसके बाद प्रशासन ने दूसरे दिन गूंजबधा गांव में तीन आरोपियों के मकान बुलडोजर से तोड़ दिए।

तीसरे चरण में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी वोट डालेंगे। CM सपरिवार सीहोर जिले में गृह ग्राम जैत पहुंचेंगे। बता दें कि ग्राम जैत की पंचायत समरस पंचायत है। इस पंचायत के सभी पंच और सरपंच निर्विरोध चुने गए हैं। ग्राम जैत से बुधनी जनपद पंचायत के वार्ड क्रमांक -13 से सदस्य का निर्वाचन भी निर्विरोध हुआ है। केवल जिला पंचायत के वार्ड क्रमांक-14 के उम्मीदवार के चुनाव के लिए मतदान आज हो रहा है। मुख्यमंत्री केवल जिला पंचायत सदस्य के चुनाव के लिए मतदान करेंगे।

40 हजार पुलिसकर्मियों की ड्यूटी

आज सुबह 7 बजे से प्रदेश के 39 जिलों में 92 जनपद की 6607 ग्राम पंचायतों में वोटिंग शुरू हो चुकी है। आखिरी चरण में 1 करोड़ 13 लाख 11 हजार 479 वोटर ‘गांव की सरकार’ चुनेंगे। पंच, सरपंच, जनपद और जिला पंचायत सदस्य चुने जा रहे हैं। एक मतदाता 4 वोट डाल रहे हैं। दोपहर 3 बजे तक वोटिंग होगी। इसके बाद काउंटिंग शुरू हो जाएगी। तीसरे चरण के चुनाव में भी पुलिस की सख्त सुरक्षा व्यवस्था की गई है। पोलिंग बूथ पर 40 हजार पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगी है। कुल 20 हजार 608 पोलिंग बूथ पर मतदान हो रहा। इनमें से 3,059 बूथ संवेदनशील है।

अपडेट्स…

  • शुजालपुर में तबीयत बिगड़ने से सहायक पीठासीन अधिकारी की मौत हो गई। SDM सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि 61 साल के राधेश्याम डडानिया ग्राम कडवाला के पोलिंग बूथ पर मतदान कराने पहुंचे थे। रात 2 बजे तबीयत बिगड़ने पर उन्हें शुजालपुर सिटी सिविल अस्पताल ले जाया गया। वहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। हार्ट अटैक से मौत की आशंका है।
  • दमोह के घूघराकला गांव में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के तीसरे चरण का मतदान कराने पहुंचे मतदानकर्मी को सोते समय सर्प ने डस लिया। जिले के जबेरा ब्लॉक की सुरई प्राथमिक शाला में पदस्थ अशोक कुमार झारिया की ड्यूटी बटियागढ़ ब्लॉक के घूघराकला गांव में मतदान केंद्र क्रमांक 133 में लगी थी। गुरुवार को वह अपने मतदान केंद्र पर पहुंच गए थे। रात में सोते समय करीब 2.30 बजे एक सर्प ने उन्हें डस लिया।

दिग्विजय ने जताई बूथ कैप्चरिंग की आशंका

दिग्विजय सिंह ने विदिशा की लटेरी तहसील की झुकर जोगी पंचायत में बूथ कैप्चरिंग की आशंका जताई है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा- यहां से बृजेश आदिवासी की पत्नी चुनाव लड़ रही है। कुछ लोग पोलिंग बूथ को लूटने की योजना बना रहे हैं।

इन जनपदों में वोटिंग

  • राजगढ़ जिले में नरसिंहगढ़ और सारंगपुर, रायसेन में सांची-औबेदुल्लागंज, सीहोर में आष्टा-बुदनी, विदिशा में कुरवाई, ग्यारसपुर और लटेरी, खरगोन में भीकनगांव, कसरावद, गोगांव और खरगोन, खंडवा जिले में पंधाना और छैगांवमाखन, धार जिले में सरदारपुर, नालछा, धार और तिरला, अलीराजपुर जिले में सोंडवा और उदयगढ़ में वोटिंग चल रही है।
  • बड़वानी जिले में पाटी व बड़वानी, गुना में आरौन, शिवपुरी में पोहरी, करेरा और शिवपुरी जनपद, अशोकनगर में मुंगावली-चंदेरी, छिंदवाड़ा में मोहखेड़, जुन्नारदेव, और चौरई, सिवनी में केवलारी, छपारा और कुरई, बालाघाट जिले में बालाघाट, लालबर्रा और बिरसा, मंडला जिले में नारायणगंज, निवास और बीजाडांडी, डिंडौरी जिले में समनापुर, बजाग और करंजिया जनपदों में चुनाव हो रहे हैं।
  • कटनी जिले में बहोरीबंद-रीठी, उज्जैन जिले में महिदपुर-तराना, नीमच जिले में मनासा, रतलाम जिले में रतलाम, जावरा और पिपलोदा, शाजापुर जिले में शुजालपुर, कालापीपल, आगर-मालवा जिले में सुसनेर और नलखेड़ा, मंदसौर जिले में गरोठ-मल्हारगढ़, सागर जिले में राहतगढ़, खुरई, शाहगढ़-जैसीनगर, जिला छतरपुर में नौगांव, लवकुशनगर-बिजावर, दमोह में तेंदूखेड़ा, बटियांगढ़ और पटेरा जनपद में चुनाव हो रहा है।
  • टीकमगढ़ जिले में जतारा, रीवा में सिरमौर, जवा और त्योंथर, जिला सिंगरौली में चितरंगी, सीधी जिले में सीधी, सतना में रामपुर बघेलान और मैहर, नर्मदापुरम (होशंगाबाद) जिले में नर्मदापुरम, माखननगर और बनखेड़ी, बैतूल जिले में प्रभातपट्टन, भैंसदेही-भीमपुर, शहडोल जिले में पाली नं 1 गोहपारू और बुड़ार, जिला अनूपपुर में अनूपपुर, कोतमा, जिला भिंड में महगांव, गोहद, जिला श्योपुर में विजयपुर और जिला मुरैना में विकासखंड सबलगढ़, कैलारस और पहाड़गढ़ में मतदान हो रहा है।

इन जिलों में चुनाव नहीं
भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, झाबुआ, बुरहानपुर, दतिया, जबलपुर, नरसिंहपुर, देवास, निवाड़ी, पन्ना, हरदा और उमरिया जिलों में पहले और दूसरे चरण में चुनाव हो चुके हैं। इसलिए यहां पर तीसरे चरण में चुनाव नहीं होगा।

SPHEEHA plants 55000+ saplings on its 16th International Tree Plantation Day on 1st July 2022

0
Image

TIO BHOPAL

According to latest estimates, Earth is home to approximately 3 trillion trees which has almost halved since the onset of human civilization. We lose approximately 10 billion trees every year due to human activities. SPHEEHA, a registered NGO which started its operations from Agra, India in 2006 and today has chapters across the globe in over 200 locations has been conducting its annual tree plantation since inception as a part of its objectives and commitments for preserving the environment and ecology of the planet.

SPHEEHA has planted thousands of saplings across the globe and follows-up with upkeep for three years to ensure their survival. About 84% of all the trees planted by SPHEEHA members in the past 15 years have survived. Trees are important to humans, not just for their products, but also for their ability to foster biodiversity, store carbon, preserve water quality, and perform other ecosystem services. In this context, SPHEEHA is already observing the Air Quality Index of Dayalbagh, where it has conducted Tree Plantation drives over the last 15 years improving at a steady pace. The average AQI levels of Dayalbagh are around 80 versus an average of AQI of 150 in the city center which is just 2 kilometers away(Source: CPCB).



This year, SPHEEHA conducted its biggest tree plantation drive by planting 55000+ saplings in over 200 locations across 4 continents.NGO’s like SPHEEHA with their tree plantation drives, lend a much-needed helping hand to the greening efforts of Governments and other organizations across the globe. SPHEEHA also participated in the “Iconic Week” under the ‘Amrit Mahotsav’ campaign of Prime Minister Narendra Modi in June by conducting tree plantation along with the Office of the Commissioner, Central Goods and Service Tax & Central Excise, Agra.

This year’s tree planting function of SPHEEHA was inaugurated at Yamuna Pump -Dayalbagh. A ‘Guard of Honour’ was presented to Most Revered Prof. Prem Saran Satsangi Sahab, Chairman of the Advisory Committee on Education to DEI Universityby a live band consisting of SPHEEHA volunteers in the age group 13-63 yearsfollowed by hoisting the Indian National flag along with singing the Indian National Anthem and a prayer at the Lotus Feet of the Almighty. Saplings were then planted by the dignitaries in Dayalbagh, Agra including Mr. G. S. Sood, President Radhasoami Satsang Sabha; Mr. M.A. Pathan, SPHEEHA President and Mr. P.K. Kalra, Director DEI. Saplings were simultaneously planted by volunteers of SPHEEHA and kids between the age group of 3 months to 6 years.

A “NukadNatak” (Street Play) was performed by local kids of Agra in the age group of 10-13 years enunciating the impact of trees on environment and later Retd officer from the Forest Department, Mr. DK Pandey enthralled the audience with his poem in Hindi “Vriksh ki manav se appeal” (Appeal of the Tree to humans).

Many officials and dignitaries from across the globe joined the event which was connected over the internet and the live stream was managed by SPHEEHA Headquarters at Agra. Some of the dignitaries who participated were _________PLEASE ADD NAMES AND ALSO SHARE WITH SPHEEHA DB TEAM_______________. Due to the prevailing pandemic conditions, social distancing norms and other safety measures were duly exercised everywhere.

Speaking on the occasion, SPHEEHA President, Mr. M A Pathan (Former Chairperson of Indian Oil Corporation and Former Resident Director, Tata Sons) said that, “SPHEEHA continues its tradition of the past 15 years with its commitment of improving the environment and I am very pleased that this year we have set a new benchmark by planting over 55000 saplings. We hope to do more in the coming years.”

The global event coordinator, Col. R K Singh (Veteran) said, “This year our focus has been on planting as many fruit trees as possible to achieve the dual objectives of both improving the green cover as well growing more local fruits in every region where we are present.”

The event was supported by an able team comprising of SPHEEHA Vice President, Rajiv Narain, SPHEEHA Secretary, Pankaj Gupta &Guard of Honour in-charge – Mr. Vinod Pathak along with various regional representatives from across the globe.

_____________________________



नई नस्लों को लोकतंत्र का अर्थ पता तो चले

0

राजेश बादल

इन दिनों राजनीति में परिवारवाद को हतोत्साहित करने की प्रथा सी चल पड़ी है । सदियों तक यह देश राजाओं और राजकुमारों को राजा बनते देखता रहा है ।उनके ज़ुल्म ओ सितम भोगते हुए लोग इतने आदी हो गए हैं कि आम जनता आज भी बहुत तकलीफ़ नहीं महसूस करती , जब वह इस परंपरा में लोकतांत्रिक राजाओं के उत्तराधिकारियों को उनकी विरासत संभालते हुए देखती है।वैसे तो इसमें कुछ अनुचित भी नहीं है । यह राष्ट्र प्रत्येक वयस्क  नागरिक को रोज़गार, कारोबार और मौलिक अधिकारों की छूट देता है।आप सिर्फ़ इस आधार पर उसे राजनीति में जाने से रोक नहीं सकते कि वह किसी विधायक, सांसद ,मंत्री या मुख्यमंत्री का बेटा है। गौर कीजिए कि जब एक सेना अधिकारी की पीढियां देश की सीमाओं की रक्षा करने के काबिल मानी जा सकती हैं, एक डॉक्टर के वंश में कई डॉक्टरों की फसल लहलहाती है तो हम यह कहते हुए मानक तय करते हैं कि वह ख़ानदानी डॉक्टर है, एक वकील के वंशजों को लगातार अदालत में जाते देखते हैं, एक किराना या कपड़ा व्यापारी की पीढियाँ गद्दी संभालती हैं तो हमें परेशानी नहीं होती । यहां तक कि मोची, बढ़ई, दूधवाला या सब्ज़ी वाला बच्चों को अपने कारोबार में अवसर देता है तो हमें बुरा नहीं लगता।बड़े औद्योगिक घरानों का उत्तराधिकार उनके वंशजों के हाथ में चला आता है तो भी समाज उसे आपत्ति जनक नहीं मानता । इसके उलट आपसी चर्चाओं में यह बात कही जाने लगी है कि अमुक परिचित के बेटे ने अपने पिता के स्थापित कारोबार को ही छोड़ दिया ।

यह गलत किया । इस विरोधाभासी मानसिकता पर समाज में सवाल नहीं उठते ,मगर एक लोकतांत्रिक अनुष्ठान में जनसेवा और राष्ट्रहित में काम करने के लिए यदि किसी नेता का पुत्र भी उसी राह पर चल पड़ता है तो हाय तौबा होने लगती है । जनसेवा एक अनुष्ठान की तरह है ,जिसमें प्रत्येक को अपनी हिस्सेदारी निभाना चाहिए। कोई भी बच्चा हो, वह परिवार के संस्कार लेकर आगे बढ़ता है।पारिवारिक पेशे के हुनर भी उसमें शामिल होते हैं।यह उसका बुनियादी प्रशिक्षण होता है।इसीलिए हम पाते हैं कि जो नई नस्लें पूर्वजों के कारोबार को आगे बढ़ाती हैं, ज़्यादातर मामलों में वे कामयाब रहती हैं । कुछ अपवाद हो सकते हैं, जब बेटों से पिता का कारोबार नहीं संभला हो अन्यथा बहुतायत ऐसे पुत्रों की होती है, जो पेशे में मुनाफा बढ़ाना जारी रखते हैं। राजनीतिक मामलों में भी ऐसा ही है ।यह स्थिति तब तक बेहतर थी ,जब राजनीति धंधा नहीं बनी थी ।जैसे ही सियासत के साथ धन बल और बाहु बल का गठजोड़ हुआ तो यह भी एक उद्योग बन गया । आधुनिक नेता अपने बच्चों को विरासत तो सौंपते हैं ,लेकिन उन्हें सेवा भाव के साथ काम करने का प्रशिक्षण नहीं देते । वे उन्हें धंधेबाज राजनेता बना देते हैं । मौजूदा दौर में आप किसी भी राजनेता के बेटे बेटियों से बात कीजिए, उन्हें न भारत की आजादी का इतिहास पता होगा , न ही वे संविधान की विकास गाथा जानते होंगे और न ही निर्वाचित जन प्रतिनिधि के रूप में अपने कर्तव्यों से वे परिचित होंगे । हां उनसे आप चुनाव जीतने की तिकड़में पूछेंगे तो वे तुरंत बता देंगे । वे इस पर भी ज्ञान वर्धन करेंगे कि चुनाव के दिनों में काले धन का इस्तेमाल कैसे किया जाए या नक़द बांटने का तरीक़ा क्या हो या फिर शराब और साड़ियों को मतदाताओं के बीच कैसे पहुंचाया जाए ।

जो मतदाता खुलकर विरोध कर रहे हों , उन्हें अपराधी तत्वों की मदद से कैसे सबक सिखाया जाए।चुनाव जीतने के बाद यह तंत्र अन्य स्तंभों को भी कमज़ोर करने का काम बेशर्मी से करने लगता है ।वह तबादला उद्योग शुरू कर देता है।निलंबन और बहाली की दुकान खोल लेता है।ठेकों और परियोजनाओं में कमीशन की दरें निर्धारित करता है, सांसद और विधायक निधि का हिस्सा अग्रिम धरा लेता है। विरोधियों को निपटाने के लिए पुलिस की मदद से फर्जी मामले दर्ज़ करवाता है और अपने या अपने पिता के मार्ग की सियासी बाधाओं को दूर करता है । लोकतंत्र की इस कुरूपता को स्वीकार करने में इस नए वर्ग को कोई झिझक नहीं होती न ही उनके अभिभावकों को। इस तरह एक गैर ज़िम्मेदार और गंवार पीढ़ी इस लोकतंत्र की कमान संभालने के लिए तैयार हो जाती है । उनका आचरण सामंती होता है और वे नए ज़माने के राजाओं की तरह व्यवहार करते हैं । भारतीय लोकतंत्र को यह दीमक लग चुकी है और इसे ख़त्म करने में किसी की दिलचस्पी नहीं दिखाई देती ।तो यक्ष प्रश्न है कि यह कौन तय करे कि  नई नस्ल को सच्चे और ईमानदार लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया जाए ? कहाँ से इसकी शुरुआत हो ? प्रदूषित हो रही राजनीति को साफ सुथरा कैसे बनाया जाए और उसमें आने वाला नौजवान भारत किस तरह अपने संवैधानिक लोकतंत्र को मज़बूत बनाए।इन सवालों का उत्तर स्पष्ट है।संविधान सभा के अध्यक्ष रहे पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि आप कितना ही अच्छा और निर्दोष संविधान बना लें ,अगर उसको अमल में लाने वाले लोग ठीक नहीं हैं तो उस सर्वोत्तम संविधान की कोई उपयोगिता नहीं हैं।इसका सन्देश है कि परिवार परंपरा से निकले सियासत दान लोकतंत्र के विरोधी नहीं माने जाने चाहिए। आवश्यकता उनके परिपक्व प्रशिक्षण की है ,जिसमें वे सामूहिक नेतृत्व की भावना को समझें और सियासी कुटैवों से दूर रहें।  यह काम तो राजनेताओं को अपने घर में ही करना पड़ेगा। यह तनिक पेचीदा और कठिन काम है।   

सत्ता का खेल, कोई पास, कोई फेल

0

TIO राकेश अचल


देश में विकास नहीं राजनीति फुलफ़ार्म पर है. महाराष्ट्र में सत्ता का महारास जारी है. मुख्यमंत्री पद से उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा देकर ‘फ्लोर टेस्ट ‘ का रोमांच ही समाप्त कर दिया ,उधर बिहार में एआईएमआईएम के चार विधायक औबेसी का साथ छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल के साथ आ गए हैं.कायदे से उन्हें सत्तारूढ़ भाजपा या जेडीयू के साथ नहीं जाना था ,लेकिन वे नहीं गए .इस बीच औबेसी अपने महा अभियान के तहत मध्यप्रदेश में सक्रिय होने का ऐलान कर चुके हैं .सियासत की इस आंधी-अंधड़ में उदयपुर के कन्हैयालाल की बर्बर हत्या का मामला राजनीति का हथियार बनते-बनते रह गया .

सबसे पहले महाराष्ट्र चलिए. यहां मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा देकर मान लिया कि संख्या बल में दलबदलुओं या बागियों के मुकाबले कमजोर हैं. उनका न इमोशनल कार्ड चला और न नसीब काम आया ,लेकिन वे इस बात से सुखी जरूर होंगे कि एक बार वे शिवसेना को सत्ता के शीर्ष तक ले जाने में कामयाब रहे .वहां टिके नहीं रह सके ये अलग बात है .सत्ता में टिकना और संगठन को सम्हाले रखना दो अलग-अलग कलाएं हैं .उध्दव इस मामले में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की तरह बदनसीब निकले. महाराष्ट्र में अब भाजपा गा- बजाकर सत्तारूढ़ होगी ,सत्ता के सूत्र फडणवीस के हाथ होंगे क्योंकि भाजपा के पास कोई दूसरा नाम है ही नहीं भाजपा को अब सत्ता की लुटी-पिटी देह से शिवसेना के बागियों का हिस्सा उन्हें देना होगा अन्यथा किसी भी दिन वे दोबारा भाजपा का खेल खराब कर सकते हैं एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिव सैनिकों को अपनी कीमत का पता चल गया है .वे बिकाऊ हैं और बिकाऊ कभी भी भरोसेमंद नहीं होते .जनता ने जिन्हें जनादेश दिया था वे ये लोग नहीं थे .कुल जमा भाजपा को बधाई बनती है कि उसने राजस्थान और छत्तीसगढ़ न सही कम से कम महाराष्ट्र का गढ़ तो जीत लिया .


शिवसेना के हाथ से महाराष्ट्र की सत्ता जाने का गम एनसीपी और कांग्रेस को भी होगा लेकिन वे कर भी क्या सकते थे ? ये दोनों दल जो कर सकते थे सो कर चुके थे .ढाई साल भाजपा को सत्ता से दूर रखना ही इन दोनों दलों की उपलब्धि है. शिवसेना की पकड़ यदि ढीली न पड़ती तो सत्ता सुंदरी बाक़ी के ढाई साल और महाराष्ट्र अगाडी के साथ रह सकती थी .खैर जो हुआ ,सो हुआ .अब भाजपा जाने और बाग़ी शिवसैनिक जानें .जनता को अभी और इन्तजार करना पड़ेगा .

अब चलिए बिहार. बिहार में भाजपा बीते एक दशक से जेडीयू के कन्धों पर चढ़कर सत्ता का अंग बनी हुई है .इतने लम्बे समय में भाजपा यहां जेडीयू को लंगड़ा नहीं कर सकी.महाराष्ट्र में भाजपा का पाला जेडीयू के नीतीश कुमार से पड़ा है जो महाराष्ट्र के शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की तरह अनाड़ी नहीं है .नीतीश बाबू पुराने खिलाड़ी हैं और जानते हैं की भाजपा के मन में क्या है ? भाजपा अगर बिहार को महाराष्ट्र या मध्यप्रदेश बना पटी तो कभी का बना लेती ,लेकिन अभी तक उसे बिहार में पांव फैलाने का अवसर ही नहीं मिला है .

बिहार में विधानसभा चुनाव के समय भाजपा की मदद के लिए गए एईएमआईएम के औबेसी साहब ने पांच सीटों पर कब्जा कर अपनी दोस्ती निभा दी थी लेकिन औबेसी का खेल उनके विधायकों की समझ में आ गया और 5 में से 4 विधायक राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो गए. कायदे से उन्हें सत्ता रूढ़ दल के घटक भाजपा या जेडीयू में जाना चाहिए था ,लेकिन नहीं गए,क्योंकि वे अच्छी तरह जानते हैं की उनका भविष्य आरजेडी में ज्यादा सुरक्षित है .बिहार में आरजेडी ही भाजपा -जेडीयू गठबंधन का विकल्प है .औबेसी अब मध्य्रदेश में सक्रिय होकर भाजपा की मदद करना चाहते हैं ,लेकिन ऐसा शायद ही हो पाए .
सत्ता संघर्ष से अलग राजस्थान में नूपुर शर्मा के एक समर्थक की बर्बर हत्या का मामला भाजपा के लिए हथियार बनते-बनते रह गया,क्योंकि राजस्थान पुलिस ने हत्यारों को आनन-फानन में गिरफ्तार कर जेल पहुंचा दिया .उम्मीद की जाना चाहिए की आरोपियों को सजा भी बहुत जल्द मिलेगी .भाजपा राजस्थान में जनादेश हासिल करने में नाकाम रही है ,इसलिए पिछले दो-ढाई साल से लगातार पिछले दरवाजे से सत्ता में आने के रास्ते खोज रही है. भाजपा को राजस ठान में कोई बिभीषण नहीं मिल पाया है हालांकि भाजपा ने सचिन पायलट की पीठ पर हाथ रखा था ,लेकिन बात बनते-बनते रह गयी .भाजपा ने हार नहीं मानी है ,देखिये गुजरात और हिमाचल से फारिग होने के बाद राजस्थान में क्या होता है ?


अब चलते हैं बाजार की तरफ जहाँ लगातार डालर के मुकाबले में भारतीय रुपया लड़खड़ा रहा है . आजाद भारत में रूपये की इतनी दुर्दशा पहले कभी नहीं हुई.जब हुई थी तब आज की सत्तारूढ़ भाजपा ने इसे प्रधानमंत्री के इकबाल से जोड़ा था .मै ये गलती नहीं कर रहा. प्रधानमंत्री का इकबाल और रूपये की औकात का क्या रिश्ता भला ? रूपये की अपनी किस्मत है और प्रधानमंत्री जी का अपना नसीब. वे विश्व गुरु हैं और दुनिया में उनकी पूछ-परख लगातार बढ़ रही है ऐसे में रूपये की फ़िक्र किसे है ? रुपया गिरे या खड़ा रहे इससे कुछ नहीं होने वाला. प्रधानमंत्री जी को तो 2024 के आम चुनाव तक सीधे खड़ा रहना है .


डालर और रूपये से अलग एक मुद्दा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का है . भारत ने सोमवार को ही दुनिया के विकसित देशों के संगठन जी-7 के साथ ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी की ऑनलाइन और ऑफ़लाइन सुरक्षा और सिविल सोसायटी की आज़ादी की रक्षा’ करने के लिए एक समझौते पर दस्तख़त किए.लेकिन दूसरी तरफ दिल्ली में आईपीसी की धारा 153-ए (समाज में शत्रुता बढ़ाने) और 295-ए (धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर ठेस पहुंचाने) के आरोप में चार साल पहले दर्ज एक एफ़आईआर पर कार्रवाई करते हुए फ़ैक्ट चेकिंग साइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को गिरफ़्तार किया गया है.यानि हाथी के दांत दिखाने के और लेकिन खाने के और हैं .देश की जनता सम्भ्रम में है ,ये भयानक उलझा हुआ समय है,इसमने ये समझ पाना कठिन है कि आपको किस और जाना है ? बहरहाल जो हो रहा है उस पर नजर रखिये क्योंकि जागरूक रहकर ही आप अपनी सुरक्षा कर सकते हैं .सरकार के पास आपकी सुरक्षा का समय नहीं है क्योंकि सरकार बेचारी खुद असुरक्षित है .वो अपनी कुर्सी बचने में लगी है .कोशिश की जिए कि आप भी सुरक्षित रहें और ये देश भी बचा रहे.

बर्बरता का भयावह और पाशविक रूप

0

राकेश अचल

देश में नफरत और बर्बरता लगातार बढ़ रही है. राजस्थान के उदयपुर में कन्हैया लाल दर्जी इस बर्बरता की भेंट चढ़ गए .पुलिस ने आरोपी तो गिरफ्तार कर लिए लेकिन बर्बरता को कौन गिरफ्तार करेगा ? बर्बरता तो दिलों में है,दिमाग में हैं .बर्बरता ने इमोशन की हत्या पहले ही कर दी है .इस बर्बरता की पोषक सियासत तो है ही मजहब भी है .अब मजहब ही हमें आपस में बैर करना सिखा रहा है .


उदयपुर की वारदात को लेकर यदि आज न लिखता तो तय था कि लोग मुझे जी भरकर गालियां देते .क्योंकि हत्यारे मुस्लिम हैं .उनका मुस्लिम होना इस मामले की गंभीरता को और बढ़ा रहा है. बर्बरता फादर स्टेन की हत्या से होती हुई दर्जी कन्हैया लाल की गर्दन तक आ पहुंची है .बर्बरता का न कोई मजहब है और न बिरादरी. बर्बरता मनुष्यता का सबसे विकृत चेहरा है .बर्बर मनुष्य न भारतीय दंड संहिता से डरता है और न बुलडोजर से .


नूपुर शर्मा के एक बयान से इस्लाम के आस्थावान इतने आहत हो जायेंगे कि एक निर्दोष की जान ले लेंगे ,ये चिंता का विषय है. मै आज भी कहता हूँ कि मनुष्य की किसी टिप्पणी से दुनिया के किसी भी मजहब का कोई भगवान न आहत होता है और न अपमानित होता है. भगवान,अल्लाह,गॉड ,जो भी है सुप्रीम है. उसने हमें बनाया है ,हमने उसे नहीं बनाया .इसलिए वो हमारी किसी टिप्पणी से कभी आहत हो ही नहीं सकता .आहत तो हम होते हैं क्योंकि हम धर्मांध हो चुके हैं. हमें धर्म के नशे में मनुष्यता बहुत बौनी दिखाई देती है .ये नशा व्यक्ति के सर पर चढ़े या सत्ता के सर पर खतरनाक है .


अब किसी का समर्थन या विरोध दोनों खतरनाक हैं. आप चाहे नूपुर शर्मा के साथ खड़े हों चाहे तीस्ता सीतलबड़ के साथ .आप किसी न किसी के निशाने पर आ सकते हैं .अब संघर्ष विचारों का नहीं अदावतों का हो गया है .प्रतिकार न मजहबी लोगों को पसंद है और न सत्ताओं को .वे प्रतिकार करने वाले के साथ किसी भी घटिया और घ्रणित स्तर तक जा सकते हैं .ये अतीत का भी सच है और वर्तमान का भी सच .भविष्य का भी सच हो तो कोई बड़ी बात नहीं है .समय के साथ हमें जितना परिपक्व होना था,जितना उदार होना था,जितना मानवीय होना था ,हम नहीं हो पाए .जो हो रहा है वो उलटा हो रहा है .हम ज्यादा अपरिपक्व हो रहे हैं,हम ज्यादा अनुदार हो रहे हैं ,ज्यादा अमानवीय हो रहे हैं .


कन्हैया लाल की हत्या के बाद सबसे बड़ी जिम्मेदारी हत्यारों के समाज और उनके मजहब के लोगों की बनती है कि वे इन हत्यारों का बायकाट करें, इन्हें सजा दिलाने में क़ानून की मदद करें .इस मामले में नूपुर शर्मा के समर्थकों का भी दायित्व बनता है कि वे इस वारदात को सियासी हथियार बनाकर सत्ता के खिलाफ मोर्चा न खोलें .लेकिन मोर्चा खुलेगा,बल्कि खुल ही गया है .लोग मोर्चे पर तैनात भी कर दिए गए हैं .गनीमत है कि राजस्थान की पुलिस ने आनन-फानन में आरोपियों की गिरफ्तारी कर ली ,अन्यथा गजब हो जाता .सरकार के खिलाफ गजब करने की वजह सबको चाहिए .
बर्बरता जमीन देखकर काम नहीं करती ,लेकिन जब समाज में वैमनष्य बढ़ाना हो तो वो कहीं भी अपना रौद्र रूप दिखा सकती है .जो वारदात उदयपुर में हुई वो देश के किसी भी हिस्से में होती तो भी उतनी ही निंदनीय होती जितनी आज है .वारदात दो सिरफिरों ने की लेकिन उसका इस्तेमाल लोग अपने-अपने ढंग से कर रहे हैं .इसे भी रोका जाना चाहिए. ये बर्बरता का दूसरा चेहरा है .ऐसे माहौल में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करने की जरूरत है .राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वारदात के बाद जितना कुछ किया वो ठीक है, वे यदि ऐसे मौके पर प्रधानमंत्री से अपील की मांग करते हैं तो मान लेना चाहिए कि उनके हिसाब से इसकी जरूरत है.अन्यथा वे सोनिया से अपील का आग्रह न करते !


दुर्भाग्य ये है कि हमारे पंत प्रधान जब बोलना होता है तब बोलते नहीं हैं ,और यदि बोलते भी हैं तो विदेश जाकर बोलते हैं. उन्हें स्वदेश में बोलने में ज्यादा रूचि नहीं है. बेचारे बोलें भी तो क्या बोलें ? नूपुर शर्मा जैसे बोल बचन करने वाले भी तो उनके अपने हैं . खैर पंत प्रधान बोलें या न बोलें लेकिन ऐसी वारदातों के बाद सबको बोलना चाहिए. वारदात की निंदा के साथ ही समाज में शांति बनाये रखना सबका दायित्व है ,ये काम अकेले कोई भी और कहीं की भी सरकार नहीं कर सकती. बर्बरता के खिलाफ जो जहाँ है ,वहां से बोले और बिना डरे हुए बोले .आज के माहौल में बोलना ही सबसे बड़ा उपचार है .दुर्भाग्य से लोगों ने बोलना बंद कर दिया है .जो लोग बोलते नहीं हैं वे अपने ढंग से प्रतिकार करना चाहते हैं .


समाज में बर्बरता के खिलाफ न सिर्फ एकजुट होना आवश्यक है बल्कि अनिवार्य भी है. एहतियात बस इतनी बरती जाये कि हम घटनास्थल को सियासत का तीर्थ न बनाएं .बर्बरता के शिकार हुए कन्हैया लाल कि मौत का सियासी इस्तेमाल न करें .अन्यथा कल को लोग कन्हैया लाल को हीरो बनाकर अपने धंधे में जुट जाएँ. कन्हैया लाल या उसके बेटे ने तो सोचा भी नहीं होगा कि नूपुर का समर्थन करने से उनकी जान चली जाएगी .उन्हें यदि इसका आभास होता तो मुमकिन है कि वे ऐहतियात बरतते .कन्हैया लाल एकदम निर्दोष व्यक्ति थे .उनके साथ जो हुआ ,वो अकल्पनीय,निंदनीय और पाशविक है .हमें इसी पाश्विकता से जूझना है .अपने आसपास जागरूक रहकर ऐसी प्रवृत्तियों को पनपने से रोकें ,तभी बात बनेगी.


देश का दुर्भाग्य है कि आजकल सोशल मीडिया पर परस्पर विरोधी विचारों के लोग एक -दुसरे के दुश्मन बनते जा रहे हैं. और तो और गली,मुहल्ले के निजी समूहों में भी प्रतिकार उग्र हो रहा है. निजी प्रेम दांव पर लगा है .लोग दुआ-सलाम काना तक भूल रहे हैं .अन्धेरा आँखों में ही नहीं बल्कि दिल में भी उतर रहा है .आप जिसके समर्थक हैं,बने रहें लेकिन अपने पड़ौसी के दुश्मन तो न बनें .सियासत यही दुश्मनी बढ़ा रही है .पहले ऐसा नहीं था. सौजन्य अपनी जगह था और सियासत अपनी जगह .अब दोनों एक–दूसरे के खिलाफ खड़े हैं .
@ राकेश अचल

फ्लोर टेस्ट के खिलाफ शाम पांच बजे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, गोवा के लिए रवाना हुए शिंदे गुट के विधायक

0

TIO महाराष्ट्र

महाराष्ट्र का सियासी घमासान निर्णायक मोड़ की तरफ बढ़ रहा है। एक तरफ भाजपा ने यहां सरकार बनाने की कवायद तेज कर दी है तो दूसरी तरफ शिंदे गुट के विधायक भी गुवाहाटी के होटल से निकल चुके हैं। इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के राज्यपाल को चिट्ठी लिखकर फ्लोर टेस्ट कराने की मांग कर चुके हैं। उन्होंने मंगलवार शाम राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात भी की थी। वहीं फ्लोर टेस्ट के खिलाफ शिवसेना सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। वहीं शिंदे गुट के विधायकों को गोवा शिफ्ट कराने की तैयारी है। बहुमत परीक्षण से पहले शिंदे गुट के विधायक स्पाइस जेट के विमान से गुवाहाटी से गोवा के लिए रवाना हो चुके हैं। गोवा के एक होटल में इन विधायकों के लिए 70 कमरे बुक कराए गए हैं। इन विधायकों के कल विधानसभा पहुंचने की संभावना है। 

शाम पांच बजे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

30 जून को विधानसभा में बहुमत साबित करने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए राजी हो गया है। आज शाम पांच बजे शिवसेना की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई होगी। दरअसल, राज्यपाल ने उद्धव सरकार को कल विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान बहुमत साबित करने का आदेश दिया था। जबकि, उद्धव गुट का कहना है कि बहुमत परीक्षण अवैध है। शिवसेना की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिका दायर की थी। 

शिवसेना पहुंची सुप्रीम कोर्ट, शीर्ष अदालत सुनवाई के लिए तैयार

शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु ने 30 जून को सदन के पटल पर अपना बहुमत समर्थन साबित करने के लिए और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के निर्देश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। वहीं शीर्ष अदालत याचिका को मंजूर करते हुए सुनवाई के लिए तैयार हो गई है।

शिवसेना जाएगी सुप्रीम कोर्ट
शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा है कि राज्यपाल के फ्लोर टेस्ट के फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। यह एक गैरकानूनी है क्योंकि हमारे 16 विधायकों की अयोग्यता का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
गोवा शिफ्ट होंगे बागी विधायक
गुवाहाटी में रूके बागी विधायक आज गोवा रवाना हो सकते हैं। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक गोवा के ताज रिजॉर्ट एंड कन्वेंशन सेंटर में 70 कमरे बुक कराए गए हैं। गोवा से कल शिंदे गुट के विधायक मुंबई के लिए उड़ान भरेंगे और सीधे महाराष्ट्र विधानसभा जाएंगे।
भाजपा ने विधायकों को होटल पहुंचने को कहा
फ्लोर टेस्ट के बीच महाराष्ट्र में सियासी हलचल तेज हो गई है। भाजपा ने अपने विधायकों को आज शाम मुंबई के ताज प्रेसिडेंट होटल में इकट्ठा होने का निर्देश दिया है। कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा है कि फ्लोर टेस्ट के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट जाए।

उदयपुर हत्याकांड का पाक कनेक्शन सामने आया

0

TIO NEW DELHI

उदयपुर हत्याकांड का पाक कनेक्शन सामने आया है। बताया जा रहा है कि कन्हैया का गला काटने वाले दोनों आरोपी पाकिस्तान के दावत-ए-इस्लामी संगठन से जुड़े हुए थे। यह संगठन 100 से ज्यादा देशों में सक्रिय है और इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए कई तरह के ऑनलाइन कोर्स भी चला रहा है। इससे पहले भारत में इस इस्लामी संगठन पर धर्मांतरण के भी आरोप लग चुके हैं। ऐसी भी खबरें आई हैं कि इस संगठन द्वारा जगह-जगह पर दान पेटियां रखी जाती हैं। आरोप है इनके माध्यम से आने वाले धन को गलत गतिविधियों में इस्तेमाल किया जाता है।

जानते हैं क्या है दावत-ए-इस्लामी?
दावत-ए-इस्लामी खुद को गैर राजनीतिक इस्लामी संगठन करार देता है। इसकी स्थापना 1981 में पाकिस्तान के कराची में हुई थी। मौलाना अबू बिलाल मुहम्मद इलियास ने इस इस्लामिक संगठन की स्थापना की थी। भारत में यह संगठन पिछले चार दशकों से सक्रिय है। शरिया कानून का प्रचार-प्रसार करना और उसकी शिक्षा को लागू करना संगठन का उद्देश्य है। इस समय यह संगठन करीब 100 से ज्यादा देशों में अपना नेटवर्क फैला चुका है।
कौन से 32 ऑनलाइन कोर्स चला रहा?
दावत-ए-इस्लामी की अपनी खुद की वेबसाइट है। वेबसाइट के माध्यम से यह इस्लामिक संगठन कट्टर मुसलमान बनने के लिए शरिया कानून के तहत इस्लामी शिक्षाओं का ऑनलाइन प्रचार-प्रसार कर रहा है। करीब 32 तरह के इस्लामी कोर्स इसकी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। महिलाओं व पुरुषों दोनों के लिए अलग-अलग तरह के कोर्स हैं। इसके अलावा यह संगठन कुरान पढ़ने और मुसलमानों को हर तरीके से शरिया कानून के लिए तैयार करता है।
जिहादी बनने की दी जाती है स्पेशल ट्रेनिंग
दावत-ए-इस्माली संगठन पर कई बार धर्मांतरण के आरोप भी लगे हैं। यह संगठन अपनी वेबसइट पर एक न्यू मुस्लिम कोर्स भी संचालित करता है। यह कोर्स भी पूरी तरह से ऑनलाइन है। इसका उद्देश्य धर्मांतरण कर नए-नए मुसलमानों को इस्लामी शिक्षाओं से रूबरू कराना है। इस कोर्स के माध्यम से धर्मांतरण करने वालों को जिहादी बनने की स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है।
ऑनलाइन कोर्स से जुड़े थे दोनों आरोपी
मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि उदयपुर में कन्हैयालाल की हत्या करने वाले दोनों आरोपी मोहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद ‘दावत-ए-इस्लामी’ नाम के संगठन से जुड़े हुए हैं। ये दोनों इस्लामी संस्था के ऑनलाइन कोर्स से जुड़े हुए हैं। हत्या के बाद दोनों आरोपी अजमेर दरगाह जियारत के लिए जाने वाले थे। दरअसल, यह संगठन दुनिया भर में सुन्नी कट्टरपंथ को बढ़ावा देता है।

एनआईए और एसआईटी करेगी जांच
हत्या की जांच करने के लिए राज्य सरकार ने एसआईटी का गठन किया। एसआईटी टीम उदयपुर पहुंच गई है। इस हत्याकांड की जांच एनआईए भी करेगी। एनआईए की टीम भी आज उदयपुर पहुंचेगी। दरअसल, इस हत्याकांड के पीछे अंतरराष्ट्रीय साजिश की बात भी सामने आ रही है। नुपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी के बाद आतंकवादी संगठन अलकायदा भी धमकी दे चुका है।