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केएफएल शोस्टॉपर 2022 के परिणाम घोषित

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TIO New Delhi

चार महीने की लगातार मशक्कत के बाद के.एफ.एल मिस्टर एंड मिसेस इंडिया 2022 का पेजन्ट आनलाइन काफी सफल रहा।इसमे तीन राउंड थे जिसमे देशभर से चुने हुए करीब 24 फाइनलिस्ट ने हिस्सा लिया।उसके बाद उनकी आपस मे कडी टक्कर हुई।इसमे दिल्ली के रिनाउनड ग्रूमर मिस्टर अंकित नागपाल, मिसेज़ नीना छाबरा,लेफ्टिनेंट कर्नल अंकिता श्रीवास्तव, मिसेज़ पूजा नरुला एवं के.एफ.एल की नेशनल डायरेक्टर मिसेस रंजीता सहाय अशेष ज्यूरी मे थे। उन्होने एथनिक वियर, टैलेंट राउंड एवं क्वेश्चन आंसर राउंड के बाद विजेता घोषित किया।

जिसमे नासिक की मिसेज़ आकांक्षा सथाये मिसेज इंडिया 2022 घोषित हुई।गुुरुग्राम से मिस्टर रविन्दर सिंह विरदी मिस्टर इंडिया 2022 रहे दिल्ली से मिस सरमिष्टा मुखर्जी मिसिज़ इंडिया क्लासिक 2022 घोषित हुई। के. एफ. एल के पेजन्ट का यह पहला सीजन बहुत खूबसूरत रहा।के एफ एल अपने सभी फाइनलिस्ट को बधाई देता है जिनको टाइटल एवं अवार्ड ऑफ़ अप्प्रेसिएशन दिये गए हैं ।

जल्द ही विजेताओं के साथ के.एफ.एल एक कैलेंडर शूट करने वाला है । के एफ एल का कॉन्सेप्ट एक ऐसी शख्सियत को चुन ना था जो समाज के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन सके ।अपने यूनिक कॉन्सेप्ट की वजह से के एफ एल बहत ज्यादा चर्चा मे रहा|सफल आयोजन के लिए मीडिया जगत एवं फैशन इंडस्ट्री के लोगों ने के एफ एल की नेशनल डायरेक्टर रंजीता सहाय अशेष को बधाइयाँ दी |

जिसकी लाठी, उसकी भैंस

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राकेश अचल

राजनीति का मुहावरों और कहावतों से गहरा रिश्ता है .ये रिश्ता न होता तो शयद कहावतों और मुहावरों को कोई पूछता नहीं .जर्मनी में बैठे हमारे प्रधानमंत्री रामपुर और आजमगढ़ उपचुनाव के नतीजों पर बोलते हैं तो ये विश्वास और गहरा जाता है कि -जिसकी लाठी होती है ,भैंस भी उसी की मानी जाती है .ये बात अलग है कि भैंस की शक्ल,सूरत क्या है ?


आजकल लाठी भी उनकी है और भैंस भी उनकी. वे जो चाहे सो करें. बोलें या चुप रहें .घर में बोलें या विदेश में बोलें ,आप कोई सवाल नहीं कर सकते. सवाल करेंगे तो उनके भक्त आपको निर्लज्ज कहेंगे .लेकिन मै सचमुच इन बातों की परवाह नहीं करता .जब हमारे नेता किसी की परवाह नहीं करते तो मै क्यों करूँ ? मै तो ठहरा एक अदद मतदाता .वो मतदाता जो जनादेश देता है बदले में पूरे पांच साल तमाशा देखता है .जनादेश देना एक बात है और तमाशा देना दूसरी बात है .


बात भैंस और लाठी की चल रही है. आजकल आजमगढ़ में आजम खान की लाठी भी टूट चुकी है और उनकी भैंसें भी कोई खोल ले गया है .हमारे यहां चंबल में भैंस खोलना कुटीर उद्योग की श्रेणी में आता है .यहां भैंस खोलना और फिर भैंस की रिहाई के बदले में फिरौती मांगना आदिकालीन धंधा है. फिरौती को पनिहाई कहा जाता है .पनिहाई का रिश्ता शायद पन्हा से रहा होगा .भैंस वो ही खोल सकता है जिसका पन्हा बड़ा हो .हिन्दुस्तानी फिल्मों का लोकप्रिय संवाद है -जितना बड़ा जूता होता है ,पालिश भी उतनी ही ज्यादा लगती है चिनाय सेठ ‘.
बहरहाल यूपी में रामपुर और आजमगढ़ में बड़े-बड़े नेताओं की लाठियां तोड़कर भैंसे खोल ली गयीं है और पंत प्रधान कहते हैं कि ये चुनाव ऐतिहासिक हैं. ऐतिहासिक तो हैं ,क्योंकि इन चुनावों में पुर उजड़ गया और गढ़ धराशायी हो गया .होना ही था .जिन दो हजार के मतदान केंद्र पर दो लोग ही मतदान कर पाएंगे तो ऐसा ही होगा .ऐसा लोकतंत्र पूरी यूपी को मुबारक .ये जिसकी लाठी ,उसकी भैंस का सर्वोत्तम नमूना है .
भैंस सनातन पशु है . काला है,कुरूप है लेकिन वसा और दूसरे मामलों में सम्पन्न है. त्रेता में राम जी को दायजै [दहेज] में जो वस्तुएं मिलीं थीं उनमें भैंस भी शामिल थी .राजा जनक के पास जितनी गायें थीं उससे कहीं ज्यादा भैंसें भी थी .मेरी बात पर यकीन न हो तुलसीदास जी की राम चरित मानस बांच लीजिये .बहरहाल भैंस अगर लोकप्रिय न होती तो असुरों के नाम महिषासुर क्यों होते ? क्यों कुम्भकर्ण भैंस को अपने भोजन में शामिल करता ? क्यों महिषासुर मर्दनी अवतरित होतीं ?
भैंस युगानुरूप अपनी शक्ल-सूरत बदलती रहती है. कभी उसका रूप सत्ता सुंदरी का होता है तो कभी वो ईडी,डीडी बन जाती है .भैंस यानि महिषी .सबकी पसंद है. सब उसे अपने दरवाजे पर बाँधना चाहते हैं ,क्योंकि दुधारू भी होती और जखड़ भी .जब किसी राजमार्ग पर चलती है तो चाहे पंत प्रधान का कारकेट आ जाये अपनी जगह से टस से मस नहीं होगी .भैंस के ऊपर यातायात का कोई नियम लागू नहीं होता .भैंस केवल लाठी को पहचानती है .जिसके हाथ में लाठी होती है भैंस उसी के साथ चल देती है .भैंस नहीं देखती कि लाठी हाथ के हाथ में है या झाड़ू के हाथ में. कीचड़ में सने नेताओं के हाथ में है या हाथी छाप नेत्रियों के हाथ में, साइकल पर है या पैदल ? भैंस को केवल लाठी से मतलब .


भैंस को लोरना खूब आता है ..जहाँ जलाशय देखती है लोर जाती है. दलदल तो उसे अति प्रिय है. भैंस अपनी देह को दलदल में ऐसे चभोरती है जैसे की उबटन लगाया जाता है .भैंस पुत्र को यमराज ने अपना वाहन बना रखा है .कारण उसकी अपनी प्रवृत्तियां हैं . कुर्बानी के लिए भैंस या उसके बच्चों से अच्छा और कोई पशु नहीं है. गाय का बलिदान कोई नहीं देता. जो लोग भैंस अफोर्ड नहीं कर सकते वे बकरा,मुर्गा का विकल्प चुनते हैं ,लेकिन भैंस की कुर्बानी का कोई मुकाबला नहीं .भैंस जनादेश के बावजूद लाठियों के सामने बड़े ही अदब के साथ कुर्बान होती है .सदियों से होती आ रही है .महाराष्ट्र में भैंस को लोगों ने हांकने की गलती तो कर ली लेकिन न उसके ऊपर सवारी कर पा रहे हैं और न उसकी कुर्बानी ही दे पा रहे हैं और भैंस है की खड़ी-खड़ी पगुरा रही है .


भैंस भारत के अलावा पकिस्तान,चीन ,नेपाल, मिस्र,ईरान ,म्यांमार,इटली,तुर्की और वियतनाम में पायी जाती है .भैंस की अनेक प्रजातियां हैं .ये जनागल में रहने लगें तो जंगली कहलाने लगती हैं और शहरों -गांवों में आ जाएँ तो मुर्रा हो जातीं हैं .दुग्ध उत्पादन में इसका हिस्सा 60 फीसदी और मांस उत्पादन में 30 फीसदी है .यानि ये सिर्फ सत्ता सुंदरी नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था की भी पोषक है .भैंस का पगुराना जितना चर्चित है उतना ही उसका डोका भी चर्चित है. भैंस बोलती नहीं है केवल डोका देती है .हमारे बहुत से नेताओं में ये लक्षण पाए जाते हैं .
भैंस को संगीत में कोई दिलचस्पी नहीं रही. हमारे बुजुर्गों का अनुभव है कि आप भैंस के सामने खड़े होकर खूब बीन बजाते रहिये वो खड़ी-खड़ी पगुराती रहेगी .यानि नाद ब्रम्ह से भैंस का कोई लेना -देना नहीं. भैंस का अक्षरों से भी कोई लेना देना नहीं है फिर वे अक्षर चाहे किसी भाषा के हों ? भैंस के लिए काला अक्षर अपने बराबर का काला दिखाई देता है .भारत में भैंस को पूरा-पूरा सम्मान दिया जाता है तभी तो 36 साल पहले ही देश में भैंस अनुसन्धान केंद्र की स्थापना कर दी गयी थी .श्रीलंका में नेशनल भैंस उद्यान है .कम्बोडिया वाले बी भैंस का पूरा सम्मान करते हैं .


बहरहाल बात जिसकी लाठी उसकी भैंस की चल रही थी. तीस्ता सीतलवाड़ को शायद इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी इसीलिए उन्हें गुजरात की पुलिस उठा ले गयी .गुजरात पुलिस आजकल दलदल वाले दल की भैंस है .उसका काम ही आँख बंद काम करना है .गुजरात की पुलिस भी अपना-पराया नहीं देखती.उसे तो बस लाठी वाले हाथ दिखाई देते हैं .जो सत्ता की भैंस को आँख दिखायेगा या उसे बदनाम करेगा सीधा जेल जाएगा .भैंस को आँख दिखाना या बदनामकरना राष्ट्रद्रोह है .आपको सतर्क रहना चाहिए. आजमखान और अखिलेश यादव इसीलिए गच्चा खा गए .उन्होंने अपनी भैंस की रखवाली नहीं की और भैंस कब दूसरे के खूंटे से बांध गयी उन्हें पता ही नहीं चला .लोकतंत्र की सेहत के लिए भैंस की सेहत भी अच्छी होना चाहिए .भैंस और लोकतंत्र में एक ही साम्य है .ये दोनों लाठी से हाँके जाते हैं .जिसकी लाठी उसकी भैंस ही नहीं लोकतंत्र भी उसी का होता है .इसलिए भैंस के बजाय लाठी पर कब्जा करने की कोशिश कीजिये .लाठी हाथ में होगी तो सत्ता की भैंस आखिर कहाँ जाएगी ?

मध्यप्रदेश क्रिकेट का नया महाराजा मप्र, अभी तो पार्टी शुरू हुई है…

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राघवेंद्र सिंह

मध्य प्रदेश क्रिकेट टीम का रणजी ट्रॉफी मैच चैंपियन बनना एक सपने के सच होने जैसा है। 26 जून 2022 को यह और खास तब हो जाता है जब उसने 41 साल रणजी जीतने वाली मुंबई क्रिकेट टीम को छह विकेट से एक तरफा मात दी। कह सकते हैं हर सेक्टर में मध्यप्रदेश की आदित्य श्रीवास्तव क्रिकेट टीम मुंबई के महारथियों से आगे रही। कहने – सुनने और लिखने के लिए बहुत कुछ है और आगे भी काफी कहा जाएगा। लेकिन एक लाइन में लिखा जाए तो अभी तो मध्यप्रदेश क्रिकेट का सिल्वर टाइम शुरू हुआ है और गोल्डन टाइम आना शेष है। कोच “चन्द्र”कांत पंडित के साथ चन्द्र उदय हुआ है और कप्तान “आदित्य” श्रीवास्तव के साथ सूर्य उदय हो रहा है। टीम इंडिया में पहली बार मध्य प्रदेश के दो खिलाड़ी तेज गेंदबाज आवेश खान और बैट्समैन ऑलराउंडर व्यंकटेश अय्यर अपने हुनर से दुनिया का दिल जीत रहे हैं।

मप्र के महाराजा  बनने की कहानी शुरू हुई थी तेईस साल पहले चंद्रकांत पंडित की कप्तानी में। टीम मध्य प्रदेश बेंगलुरु के इसी स्टेडियम में पहली बार फाइनल में आने के बाद कर्नाटक से हार गई थी। इसके बाद लगा ग्रहण आज खत्म हुआ। अपने क्रिकेट जीवन में मध्य प्रदेश 23 साल के बाद दूसरी दफा रणजी ट्रॉफी के फाइनल में आया था। मुकाबला भी पहले की तरह बेंगलुरु के चेन्ना स्वामी क्रिकेट स्टेडियम में था। लेकिन सामने कर्नाटक क्रिकेट की रणजी टीम की जगह मुंबई थी।

तब के कप्तान चंद्रकांत पंडित जो आज के एमपी टीम के कोच थे। उन्हें खुर्राट कोच माना जाता है। चंदू सर याने कोच चंद्रकांत पंडित का जलवा ऐसा कि कोई खिलाड़ी गलत शॉट खेलकर आउट होकर पवेलियन आए तो उसकी क्लास चंदू सर इस तरह लेते थे कि उसका अहसास बल्लेबाजी या फील्डिंग कर रहे खिलाड़ियों से लेकर कमेंट्री बॉक्स तक मे महसूस होती थी। यही वजह है कि मुंबई जैसी प्रोफेशनली स्ट्रांग टीम के सामने पूरे मैच में कभी नही लगा कि एमपी की टीम कमजोर है। मुंबई के 374 के स्कोर के बाद एमपी की तरफ से तीन शतक लगना साफ संकेत दे रहा था कि मुंबई के अब आए हैं पहाड़ के नीचे। यश दुबे से लेकर शुभम शर्मा और रजत याने सिल्वर पाटीदार की गोल्डन बैटिंग और धमाकेदार सेंचुरी ने बता दिया था कि इस बार जीत की पार्टी तो एमपी ही करेगी। तेज गेंदबाज गौरव यादव और कुमार कार्तिकेय की जादूगरी फिरकी में मुंबई के सारे सुरमा जमीं पर नजर आए। इसमें संजीदगी भरे कप्तान आदित्य श्रीवास्तव ने जो फील्डिंग की जमावट और गेंदबाजी में चतुराई भरे बदलाव किए उसने क्रिकेट के पंडितों को प्रभावित कर दिया। जहां बॉल जाती खिलाड़ी बाउंड्री रोकने और कैच पकड़ने के लिए मौजूद दिखे।

वैसे तो रणजी ट्राफी के मैचों में आरम्भ से लेकर अंत तक एमपी चेम्पियन की तरह खेला। पहला मैच गुजरात को 106 रन से हराया। दूसरा मैच मेघालय को 301 रन से हराया। केरल से अलबत्ता मैच बुरा हुआ लेकिन पंजाब जैसे प्रदेश को एक तरफा 10 विकेट से हराया पांचवा मैच बंगाल को 174 रनों से मात दी और उसके बाद फाइनल में पहले दिन से मुंबई मुंबई पर हावी रहा यार एक बात थी मैच की कमेंट्री कर रहे हैं पूर्व खिलाड़ियों ने कमेंट्री बॉक्स से जरूर मुंबई को मजबूत बताने और उसे जिताने में कोई कसर नहीं छोड़ी ऐसा लगा जैसे कॉमेंटेटर मुंबई को जिताने के लिए ही कमेंट्री कर रहे हैं लेकिन बाद में जब मध्यप्रदेश जीता तो सभी ने एमपी के खिलाड़ियों की खुले मन से प्रशंसा की कह सकते हैं डोमेस्टिक क्रिकेट में मध्य प्रदेश नया महाराजा बनकर उभरा है और लगता है अभी कई साल तक मध्य प्रदेश की बात चाहत चलने वाली है क्योंकि इन्हें कोचिंग देने वाले चंद्रकांत पंडित से लेकर इंदौर भोपाल की बात करने तो ज्योति प्रकाश त्यागी बृजेश तोमर, शैलेश शुक्ला, भुवन शुक्ला और इंदौर की बात करें तो सबसे प्रमुख नाम निकल कर आता है टीम इंडिया के पूर्व क्रिकेटर अमय खुरासिया।

अमय खुरासिया ने लंबे समय से कोचिंग के टेलेंट सर्च में जो मेहनत दस पहले शुरू की उसके नतीजतन आईपीएल से लेकर टीम इंडिया में प्रदेश के खिलाड़ी अपने जोहर दिखा रहे हैं। क्रिकेट के गुरुओं ने जो कुछ इन खिलाड़ियों को सिखाया चंद्रकांत पंडित ने उन पर पॉलिश कर के और भी चमकाया और वह चमक इतनी तेज थी बेंगलुरु के स्टेडियम में लोगों की आंखें उससे चोंधिया रही थी। कहा जा सकता है भारतीय टीम में अब मध्य प्रदेश का योगदान दिल्ली, मुंबई और दक्षिण भारतीय क्रिकेटरों की तरह स्थाई बन सकता है। एक और बात मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूरी टीम को दिल से बधाई देते हुए प्रदेश लौटने पर भोपाल में उनका नागरिक अभिनंदन करने का ऐलान किया है । उम्मीद की जा रही है कि इस दौरान टीम पर मुख्यमंत्री चौहान का आशीर्वाद और इनाम स्वरूप धन की बारिश भी जमकर होगी। रणजी विजेता को पुरस्कार स्वरूप 2 करोड़ों का इनाम मिला है लगता है सरकार आशीर्वाद देने में करोड़ों रुपए की बारिश भी कर सकती है। पूरी टीम और जिले से लेकर डिवीजन और एमपीसीए के सभी कोच के लिए भी बहुत बधाई। उम्मीद करेंगे मध्य प्रदेश क्रिकेट का भविष्य आसमान में आदित्य की तरह चमकता जाएगा और सूरज की तरह निखरेगा।

क्या ‘ क्लीन चिट ‘ से धुल जायेंगे दाग ?

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@ राकेश अचल

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों के सिलसिले में एसआईटी द्वारा दी गयी ‘ क्लीन चिट ‘के खिलाफ देश की सबसे बड़ी अदालत ने एक याचिका खारिज कर दी लेकिन उसकी बहुत चर्चा नहीं हो पायी,कारण देश महाराष्ट्र संकट और राष्ट्रपति चुनाव में उलझा था .मोदी जी को क्लीनचिट मिले काफी समय हो चुका है लेकिन उसे लगातार चुनौती दी जा रही थी . गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री की विधवा ज़किया जाफ़री ने पिछले साल ये याचिका दायर की थी .
सब जानते हैं कि 2002 के गुजरात दंगे के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 59 लोगों को आरोपी बनाया गया था. इन दंगों की जांच एसआईटी कर रही थी. गुजरात दंगों की जांच के लिए गठित विशेष जाँच दल (एसआईटी) ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी थी.अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसायटी में हुए दंगों में कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफ़री समेत कुल 69 लोग मारे गए थे.इस मामले को लेकर जकिया लगातार न्यायिक लड़ाई लड़ रही थीं .


इस मामले में दो बातें महत्वपूर्ण हैं,पहला ये कि गुजरात में दंगे हुए थे और इन दंगों में लोग मारे गए थे और दूसरा ये कि इन दंगों के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 59 लोगों को आरोपी बनाया गया था .इन दंगों को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने भी नरेंद्र मोदी को राजधर्म निभाने की सलाह दी थी .लेकिन राजधर्म निभाया गया या नहीं ये सब जानते हैं .जकिया जाफरी भारतीय न्याय व्यवस्था में भरोसे का प्रतीक हैं. उन्होंने अपना संघर्ष बंद नहीं किया .वे लड़ती रहीं और देश की सबसे बड़ी अदालत की दहलीज पर भी उन्होंने दस्तक दी .


अब जब कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी जांच दल द्वारा दी गयी क्लीनचिट को परोक्ष रूप से मान्यता दे दी है तब जकिया जाफरी क्या करेंगी ? इससे पहले, विशेष मजिस्ट्रेट कोर्ट, गुजरात उच्च न्यायालय ने भी एसआईटी की क्लोज़र रिपोर्ट को चुनौती देने वाली ज़किया जाफ़री की याचिका को ख़ारिज कर दिया था. ज़किया जाफ़री ने इस मामले में नरेंद्र मोदी और अन्य कथित साज़िशकर्ताओं की भूमिका पर विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा जारी क्लीन चिट की फिर से जाँच की माँग की थी.
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस ए एस खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने आरोपों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूतों की कमी थी कि पूरी घटना एक बड़ी साज़िश का हिस्सा थी. साथ ही इस मामले में मेरिट की कमी है.मुमकिन है कि सबूतों कि कमी हो ,लेकिन एक विधवा आखिर एक सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ कितने सबूत जुटा सकती है ?जितने होता सकती थी ,उतने उसने जुटाए .सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जकिया ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है,हाँ उनका बेटा तनवीर इस फैसले से निराश जरूर है .
देश की अदलातें गवाह और सबूतों की बिना पर काम करती हैं .एसआईटी भी शायद यही काम करती है .कहते हैं कि देश की अदालतों को प्रभावित नहीं किया जा सकता ,लेकिन जांच दलों को किया जा सकता है .मुमकिन है कि जाकिया को ऐसा ही लगा हो और वे इसीलिए गुजरात हाईकोर्ट से होती हुई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची .जकिया ने एक कोशिश की थी,उन लोगों की आत्मा को शनिति और न्याय दिलाने के लिए जो ज़िंदा जलाकर मार दिए गए थे .मरने वाले बदनसीब थे इसीलिए वे मरे और मरने के बाद भी उन्हें इन्साफ नहीं मिला .इन्साफ इतनी सस्ती चीज भी नहीं है जो हाल मिल जाए .इन्साफ मिलने में पीढ़ियां फ़ोत हो जाती हैं.
जकिया की हिम्मत की दाद दी जाना चाहिए कि वे लगातार 22 साल से गुजरात दंगे के आरोपियों को सजा दिलाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ती आ रहीं हैं ,अन्यथा दूसरा कोई और होता तो अब तक टूट कर घर बैठ गया होता .टूटी और बिखरी तो जकिया जाफरी भी हैं,लेकिन उनके भीतर एक उम्मीद है जो उन्हें इस संघर्ष की ताकत दे रही है .देश की सबसे बड़ी अदलात में जकिया की याचिका ख़ारिज होने के बाद सवाल उठता है कि क्या न्याय का दरवाजा अब हमेशा केलिए बंद हो गया है ? क्या अब यह मामला यहीं ख़त्म हो जाएगा?क्या वादी के पास अभी भी न्यायिक विकल्प है?क्या कथित साज़िशकर्ताओं को अब बरी कर दिया जाएगा?


भारत को आजाद हुए 75 साल हो गए लेकिन दुर्भाग्य ये है कि यहां आज भी दंगे जब-तब हो ही जाते हैं और इससे बड़ा दुर्भाग्य ये है कि दंगाइयों को शायद ही कभी सजा मिल पाती हो .गुजरात से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए देशव्यापी सिख दंगे हों या जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का जबरिया निर्वासन .देश का कानों प्राय : दंगाइयों की गर्दन नाप नहीं पाता.मुश्किल तब और ज्यादा होती है जब सत्ता खुद इन दंगों के लिए आरोपित की जाती है .
हमारे देश में दो सच हैं ,पहला ये कि अपराध होते हैं और दूसरा ये कि आरोपियों को क्लीनचिट मिल जाती है और इस क्लीनचिट को लोग टंगे की तरह सीने से चिपकाये हुए घूमते भी हैं. पर सवाल ये है कि क्या सचमुच इन क्लीनचिटों को हासिल करने के बाद आरोपियों के सीने पर लगे दाग मिट जाते हैं ? शायद नहीं मिटते .ये मन का धन जरूर हो सकते हैं .अदालत के फैसले पर चूंकि याचिकाकर्ताओं ने ही कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है इसलिए और किसी को ये अधिकार नहीं है कि वो इस मामले में मीन-मेख निकाले .किन्तु ये मुद्दा जेरे बहस आना जरूर चाहिए ,क्योंकि ये सवाल अनुत्तरित ही रह जाता है कि आखिर दंगों में मारे गए लोगों को किसने मारा ?मरने वाले अपने आप तो नहीं मरे !


दंगे सभ्य समाज पर ही एक कलंक हैं ,इसलिए इन्हें किसी भी सूरत में क्षम्य नहीं कहा जा सकता .दंगाइयों की जाति,धर्म मायने नहीं रखती.दंगाई तो दंगाई होते हैं .उनका हिन्दू या मुसलमान होना कोई मायने नहीं रखता .ये एक प्रवृत्ति है और बेहद घातक प्रवृति है .काश कि क्लीनचिटों से देश के दामन पर लगे दंगों के तमाम दाग हमेशा केलिए धुल सकते ?

महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़, राज ठाकरे की मनसे में शामिल हो सकता है शिंदे गुट!

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सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र की लड़ाई:SC ने शिंदे गुट से पूछा- आप हाईकोर्ट क्यों नहीं गए, जवाब मिला- धमकाया जा रहा, माहौल सही नहीं

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महाराष्ट्र में पिछले एक सप्ताह से चल रहे सियासी ड्रामे के बीच नए समीकरण बनते दिख रहे हैं। अब खबर है कि शिवसेना का बागी एकनाथ शिंदे गुट राजनीति के नए विकल्प तलाश रहा है। शिवसेना के नाम पर राजनीति करने वाला शिंदे गुट ठाकरे नाम और हिंदुत्व दोनों को नहीं छोड़ना चाहता है। ऐसे में एकनाथ शिंदे गुट के 38 विधायक राज ठाकरे की पार्टी मनसे में शामिल हो सकते हैं। 

महाराष्ट्र के सियासी संग्राम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है। बागी विधायक एकनाथ शिंदे की याचिका पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बीएस पादरीवाला की बेंच ने पूछा कि आप पहले हाईकोर्ट क्यों नहीं गए। इस पर शिंदे की ओर से नीरज किशन कौल ने कहा- हमें धमकाया जा रहा है, कह रहे हैं कि शव वापस आएंगे। मुंबई में माहौल हमारे लिए ठीक नहीं।

इस केस में शिवसेना का पक्ष अभिषेक मनु सिंघवी रखेंगे। सुनवाई का लाइव टेलीकास्ट किया जा रहा है ताकि गुवाहाटी में बैठे बागी विधायक भी इसे देख सकें।

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो एकनाथ शिंदे ने इस मसले पर राज ठाकरे से दो बार फोन पर बातचीत भी की है। भले ही कहा जा रहा हो कि शिंदे ने राज ठाकरे की तबीयत जानने के लिए उन्हें फोन किया था, लेकिन इसकी असली वजह यही बताई जा रही है कि शिंदे गुट मनसे में शामिल होकर राज्य में राजनीति के नए समीकरण गढ़ना चाहता है। 

गुपचुप हुई मुलाकात में तय हो गया था सब?
रिपोर्ट्स की मानें तो शिंदे गुट का मनसे में विलय दो दिन पहले  देवेंद्र फडणवीस से एकनाथ शिंदे की गुपचुप मुलाकात में ही तय हो गया था। सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में देश के गृहमंत्री अमित शाह भी शामिल हुए थे। यहीं से नई रणनीति पर चर्चा हुई थी। हालांकि, भाजपा अभी भी शिंदे गुट के मनसे में विलय को लेकर संशय में है। इसकी वजह राज ठाकरे के तेवर हैं। 

क्यों पड़ रही विलय जरूरत?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भले ही एकनाथ शिंदे के पास शिवसेना के 38 बागी विधायकों का समर्थन हो, लेकिन नई पार्टी के रूप में उनको मान्यता मिलना आसान नहीं है। ऐसे में शिंदे गुट राष्ट्रपति चुनाव से पहले इस मसले को हल करना चाहता है। इसलिए, उसके लिए सबसे आसान यही है कि वह राज ठाकरे की पार्टी मनसे में विलय कर ले। ऐसे में उसके पास ठाकरे नाम भी बचा रहेगा और हिंदुत्व का एजेंडा भी।

देश का राष्ट्रपति कैसा हो ?….. जैसा हो ?

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राकेश अचल

देश में राष्ट्रपति चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ देश में फिर से एक शीर्ष ध्रुवीकरण कहिए या प्रयोग को लेकर अटकलें शुरू हो गयीं हैं .अब परम्पराओं और योग्यताओं का युग नहीं है.अब प्रयोगों का युग है. सत्तारूढ़ भाजपा को पिछली बार की तरह इस बार भी देश और दुनिया को चौंकाना है .पिछली बार भी राष्ट्रपति पद के लिए रामनाथ कोविंद का नाम अप्रत्याशित रूप से देश के सामने आया था .

‘ देश का राष्ट्रपति कैसा हो ?’ ऐसा नारा आजतक भारतीय राजनीति में नहीं लगा,क्योंकि देश की आजादी के बाद देश के पास इस पद के लिए एक से बढ़कर एक योग्य नेताओं की पूरी फ़ौज देश के पास थी .कांग्रेस को 1947 से 2012 तक राष्ट्रपति चुनने में एक या दो अवसरों पर मुश्किलों का सामना करना पड़ा,अन्यथा देश में 16 राष्ट्रपतियों का चुनाव बड़ी ही आसानी से सम्पन्न होता रहा .कांग्रेस राज की अंतिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी थे .भाजपा ने 2017 में पहली बार अपने मन का राष्ट्रपति चुना था .परम्परा की बात करें तो भाजपा को उप राष्ट्रपति पद पर उप राष्ट्रपति बैंकैया नायडू को पदोन्नत करना था लेकिन ऐसा हो नहीं रहा ,क्योंकि भाजपा के मन में कुछ और है .
नए राष्ट्रपति पद को लेकर भाजपा को एक ऐसा प्रत्याशी चाहिए जो आने वाले दिनों में वर्तमान राष्ट्रपति की तरह महत्वाकांक्षी न हो ,प्रोटोकॉल की परवाह न करता हो और सरकार को मुश्किल में डालने की जुर्रत न करता हो .साथ ही जातीय गणित में भाजपा के लिए वोटों की राजनीतिक हिसाब से भी उपयोगी हो .भाजपा के सामने इस समय अनेक विकल्प हैं. दुनिया भर में अल्पसंख्यकों की घोर उपेक्षा और प्रताड़ना केलिए कथित रूप से बदनाम हुई भाजपा सरकार किसी अल्पसंख्यक को भी इस पद पर ला बैठाये तो किसी को कोई हैरानी नहीं होना चाहिए .गौर तलब है कि इस समय भाजपा के पास लोकसभा हो या राज्य सभा कहीं भी कोई मुस्लिम नेता नहीं है .राज्य सभा चुनावों में भी किसी अल्पसंख्यक को टिकिट नहीं दिया गया .
भाजपा का एक सपना जयप्रकाश नारायण के बिहार को भी जीतना रहा है. दुर्भाग्य से बीते चार दशक में जबसे भाजपा वजूद में आयी है बिहार में स्वतंत्र रूप से राज नहीं कर पायी है. बिहार में सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री कांग्रेस के रहे ,इसके बाद जन क्रांति दल ,कांग्रेस [ओ ],जनता दल ,सोशलिस्ट पार्टी, और राजद के मुख्यमंत्री रहे लेकिन भाजपा को कोई मौका नहीं मिला.बिहार में जेडीयू के साथ भाजपा जरूर चौथी बार सत्ता में है .अब भाजपा के सामने एक मात्र विकल्प ये है कि वो जेडीयू से सौदाकर सुशासन बाबू यानि नीतीशकुमार को राष्ट्रपति बनाये और बदले में भाजपा के शाहनवाज खान या सुशील कुमार मोदी को मुख्यमंत्री बनाकर अपना सपना पूरा कर ले .मुमकिन है कि नीतीश बाबू इस सौदे के लिए राजी भी हो जाएँ .
भाजपा और जेडीयू के खेमे ने हाल ही में सुनियोजित तरिके से नीतीश बाबू का नाम राष्ट्रपति पद के लिए चलाया भी है .नीतीश बाबू के मन में भी लड्डू फुट रहे होंगे ,लेकिन ये नाम अंतिम नाम नहीं है .अभी भी भाजपा ऐन मौके पर नागपुर के निर्देश पर किसी और को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी घोषित कर दे तो कोई बड़ी हैरानी नहीं होना चाहिए .भाजपा को दरअसल रष्ट्रपति पद पर कोई शाखामृग ही चाहिए जो संयोग से नीतीश बाबू हैं नहीं .भाजपा को नीतीश बाबू उतने भरोसेमंद भी नहीं लगते जितने कि रामनाथ कोविंद थे .नीतीश बाबू भाजपा के लिए कांग्रेस के शासन में राष्ट्रपति बनाये गए ज्ञानी जैल सिंह भी साबित हो सकते हैं .जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की नाक में दम कर दिया था .
राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा को तकनीकी रूप से बहुत ज्यादा परेशानी आने वाली नहीं है ,क्योंकि राज्य सभा में भी उसकी सदस्य संख्या पर्याप्त है ,लोकसभा में तो है ही ,ऐसे में शायद ही कोई दल भाजपा के प्रत्याशी का विरोध करे. भाजपा की कोशिश होगी कि राष्ट्रपति का चुनाव सर्वसम्मति से हो ,लेकिन ये तभी मुमकिन है जब भाजपा कांग्रेस समेत अनेक विपक्षी दलों के नेताओं को ईडी और सीबाईआई के जरिये सताना बंद करे .भाजपा के साथ कांग्रेस और अन्य दलों के सौहार्दपूर्ण रिश्ते नहीं हैं .यहां तक कि ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे तक भी भाजपा से नाराज हैं .इसलिए अभी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव में अपना कोई सांकेतिक प्रत्याशी नहीं उतारेगा .
अतीत में राष्ट्रपति पद के चुनाव में ‘ अंतरात्मा की आवाज ‘ का भी आव्हान किया जा चुका है .ये आव्हान कांग्रेस ने खुद किया था और इसमें उसे आंशिक कामयाबी भी मिली थी .भाजपा के सामने इस समय ऐसी कोई परिस्थिति नहीं है. भाजपा में राष्ट्रपति पद के लिए न कोई दावेदार है और न कोई ऐसा नेता जो पार्टी नेतृत्व को इस मामले में दबाब में ले सके .भाजपा के सहयोगी दलों में भी जेडीयू को छोड़कर कोई ऐसा दल नहीं है जो भाजपा को आँख दिखा सके .भाजपा के पास विपक्ष को मैनेज करने वाले नेताओं की भी कमी नहीं है .भाजपा के पास एक से बढ़कर एक मैनेजर हैं जो पार्टी के लिए कुछ भी त्याग सकते हैं ,कहीं भी माथा टेक सकते हैं .किसी के लिए भी गगरौनी गा सकते हैं .
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। 18 जुलाई को मतदान की तिथि निर्धारित की गई है। वहीं 21 जुलाई को परिणाम जारी किया जाएगा। इसके लिए 29 जून तक नामांकन किए जा सकेंगे। आयोग ने बताया है कि राष्ट्रपति चुनाव की हर प्रक्रिया की वीडियोग्राफी कराई जाएगी।
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर दरअसल, कुछ दिनों से बीजेपी और जेडीयू के रिश्‍ते में काफी नजदीकियां देखी जा रही हैं। इतनी मिठास तब दिखाई दे रही है जब दोनों पार्टियां कई मुद्दों पर बिल्‍कुल विपरीत राय रखती हैं। अब बिहार की राजनीति पर नजर रखने वालों के लिए तो ये सवाल जरूर होगा कि आखिर ‘इस प्‍यार’ से क्‍या नाम दिया जाए ? दोनों दलों के बीच बढ़ती इसी मिठास की वजह से अटकलें लगाई जा रहीं है कि भीतर ही भीतर कहीं न कहीं गुड़ फूट रहा है .भाजपा इस चुनाव के बहाने देश-दुनिया में अपने खिलाफ बने वातावरण को बदलने के लिए कुछ तमाशा कर सकती है. शिगूफे छोड़ सकती है .ताकि लोग उलझे रहें .

महापौर के टिकट में कमलनाथ की चली

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TIO BHOPAL

कांग्रेस ने प्रदेश के 16 नगर निगम में से 15 में महापौर पद के प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। इस सूची में सबसे चौंकाने वाले नाम खंडवा, कटनी, बुरहानपुर और देवास से महिला उम्मीदवारों के सामने आए हैं। रतलाम में भूरिया फैक्टर के चलते पेंच फंसने के कारण नाम घोषित नहीं किया गया है। सभी 15 नामों में 13 कमलनाथ के दिए हुए हैं। पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह की सिफारिश वाले सिर्फ दो नाम फाइनल किए गए। हालांकि, दिग्विजय सिंह का कहना है कि सारे नाम उन्होंने और कमलनाथ ने मिलकर फाइनल किए हैं।

बुरहानपुर से 9वीं पास शहनाज अंसारी को उम्मीदवार बनाया गया है। देवास से पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा के करीबी रमेश व्यास की पत्नी को मैदान में उतारा गया है। यहां से दावेदारी कर रहीं श्वेता अग्रवाल का पत्ता बाहरी होने के कारण कटा। कटनी से जिला अध्यक्ष मिथलेश जैन की पत्नी राजकुमारी के बजाय लो प्रोफाइल, लेकिन फील्ड में एक्टिव श्रेया खंडलेवाल पर भरोसा जताया गया है।

खंडवा से पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव द्वारा प्रस्तावित लक्ष्मी यादव के बजाए आशा मिश्रा को टिकट दिया गया है। आशा के लिए शहर कांगेस नेताओं ने एकजुट होकर पैरवी की थी, जबकि छिंदवाड़ा से जिला आदिवासी प्रकोष्ठ अध्यक्ष विक्रम अहाके को महापौर का टिकट दिया गया है।

रतलाम का फैसला 15 जून तक होल्ड
कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि रतलाम से उम्मीदवार का फैसला 15 जून तक होल्ड किया गया है। दरअसल, यहां से मेयर पद के लिए दावेदारी राजीव रावत के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया कर रहे हैं, जबकि दूसरे दावेदार मयंक जाट को टिकट देने के लिए युवक कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रांत भूरिया दबाव बनाए हुए हैं। कांग्रेस के सामने ये दुविधा है कि युवा प्रत्याशी बनाया जाए या फिर अनुभवी को उतारा जाए।

यहां से दावेदारी कर रहे राजीव रावत 3 बार के पार्षद हैं। मयंक जाट वर्तमान में जिला युवा कांग्रेस अध्यक्ष हैं। मयंक जाट का एक प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है, जिस पर अगले 5 दिन में फैसला आने की संभावना है। इसके बाद अब रतलाम के महापौर पद के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार की घोषणा 15 जून के बाद ही होने की संभावना है।

कांग्रेस द्वारा कराए गए सर्वे में तीन बार पार्षद रहे राजीव रावत का नाम उभर कर सामने आया था। जिला युवक कांग्रेस अध्यक्ष मयंक जाट का नाम भी युवा चेहरे के तौर पर सर्वे में आया था। कांग्रेस के अन्य दावेदारों के मुकाबले यह दोनों नाम सर्वे में सबसे ऊपर आए थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने आज रतलाम के दोनों कांग्रेस विधायक, शहर कांग्रेस अध्यक्ष और रतलाम जिले के प्रभारी से वन टू वन चर्चा की थी।

खंडवा: आशा मिश्रा के नाम पर 5 दिन पहले दिग्विजय ने दी सहमति
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने खंडवा से लक्ष्मी यादव का नाम प्रस्तावित किया था, लेकिन पांच दिन पहले स्थानीय कांग्रेस के पुराने नेता वीरेंद्र मिश्रा की बहू आशा मिश्रा की दावेदारी के लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सहमति दी थी। इसके बाद आशा मिश्रा के नाम पर चर्चा शुरू हुई। चूंकि आशा मिश्रा के पति अमित मिश्रा पार्षद हैं, उनके साथ पूरी जिला कांग्रेस एकजुट हो गई। इतना ही नहीं, कमलनाथ समर्थक कुंदन मालवीय ने भी भोपाल में आशा मिश्रा को टिकट देने के लिए लॉबिंग की।

प्रदेश के बड़े शहरों में मेयर के टिकटों को लेकर भाजपा में मारामारी शुरू हो गई है। नगर निगम में मेयर के टिकटों के लिए भाजपा के प्रमुख नेता, सांसद और विधायकों ने अपनी पसंद पर जोर लगाना शुरू कर दिया है। वैसे भाजपा के अंदरूनी सर्वे की रिपोर्ट पर दो से तीन नामों को लेकर कोर कमेटी में चर्चा होगी।

भोपाल और इंदौर में पार्टी किसी नए चेहरे को चुनाव मैदान में उतारकर चौंका सकती है। भाजपा की कोर ग्रुप और चुनाव समित की बैठक 11 और 12 जून को होगी। इस बैठक में कोर ग्रुप और चुनाव समिति के सदस्य बैठकर नगर निगम के मेयर पद के चेहरों के लिए नामों को अंतिम रूप देंगे।

संगठन के सर्वे से तय होंगे उम्मीदवारों के नाम

प्रदेश भाजपा संगठन ने टिकटों के लिए गोपनीय सर्वे कराया है। सर्वे में तीन नाम की पैनल तैयार हुई है। कोर कमेटी में इन नामों पर चर्चा के बाद फायनल सूची जारी होगी।

प्रदेश के बड़े शहरों में मेयर के टिकटों को लेकर भाजपा में मारामारी शुरू हो गई है। नगर निगम में मेयर के टिकटों के लिए भाजपा के प्रमुख नेता, सांसद और विधायकों ने अपनी पसंद पर जोर लगाना शुरू कर दिया है। वैसे भाजपा के अंदरूनी सर्वे की रिपोर्ट पर दो से तीन नामों को लेकर कोर कमेटी में चर्चा होगी।

भोपाल और इंदौर में पार्टी किसी नए चेहरे को चुनाव मैदान में उतारकर चौंका सकती है। भाजपा की कोर ग्रुप और चुनाव समित की बैठक 11 और 12 जून को होगी। इस बैठक में कोर ग्रुप और चुनाव समिति के सदस्य बैठकर नगर निगम के मेयर पद के चेहरों के लिए नामों को अंतिम रूप देंगे।

संगठन के सर्वे से तय होंगे उम्मीदवारों के नाम

प्रदेश भाजपा संगठन ने टिकटों के लिए गोपनीय सर्वे कराया है। सर्वे में तीन नाम की पैनल तैयार हुई है। कोर कमेटी में इन नामों पर चर्चा के बाद फायनल सूची जारी होगी।

राजस्थान में BJP की शोभा रानी कुशवाह का वोट खारिज होने के आसार; महाराष्ट्र में नवाब मलिक की वोटिंग पर सस्पेंस

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TIO NEW DELHI

चार राज्यों की 16 राज्यसभा सीटों के लिए वोटिंग शुरू हो चुकी है। इनमें राजस्थान की 4, हरियाणा की 2, महाराष्ट्र की 6 और कर्नाटक की 4 सीटें शामिल हैं। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सबसे पहले वोट डाला। वहीं, महाराष्ट्र में डेढ़ घंटे में 50% मतदान हो गया है। 143 विधायक वोट डाल चुके हैं, इनमें 60 भाजपा के और 20 कांग्रेस के विधायक शामिल हैं।

राज्यसभा चुनाव वोटिंग से जुड़े अपडेट्स

हरियाणा में कांग्रेस के दो वोट रद्द हो गए हैं। किरण चौधरी और बीबी बत्रा ने एजेंट के अलावा दूसरे व्यक्ति को वोट दिखाया था।
हरियाणा के ही निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू ने राज्यसभा चुनाव में मतदान नहीं करने का ऐलान किया। इससे कांग्रेस के माकन की राह और मुश्किल हो गई है।
महाराष्ट्र में राज्यसभा चुनाव में सुबह 11:37 बजे तक 180 विधायक वोट डाल चुके हैं।
जेल में बंद नवाब मलिक को बॉम्बे हाईकोर्ट से भी राहत नहीं मिली, राज्यसभा चुनाव में वोटिंग के लिए याचिका में संशोधन करने को कहा है। मलिक की ओर से विधान भवन जाने के लिए पुलिस एस्कॉर्ट की मांग की गई थी।
पुणे से भाजपा विधायक मुक्ता तिलक को एम्बुलेंस में विधान भवन लाया गया।
महाराष्ट्र में ‌BJP को हराने के लिए ओवैसी की पार्टी AIMIM ने कांग्रेस के उम्मीदवार इमरान प्रतापगढ़ी को समर्थन देने का फैसला किया। हालांकि, इसका फायदा शिवसेना को मिलेगा जिससे AIMIM दो-दो हाथ करती आई है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले राजस्थान बसपा से कांग्रेस में आए 6 विधायकों ने वोट डाले। CM अशोक गहलोत के बाद इन्हीं छहों विधायकों ने वोट डाले। कांग्रेस ने रणनीति के तहत ऐसा किया है। इन विधायकों को वोटिंग से रोकने सुनवाई होती, इससे पहले ही ये वोटिंग कर चुके।

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि भाजपा का एक उम्मीदवार है जिसकी जीत तय है। सरप्लस वोट निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष चंद्रा को दिए जाएंगे। बाकी उनको कौन समर्थन देगा, इस बारे में सुभाष चंद्रा ही जानते हैं।
राज ठाकरे की पार्टी मनसे ने शिवसेना पर हमला बोला है। मनसे ने कहा है कि शिवसेना ने ओवैसी से समर्थन लिया, इससे उनका हिंदुत्व उजागर हो गया है। वे निजाम के वंशजों से भी समर्थन लेने में नहीं हिचकिचाते हैं।
शिवसेना नेता संजय राउत ने दावा किया है कि महाविकास अघाड़ी के सभी उम्मीदवार जीत दर्ज करेंगे। उन्होंने कहा, हमारे पास पर्याप्त समर्थन है।
उधर राजस्थान में विधायकों की खरीद-फरोख्त की आशंका को देखते हुए प्रशासन ने आमेर क्षेत्र में 12 घंटे के लिए इंटरनेट बंद कर दिया है।
पिंपरी चिंकवड के भाजपा विधायक बीमार होने के बावजूद मतदान करने निकले। भाजपा विधायक लक्ष्मण जगताप हाल ही में अस्पताल से डिस्चार्ज हुए हैं। वे आज सुबह एंबुलेंस से मुम्बई पहुंचे।

घायलों की मदद करने तुरंत पहुंच रही 108

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TIO SEHORE


सीहोर। सीहोर जिले में आए दिन सड़क हादसे की खबरें सामने आ रही है, लेकिन सड़क हादसे में घायलों की मदद करने के लिए जय अंबे कंपनी की108 एम्बुलेंस द्वारा तत्काल पहुंचकर घायलों को अस्पताल पहुंचाया जा रहा है, जिसकी ग्रामीण सराहना कर रहे है। ऐसा ही एक मामला गुरुवार को सामने आया था जब ग्राम बड़नगर जोड़ पर दो बाइक आपस में टकरा गई जिसमें 4 लोगों को गंभीर चोट आई। सूचना के बाद मौके पर पहुंची 108 के सुभाष सेन व पायलट धर्मेंद्र धर्मेंद्र वर्मा द्वारा प्राथमिक उपचार देने के बाद खअएर 108 एंबुलेंस द्वारा सीहोर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। जितेंद्र राजपूत ने बताया कि इस हादसे में प्रेम नारायण पिता देवी सिंह को नाक में फैक्चर होने के कारण जय कंपनी की 108 एंबुलेंस के द्वारा हमीदिया हॉस्पिटल भोपाल रेफर किया गया।

कमर तो टूटेगी, क्योंकि सरकार है आपकी

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राकेश अचल

जनादेश से चुनी हुई सरकार का हर कदम काबिले तारीफ़ हो या न हो लेकिन आपको तारीफ़ करना चाहिए,विरोध करने के लिए हम जैसे बदनाम लोग मौजूद हैं.जैसे सरकार ने मंहगाई पर लगाम लगाने में अपनी नाकामी को परोक्ष रूप से स्वीकार करते हुए अब बैंक की ‘ रेपो रेट ‘ बढाकर आपकी कमर तोड़ने का पूरा इंतजाम कर दिया है .अब यदि आपने बैठक से किसी भी तरह का ऋण लिया है तो आपकी मासिक किश्त चाहें या न चाहे बढ़ने वाली है ,भले ही आपकी आमदनी बढ़ी हो या न बढ़ी हो.
रेपो रेट क्या होती है ये न आप समझ सकते हैं और न हम आपको समझा सकते हैं .बैंकें भी कभी अपने ग्राहक को इस बारे में कभी नहीं समझातीं .उन्हें इसकी जरूरत ही नहीं होती. बैंक ‘ अपना हाथ,जगन्नाथ ‘ यानि सर्वशक्तिमान होती है.जब ,जो चाहे फैसला कर सकती है . उसे आपसे पूछने की कोई जरूरत नहीं है,क्योंकि बैंक जानती है कि उसका ग्राहक खूंटे से बंधी गाय है ,जिसे जब चाहे तब दुहा जा सकता है ,और वो विरोध में आह भी नहीं भर सकता .


भारत की सीतारामी अर्थ व्यवस्था का ही परिणाम है कि कुल चार साल में ही करीब 4 साल के अंतराल में ही एक बार फिर से ब्याज दरें बढ़ने का दौर लौट आया है. कई साल के उच्च स्तर पर पहुंची महंगाई ने रिजर्व बैंक को रेपो रेट बढ़ाने पर मजबूर कर दिया है. इसके बाद मई और जून में दो बार रेपो रेट को बढ़ाया जा चुका है. अब रेपो रेट 0.90 फीसदी बढ़कर 4.90 फीसदी हो चुका है. रेपो रेट बढ़ने का असर बैंकों पर भी होने लगा है और वे ब्याज दरें बढ़ाने लग गए हैं. इसका खामियाजा अंतत: उन लोगों को भुगतना है, जो होम लोन या पर्सनल लोन की किस्तें चुका रहे हैं.
अब अगर आप देशभक्त हैं तो भारतीय रिजर्ब बैंक की मजबूरी को समझिये और बढ़ी हुई मासिक किश्तें देने के लिए तैयार रहिये और यदि आप देशभक्त नहीं हैं तो सड़कों पर आकर बैंक के इस फैसले का विरोध कीजिये,जो करना आप पिछले आठ साल में भूल चुके हैं .सरकार का दावा कहिये या तर्क कि कोरोना महामारी के बाद रिजर्व बैंकने अर्थव्यवस्थाको रफ्तार देने के लिए लगातार रेपो रेट को कम किया. रेपो रेट कम होने लगा तो बैंकों ने भी ब्याज दरें कम की. इस तरह ब्याज दरें कई दशक के सबसे निचले स्तर पर आ गईं. करीब दो साल तक रेपो रेट 4 फीसदी पर स्थिर रहा और इस कारण दो साल तक लोगों को सस्ते में कर्ज मिलता रहा. हालांकि महंगाई ने सस्ते कर्ज का दौर समाप्त कर दिया.
पहली बार मई में रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को 0.40 फीसदी बढ़ाकर 4.40 फीसदी किया था. इसके बाद जून की बैठक के बाद आज बुधवार को रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को 0.50 फीसदी बढ़ाया है और आने वाले महीनों में रेपो रेट और बढ़ने का अनुमान है .अनुमान क्या है उसे तो बढ़ना ही है,क्योंकि सरकार के पास अब दूसरा कोई विकल्प बचा नहीं है .सीताराम अर्थ व्यवस्था का ही नतीजा है कि एक और महंगाई बढ़ रही है,दूसरी और रूपये का लगातार अवमूलयन हो रहा है. डालर के सामने रुपया कमर झुका कर खड़ा है. शेयर मार्किट लगातार लुढ़क रहा है. सोना-चांदी के दाम गिर रहे हैं .


हर मोर्चे पर लगातार मुंह की खा रही सरकार को अगले दो साल तक आपकी कमर तोड़ने के अनेक इंतजाम अभी और करना होंगे .पिछले चार साल में दूसरी समस्याओं की तरह रेपो रेट 0.90 फीसदी बढ़ा है. बैंक भी इसी अनुपात में लोन की ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं. गुना-भाग में दक्ष हमारे एक रिश्तेदार बता रहे हैं कि यदि आपने 20 साल के लिए 30 लाख रुपये का होम लोन लिया हुआ है और ब्याज दर 7 फीसदी है. अगर रेपो रेट की तर्ज पर आपके बैंक ने भी ब्याज को बढ़ाया तो आपकी ईएमआई 23,259 रुपये से बढ़कर 24,907 रुपये हो जाएगी. इसका मतलब हुआ कि आपकी ईएमआई 1,648 रुपये बढ़ जाएगी. यानी लोन के हर एक लाख रुपये के लिए ईएमआई 55 रुपये बढ़ेगी.बेचारे अब तक अंधभक्त थे अब उनकी रौशनी लौट आयी है और उन्हें बढ़ती हुई मंहगाई साफ़-साफ़ नजर आने लगी है .
मेरे पास तो पंद्रह साल पुरानी कार है इसलिए मुझे ख़ास फर्क पड़ने वाला नहीं है किन्तु यदि आपने 7 साल के लिए 8 लाख रुपये का व्हीकल लोनलिया है तो यहां भी ईएमआई पर असर पड़ने वाला है. अभी कार लोन औसत ब्याज दर 10 फीसदी के आस-पास है. यह रेपो रेट की तर्ज पर बढ़ने से 10.9 फीसदी हो जाएगी. ऐसा हुआ तो अभी जो ईएमआई 13,281 रुपये प्रति महीने बन रही है,वह बढ़कर 13,656 रुपये हो जाएगी. यानी ईएमआई हर महीने 375 रुपये बढ़ेगी. पर्सनल लोनका उदाहरण लें तो 14 फीसदी ब्याज दर पर 5 साल के 5 लाख रूपये के प्रकरण में ईएमआई 11,634 रुपये से बढ़कर 11,869 रुपये हो जाएगी. यानी इस केस में मासिक किश्त यानि ईएमआई 235 रुपये बढ़ेगी.


मजे की बात ये है की आपकी कमर पर बोझ बढ़ाने वाली सरकार ने इसे कम करने का विकल्प भी आपके ऊपर ही छोड़ दिया है .अब आप या तो बढ़ी हुई किश्तें दीजिये या फिर अपने रोंण की मियाद बढ़वाइये .ऋण की मियाद बढ़वाने से आपकी किश्त तो कम हो जाएगी लेकिन आपको अपने ऋण पर लम्बे समय तक व्याज अदा करना होगा .यानि अब खरबूजा बना दिए गए हैं आप. अब कटना आपको ही है ,भले ही कोई आपको चाकू से काटे या आपको चाकू के ऊपर रख कर चलता बने .
मुद्दा तकनीकी है इसलिए आपके पल्ले नहीं पड़ेगा लेकिन जब आपकी किश्त बढ़कर जाएगी तब आपको पता चलेगा की बैंक ‘ जबर है ,मार भी रही है और आपको रोने भी नहीं दे रही . देश में होम लोन लेने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है क्योंकि आज की मंहगाई में कोई भी बिना ऋण के घर खरीद ही नहीं सकता ,कार खरीद नहीं सकता,घर में सोफा,ऐसी,टीवी लेन के लिए भी उसे बैंक से ऋण लेना ही पड़ता है .ऐसे में सरकार के पास बलि के बकरों की कतार लगी ही रहती है .आप भी देख लीजिये की कहीं आपके ऊपर तो कोई ऋण नहीं है ? यदि है तो फटाफट निबटाइये या फिर खुद किश्तों में निबटिये.