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ऊपरी सदन की गरिमा को ठेस पहुँची है

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TIO ममता पंडित

राष्ट्रीय पार्टियों कईं ईमानदार कार्यकर्ता मात्र ट्विटर पर एक लाइन में अपना विरोध दर्ज करा कर चुप बैठ जाते हैं।
एक जमाना था राज्यसभा के लिए मनोनीत होना या चुना जाना गर्व का विषय होता था । कईं बढ़े बढ़े नाम हैं जिन्होंने राज्यसभा की शोभा बढ़ाई है । संविधान के अनुसार राज्यसभा में विशेषज्ञ व बुद्धिजीवी वर्ग के व्यक्तियों को जगह मिलेगी जो उनके सम्मुख लाये गए मसलों को किसी पार्टी विशेष की विचारधारा से ऊपर उठकर देखेंगे अपनी राय रखेंगे । क्या हम यह उद्देश्य पूरा कर पा रहे हैं ? नहीं । आज राज्यसभा भी संख्या गणित का एक हिस्सा बन कर रह गई है । यही हाल विधानपरिषद का हो गया है ।
निचले सदन जो भी पार्टी बहुमत में है उसकी यही कोशिश होती है किसी तरह ऊपरी सदन में भी वे बहुमत में हो ताकि किसी बिल को पास कराने में कठिनाई न हो ।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दावा करने वाले इस देश में आज ऊपरी सदन की गरिमा की भी ठेस पहुंचाई जा रही है । फिर भी कुछ कहानियां हैं जो अपवाद हैं । संलग्न तस्वीर राष्ट्रीय जनता दल की एक कार्यकर्ता मुन्नी रजक की की है जिसे लालू प्रसाद यादव विधानपरिषद का उम्मीदवार बनाया है । इस कार्यकर्ता ने राबड़ी देवी के घर के बाहर ही रही उनकी समर्थन रैली में हिस्सा लिया था । मुन्नी देवी पटना स्टेशन पर कपड़े धोने और इस्त्री का काम करती हैं । इनके पास अपना फोन भी नहीं है । ये बदलाव की तस्वीर है , वह बदलाव जिसकी देश को सख्त जरूरत है ।

बाँधिए मज़मून संजीदा तो फिर
आप की नाज़ुक-ख़याली जाएगी…..
वक़्त आ गया है कि संजीदा मसलों पर देशव्यापी बहस छेड़ी जाए और  नाज़ुक ख्याली से दौर से बाहर आकर कुछ मजबूत फैसले लिए जाएं ।

चिंतन में डूबी कांग्रेस पर नजर

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राकेश अचल

देश की सबसे पुरानी और बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस इन दिनों जयपुर में चिंतन में डूबी है.देश में यत्र-तत्र डूबने के बाद पार्टी का चिंतन -मनन करना जरूरी भी है और मजबूरी भी ,क्योंकि देश की उम्मीदें आज भी विपक्ष के रूप में कांग्रेस पर टिकी हुईं हैं. कांग्रेस विहीन भारत बनाने का संकल्प लेकर राजनीति कर रही सत्तारूढ़ भाजपा की नजरें भी कांग्रेस के चिंतन शिविर पर हैं .
कांग्रेस के लिए इक्कीसवीं सदी का मौजूदा दशक पराभव का दशक है. आप इसे अपनी सुविधा से नाकामियों का दशक भी कह सकते हैं. कांग्रेस संसद से लेकर सड़क तक लगातार तनखीन होती जा रही है फिर भी विसंगति ये है कि पूरा देश कांग्रेस से ही भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विकल्प की उम्मीद करता है .कांग्रेस का मौजूदा नेतृत्व आज सवालों के घेरे में है .उसके खिलाफ पार्टी के भीतर असंतोष है ,इसलिए कांग्रेस में भीतर और बाहर से बदलाव की सख्त जरूरत है .
कांग्रेस को अतीत में कांग्रेस बनाने वाली बुजुर्ग हो रहीं श्रीमती सोनिया गाँधी को चिंतन शिविर में सुनकर कम से कम इतना संतोष तो लोग कर ही सकते हैं कि उन्हें कांग्रेस की मौजूदा स्थिति के साथ ही देश की आकांक्षाओं का अनुमान है .उन्होंने बहुत ही संजीदा तरिके से वे तमाम मुद्दे गिनाये जो कांग्रेस के कायाकल्प के बिना नहीं हल किये जा सकते .श्रीमती सोनिया गांधी आज भी कांग्रेस की ऐसी सर्वमान्य नेता हैं जिनके खिलाफ बगावत करने का साहस पार्टी के भीतर बने तमाम नए गुट भी नहीं कर पा रहे .सोनिया गांधी का भाषण सुनते समय आपको देश के प्रधानमंत्री जी के सम्भाषण की शैली को भी याद रखना चाहिए . सोनिया ने मसखरापन दिखाया और न आंसू बहाये ,न ताली पीटी और न उत्तेजित हुईं ,बल्कि पहले की तरह ही उन्होंने अपनी बात बिंदुवार देश के सामने रखी .

कांग्रेस के तीन दिवसीय चिनत शिविर के साथ कांग्रेस एकदम महाबली हो जाएगी ऐसा सोचना,समझना और कहना मजाक होगा क्योंकि कांग्रेस को अपना खोया हुआ इकबाल हासिल करने के लिए मीलों लंबा सफर तय करना है .कांग्रेस राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा में बहुत पिछड़ चुकी है ,बिखर चुकी है ,बावजूद उसका वजूद बना हुआ है .कांग्रेस से ही उम्मीद की जा रही है कि वो आगे बढ़कर भाजपा के अश्वमेघ को रोके ,लगाम थामें .अब सवाल ये है कि जयपुर के चिंतन शिविर के बाद क्या सचमुच कांग्रेस बदल पाएगी ? क्या सचमुच कांग्रेस का निर्जीव संगठन भाजपा के हर तरह से शक्ति सम्पन्न संगठन का मुकाबला करने लायक बन पायेगा ?
सब जानते हैं कि कांग्रेस ने इस देश के नवनिर्माण में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई है,इसकी वजह ये है कि कांग्रेस को देश पर सबसे ज्यादा लबे ससमय तक शासन करने का अवसर भी मिला है .कांग्रेस की जगह यदि किसी और पार्टी को ये मौक़ा मिला होता तो मुमकिन है कि परिदृश्य कुछ और होता .मुमकिन है कि फिर देश में भाखड़ा नांगल बाँध की जगह मंदिर ही मंदिर खड़े दिखाई देते ,लेकिन संयोग से ऐसा नहीं हुआ .

कांग्रेस की कुंडली में शायद शनि का ही प्रकोप है कि उसके पास आज न आक्रामकता है और न देश को अँधेरी सुरंग में जाने से रोकने की ताकत .बावजूद कांग्रेस लगातार लड़ रही है .मुसलसल पराजय से भी उसकी लड़ाई रुकी नहीं है इस बात से कोई नाइत्तफाकी नहीं हो सकती कि कांग्रेस के पास सत्ता का ज्यादा और विपक्ष का कम अनुभव है ,लेकिन इतना कम भी नहीं है कि वो आज की तारीख में सत्तापक्ष का मुकाबला कर ही न पाए .कांग्रेस के अलावा देश में देश के मौजूदा नेतृत्व को चुनौती देने वाले दूसरे दलों के नेताओं की कमी नहीं है किन्तु किसी के पास भी कांग्रेस पार्टी जैसा विस्तृत अतीत और विश्वसनीयता नहीं है. अधिकाँश दशक,दो या तीन दशक पहले जन्मी राजनीतिक पार्टियां हैं दुर्भाग्य से एक भी पार्टी का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार भी नहीं हो पाया है भले ही उनके नाम के आगे नेशनल जुड़ा हो .कांग्रेस के अलावा जितने भी राजनीतिक दल हैं उनमें से अधिकाँश क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं .कोई हिंदी पट्टी का है तो कोई किसी एक ख़ास सूबे का .

कांग्रेस के पास तमाम खामियों के बाद भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल की पहचान है. अतीत है,भविष्य है और वर्तमान है .आम आदमी की तरह मै भी कांग्रेस से निराश हूँ हालाँकि मैंने आम आदमी की ही तरह कांग्रेस की सदस्य्ता कभी हासिल नहीं की , विकल्प के रूप में जैसे कभी भाजपा मेरी पसंद हुआ करती थी ,वैसे ही आज कांग्रेस मेरी पसंद है .वामपंथी राजनीतिक दल भी मेरी पसंद रहे हैं लेकिन एक राजनीतिक दल के रूप में उनका अवसान हो चुका है .एक जमाने में वामपंथी दल भरोसेमंद ‘ स्पीड गवर्नर ‘ हुआ करते थे ,आज उनकी हैसियत किसी के पास नहीं है .अधिकाँश क्षेत्रीय दल सत्तारूढ़ भाजपा से अपने हिस्से का एक पोंड गोश्त लेने की होड़ में हैं .
कहते हैं कि ‘ मरा हुआ हाथी भी सवा लाख ‘ का होता है .इस लिहाज से कांग्रेस की कीमत आज भी बरकरार है .कांग्रेस राजनीति का मरा हुया हाथी ही सही किन्तु उसमें प्राण फूंके जा सकते हैं .कांग्रेस में प्राण फूंकने के लिए किसी फेंकू नेतृत्व की नहीं बल्कि एक संजीदा और आक्रामक नेतृत्व की जरूरत है. श्रीमती सोनिया गाँधी अब ये काम कर नहीं सकतीं.वे पार्टी के लिए एक बेहतर परामर्शदाता हो सकतीं है ,उनकी बेटी प्रियंका वाड्रा मेहनती है लेकिन उत्तर प्रदेश की पराजय ने उन्हें भी निराश किया है .बचे राहुल गांधी ,तो अब कांग्रेस को उन्हीं पर दांव लगना पडेगा .वे कांग्रेस के संस्कारों से परिपूर्ण हैं ,परिश्रमी हैं और आज के भाजपाई नेतृत्व को चुनौती देने के लिए सक्षम भी हैं .तीसरा कोई नेता कांग्रेस के पास फिलहाल दूर-दूर तक नजर नहीं आता .कोई सामने आ जाये तो बहुत अच्छा है .

दुनिया के सबसे मजबूत लोकतंत्र भारत को लगातार असहिष्णुता,संकीर्णता और मजहबी बनाने कि और धकेला जा रहा है .इतिहास खंगाला जा रहा है और भूगोल बदलने के दावे किये जा रहे हैं. अर्थशास्त्र की फ़िक्र किसी को है नहीं .सबके सब सातवें आसमान पर हैं .उन्हें जमीन पर लाना आसान काम नहीं है किन्तु असम्भव भी नहीं है .जयपुर से चिंतन-मनन के बाद निकली कांग्रेस भविष्य में सामने खड़ी चुनौतियों का मुकाबला कितना और कैसे कर पाएगी ,इसी पर सभी की नजर है .नजर रखिये कांग्रेस पर क्योंकि आज के नेतृत्व में जितनी भी गड़बड़ियां है वे सब आयीं कांग्रेस से ही हैं .इसीलिए कांग्रेस के पास ही इन्हें सुधरने का तरीका भी हो सकता है .अधिनायकवाद,भ्रष्टाचार ,तुष्टिकरण के बारे में भाजपा को क्या पता था ? वो तो जुम्मा-जुम्मा 42 साल पहले जन्मी है .उसे ये तमाम रास्ते कांग्रेस ने ही दिखाए हैं ,आप कह सकते हैं कि कांग्रेस को उसके किये की सजा मिल चुकी है .अब कांग्रेस के श्राप विमोचन का समय है .कांग्रेस चाहे तो फिर से नया इतिहास लिख सकती है जैसा कि प्रयास भाजपा कर रही है .

नायकों की क़तार में कहां खड़े दिखना चाहते हैं पीएम ?

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श्रवण गर्ग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का असली स्वरूप कौन सा है ? केंद्र की सत्ता में आठ साल और उसके पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में बारह साल गुज़ार लेने के बाद भी इस बात का ठीक से पता लगना कठिन है कि मोदी अपने असली अवतार में क्या हैं ! क्या वे वही हैं जो विदेश यात्राओं में अन्य शासनाध्यक्षों से मुलाक़ातों के दौरान या उन देशों में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों से बातचीत में दिखाई पड़ते हैं या फिर वैसे हैं जब अपने ही देश के साधारण नागरिकों के बीच उनका प्रकटीकरण होता है ?

आने वाले सालों में जब किसी एक दिन मोदी भारत राष्ट्र के प्रधानमंत्री के पद पर नहीं होंगे तब इतिहासकारों द्वारा उनके लम्बे कार्यकाल के हरेक तरह के निष्पक्ष मूल्यांकनों में शायद यह भी शामिल रहेगा कि अपनी दर्जनों विदेश यात्राओं के दौरान दूसरे शासनाध्यक्षों और उन देशों के मूल नागरिकों के बीच अपने व्यक्तित्व और वक्तृत्व की वे कैसी छाप छोड़ पाए ! विदेश यात्राओं के दौरान उनके द्वारा गढ़ी जाने वाली भारत की छवि की तुलना उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों के विदेश दौरों से भी की जाएगी।इतिहासकारों के मूल्यांकनों में सम्भवतः यह भी शामिल रहेगा कि अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के प्रति किस तरह का स्पष्ट सम्मान या अप्रत्यक्ष असम्मान उन्होंने पराई ज़मीनों पर दर्शना उचित समझा।

प्रसिद्ध लेखिका और अंग्रेज़ी की पत्रकार सागरिका घोष ने अपनी फ़ेस बुक वॉल पर नेहरू युग के प्रतिष्ठित राजनयिक 98-वर्षीय एम के रसगोत्रा से हुई मुलाक़ात का ज़िक्र किया है।अटल जी पर लिखी अपनी किताब की प्रति उन्हें भेंट करने के दौरान रसगोत्रा ने सागरिका के साथ वह क़िस्सा शेयर किया जब वे 1950 के दशक में भारतीय राजनयिक के तौर पर न्यूयॉर्क में कार्यरत थे।प्रधानमंत्री नेहरू के सहयोगी एम ओ मथाई ने एक दिन फ़ोन करके उन्हें सूचना दी कि अटल जी अमेरिका की यात्रा करने वाले हैं और प्रधानमंत्री चाहते हैं कि उनका परिचय सभी प्रमुख अमेरिकी और अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों से करवाया जाए।अटल जी का अच्छे से ख़याल भी रखा जाए।

रसगोत्रा द्वारा अटलजी के सम्मान में आयोजित किए गए रात्रि भोज में जब एक अधिकारी ने प्रधानमंत्री नेहरू की गुट-निरपेक्ष नीति की आलोचना की तो अटलजी ने नाराज़ होकर जवाब दिया कि आपको पंडित जी के बारे में इस तरह की बात नहीं करना चाहिए ।आज़ादी मिलने के समय हमारे पास कुछ भी नहीं था।हमारे पास अपनी कोई स्वतंत्र विदेश नीति नहीं थी।हमारे पास आज जो कुछ भी है उसकी बुनियाद में नेहरू ही हैं।

मोदी जब हाल ही में तीन देशों की यात्रा पर गए तो बर्लिन में भारतीय समुदाय के कोई हज़ार-बारह सौ लोगों को अपने उद्बोधन में नेहरू के नाती और देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बारे में उनका बग़ैर नाम लिए जो कुछ कहा उसने भारत के उस गौरवशाली अतीत को कटघरे में खड़ा कर दिया जिसका कि ज़िक्र रसगोत्रा ने सागरिका से किया था।

किसी जमाने में अकाल और भुखमरी के लिए कुख्यात रहने वाले उड़ीसा के कालाहांडी ज़िले की वर्ष 1985 में प्रधानमंत्री के तौर पर यात्रा के दौरान राजीव गांधी ने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर तकलीफ़ ज़ाहिर की थी कि दिल्ली से भेजा जाए वाला एक रुपया जरूरतमंदों तक पहुँचने तक पंद्रह पैसे रह जाता है।

अपनी सरकार द्वारा गवरनेंस में तकनीकी के उपयोग के ज़रिए धन की राशि लाभार्थियों तक सीधे पहुँचाने का ज़िक्र करते हुए मोदी ने अपने उद्बोधन में कटाक्ष किया :’अब किसी प्रधानमंत्री को यह कहना नहीं पड़ेगा कि मैं दिल्ली से एक रुपया भेजता हूँ और नीचे पंद्रह पैसे पहुँचते हैं।’

प्रधानमंत्री यहीं नहीं रुके। अपने दाहिने हाथ के पंजे को फैलाकर उसे बाएँ हाथ की अंगुलियों से कुछ क्षणों तक घिसते हुए मोदी ने पूछा:’ वह कौन सा पंजा था जो 85 पैसा घिस लेता था ?

वर्तमान प्रधानमंत्री जब एक विदेशी ज़मीन पर अपने ही देश के पूर्व प्रधानमंत्री का बग़ैर नाम लिए मज़ाक़ उड़ा रहे थे उनके सामने बैठे हुए भारतीय मूल के हज़ार से अधिक सम्भ्रांत नागरिक खिलखिलाते हुए तालियाँ बजा रहे थे।

देश की जनता और विपक्ष प्रधानमंत्री के इतने सालों के शासन के बाद भी समझ नहीं पा रहा है कि मोदी अपने आपको दुनिया के नायकों की क़तार में किस स्थान पर खड़ा हुआ देखने की आकांक्षा रखते हैं या फिर राष्ट्र के जीवन में अपने किस योगदान के लिए विश्व इतिहास में जगह सुरक्षित करना चाहते हैं !

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अगस्त 1955 में सऊदी अरब के किंग सऊद की भारत यात्रा के बाद से पिछले सात दशकों में दुनिया भर के सैंकड़ों राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष भारत की यात्रा पर आए होंगे पर (शायद ही )किसी एक ने भी हमारी ज़मीन का उपयोग अपने देश में उपस्थित राजनीतिक विरोधियों की किसी भी रूप में आलोचना करने या उन पर कटाक्ष के लिए नहीं किया होगा।न ही ऐसा किसी भी पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री ने अपनी औपचारिक विदेश यात्राओं में किया होगा।

यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं कि विदेशों में बसे भारतीय समुदाय के लोग ह्यूस्टन में ‘अब की बार ,ट्रम्प सरकार’ के नारे भी मोदी के साथ लगा लेते हैं और जब प्रधानमंत्री बर्लिन में बग़ैर नाम लिए राजीव गांधी की खिल्ली उड़ाते हैं तो उस पर भी तालियाँ बजा देते हैं।भारतीय मूल के कोई दो लाख नागरिक इस समय जर्मनी में रह रहे हैं।

कम से कम दो प्रधानमंत्रियों—अटल जी और डॉ मनमोहन सिंह—के मीडिया दल में अमेरिका सहित कुछ देशों की यात्राएँ करने का मुझे अवसर प्राप्त हो चुका है।दोनों ही लोकप्रिय नेताओं ने अपनी यात्राओं के दौरान शीर्ष वार्ताओं के साथ-साथ भारतीय मूल के नागरिकों के समूहों से भी संवाद किया है।याद नहीं पड़ता कि किसी एक भी अवसर पर उन्होंने उन देशों की घरेलू राजनीति अथवा भारत में अपने राजनीतिक विरोधियों को लेकर कोई अप्रिय टिप्पणी की होगी।

इस तरह के आरोपों से इनकार किया जाना कठिन होगा कि मोदी की विदेश यात्राओं का उपयोग भारत को एक मज़बूत प्रजातांत्रिक राष्ट्र के रूप में विदेशी जन-मानस के बीच स्थापित करने के बजाय प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत छवि को मज़बूत करने के लिए ज़्यादा किया जाता है और इस काम में मदद देश का वह मीडिया ही करता है जिसकी विश्वसनीयता पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है।

यह भी कोई कम चौंकनेवाली बात नहीं कि प्रधानमंत्री स्वयं के देश में तो पत्रकारों के सवालों के जवाब देने से इनकार करते ही हैं ,अपनी विदेश यात्राओं में भी वहाँ के शासनाध्यक्षों के साथ संयुक्त प्रेस वार्ताएँ नहीं करते।इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि वे उन प्रश्नों का सामना नहीं करना चाहते जिनके अप्राप्त उत्तर विदेशों में बसने वाले उन भारतीयों के लिए आँखें नीची करने की बाध्यता नहीं बन जाएँ जो प्रधानमंत्री के उद्बोधनों के दौरान ‘मोदी है तो मुमकिन है के नारे लगते नहीं थकते।

इसे एक दुर्भाग्यपूर्ण ‘संयोग’ ही माना जाना चाहिए कि जिस समय प्रधानमंत्री विदेशी धरती पर खड़े होकर भारतीय समुदाय के लोगों के बीच एक रुपए और पचासी पैसे वाली बात करके राजीव गांधी के कहे का मज़ाक़ बना रहे होते हैं लगभग उसी दौरान भारत में उनकी पार्टी का मीडिया सेल और भक्त बिरादरी दिवंगत प्रधानमंत्री के बेटे राहुल गांधी की एक विवाह समारोह में भाग लेने के लिए की गई निजी नेपाल यात्रा को लेकर चरित्र-हनन की ओछी राजनीति में जुटी रहती है !

मध्य प्रदेश: कैट ने IPS पुरुषोत्तम शर्मा के निलंबन को निरस्त किया, फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगी सरकार

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TIO JABALPUR

मध्य प्रदेश के जबलपुर केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (कैट) से निलंबित आईपीएस पुरुषोत्तम शर्मा को राहत मिली है। कैट ने उनके निलंबन आदेश को निरस्त कर दिया है। पत्नी के साथ मारपीट किए जाने का वीडियो वायरल होने के बाद राज्य सरकार ने स्पेशल डीजी पुरुषोत्तम शर्मा को निलंबित कर दिया था। राज्य सरकार कैट के निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगी

आइपीएस ऑफिसर ने अपने निलंबन पर एकतरफा कार्यवाही को चुनौती दी थी। याचिका पर गुरुवार को सुनवाई के दौरान बताया गया सरकार द्वारा उनके निलंबन को लगातार बढ़ाया जा रहा। नियम के अनुसार निलंबन की प्रथम अवधि 6 माह की होती है। इसके बाद निलंबन अवधि को बढ़ाने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी की सिफारिश आवश्यक रहती है, कमेटी में प्रमुख सचिव गृह, सचिव तथा DGP सदस्य होते हैं। सरकार द्वारा कमेटी की सिफारिश के बिना निलंबन अवधि में 5 बार बढ़ोतरी की गई जो अवैधानिक है। युगलपीठ में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किए जाने के कारण सरकार के निलंबन आदेश को निरस्त कर दिया है। वहीं, इस मामले में गृह विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कैट के जारी आदेश पर विधिक राय प्राप्त कर हाईकोर्ट में अपील दाखिल करने संबंधित निर्णय लिया जाएगा।

अवैध खनन मामला: देश भर में 18 से ज्यादा ठिकानों पर ईडी ने मारे छापे, महिला आईएएस अधिकारी समेत कई हाईप्रोफाइल नाम हैं शामिल

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TIO NEW DELHI

झारखंड में अवैध खनन मामले में शुक्रवार को प्रवर्तन निदेशालय ने बड़ी कार्रवाई की है। ईडी की टीम ने देश भर में 18 से ज्यादा ठिकानों पर छापेमारी की है। इसमें झारखंड में सबसे ज्यादा जगहों पर छापे पड़े हैं। बताया जा रहा है कि ईडी को काफी समय से अवैध खनन के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग की शिकायत मिल रही थी। इसके बाद ईडी ने इस मामले में गोपनीय जानकारी इकट्ठा की और एक साथ कई जगहों पर छापेमारी की। 

आईएएस अधिकारी के घर पर भी छापा 
बताया जा रहा है कि ईडी की टीम ने देश में एक साथ 18 ठिकानों पर छापेमारी की है। इसमें झारखंड की एक महिला आईएएस अधिकारी का घर भी है। ईडी की इस कार्रवाई से पूरे राज्य में सनसनी फैल गई है। सूत्रों की मानें तो ईडी की टीम ने झारखंड की माइनिंग सेक्रेटरी पूजा सिंघल के घर पर छापेमारी की है। इसके अलावा उसे कई अधिकारियों और नेताओं के खिलाफ सबूत मिले हैं, जो अवैध खनन के जरिए मोटी कमाई कर रहे हैं। इस संबंध में जयपुर, फरीदाबाद, चंडीगढ़, मुजफ्फरपुर, कोलकता में भी कई जगहों पर छापेमारी की गई है।

2012 में दर्ज हुआ था मामला 
एंटी करप्शन ब्यूरो ने अवैध खनन मामले में 2012 में जूनियर इंजीनियर राम विनोद सिन्हा के खिलाफ मामला दर्ज किया था। इसके बाद इस मामले में कई हाईप्रोफाइल नाम सामने आए थे। पता चला था कि अवैध खनन के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग की जा रही है। उस समय सामने आया था कि कई आईएएस अधिकारियों और नेताओं के जेई राम विनोद सिन्हा से अच्छे संबंध थे। जानकारी सामने आने के बाद अब प्रवर्तन निदेशालय की टीम ने कार्रवाई की है। 

अदालत, अफसर और सरकार

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राकेश अचल

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान महिला उत्पीड़न के प्रति जितने अधिक संवेदनशील और आक्रामक हैं ,उनके अफसर उतने ही लापरवाह और महिला उत्पीड़न में भागीदार हैं. स्थिति ये आ गयी है कि अब प्रदेश के उच्च न्यायालय तक को ऐसे लापरवाह अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश देना पड़ रहे हैं .जबलपुर सर्किल के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक उमेश जोगा के खिलाफ की गयी अदालत की टिप्पणी और निर्देश सरकार और पुलिस मुख्यालय दोनों के मुंह पर तमाचा है .
दुर्भाग्य की बात ये है कि कार्रवाई के मामले में मुख्यमंत्री जी का रवैया पक्षपातपूर्ण रहा है. ये आरोप नहीं है बल्कि वास्तविकता है. आप पिछले दिनों की कुछ घटनाओं को आपस में जोड़कर यदि समीक्षा करेंगे तो आपके सामने पूरी तस्वीर स्पष्ट हो जाएगी .सबसे पहले रीवा की ही बात करते हैं. यहां पिछले महीने एक ढोंगी बाबा ने एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया लेकिन पुलिस ने 18 घंटे तक बाबा के खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया .

बलात्कार के आरोपी बाबा के यहां आशीर्वाद बटोरने वाले उस पुलिस अधीक्षक के खिलाफ दिखावे की भी कार्रवाई नहीं की जो बाबा को लगातार बचने की कोशिश करता रहा .आरोप थे कि पुलिस अधीक्षक को बाबा की हरकतों के बारे में पहले से पता था और बाबा को हड़काने वाले टीआई को एसपी ने कार्रवाई करने से न सिर्फ रोका बल्कि बाबा से क्षमा मांगने के लिए दबाब डाला .लेकिन चूंकि मामला भापुसे के एक अधिकारी का था इसलिए सारे मामले पर धुल दाल दी गयी .ये वे ही अधिकारी थे जिन्हें ग्वालियर से स्थानीय नेतृत्व की नाराजगी कि वजह से हटाया गया था .
रीवा के बाद खरगोन के दंगों पर गौर कीजिये. खरगोन में दंगों के लिए कथित रूप से दोषी लोगों के मकान जमींदोज कर दिए गए लेकिन कलेक्टर और एसपी को बख्श दिया गया .आखिर क्यों नहीं उनके खिलाफ जांच स्थापित की गयी.? क्या इन दोनों अफसरों की कोई लापरवाही नहीं थी इन दंगों के पीछे ? लेकिन जब अफसरों को बचाने का संकल्प ही हो तो कोई क्या कर सकता है ?

खरगोन से पहले सीधी में रंगकर्मियों और प्रेस कर्मियों को अर्धनग्न करने के मामले में टीआई के खिलाफ सांकेतिक कार्रवाई करने वाली सरकार ने किसी बड़े अधिकारी को इस अमानवीय घटना के लिए जिम्मेदार नहीं माना .सरकार की नजर में कोई बड़ा अफसर कोई गलती करता ही नहीं है और अगर करता है तो उसे बचाना सरकार का परम् कर्तव्य होता है .

अफसरों के प्रति ढुलमुल रवैये की वजह से ही ये नौबत आयी है कि अब हाईकोर्ट को एक वरिष्ठ पुलिस अफसर को रेंज से हटाने के लिए निर्देश देना पड़े हैं .मामला छिंदवाड़ा में बलात्कार के एक आरोपी पुलिस आरक्षक की के डीएनए सेम्पल बदल देने का है .ये सही है कि सेम्पल एडीजी ने नहीं बदला लेकिन ये भी सच है कि सेम्पल बदला और अदालत में झूठी रिपोर्ट पेश की गयी जो एडीजी की और से पेश की गयी .एडीजी इतने मशगूल है लोककल्याण के कामों में कि देख ही नहीं पाए कि वे किस कागज पर दस्तखत कर रहे हैं ? जो लापरवाही अदलात को प्रथम दृष्टया दिखाई दे गयी उसे एडीजी साहब देख ही नहीं पाए .फिर ऐसे एडीजी की क्या जरूरत ?
मामले की तह में जाएँ तो पता चलता है कि सेम्पल बदलने के मामले में एक आरोपी पुलिस कर्मी भी ही और उसे बचाने की कोशिश में एडीजी ने डाक्टर कि और से बनाई गयी झूठी रपट पर दस्खत कर अदालत को गुमराह करने कि कोशिश की .पुलिस का दुस्साहस किसी भी सीमा तक जा सकता है .अब एडीजीपी को हटाना सरकार कि मजबूरी है ,लेकिन सवाल ये है कि उन्हें हटाने भर से क्या स्थितियों में सुधार आ जाएगा ?शायद नहीं क्योंकि अब जिलों के अलावा मैदान में काम करने वाले पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भाजपा कार्यकर्ताओं की तरह काम करने लगे हैं .

प्रशासन का राजनीति के रंग में रंगना लोकतंत्र के लिए घातक है.घातक इसलिए है क्योंकि सरकार को नींद से जगाने वाली तमाम संस्थाएं पहले से राजनीतिक रंग में रंगी हुई हैं .यहां तक कि मीडिया का रंग भी अब राजनीतिक हो गया है. मीडिया नेताओं की बगलगीर होकर काम कर रही है. नेता मीडिया कर्मियों के जन्मदिन अपने घरों पर मनाने का ढोंग करने लगे हैं .लेकिन मीडिया भूल जाती है कि उसे अर्धनग्न करने पर मौन रहने वाली सरकार ही है .
नौकरशाही के बेलगाम होने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है. पुलिस तो वर्दी वाली होती है लेकिन भाप्रसे के ऑफर भी किसी को नहीं गिनते .राजधानी भोपाल के आयुक्त ने बिना अधिकार पंचायतों के परिसीमन की अधिसूचना जारी कर दी.ये तो गनीमत है कि मामला अदालत के संज्ञान में आ गया सो जबाब तलब कर लिया गया अन्यथा परिसीमन तो हो ही गया था .बहरहाल मुद्दा ये है कि सरकार दोषी अधिकारियों को लगातार बचा रही है,इसे रोका जाना चाहिए .अदलात इस मामले में दखल दे या निर्देश जारी करे ये प्रदेश सरकार के लिए अशोभनीय लगता है .दतिया में पूरा पुलिस और प्रशासन स्थानीय मंत्री के निर्देश पर पीतांबर धारण करने को विवश दिखाई दिया .नाम दतिया गौरव समारोह था लेकिन निकाली गयी माँ पीतांबरा कि रथ यात्रा. अपनी स्थापना से लेकर अब तक मान अपने भवन से कभी बाहर नहीं निकली थीं .

पिछले कुछ वर्षों में ये परम्परा बन गयी है कि सरकार अपने राजनितिक मकसद के लिए नौकरशाही का खुलकर इस्तेमाल करती है. सेवानिवृत्ति के बाद पुनर्वास का लालच देकर अफसरों से कुछ भी ऊंच-नीच कराई जा सकती है .अब तो नौकरशाहों की उम्मीदें कुछ ज्यादा ही बढ़ गयीं हैं ,वे सेवानिवृत्ति के बाद सीधे राजनीति में आने के लिए तत्पर दिखाई देते हैं .पिछले महीनों में आपने पुलिस के एक आला अफसर को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के नेतृत्व में निकाली गयी एक रैली के लिए चाय-पानी की व्यवस्था करते हुए बुंदेलखंड में देखा था .इस सेवा के बाद ही उस अफसर को मनचाही पोस्टिंग भी हासिल हो गयी थी .

नौकरशाही की अराजकता के एक नहीं अनेक किस्से हैं. प्रदेश का परिवहन विभाग तो आजकल सुर्ख़ियों में है .सरकार की बदनामी हो रही है लेकिन कहीं कोई फर्क नहीं पड़ रहा.लगता है अब सरकार ‘ शॉकप्रूफ ‘ हो चुकी है .

जनता की चिट्ठी ही तुड़वा सकती है पीएम की चुप्पी !

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श्रवण गर्ग

देश में चल रही धार्मिक हिंसा और नफ़रत की राजनीति के ख़िलाफ़ कुछ सेवा-निवृत्त नौकरशाहों और अन्य जानी-मानी हस्तियों के द्वारा प्रधानमंत्री के नाम खुली चिट्ठी लिखकर उनसे अपील की गई है कि वे अपनी चुप्पी तोड़कर तुरंत हस्तक्षेप करें पर मोदी इन पत्र-लेखकों को उपकृत नहीं कर रहे हैं।देश के कामकाज में किसी समय प्रतिष्ठित पदों पर कार्य करते हुए उल्लेखनीय भूमिका निभाने वाले इन महत्वपूर्ण लोगों की चिंताओं का भी अगर प्रधानमंत्री संज्ञान नहीं लेना चाहते हैं तो समझ लिया जाना चाहिए कि उसके पीछे कोई बड़ा कारण या असमर्थता है और नागरिकों को उससे परिचित होने की तात्कालिक रूप से कोई आवश्यकता नहीं है।

कोई एक सौ आठ सेवा-निवृत्त नौकरशाहों (ब्यूरोक्रेट्स) ने जब भाजपा-शासित राज्यों में पनप रही ‘नफ़रत की राजनीति’ को ख़त्म करने के लिए खुली चिट्ठी के ज़रिए पीएम से अपनी गहरी चुप्पी को तोड़ने का निवेदन किया होगा तब उन्हें इस बात की आशंका नहीं रही होगी कि मोदी उनकी बात का कोई संज्ञान नहीं लेंगे।चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वालों में कई या कुछ नौकरशाहों ने तो अपनी सेवा-निवृत्ति के पहले वर्तमान सरकार के साथ भी काम किया है।

उल्लेख किया जा सकता है कि 108 नौकरशाहों द्वारा लिखी गई उक्त चिट्ठी पर पीएम ने तो अपनी खामोशी नहीं तोड़ी पर सरकार के समर्थन में उसका जवाब आठ पूर्व न्यायाधीशों ,97 पूर्व नौकरशाहों और सशस्त्र बलों के 92 पूर्व अधिकारियों की ओर से दे दिया गया।कुल 197 लोगों के इस समूह ने आरोप लगा दिया कि 108 लोगों की चिट्ठी राजनीति से प्रेरित और सरकार के ख़िलाफ़ चलाए जाने वाले अभियान का हिस्सा थी।

पिछले साल के आख़िर में उत्तराखंड की धार्मिक नगरी हरिद्वार में आयोजित हुई विवादास्पद ‘धर्म संसद’ में कतिपय ‘साधु-संतों’ की ओर से मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंदुओं द्वारा हथियार उठाने की ज़रूरत के उत्तेजक आह्वान के तत्काल बाद भी इसी तरह से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठियाँ लिखी गईं थीं पर कोई नतीजा नहीं निकला।सुप्रीम कोर्ट के 76 वकीलों ने एन वी रमना को पत्र लिखकर हरिद्वार में दिए गए नफ़रती भाषणों का संज्ञान लेने का अनुरोध किया था।पत्र में कहा गया था कि पुलिस करवाई न होने पर त्वरित न्यायिक हस्तक्षेप ज़रूरी हो जाता है।

इसी दौरान सशस्त्र बलों के पाँच पूर्व प्रमुखों और सौ से अधिक अन्य प्रमुख लोगों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर माँग की थी कि सरकार ,संसद और सुप्रीम कोर्ट तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करते हुए देश की एकता और अखंडता की रक्षा करे।कहना होगा कि इन तमाम चिट्ठियों और चिंताओं के कोई उल्लेखनीय परिणाम नहीं निकले ।हरिद्वार के बाद भी धर्म संसदों या धर्म परिषदों के आयोजन होते रहे और अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रती हिंसा वाले उद्बोधन भी जारी रहे।

सेवा-निवृत्त नौकरशाहों, राजनयिकों, विधिवेत्ताओं और सशस्त्र सेनाओं के पूर्व प्रमुखों की चिंताओं के विपरीत जो लोग सत्ता के नज़दीक हैं उनका मानना है कि नफ़रत की राजनीति के आरोप अगर वास्तव में सही हैं तो प्रधानमंत्री को चिट्ठियाँ नागरिकों के द्वारा लिखी जानी चाहिए और वे ऐसा नहीं कर रहे हैं।सत्ता-समर्थकों का तर्क है कि जो कुछ चल रहा है उसके प्रति बहुसंख्य नागरिकों में अगर प्रत्यक्ष तौर पर कोई नाराज़गी नहीं है तो फिर उन मुट्ठी भर लोगों के विरोध की परवाह क्यों की जानी चाहिए जिन्हें न तो कोई चुनाव लड़ना है और न ही कभी जनता के बीच जाना है ? दांव पर तो उन लोगों का भविष्य लगा हुआ जिन्हें हर पाँच साल में वोट माँगने जनता के पास जाना पड़ता है।जो लोग नफ़रत की राजनीति को मुद्दा बनाकर विरोध कर रहे हैं जनता के बीच उनकी कोई पहचान नहीं है।जनता जिन चेहरों को पहचानती है वे बिलकुल अलग हैं।

दूसरा यह भी कि ‘नफ़रत की राजनीति’ अगर सत्ता को मज़बूत करने में मदद करती हो तो उन राजनेताओं को उसका इस्तेमाल करने से क्यों परहेज़ करना चाहिए जिनका कि साध्य की प्राप्ति के लिए साधनों की शुद्धता के सिद्धांत में कोड़ी भर यक़ीन नहीं है ?

इस सच्चाई की तह तक जाना भी ज़रूरी है कि हरेक सत्ता परिवर्तन के साथ हुकूमतें नौकरशाहों और संवैधानिक संस्थानों के शीर्ष पदों पर पहले से तैनात योग्य और ईमानदार लोगों को सिर्फ़ इसलिए बदल देती हैं कि उनकी धार्मिक-वैचारिक निष्ठाओं को वे अपने एजेंडे के क्रियान्वयन के लिए संदेहास्पद मानती हैं।इसीलिए ऐसा होता है कि नफ़रत की राजनीति के ख़िलाफ़ चिट्ठी लिखने वाले नौकरशाह, ‘जो कुछ चल रहा है उसमें ग़लत कुछ भी नहीं है’ कहने वाले नौकरशाहों से अलग हो जाते हैं।इसे यूँ भी देख सकते हैं कि नफ़रत की राजनीति ने नागरिकों को ऊपर से नीचे तक बाँट दिया है।

नफ़रत की राजनीति को सफल करने की ज़रूरी शर्त ही यही है कि सत्ता के एकाधिकारवाद की रक्षा में नागरिक ही एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े हो जाएँ या कर दिए जाएँ और सरकार चुप्पी साधे रहे, वह किसी के भी पक्ष में खड़ी नज़र नहीं आए।यानी जो नौकरशाह नफ़रत की राजनीति को लेकर चिंता जता रहे हैं उन्हें भी वह चुनौती नहीं दे और जो उसके बचाव में वक्तव्य दे रहे हैं उनकी भी पीठ नहीं थपथपाए।

प्रधानमंत्री ने अपने इर्द-गिर्द जिस तिलिस्म को खड़ा कर लिया है उसकी ताक़त ही यही है कि वे बड़ी से बड़ी घटना पर भी अपनी खामोशी को टूटने या भंग नहीं होने देते।खामोशी के टूटते ही तिलिस्म भी भरभराकर गिर पड़ेगा।मुमकिन है हरिद्वार की तरह की और भी कई धर्म संसदें देश में आयोजित हों जिनमें नफ़रत की राजनीति को किसी निर्णायक बिंदु पर पहुँचाने के प्रयास किए जाएँ और नौकरशाहों के समूह भी इसी तरह विरोध में चिट्ठियाँ भी लिखते रहें । होगा यही कि हरेक बार प्रधानमंत्री या सत्ता की ओर से वे लोग ही सामने आकर जवाब देंगे जिनका कि सवालों या शिकायतों से कोई सम्बंध नहीं होगा।प्रधानमंत्री की खामोशी उस दिन निश्चित ही टूट जाएगी जिस दिन नफ़रत की राजनीति को लेकर नागरिक भी उन्हें चिट्ठियाँ लिखने की हिम्मत जुटा लेंगे। अतः प्रधानमंत्री की खामोशी तुड़वाने के लिए नौकरशाहों को पहले जनता के पास जाकर उसकी चुप्पी को तुड़वाना पड़ेगा।

सिंधिया समर्थक मंत्री से वापस ले सकते हैं एक विभाग;

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TIO BHOPAL

मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी आगामी दिनों में कई बड़े फैसले करने की तैयारी में है। इसी के मद्देनजर गुरुवार को यानी आज दिल्ली में प्रदेश BJP कोर ग्रुप की बड़ी बैठक बुलाई गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दिल्ली पहुंच गए हैं। एक दिन पहले ही गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा भी दिल्ली पहुंच चुके हैं।

बैठक में शिवराज कैबिनेट में फेरबदल और विस्तार पर फैसला हो सकता है। जोबट से विधायक सुलोचना रावत को मंत्री बनाया जा सकता है। सुलोचना रावत कुछ ही वक्त पहले कांग्रेस छोड़कर BJP में शामिल हुईं और फिर BJP के टिकट पर जोबट उपचुनाव भी जीता। सुलोचना आदिवासी नेता हैं, इसलिए उन्हें कैबिनेट में जगह देकर आदिवासियों को साधने की कोशिश होगी।

राजपूत से वापस ले सकते हैं एक विभाग
इसके अलावा केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के पास दो बड़े विभाग परिवहन व राजस्व हैं। इनमें से उनसे एक वापस लिए जाने पर निर्णय हो सकता है। कैबिनेट में 4 मंत्री पद रिक्त हैं। इनमें से दो विभाग महिला एवं बाल विकास और PHE मुख्यमंत्री के पास हैं।

प्रदेश संगठन के बड़े पदाधिकारी होंगे शामिल
BJP कोर ग्रुप की बैठक इसलिए भी अहम है, क्योंकि 22 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भोपाल प्रवास पर आए थे। उन्होंने प्रदेश के बड़े नेताओं व मंत्रियों की बैठक ली थी। इसके बाद अब कोर ग्रुप की बैठक दिल्ली में बुलाई गई है। इसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष के अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और संगठन के महामंत्री हितानंद शर्मा मौजूद रहेंगे। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इस बैठक में शामिल होंगे। इससे पहले वे गुरुवार को विदेश यात्रा पर जा रहे थे, लेकिन बैठक का समय सुबह 11 बजे कर दिए जाने से वे कोर ग्रुप के साथ बैठेंगे।

नॉन परफॉर्मिंग मंत्रियों की हो सकती है छुट्टी
सूत्रों ने बताया कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बैठक में बड़े फैसले हो सकते हैं। इस दौरान सरकार, मंत्री, संगठन और प्रदेश पदाधिकारियों की परफॉर्मेंस पर मंथन होगा। यही नहीं, नॉन परफॉर्मिंग मंत्रियों की छुट्‌टी करने का फैसला भी लिया जा सकता है। बताया जा रहा है कि जनजातीय कल्याण मंत्री मीना सिंह और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी की परफॉर्मेंस बेहतर नहीं है। लिहाजा, दोनों मंत्रियों के विभाग बदलने पर विचार हो सकता है।

शाह फॉर्मूले पर फैसले की उम्मीद
बैठक में जातिगत लीडरशिप डेवलप करने के लिए शाह फॉर्मूले पर निर्णय हो सकता है। भोपाल में अमित शाह ने गोपाल भार्गव का उदाहरण देते हुए कहा था- गोपालजी बड़े नेता हैं, उनका प्रभाव भी है, लेकिन ट्राइबल एरिया में उनकी पकड़ मजबूत नहीं हो सकती। लिहाजा, उसी समुदाय के बीच से क्षेत्रीय नेतृत्व को ऊपर लाएं। इस नजरिए से देखें, तो भाजपा को OBC वर्ग में लीडरशिप की कमी है।

बिसेन फिर बन सकते हैं मंत्री
लिहाजा, गौरीशंकर बिसेन को फिर से मंत्री बनाया जा सकता है। बिसेन वर्तमान में OBC कल्याण आयोग के अध्यक्ष हैं। इसी तरह, आदिवासी समुदाय से सुलोचना रावत को मंत्री पद दिया जा सकता है। रावत जब कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई थीं, तब उन्हें मंत्री बनाए जाने का आश्वासन दिया गया था।

शिवराज-वीडी शर्मा बंद कमरे में कर चुके बैठक
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 7 अप्रैल को देर शाम अचानक प्रदेश भाजपा ऑफिस पहुंचे थे। यहां मुख्यमंत्री ने BJP के राष्ट्रीय संगठन मंत्री शिव प्रकाश और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महासचिव हितानंद के साथ बंद कमरे में करीब डेढ़ घंटे तक बात की। सूत्रों का दावा है कि बैठक में संगठन और सरकार के कामकाज के अलावा मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर चर्चा हुई थी।

सरकार के कामकाज का ब्यौरा देंगे शिवराज
मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बैठक में सरकार के कामकाज का ब्यौरा भी देंगे। खासतौर पर केंद्र और राज्य की कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी से पदााधिकारियों को अवगत कराया जाएगा। हालांकि यह निर्णय बुधवार देर शाम लिया गया। इसके बाद सीएम सचिवालय के अफसर जानकारी तैयार करने में जुट गए थे।

राष्ट्रीय संगठन करेगा पूछताछ
पार्टी सूत्रों के मुताबिक सत्ता-संगठन से राष्ट्रीय नेतृत्व ने किसी तरह की कोई जानकारी नहीं बुलाई है। राष्ट्रीय अध्यक्ष और संगठन महामंत्री प्रदेश के सत्ता-संगठन के नेताओं से बातचीत कर सवाल-जवाब कर सकते हैं। पार्टी संगठन ने अपनी ओर से एक प्रेजेंटेशन तैयार किया है, जिसमें कोरोनाकाल से अब तक के बदलाव, कार्यक्रम, पीढ़ी परिवर्तन के प्रयास आदि की जानकारी दी गई है।

अफसरशाही के हावी होने का मुद्दा उठ सकता है
पार्टी सूत्रों का कहना है कि कोर ग्रुप की बैठक में मूल रूप से मिशन 2023 की चुनावी तैयारियों पर ही फोकस रहेगा। इसमें नगरीय निकाय, सहकारिता और पंचायत चुनाव पर भी चर्चा होने की संभावना है। कुछ नेता प्रदेश में अफसरशाही के हावी होने का मुद्दा भी उठा सकते हैं।

BJP दफ्तर में हेलीपेड बनाने पर होगा निर्णय
संगठन ने पार्टी के प्रदेश कार्यालय दीनदयाल परिसर को तोड़कर नई बिल्डिंग बनाने के लिए एक नामी कंपनी से डिजाइन तैयार करवाई है। इसका प्रजेंटेशन भी बैठक में दिया जा सकता है। कुछ नेताओं का मत है कि नई जमीन पर नया भवन बनाया जाए। वहीं, कुछ नेता चाहते हैं कि शहर के बीच स्थित होने के कारण इसी जगह पुनर्निर्माण किया जाए। पार्टी ऐसा भवन निर्माण करना चाहती है, जिस पर हेलीपेड भी बनाया जा सके।

भीषण गर्मी के बीच लोकशिक्षण संचालनालय के बाहर धरने पर बैठे OBC के चयनित शिक्षकों की आंखों से नींद गायब

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TIO भोपाल

भोपाल में भीषण गर्मी के बीच लोकशिक्षण संचालनालय के बाहर धरने पर बैठे OBC के चयनित शिक्षकों की आंखों से नींद गायब है। उनकी खुली आंखों में सिर्फ नौकरी का सपना है। 42 डिग्री की तपिश में अनशन पर बैठे उम्मीदवार न पानी पी रहे हैं, न खाना खा रहे हैं। जिससे उनकी तबीयत दिनों दिन बिगड़ती जा रही है। उनका कहना है हमने बच्चों और परिवार के हिस्से का वक्त चुराकर सिलेक्शन लिस्ट में नाम बनाया। जब नौकरी की बारी आई, तो सरकार मुंह फेर रही है। वे पूछ रहे हैं कि हम क्या गलती की है, ऐसी जिद क्यों सरकार कर रही है।

चयनित उम्मीदवार कहते हैं कि संविदा शिक्षक पात्रता परीक्षा का 2018 में विज्ञापन निकला। फरवरी 2019 में परीक्षा हुई। हम तो तब से ही खुद को सिलेक्टेड मान रहे हैं। कोरोना के 2 साल बाद डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन भी हो गया। अब नौकरी मिलने ही वाली थी, तो ओबीसी आरक्षण पर रोक का तर्क दिया जा रहा है। क्या इसके लिए हम जिम्मेदार हैं?

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बुदनी विधानसभा के रहने वाले धर्म सिंह की तबीयत बिगड़ने पर रात 11.30 बजे ही उन्हें 108 एंबुलेंस से अस्पताल शिफ्ट करना पड़ा। पूछने पर पता चला कि वे अनशन पर हैं। पानी तक नहीं पिया है। कमजोरी इतनी है कि वे बात भी नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने बस इतना कहा कि अनशन पर हूं तो पानी कैसे पी सकता हूं।

महिला उम्मीदवार भी सड़क पर गुजार रहीं रात
यहां धर्मपाल अकेले नहीं हैं, जो धरना और अनशन कर रहे हैं। बालाघाट, छिंदवाड़ा, उमरिया, कटनी से पहुंचीं अन्य चयनित महिला शिक्षिकाएं भी हैं। जो अपने पति, बच्चों और अन्य पारिवारिक सदस्यों से दूर नौकरी की उम्मीद में यहां खुले में रात काटने काे मजबूर हैं। ज्यादातर के परिवार वालों को ये नहीं मालूम कि उनकी बेटी-बहू यहां रात में कैसे सोती हैं, क्या खाती हैं, कहां टॉयलेट जाती हैं और कहां कपड़े बदलती हैं। कोई बच्चों से झूठ बोलकर आता है, तो कोई परिवार से। कहते हैं कि नौकरी की दहलीज पर आकर वे खाली हाथ घर नहीं लौटेंगे।

तमिलनाडु में मंदिर की रथयात्रा के दौरान हादसा:करंट से 2 बच्चों समेत 11 की मौ

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TIO तमिलनाडु

तमिलनाडु के तंजावुर जिले में एक मंदिर की रथयात्रा के दौरान बड़ा हादसा हो गया। बुधवार तड़के रथ के बिजली के तार की चपेट में आने से 11 लोगों की मौत हुई है। मरने वालों में 2 बच्चे भी शामिल हैं। हादसे में 15 लोग घायल हुए हैं, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

राज्य के CM एमके स्टालिन ने घटना पर दुख जताते हुए मृतकों के परिजनों को 5 लाख की सहायता राशि देने का ऐलान किया है। वे आज सुबह 11:30 बजे तंजावुर पहुंचेंगे, जहां वे हालात का जायजा लेंगे और घायलों से मिलेंगे।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने घटना पर शोक व्यक्त किया है और घायलों के जल्द ही स्वस्थ होने की प्रार्थना की है। वहीं, प्रधानमंत्री ने हादसे में जान गंवाने वाले श्रद्धालुओं के परिजनों को PM नेशनल रिलीफ फंड (PMNRF) से 2-2 लाख रुपए देने का ऐलान किया है। घायलों को 50 हजार रुपए दिए जाएंगे।

हादसे पर दुख जताते हुए घटना पर तमिलनाडु विधानसभा में 2 मिनट का मौन रखा गया और मृतकों को श्रद्धांजलि दी गई।

तंजावुर के कालीमेडु मंदिर में 94वां अप्पर गुरुपूजा उत्सव मनाया जा रहा है। इसमें शामिल होने के लिए मंगलवार रात से ही लोगों की भीड़ जमा होनी शुरू हो गई थी। रथयात्रा एक मोड़ से गुजर रही थी, इस दौरान रथ पर खड़े लोग एक हाई वोल्टेज तार की चपेट में आ गए।

9 फुट ऊंचे रथ को फूलों और लाइट्स से सजाया गया था। रथ की लाइट्स को बिजली देने के लिए एक जेनरेटर भी जुड़ा था। घायलों में जेनरेटर ऑपरेटर भी शामिल है।

तिरुचिरापल्ली के सेंट्रल जोन IGP, वी बालकृष्णन ने बताया कि FIR दर्ज कर ली गई है और जांच जारी है। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि किसी भी घटना से बचने के लिए आमतौर पर मंदिर के रास्ते वाली पावर सप्लाई बंद कर दी जाती है।

इस बार रथ की ऊंचाई इतनी नहीं थी कि वह हाई वोल्टेज लाइन को छू सके, इसलिए इस बार पावर सप्लाई बंद नहीं की गई। हालांकि, रथ पर लगे साजो-सामान की वजह से उसकी ऊंचाई बढ़ गई और हादसा हो गया।

घायलों को तंजावुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया है। CM स्टालिन ने मंत्री अंबिल महेश को मौके पर पहुंचकर राहत कार्यों की निगरानी करने का निर्देश दिया है।