Home Blog Page 47

इंदौर में अपराधियों के घरों पर चलेगा हथौड़ा, पुलिस ने निगम को भेजी सूची

0

TIO इंदौर

गुजरखेड़ा(महू) में हत्या के मुलजिमों के घर-दुकान व गार्डन जमींदोज करने के बाद पुलिस एक्शन मोड में आ गई है। पुलिस ने इंदौर में माफिया के अवैध निर्माण तोड़ने की तैयारी कर ली है। 20 से ज्यादा अपराधियों को चिन्हित किया है जिनके अवैध निर्माण है और अपराधिक गतिविधियों में लिप्त है।

पुलिस आयुक्त हरिनारायणाचारी मिश्र ने नईदुनिया को बताया कि कुछ समय पूर्व नगर निगम को एक सूची भेजी गई थी लेकिन अन्य कार्यों के कारण कार्रवाई रुकी थी। पुलिस प्रशासन अब दोबारा सूची का परीक्षण कर कार्रवाई करने की तैयारी कर रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सूची में सबसे प्रमुख नाम भूमाफिया मुख्तियार,कमलेश चौहान,अमरसिंह चौहान,फारुख आदी का है। ये आरोपित राधिकाकुंज जमीन घोटाले में जुड़े है और कईं अपराध दर्ज है।

शराब माफिया का नाम आते ही रुक गई कार्रवाई

तत्कालीन एसपी आशुतोष बागरी ने भी एक सूची नगर निगम को भेजी थी। जिसमें शराब माफिया हेमू ठाकुर,चिंटू ठाकुर का भी नाम था। हेमू व चिंटू शराब सिंडिकेट ऑफिस में हुए गोलीकांड के आरोपित है। लेकिन नेताओं के दबाव में कार्रवाई रुक गई।

भूमाफियाओं के ठिकानों की जानकारी भेजी

पुलिस ने एक सूची में भूमाफिया सुरेंद्र संघवी,दिलीप सहित तस्कर रईस,अदनान आदी के नाम भेजे है। जिसमें हत्या की आरोपित जोया किन्नर भी शामिल है। सीपी के मुताबिक चारों डीसीपी से उनके क्षेत्रों में सक्रीय अपराधियों के अवैध निर्माण के बारे में जानकारी जुटाने के लिए कहा गया है।

बंगाल में फिर हत्या : बीरभूम हिंसा के बाद अब नादिया में तृणमूल नेता को गोलियों से भूना

0

TIO NEW DELHI

पश्चिम बंगाल में हिंसा का दौर थम नहीं रहा है। बीरभूम जिले में हुई 10 लोगों की हत्या का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा है और अब नादिया में एक टीएमसी नेता की गोली मारकर हत्या कर दी गई। घटना बुधवार देर रात हुई। मृतक का नाम सहदेव मंडल बताया गया है। वह नादिया जिले में टीएमसी के स्थानीय कार्यकर्ता थे। सहदेव की पत्नी अनीमा मंडल बगुला की पंचायत सदस्य है। उधर, हुगली के तारकेश्वर में तृणमूल कांग्रेस की महिला पार्षद को कार से रौंदने की कोशिश की गई।

नादिया में सहदेव मंडल बुधवार रात लहूलुहान अवस्था में सड़क पर पड़े मिले। लोगों ने उन्हें बगुला के स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे। हालत बिगड़ने पर उन्हें कृष्णानगर अस्पताल ले जाया गया, जहां ने दम तोड़ दिया। तारकेश्वर में महिला पार्षद रूपा सरकार को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पश्चिम बंगाल में पिछले महीने नगर निकायों के चुनाव हुए थे। इसके बाद से लगातार राजनीतिक हिंसा की घटनाएं सामने आ रही हैं।

बीरभूम में भी हिंसा की शुरुआत टीएमसी के एक पंचायत नेता की हत्या से ही हुई थी। इसलिए आशंका जताई जा रही है कि बीरभूम के रामपुरहाट जैसी हिंसा कहीं नादिया में न हो जाए। रामपुरहाट में भादू शेख की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद 21 मार्च को पूरे जिले में हिंसा भड़क गई थी। इस हिंसा में 10 लोगों को जिंदा जला दिया गया है। इनके घरों को आग लगा दी गई थी। बड़ी संख्या में लोग घायल भी हैं।

हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान, ममता ने किया यूपी का जिक्र
बीरभूम हिंसा के मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है। वहां बुधवार को मामले की सुनवाई हुई। उधर सीएम ममता बनर्जी ने इस हिंसा को लेकर घिरने पर यूपी, राजस्थान, मप्र जैसे राज्यों में भी ऐसी हिंसा होने की आड़ लेकर बचने की कोशिश की। बंगाल सरकार ने बीरभूम हिंसा की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) बनाया है। इसका प्रमुख एडीजी सीआईडी ज्ञानवंत सिंह को बनाया गया है। बीरभूम हिंसा मामले में अब तक 22 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।

महंगाई का झटका: दिल्ली में बढ़े पीएनजी-सीएनजी के दाम

0

TIO NEW DELHI

पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दामों में बढ़ोतरी के बाद अब दिल्ली में सीएनजी और पीएनजी के दाम भी बढ़ गए हैं। दिल्ली में गुरुवार से घरेलू पीएनजी गैस की कीमत में इजाफा करने का फैसला लिया गया है। घरेलू पीएनजी की कीमत में 1.00 रुपये प्रति एससीएम की वृद्धि की गई है। इस बढ़ोतरी के साथ नई कीमत 36.61 रुपये प्रति एससीएम हो गई है। इसके अलावा सीएनजी के दामों में 50 पैसे की बढ़ोतरी की गई है।

महंगाई और ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ भारतीय युवा कांग्रेस ने जताया रोष
बढ़ती महंगाई सहित पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ बुधवार को भारतीय युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पेट्रोलियम मंत्रालय के बाहर धरना दिया। प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने करीब 25 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया।

दरों में संशोधन के करीब साढ़े चार महीने बाद एक बार फिर लगातार दूसरे दिन पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बुधवार को 80 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई। इसके विरोध में प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए पेट्रोल उत्पादों की कीमत बढ़ोतरी वापस लेने की मांग की। रोष जताते हुए कार्यकर्ताओं के सिर पर एलपीजी सिलेंडर रखकर विरोध जताया।

पत्रकार सरदार भगत सिंह को आप नहीं जानते

0

राजेश बादल 

सरदार भगत सिंह का नाम ज़ेहन में आते ही एक ऐसे जोशीले नौजवान का चेहरा उभरता है ,जो अकेले दम पर हिन्दुस्तान की धरती को गोरी हुकूमत से मुक्त कराने का हौसला और जज़्बा रखता था। वही भगत सिंह जिसने असेंबली में बम फेंका था और हँसते हँसते फाँसी के फंदे को चूम लिया था। अगर आप भी यही जानते हैं तो माफ़ कीजिए आप सरदार भगत सिंह को रत्ती भर नहीं जानते। आज मैं आपको भगत सिंह का वह रूप दिखाना चाहता हूँ जो आपके लिए एकदम नया है। यह  रूप एक ऐसे पत्रकार और लेखक का है ,जो अपने विचारों के तेज़ से देश की देह में हरारत पैदा कर देता था। हम और आप को वहाँ तक पहुँचने के लिए कई उमरें चाहिए ,जहाँ भगत सिंह सिर्फ़ तेईस – चौबीस साल की आयु में जा पहुँचा था।  

दरअसल इनसान को संस्कार सिर्फ माता पिता या परिवार से ही नहीं मिलते । समाज भी अपने ढंग से संस्कारों के बीज बोता है । पिछली सदी के शुरुआती साल कुछ ऐसे ही थे । उस दौर में संस्कारों और विचारों की जो फसल समाज और देश में उगी ,उसका असर आज भी  कहीं कहीं दिखाई देता है । उन दिनों गोरी हुक़ूमत ने ज़ुल्मों की सारी सीमाएं तोड़ दीं थीं । देशभक्तों को कीड़े मकोड़ों की तरह मारा जा रहा था ।किसी को भी फाँसी चढ़ा देना सरकार का शग़ल बन गया था । ऐसे में जब आठ साल के बालक भगतसिंह ने किशोर क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा को वतन के लिए हँसते हँसते फाँसी के तख़्ते चढ़ते देखा तो हमेशा के लिए करतार देवता की तरह उसके बालमन के मंदिर में प्रतिष्ठित हो गए । चौबीस घंटे करतार सिंह की तस्वीर भगतसिंह के साथ रहती थी ।

सराभा की फाँसी के रोज़ क्रांतिकारियों ने जो गीत गाया था ,वो भगत सिंह अक्सर गुनगुनाया करता । इस गीत की कुछ पंक्तियाँ थीं – फ़ख्र है भारत को ऐ करतार तू जाता है आज / जगत औ पिंगले को भी साथ ले जाता है आज / हम तुम्हारे मिशन को पूरा करेंगे संगियो / क़सम हर हिंदी तुम्हारे ख़ून की खाता है आज / कुछ बरस ही बीते थे कि जलियाँ वाला बाग़ का बर्बर नरसंहार हुआ । सारा देश बदले की आग में जलने लगा । भगत सिंह का ख़ून खौल उठा । अवचेतन में कुछ संकल्प और इरादे समा गए । अठारह सौ सत्तावन के ग़दर से लेकर कूका विद्रोह तक जो भी साहित्य मिला, अपने अंदर पी लिया । एक एक क्रांतिकारी की कहानी किशोर भगत सिंह की ज़ुबान पर थी । होती भी क्यों न ? परिवार की कई पीढ़ियाँ अंगरेज़ी राज से लड़तीं आ रहीं थीं । दादा अर्जुनसिंह ,पिता किशन सिंह ,चाचा अजीत सिंह और चाचा स्वर्ण सिंह को देश के लिए मर मिटते भगतसिंह ने देखा था। चाचा स्वर्ण सिंह सिर्फ तेईस साल की उमर  में जेल की यातनाओं का विरोध करते हुए शहीद हो चुके थे । दूसरे चाचा अजीत सिंह को देश निकाला दिया गया था । दादा और पिता आए दिन आंदोलनों की अगुआई करते जेल जाया  करते थे । पिता गांधी और कांग्रेस के अनुयायी थे तो चाचा गरम दल की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते थे । घर में घंटों बहसें होतीं थीं । भगत सिंह के ज़ेहन में विचारों की फसल पकती रही ।इसीलिए 1921 में जब महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन छेड़ा तो भगत सिंह भी दसवीं की पढ़ाई छोड़ आंदोलन में कूद पड़े थे। जब आंदोलन वापस लिया गया तो सारे नौजवानों से पढ़ाई दोबारा शुरू करने के लिए कहा गया। तब इन नौजवानों के लिए लाला लाजपत राय ने नेशनल कॉलेज खोले।

उनमें देशभक्त युवकों ने एडमिशन लिया था। ज़रा सोचिए ! भगत सिंह पंद्रह-सोलह साल के थेऔर नेशनल कॉलेज लाहौर में पढ़ रहे थे । आज़ादी कैसे मिले – इस पर अपने शिक्षकों और सहपाठियों से चर्चा  किया करते थे । जितनी अच्छी हिन्दी और उर्दू ,उससे बेहतर अंगरेज़ी और पंजाबी । इसी कच्ची आयु में भगत सिंह ने पंजाब में उठे भाषा विवाद पर झकझोरने वाला लेख लिखा । लेख पर हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने पचास  रूपए का इनाम दिया । भगत सिंह की शहादत के बाद 28 फ़रवरी ,1933 को हिंदी संदेश में यह लेख प्रकाशित हुआ था ।लेख की भाषा और विचारों का प्रवाह अदभुत है । एक हिस्सा यहाँ प्रस्तुत है -“इस समय पंजाब में उर्दू का ज़ोर है । अदालतों की भाषा भी यही है । यह सब ठीक है परन्तु हमारे सामने इस समय मुख्य प्रश्न भारत को  एक राष्ट्र बनाना है । एक राष्ट्र बनाने के लिए एक भाषा होना आवश्यक है ,परन्तु यह एकदम नहीं हो सकता । उसके लिए क़दम क़दम चलना पड़ता है । यदि हम अभी भारत  की एक भाषा नहीं बना सकते तो कम से कम लिपि तो एक बना देना चाहिए । उर्दू लिपि सर्वांग -संपूर्ण नहीं है । फिर सबसे बड़ी बात तो यह है कि उसका आधार फारसी पर है ।

उर्दू कवियों की उड़ान चाहे वो हिन्दी ( भारतीय ) ही  क्यों न हों -ईरान के साक़ी और अरब के खजूरों तक जा पहुँचती है । क़ाज़ी नज़र -उल-इस्लाम की कविता में तो धूरजटी ,विश्वामित्र और दुर्वासा की चर्चा बार बार है ,लेकिन हमारे उर्दू, हिंदी ,पंजाबी कवि उस ओर ध्यान तक न दे सके । क्या यह दुःख की बात नहीं ? इसका मुख्य कारण भारतीयता और भारतीय साहित्य से उनकी अनभिज्ञता  है। उनमें भारतीयता आ ही नहीं पाती,तो फिर उनके रचे गए साहित्य से हम कहाँ तक भारतीय बन सकते हैं ?…तो उर्दू अपूर्ण है और जब हमारे सामने वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित सर्वांग-संपूर्ण हिंदी लिपि विद्यमान है, फिर उसे अपने अपनाने में हिचक क्यों ?..हिंदी के पक्षधर सज्जनों से हम कहेंगे कि हिंदी भाषा ही अंत में एक दिन भारत की भाषा बनेगी, परंतु पहले से ही उसका प्रचार करने से बहुत सुविधा होगी। सोलह-सत्रह बरस के भगत सिंह की  इस भाषा पर आप  क्या टिप्पणी करेंगे ? इतनी सरल और कमाल के संप्रेषण वाली भाषा भगत सिंह ने चौरानवे -पंचानवे साल पहले लिखी थी। आज भी भाषा के पंडित और पत्रकारिता के पुरोधा इतनी आसान हिंदी नहीं लिख पाते और माफ़ कीजिए हमारे अपने घरों के बच्चे क्या सोलह-सत्रह की उमर में आज इतने परिपक्व हो पाते हैं ? नर्सरी – के जी – वन, के जी – टू के रास्ते पर चलकर इस उमर में वे दसवीं या ग्यारहवीं में पढ़ते हैं । और उनके ज्ञान का स्तर क्या होता है – बताने की ज़रूरत नहीं। इस उमर तक भगतसिंह विवेकानंद, गुरुनानक, दयानंद सरस्वती, रवींद्रनाथ ठाकुर और स्वामी रामतीर्थ जैसे अनेक भारतीय विद्वानों का एक-एक शब्द घोंट कर पी चुके थे। यही नहीं विदेशी लेखकों ,दार्शनिकों  और व्यवस्था बदलने वाले महापुरुषों में गैरीबाल्डी और मैजिनी, कार्ल मार्क्स, क्रोपाटकिन, बाकुनिन और डेनब्रीन तक भगत सिंह की आँखों के साथ अपना सफ़र तय कर चुके थे।उमर के इसी पड़ाव पर परंपरा के मुताबिक़ परिवार ने उनका ब्याह रचाना चाहा तो पिता जी को एक चिठ्ठी लिखकर चुपचाप घर छोड़ दिया। सोलह साल के भगत सिंह ने लिखा,पूज्य पिता जी,नमस्ते !मेरी ज़िंदगी भारत की आज़ादी के महान संकल्प के लिए दान कर दी गई है। इसलिए मेरी ज़िंदगी में आराम और सांसारिक सुखों का कोई आकर्षण नहीं है। आपको याद होगा कि जब मैं बहुत छोटा था,तो पूज्य बापू जी ( दादा जी ) ने मेरे जनेऊ संस्कार के समय ऐलान किया था कि मुझे वतन की सेवा के लिए वक़्फ़ ( दान ) कर दिया गया है। लिहाज़ा मैं उस समय की उनकी प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूँ। उम्मीद है आप मुझे माफ़ कर देंगेआपका ताबेदारभगतसिंह घर छोड़कर भगतसिंह उत्तरप्रदेश के  कानपुर जा पहुँचे । महान देशभक्त पत्रकार गणेश शंकर वद्यार्थी उन दिनों कानपुर से प्रताप का प्रकाशन करते थे। उन दिनों वे बलवंत सिंह के नाम से लिखा करते थे। उनके विचारोतेजक लेख प्रताप में छपते।

  उन्हें पढ़कर लोगों के दिलो दिमाग़ में क्रांति की चिनगारी फड़कने लगती। उन्हीं दिनों कलकत्ते से साप्ताहिक मतवाला निकलता था। मतवाला में लिखे उनके दो लेख बेहद चर्चित हुए। एक का शीर्षक था- विश्व प्रेम। पंद्रह और बाईस नवंबर 1924  को दो किस्तों में यह लेख प्रकाशित हुआ।इस लेख के एक हिस्से में देखिए भगत सिंह के विचारों की क्रांतिकारी अभिव्यक्ति –” जब तक काला -गोरा, सभ्य -असभ्य, शासक-शासित, अमीर -ग़रीब, छूत -अछूत आदि शब्दों का प्रयोग होता है, तब तक कहाँ विश्व बंधुत्व और कहाँ विश्व प्रेम ? यह उपदेश स्वतंत्र जातियाँ दे सकती हैं । भारत जैसा ग़ुलाम देश तो इसका नाम भी नहीं ले सकता। फिर उसका प्रचार कैसे होगा ? तुम्हें शक्ति एकत्र करनी होगी। शक्ति एकत्रित करने के लिए अपनी एकत्रित शक्ति ख़र्च कर देनी पड़ेगी। राणा प्रताप की तरह ज़िंदगी भर दर-दर ठोकरें खानी होंगी, तब कहीं जाकर उस परीक्षा में उतीर्ण हो सकोगे ……तुम विश्व प्रेम का दम भरते हो । पहले पैरों पर खड़े होना सीखो। स्वतंत्र जातियों में अभिमान के साथ सिर ऊँचा करके खड़े होने के योग्य बनो। जब तक तुम्हारे साथ कामागाटा मारु जहाज़ जैसे दुर्व्यवहार होते रहेंगे, तब तक डैम काला मैन कहलाओगे, जब तक देश में जालियांवाला बाग़ जैसे भीषण कांड होंगे, जब तक वीरागंनाओं का अपमान होगा और तुम्हारी ओर से कोई प्रतिकार न होगा, तब तक तुम्हारा यह ढ़ोंग कुछ मानी नहीं रखता। कैसी शान्ति , कैसा सुख और कैसा विश्व प्रेम ? यदि वास्तव में चाहते हो तो पहले अपमानों का प्रतिकार करना सीखो। माँ को आज़ाद कराने के लिए कट मरो। बंदी माँ को आज़ाद कराने के लिए आजन्म काले पानी में ठोकरें खाने को तैयार हो जाओ। मरने को तत्पर हो जाओ।मतवाला में ही भगत सिंह का दूसरा लेख सोलह मई, 1925 को बलवंत सिंह के नाम से छपा। ध्यान दिलाने की ज़रूरत नहीं कि उन दिनों अनेक क्रांतिकारी छद्म नामों से लिखा करते थे। युवक शीर्षक से लिखे गए इस लेख के एक हिस्से में भगत सिंह कहते हैं –” अगर रक्त की भेंट चाहिए तो सिवा युवक के कौन देगा ? अगर तुम बलिदान चाहते हो तो तुम्हे युवक की ओर देखना होगा। प्रत्येक जाति के भाग्य विधाता युवक ही होते हैं  ……सच्चा देशभक्त युवक बिना झिझक मौत का आलिंगन करता है, संगीनों के सामने छाती खोलकर डट जाता है, तोप के मँह पर बैठकर मुस्कुराता है, बेड़ियों की झनकार पर राष्ट्रीय गान गाता है और फाँसी के तख्ते पर हँसते हँसते चढ़ जाता है । अमेरिकी युवा पैट्रिक हेनरी ने कहा था, ‘जेल की दीवारों के बाहर ज़िंदगी बड़ी महँगी है। पर, जेल की काल कोठरियों की ज़िंदगी और भी महँगी है क्योंकि वहाँ यह स्वतंत्रता संग्राम के मू्ल्य रूप में चुकाई जाती है। ऐ ! भारतीय युवक ! तू क्यों गफ़लत की नींद में पड़ा बेखबर सो रहा है। उठो  ! अब अधिक मत सो । सोना हो तो अनंत निद्रा की गोद में जाकर सो रहो …..धिक्कार है तेरी निर्जीवता पर। तेरे पूर्वज भी नतमस्तक हैं  इस नपुंसत्व पर । यदि अब भी तेरे किसी अंग में कुछ हया बाकी हो तो उठकर माता के दूध की लाज रख, उसके उद्धार का बीड़ा उठा, उसके आंसुओं की एक एक बूंद की सौगंध ले, उसका बेड़ा पार कर और मुक्त कंठ से बोल –वंदे मातरम !प्रताप में भगतसिंह की पत्रकारिता  को पर लगे। बलवंत सिंह के नाम से छपे इन लेखों ने धूम मचा दी। शुरुआत में तो स्वयं  गणेश शंकर विद्यार्थी को पता नहीं था कि असल में बलवंत सिंह कौन है ? और एक दिन जब पता चला तो भगत सिंह को उन्होंने गले से लगा लिया। भगत सिंह अब प्रताप के संपादकीय विभाग में काम कर रहे थे। इन्हीं दिनों दिल्ली में तनाव बढ़ा। दंगे भड़क उठे।विद्यार्थी जी ने भगत सिंह को रिपोर्टिंग के लिए दिल्ली भेजा । विद्यार्थी जी दंगों की निरपेक्ष रिपोर्टिंग चाहते थे। भगत सिंह उनकी  उम्मीदों पर खरे उतरे। प्रताप में काम करते हुए उन्होंने महान क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल की आत्मकथा बंदी जीवन का पंजाबी में अनुवाद किया। इस अनुवाद ने पंजाब में देश भक्ति की एक नई लहर पैदा की।

इसके बाद आयरिश क्रांतिकारी डेन ब्रीन की आत्मकथा का अँगरेजी से हिंदी अनुवाद किया। प्रताप में यह अनुवाद आयरिश स्वतंत्रता संग्राम शीर्षक से प्रकाशित हुआ। इस अनुवाद ने भी देश में चल रहे आज़ादी के आंदोलन को एक वैचारिक मोड़ दिया।गणेश शंकर विद्यार्थी के लाड़ले  थे भगत सिंह। उनका लिखा एक एक शब्द विद्यार्थी जी को गर्व से भर देता। ऐसे ही किसी भावुक पल में विद्यार्थी जी ने भगत सिंह को भारत में क्रांतिकारियों के सिरमौर चंद्रशेखर आज़ाद से मिलाया। आज़ादी के दीवाने दो आतिशी क्रांतिकारियों का यह अदभुत मिलन था। भगत सिंह अब क्रांतिकारी गतिविधियों में भरपूर भाग लेने लगे। साथ में पूर्ण कालिक पत्रकारिता भी चल रही थी । जब गतिविधियाँ बढ़ीं तो पुलिस को भी शंका हुई । खुफिया चौकसी और कड़ी कर दी गई। विद्यार्थी जी ने पुलिस से बचने के लिए भगत सिंह को अलीगढ़ ज़िले के शादीपुर गाँव के स्कूल में हेडमास्टर बनाकर भेज दिया। पता नहीं शादीपुर के लोगों को आज इस तथ्य की जानकारी है या नहीं।भगत सिंह शादीपुर में थे तभी विद्यार्थी जी को उनकी असली पारिवारिक कहानी पता चली थी । दरअसल भगत सिंह के घर छोड़ने के बाद उनकी दादी की हालत बिगड़ गई थी। दादी को लगता था कि शादी के लिए उनकी ज़िद के चलते ही भगत सिंह ने घर छोड़ा है। इसके लिए वो अपने को कुसूरवार मानती थीं। भगत सिंह को पता लगाने के लिए पिताजी ने अख़बारों में इश्तेहार दिए थे। ये इश्तेहार विद्यार्थी जी ने भी देखे थे ,लेकिन तब उन्हें पता नहीं था कि उनके यहाँ काम करने वाला बलवंत ही भगत सिंह है ।बताते हैं कि इश्तेहार प्रताप में भी छपे थे। इनमें कहा गया था कि ,’प्रिय भगत सिंह अपने घर लौट आओ। तुम्हारी दादी बीमार हैं। अब तुम पर शादी के लिए कोई दबाव नहीं डालेगा। जब विद्यार्थी जी ने विज्ञापन देखा तो उनका माथा ठनका। विज्ञापन में भगतसिंह की फोटो भी छपी थी। चेहरा बलवंत सिंह से मिलता जुलता था। उन्हें लगा कि उनके यहाँ काम करने वाला ही असल में भगत सिंह था । इसी के बाद उन्होंने भगत सिंह के पिता को बुलाया। दोनों शादीपुर जा पहुँचे ।

 विद्यार्थी जी ने भगत सिंह  को मनाया कि वो अपने घर लौट जाएँ।भगत सिंह विद्यार्थी जी का अनुरोध कैसे टालते। फौरन घर रवाना हो गए। दादी की सेवा की और कुछ समय बाद पत्रकारिता की पारी शुरू करने के लिए दिल्ली आ गए। दैनिक वीर अर्जुन में नौकरी शुरू कर दी। जल्द ही एक तेज तर्राट रिपोर्टर और विचारोतेजक लेखक के रूप में उनकी ख्याति दूर दूर तक फैल गई। इसके अलावा भगत सिंह पंजाबी पत्रिका किरती के लिए भी रिपोर्टिंग और लेखन कर रहे थे। किरती में वे विद्रोही के नाम से लिखते थे। दिल्ली से ही प्रकाशित पत्रिका महारथी में भी वे लगातार लिख रहे थे। विद्यार्थी जी से नियमित संपर्क बना हुआ था।इस कारण प्रताप में भी वो नियमित लेखन कर रहे थे। पंद्रह मार्च 1926 को प्रताप में उनका झन्नाटेदार आलेख प्रकाशित हुआ। एक पंजाबी युवक के नाम से लिखे गए इस आलेख का शीर्षक था – भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का परिचय और उप शीर्षक था- होली के दिन रक्त के छींटे। इस आलेख की भाषा और भाव देखिए-“ असहयोग आंदोलन पूरे यौवन पर था। पंजाब किसी से पीछे नहीं रहा। पंजाब में सिक्ख भी उठे। ख़ूब ज़ोरों के साथ। अकाली आंदोलन शुरू हुआ। बलिदानों की झड़ी लग गई।”काकोरी केस के सेनानियों को भगत सिंह ने सलामी देते हुए एक लेख लिखा । विद्रोही के नाम से। इसमें वो लिखते हैं  ” हम लोग आह भरकर समझ लेते हैं  कि हमारा फ़र्ज पूरा हो गया। हमें आग नहीं लगती। हम तड़प नहीं उठते। हम इतने मुर्दा हो गए  हैं । आज वे भूख हड़ताल कर रहे हैं  । तड़प रहे  हैं । हम चुपचाप तमाशा देख रहे हैं ।

ईश्वर उन्हें बल और शक्ति दे कि  वे वीरता से अपने दिन पूरे करें और उन वीरों के बलिदान रंग लाएँ । जनवरी 1928 में लिखा गया यह आलेख किरती में छपा था । इन दो तीन सालों में भगत सिंह ने लिखा और खूब लिखा। अपनी  पत्रकारिता के ज़रिए वो लोगों के दिलो दिमाग पर छा गए। फ़रवरी 1928 में उन्होंने कूका विद्रोह पर दो हिस्सों में एक लेख लिखा ।यह लेख उन्होंने बी एस संधु के नाम से लिखा था । इसमें भगत सिंह ने ब्यौरा दिया था कि किस तरह छियासठ कूका विद्रोहियों को तोप के मुंह से बाँध कर उड़ा दिया गया था ।इसके भाग -दो में उनके लेख का शीर्षक था -युग पलटने वाला अग्निकुंड । इसमें वो लिखते हैं  –” सभी आंदोलनों का इतिहास बताता है कि आज़ादी के लिए लड़ने वालों का एक अलग ही वर्ग बन जाता है ,जिनमें न दुनिया का मोह होता है और न पाखंडी साधुओं जैसा त्याग । जो सिपाही तो होते थे ,लेकिन भाड़े के लिए लड़ने वाले नहीं ,बल्कि अपने फ़र्ज़ के लिए निष्काम भाव से लड़ते मरते थे । सिख इतिहास यही कुछ था । मराठों का आंदोलन भी यही बताता है । राणा प्रताप के साथी राजपूत भी ऐसे ही योद्धा थे और बुंदेलखंड के वीर छत्रसाल और उनके साथी भी इसी मिट्टी और मन से बने थे “। यह थी भगत सिंह की पढ़ाई । बिना संचार साधनों के देश के हर इलाक़े का इतिहास भगतसिंह को कहाँ से मिलता था – कौन जानता है ? मार्च से अक्टूबर 1928 तक किरती में ही उन्होंने एक धारावाहिक श्रृंखला लिखी । शीर्षक था आज़ादी की भेंट शहादतें  । इसमें भगतसिंह ने बलिदानी क्रांतिकारियों की गाथाएँ लिखीं थी ।

इनमें एक लेख मदनलाल धींगरा पर भी था।इसमें  भगत सिंह के शब्दों का कमाल देखिए –“फाँसी के तख़्ते पर खड़े मदन से पूछा जाता है – कुछ कहना चाहते हो ? उत्तर मिलता है – वन्दे मातरम ! माँ ! भारत माँ तुम्हें नमस्कार और वह वीर फाँसी पर लटक गया । उसकी लाश जेल में ही दफ़ना दी गई । हम हिन्दुस्तानियों को  दाह क्रिया तक नहीं करने दी गई । धन्य था वो वीर । धन्य है उसकी याद । मुर्दा देश के  इस अनमोल हीरे को बार बार प्रणाम ।भगतसिंह की पत्रकारिता का यह स्वर्णकाल था । उनके लेख और रिपोर्ताज़ हिन्दुस्तान भर में उनकी कलम का डंका बजा रहे थे । वो जेल भी गए तो वहां से उन्होंने लेखों की झड़ी लगा दी । लाहौर के साप्ताहिक वन्दे मातरम में उनका एक लेख पंजाब का पहला उभार प्रकाशित हुआ । यह जेल में ही लिखा गया था । इसकी भाषा उर्दू थी । इसी तरह किरती में तीन लेखों की लेखमाला अराजकतावाद प्रकाशित हुई । इस लेखमाला ने  व्यवस्था के नियंताओं के सोच पर हमला बोला । उनीस सौ अट्ठाइस में तो भगत सिंह की कलम का जादू लोगों के सर चढ़ कर बोला । ज़रा उनके लेखों के शीर्षक देखिए – धर्म और हमारा स्वतंत्रता संग्राम ,साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज ,सत्याग्रह और हड़तालें ,विद्यार्थी और राजनीति ,मैं नास्तिक क्यों हूँ, नए नेताओं के अलग अलग विचार और अछूत का सवाल जैसे रिपोर्ताज़ आज भी प्रासंगिक हैं ।इन दिनों दलितों की समस्याएं और धर्मांतरण के मुद्दे देश में गरमाए हुए हैं ,लेकिन देखिए भगत सिंह ने 90  साल पहले इस मसले पर क्या लिखा था -” जब तुम उन्हें इस तरह पशुओं से भी गया बीता समझोगे तो वो ज़रूर ही दूसरे धर्मों में शामिल हो जाएंगे । उन धर्मों में उन्हें अधिक अधिकार मिलेंगे ,उनसे इंसानों जैसा व्यवहार किया जाएगा फिर यह कहना कि देखो जी ईसाई और मुसलमान हिन्दू क़ौम को नुकसान पहुंचा रहे हैं ,व्यर्थ होगा । कितनी सटीक टिप्पणी है ? एकदम तिलमिला देती है ।इसी  तरह एक और टिप्पणी देखिए -” जब अछूतों ने देखा कि उनकी वजह से इनमें फसाद हो रहे हैं  । हर कोई उन्हें अपनी खुराक समझ रहा है तो वे अलग और संगठित ही क्यों न हो जाएं ?

हम मानते हैं  कि उनके अपने जन प्रतिनिधि हों । वे अपने लिए अधिक अधिकार मांगें । उठो ! अछूत भाइयो उठो ! अपना इतिहास देखो । गुरु गोबिंद सिंह की असली ताक़त तुम्ही थे । शिवाजी तुम्हारे भरोसे ही कुछ कर सके । तुम्हारी क़ुर्बानियाँ स्वर्ण अक्षरों में लिखीं हुईं हैं । संगठित हो जाओ । स्वयं कोशिश किए बिना कुछ भी न मिलेगा । तुम दूसरों की खुराक न बनो । सोए हुए शेरो ! उठो और बग़ावत खड़ी कर दो । इस तरह लिखने का साहस भगत सिंह ही कर सकते थे । गोरी हुक़ूमत  ने चाँद के जिस ऐतिहासिक फांसी अंक पर पाबंदी लगाईं थी , उसमें भी भगत सिंह  ने छद्म नामों से अनेक आलेख लिखे थे । इस अंक को भारतीय पत्रकारिता की गीता माना जाता है ।और अंत में उस पर्चे का ज़िक्र ,जिसने गोरों की चूलें हिला दी थीं । आठ अप्रैल ,1929  को असेम्बली में बम के साथ जो परचा फेंका गया ,वो भगत सिंह ने ही अपने हाथों से लिखा था । यह परचा कहता है – बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊंची आवाज़ की आवश्यकता होती है . . .जनता के प्रतिनिधियों से हमारा आग्रह है कि वे इस पार्लियमेंट का पाखंड छोड़ कर अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लौट जाएं और जनता को विदेशी दमन और शोषण के खिलाफ क्रांति के लिए तैयार करें  . . हम अपने विश्वास को दोहराना चाहते हैं  कि

अनूपपुर में पेट्रोल 112. 55 और डीजल 95.75 पहुंचा

0

TIO जबलपुर

चार नवंबर के बाद मंगलवार को पेट्रोल-डीजल के दाम में बढ़ोत्‍तरी हुई थी। बुधवार को एक बार फिर पेट्रोल-डीजल के रेट बढ़ गए। दूसरे दिन भी पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ा दिए गए। दामों में बढ़ोतरी के साथ ही अनूपपुर जिले में पेट्रोल एक लीटर 112.55 तथा डीजल 95 .75 रुपए के भाव पर आ गया है।

बुधवार को पेट्रोल में 88 पैसा और डीजल में 82 पैसे की बढ़ोतरी की गई है। पूरे प्रदेश में अनूपपुर जिला ही एक ऐसा जिला है जहां सबसे अधिक पेट्रोलियम पदार्थ के दाम हैं जिससे प्रभावित भी यहां के लोग सबसे अधिक होते हैं। अनूपपुर में भिटौनी जबलपुर डिपो से पेट्रोल और डीजल पहुंचता है जिले के अंतिम छोर से जबलपुर की दूरी लगभग 370 किलोमीटर है। ट्रांसपोर्ट चार्ज अधिक लगने के कारण यहां अन्य शहरों की तुलना में पेट्रोलियम पदार्थ के दाम पंप संचालकों को अधिक चुकाने पड़ते हैं। दोनों ईंधन के दाम बढ़ने का असर आम जनजीवन पर अब पड़ेगा। लोगों को वाहनों में ईंधन भरवाने के लिए अब अधिक जेब ढीली करनी पड़ेगी। जिले के पर्यटक नगरी अमरकंटक में बुधवार को पेट्रोल 111. 45 और डीजल 94.80 रुपए प्रति लीटर हो गया है।

अमरकंटक पर्यटन स्थल होने के कारण हर रोज यहां लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं यहां आने के लिए केवल सड़क मार्ग के साधन है दाम बढ़ने से पर्यटकों की संख्या पर भी असर पड़ेगा। जिले के बदरा पेट्रोल पंप में सबसे महंगा इंधन पेट्रोल 112.55 प्रति लीटर है जबकि अनूपपुर में पेट्रोल प्रति लीटर 112.03 पर बिक रहा है।

शहडोल में भी महंगाई की मार: शहडोल में पेट्रोल 111 रुपए 49 पैसे प्रति लीटर हो गया है तो वहीं डीजल 94 रुपए 84 पैसे प्रति लीटर के रेट से बेचा जा रहा है। एक दिन पहले पेट्रोल और डीजल के दामों में बढ़ोतरी हुई थी। 22 मार्च को डीजल 94 रुपए दो पैसे प्रति लीटर और पेट्रोल 110 रुपए 62 पैसे प्रति लीटर था। 137 दिन के बाद 22 मार्च को पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़े थे और अब लगातार स्थिति यह है कि रोज ही पेट्रोल के दाम बढ़ना शुरू हो गए हैं।

जबलपुर में दो दिन में 1.76 रुपये महंगा हुआ पेट्रोल: पेट्रोल के रेट में 88 पैसे तो डीजल में 82 पैसे का इजाफा हो गया यह इजाफा बिल्कुल उतना ही है जितना बीते कल में रहा। जबलपुर में आज पेट्रोल का दाम 108 रुपये 96 पैसे हो गया। जबकि डीजल की कीमत 92 रुपये 53 पैसे प्रति लिटर पर पहुंच गई।

परसों शहर में पेट्रोल का रेट 107 रुपये 21 पैसे और डीजल का 90 रुपये 88 पैसे प्रति लीटर रहा। जबकि कल पेट्रोल 108 रुपये 09 पैसे और डीजल 91 रुपये 70 पैसे प्रति लीटर रहा। इस तरह से दो दिनों में पेट्रोल 1.76 रुपये और डीजल 1.64 रुपये महंगा हो चुका है।

12 से 14 साल तक के बच्चों को टीका, भोपाल में सीएम शिवराज ने किया शुभारंभ

0

TIO भोपाल

 प्रदेश में आज से 12 से 14 साल के बच्‍चों को कोरोनारोधी टीका लगाने की शुरुआत हो गई है। भोपाल में 12 से 14 साल तक के बच्चों को बुधवार सुबह नौ बजे से टीका लगाया जाएगा। इसके लिए शहर में 166 स्कूलों के अलावा 12 अस्पतालों को केंद्र बनाया गया है। मंगलवार, शुक्रवार और छुट्टी का दिन छोड़कर सभी दिनों में टीका लगाया जाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज सुबह अरेरा कालोनी स्‍थित शासकीय नवीन कन्‍या विद्यालय में पहुंचकर बच्‍चों के टीकाकरण कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर उनके साथ चिकित्‍सा शिक्षा मंत्री विश्‍वास सारंग और गोविंदपुरा क्षेत्र की विधायक कृष्‍णा गौर समेत स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के अधिकारी भी मौजूूद थे।

बता दें कि भोपाल में 12-14 साल उम्र वर्ग के कुल 86 हजार बच्चे हैं। इसमें पहले दिन 30 हजार को टीका लगाने का लक्ष्य रखा गया है। स्कूल प्रबंधन को जिम्मेदारी दी गई है कि वह बच्चों को टीका लगवाने के लिए बुलाएं। हालांकि, बड़ी चुनौती यह है कि अभी स्कूल बंद हैं। ऐसे में बच्चों को बुलाना कठिन होगा।

जिला टीकाकरण अधिकारी डा. कमलेश अहिरवार ने बताया कि अभिभावकों को यह विकल्प भी दिया गया है कि वह पास के किसी भी स्कूल या अस्पताल में टीका लगवा सकते हैं। ऐसी बाध्यता नहीं है कि बच्चा जिस स्कूल में पढ़ता है वहीं टीका लगवाएं। उन्होंने बताया कि आनलाइन बुकिंग की सुविधा भी दी गई है। पहले दिन के लिए शहरी क्षेत्र में प्रति जन शिक्षा केंद्र एक हजार, बैरसिया में 300 और फंदा क्षेत्र में 500 आनलाइन स्लाट टीकाकरण के लिए खोले गए थे।

प्रदेश में पहले दिन आठ हजार केंद्रों पर लगेगा टीका

प्रदेश में पहले दिन आठ हजार केंद्रों पर आठ लाख बच्चों को टीका लगाने का लक्ष्य रखा गया है। इस उम्र वर्ग के कुल 30 लाख बच्चे हैं। इन्हें कार्बीवैक्स वैक्सीन की 0.5 एमएल डोज कंधे पर लगाई जाएगी। सभी जिलों में एक साथ टीकाकरण शुरू किया जाएगा।

राज्य टीकाकरण अधिकारी डा. संतोष शुक्ला ने बताया कि जिन बच्चों का जन्म 15 मार्च 2010 या इसके पहले हुआ है वह टीकाकरण के लिए पात्र होंगे।

अभिभावक इन बातों का रखें ध्यान

– बच्चों को कुछ खिला-पिलाकर ही टीका लगवाने के लिए भेजें।

– यह भी ध्यान रखें कि वह गर्मी के चलते डिहाइड्रेशन यानी पानी की कमी से बीमार न हों।

– आनलाइन पंजीयन कराकर किसी भी केंद्र में टीका लगवाने के लिए जा सकते हैं।

– किसी केंद्र के लिए आनलाइन पंजीयन करा लिया है तो फिर टीका लगवाने के लिए वहीं पर जाएं।

– आयु के सत्यापन के लिए जन्म प्रमाण पत्र या आधार कार्ड साथ लेकर जाएं।

निवेश का मौक़ा है ,तो मारिये चौका

0

राकेश अचल

रूस और यूक्रेन के युद्ध को 27 दिन बीत चुके हैं ,लेकिन अब हमारे यहां युद्ध पर नहीं किसी और विषय पर आंसू बहाये जा रहे हैं , ये आंसू भी कारोबार का एक हिस्सा हैं.यदि आप अपने भविष्य के लिए कुछ निवेश करना चाहते हैं तो भविष्य में बनने वाली रुदालियों के साथ ही बाबाओं की कंपनियों में भी निवेश कर सकते हैं. ज्योतिषी कहते हैं कि आजाद भारत में निवेश का यही अक्षत योग है .
ताजा खबर आ रही है कि देश-दुनिया में आयुर्वेद के जरिये अरबपति बने बाबा रामदेव ने देशवासियों के लिए निवेश का एक मौक़ा तैयार किया है . बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि सपोर्टेड रुचि सोया का फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ ) अगले सप्ताह से खुल रहा है। यह एफपीओ करीब 4,300 करोड़ रुपये का है। रुचि सोया का एफपीओ 24 मार्च को सब्सक्रिप्शन के लिए खुलेगा। इस इश्यू को सब्सक्राइब करने की आखिरी तारीख 28 मार्च है। बाबा रामदेव ने खाद्य तेल कंपनी रुचि सोया को “वैश्विक ब्रांड” बनाने की महत्वाकांक्षा की घोषणा की है। रामदेव ने कहा कि कंपनी वैश्विक पहुंच को मजबूत करने के साथ-साथ भारत में ग्रामीण स्तर पर खुद को मजबूत बना रही है।
हमारे बाबा रामदेव भी बाबा नरेंद्र की तरह अति महत्वाकांक्षी हैं. मै दोनों का बहुत सम्मान करता हूं क्योंकि दोनों ने भारत की सोई हुई आत्मा को जागृत किया है .दोनों निशि-याम काम करते हैं .और जनता के लिए निवेश के नए-नए अवसर खोजते हैं. बाबा रामदेव का तो पता नहीं लेकिन बाबा नरेंद्र देव के तो खून में व्यापार है. वे पहले ही नेहरूकाल के तमाम सरकारी उद्यमों को जनता के हाथों में बेच चुके हैं .यहां तक कि अब देश के पास अपनी कोई विमान सेवा शायद नहीं बची है,और होगी भी तो नाम मात्र की .
इस समय हमारी सरकार देश को रुलाने वाले लोगों के साथ है,जख्म कुरेदने वालों के साथ है. इस समय देश रोजाना पैसे देकर रो रहा है.ये बात अलग है कि ये पैसे सरकारी पार्टी के मंत्रियों और विधायकों की जेब से जा रहे हैं .जनता लगातार रोटी रहे इसके लिए ही सरकार ने भी डीजल,पेट्रोल,और रसोई गैस के दाम बढ़कर जनता को रुलाने का प्रबंध कर लिया है .जनता ने खुद सरकार को इसका अधिकार जनादेश के जरिये दिया है .हमारे शहर के विवेक भाई देश की जनता को रुला-रुलाकर एक हफ्ते में सौ करोड़ से ज्यादा कमा चुके हैं .उनकी कमाई जारी है उन्होंने आंसू के बदले पैसा कमाने के लिए देश भर में 4000 से ज्यादा परदे किराये पर ले रखे हैं .
आंसुओं की गंगा में हाथ धोने के लिए बाबा रामदेव जो एफपीओ ला रहे हैं वो एफपीओ गुरुवार, 24 मार्च को सदस्यता के लिए खुलेगा और सोमवार, 28 मार्च, 2022 को बंद होगा।बाबा की कंपनी ने अपने फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर के लिए ₹615 से ₹650 प्रति शेयर का प्राइस बैंड तय किया है।
बाबा की कम्पनी की ओर से देश की जनता के लिए कुल 4,300 करोड़ रूपये की राशि के लिए इक्विटी शेयर जारी किए जाएंगे। इसमें सुपात्र कर्मचारियों के लिए 10 हजार इक्विटी शेयरों रिजर्व हैं। एंकर निवेशकों के लिए यह इश्यू 23 मार्च 2022 को खुलेगा । रुचि सोया इस इश्यू के बुक रनिंग लीड मैनेजरों के साथ विचार-परामर्श कर रही है। इश्यू के तहत, योग्य संस्थागत खरीदारों 50 फीसदी से अधिक का प्रस्ताव आवंटन नहीं होगा। गैरसंस्थानिक बेंडर्स के लिए 15 फीसदी से ज्यादा का प्रस्ताव आवंटन नहीं होगा और रिटेल निवेशकों के लिए 35 फीसदी से कम का प्रस्ताव आवंटन के लिए उपलब्ध है।
बाबा धर्म -अधर्म से ऊपर उठकर बाजार में बिना लकुटिया के खड़े हुए हैं ,उन्होंने एसबीआई कैपिटल मार्केट्स लिमिटेड, एक्सिस कैपिटल लिमिटेड और आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज लिमिटेड जैसी कंपनियां इश्यू के बुक रनिंग लीड मैनेजर नियुक्त किया है
आपको बता दें कि वर्तमान में, पतंजलि के पास रुचि सोया का 98.9 फीसदी हिस्सा है, जबकि सार्वजनिक शेयरधारकों के पास 1.1 फीसदी ही है। एफपीओ के बाद, खाद्य तेल कंपनी में पतंजलि की हिस्सेदारी घटकर 81 फीसदी रह जाएगी, जबकि सार्वजनिक हिस्सेदारी बढ़कर 19 फीसदी हो जाएगी।असली मायनों में यही बहुजन सुखाय ,बहुजन हिताय कहा जाएगा .
आपको याद होगा कि 2019 में पतंजलि ने 4,350 करोड़ रुपये में एक दिवाला प्रक्रिया के जरिए रुचि सोया को खरीदा। रुचि सोया मुख्य रूप से तिलहन प्रोसेसिंग, खाना पकाने के तेल के रूप में उपयोग के लिए कच्चे खाद्य तेल को परिष्कृत करने, सोया उत्पादों के निर्माण और मूल्य वर्धित उत्पादों के व्यवसाय में काम करती है।
देश में मै उन गिने-चुने लोगों में से हूँ जो गालियां खाकर भी बहुजन हिताय,बहुजन सुखाय के लिए समर्पित होकर काम कर रहे हैं और आपको कुछ न कुछ ऐसा बताते रहते हैं ताकि आपकी पढ़ने और जानने की आदत बनी रहे.ताजा खबर ये है कि बाबा नरेंद्र की सरकार एयरलाइन कंपनी एयरइंडिया के बाद अब आईडीबीआई बैंक को बेचने की तैयारी में लग गई है। दरअसल, केंद्र सरकार वर्तमान में आईडीबीआई बैंक की हिस्सेदारी बेचने के लिए रोड शो यानी कि ओपन ऑफर का आयोजन कर रही है। इसकी जानकारी सोमवार को संसद में दी गई है।
लोकसभा में लिखित उत्तर में वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड ने कहा ”रुचि की अभिव्यक्ति (ईओआई) जारी करने से पहले निवेशकों की रुचि का आकलन करने के लिए रोड शो का आयोजन किया जा रहा है।”
हम समझते थे कि रोड शो केवल राजनीतिक दल ही करते हैं लेकिन अब पता चला कि ये काम बाजार वाले भी करते हैं .बिना रोड शो के बाजार का काम भी नहीं चलता .एक हम ही हैं जो बिना रोड शो के भी अपना काम चला रहे हैं .क्योंकि हमारा इरादा आपको रुलाकर कमाने का बिलकुल नहीं है .बहरहाल निवेश का मौक़ा है ,इसलिए किस्मत को जरूर आजमाइए .बाबा कि कम्पनी में निवेश कीजिये ,मुमकिन है कि बाबा की किस्मत के साथ आपकी किस्मत का भी कोई कनेक्शन हो और वो चमक जाये .रंगपंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं

मुख्यमंत्री निवास में मीडिया प्रतिनिधियों के साथ होली मिलन समारोह में गीतों की प्रस्तुति

0

TIO BHOPAL

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कहा है कि समाज के सभी वर्गों जिनमें पत्रकार भी शामिल हैं, उनकी जिन्दगी में खुशियों के रंग भरें, इसके लिए सभी आवश्यक उपाय होंगे। यह हमारा दायित्व भी है। राज्य शासन द्वारा पत्रकार हित में सभी आवश्यक निर्णय लिए जाएंगे। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि अधिमान्यता और संचार कल्याण समितियों के गठन की प्रक्रिया भी पूर्ण हो रही है। पत्रकार भवन के निर्माण से जुड़े कार्यों की बाधाएं समाप्त कर इसकी प्रक्रिया तेज करते हुए भवन निर्माण शीघ्र किया जाएगा। मुख्यमंत्री श्री चौहान आज मुख्यमंत्री निवास में मीडिया प्रतिनिधियों के साथ होली मिलन समारोह को संबोधित कर रहे थे।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि होली मिलन के अवसर पर आज कुछ पत्रकार बंधुओं ने अपनी गायन प्रतिभा का परिचय दिया है, जो सराहनीय है। गत 2 वर्ष के कोरोना काल के पश्चात यह उमंग और उल्लास का अवसर है। हम सब मिलकर रंगों का त्यौहार मना रहे हैं। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने समस्त पत्रकारों को होली और रंग पंचमी की बधाई दी। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि उन्मुक्त वातावरण में होली मनाई गई है, रंगपंचमी भी इसी उत्साह के साथ मनाई जाएगी।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने भी गाया लोकगीत, गीत-संगीत की अनूठी पेशकश

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने सभी को होली और रंगपंचमी की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने लोकप्रिय बुंदेली लोकगीत मोरी बहू हिरानी है … ऐ भैया मिले … बता दइयो … का गायन सभी के साथ स्वर मिलाकर किया। इसके साथ ही पत्रकार श्री ऋषि पाण्डे (न्यूज वर्ल्ड), प्रमुख सचिव जनसंपर्क राघवेन्द्र कुमार सिंह, , आईएनडी-24 के श्री नवीन पुरोहित ने भी गीत प्रस्तुत किए। इस दौरान संचालक जनसम्पर्क संचालक आशुतोष प्रताप सिंह उपस्थित थे। प्रमुख पत्रकारों में राघवेंद्र सिंह, ऋषि पांडे, भगवान उपाध्याय, राकेश अग्निहोत्री, ब्रजेश राजपूत, प्रवीण दुबे, शशी कुमार केसवानी, पंकज शुक्ला आदि मौजूद थे। साथ ही साथ जनसंपर्क के अशोक मनवानी भी उपस्थित थे।

दी कश्मीर फाइल्स: समाज और सियासत का टर्निग पॉइंट..

0

राघवेंद्र सिंह

देश के जाने-माने पत्रकार रवीश कुमार … जब रवीश कुमार का नाम आते ही एक हलचल पैदा होती है। कुछ उनसे नफरत करते हैं तो कुछ उनसे बेइंतहा मोहब्बत। लेकिन मेरी कोशिश होती है कि मैं रवीश कुमार को बहुत संतुलित नजरिए से देखो सुनो समझो और फिर उनके बारे में सोचो आज हम बात कर रहे हैं उनके मशहूर “हम लोग” कार्यक्रम की। इसकी एक क्लिपिंग सोशल मीडिया पर इन दिनों खूब वायरल हो रही है। मामला है कश्मीर का। यह तब और भी प्रासंगिक हो जाता है जब कश्मीरी पंडितों पर बनी फिल्म दा कश्मीर फाइल्स की चर्चा खूब जोरों पर है। कुछ लोग इसे बहुत अच्छा मान रहे हैं तो कुछ इसे आधा सच। जैसा भी है वह फ़िल्म के जरिए सबके सामने हैं। लगता है यह फिल्म भारतीय समाज और भारतीय राजनीति के लिए एक टर्निंग प्वाइंट साबित होगी।


उम्मीद करते हैं इससे हिंदुस्तान और हिंदुस्तानियत पहले से ज्यादा मजबूत होकर सामने आएंगे। अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक बाद में उसी भारतीय राजनीति आने वाले वर्षों में अब नए रंग में रंगी नजर आएंगी। लगता है धर्मनिरपेक्ष नारे के दिन पीछे हो जाएंगे और पंथनिरपेक्ष नारे के दिन सुनाई पड़ेंगे। कुल मिलाकर अल्पसंख्यक को वोट बैंक समझ कर सियासत करने वाले अब अपनी राजनीतिक लाइन को बदलते नजर आएंगे हो सकता है यह सब आने वाले वर्षों में विधानसभा चुनाव और उसके बाद होने वाले लोकसभा के चुनाव में बड़ी शिद्दत से दिखाई और सुनाई भी दे यहीं से लोग कहेंगे कि भारत बदल रहे हैं… कुल मिलाकर यह सच उगलने और निगलने की कवायद है…
फिल्म को लेकर बहुत सारी बातें कही गई हैं इसकी कमाई का क्या होगा आगे फिल्में कैसे बनेगी कश्मीरियों को इससे क्या लाभ निर्माता-निर्देशक ने फिल्म से होने वाली पूरी कमाई कश्मीरियों के पुनर्वास के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष में देने के संकेत दिए हैं। बहराल फिल्म ने 32 साल बाद कश्मीरी पंडितो के पहाड़ जैसे दुखों को सबके सामने लाने का काम किया है।

मैं रवीश कुमार 1990 का वो साल था जब मेरे जैसे हजारों साल लाखों मजदूरों के साथ अपने राज्य बिहार से पलायन कर रहे थे एक नए अवसर की तलाश उसी साल कश्मीर से लाखों की संख्या में कश्मीरी हिंदू पलायन करने के लिए मजबूर किए जा रहे थे शरणार्थी और प्रवासी में जमीन आसमान का फर्क होता है हम बीच-बीच में अपने घरों को लौटते रहे हैं और जब भी चाहे लौट सकते हैं हमेशा हमेशा के लिए लेकिन जो शरणार्थी होता है उसे मालूम नहीं कि कब लौट सकता है लौट भी सकता है या नहीं लौट सकता है हमारा घर उजड़ा नहीं था हम उजड़े हुए घरों को छोड़कर दिल्ली की तरफ नहीं निकले थे लेकिन जो कश्मीरी हिंदू दिल्ली की तरफ निकले थे उनका घर उनकी गलियां उनके मोहल्ले उनके अपने उनके मंदिर उनकी तमाम यादें सब कुछ गुजार दी गई थी एक ऐसे दौर में स्थापित होना एक सामान्य स्वाभाविक और आर्थिक प्रक्रिया है इस दौर में कश्मीरी हिंदू और पंडितों के प्रति जो हमारी संवेदना है वह किस तरह से बनती है किस तरह से जुड़ती है जुड़ती भी है या नहीं जुड़ती है जब पूरा विश्व विस्थापितों से बन रहा हो एक नया स्वरूप ले रहा हूं वैसे में ऐसे तमाम लोग जो साथी बन कर आए और पीछे एक तरह से अतीत को अपने वर्तमान के रूप में देखते रह
और जो पीछे एक तरह से इसको नहीं आती इसको अपने वर्तमान के रूप में देखते रहते हैं याद करते रहते हैं वह कैसे अपने इस पहचान को लेकर दिल्ली शहर में या हिंदुस्तान में या फिर पूरी दुनिया में घूमते रहते होंगे यह कार्यक्रम पूरी तरह से एकतरफा है इसे संतुलित करने के नाम पर सरकार की तरफ से किसी को नहीं बुलाया गया है इसे संतुलित करने के नाम पर सेकुलर मोर्चा के किसी प्रवक्ता को नहीं बुलाया गया है और इसे संतुलित करने के नाम पर किसी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को भी नहीं बुलाया गया है । इसमें सिर्फ वह लोग हैं जो विस्थापित हुए । जो कश्मीर के हिंदू हैं। जो पंडित कहे जाते हैं। जैसा हम समझते हैं।आज बोलेंगे यह लोग और सुनेंगे…हम लोग। राहुल मैं आपसे जानना चाहता हूं बहुत लंबी है लेकिन मेरे जैसे लोगों के लिए बहुत कम जानते हैं कश्मीर के बारे में । कहां से शुरू की जाए जिससे यह समझ में आएगी । 19 जनवरी 1990 का दिन क्यों कश्मीरी पंडितों के लिए एक खास दिन है पत्थर की तरह चिपका हुआ है सीने में।
रवीश जी के कार्यक्रम ‘ हम लोग ‘ में राहुल पंडित ने जो कहा उसे जस का तस रखने की कोशिश की है..

मैं पत्रकार हूं , लेखक हूं, मैं बात शुरू करता हूं आज के कश्मीर से। देखे कश्मीर में कुछ मूल समस्याएं हैं । उनकी कुछ शिकायतें हैं चाहे वह ह्यूमनराइट को लेकर हो चाहे वह स्पेशल आर्म फोर्सेज पावर एक्ट के रिमूवल को लेकर हो लेकिन इसके अलावा यह भी सच है कि पिछले कुछ सालों में मिलिटेंसी जो है उसकी रीड की हड्डी तोड़ दी गई है।  काफी हद तक वहां स्थिति सामान्य हो चुकी है। यह काम केवल आर्मी ने नहीं किया है वहां के मुस्लिम पुलिस ने भी बहुत बढ़िया काम किया है। अब वह समय आ चुका है जब हम ट्रुथ एंड रिकॉन्सिलिएशन की बात करते हैं कश्मीर में। मेरा यह मानना है कि यह ट्रुथ एंड रिकॉन्सिलिएशन तब तक संभव नहीं हो पाएगा जब तक इस बात पर कंसेंसस नहीं होगा कि कश्मीर में 1989-90 में क्या हुआ? बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि पिछले 20 सालों में एक बहुत ही सिस्टमैटिक तरीके से एक प्रोपेगेंडा, एक अनट्रुथ फैलाया गया है…

प्रोपेगेंडा क्या है?  इतने हजारों परिवार, लाखों लोग,जो बेघर हो गए उनके पीछे उस समय के जो तत्कालीन गवर्नर जगमोहन साहब उनका हाथ या स्टेट का हाथ है,जो बिल्कुल सरासर झूठ है और यह कब से शुरू हुआ 32 साल पहले 19 जनवरी 1990 को हुआ। एक छोटा सा समुदाय जो है माइनॉरिटी कश्मीरी पंडित। साढे तीन लाख लोग जो वहा रहते थे। हजारों लाखों की संख्या में जो माइनॉरिटी के लोग जो है। कश्मीरी मुस्लिम जो हैं वे मस्जिदों में गए और उन्होंने वहां जो है नारे लगाने शुरू किए जिसमें कई सारे नारे थे। मैं दो-तीन नारे यहां बताना चाहता हूं । जिससे कि दर्शकों को पता चले कि हम किस दौर से उसे में गुजरे हैं। इसमें कुछ नारे थे: यहां क्या चलेगा निजाम ए मुस्तफा, आजादी का मतलब क्या… ला इलाहा इल इल लल्लाह, सबसे जो डराने वाला स्लोगन उसमें था वह कश्मीरी में था उसका अनुवाद है-  हमें अपना पाकिस्तान चाहिए विदाउट कश्मीरी पंडित मैन.. लेकिन कश्मीरी पंडितों की महिलाओं के साथ!
हम जिस दौर से गुजरे हैं उसमें मुझे क्षमा कॉल के उपन्यास दर्द पुर की एक पंक्ति याद आ रही है जिसमें उन्होंने कहा है कैसे माहौल में जिए जिए हम, आप होते  खुदकशी कर लेते हैं….

   मेरे ख्याल से इसे सुनने के बाद काफी कुछ साफ हो जाता है। बस इसी… थोड़े को ज्यादा और चिट्ठी को तार समझने की जरूरत है। भारत में हिंदू मुसलमान साथ रहना चाहते हैं साथ रहेंगे भी क्योंकि कोई विकल्प नहीं है दर्शन दोनों के लिए दुनिया में भारतवर्ष से अच्छा कोई देश भी नहीं है इसलिए जीना यहां मरना यहां इसके सिवा जाना कहां बेहतर हो सब साथ रहे भाईचारे से रहे क्योंकि कोई और देश ऐसा नहीं है जो हमारी का बजट को तो स्वीकार करेगा लेकिन हमारी नालायक क्यों नाफरमानी हो और नकाबत को मंजूर नहीं करेगा बेहतर हो सब एक साथ जाएं और दिल से माने भी सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा दूसरे मुल्क में ना तो अंत्येष्टि के लिए आग मिलेगी और ना कब्र के लिए इज्जत से दो गज जमी भी नसीब नहीं होगी। भारत के इतिहास में झांकने की जरूरत है क्योंकि हिंदुस्तानी मुसलमान और उसके पुरखे बाहर से नही आए वे यहीं  की हवा- पानी और मिट्टी पैदा हुए और यहीं की संस्कृति में पले पुसे और रचे बसे हैं। दी कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्म से ना तोड़ डरने की जरूरत है और ना ही नफरत करने की बल्कि कलेजा चीर ने वाले सच्चे सामना करने और उसे आत्मसात करने की जरूरत है जिस दिन हो जाएगा तब ना तो हिंदू में मुसलमान की दूरी रहेगी और ना ही भाईचारे की सीख देने की किसी को जरूरत होगी।


मोदी बनेंगे हीरो…
मोदी ने काट दिए वंशवाद के पर भारतीय राज्य के हाथों से भाजपा को लेकर कहें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेता पुत्रों के टिकट काटने की बात कहकर वंशवाद पर करारी चोट की है इक्का-दुक्का अपवाद को छोड़ दें तो आने वाले चुनाव में नेता और उनके पुत्रों में से किसी एक को चुनने का वक्त आने वाला है मध्यप्रदेश के संदर्भ में कहें तो एक दर्जन राजनेताओं की परिवार मोदी के वंशवाद पर प्रहार करने के बाद से सदमे में है मालवा क्षेत्र के इंदौर से लेकर महाकौशल बुंदेलखंड मध्य भारत नई पीढ़ी सन्नाटे में है। पीएम मोदी के बयान के बाद कार्यकर्ताओं की लंबी फौज अपने आप को ज्यादा ना सही थोड़ा तो सुरक्षित महसूस कर रही होगी आने वाले चुनाव में जो कुछ घटित होगा उससे मोदी की विश्वसनीयता का पारा घट बढ़ सकता है नेता पुत्रों के टिकट काटे तो कार्यकर्ताओं में मोदी एक नए अवतार के रूप में जाने और पहचाने जाएंगे बस प्रतीक्षा है तो विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में प्रत्याशियों की सूची घोषित होने की।

महाकाल के आंगन में छाया रंगपंचमी का उल्लास

0

TIO NEW DELHI

उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर में दो साल बाद रंगपंचमी के रंग दिखे। कोविड पाबंदियां हटने के बाद भक्तों ने बाबा के आंगन में होली खेली। माहौल बृज की होली से कम नहीं है। सुबह भस्मारती में महाकाल को टेसू के फूलों से बना रंग चढ़ाया गया। पण्डे, पुजारी और श्रद्धालु हर्बल रंगों से सराबोर दिखे। टेसू से तैयार केसरिया रंग को गर्भगृह से नंदी हॉल तक उड़ाया गया। परंपरा के अनुसार सबसे पहले पुजारियों ने बाबा महाकाल को टेसू के फूलों से बना रंग लगाया। आरती के दौरान रंग को श्रद्धालुओं पर फेंका।

रंगपंचमी पर महाकाल का भांग, चंदन और सूखे मेवे से श्रृंगार किया गया। पंचामृत अभिषेक पूजन के बाद भस्म अर्पित की गई। त्रिनेत्र रूपी, मस्तक पर रजत त्रिपुण्ड और सिर पर शेषनाग रजत मुकुट धारण किया। रुद्राक्ष और फूलों की माला अर्पित की गई।

महाकाल के आंगन में होली उत्सव के बाद शहरवासियों ने रंग पर्व की शुरुआत की। यहां रंग तरंग की मस्ती में युवा रंग व गुलाल से होली खेलते नजर आए। शहर के हर मोहल्ले में लोग एक-दूसरे को रंग लगाकर रंगपंचमी का पर्व मना रहे थे। कोरोनाकाल के दो साल बाद इस बार रंगपंचमी पर लोगों का उत्साह देखने लायक है। शाम को महाकाल मंदिर, सिंहपुरी, कार्तिक चौक तथा भागसीपुरा से पारंपरिक गेर निकाली जाएगी। श्रद्धालु बैंड बाजे व ढोल ढमाकों के साथ शौर्य व विजय के प्रीतक ध्वज निशान लेकर निकलेंगे।