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बढ़े पेट्रोल डीजल के दाम, LPG सिलेंडर की कीमत में भी बढ़ोतरी

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TIO NEW DELHI

पांच राज्यों के चुनावों के कारण 137 दिनों से स्थिर रहे पेट्रोल-डीजल के दाम मंगलवार को 80 पैसे प्रति लीटर बढ़ गए हैं। इतना ही नहीं, घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत में भी 50 रुपए का इजाफा हुआ है। दिल्ली में अब 14.2 किलो का बिना सब्सिडी वाला सिलेंडर 949.50 रुपए में मिलेगा। वहीं, पेट्रोल की कीमत 96.21 रुपए प्रति लीटर और डीजल 87.47 प्रति लीटर हो गई है।

मुंबई में पेट्रोल 110.82, डीजल 95.00, कोलकाता में पेट्रोल 105.51, डीजल 90.62 और चेन्नई में पेट्रोल 102.16 और डीजल 92.19 रुपए प्रति लीटर हो गया है। दिल्ली में 5 किलो वाला LPG सिलेंडर 349 रुपए, 10 किलो वाला 669 रुपए और 19 किलो वाला कमर्शियल सिलेंडर 2003.50 रुपए में मिलेगा।

पेट्रोल डीजल की कीमत में 80 पैसे की बढ़ोतरी

तेल कंपनियों ने मंगलवार को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 80 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की है। आपको बता दें कि बीते साल नवंबर के बाद से अभी तक पेट्रोल व डीजल की कीमत में बढ़ोतरी नहीं की गई थी। अब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत बढ़कर 96.21 रुपए हो गई है और 1 लीटर डीजल के लिए ग्राहकों को अब 87.47 रुपये का भुगतान करना होगा। बीते साल सितंबर के बाद पेट्रोल के मुकाबले Diesel Market में ज्यादा तेजी आई थी। कारोबार के लिहाज से देखा जाए तो पेट्रोल के मुकाबले डीजल की Manufacturing महंगी पड़ती है। भारत के Retail Market में पेट्रोल महंगा बिकता है और डीजल सस्ता बिकता है।

चार महानगरों में रसोई गैस सिलेंडर की ताजा कीमत

– दिल्ली में 949.5 रुपए

– मुंबई में 949.50 रुपए

– कोलकाता में 976 रुपए

– चेन्नई में 965.50 रुपए

रूस व यूक्रेन युद्ध का असर

रूस और यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत में भारी उछाल आया है। साथ ही रुपए की कीमत में भी गिरावट आई है। इसके बावजूद उपभोक्ता पंप पर 1 प्रतिशत से कम का भुगतान करेंगे। मंगलवार को दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 96.21 रुपए और डीजल की कीमत 87.47 रुपए होगी। डीलरों में से एक ने कहा कि कीमतों में नियमित बढ़ोतरी हो सकती है। सरकारी तेल कंपनियों ने 4 नवंबर के बाद से कीमतें नहीं बढ़ाई हैं।

टीके जैसा ज़रूरी कर दिया जाए ‘कश्मीर फ़ाइल्स’ देखना !

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श्रवण गर्ग

‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ फ़िल्म को व्यापक रूप से देखा और दिखाया जाना चाहिए। इसका देखा जाना कोविड के टीके की तरह अनिवार्य भी किया जा सकता है।शुरुआत उन लोगों से की जा सकती है जो 1989-90 में भाजपा-समर्थित वीपी सिंह सरकार को सत्ता में लाने के लिए वोट देने के बाद से इस समय पचास की उम्र को पार कर गए हैं।ऐसा इसलिए कि कहानी का सम्बंध उसी समय की केंद्र सरकार से है।देश की अस्सी करोड़ आबादी को बाँटे जा रहे मुफ़्त के अनाज के साथ फ़िल्म का टिकट भी फ़्री दिया जा सकता है।चुनावी रैलियों के लिए जुटाई जाने वाली श्रोताओं की भीड़ की तरह ही दर्शकों को भी थिएटरों तक लाने-ले जाने की व्यवस्था पार्टी द्वारा की जा सकती है।(फ़िल्म के अंतिम भाग में नायक कृष्णा भी चुनावी रैलियों के नेताओं की तरह ही कश्मीर के गौरवशाली हिंदू अतीत पर भाषण करते हुए दिखाया गया है।)

जो लोग फ़िल्म को बिना देखे ही उसकी आलोचना कर रहे हैं वे मुल्क की ज़मीनी हक़ीक़त का सामना करने से कतरा रहे हैं।उस हक़ीक़त का जो धीमी गति के ज़हर की तरह हमारी रगों में समाया रहा है।क़ानून और सरकारें इजाज़त दे दें तो इस तरह की सारी ही ‘फ़ाइलें’ उन तमाम बच्चों को भी दिखाई-पढ़ाई जानी चाहिए जो ‘जागृति’, ‘हम पंछी एक डाल के’ और ‘दोस्ती’ जैसी फ़िल्मों को ही देश का मूल संस्कार मानकर बड़े होना और बनना चाहते हैं। ये बच्चे जब फ़िल्म में अपनी ही उम्र के ‘शिवा’ को विधर्मी आतंकी के हाथों अत्यंत ही क्रूर तरीक़े से मारे जाने का लम्बा दृश्य देखेंगे तो हिंसा और नफ़रत करने के लिए अपने को अभी से तैयार करने लगेंगे।(कहते हैं कि सेंसर बोर्ड ने फ़िल्म को बिना एक भी कट के प्रदर्शन हेतु प्रमाणपत्र दे दिया।विवेक अग्निहोत्री भी सेंसर बोर्ड के एक सदस्य हैं।)

फ़िल्म में एक संवाद है कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अपने ऊपर हुए अत्याचारों को यहूदी दुनिया के सामने क्यों नहीं सुना पाए ? अब ‘द कश्मीर फाइल्स’ को यहूदियों के देश इज़राइल के साथ-साथ जर्मनी सहित यूरोप के उन तमाम मुल्कों में भी दिखाया जा सकता है जहां 1941 से ‘45 के बीच कोई साठ लाख यहूदियों का संहार हुआ था (उनके पलायन के आँकड़ों की केवल कल्पना ही की जा सकती है )पर अभी भी इस विषय पर ‘शिंडलर्स लिस्ट’ और ‘द पियानिस्ट’ जैसी ऑस्कर सम्मान पाने वाली मानवीय फ़िल्में ही उन देशों में बनाई जा रही हैं।(‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ में बताए जाने वाले आँकड़ों की बात नहीं करें तो कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति कथित तौर पर 1989 के बाद से घाटी में मारे जाने वाले पंडितों की संख्या 650 बताती है ,आरएसएस का 1991 का प्रकाशन 600 और केंद्रीय गृह मंत्रालय 219)

‘ द कश्मीर फ़ाइल्स’ को लेकर समाज का जो वर्ग सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म्स पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर रहा है वह वही है जो पिछले साल के आख़िर में धार्मिक नगरी हरिद्वार में आयोजित हुई ‘धर्म संसद’ में एक समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ दिए गए भाषणों को लेकर भी उत्तेजित हुआ था।इस वर्ग को जानकारी नहीं है कि जिस समय हरिद्वार स्थित गंगा में साम्प्रदायिक सौहार्द की अस्थियों का विसर्जन हो रहा था मुंबई में ‘फ़ाइल्स’ के प्रिंट तैयार हो रहे होंगे।हरिद्वार में हाल ही में आयोजित एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने एक वाजिब सवाल पूछा कि शिक्षा के भगवाकरण में बुराई क्या है ?स्वीकार करना चाहिए कि हमारे पास उनके सवाल का कोई जवाब नहीं है।और अगर शिक्षा के भगवाकरण में कोई बुराई नहीं है तो फ़िल्मों की फ़ाइलों का भगवाकरण करने में क्या हो सकती है ? हमें इस फ़िल्म भी को इसी नज़रिए से देखना चाहिए।

‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ के एक दृश्य में टी वी पर एक इंटरव्यू चलते हुए बताया जाता है जिसमें इस्लामी आतंकवादी सरगना से जब सरकारी टी वी चैनल का संवाददाता सवाल करता है कि उसने व्यक्ति की हत्या क्या इसलिए की कि वह कश्मीरी पंडित था तो वह शायद कुछ ऐसा जवाब देता है कि ‘नहीं, उसे इसलिए मारा कि वह आरएसएस का आदमी था।’ दर्शक अगर संवेदनशील नागरिक बनकर फ़िल्म की हरेक फ़्रेम को बारीकी से देखेंगे और बोले जाने वाले प्रत्येक संवाद का बोलने वाले पात्रों के चेहरों पर चुपड़े गए मोटे मेक-अप के नीचे दबी चमड़ी के रंग के साथ मिलान करने की कोशिश करेंगे तो ही जान पाएँगे कि दो घंटे पचास मिनिट की फ़िल्म के लिए हो सकता है पाँच सौ घंटों की शूटिंग की गई हो और ऐसी सौ फ़िल्में सिर्फ़ एक आदेश पर देश भर में प्रदर्शित की जा सकतीं हैं।उन बुद्धिजीवियों के सोच का अभी जेएनयू की लाइब्रेरी जैसी जगहों से बाहर आना बाक़ी है जो इस फ़िल्म की सफलता को सिर्फ़ नक़दी के डेली कलेक्शन के तौर पर ही गिनने में अपना और देश का क़ीमती वक्त बर्बाद कर रहे हैं।

मेरी तरह ,कुछ और दर्शक भी होंगे जिन्होंने ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ देखते हुए शायद महसूस किया हो कि उनकी आँखों के सामने वर्ष 1984 में रिलीज़ हुई (पंडितों के साथ हुई ट्रैजेडी के छह साल पहले) महेश भट्ट की फ़िल्म ‘सारांश’ में दिखाए गए एक बूढ़े बाप का चेहरा बार-बार तैर रहा है।’फ़ाइल्स’ के बूढ़े बाप की तरह ही उस फ़िल्म में भी वह स्कूल शिक्षक ही बनाया गया था।उसमें भी वह अपने इकलौते बेटे की (न्यूयॉर्क में एक लूट की घटना में हुई )मौत से उबरने की कोशिश करता है।मैं बार-बार सोचता रहा कि बूढ़े शिक्षक ने बेटे तो दोनों ही फ़िल्मों में खोए हैं पर ‘फ़ाइल्स’ वाला बूढ़ा ‘सारांश’ की तरह असली क्यों नहीं नज़र आ रहा है ?’ सारांश’ देखते हुए सिनेमा हॉल में हर दर्शक रो रहा था जबकि ‘फ़ाइल्स’ में सिर्फ़ एक्टिंग करने वाला बूढ़ा ।ट्रेजेडी यह है कि दोनों ही बूढ़ों का किरदार एक ही अभिनेता ने निभाया है !

‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ आगे आने वाले भारत और अब पूरी तरह से दो फाड़ किए जा चुके अरबों की सम्पदा वाले बॉलीवुड की बनने वाली सूरत का ट्रेलर है।’द कश्मीर फ़ाइल्स’ को इस नज़रिए से भी देखा जा सकता है कि जो काम पच्चीस करोड़ की आबादी वाले एक प्रदेश में महीनों के यथा सम्भव प्रयासों के बाद भी मुमकिन नहीं हो पाया उसे सिर्फ़ तीन घंटे की एक फ़िल्म ने शांतिपूर्ण तरीक़े से कुछ ही दिनों में पूरे देश में मुमकिन कर दिखाया।सवाल आख़िर में यही रह जाता है कि फ़िल्म को बनाने में लगाई गई इतनी मेहनत के बाद भी कश्मीरी पंडितों की संघर्षपूर्ण ज़िंदगी को घाटी में वापस लौटने का सुख प्राप्त हो पाएगा कि नहीं ? एक अन्य सवाल भी ! विवेक अग्निहोत्री अगर फ़िल्म की स्क्रिप्ट पीड़ित पंडितों को पढ़वाने के बाद ही ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ बनाना चाहते तो कितने प्रतिशत उसे अपनी स्वीकृति प्रदान करते ?

विधायका की प्रासंगिता पर सवाल

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राकेश अचल

मध्यप्रदेश विधानसभा का बजट सत्र निर्धारित समय से 9 दिन पहले ही समाप्त हो गया .सरकार के पास विधानसभा के लिए कोईकामकाज था या नहीं ,ये पूछने और बताने वाला कोई नहीं है .देश में विधानसभाएं हों या संसद अब पूरे समय काम करने से कतराती है.और सरकारें येनकेन सदनों को समय से पहले समाप्त कर भंग खड़ी होती हैं .यानि योजनाबद्ध तरीके से संविधान के एक और स्तम्भ को लंगड़ा किया जा रहा है .


पहले मप्र विधानसभा की ही बात कर लें. 7 मार्च से शुरू हुई विधानसभा का बजट सत्र 25 मार्च तक चलना था लेकिन संसदीय कार्यमंत्री  ने इसे तय  समय से 9 दिन पहले ही सदन  को समाप्त करने का इशारा कर दिया  और अध्यक्ष जी  ने इशारा पाते ही विधानसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित  करने की घोषणा करते हुए आसंदी छोड़ दी . विपक्ष चिल्लाता रह गया .सवाल ये है कि  सरकार के पास विधानसभा के लिए काम क्यों नहीं है ?क्या सचमुच अब सदन में काम करने के लिए सरकार और विपक्ष के पास कुछ बचा ही नहीं है ?इस  मुद्दे पर विधायक तो अध्यक्ष के खिलाफ  अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है लेकिन कोई दूसरा सवाल नहीं कर सकता .
कांग्रेस ने ऐलान किया कि वो सरकार और स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आएगी.कांग्रेस  और कर भी  क्या सकती  है  
 विधानसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने पर विपक्ष के सवाल पर गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा सफाई देते हैं  कि प्रतिपक्ष के नेता कमलनाथ और गोविंद सिंह से चर्चा के बाद अध्यक्ष ने कार्य सूची में सभी विषय लिए. विपक्ष ने विरोध किया तो कमलनाथ पर उंगली उठाई. जीतू पटवारी को नोटिस देने पर कहा कि विधानसभा की समिति ने पूरी नियम प्रक्रिया के तहत उन्हें नोटिस दिया है. यानि सब एक ही थैली कि चट्टे -बट्टे हैं


विधानसभा अध्यक्ष सरकार का नौकर  नहीं बल्कि  सदन का मुखिया  होता  है और सभी  विधायकों  के हितों  की रक्षा करना अध्यक्ष का दायित्व ,लेकिन अध्यक्ष सदन का संचालन  सदन के सदस्यों  की मर्जी  से नहीं सरकार की मर्जी  से कर  रहे  हैं. नियम -कानूनों  की ढाल  उनके  हाथ  में पहले से हैं  .पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा कहते  हैं कि -‘ यह गूंगी-बहरी सरकार है. हमारा सरकार के साथ स्पीकर के खिलाफ भी विरोध था, जो विधायकों की रक्षा नहीं कर सकते. उनसे क्या उम्मीद करेंगे. हम स्पीकर और सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएंगे. यह झूठ बोलने का काम करते हैं. खुद के बचाव के लिए नेता प्रतिपक्ष पर आरोप लगाते हैं. उन्होंने जीतू पटवारी के नोटिस पर कहा सदस्यों के हितों की रक्षा करने का भार अध्यक्ष पर रहता है. विधानसभा के बाहर किया गया काम इसकी परिधि में नहीं आता. इसके बावजूद इस तरीके के नोटिस दिए गए.पिछले दशकों  में चाहे  जिस  पार्टी  की सरकार रही  हो विधानसभा की गरिमा  को कम  करने की आरोपी  रही  है. सरकारें जनप्रतिनिधियों  का सामना  करने के लिए तैयार  नहीं है. जैसे -तैसे  प्रश्नकाल  चल  जाये  तो शून्यकाल  ताल  दिया जाता  है .सरकार के पास सदन चलाने   का समय नहीं होता लेकिन सिनेमा  देखने  का समय होता है ,66  साल  पुरानी  प्रदेश  की विधानसभा के हमने  सबसे  लम्बे सत्र भी देखे हैं  और सबसे छोटे  सत्र भी देख  रहे हैं .

आपको  नहीं लगता  कि ये सब  देश की तमाम  संवैधानिक  संस्थाओं   को कमजोर  करने की कोई साजिश है ?यदि आप इतिहास के पन्ने पलटें तो जान जायेंगे कि स्थिति कितनी गंभीर है .भाजपा के सत्ता में आने के बाद का ही हिसाब देखें तो 29 जनवरी से 9 फरवरी और 5 मार्च से 6 अप्रैल 2018 तक दो चरणों में चले बजट सत्र में 190 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च हुए। यानी प्रति मिनट संसद की कार्यवाही पर तीन लाख रुपए से ज्यादा का खर्च आया। संसदीय आंकड़ों की बात करें तो 2016 के शीतकालीन सत्र के दौरान 92 घंटे व्यवधान की वजह से बर्बाद हो गए थे। इस दौरान 144 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। जिसमें 138 करोड़ संसद चलाने पर और 6 करोड़ सांसदों के वेतन, भत्ते और आवास पर खर्च हुए।

अमूमन देश की संसद हो या विधानसभाएं इनमें एक साल के दौरान तीन सत्र होते हैं। इसमें से भी अगर साप्ताहांत और अवकाश को निकाल दिया जाए तो यह समय लगभग तीन महीने का रह जाता है। यानी केवल 70-80 दिन कामकाज होता है जिसमें भी संसद और विधानसभाएं ठीक तरह से चल नहीं पाती है। केवल 1992 में संसद का कामकाज 80 दिनों का हुआ था। हमारे प्रदेश में विधानसभा की कार्रवाई का एक मिनट के संचालन का खर्च करीब 66 हजार रुपए आता है। अब फिसब लगा लीजिये कि विधानसभा कोई रेस्टोरेंट नहीं है बल्कि एक ऐसे लोकतंत्र का ठिया है जहां जनहित से जुड़े मुद्दों पर विमर्श और फैसले होते हैं ,होना चाहिए लेकिन अब नहीं हो पा रहे .
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह कहते हैं कि लगातार तीन सालों से बिना चर्चा के बजट पारित हो रहा है। यह अजीब बात है कि इस बार भी 2.79 लाख करोड़ का बजट बिना चर्चा के विधान सभा में पारित कर दिया गया। यह अजीब बात है कि जब विधायकों ने अपने विधानसभा क्षेत्र के ही नहीं, बल्कि प्रदेश के विकास से संबंधित सैंकड़ों प्रश्र लगा रखे थे, तब विधान सभा की कार्यवाही 21.52 मिनट में ही स्थगित कर दी गई।जसविंदर सिंह के अनुसार जब सरकार दावा कर रही है कि नेता प्रतिपक्ष की सहमति से विधान सभा सत्र समाप्त की गई है तो इस अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक अपराध की जिम्मेदारी से नेता प्रतिपक्ष भी बच नहीं सकते हैं।आपको बता दें कि वर्ष 2020 में कोरोना का बहाना बनाकर विधानसभा की कार्यवाही मात्र 113 मिनट हुई और वर्ष 21 में 62 घंटे में विधान सभा की औपचारिकता पूरी कर ली गई। और इस बार का बजट सत्र भी 21 घंटे 52 मिनट में खत्म कर दिया गया।

सदनों की दुर्दशा के खिलाफ विधायक ही कुछ कर सकते हैं,जनता का इसमें कुछ हस्तक्षेप नहीं है. जनता विधानसभा को पूरे समय चलवाने के लिए न आंदोलन कर सकती है और न धरना-प्रदर्शन .ये राजनितिक दलों का काम है ,लेकिन दुर्भाग्य ये है कि कोई भी सदन में बैठकर काम नहीं करना चाहता .सदन राजनीतिक दलों कि सुविधा,असुविधा को देखते हुए चलाया जाता है .कभी तीज-त्यौहार आड़े आते हैं तो कभी सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक कार्यक्रम .अब न तीज-त्यौहार स्थगित किये जा सकते हैं और न राजनीतिक कार्यक्रम .हाँ विधानसभा को जब चाहे तब और जितने समय के लिए चाहो उतने समय के लिए स्थगित किया जा सकता है .विधानसभा की दुर्दशा के खिलाफ जो चिल्ला रहे हैं उनकी कोई आवाज नहीं है और जिनके पास आवाज है वे चिल्ला नहीं रहे .य विसंगति है जो इंगित कर रही है कि आने वाले दिन और खराब आने वाले हैं .

राजवाड़ा टू रेसीडेंसी

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अरविंद तिवारी

बात यहां से शुरू करते हैं कोई माने या ना माने यह 💯 फीसद सही है की भाजपा के संगठन महामंत्री पद से सुहास भगत की रवानगी में इंदौर की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इंदौर के कुछ भाजपा नेताओं से भगत की निकटता जिस स्वरूप में संघ के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंची वह उनके लिए परेशानी का बड़ा कारण बनी। गौरतलब है की जो बातें नागपुर तक पहुंची थी उसकी तहकीकात भी इंदौर के ही संघ के कुछ दिग्गजजो से ही करवाई गई और इसके जो निष्कर्ष निकले वही उनकी रवानगी का कारण बने। बात कितनी बिगड़ी हुई थी इसका अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है की संघ में वापसी के बाद भगत को मध्य क्षेत्र का बौद्धिक प्रमुख तो बनाया गया लेकिन मुख्य धारा से अलग करते हुए मुख्यालय जबलपुर कर दिया गया।मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस बार भगोरिया में जिस तरह रंगे दिखे उससे यह स्पष्ट है की भाजपा ने मालवा निमाड़ की आदिवासी सीटों पर 2013 के नतीजों को दोहराने की तैयारी शुरू कर दी है। दरअसल 2018 के चुनाव में मालवा निमाड़ की आदिवासी सीटों पर बुरी तरह शिकस्त खाने के कारण ही भाजपा को सत्ता से बाहर ना पड़ा था। इन सीटों पर भाजपा की वापसी के लिए संघ को अभी से मैदान संभल चुका है लेकिन मुख्यमंत्री भी कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। यही कारण है की थांदला के भगोरिया में अपने उपस्तिथि दर्ज करवाने के बाद मुख्यमंत्री बड़वानी के पाटी भी पहुंचे और परंपरागत आदिवासी परिधान में मामाओ के मामा बनते नजर आए।

मध्य प्रदेश में ही पुरी तरह रम गए कमलनाथ के दिल्ली जाने की चर्चा फिर चल पड़ी है। यह तय है की यदि वे दिल्ली गए तो फिर मध्य प्रदेश के 20 से ज्यादा कांग्रेस विधायक भी पाला बदलने में देर नहीं करेंगे इनमें से ज्यादातर वे विधायक हैं जो पहली बार चुने गए हैं यह विधायक जब भी भोपाल में होते हैं एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं और दावत करने में भी पीछे नहीं रहते हैं। यह विधायक मानते हैं की यदि कमलनाथ दिल्ली चले गए तो फिर मध्य प्रदेश में इनका कोई धनी धोरी नहीं बचेगा। अपनी भावना को यह पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व तक भी पहुंचा चुके हैं।

आने वाले समय में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा बदले अंदाज़ में नजर आए तो चौकने की जरूरत नहीं। इसका मुख्य कारण होंगे पार्टी के नवनियुक्त संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा। पुराने संगठन महामंत्री सुहास भगत के साथ शर्मा की ट्यूनिंग एक घोषित मजबूरी थी और इसका फायदा दोनों को ही मिला। नए संगठन महामंत्री के साथ शर्मा का तालमेल बहुत अच्छा है दोनों एक दूसरे के हितों को बहुत अच्छे से समझते हैं। मैदानी स्तर पर अपने नेटवर्क को बहुत मजबूत कर चुके प्रदेश अध्यक्ष अब शर्मा का सधा हुआ साथ मिलने के कारण संगठन में भी बहुत मजबूत हो जाएंगे। कुल मिलाकर भगत के जाने के बाद संगठन में 50-50 का दौर अब समाप्त हो जाएगा और प्रदेश अध्यक्ष की पसंद को ज्यादा तवज्जो मिलने लगेगी। बावजूद इसके भगत समर्थको को निराश होने की जरूरत नही।

कांग्रेस मंडल और सेक्टर के साथ ही बूथ स्तर पर मजबूत करने में लगे कमलनाथ के लिए झाबुआ अलीराजपुर जिले की कांग्रेस राजनीति में इन दिनों जो चल रहा है वह बड़ी चिंता का विषय है। यहां जोबट में भगोरिया वाले दिन जो कुछ हुआ उससे यह साफ हो गया है की अब कांतिलाल भूरिया और महेश पटेल के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है। अब तो कांग्रेस से बाहर किए जाने के बाद महेश और खुले हो गए हैं। भूरिया विरोधी धडे को उनका बाहर से समर्थन मिलना तय है। भाजपा के लिए भी महेश को साधना ज्यादा मुश्किल कम नहीं है। ऐसे में सबसे ज्यादा नुकसान डॉक्टर विक्रांत भूरिया को होना है जो आने वाले समय में झाबुआ रतलाम क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। देखते रहिए आगे क्या होता है।

साल भर पहले जब आईएएस अफसर एमबी ओझा ग्वालियर के संभाग आयुक्त पद से सेवानिवृत्त हुए थे तब से उनके पुनर्वास की चर्चा चल रही थी। अलग-अलग पदों के लिए उनका नाम चर्चा में था लेकिन बात बन नहीं रही थी। ओझा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बहुत पसंदीदा अफसरों में से एक हैं और मुख्यमंत्री की पसंद के चलते ही उन्हे राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण जैसी महत्वपूर्ण संस्था को लीड करने का मौका दिया गया है। वैसे सहकारिता मंत्री अरविंद सिंह भदोरिया यहां अपने पसंदीदा अफसर नरेश पाल को काबिज करवाना चाहते थे, लेकिन जो स्थिति इन दिनों मुख्यमंत्री और भदोरिया के बीच है, उसके चलते उन्हें सफलता नहीं मिली।

ना काहु से दोस्ती ना काहु से बैर के कहावत का अनुसरण करने के कारण ही आईपीएस अफसर आदर्श कटियार सत्ता के हर दौर में महत्वपूर्ण भूमिका में रहे हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति उनके साथ पुलिस मुख्यालय में है। चाहे विवेक जोहरी डीजीपी रहे हो या फिर नए डीजीपी सुधीर सक्सेना पुलिस मुख्यालय में कटियार का दबदबा बना रहा। कहां यह जा रहा है की केंद्र से प्रति नियुक्ति पर लौटने के बाद मध्य प्रदेश के डीजीपी की कमान संभालने वाले सक्सेना एडीजी INT की भूमिका निभा रहे कटियार पर बहुत-बहुत भरोसा कर रहे हैं और फील्ड के मामले में जो इनपुट उनसे मिल रहा है उसी से मैदानी पदस्थापना वाले कई अफसरों का भविष्य तय होता नजर आ रहा है।

चलते चलते

तत्कालीन डीजीपी विवेक जोहरी की इच्छा के विरुद्ध मुरैना के एसपी बने और डीआईजी पद पर पदोन्नति के बाद भी कुछ महीने वहीं बरकरार रहे आईपीएस अफसर ललित शाक्यवार भले ही अब पुलिस मुख्यालय में आ गए हो लेकिन जो कागज डीजीपी रहते जोहरी आगे बढ़ा गए थे वह उनके लिए परेशानी का कारण बने हुए हैं।

पुछल्ला
या तो गांधी भवन के वास्तु में दोष है या फिर पद के साथ कोई दुर्योग जुड़ा है की उजगारसिंह और प्रमोद टंडन के बाद शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बैठने वाले विनय बाकलीवाल भी परेशानी में आ गए हैं। मुंबई में हुई एक बड़ी सर्जरी के बाद बाकलीवाल इन दिनों इंदौर में घर पर ही आराम कर रहे हैं।

पंजाब से राज्यसभा के लिए आम आदमी पार्टी ने पांचों नामों का एलान कर दिया

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TIO NEW DELHI

पंजाब से राज्यसभा के लिए आम आदमी पार्टी ने पांचों नामों का एलान कर दिया है। इन सीटों के लिए क्रिकेटर हरभजन सिंह, पंजाब के आप सह प्रभारी राघव चड्ढा, आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर संदीप पाठक के नाम घोषित किए गए हैं। वहीं लिस्ट में शामिल दो नामों ने सभी को चौंका दिया है। आप ने लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के चांसलर अशोक मित्तल और कृष्णा प्राण ब्रेस्ट कैंसर केयर चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक संजीव अरोड़ा के नाम का भी एलान किया है। मित्तल और अरोड़ा का नाम अभी तक कहीं चर्चा में नहीं था।
खेल विश्वविद्यालय के प्रमुख बनाए जा सकते हैं हरभजन
हरभजन सिंह के क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद से उनके राजनीति में आने की चर्चाएं तेज थीं। आप सूत्रों के अनुसार, हरभजन सिंह को पंजाब में एक खेल विश्वविद्यालय का प्रमुख बनाया जा सकता है। वहीं संदीप पाठक लंदन से स्नातक हैं और पंजाब जीत में उनकी बड़ी भूमिका थी। रविवार को नवनिर्वाचित विधायकों से बातचीत के दौरान भी अरविंद केजरीवाल ने पाठक की तारीफ की थी।
सबसे युवा राज्यसभा सदस्य बनेंगे राघव चड्ढा
वहीं 33 साल के राघव चड्ढा सबसे युवा राज्यसभा सदस्य बनेंगे। पंजाब में मिली ऐतिहासिक जीत में उनका बड़ा योगदान था। अशोक मित्तल लवली लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के संस्थापक हैं। लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी दुनिया के सबसे बड़े निजी विश्वविद्यालयों में से एक है। वे पंजाब में शिक्षा क्षेत्र में काफी लंबे समय से काम कर रहे हें। वहीं संजीव अरोड़ा लुधियाना के बड़े व्यवसायियों में शामिल हैं। वे कृष्णा प्राण ब्रेस्ट कैंसर केयर चैरिटेबल ट्रस्ट चलाते हैं।

पंजाब में राज्यसभा सांसद कांग्रेस के प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दूलो, अकाली दल के सुखदेव सिंह ढींडसा और नरेश गुजराल के अलावा भाजपा के श्वेत मलिक का कार्यकाल खत्म हो रहा है।पंजाब के विधानसभा चुनाव में आप ने 117 में से 92 सीटों पर विजय हासिल की है। इस कारण से राज्यसभा की खाली हो रहीं पांच सीटों पर आप के प्रत्याशियों की जीत होनी तय है।

न पुलिस बदली और न जनता

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राकेश अचल

कहते हैं कि देश बदल रहा है,लेकिन मुझे लगता है कि कुछ भी नहीं बदल रहा.न जनता,न नेता,न पुलिस .जिस बिहार में आज से सौ साल पहले चौरा-चौरी काण्ड हुआ था उसी बिहार में जनता ने पुलिस ज्यादती के खिलाफ बेतिया का थाना फूंक दिया .सौ साल पहले जनता के प्रतिकार में 22 लोग मारे गए थे सौ साल बाद बेतिया में एक जवान मारा गया और 10 घायल हो गए ,लेकिन ये खबर इसलिए खबर नहीं बनी क्योंकि देश एक फिल्म में उलझा हुआ है.
पुलिस और जनता के बीच टकराव की खबरें नई नहीं हैं. बेतिया में पुलिस हिरासत में एक व्यक्ति की मौत के बाद जमकर उपद्रव हुआ। गुस्साई भीड़ ने थाना और पुलिस गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया। पुलिस कर्मियों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। पुलिस कर्मियों ने जान बचाने के लिए थाना छोड़कर खेतों में दौड़ लगा दी थी। उपद्रव में एक पुलिसकर्मी राम जतन सिंह की भी मौत हुई है। सिर को कुचल दिया गया है। हमले में 10 से अधिक जवान घायल हैं। चार घंटे बाद पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे पुलिस अफसरों ने भीड़ को हटाने की कोशिश की। भीड़ ने दोबारा पथराव कर दिया। पुलिस ने भीड़ को हटाने के लिए लाठीचार्ज और हवाई फायरिंग की। छह घंटे बाद भीड़ काबू हो सकी।

आपको याद होगा कि बिहार के चौरी चौरा कांड में 4 फरवरी 1922 असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस के साथ भिड़ गया था। जवाबी कार्रवाई में प्रदर्शनकारियों ने हमला किया और एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी थी, जिससे थाने में मौजूद सभी पुलिस वाले मारे गए। इस घटना के कारण तीन नागरिकों और 22 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हुई थी। महात्मा गांधी ने इस हिंसा के बाद 12 फरवरी 1922 को राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आंदोलन को रोक दिया था.
सौ साल हो गए लेकिन न जनता का चरित्र बदला और न पुलिस का ,और अब तो देश में कोई महात्मा गांधी भी नहीं है.अब गांधी के विरोधियों की बहुतायत है .अब पुलिस गरीब को सताती है और दबंग के आगे भीगी बिल्ली बन जाती है ,बेतिया में पुलिस डीजे बजाने पर एक युवक को पकड़कर थाने लायी थी और वहीं उसे पीट-पीटकर मार दिया गया,जबकि मध्यप्रदेश में सरेआम शराब की एक दूकान पर पत्थर से हमलाकर शराब की बोतलें तोड़ने वाली एक पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की .पुलिस का यही दोहरा चरित्र साल दर साल खतरनाक होता जा रहा है .


बेतिया और चौराचौरी से बेतिया की दूरी मात्र 82 किलोमीटर है लेकिन गांधी का सन्देश अब न चौराचौरी में हैं और न बेतिया में .गांधी लगता है अब वहां अप्रासंगिक हो गए हैं .चूंकि पुलिस निष्पक्षता और मानवीयता को तिलांजलि दे चुकी है इसलिए भीड़ भी अब जैसे को तैसा करने पर आमादा है .भीड़ को हिंसा के लिए पुलिस का चरित्र ही नहीं , सिस्टम का चरित्र भी आक्रामक बना रहा है .सिस्टम भीड़ को मुफ्त में सिनेमा दिखाकर ,मुफ्त में राशन देकर अपना उल्लू सीधा कर रहा है ,लेकिन कोई इसके खिलाफ न बोलने को तैयार है और न खड़े होने के लिए .
देश में पुलिस हिरासत में कितनी मौतें होती हैं इसका की आधिकारिक आंकड़ा विश्वसनीय नहीं है ,फिर भी आंकड़े जुटाने वाली सरकारी संस्था के मुताबिक पिछले दो दशकों में, पूरे भारत में 1,888 लोगों की मौतें पुलिस हिरासत में हुई है जिनमें पुलिसकर्मियों के खिलाफ 893 मामले दर्ज किए गए हैं जबकि केवल 358 पुलिस अधिकारी और न्याय अधिकारी औपचारिक रूप से अभियुक्त थे. आधिकारिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि इस अवधि में सिर्फ 26 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया था. लोकसभा में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने राष्‍ट्रीय मानवाध‍िकार आयोग (एनएचआरसी) के आंकड़े पेश किए थे इन आंकड़ों के मुताबिक, हिरासत में मौत के मामलों में उत्‍तर प्रदेश पहले नंबर पर है। उत्‍तर प्रदेश में पिछले तीन साल में 1,318 लोगों की पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में मौत हुई है।
पुलिस के चरित्र का मुद्दा है इसलिए मै आंकड़ों के जाल में न उलझना चाहता हूँ और न उलझाना चाहता हूँ. बेतिया की ताजा घटना के प्रकाश में देश की पुलिस के चरित्र की बात करना आज जरूरी है. पुलिस की छवि ‘पब्लिक पुलिस’ की बने और वह राजनीतिक दबावों से मुक्त हो इसके लिए बड़े सुधारों की दरकार है। राजनीतिक दबाव का आलम यह है कि नेता बड़े पुलिस अधिकारियों तक को ‘औकात दिखाने’, ‘वर्दी उतारने’ जैसी धमकियां दे देते हैं। सांसद, विधायक तो दूर की बात, छुटभैये नेता तक एसएसओ को धमका देते हैं। नेता अगर सांसद या विधायक है तब तो उसे जैसे पुलिस अफसरों को बात-बात पर धमकाने का जैसे लाइसेंस मिल गया है।
मैंने अपने सूबे मध्यप्रदेश में दो दर्जन से ज्यादा पुलिस प्रमुखों को प्रदेश की पुलिस को बदलने का सपना देखते हुए देखा.कोई प्रदेश की पुलिस को इंग्लैंड की पुलिस की तरह बना देना चाहता था और कोई अमेरिका की पुलिस की तरह ,लेकिन दुर्भाग्य कि किसी का भी सपना पूरा नहीं हुआ .पुलिस को बदलना इतना आसान नहीं है .पुलिस को बदलने की कोशिश सरकार को करना होती है और सरकार नहीं चाहती की अंग्रेजों के जमाने के ढाँचे पर खड़ी पुलिस आज के भारत की जरूरतों के हिसाब से तैयार की जाये .क्योंकि सरकार भी तो खुद नहीं बदली ? फिर पुलिस कैसे बदल सकती है .
पुलिस को सुधरने के लिए 1977 में गठित राष्ट्रीय पुलिस आयोग आज किस दशा में है ,कोई नहीं जानता.इस आयोग ने जो रिपोर्टें सरकार को दी थीं वे कहाँ हैं ,किसी को नहीं पता .राश्टी=रिय पुलिस आयोग बनने के बाद से अब तक एक दर्जन प्रधानमंत्री बन और बिगड़ चुके हैं लेकिन किसी को पुलिस के सुधार की चिंता नहीं है. मुमकिन है कि कोई फिल्म निर्माता इस विषय पर फिल्म बनाकर सरकार को दिखाए तो सरकार को हकीकत का पता चल जाये, क्योंकि आजकल सरकारों को सच का पता फ़िल्में बनने के बाद चलता है,अन्यथा वे 32 साल तक नींद से जागती ही नहीं है .

बहरहाल मुद्दा पुलिस को बदलने का है. केवल सिस्टम का नाम बदलने से कुछ नहीं बदलता.जैसे मध्यप्रदेश में दो शहरों को पुलिस कमिशनर प्रणाली दे दी गयी लेकिन कुछ नहीं बदला.पुलिस राजनीतिक दबाबों के सामने आज भी तनकर खड़ी नहीं हो पा रही है .यहां नेता आज भी पुलिस संरक्षण में पथराव कर सकते हैं. बिहार में पुलिस हिरासत में निर्दोष युवक को मारा जा सकता है. उत्तर प्रदेश पुलिस तो फर्जी मुठभेड़ों से देश को निरुत्तर कर ही चुकी है. दक्षिण में पुलिस बलात्कार के चार आरोपियों को सीधे यमलोक पहुंचा सकती है ,और दुर्भाग्य ये कि इस सबको जनता का समर्थन मिलता है. पुलिस हिरासत में मौतों में नंबर एक पर रहने वाले उत्तर प्रदेश में जनता आदरणीय योगी आदित्यनाथ को दोबारा चुनती है .नीतीश कुमार बार-बार मुख्यमंत्री बन जाते हैं .यानि गड़बड़ बहुत गहरी है .

यूक्रेन पर हो सकता है परमाणु हमला

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TIO NEW DELHI

ब्रिटेन की कई मीडिया रिपोर्टों में टेलीग्राम चैनलों के हवाले से दावा किया गया है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन परमाणु युद्ध की ओर बढ़ने के संकेत दे रहे हैं। यह दावा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि पुतिन ने अपनी सेना को न्यूक्लियर वॉर ड्रिल के लिए अभ्यास करने का आदेश दे दिया है। इतना ही नहीं सुरक्षा के लिए अपने परिवार को साइबेरिया भेज दिया है। वहीं परमाणु निकासी ड्रिल की रिपोर्ट ने क्रेमलिन(रूसी राष्ट्रपति कार्यालय) के अधिकारियों को झकझोर कर रख दिया है। अधिकारी सकते में हैं कि पुतिन के इस निर्णय का अंजाम कितना भयानक हो सकता है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि 25 दिन युद्ध के बीत जाने पर भी यूक्रेन ने अब तक हथियार नहीं डाला है जिस वजह से पुतिन काफी नाराज हो गए हैं और उन्होंने इसे चुनौती मान लिया है। पुतिन यह सोच रहे हैं कि एक छोटा सा देश उन्हें चुनौती दे रहा है। दावों के अनुसार, क्रेमलिन के वरिष्ठ राजनीतिक हस्तियों को खुद पुतिन ने सूचना दी है कि वे परमाणु युद्ध की तैयारी में निकासी अभ्यास में भाग लेंगे।

सुरक्षा के लिए पुतिन के परिवार को भेजा साइबेरिया
पुतिन के परिवार के सदस्यों के बारे में बहुत कुछ नहीं पता है, लेकिन जब से रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ, रिपोर्टों में दावा किया गया कि पुतिन ने अपने तत्काल परिवार के अज्ञात सदस्यों को साइबेरिया के तेह अल्ताई पर्वत में एक हाई-टेक भूमिगत बंकर में स्थानांतरित कर दिया, जो एक संपूर्ण भूमिगत शहर है।

पुतिन की खतरनाक योजना
पुतिन के पास एक खतरनाक योजना तैयार है और यह कोई रहस्य नहीं है। परमाणु संघर्ष के लिए रूस के पास डूम्सडे विमान हैं जिनका उपयोग पुतिन और उनके करीबी सहयोगियों द्वारा परमाणु युद्ध में किया जाएगा। एक स्काई बंकर भी डूम्सडे प्लान के तहत था, लेकिन माना जाता है कि यह अभी तैयार नहीं हुआ है।

पुतिन अपनी खुद की एक बंद दुनिया में फंस गए हैं: खुफिया एजेंसियां
पश्चिमी देशों की कुछ खुफिया एजेंसियां हालिया उपस्थितियों के माध्यम से पुतिन के दिमाग का विश्लेषण करने की कोशिश कर रहे हैं, वे पाते हैं कि पुतिन ‘अपनी खुद की एक बंद दुनिया में फंस गए हैं’, जहां वह अकेला निर्णय निर्माता है और वह अन्य दृष्टिकोणों से बिल्कुल अलग है।

कमाई के लिए रुलाना जरूरी नहीं

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राकेश अचल

हमारे एक हमनाम हैं ,जो अकेले ऐसे आदमी हैं जो आपको बिना रुलाये बिना भी विवेक अग्निहोत्री के मुकाबले बीसियों गुना ज्यादा कमा लेते हैं ,लेकिन लोग न उन्हें राष्ट्रभक्त मानते हैं और न उन्हें पहचानते हैं. अलबत्ता उनकी अपनी हैसियत इतनी है कि पंत प्रधान तक उनसे मिलकर अपने आपको खुशनसीब समझते हैं .
बीते एक सप्ताह से देश भर में पैसे लेकर भक्तमंडल को रुला रही ‘ द कश्मीर फ़ाइल ‘ सौ करोड़ के क्लब में शामिल हो गयी है.ये खबर सुनकर हमारे ख़ुशी के आंसू निकल पड़े.कम से इस देश में पोंगा पंडित कहलाने वाले विवेक अग्नहोत्री ने पंडित बिरादरी के जख्मों को कुरेदने और उसे रुलाने पर जो 12 करोड़ रूपये खर्च किये थे उनसे सौ करोड़ तो कमा लिए ! वरना पंडितों को कोई कुछ समझता ही कहाँ है ? परम विदुषी कंगना रनौत कहती हैं की देश ने पश्चाताप के आंसू बहकर विवेक को रातों-रात सौ करोड़ का मालिक बना दिया और अभी तो पिक्चर बाक़ी है .


दूसरी तरफ हमारे हमनाम हैं राकेश झुनझुनवाला.वे भी मुंबई में रहते हैं ,लेकिन वे किसी के झकम कुरेदे बिना,किसी को रुलाये बिना भी केवल हाथ हिलाकर एक दिन में विवेक से ज्यादा कमा लेते हैं. किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई और गुरुवार के कारोबारी सत्र में जोरदार तेजी के बीच दिग्गज भारतीय निवेशक राकेश झुनझुनवाला के नेटवर्थ में 861 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है। राकेश टाइटन कम्पनी के बड़े हिस्सेदार है .टाइटन देश का सबसे बड़ा ज्वेलरी ब्रांड है। कंपनी द्वारा स्टॉक एक्सचेंज को दी गई सूचना के मुताबिक दिसंबर तिमाही के आखिर तक राकेश झुनझुनवाला और उनकी पत्नी रेखा झुनझुनवाला के पास टाइटन के 4,52,50,970 शेयर या कंपनी में 5.09 फीसदी हिस्सेदारी है। 17 मार्च को हुई टाइटन में 118 रुपए प्रति शेयर की तेजी के हिसाब से राकेश झुनझुनवाला को 534 करोड़ रुपए का फायदा हुआ है।


कहने का आशय ये है कि आप चाहे किसी भी तरह की दलाली करें मुनाफ़ा होगा ही .झुनझुनवाला की तरह झुनझुना बजाकर भी कमाया जा सकता है और कश्मीरी पंडितों के जख्म कुरेदकर ,उन्हें दोबारा रुलाकर भी कमाया जा सकता है .कमाने के लिए आप कोई भी रास्ता अख्तियार कर सकते हैं .पसंद अपनी-अपनी ,ख्याल अपना,अपना .
मामला चूंकि कश्मीर का है इसलिए हमारा कुछ भी कहना उतना प्रामाणिक नहीं हो सकता जितना कि वहां के रहने वाले लोगों का हो सकता है .हमें तो कश्मीर गए हुए भी कई साल हो चुके हैं लेकिन कश्मीर में रह रहे पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने द कश्मीर फाइल्स को कई मामलों में सच्चाई से काफी दूर बता दिया है. उनका कहना है कि अगर यह फिल्म एक डॉक्यूमेंट्री भी होती, हम समझ सकते थे. लेकिन मेकर्स ने खुद कहा है कि ये फिल्म सत्य घटनाओं पर आधारित है. लेकिन सच्चाई तो ये है कि इस फिल्म में कई गलत तथ्य दिखाए गए हैं. सबसे बड़ा झूठ तो ये है कि फिल्म में दिखाया गया है कि उस सयम नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार थी. लेकिन सच तो ये है कि तब घाटी में राज्यपाल का शासन था. वहीं, केंद्र में भी तब वीपी सिंह की सरकार थी और उसको बीजेपी का समर्थन हासिल था.


उमर अब्दुल्ला को क्या मालूम कि फिल्म क्या चीज है और कैसे बनाई जाती है ? सरकार बनाने और फिल्म बनाने में जमीन,आसमान का फर्क है .सरकार बनाने के लिए संख्या बल चाहिए होता है जबकि फिल्म के लिए चुटकी भर तथ्यों के साथ मुठ्ठी भर कल्पना .उमर कहते हैं कि उस समय कश्मीरी पंडितों के अलावा मुस्लिमों, सिखों ने भी पलायन किया था. उनकी भी जान गई थी. वह मानते हैं कि कश्मीरी पंडितों का घाटी से जाना दुखद था. उमर की माने तो नेशनल कांफ्रेंस अपनी तरफ से कश्मीरी पंडितों को वापस लाने की तैयारी कर रही थी. लेकिन द कश्मीर फाइल्स फिल्म ने उस प्लान को बर्बाद कर दिया है. उमर ने दो टूक कह कह दिया है कि फिल्म के मेकर्स ही असल में कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी नहीं चाहते हैं.


अब कश्मीर की फ़ाइल में झूठ कितना है और सच कितना है ये जानने के लिए कोई आयोग तो बैठाया नहीं जाएगा ,क्योंकि जो काम एक आयोग जिंदगी भर न कर पाता वो विवेक ने एक फिल्म बनाकर कर दिया है विवेक का दिखाया सच है या झूठ ,आप तलाशते रहिये ,फिलहाल विवेक लुटे-पिटे कश्मीरी पंडितों के साथ ही पूरी हिंदी पट्टी में भक्तमंडल के खलीते खाली करने में लगे हैं .भाजपा के छोटे से लेकर बड़े नेता विवेक की फिल्म मुफ्त में दिखाकर पुण्य अर्जित करने में लगे हुए हैं ,क्योंकि ऐसा करने का फतवा पार्टी ने जारी किया हुआ है .
पूरे देश को रुलाकर हर दिन 14 ,15 करोड़ रूपये छाप रहे विवेक को वाय श्रेणी की सुरक्षा मुफ्त में मिली सो अलग .जो सरकार बीते सात साल में निर्वासित कश्मीरी पंडितों को सुरक्षित कश्मीर नहीं भेज पायी उसने विवेक अग्निहोत्री को एक पल में सुरक्षा दे दी .क्योंकि ऐसा करना आसान है,कश्मीरी पंडितों को वापस घाटी में भेजना कठिन,भले ही सूबे से धारा 370 हटा ली गयी हो .घाटी से एके 47 तो आज भी नहीं हटी .घाटी तीन साल से अपना टूटा दिल लिए दिल्ली की और ताक रही है .आखिर अब घाटी की मालिक दिल्ली ही तो है .


पता नहीं कैसे विवेक की नन्हीं सी जान को अचानक खतरा जो पैदा हो गया है .भगवान विवेक को लम्बी उमर और नया विवेक भी दे ताकि वे राकेश झुनझुनवाला की तरह रूपये कमाना सीख जाएँ और भविष्य में उन्हें किसी पीड़ित समाज के जख्म दोबारा सत्य के नाम पर न कुरेदने पड़ें ,क्योंकि विवेक शायद नहीं जानते कि जख्म कुरेदने में उतनी ही पीड़ा होती है जितनी की जख्म देने में .जख्मों को मरहम की जरूरत होती है ,उन्हें कुरेदना अमानवीय अनैतिक कृत्य है ,लेकिन यदि उसे सत्ता प्रतिष्ठान की भलाई के लिए किया जाये तो सब माफ़ किया जा सकता है .

आदिवासियों के समर्थन में आगे आये:अजयसिंह

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TIO भोपाल

पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजयसिंह आज सीधी जिले के सोनगढ़ में प्रस्तावित नये बाँध स्थल के विरोध में वहां धरने पर बैठे आदिवासियों के समर्थन में शामिल हुए| उन्होंने आन्दोलन कर रहे आदिवासियों से कहा कि मैं वायदा कर के जा रहा हूँ कि कुछ भी हो जाए, सोनगढ़ में बाँध नहीं बनेगा| गोंड वृहद् सिंचाई परियोजना के लिए बाँध बनेगा तो पूर्व स्थल जालपानी में ही बनेगा जहां दो सौ करोड़ रुपया पहले ही खर्च हो चुका है| भले इसके लिए हमारी कुर्बानी  हो जाए, मैं पूरे जूनून से इस काम को करूँगा|
अजयसिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह की मंशा सही नहीं है| केवल एक व्यक्ति को फायदा पहुँचाने के लिए बाँध स्थल जालपानी से सोनगढ़ ले जा रहे हैं| उनके ख़ास आदमी को कोयले की खदान आवंटित हुई है और जालपानी में बाँध बनने से खदान का काम नहीं हो पायेगा| इसलिए काम शुरू होने के बाद बाँध को अचानक सोनगढ़ ले जा रहे हैं| वैसे तो बाँध की जरुरत ही नहीं है| यदि जरुरत भी है तो वह जालपानी में ही बने| 

सिंह ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुनसिंह कोई भी योजना बनाते थे तो अंतिम छोर के अंतिम व्यक्ति की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाते थे| गरीबों और आदिवासियों का हित उनके प्राथमिकता क्रम में रहता था| उनसे तो किसी ने नहीं कहा था कि एक बत्ती कनेक्शन दो, झुग्गी झोपड़ी के पट्टे दो या आदिवासियों को तेंदूपत्ता बोनस दो| लेकिन उन्होंने अपने विवेक से ऐसी योजनायें बनाई जिनमें सिर्फ और सिर्फ गरीबों का भला हुआ है|
अजयसिंह ने कहा कि चुनाव में शिवराजसिंह के व्यक्ति की हार के बाद वे इतने बौखला गए कि उन्होंने 2008 में सीधी के दो टुकड़े कर दिए| सिंगरौली जिला बना दिया| बड़ी बड़ी बातें कही कि सिंगरौली को सिंगापुर बना दूंगा|  सिंगरौली सिंगापुर बना क्या? अलबत्ता उनका घर जरुर सिंगापुर बन गया| भाजपा सरकार बातें बड़ी बड़ी करती है| कभी अनाज दे दिया तो कभी लोगों को आवास का लालच दे दिया| लेकिन गरीबों का काम धेले का नहीं करते| चुनाव में मशीन का खेल होता हो या कुछ और आखिर में वोट भाजपा को चले जाते हैं| उत्तरप्रदेश इसका उदाहरण है| इसलिए आप सब से मेरा आग्रह है कि चुनाव के समय आपको बहुत सावधानी के साथ अच्छी पार्टी के अच्छे व्यक्ति का चुनाव करना है| 

सिंह ने कहा कि सर्वे में बाँध स्थल सिंगरौली के जालपानी में तय किया गया| सैंकड़ों पेड़ काट दिए गए| ठेकेदार को प्रशासकीय स्वीकृति के बाद दो सौ करोड़ का भुगतान भी कर दिया गया| इसलिए कुछ भी हो जाए , बाँध तो जालपानी में ही बनेगा| मैं भोपाल और दिल्ली तक शांतिपूर्ण तरीके आदिवासियों की मांग औचित्य के साथ रखूँगा| 

होली स्नेह मिलन समारोह बसंतोत्सव मनाया

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इंटरनेशनल वैश्य महा सम्मेलन जयपुर सेंट्रल द्वारा टोंक रोड स्थित फार्म हाउस पर 2 वर्ष का कार्यकाल पूर्ण होने के अवसर पर सभी कार्यकरिणी सदस्यों,सलाहकारो व वैश्य समुदाय के गण मान्य लोगो की उपस्तिथि में होली स्नेह मिलन समारोह मनाया गया।

अध्यक्ष सुधीर जैन गोधा ने सभी अतिथियो का स्वागत किया व संस्था की भावी योजनाओं के बारे में विस्तार पूर्वक बताया व अप्रैल माह मे नई कार्यकारिणी गठन के बारे में जानकारी दी।

महा सचिव संजय पाबूवाल ने संस्था द्वारा विगत दो वर्षो के करोना काल में किए गए कार्यों के बारे में जानकारी दी।

समारोह को अंतरराष्ट्रीय वैश्य महा सम्मेलन,राजस्थान के महा सचिव गोपाल गुप्ता,पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल, जस्टिस दीपक महेश्वरी,पूर्व मुख्य सचिव अशोक जैन,पूर्व डीजीपी राजस्थान पुलिस कपिल गर्ग, आईआईएस यूनिवर्सिटी के चांसलर रोटेरियन अशोक गुप्ता,प्रेस ब्यूरो दिल्ली के चेयरमैन निर्मल जैन,राजस्थान एंप्लॉयर एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार जैन ने संबोधित किया व वैश्य समाज को एकजुट होने का आव्हान किया।

समारोह में एनएस पब्लिसिटी के निदेशक व राजस्थान वैश्य महासम्मेलन के युवा अध्यक्ष जेडी महेश्वरी, डाटा इन्फोसिस के अजय डाटा,प्रसिद्ध समाजसेवी जय सिंह सेठिया, कृष्णा सरिया के विष्णु गुप्ता,ओसियन कलेक्शन के रविंद्र गुप्ता,माथुर वैश्य समाज के अध्यक्ष मनीष गुप्ता,महावार वैश्य समाज के अध्यक्ष सुरेंद्र गुप्ता,राजस्थान जैन सभा से सुभाष जैन,खंडेलवाल समाज के अध्यक्ष दिनेश सेठी विशेष रूप से उपस्थित थे।

इसके पश्चात सभी उपस्थित लोगो ने फूलो की होली खेली।

समारोह के चीफ कोऑर्डिनेटर जेके जैन ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित किया।

समारोह के समन्वयक शैलेंद्र शाह,शंभू दयाल अग्रवाल,संजीव घीया व राजीव जैन थे।