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मुंहिंजो मुल्‍कु मुंहिंजी ज़िंदगी- श्री लालकृष्ण आडवाणी ने सिंधी भाषा में अपनी जीवनी पर लिखी किताब का किया विमोचन

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TIO NEW DELHI

लालकृष्ण आडवाणी के किताब माय कंट्री माय लाइफ का सिंधी भाषा में अनुवाद, सिंधी में पढ़ सकते हैं विभाजन से लेकर रथ यात्रा तक के किस्से, दिल्ली में हुआ विमोचन श्री लालकृष्‍ण आडवाणी द्वारा लिखित उनकी जीवनी का सिंधी भाषा में ‘’मुंहिंजो मुल्‍कु मुंहिंजी ज़िंदगी’’ नाम से अनुवाद का विमोचन उनके निवास-स्‍थान पर हुआ
भारत के पूर्व उप-प्रधानमंत्री एवं भाजपा के वरिष्‍ठतम नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा अंग्रेज़ी भाषा में लिखित उनकी जीवनी ‘’माई कंट्री माई लाईफ़’’ का सिंधी अनुवाद सर्वश्री डॉ. राम जवहराणी और भगवान बाबाणी द्वारा संयुक्‍त रूप से किया गया है। इस पुस्‍तक के विमोचन के लिए एक लघु कार्यक्रम का आयोजन दिनांक 13 मार्च को श्री आडवाणीजी के दिल्‍ली स्थित निवास स्‍थान पर किया गया जिसमें भारत के विभिन्‍न शहरों से क़रीब 25-30 लोग एवं स्‍पेन से श्री सुरेश रायसिंघाणी एवें श्रीमती निशा रायसिंघाणी मुख्‍य रूप से उपस्थिति हुए।

कार्यक्रम के मुख्‍य अतिथि राज्यसभा सदस्‍य एवं सुप्रसिद्ध अधिवक्‍ता एवं ‘ग्‍लोबल सिंधी काउंसिल’ के अध्‍यक्ष श्री महेश जेठमलानी थे, उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि श्री आडवाणी भाजपा के भीष्‍म पितामह हैं, वे 14 वर्ष की आयु से राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ से जुड़े और भाजपा (पूर्व में जनसंघ ) से उसके गठन से लेकर अब तक जुड़े हुए हैं। इस प्रकार से वे पार्टी के इतिहास पुरुष हैं। इस प्रकार की पुस्‍तक, जिसमें उन्‍होंने अपने जीवन की कहानी वर्तमान भारत के इतिहास के संदर्भ में व्‍यक्‍त की है, बहुत ही अदभुत है। उनके संस्‍मरणों की इस पुस्‍तक का हिंदी के साथ कई अन्‍य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है और इसकी 10 लाख से अधिक प्रतियां अभी तक बिक चुकी हैं। 
इस कार्यक्रम में उपस्थित अंग्रेज़ी भाषा में प्रकाशित इस पुस्‍तक के प्रकाशक ने कहा कि इस सिंधी भाषा में अनुवाद के संस्‍करण की इस पुस्‍तक के विमोचन के बाद ही सच में श्री आडवाणी जी के संस्‍करणों की जीवनी का प्रकाशन आज ही वास्‍तविक रूप में हुआ है।

इस अवसर पर श्री आडवाणी की सुपुत्री सुश्री प्रतिभा आडवाणी ने इस पुस्‍तक के अनुवादक द्वय डॉ. राम जवहारानी और भगवान बाबाणी तथा प्रकाशन करने वाली वाली संस्‍था ‘ग्‍लोबल सिंधी काउंसिल’ का आभार व्‍यक्त करते हुए कहा कि चूंकि सिंधी हमारी मातृभाषा है इसलिए श्री आडवाणी के समक्ष जब इस पुस्‍तक के सिंधी अनुवाद का प्रस्‍ताव आया तो उन्‍होंने प्रसन्‍नता व्‍यक्‍त करते हुए इसे सिंधी लिपी में ही प्रकाशित करने हेतु अनुमति दी। उन्‍हें अपने सिंधी समाज तथा भाषा से बहुत प्‍यार है। 

‘ग्‍लोबल सिंधी काउंसिल’ के सचिव डॉ. राम जवहराणी ने कहा कि यह पुस्‍तक सिंधी भाषियों के लिये गीता तुल्‍य है और हर सिंधी परिवार के पास यह होनी चाहिये। इस पुस्‍तक में अभी आठ अघ्‍याय हैं। उन्‍होंने कहा कि उनकी इच्‍छा है कि इसके और दस अध्‍याय लिखे जाएं, इस हेतु श्री आडवाणी जी से अनुरोध है कि वे इस हेतु अपने संस्मरण भले ही आडियो रूप में रिकार्ड करवाकर उपलब्‍ध करवाएं, तो हम इस पुस्‍तक का दस अध्‍यायों वाला दूसरा अंक भी ‘ग्‍लोबल सिंधी काउंसिल’ की ओर से शीघ्र प्रकाशित करेंगे। 
इस कार्यक्रम में उपस्थित मुख्‍य व्‍यक्ति थे – पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के सलाहकार मंडल के सदस्य एवं श्री आडवाणी के बहुत ही नज़दीकी सहयोगी श्री सुधीन्‍द्र कुलकर्णी, जिनने मूल पुस्‍तक में संस्‍मरण लिखने में उन्‍हें बहुत ही सहायता की,  तीन दशक से अधिक समय से श्री आडवाणीजी के निजी सचिव रहे श्री दीपक चोपड़ा, जीव सेवा संस्‍थान, भोपाल के सचिव श्री महेश दयारामाणी, ‘ग्‍लोबल सिंधी काउंसिल’ के विभिन्‍न शहरों से पधारे पदाधिकारी- मुम्‍बई, लखनऊ, पूना श्री आडवाणी के कई पुराने साथी तथा स्‍टाफ सदस्‍य उपस्थित थे।
जीव सेवा संस्‍थान के सचिव श्री महेश दयारामानी ने परमहंस संत हिरदाराम साहिब जी के परम शिष्‍य एवं उत्‍तराधिकारी श्रद्धेय सिद्धभाऊजी द्वारा भेजी गई पखर (शाल) एवं मिश्री श्री आडवाणी जी को भेंट की तथा उन्‍हें भाऊ जी का संदेश सुनाने के साथ ही जीव सेवा संस्‍थान द्वारा मानव सेवा हेतु की जाने वाली विभिन्‍न सेवाओं के बारे में जानकारी देने वाला ब्राउशर भी भेंट किया।

उड़ता इंडिया, बनाम बड़ा पर्दा

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राकेश अचल

क्या सियासत के लिए हर कला औजार बनाई जाना चाहिए? इस सवाल का जबाब देना आपके लिए कठिन हो सकता है लेकिन देश के पंत प्रधान बहुत आसानी से इसका जबाब दे चुके हैं. उन्होंने अपनी पार्टी के संसदीय दल की बैठक में साफ़ -साफ़ कहा है कि भविष्य में ‘ द कश्मीर फ़ाइल ‘ जैसी फ़िल्में लगातार बनाई जाएँ ताकि छिपा हुआ सच उजागर होता रहे .जाहिर है कि सच को उजागर किये बिना अब देश की जनता का सामना नहीं किया जा सकता और इसके लिए सियासत को बड़े परदे की जरूरत है. विवेक अग्निहोत्री ने बड़े परदे को राजनीति के इस्तेमाल के लिए खोल दिया है .


अगर आप अपनी आँखों का जाला साफ़ कर देख सकें तो पाएंगे कि ये सब ‘ उड़ता पंजाब ‘ की तर्ज पर ‘ उड़ता भारत ‘ बनाने की एक कोशिश है .यानि देश को एक अलग किस्म के नशे में उलझकर रखिये ताकि देश असल मुद्दों तक कभी पहुँच ही न पाए. अब देश में ‘ सच ‘ के नाम पर अतिरंजित ‘ झूठ ‘ परोसने का अभियान चलाया जाना है .इसके संकेत आपको माननीय प्रधानमंत्री जी के संसदीय दल की बैठक में दिए गए भाषण में साफ़-साफ़ नजर आ जायेंगे .
प्रधानमंत्री जी ने संसदीय दल की बैठक में कहा है कि -‘ द कश्मीर फाइल्स ‘ जैसी फिल्में बनती रहनी चाहिए, क्योंकि ऐसी फिल्में सच को समाने लेकर आती है.प्रधानमंत्री ने कहा कि एक लंबे समय तक जिस सच को छुपाने की कोशिश की उसे सामने लाया जा रहा है, जो लोग सच छुपाने की कोशिश करते थे वो आज विरोध कर रहे हैं. कश्मीर फाइल्स को कई भाजपा शासित राज्यों ने टैक्स फ्री कर दिया है. यानि जाहिर है की भाजपा बड़े परदे के जरिये सच को उजागर करने के लिए बाकायदा अपने खजाने से भी समझौता कर रही है .अतीत में भी ‘ मदर इंडिया ‘ जैसी फ़िल्में सच का आइना बनकर आयीं थीं उन्हें भी टैक्स फ्री किया गया था ,लेकिन वे किसी राजनीतिक दल का एजेंडा पूरा नहीं करती थीं .
बहरहाल मैंने कहा कि अब देश को उड़ता इंडिया बनाया जा रहा है,यानि अगले कुछ वर्षों तक देश सच के नाम पर झूठ के ऐसे जाल में उलझाया जाने वाला है जिससे न युवा रोजगार मांगे और न किसान अपनी फसलों का न्यूनतम दाम .गृहिणी न मंहगी रसोई गैस की शिकायत करे और न महगें आटा-दाल को लेकर सड़कों पर आये .यानि देश एक छद्म राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मकड़जाल में उलझा रहे .प्रधानमंत्री जी यहीं नहीं रुकते .वे कहते हैं कि-‘ ‘उनको हैरानी हो रही है कि इस सत्य को इतने सालों तक दबा कर रखा गया जो अब तथ्यों के आधार पर बाहर लाया जा रहा है.’मोदी ने आरोप लगाया कि विभाजन और आपातकाल के दर्द को सामने लाते हुए अभी तक कोई फिल्म बनाने का प्रयास नहीं हुआ क्योंकि सच्चाई को दबाने का लगातार प्रयास किया गया.

माननीय प्रधानमंत्री की विद्व्ता को लेकर टिप्पणी करने की मेरी कोई हैसियत नहीं है लेकिन उनके ज्ञान पर हैरानी जरूर होती है. वे जब फ़िल्में देखते ही नहीं तो उन्हें कौन बताये कि देश में विभाजन और आपातकाल समेत ऐसा कोई विषय बचा ही नहीं है जिसके ऊपर हमारे देश के फिल्म निर्माताओं ने फिल्म न बनाई हो .माननीय ने न ‘ किस्सा कुर्सी का ‘ देखी और ‘तमस ‘ इसलिए वे ऐसे बयान न दें तो और क्या करें .संसदीय दल में ऐसा कोई महावीर है भी नहीं जो उन्हें टोके और ‘ सच ‘ से उनका सामना कराये .प्रधानमंत्री जी दिन रात के 24 घंटे में से 18 घंटे काम करते हैं ,उन्हें अतीत में सच को उजागर करने की फुरसत कहाँ ?


संसदीय दल की बैठक में हाल के विधानसभा के चुनाव परिणामों की कम फिल्म की चर्चा ज्यादा हुई .रूस- यूक्रेन युद्ध और भारतीय छात्रों की परेशानियों की कम पोलेंड से जामनगर के रिश्तों की चर्चा ज्यादा हुई .ये भाजपा का अंदरूनी मामला है.भाजपा जिस पर चाहे चर्चा करे,किसी को क्या ?लेकिन हैरानी इस बात की है कि भाजपा ने अब छोटे पर्दे के बाद देश के बड़े परदे को अपनी राजनीति के लिए हथियार बनाने की ठान ली है .देश का छोटा पर्दा गोदी मीडिया में तब्दील कर भाजपा को जो हासिल करना था सो हासिल कर लिया,अब छोटा पर्दा अविश्वसनीय होता जा रहा है इसलिए भाजपा की नजर अब बड़े परदे पर है ,और संयोग से भाजपा का प्रयोग बजरिये विवेक अग्नहोत्री जैसे फिल्म निर्माताओं के जरिये कामयाब होता दिखाई दे रहा है .

भाजपा संसदीय दल की बैठक में हम और आप तो जा नहीं सकते इसलिए भाजपा जारी माननीय प्रधानमंत्री जी के भाषण के वीडियो पर ही भरोसा करना पड़ता है. माननीय कहते हैं कि -‘ ‘इन दिनों ‘द कश्मीर फाइल्स ‘की खूब चर्चा हो रही है. जो लोग हमेशा अभिव्यक्ति की आजादी के झंडे लेकर घूमते हैं, वह पूरी जमात बौखला गई है.’ पीएम ने कहा, ‘तथ्यों के आधार पर इसकी विवेचना करने के बजाए, इसको बदनाम करने के लिए एक मुहिम चलाई जा रही है. यह पूरा इकोसिस्टम…अगर कोई सत्य उजागर करने का साहस करें…तो बौखला जाता है. वह वही प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं जिसे वह सत्य मानते हैं. पिछले चार-पांच दिनों से यही कोशिश हो रही है कि लोग सत्य को ना देख सकें.’

सत्ता प्रतिष्ठान का झूठ छिपाने के लिए सिनेमाई सच का सहारा लिया जा रहा है .भाजपा के इस दुस्साहस को मै प्रणाम करता हूँ ,आपको भी करना चाहिए .देश को सच के नाम पर एक अलग किस्म का नशा कराकर देश पर एक अलग किस्म का एजेंडा थोपने की इस मुहिम का सामना इस देश के विपक्षी दल तो आज की तारीख में करने की हैसियत में नहीं है. अब ये काम जनता ही कर सकती है. अब जनता को ही तय करना है कि उसे इस नशे में डूबे रहना है या सचमुच सच का सामना करते हुए इस नशे के खिलाफ खड़ा होना है.आने वाले दिन देश के लिए बहुत भारी होने वाले हैं .सच के नाम पर अब हर महीने कुछ न कुछ ऐसा परोसा जाएगा ताकि आप रोते -बिलखते रहें और अपने अतीत को गरियाते रहें मौजूदा सरकार से उसकी नाकामियों के लिए कभी भी,कोई भी सवाल न करें .

महाकाल की नगरी में पत्रकारों का जमावड़ा

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TIO UJJAIN

शनिवार का दिन महाकाल की नगरी उज्जैन में था । प्रेस क्लब ने मालवा पत्रकारिता महोत्सव का आयोजन किया था । इसमें प्रमुख वक्ता के तौर पर मेरा भी जाना हुआ । देश के सर्वाधिक यशस्वी संपादक राहुल बारपुते, राजेंद्र माथुर ,व्यंग्यकार शरद जोशी,प्रभाष जोशी,कवि प्रदीप, प्रख्यात शास्त्रीय गायक कुमार गंधर्व जैसी विभूतियां इसी इलाके की देन हैं ।
वैचारिक सत्र का विषय था , सीमा लांघती पत्रकारिता और लक्ष्मण रेखा । आयोजन में प्रखर पत्रकार और ओजस्वी वक्ता तथा मेरे छोटे भाई डॉक्टर राकेश पाठक, हरिभूमि के प्रधान संपादक और विचारक साथी हिमांशु द्विवेदी भी इसी विषय पर विचार प्रकट करने के लिए साथ थे । पत्रकारिता को कटघरे में खड़ा करने के लिए सियासी पक्ष से मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉक्टर मोहन यादव, सांसद अनिल फिरोजिया, पूर्व शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी, विधायक पारस जैन और महेश परमार भी मौजूद थे । प्रेस क्लब की ओर से विशाल हाड़ा और हर्ष जायसवाल इस आयोजन के सूत्रधार थे । बड़ी संख्या में आस पास के जिलों से आए पत्रकार भी इसमें शिरकत करने पहुंचे थे । संचालन कर रहे दिनेश जी ने तो अपने कौशल से लोगों को बांध कर रखा ।

गूंगी फिल्मों से ‘ द कश्मीर फाइल ‘ तक

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राकेश अचल

सालाना दो से तीन सौ करोड़ रूपये कमाने वाली भारतीय फिल्मों का काम ही जीवन के नौ रसों के जरिये मानवीय स्वभावों का दोहन कर अपनी जेबें भरना है. फ़िल्में जिस मकसद से बनाई जाती हैं उसमें सबके अलग-अलग लक्ष्य होते हुए भी एक समान लक्ष्य होता है धन कमाना ,इसलिए हर फिल्म निर्माता ये काम करता है .’ द कश्मीर फ़ाइल ‘ के निर्माता-निर्देशक ने भी यही काम किया है .वे अपने लक्ष्य में न सिर्फ कामयाब हुए हैं बल्कि खूब कामयाब हुए हैं .इसके लिए उन्हें बधाई दी जाना चाहिए .

‘ द कश्मीर फाइल ‘ फिल्म के निर्माता निर्देशक को इसलिए भी बधाई दी जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने एक तीर से दो शिकार भी कर लिए .माल भी पीटा और भारतीय जनता की आँखों में धूल भी झौंक दी ताकि वो कल के कश्मीर को देखे और आज के कश्मीर को भूल जाये .12 करोड़ की फिल्म यदि दो सौ करोड़ से कम न कमाए तो आप मेरा नाम बदल दीजिये,ऐसा इसलिए होगा क्योंकि फिल्म निर्माता को परोक्ष रूप से एक राजनीतिक दल और उसकी सरकारों का खुला समर्थन मिल रहा है .ये फिल्म आम आदमी कम भक्त मंडल ज्यादा देख रहा और और थियेटर से आंसू बहाते हुए निकल रहा है,ताकि उसे देखकर दूसरे भी फफक कर रो उठें .ये फिल्म बनी ही देश को रुलाने कि लिए है.
देश में फ़िल्में बनते हुए एक सदी से ज्यादा का समय बीत चुका है ,और हर दशक में एक से बढ़कर एक फ़िल्में बनीं हैं. जिस मकसद से ‘ द कश्मीर फ़ाइल’ बनी है उस मकसद से दूसरी फ़िल्में भी बनीं ,लेकिन फिल्म के जरिये देश में हकीकत के नाम पर नफरत फ़ैलाने का आरोप पहली बार किसी फिल्म पर लगाया गया है .मैंने फिल्म देख ली है और मै फिल्म के सभी पक्षों में निर्माता -निर्देशक और कलाकारों की दक्षता का कायल हूँ ,क्योंकि इस फिल्म के जरिये वे जो मकसद हासिल करना चाहते थे उसमें काफी हद तक सफल हुए हैं,लेकिन वे भूल गए हैं कि यदि खेत में नफरत बोई जाती है तो फसल भी नफरत की ही पैदा होती है .

कश्मीर का अतीत ही नहीं वर्तमान भी रक्तरंजित ही है .कश्मीर का विभाजन हुए 5 अगस्त 2022 को तीन साल पूरे हो जायेंगे .कश्मीर समस्या का स्थायी हल निकलने के लिए 5 अगस्त 2019 को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली संविधान की धारा 370 हटाई थी .उन्हें कश्मीर को तोड़ना भी पड़ा ,लेकिन ढाई साल बाद भी कश्मीर में लोकतंत्र की बहाली करने में वे कामयाब नहीं हुए .वहां न हिंसा रुकी और न वहां कथित शांति स्थापना के बाद एक भी कश्मीरी पंडित वापस लौटा,यहां तक कि ‘द कश्मीर फ़ाइल ‘ में प्रमुख भूमका निभाने वाले अनुपम खैर भी कश्मीर रहने नहीं गए .

आपको शायद यकीन न हो किन्तु हकीकत ये है कि कश्मीर के रक्तरंजित अतीत की तरह कश्मीर का वर्तमान भी रक्त रंजीत ही है .सरकार की इस नाकामी पर पर्दा डालने और देश में मौजूद दीगर मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए ‘द कश्मीर फ़ाइल ‘ के अलावा कोई दूसरा विकल्प सरकार कि पास न था .जैसे पिछले सात साल में देश का मीडिया ‘ गोदी मीडिया ‘ बना दिया गया है वैसे ही अब देश में फिल्मों को भी गोदी फिल्म उद्योग में तब्दील किया जा रहा है .’द कश्मीर फ़ाइल’ इसकी शुरूआत है .गोदी मीडिया इस फिल्म कि प्रमोशन में जी-जान से जुटा है.पंत प्रधान ‘द कश्मीर फ़ाइल ‘ की टीम से ऐसे मिलकर बधाई दे रहें हैं जैसे वे एवरेस्ट फतह करके आये हों और उन्होंने बहुत बड़ा राष्ट्रहित साध दिया हो !
जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि फिल्मों का मकसद आदमी की संवेदना को उभारकर पैसा कमाना होता है और कुछ नहीं. हालाँकि देश में इस स्वार्थ कि बावजूद अनेक शैक्षणिक और सामाजिक मुद्दों को रेखांकित करती अनेक फ़िल्में भी बनाई जाती है .1890 से ये काम सतत चल रहा है और आगे भी चलता रहेगा .क्योंकि फिल्म इंसान की जरूरत है और इंसान की जरूरत पर जब कब्जा कर लिया जाये तब राजनीति शुरू हो जाती है .और जब राजनीति शुरू हो जाती है तब खतरे बढ़ जाते हैं .
‘द कश्मीर फाइल ‘ बनाने वाले विवेक अग्नहोत्री का जन्म चूंकि मेरे अपने शहर ग्वालियर में हुआ है इसलिए मुझे इस फिल्म को लेकर लिखने का मन हुआ.वे सेंसर बोर्ड कि सदस्य भी हैं .उनके अतीत में जाने की जरूरत नहीं उनमें अखंड प्रतिभा है .वे चॉकलेट भी बना सकते हैं और ताशकंद फ़ाइल भी,इसलिए उनसे ‘द कश्मीर फ़ाइल’ भी बनवाई गयी.वे यदि सेंसर बोर्ड में न होते तो शायद ही उनकी ये फिल्म प्रमाणित हो पाती .उसके रक्तरंजित और वीभत्स दृश्यों पर सेंसर बोर्ड की कैंची शायद इसीलिए नहीं चली क्योंकि सरकार ऐसा नहीं चाहती थी .वरना ऐसे दृश्य सेंसर की कैंची से बचकर निकल नहीं सकते .

मेरा अनुभव है कि जो फिल्म जिस मकसद से बनाई जाती है उसे यदि उसका मकसद हासिल न हो तो ऐसी फिल्म को ‘ फ्लॉप’ फिल्म की श्रेणी में डाल दिया जाता है .जैसे किसी फिल्म का मकसद दर्शक को रुलाना होता है तो किसी फिल्म का मकसद दर्शक को हँसाना होता है. कोई फिल्म दर्शक को सोचने का मुद्दा दे जाती है तो कोई फिल्म दर्शक को शिक्षा देकर जाती है लेकिन नफरत कोई फिल्म नहीं फैलाती वो भी हकीकत के नाम पर .हकीकत के नाम पर नफरत फैलाना,यानि गड़े मुर्दे उखाड़कर उनका पोस्टमार्टम करना सियासत का काम है फिल्म निर्माता का नहीं .बेहतर होता कि विवेक आज कि कश्मीर पर फिल्म बनाते.ढाई साल के खंडित ,और लोकतंत्र बहाली कि लिए तड़फ रहे कश्मीर की हकीकत बताते .बताते कि सरकार कहाँ नाकाम हुई है ,लेकिन ऐसा करने का उनके पास कोई निर्देश नहीं था .

देश में बीते सौ साल में जितनी फ़िल्में बनीं हैं उनमें से बहुत कम ऐसी हैं जो आज भी याद की जाती हैं.’द कश्मीर फ़ाइल’ ऐसी फिल्मों की फेहरिश्त में शायद कभी भी शामिल नहीं हो पायेगी ,क्योंकि फिल्म का मकसद साफ़-साफ़ सियासी है .ये फिल्म विवेक को करोड़पति बनाएगी और कश्मीर को और पंगु .भारतीय दर्शक को सिर्फ इतना समझना होगा की ‘द कश्मीर फ़ाइल’ कि हर दृश्य पर निर्माता,निर्देशक की छाप होती है वो जो चाहे दिखा सकता है .कम करके दिखा सकता है,अतिरंजित करके दिखा सकता और और रक्तरंजित करके भी दिखा सकता है .हकीकत हर दृश्य से उतनी ही दूर होती है जितनी दूर कि उसे होना चाहिए .

सियासी मकसद से बनाई जाने वाली फ़िल्में अक्सर कूड़ेदान में फेंक दी जाती हैं लेकिन ‘द कश्मीर फ़ाइल’ की किस्मत है कि उसे सरकार का आशीर्वाद प्राप्त है इसलिए उसे राष्ट्रसेवा का सम्मान मिल रहा है,अन्यथा आँखों में धूल झोंकना एक राष्ट्रीय अपराध से कम नहीं है .फिल्म में अभिनय करने वाले भी भाजपा कि कारिंदे हैं ,कोई अपने आपको कोबरा कहता है तो कोई अनुपम .

ईंट से ईंट बजाती उमा भारती

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राकेश अचल

मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती आखिर किसकी ईंट से ईंट बजाना चाहती है ? क्या उन्हें पुलिस संरक्षण में शराब की दूकान पर ईंट बजाने की छूट मध्यप्रदेश की सरकार ने दी है ,या वे मध्यप्रदेश में लागू मुलिस कमिश्नर प्रणाली की ईंट से ईंट बजा रहीं हैं ? आखिर पूरे परिदृश्य से हमारी पुलिस अदृश्य क्यों है ?
उमाजी भाजपा की पकी-पकाई नेता हैं. केंद्र में मंत्री रहने के साथ ही वे मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं और मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार की ईंट से ईंट बजाने में उमा जी ही सबसे आगे थीं .उन्हें मालूम है कि ईंट से ईंट कब और कैसे बजाई जाती है ,लेकिन इस बार उन्होंने शराबबंदी के लिए केवल शराब की एक दूकान पर ईंट नहीं फेंकी बल्कि अपनी ही पार्टी की सरकार और हाल में लागू पुलिस कमिश्नर प्रणाली की ईंट से ईंट बजा दी है .अब इसकी प्रतिध्वनि कितनी दूर जाएगी ये अभी नहीं कहा जा सकता .
प्रदेश की पुलिस चाहती थी कि उसे पुलिस कमिश्नर प्रणाली में तब्दील कर ज्यादा अधिकार दिए जाएँ ताकि पुलिस बिना दबाब के अपना काम कर सके. पुलिस को अतिरिक्त अधिकार मिल गए लेकिन क्या पुलिस कमिश्नर प्रणाली ने उमा भारती द्वारा शराब की दूकान पर किये गए जुर्म को लेकर कोई संज्ञान लिया ? पुलिस कह सकती है कि उसके पास कोई फरियादी नहीं आया ,लेकिन क्या पुलिस कह सकती है कि सैकड़ों की भीड़ के साथ उमा भारती द्वारा किये जा रहे आंदोलन की कोई जानकारी पुलिस को नहीं थी .उमा भारती पूर्व मुख्यमंत्री हैं,उन्हें विशेष सुरक्षा मुहैया कराई गयी है ,किन्तु क्या वे इस सुरक्षा व्यवस्था के साथ कहीं भी जाकर तोड़फोड़ कर सकतीं हैं.क्या उनकी सुरक्षा में लगे पुलिस कर्मियों को ये प्रशिक्षण नहीं दिया गया वे अपनी आँखों के सामने कोई अपराध होता न देखें ,?
पूर्व मुख्यमंत्री के नाते उमा जी को विधि-विधान का पूरा ज्ञान है ही,होना ही चाहिए ,इसलिए हैरानी होती है कि वे शराबबंदी आंदोलन के तहत किसी लाइसेंसशुदा शराब की दूकान में घुसकर वहां रखी शराब की बोतलों को ईंट के प्रहार से तोड़तीं हैं और गर्वोन्नत भाव से जयश्रीराम के नारों के बीच वापस लौटती हैं .क्या मुख्यमंत्री और पुलिस कमिश्नर ने कभी सोचा की उनकी निष्क्रियता से पूरे प्रदेश में क्या हो सकता है ? उमा जी का अनुशरण करते हुए यदि शराबबंदी के समर्थक इसी तरह ईंटें लेकर हर गांव,शहर में शराब की दुकानों में घिसकर तोड़फोड़ करेंगे तो क्या सूरत बनेगी ?
उमा भारती ने प्रथम दृष्टया क़ानून को अपने हाथ में लिया है और बेशर्मी के साथ लिया है इसलिए पुलिस कमिश्नर प्रणाली का दायित्व बनता है कि वो बिना किसी डर -भय के उमा भारती के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे. यदि यही कृत्य कोई आम आदमी करता तो उसे कब का हवालात में ठूंस दिया जाता ,लेकिन उमा भारती के साथ पुलिस ये बरताव नहीं कर सकती .यहां पुलिस के हाथ अपने आप बांध जाते हैं .कोई भी प्रणाली यहां काम नहीं करती .
शराब बंदी एक सामाजिक मुद्दा है .कोई भी सत्ता शराबबंदी का समर्थन नहीं करती और जिन राज्यों में भी शराबबन्दी की भी गयी है वहां शराब की तस्करी का समानांतर कारोबार खूब फल-फूल रहा है .उमा जी ने शराब का सेवन नहीं किया होगा लेकिन वे हरकतें किसी शराबी जैसी ही कर रहीं हैं.शराब बहुत बुरी चीज है,इस पर रोक लगना चाहिए लेकिन इसके लिए राजनीतिक निर्णय की जरूरत है .एक तरफ सरकार शराब सस्ती कर रही है और दूसरी तरफ सरकारी पार्टी की प्रमुख नेता उमा जी शराबबंदी के खिलाफ हिंसक आंदोलन की ईंट रख रहीं हैं .ऐसे में अराजक स्थितियां तो बनेंगी ही .
आपको याद होगा कि उमा जी को एक जमाने में फायरब्रांड नेता माना जाता था .उनमने फायर थी भी.मै उमा जी को उस दिन से जानता हूँ जिस दिन उन्होंने भगवा ओढ़े ही राजनीति में पहला कदम रखा था .वे प्रवाचक थीं .रामचरित मानस और भागवत सुनाती थीं और खूब सुनाती थीं,उनकी जिव्हा पर सरस्वती विराजती थीं ,लेकिन वो अतीत की बात थी .अब उमा जी का फायरब्रांड चल नहीं रहा. उनकी अपनी पार्टी ने उन्हें हाशिये पर ला खड़ा किया है. एक बार पार्टी को विभाजित कर चुकी उमा में अब इतना जोश -खरोश नहीं बचा है कि वे अब दोबारा पार्टी को तोड़ सकें .लेकिन उनके भीतर अपनी उपेक्षा की कुंठा है इसलिए वे जब तक सनक जातीं हैं .लेकिन उनकी सनक क़ानून और व्यवस्था को चुनौती नहीं दे सकती .कानून को अपना काम करना ही चाहिए ,अन्यथा कोई नहीं मानेगा कि-‘ क़ानून के हाथ लम्बे होते हैं’ .
मुझे हैरानी होती है कि प्रदेश भाजपा ने उमा भारती के इस हारकर को उनका निजी मामला बताकर पल्ला झाड़ लिया है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और प्रदेश के मुख्यमंत्री की ये हैसियत नहीं है कि वे उमा भारती को हद में रहने की चेतावनी दे सकें .अब केंद्रीय नेतृत्व ही प्रदेश भाजपा की ,प्रदेश सरकार की और प्रदेश की राजधानी में लागू पुलिस कमिश्नर प्रणाली की लाज बचा सकते हैं,अन्यथा उमा जी तो तीनों की ईंट से ईंट बजने का श्रीगणेश कर ही चुकी हैं .
उमा भारती के हाथ में ईंट का होना किसी भी रूप में स्वीकार्य,स्तुत्य या बंदनीय नहीं हो सकता. वे यदि संत हैं तो भी हिंसक नहीं हो सकतीं,वे यदि एक राजनेता हैं तो भी उन्हें क़ानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती.वे यदि समाज सुधारक हैं तो भी उन्हें हिंसात्मक रास्ते पर चलने की इजाजत नहीं दी जा सकती .दुर्भाग्य से उमा जी अब न संत हैं और न राजनेता ,समाजसेवी तो बिलकुल नहीं हैं .उनकी तुलना एक खिसियानी बिल्ली से जरूर की जा सकती है जो खम्भे नोंचने के बजाय ईंटें बरसा रही है .लेकिन दुर्भाग्य की अब राजनीती में किसी बिल्ली के भाग्य से कोई छीका नहीं टूटने वाला .वे चाहे जितना कस-बल लगा लें मुख्यमंत्री पद से शिवराज सिंह चौहान नहीं जाने वाले .
प्रदेश में शराबबंदी की उमा जी की मांग का समर्थन किया जा सकता है की उन्होंने विरोध के लिए जो रास्ता अख्तियार किया है ,उसका समर्थन न पार्टी को करना चाहिए न सरकार को और न पुलिस कमिश्नर को .उमा जी के खिलाफ यदि कार्रवाई न की गयी तो सरकार और भाजपा की तो सिर्फ भद्द पिटेगी लेकिन पुलिस कमिश्नर प्रणाली का तो भट्टा ही बैठ जाएगा .अब देखते हैं की आगे कौन से गुल खिलते हैं ?

भेल के बरखेड़ा पठानी क्षेत्र में शराब दुकान में तोड़फोड़ के बाद पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने सोमवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा है। इस पत्र में उमा ने जनता के शराबबंदी अभियान के लिए सरकार से साथ देने को कहा है। उन्होंने लिखा है कि जनता पहल कर रही है, तो सरकार को साथ देना चाहिए। कम से कम निषिद्ध एवं वर्जित स्थानों पर शराब की दुकान और आहते शासन को तुरंत बंद कर देने चाहिए। उन्होंने इसे लेकर ट्वीट भी किए हैं।

उमा भारती ने कहा है कि आजाद नगर स्थित शराब दुकान बंद कराने के लिए धरना-प्रदर्शन कर रही थी। वहां से लौटते वक्त स्थानीय महिलाएं मुझसे रोते हुए मिली थीं। उन्होंने बताया कि उनका घर की छतों पर निकलना दूभर हो गया है। शराबी छतों पर निकलने वाली महिलाओं को लज्जित करते हैं। मैं वापस मुड़ी और पूरी ताकत से एक पत्थर शराब की बोतलों पर दे मारा। महिला के सम्मान की रक्षा में मैंने ऐसा किया। उन्होंने लिखा कि जागरुकता अभियान तो शराबियों-नशेड़ियों की निजी जिंदगी बचाने के लिए है। मेरा मानना है कि शराब की दुकानें सरकार की सहमति से खुलती हैं, इसलिए शराबबंदी सरकार की ओर से और नशा-शराब मुक्ति के लिए समाज की ओर से पहल होनी चाहिए।


सीटें तो कम हो गईं ! भाजपा मज़बूत हुई कि कमजोर ?

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श्रवण गर्ग

एग्जिट पोल्स के ‘अनुमान’ अंततः अंतिम ‘परिणाम’ भी साबित हो गए। प्रधानमंत्री सहित भाजपा के सभी बड़े नेताओं की भाव-भंगिमाओं में पहले से ही ऐसा परिलक्षित भी हो रहा था। मोदी और योगी नतीजों से अभिभूत हैं पर दोनों के लिए कारण अलग-अलग हैं। एक प्रधानमंत्री हैं और दूसरे कथित तौर पर बनने की आकांक्षा रखते हैं। यूपी के संग्राम को 2024 का सेमी-फ़ायनल बताया गया था।

चुनावों के पहले अमित शाह ने लखनऊ में मतदाताओं से कहा था कि मोदी की 2024 में दिल्ली में वापसी के लिए योगी को 2022 में फिर से सीएम चुना जाना ज़रूरी है।देखना होगा कि जनता द्वारा अपना काम पूरा कर दिए जाने के बाद प्रधानमंत्री ,योगी को अब भी ‘ उपयोगी’ मानते हुए मुख्यमंत्री के पद के लिए उनके नाम की घोषणा कब करते हैं ! करते भी हैं या नहीं !

नतीजों के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि विशेषज्ञों द्वारा 2019 में लोकसभा की जीत का कारण यूपी में 2017 (403 में से 325 सीटें ) में हुई एनडीए की विजय को बताया गया था। 2024 में जीत का कारण 2022 को बताया जाएगा। सवाल यह है कि दो साल बाद (या पूर्व ही ! ) होने वाले लोकसभा चुनावों के इतना पहले और ग्यारह राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनावों के नतीजों की प्रतीक्षा किए बग़ैर इस तरह के आशावाद को कितना औचित्यपूर्ण माना जाना चाहिए ?

यूपी सहित पाँच राज्यों के परिणामों को लेकर प्रधानमंत्री या किसी अन्य भाजपा नेता ने अभी तक जो कुछ नहीं कहा उसकी अगर तटस्थ भाव से समीक्षा की जाए तो कुछ ऐसे तथ्य उजागर होते हैं जिनका ज़िक्र किया जाना ज़रूरी है :

अपनी बात इस सवाल से शुरू करते हैं कि हाल के चुनावों में भाजपा (हिंदुत्व ) की ताक़त बढ़ी है या कम हुई है? भाजपा गठबंधन को इस बार 273 (255+18) सीटें मिलीं हैं जबकि 2017 में यह आँकड़ा 325 (312+13 )का था।यानी 2017 के मुक़ाबले 52 सीटें (16 प्रतिशत) कम हुई हैं। अखिलेश के ख़िलाफ़ भाजपा की डबल इंजिन की सरकारों की सम्मिलित ताक़त के विरोध और साथ में बसपा के परोक्ष समर्थन के बावजूद सपा गठबंधन की सीटें तीन गुना (47 से 125 ) हो गईं। पूछा जा सकता है कि बसपा द्वारा अगर 2017 की तरह ही तटस्थ रहते हुए भाजपा को समर्थन नहीं दिया जाता या सपा का एकतरफ़ा विरोध नहीं किया जाता तो उसकी (भाजपा) कम होने वाली सीटों का आँकड़ा कहाँ पहुँचता ?

विश्लेषक बताते हैं कि बसपा के परम्परागत जाटव वोट बैंक से कोई 13 प्रतिशत और ग़ैर-जाटव से नौ प्रतिशत समर्थन इस बार भाजपा के खाते में शिफ़्ट हुआ है ।मीडिया में प्रकाशित खबरों पर यक़ीन करें तो मायावती ने पूरी ताक़त अपनी पार्टी को जीत दिलवाने की बजाय सपा को हरवाने में झोंक दी थी । विपक्ष की राजनीति में ऐसा प्रयोग पहली बार ही हुआ होगा। 2017 में बसपा के पास 19 सीटें थीं और पार्टी तब नाखुश थी।इस बार एक सीट रह गई पर पार्टी में कोई मातम नहीं है।

मीडिया में जानकारी दी गई है कि लगभग सवा सौ सीटों पर बसपा ने सपा उम्मीदवारों की जाति और धर्म के ही उम्मीदवार खड़े किए। इन उम्मीदवारों के कारण सपा के वोट कट गए और 66 स्थानों पर भाजपा के प्रत्याशी विजयी हो गए। अट्ठाईस सीटें ऐसी बताई जाती हैं जिन पर भाजपा के पक्ष में फ़ैसला पाँच हज़ार से कम मतों से हुआ। इवीएम के पुण्य-प्रताप को लेकर जिस तरह की चर्चाएँ (या अफ़वाहें ) चल रहीं हैं उनकी पुष्टि या खंडन पेगासस की तरह ही रहस्य के परदों के पीछे बना रहने वाला है।’मनुवादी’ भाजपा को लाभ पहुँचाने वाले बसपा के अभूतपूर्व दलित बलिदान को किसी भी तरह से व्यक्त नहीं किया जा सकता है !

भाजपा को छोड़कर सपा के साथ जुड़े पिछड़ी जाति के नेता स्वामीप्रसाद मौर्य की फ़ाज़िलनगर सीट से हार को भाजपा की लहर का परिणाम मान लिया जा सकता है पर योगी सरकार के उप-मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री पद के सशक्त दावेदार केशवप्रसाद मौर्य की सिराथू सीट से सपा की महिला उम्मीदवार पल्लवी पटेल के हाथों पराजय पर क्या सफ़ाई दी जाएगी? आज़मगढ़ ज़िले की सभी दस सीटें सपा ने जीत लीं।सिराथू सहित कोशांबी ज़िले की तीनों सीटें भाजपा हार गई। ऐसे और भी कई ज़िले हैं जहां भाजपा को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा।

हिंदुत्व की लहर अगर 2017 की तरह ही पूरी यूपी में ही फैली हुई थी तो फिर ऐसा क्यों हुआ कि उसने सपा का सभी जगहों पर एक जैसा सफ़ाया नहीं किया? क्या इन स्थानों पर बसपा उसके पक्ष में प्रभावकारी साबित नहीं हो सकी या दलितों ने मायावती की भाजपा-समर्थन की नीति को नकार दिया ?(इस चुनाव में बसपा का वोट शेयर लगभग आधा रह गया ।)

एक अन्य जानकारी यह दी जा रही है कि 2017 में केवल 24 मुसलिम प्रत्याशी ही चुनाव जीते थे पर हिंदुत्व के बुलडोज़री आतंक के बावजूद इस बार तैंतीस मुसलिम उम्मीदवार विजयी हुए हैं।बताया गया है कि सपा के इकतीस मुसलिम उम्मीदवारों की हार का मार्जिन बसपा द्वारा खड़े किए गए (मुसलिम !) उम्मीदवारों को प्राप्त मतों से कम था।(कोई सौ सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार खड़े करके मायावती की तरह ही सपा प्रत्याशियों को हराने में भाजपा की मदद करने को लेकर असदुद्दीन ओवैसी द्वारा की गई कोशिशों का भी बराबरी के साथ ज़िक्र किया जा सकता है। ओवैसी यही काम बिहार के पिछले चुनावों में भी कर चुके हैं।)विद्वान आलोचकों के इस तर्क का भी सम्मान किया जा सकता है कि सपा को तो भाजपा-बसपा के बीच स्थापित हुई समझ की पहले से जानकारी थी इसके बावजूद उसने अपनी तैयारी दो विपक्षी उम्मीदवारों (भाजपा-बसपा) को ध्यान में रखते हुए क्यों नहीं की?

यूपी से निकलकर उत्तराखंड और पंजाब के हिंदुत्व की भी थोड़ी बात कर लें ! उत्तराखंड में हार के डर से पाँच साल में दो-दो मुख्यमंत्री हटा दिए जाने के बावजूद न सिर्फ़ तीसरे (पुष्कर सिंह धामी )भी हार गए, वहाँ भाजपा की दस सीटें भी कम हो गईं। कांग्रेस की आठ बढ़ गईं। यूपी और उत्तराखंड तो किसी समय एक ही थे ! गोरखपुर के मठ के हिंदुत्व की लहर देहरादून तक क्यों नहीं पहुँच पाई?

पंजाब की कोई तीन करोड़ की आबादी में सवा करोड़ (39 प्रतिशत) हिंदू हैं। 2017 में भाजपा के पास तीन सीटें थीं। इस बार दो रह गईं।क्या पंजाब का हिंदुत्व भाजपा के हिंदुत्व से अलग है? चुनावों के ठीक पहले बलात्कार के आरोप में बंद एक बड़े धार्मिक नेता का हिरासत से बाहर चुनाव क्षेत्र में उपलब्ध रहना भी यूपी के लखीमपुर खीरी जैसे नतीजे पंजाब में नहीं दे सका ! हाल के चुनावों के ठीक पहले हुए (30 अक्टूबर ,2021) 95 प्रतिशत हिंदू आबादी वाले हिमाचल प्रदेश के उप-चुनावों में लोकसभा की महत्वपूर्ण मंडी सीट और विधानसभा की तीनों सीटें कांग्रेस ने भाजपा से छीन लीं थीं।एक हिंदू प्रदेश में भी हिंदुत्व क्यों फैल हो गया ?

प्रधानमंत्री ने कहा है कि 2022 के नतीजों से 2024 के लिए संकेत मिल जाना चाहिए। सवाल यह है कि जिन संकेतों की तरफ़ मोदी इशारा करना चाहते हैं वे अगर देश की जनता के संकेतों से मेल नहीं खाते हों तो फिर क्या निष्कर्ष निकाले जाने चाहिए ?एक निष्कर्ष तो यही हो सकता है कि 2022 के अंत के आसपास ही प्रधानमंत्री के सपनों के 2024 का सूर्योदय देखने के लिए देश को भी चुनाव आयोग की तरह ही अपनी भी तैयारी अभी से कर लेना चाहिए।

हमको बचा लीजिए, नहीं तो आपकी जमीन को भी तबाह कर देंगी रूसी मिसाइलें

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TIO NEW DELHI

रूस-यूक्रेन के बीच जंग का आज 19वां दिन है। दोनों देशों के बीच सुलह का कोई रास्ता निकलता नहीं दिख रहा है। इस बीच खबर है कि रूस और यूक्रेन के बीच चौथे दौर की बातचीत एक से दो दिन में हो सकती है। इस बीच रूस की ओर से यूक्रेन पर हमले और भी ज्यादा तेज कर दिए गए हैं। यूक्रेन के 24 शहरों को निशाना बनाया जा रहा है। इसमें से 19 में तो रेड अलर्ट जारी किया गया है। यहां रूस लगातार बम बरसा रहा है। यूक्रेन पर हमले के बाद से अमेरिका लगातार रूस पर प्रतिबंध लगाए जा रहा है। ऐसे में अब रूस ने भी अमेरिकी कंपनियों पर कार्रवाई करने का मन बनाया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूस अमेरिकी कंपनियों की सम्पत्तियों को जब्त कर सकता है। इतना ही नहीं इन कंपनियों के अधिकारियों की भी गिरफ्तारी की जा सकती है।
ऑस्ट्रेलिया ने रूस के 33 व्यापारियों व रणनीतिकारों को प्रतिबंधित कर दिया है। इसमें रोमन अब्रामोविच, Gazprom के सीईओ एलेक्सी मिलर और रोसिया बैंक के अध्यक्ष दिमित्री लेबदेव शामिल हैं।
यूक्रेन के खारकीव, निप्रो व अन्य शहरों से आम नागरिकों की निकासी के लिए अतिरिक्त ट्रेनों का संचालन किया जाएगा। मिली जानकारी के मुताबिक, खारकीव से दो ट्रेनें वहीं निप्रो से भी ट्रेनें उपलब्ध रहेंगी।
रूस में आज से इंस्टाग्राम पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह कदम फेसबुक द्वारा पुतिन के खिलाफ किए गए नियमों में बदलाव के बाद उठाया गया है। इंस्टाग्राम का कहना है कि, यह गलत है। रूस के आठ करोड़ लोग इस कारण दुनिया से कट जाएंगे।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यूक्रेन में पिछले 19 दिन से जंग लड़ रहे रूस ने चीन से सैन्य व आर्थिक मदद की मांग की है। रूस की ओर से यह मदद ऐसे समय पर मांगी गई है, जब अमेरिका की ओर से सीधे तौर पर चीन को धमकाया गया है। दरअसल, अमेरिका ने रविवार को चीन को चेतावनी जारी की थी। इसके तहत कहा गया था कि, आर्थिक प्रतिबंध झेल रहे रूस की मदद के लिए अगर चीन आगे आता है, तो उसे भी बुरे परिणाम भुगतने होंगे।

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की की ओर से रविवार देर रात एक वीडियो संदेश जारी किया गया। इसमें उन्होंने एक बार फिर से नाटो से यूक्रेन को नो फ्लाई जोन घोषित करने की मांग की। इसके साथ ही उन्होंने चेतावनी भी दी कि, अगर आपने यूक्रेन के आसमान को नो फ्लाई जोन घोषित नहीं किया तो जल्द ही नाटो की जमीन पर भी रूसी रॉकेट गिरेंगे।

रूस-यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग का आज 19वां दिन है। रूस ने पूरी ताकत से यूक्रेन पर हमला बोल दिया है। 24 शहरों में रूसी सैनिकों द्वारा हमले बोले जा रहे हैं। इसमें से 19 शहरों में एयर रेड अलर्ट जारी किया गया है। रूस लगातार इन शहरों में बम बरसा रहा है।

हम जवाब दे सकते थे पर… : पाकिस्तान में भारतीय मिसाइल गिरने पर इमरान ने कही यह बात

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TIO NEW DELHI

भारत की मिसाइल पाकिस्तान में गिरने पर प्रधानमंत्री इमरान खान ने पहली बार प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने एक रैली में कहा कि आप सब जानते हैं कि 9 मार्च को क्या हुआ। भारत की तरफ से हमारे देश पर एक मिसाइल दागी गई। हम चाहते तो उसी वक्त इसका जवाब दे सकते थे, लेकिन हमने होश से काम लिया। इससे पहले पाकिस्तान ने मामले की जांच में खुद को शामिल करने की बात कही थी।

पाकिस्तान के हजीफाबाद में एक रैली को संबोधित करते हुए इमरान खान ने कहा कि मियां चन्नू में गिरी इस मिसाइल का हम जवाब दे सकते थे, लेकिन हमने संयम बरतना उचित समझा। उन्होंने यह भी कहा कि हमने देश के रक्षा तंत्र को मजबूत बनाया है। इससे पहले इमरान सरकार ने शनिवार को कहा था कि वह भारत के दुर्घटनावश मिसाइल चलने के दावे से संतुष्ट नहीं है। इसके साथ ही ऐसी घटनाओं को रोकने के सुरक्षा इंतजामों पर भी सवाल उठाए थे।

पाक विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि इस साधारण सफाई से काम नहीं चलेगा कि तकनीकी खराबी से मिसाइल चल गई। उन्होंने पाक के पंजाब प्रांत में इस प्रक्षेपास्त्र के गिरने की घटन की साझा जांच की मांग की, ताकि घटना के तथ्यों का पता लगाया जा सके। पाकिस्तान ने भारत के समक्ष प्रस्ताव रखा है कि साझा जांच कर तथ्य सामने लाए जाना चाहिए। भारत ने ‘दुर्घटनावश मिसाइल चलने’ की सूचना तत्काल पाकिस्तान को नहीं दी।

रक्षा विशेषज्ञ भी परमाणु शक्ति संपन्न दोनों देशों को ऐसे हादसों के प्रति आगाह कर चुके हैं। उनका कहना है कि दोनों पड़ोसी मुल्क तीन जंग लड़ चुके हैं और कई छुटपुट सैन्य टकराव भी हो चुके हैं, ऐसे में कोई भी ‘चिंगारी’ दोनों देशों के बीच बड़े सैन्य टकराव का रूप ले सकती है।

पाकिस्तान में भारतीय मिसाइल गिरने की घटना 9 मार्च 2022 को हुई थी। उस वक्त नियमित रखरखाव के दौरान तकनीकी खराबी से एक मिसाइल की आकस्मिक फायरिंग हो गई थी। भारत सरकार ने इसे गंभीरता से लिया और एक उच्च स्तरीय कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का आदेश दिया है। रक्षा मंत्रालय ने इस घटना पर खेद भी जताया है। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने पाकिस्तान में गिरी मिसाइल पर आधिकारिक जवाब देते हुए कहा कि रखरखाव के दौरान गड़बड़ी के कारण मिसाइल फायर होकर पाकिस्तान में जा गिरी थी। हमें इस घटना पर अफसोस है। मामले की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दे दिए गए हैं। 

आईएसपीआर ने की थी प्रेस कांफ्रेंस 
दरअसल, पाकिस्तान का आरोप था कि 9 मार्च को भारत की तरफ से एक ‘प्रोजेक्टाइल’ फायर किया गया था। पाकिस्तान ने आशंका जताई थी कि ये एक सुपरसोनिक मिसाइल थी जो हरियाणा के सिरसा से दागी गई थी। सिरसा में भारतीय वायुसेना का एक अहम एयर बेस है। खुद पाकिस्तानी सेना की मीडिया विंग, आईएसपीआर के डीजी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया था कि ये मिसाइल बिना वॉर-हेड की थी यानी इसमे बारूद नहीं था और अभ्यास के लिए फायर की गई थी। ये पाकिस्तान के मियां चन्नू इलाके में जाकर गिरी थी. पाकिस्तान ने कहा कि इससे कोई जानमाल का तो कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन ये इंटरनेशनल एविएशन सेफ्टी के प्रतिकूल है और इससे कोई बड़ा हादसा हो सकता था।

पाक ने भारतीय दूतावास प्रभारी को किया तलब
पाकिस्तान ने यहां भारत के दूतावास प्रभारी को तलब कर ‘उड़ने वाली भारतीय सुपर-सोनिक वस्तु’ द्वारा उसके हवाई क्षेत्र का कथित रूप से बिना उकसावे के उल्लंघन करने पर अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया था। इसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि भारतीय राजनयिक को बताया गया कि यह वस्तु भारत में सूरतगढ़ से नौ मार्च को स्थानीय समयानुसार शाम 6:43 बजे पाकिस्तान में घुसी थी। बाद में यह पाक में पंजाब प्रांत के मियां चुन्नु शहर में उसी दिन शाम 6:50 बजे गिरी, जिससे असैन्य संपत्ति को नुकसान पहुंचा।

वह जीवन की ज्योति है….

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निरूपा माली
वह जीवन की ज्योति है
उनसे ही तो उजाला है।
उनके बिन न चलेगी दुनिया
बिन उनके अंधियारा है।।
उसकी एक किलकारी से
कलिया भी खिल जती है।
उसके पैरों की थाप से
बजती सरगम सारी है।।
अंगुली पकड़ जो चल देती है
आंगन भी इठलता है।
बांह पकड़ तुमको थामेगी
जब तुम्हे चाहिये सहारा है।।
उसके घर की खुशियां है
त्यौहारों की रौनक है।
उसके बिन खाली-खाली
लगता जैसे दोजक है
सुख दुख की वो बनेगी साथी
जो बेटों से कम न आंकी
अच्छी शिक्षा अच्छा जीवन
उनके भी अधिकार सभी ।।
जीवन दो उनको भी
गर्भपात नहीं
हाथ जोड़कर करूं निवेदन
सुनिये ये विनती सभी ।।

आईपीएस संजीव कुमार के नाम से प्रतियोगिता की गई

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TIO BHOPAL


भोपाल। मंत्री उषा ठाकुर ने 32वीं राष्ट्रीय केनोई स्प्रिंट चैंपियनशिप में आईपीएस संजीव कुमार के नाम से प्रतियोगिता की गई। इस अवसर पर संजीव सिंह की श्रीमती ज्योति सिंह भी उपस्थित थी। ये बताना उल्लेखनीय है कि संजीव कुमार सिंह ऐसे आईपीएस थे कि जो लोगों के दिलों पर राज करते थे तथा आम लोगों से सीधा संपर्क रखने वाले अफसर थे। यहीं कारण है कि उन्हें देशभर में एक अलग सम्मान के साथ याद किया जाता है तथा कई आयोजन किए जाते है।

पर्यटन, संस्कृति और धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व मंत्री सुश्री उषा ठाकुर ने कहा कि प्रदेश में वाटर स्पोर्ट्स को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन विभाग आवश्यक सुविधाओं में वृद्धि करेगा। सुश्री ठाकुर स्व. श्री संजीव कुमार सिंह की स्मृति में भोपाल के छोटे तालाब पर 32वीं राष्ट्रीय केनो स्प्रिंट, 15वीं पेरा केनो, प्रथम स्टेंडअप पैडलिंग राष्ट्रीय प्रतियोगिता 2021-22 को संबोधित कर रही थी। सुश्री ठाकुर ने कहा कि वाटर स्पोर्ट्स जैसे आयोजनों से क्षेत्र में पर्यटन बढ़ेगा। इससे आर्थिक गतिविधियाँ तेज होगी, जो आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश के निर्माण का आधार बनेगी। सुश्री ठाकुर ने स्व. श्री संजीव कुमार सिंह के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर नमन किया। 

सुश्री ठाकुर ने के-4 जूनियर 1000 मीटर रेस में विजेता खिलाड़ियों को मेडल पहनाकर सम्मानित किया। मध्यप्रदेश की टीम ने प्रथम, मणिपुर ने द्वितीय और केरल राज्य की टीम ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। सुश्री ठाकुर ने सभी खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन करते हुए कहा कि पूरी मेहनत और लगन से प्रतियोगिता में भाग ले, और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करें। इस प्रतियोगिता के मंथन से उपजे अमृत रूपी खिलाड़ी अपने प्रदेश और देश का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन करेंगे। 

अपर मुख्य सचिव श्रीमती वीरा राणा, डीजी होमगार्ड श्री पवन जैन, रिटायर्ड एडीजी श्री संजय राणा, श्रीमती ज्योति सिंह और श्री प्रशांत कुशवाहा सहित राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के खिलाड़ी उपस्थित थे।