राकेश अचल
युद्धग्रस्त यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को बाहर निकालने के लिए भारत सरकार एड़ी-चोटी का जोर जरूर लगा रही है लेकिन भारत के चार मंत्रियों में से एक ने भी यूक्रेन की सीमा में प्रवेश नहीं किया है. भारत की और से विशेष दूत बनाकर भेजे गए चारों मंत्री यूक्रेन की सीमा से लगे चार अलग-अलग पड़ौसी देशों में बैठकर आपरेशन को अंजाम दे रहे हैं,लेकिन चारों मंत्रियों के साथ मीडिया कव्हरेज के लिए भारतीय न्यूज चैनलों के प्रतिनिधि मौजूद हैं ,ताकि भारत में इस बचाव अभियान का पूरा प्रचार किया जा सके .
आपको याद होगा कि यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को वापस लाने के लिए जब सरकार पर चौतरफा दबाब पड़ा तब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को रोमानिया और मोलदोवा ,किरेन रिजिजू स्लोवाकिया , हरदीप सिंह पुरी को हंगरीऔर वीके सिंह पोलैंड भेजा है .ये चारों मंत्री अब तक करीब 3500 भारतीय छात्रों को स्वदेश भेज चुके हैं ,लेकिन चारों रात के साथ राजनीति भी पूरी ताकत से कर रहे हैं और सवाल करने पर भारतीय छात्रों को राजनीति न करने की सलाह दे रहे हैं .
ज्योतिरादित्य सिंधिया रोमानिया के बुखारेस्ट पहुंचे तो बिहार की विशाखा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से कहा कि ‘हमारी सरकार पूरी तरह से न्यूट्रल है ‘तो सिंधिया बोले -‘ अभी तुम राजनीति में न पड़ो।’ साथ ही उन्होंने छात्रा को बाहर निकालने की जिम्मेदारी ली। उन्होंने कहा कि तुम सबको निकालने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां मुझे भेजा है।विशाखा का भाई अभी उसका भाईखारकीव में फंसा हुआ है।सिंधिया महाराष्ट्र के छात्रों से मराठी में बातचीत करते देखे गए .
भारत की और से राहत -बचाव के लिए भेजे गए चार मंत्रियों में से एक की भी यूक्रेन की सीमा में घुसने की हिम्मत नहीं हुई. यूक्रेन से बमों की बरसात के बीच भारतीय छात्र खुद जान हथेली पर रखकर पड़ौसी देशों की सीमाओं तक पहुँच रहे हैं .हालांकि भारत सरकार के आग्रह पर रूस ने भारतीय छात्रों को सुरक्षित रास्ता देने की व्यवस्था भी की ,लेकिन इससे भी खतरा टला नहीं है . रूसी बमबारी के बीच जान पर खेलकर खारकीव रेलवे स्टेशन पहुंचे हैं सैकड़ों भारतीय छात्र. दूतावास की ओर से तुरंत खारकीव छोड़ने के निर्देश मिले थे.. खारकीव रेलवे स्टेशन पर इस समय हजारों की भीड़ है.
यूक्रेन और रूस के बीच जंग तेज होती जा रही है. युद्ध के सातवें दिन रूस ने यूक्रेन के कई शहरों को निशाना बनाया. राजधानी कीव और खरकीव में रूसी हमले में बड़ी तबाही होने की बात कही जा रही है. रूस की सेना यूक्रेन की राजधानी कीव की ओर बढ़ रही है और यूक्रेनी फौजें उनका मुकाबला कर रही है. इस बीच, यूक्रेन में एक और भारतीय छात्र की मौत का मामला सामने आया है. भारतीय छात्र की मौत बीमारी की वजह से हुई है. इस बारे में भारतीय न्यूज चैनलों के पास खबरों के नाम पर केवल ‘ उधार का सिन्दूर ‘ है .भारतीय न्यूज चैनलों के संवाददाता मंत्रियों के आगे पीछे घूम रहे हैं .
दुनिया को विश्व युद्ध की और धकेल रहे रूस और यूक्रेन युद्ध में अभी भारत के एक छात्र की मौत हुई है .युद्धग्रस्त यूक्रेन के खारकीव शहर में मंगलवार को गोलाबारी में केरल का 25 वर्षीय एक छात्र बाल-बाल बच गया जबकि उसके बैच के साथी कर्नाटक निवासी नवीन शेखरप्पा ज्ञानगौदर की मौत हो गई। गोलाबारी के समय मेडिकल छात्र असोयुन हुसैन अपने साथी ज्ञानगौदर से महज 50 मीटर की दूरी पर था.भारतीय छात्रों के अभिभावकों का कहना है कि अनेक भारतीय छात्र यूक्रेन के शहरों में बंकरों में छिपे हुए हैं और वे लगातार गोलाबारी के कारण भागने में असमर्थ हैं। उन्होंने भारतीय दूतावास के उस परामर्श पर भी चिंता व्यक्त की है जिसमें छात्रों को निकासी के लिए यूक्रेन की सीमाओं तक पहुंचने के लिए कहा गया है.
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की आशंकाओं के बावजूद भारत अपने छात्रों को वापस लाने की रणनीति बनाने में चूक गया .अब भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला कह रहे है कि उन भारतीय छात्रों को लेने के लिए 26 विमानों को भेजा जा रहा है, जो यूक्रेन से सीमा पार कर पड़ोसी देशों में आ गए हैं.श्रृंगला ने बताया कि यूक्रेन में फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए चलाए जा रहे ऑपरेशन गंगा अभियान के तहत 8 मार्च तक 46 उड़ानें उपलब्ध होंगी. इनमें से 29 बुखारेस्ट से, 10 बुडापेस्ट से, छह पोलैंड के शहर ज्येजो से और एक स्लोवाकिया से उड़ान भरेगी.
मौजूदा संकट के समय भारत सरकार की कोशिशों पर टीका -टिप्पणी का कोई मतलब नहीं है,इसलिए जो हो रहा है,जितना हो रहा है और जैसा हो रहा है ठीक ही है भले ही सरकार इस अभियान का भी सियासी लाभ लेने की नाकाम कोशिश कर रही है .राज्यों में मंत्री और दूसरे नेता यूक्रेन में फंसे छात्रों के परिजनों से मिलकर सरकार की कोशिशों के बारे में बता रहे हैं .पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के अंतिम चरण में भी इस आपरेशन गंगा अभियान का जिक्र किया जा रहा है .मजे की बात ये है कि भारतीय छात्रों को वापस लेने के अभियान में शामिल किये गए चार मंत्रियों में से अकेले ज्योतिरादित्य सिंधिया ऐसे हैं जो सबसे ज्यादा लाइम लाइट में हैं. बाक़ी के तीन मंत्री क्या कर रहे हैं,किसी को पता नहीं चल रहा .
सियासत इसको कहते हैं
उत्तर प्रदेश में आज छठे चरण की वोटिंग :ईवीएम का दब रहा सिर्फ एक बटन
TIO NEW DELHI
उत्तर प्रदेश में आज छठे चरण की वोटिंग हो रही है। बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, गोरखपुर, बलरामपुर, अंबेडकरनगर और बलिया की 57 सीटों पर मतदान जारी है। यूपी में सुबह नौ बजे तक 8.69 फीसदी मतदान हो गया है। सबसे ज्यादा बस्ती में वोटिंग हुई हैसमाजवादी पार्टी ने ट्वीट कर चुनाव आयोग से शिकायत की है। आरोप है कि गोरखपुर जिले की गोरखपुर शहर 322 के बूथ संख्या 16 पर भाजपा कार्यकर्ता बूथ में अंदर बैठकर मतदाताओं पर भाजपा के पक्ष में मतदान करने का दबाव डाल रहे हैं। सपा ने चुनाव आयोग से संज्ञान लेने की अपील की है।
वहीं, सपा ने ट्वीट किया है कि गोरखपुर जिले की खजनी विधानसभा-325 के बूथ नंबर पर-130 पर आधे घंटे से ईवीएम खराब है मतदान कार्य बाधित है बलिया के रसड़ा में पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर और उनके परिवार के सदस्य ने मतदान किया। बेल्थरारोड विधानसभा के बसपा प्रत्याशी प्रवीण प्रकाश ने मतदान किया। बांसडीह में भाजपा प्रत्याशी केतकी सिंह ने पति के साथ मतदान किया। संबकबीर नगर जिले की बूथ संख्या 207 मतदान स्थल तिलकूपुर का ईवीएम 80 वोट पड़ने के बाद सुबह 8:00 बजे खराब हो गई। इसके चलते मतदान प्रभावित हो गया। मेहदावल विधानसभा क्षेत्र के बूथ संख्या 156 प्रथमिक विद्यालय बरगदवां खुर्द में एक घंटे से मतदान बंधित है। वहीं,
परसहर मतदान केंद्र के बूथ संख्या 7 पर ईवीएम खराब होने के कारण एक घंटे बाद मतदान शुरू हुआ।
योगी सरकार में मंत्री स्वाती सिंह के पति और बलिया सदर से भाजपा प्रत्याशी दयाशंकर सिंह के काफिले पर देर रात हमला हुआ है। उन्होंने बताया कि दुबहर इलाके में रात 12:30 बजे हमला हुआ। इसमें उनके साथ चल रहे भाजपा नेता टुनजी पाठक का वाहन क्षतिग्रस्त हो गया। सुरक्षाकर्मियों के मोर्चा संभालने पर हमला करने वाले भाग निकले। इस दौरान लखनऊ की एक गाड़ी और उसके ड्राइवर को समर्थकों ने पकड़ लिया।
धमाकों से दहली राजधानी कीव, छोटा परमाणु बम फेंका गया
TIO NEW DELHI
यूक्रेन पर रूस का हमला लगातार आठवें दिन भी जारी है। पुतिन की सेना ने राजधानी कीव को चारों ओर से घेर लिया है। अब से कुछ घंटे पहले कीव के एक रेलवे स्टेशन पर सेना ने मिसाइल दागी है। यह हमला उस वक्त किया गया है, जब स्टेशन से लोग रेस्क्यू किए जा रहे थे।
वहीं, रूसी आर्मी ने खेर्सोन पर भी कब्जा जमा लिया है, रूस के बाद खेर्सोन के मेयर इगोर कोल्यखेव ने पुष्टि की है कि रूसी सैनिक पोर्ट सिटी पर कब्जा करने चुके हैं। दूसरी ओर यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की के कार्यालय ने बयान दिया है कि लड़ाई अभी भी जारी है।
रूस के ताबड़तोड़ हमले के बीच यूक्रेन के 15 शहरों पर हवाई हमलों का अलर्ट जारी किया गया है। अब तक 10 लाख लोगों ने यूक्रेन छोड़ दिया है। भारतीय वायु सेना के प्रवक्ता ने जानकारी देते हुए कहा कि भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए आज भारतीय वायुसेना, यूक्रेन के पड़ोसी देशों में विभिन्न स्थानों के लिए तीन और उड़ानें संचालित कर रही है। रूस ने राजधानी कीव में फिर से सिलसिलेवार धमाके किए हैं। लोगों में दहशत का माहौल है। धमाके इतनी आवाज के साथ हुई कि लोगों को लगा कोई छोटा परमाणु बम फटा हो। घर में रह रहे बच्चों के साथ-साथ बड़े लोग भी रोने लगे। सभी जान बचाने के खातिर इधर-उधर भाग रहे हैं।
रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग की वजह से 10 लाख से अधिक नागरिकों ने यूक्रेन छोड़ दिया है। UNHCR के मुताबिक एक हफ्ते में यूक्रेनी जनसंख्या के दो फीसदी लोगों ने डर से जगह छोड़ दिया।
यूक्रेनी मीडिया के मुताबिक एक बांग्लादेशी जहाज पर भी रूस ने मिसाइल से अटैक कर दिया है। इस हमले में एक व्यक्ति की जान चली गई।
यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने रूस पर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि रूस के सिर्फ चार दोस्त हैं। इनमें उत्तर कोरिया, इरिट्रिया, सीरिया और बेलारूस शामिल है। बता दें कि इन चारों देश ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस के खिलाफ आए प्रस्ताव में रूस के पक्ष में वोट किया था। इस प्रस्ताव में यूक्रेन से रूसी सेना को निकालने की बात कही गई थी।
प्रदीप मिश्रा की शिव महापुराण कथा पर राजनीति, पुलिस की लापरवाही का सरकार को भुगतना होगा नतीजा
TIO खास खबर
मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के प्रसिद्ध पंडित प्रदीप मिश्रा की श्री शिव महापुराण कथा पर राजनीति जारी है। जबकि पूरा फेलुयर सीहोर पुलिस का है। लेकिन राजनीति की वजह से ठीकरा सरकार पर फोड़ा जा रहा है। इस मामले में एसपी सीहोर न तो कुछ सही जानकारी दे रहे है न ही डीजी कुछ बोलने को तैयार है। जब पुलिस अधिकारी चुप्पी साध लेते है तो स्वाभाविक है कि मुद्दे पर राजनीति होगी ही, जिसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ेगा। भाजपा के कई नेताओं के अपने तीखे तेवर सरकार को दिखाना शुरू कर दिया है और साथ में कांग्रेस को मौका मिल गया है।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बाद अब भाजपा के एक विधायक नारायण त्रिपाठी ने सीएम को पत्र लिखकर प्रशासन की नाकामी बताई है। कहा प्रशासन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए जिससे ऐसी घटना की पुनरावृत्ति नहीं हो। दूसरी तरफ कांग्रेस ने इस मामले में पूर्व मंत्री पीसी शर्मा, सीहोर जिला कांग्रेस अध्यक्ष बलवीर सिंह तोमर, पूर्व विधायक रमेश सक्सेना व शैलेंद्र पटेल और अवनीश भार्गव के प्रतिनिधिमंडल को कथावाचक पंडित मिश्रा से मुलाकात करने का फैसला किया है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बाद अब भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी ने सीएम को पत्र लिखा है। त्रिपाठी ने जिला प्रशासन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। वहीं, इस मुद्दे पर गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि कथा वहां चल रही है। कथा बंद नहीं की गई है। व्यस्थाएं सब ठीक हैं। जो आवश्यक व्यवस्था होगी, वह भी की जाएगी। महाराज से मैंने खुद बात की है और उन्होंने कहा है कि व्यवस्थाएं ठीक हो गई हैं।
राजवाड़ा 2 रेसीडेंसी
अरविंद तिवारी
बात यहां से शुरू करते हैं वैसे सीधे तौर पर तो उत्तर प्रदेश के चुनाव से मध्यप्रदेश का कोई संबंध नहीं है, लेकिन न जाने क्यों वहां के चुनावी नतीजों का मध्यप्रदेश भाजपा के कई दिग्गजों को बेसब्री से इंतजार है। इन नेताओं का मानना है कि यदि नतीजे अनुकूल नहीं रहे तो फिर मध्यप्रदेश में भी विधानसभा चुनाव के सालभर पहले कोई नया नेता सरकार को नेतृत्व देता नजर आ सकता है। हालांकि बदलाव की आशंका जताने वाले नेता सार्वजनिक तौर पर तो अभी यही कह रहे हैं कि कुछ भी हो थोड़े बहुत अंतर से सरकार तो हमारी ही बनेगी। हकीकत यह है कि वहा के जो मैदानी हालात देखने में आ रहे हैं उसने इन नेताओं की सांसें भी फुला रखी है।
मध्यप्रदेश सरकार के माइक-1 यानि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और माइक-2 यानि गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के बीच मामला फिर बिगड़ा हुआ है। भोपाल में मुख्यमंत्री द्वारा पौधारोपण के मौके पर मिश्रा ने जो तेवर दिखाए उससे साफ है कि अभी कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। ऐसा भी हो रहा है कि जिस फोरम पर मुख्यमंत्री मौजूद रहते हैं, वहां गृहमंत्री नजर नहीं आते और जहां गृहमंत्री की मौजूदगी रहती है, वहां मुख्यमंत्री गायब मिलते हैं। पिछले दिनों भोपाल में पार्टी कार्यालय में बड़े नेताओं की एक बैठक में गृहमंत्री डॉयस पर थे और मुख्यमंत्री कहीं नहीं दिखे। इंदौर के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री और नरेंद्रसिंह तोमर की मौजूदगी के बावजूद प्रभारी मंत्री की हैसियत रखने वाले गृहमंत्री नजर नहीं आए।
मूलत: संघ के प्रचारक और अब भारतीय जनता पार्टी के नेता मुरलीधर राव के पास यूं तो संगठन में कोई जिम्मेदारी नहीं है, लेकिन उन्हें मध्यप्रदेश का प्रभारी बनाया गया है। यह माना जाता है कि मध्यप्रदेश भाजपा में जो भी प्रभारी बनता है, उसे या तो प्रदेश के नेता साध लेते हैं या फिर इतना दबाव बना लेते हैं कि सबकुछ उनके मुताबिक होने लगता है। इन दिनों राव की लकदक लाईफ स्टाइल की बड़ी चर्चा है। भोपाल में चार इमली में सर्वसुविधायुक्त बड़ा बंगला, काफीले में बड़ी गाड़ी, पायलट फालो की सुविधा लेने के बाद उन पर उंगली उठने लगी है। कांग्रेसियों के निशाने पर वे हैं ही अब पार्टी के नेता भी चटखारे लेकर उनकी कहानी सुनाने लगे हैं।
जिस दिन अर्चना जायसवाल ने कमलनाथ को भरोसे में लिया बिना प्रदेश पदाधिकारियों और जिला व शहर अध्यक्षों की नियुक्ति कर दी थी, उसी दिन यह तय हो गया था कि प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अब अर्चना लंबी पारी नहीं खेल पाएंगी, हुआ भी यही। एक समय कमलनाथ की प्रिय पात्र रही अर्चना अब वहां बेगानी हो गई हैं। प्रदेश महिला कांग्रेस की नई अध्यक्ष के रूप में भोपाल की पूर्व महापौर और ओबीसी की बड़ी नेता विभा पटेल की ताजपोशी तय मानी जा रही है। कहा तो यह जा रहा है कि न चाहते हुए भी यह पद दिग्विजय सिंह के खाते में चला जाएगा।
कमलनाथ के दरबार में अच्छी खासी दखल रखने वाले कई दिग्गज नेताओं के बारे में यह मशहूर होता जा रहा है कि वे उपस्थिति तो बहुत दमदारी से लगाते हैं, लेकिन जो जिम्मेदारी उन्हें सौंपी जाती है उसका ठीक से निर्वहन नहीं कर पाते। सेक्टर और मंडलपम् के मामले उन्होंने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एन.पी. प्रजापति को जिम्मेदारी सौंपी थी। लेकिन जो फीडबैक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तक पहुंचा है, उसके बाद उनकी भृकुटि तन गई है। और कोई बड़ी बात नहीं कि जल्दी ही प्रजापति भी उनके निशाने पर आ जाएं।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के लिए एडवोकेट कोटे से जजों की नियुक्ति के लिए जल्दी ही नाम दिल्ली पहुंचाए जाना है। इस बार हाल ही में अपर महाधिवक्ता बनाए गए उमेश गजांकुश, विनय सराफ, सुधा श्रीवास्तव और सीमा शर्मा के नाम हाईकोर्ट जज के लिए चर्चा में आ गए हैं। विशाल बाहेती के बारे में कहा जा रहा है कि हर पैमाने पर फिट होने के बावजूद उन्होंने वकालत के पेशे में रहना ही बेहतर समझा है। देखते हैं क्या होता है, क्योंकि पुराना अनुभव यह कहता है कि इंदौर के जो नाम आगे बढ़ते हैं उन्हें बड़ी मशक्कत के बाद तवज्जो मिल पाती है। वैसे सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जीतेन्द्र माहेश्वरी की मौजूदगी का लाभ मध्य प्रदेश और खासकर इंदौर के वकीलों को मिलना तय है।
जैसे-जैसे डीजीपी विवेक जौहरी की सेवानिवृत्ति की तारीख नजदीक आती जा रही है वैसे वैसे राजीव टंडन के प्रभारी डीजीपी की भूमिका में आने की संभावना प्रबल होती जा रही है। मध्य प्रदेश सरकार ने बहुत ही चतुराई भरा दांव खेलते हुए नए डीजीपी के लिए संभावित नामों का पैनल यूपीएससी को नहीं भेजा है और ऐसी स्थिति में अंततः डीजीपी का पद राजीव टंडन के खाते में ही जाता नजर आ रहा है।
चलते चलते
मंत्रालय के आला अफसर यह जानने में लगे हैं कि आखिर ऐसा क्या कारण है की एसीएस जीएडी विनोद कुमार की अपने मातहतों से पटरी क्यों नहीं बैठ रही है एक के बाद एक अच्छे अवसर जीएडी से रवानगी लेते जा रहे हैं।
इंदौर के भाजपा नेता मनीष शर्मा ने अपने जन्मदिन के मौके पर अखबारों में दिए गए विज्ञापन में दिग्विजय सिंह, जीतू पटवारी और शोभा ओझा के साथी प्रवीण कक्कड़ का फोटो देकर सबको चौंका दिया है। शर्मा समर्पण निधि अभियान के दौरान पिछले दिनों भाजपा नेताओं को जमकर खरी-खोटी सुना चुके हैं।
पुछल्ला
पहले प्रयागराज और फिर बनारस क्षेत्र की विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी कैलाश विजयवर्गीय को ऐन वक्त पर सौंपी गई। उनका ज्यादा समय तो वहां के स्थानीय नेताओं के बीच फंसी गुत्थी को सुलझाने में ही निकल गया।
कैलाश का वर्गीकृत गुस्सा
राकेश अचल
प्रदेश के पूर्व मंत्री और भाजपा के अभूतपूर्व नेता श्री कैलाश विजयवर्गीय का महाशिवरात्रि पर सीहोर में एक धार्मिक आयोजन स्थगित करने पर प्रकट हुआ गुस्सा बेहद वर्गीकृत है. मुमकिन है कि उनका वर्गीकृत गुस्सा देखकर मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान डर गए हों और आजकल में सीहोर के कलेक्टर तथा एसपी को हटा भी दें ,लेकिन कैलाश विजयवर्गीय को समझना चाहिए कि प्रदेश या देश में कोई भी धार्मिक आयोजन अराजकता के लिए स्वीकार्य नहीं किया जा सकता और न किया जाना चाहिए .
सीहोर में जिस आयोजन को रोकने के खिलाफ कैलाश विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखकर उसे सार्वजनिक कराया है उससे जाहिर है कि उनका निशाना सीहोर का जिला प्रशासन नहीं बल्कि कोई और है .कैलाश जी एक लम्बे अरसे से प्रदेश की राजनीति में अप्रासंगिक से हैं. पार्टी हाईकमान ने उन्हें शिवराज का मार्ग निष्कंटक करने के लिए राष्ट्रीय नेता बना रखा है किन्तु उनकी आत्मा मध्यप्रदेश को छोड़ना नहीं चाह रही.छोड़ना भी नहीं चाहिए किन्तु उनकी आत्मा को इस तरह से सरकारी कामकाज में दखल भी नहीं देना चाहिए ,ये गलत बात है .
संयोग से मैं न भाजपा का कार्यकर्ता हूँ और न ‘मामा मीडिया’ का हिस्सा इसलिए मुझे मामा मुख्यमंत्री से कोई सहानुभूति नहीं है ,मेरी सहानुभूति सीहोर जिला प्रशासन के प्रति है .कैलाश जी को नहीं मालूम कि जिस आयोजन को स्थगित कराया गया उसकी वजह से भोपाल-इंदौर राजमार्ग पर कितने घण्टे और किस तरह की अराजकता पैदा हो गयी थी. कई घंटों तक लगे उस जाम में कैलाश जी नहीं बल्कि मै खुद और मेरे जैसे हजारों लोग फंसे थे,जिनकी या तो निर्धारित यात्राएं बर्बाद हो गयीं या जो इलाज के लिए अस्पतालों में नहीं पहुँच पाए .कितना ईंधन बर्बाद हुआ ?
सीहोर में रुद्रष्टिक महभिषेक और कथा की अनुमति निश्चित तौर पर जिला प्र्दशन से ली गयी होगी और जब प्रशासन को अराजक स्थितियां नजर आयीं होंगी तो प्रशासन ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए इस अनुमति को रद्द कर दिया होगा ,इसमें गलत क्या है ? क्या आयोजकों ने इस आयोजन के लिए आने वाली भीड़ के लिए पार्किंग के पर्याप्त बंदोबस्त किये थे ? क्या जिला प्रशासन को इस बारे में भ्रम में नहीं रखा गया और जब अराजक स्थितियां बन गयीं तो आयोजक हाथ खड़े करके खड़े हो गए .मै तो कहता हूँ कि सीहोर जिला प्रशासन ने बड़ी सूझबूझ से काम लिया अन्यथा वहां स्थितियां भयावह हो सकतीं थीं .
कैलाश विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री के सत्रह साल के कार्यकाल में सिंघस्थ और इज्तमा जैसे आयोजनों का हवाला देते हुए निशाने पर लिया है. वे आखिर इस आयोजन की तुलना इन दो बड़े पारम्परिक आयोजनों से कैसे कर सकते हैं ?बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी .सिंहस्थ के आयोजन में लोनिवि मंत्री के रूप में इंतजामों को लेकर कितने आरोप लगे थे ,ये सबको पता है लेकिन चूंकि सरकार भाजपा की थी इसलिए सभी दोषियों को बख्श दिया गया .इसके लिए उनका आभार मानने के बजाय रुद्राभिषेक स्थगित करने के बहाने अपना रौद्र रूप दिखाना हास्यास्पद है .कैलाश जी भूल गए कि महाशिवरात्रि पर ही उज्जैन में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल होने के लिए मामा सरकार और उज्जैन जिला प्रशासन ने ही दीपोत्सव का सारा इंतजाम किया था ,यानि प्रदेश की सरकार धर्म विरोधी नहीं बल्कि पूरी तरह से धर्मभीरु है .
पिछले कुछ वर्षो से देखने में आ रहा है कि भाजपा जहाँ-जहां भी सत्ता में है वहां धर्मान्धता लगातार बढ़ रही है. भाजपा के नेता अपनी निजी धार्मिक आस्थाओं का सार्वजनिक प्रदर्शन ही नहीं कर रहे बल्कि इसके लिए सत्ता और संगठन का भी इस्तेमाल कर रहे हैं .[याद रखिये की मैंने इसके लिए दुरूपयोग शब्द का इस्तेमाल नहीं किया ]ये एक तरह की नए किस्म की राजनीति है .दुर्भाग्य से इस अभियान में देश कि पंत प्रधान तक शामिल हैं .इस विषय को लेकर एक भाजपा भक्त ने सवाल उठाया था कि क्या वजह है की देश और प्रदेश में अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों का प्रबंध सरकारों के हाथों में नहीं है जबकि बहुसख्यंकों के पूजाघरों का प्रबंध सरकार खुद देखती है ?इस सवाल में ही जबाब छिपा है .और यही जबाब कैलाश जी के वर्गीकृत गुस्से का उत्तर भी है .
दुनिया में भारत अकेला ऐसा देश है जहां धार्मिकता की आड़ में अराजकता पैदा करने की अघोषित रूप से संवैधानिक छूट है.आप चाहे कांबड़ यात्रा करें चाहे सड़कों पर भंडारे कर गंदगी फैलाएं,कोई आपको रोक नहीं सकता .आपको चुनाव प्रचार में रामलीलाओं के प्रदर्शन से बंगाल की ममता सरकार तक नहीं रोक पायी थी .और जहां तक अल्पसंख्यकों के धार्मिक आयोजनों का सवाल है उनमें से ज्यादातर तो सरकारों के भरोसे होते नहीं हैं और जो होते हैं उनमने एक खास किस्म का आत्मानुशासन दिखाई देता है .कम से स्वच्छता के मामले में अल्पसंख्यक बहुसंख्यकों से आगे हैं .
बहरहाल बात कैलाश विजयवर्गीय के वर्गीकृत गुस्से की है तो मै फिर कहूंगा कि वे मुख्यमंत्री और सीहोर जिला प्रश्न के साथ ज्यादती कर रहे हैं .उन्हें दोनों की सरहाना करना चाहिए और भविष्य में इस तरह के अप्रिय प्रसंग उपस्थित न हों इसके लिए स्थायी इंतजाम करने में अपना सहयोग करना चाहिए .इंदौर में कैलाश जी को ऐसा करते हुए सबने देखा है. वे कुशल प्रबंधक हैं .बेहतर हो कि वे अपने अनुभवों का लाभ अपनी पार्टी की सरकार को दें .मुमकिन हो तो इस तरह के आयोजनों के नियमन के लिए प्रदेश के धार्मिक धर्मस्व मंत्री को तैनात करें कि जब तक इसी भी धर्म के आयोजन के लिए भीड़ नियंत्रण और पार्किंग तथा सुरक्षा के पूरे इंतजाम न हो जाएँ तब तक उनके आयोजन की अनुमति न दी जाये .
सिंघस्थ और इज्तमा के लिए तो सरकार पहले से ये काम करती ही आ रही है.हाल ही में सरकार ने अपने एक मंत्री को पूरे चार माह तक कुंडलपुर महोत्स्व के लिए तैनात कर ऐसा ही इंतजाम कर दिखाया है .धर्मभीरु सरकार चाहे तो जिला स्तर पर धार्मिक आयोजनों के लिए बीस सूत्रीय जिला समितियों की तरह समितियों का गठन भी कर दे तो बेहतर है .कम से कम कैलाश जी को गुस्सा होने का मौक़ा तो नहीं मिलेगा .सरकार चाहे तो एक नया अधिकरण बनाकर कैलाश जी को ही उसका प्रमुख ना दे क्योंकि हाल फिलहाल उनके मुख्यमंत्री बनने के तो कोई लक्षण दिखाई नहीं देते .
जयप्रकाश चौकसे : ‘परदे के बाहर’ आ जाने का स्वागत है !
श्रवण गर्ग
जयप्रकाश चौकसे जी के व्यक्तित्व और उनकी उपस्थिति को ‘परदे के पीछे ‘ से इतर भी देखने वाले नज़दीकी मित्रों के लिए यह एक बड़ी और अच्छी खबर है कि उन्होंने अपने चर्चित कॉलम को अंतिम रूप से ‘विदा’ (अलविदा नहीं!) कह दिया है।अच्छी खबर इस मायने में कि कॉलम को लिखने से बचने वाला अपना क़ीमती वक्त अब उस सबको और ज़्यादा सोचने और बाँटने में खर्च कर सकेंगे जिसे उन्होंने प्रयत्नपूर्वक सार्वजनिक नहीं होने दिया ; जिसका भंडार पिछले छब्बीस सालों के दौरान कॉलम के ज़रिए पाठकों को सौंपी गई जानकारी से कई गुना ज़्यादा और अलग है।
चौकसे जी को निकटता से जानने वाले लोगों को पता है कि पूर्व में वे जिस तरह का लेखन इसी कॉलम में करते थे और जिसे जारी भी रखना चाहते थे उसे तो उन्होंने काफ़ी पहले ही बंद-सा (या सीमित )कर दिया था।चौकसे जी फ़िल्मों को ही पिछले पाँच-छह दशकों से अपनी हरेक साँस के साथ जी रहे हैं।उन्होंने स्वयं की फ़िल्मों का निर्माण भी किया है।अतः उन्होंने कुशलतापूर्वक अपने पाठक-दर्शकों को कभी पता भी नहीं चलने दिया कि कब और कहाँ से शूट किए जा चुके दो-चार दृश्य या आलोचकों को चुभ जाने वाले संवाद सेंसर की कैंची तक पहुँचने के पहले ही ख़ूबसूरती के साथ कॉलम से ग़ायब कर दिए हैं।
चौकसे जी जिस प्रकार का लेखन करने की क्षमता रखते हैं वह उससे भिन्न होता जो हाल के कठिन सालों में प्रकाशित होकर प्रशंसा पाता रहा है।कहा जा सकता है कि चौकसे जी इन दिनों जो कुछ लिख रहे थे अगर वह भी पाठकों के दिलों को इतना छू रहा था तो उनका वह लिखा जिसे वे बातों-बातों में सहज रूप से व्यक्त करते रहते हैं अगर सार्वजनिक हो जाता (या हो जाए) तो उसके कारण निकलने वाली ‘वाह-वाह’ की केवल कल्पना ही की जा सकती है।चौकसे जी में राजकपूर की आत्मा का निवास है।राज साहब एक विचारवान कलाकार थे। वे एक ग़ैर-वैचारिक फ़िल्मी दुनिया में अलग से नज़र आने वाले वैचारिक नायक थे।इसीलिए चौकसे जी के लेखन में भी राजकपूर का फटे-हाल ‘आवारा’ और ‘जोकर’ लगातार चहलक़दमी करता नज़र आता है।
जिस तरह से आज के जमाने के व्यावसायिक निर्माता-निर्देशकों के बजटों में नेहरू के सोच वाला राजकपूर फ़िट नहीं होता ,चौकसे जी का असली लेखन भी परदे के पीछे ही रहा।राजनीतिक परिस्थितियों के चलते परदा पारदर्शी नहीं बल्कि मलमल का रखा गया (खादी या कॉटन का नहीं ) पर पढ़ने वाले उसमें भी बॉक्स ऑफ़िस के मज़े के साथ-साथ बम्बई के सम्पन्न राजनीतिक-फ़िल्मी अतीत की झलक प्राप्त करते रहे।
चौकसे जी के लेखन को फ़िल्मी पत्रकारिता की तंग सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता।उनके लिखे को ग़ैर-फ़िल्मी दुनिया के लोग ही ज़्यादा पढ़ते रहे हैं।चौकसे जी के साथ मुंबई के विशाल फ़िल्मी संसार में उन तमाम हस्तियों से मिलने ,बात करने और अख़बार के लिए लिखवाने के अवसर मिले जिनका ज़िक्र वे अपने कॉलम में समय-समय पर करते रहे हैं।चौकसे जी का जो सम्मान (स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से) अब उनके मुंबई में निवास नहीं करते हुए भी क़ायम है वह उन बड़े-बड़े फ़िल्मी पत्रकारों-लेखकों के लिए ईर्ष्या का विषय हो सकता है जो मायानगरी में ही जीवन जी रहे हैं। चौकसे जी अगर अपना कॉलम नहीं लिखते तो दीन-दुनिया को कभी पता ही नहीं चल पाता कि फ़िल्मों के निर्माण ,उनके कथानक और उन्हें बनाने वालों की निजी जिंदगियों को परदों में क़ैद रखते हुए भी कितनी ख़ूबसूरती के साथ बेपरदा किया जा सकता है।
एक ऐसे समय जबकि चारों ओर सकारात्मक पत्रकारिता की सूनामी बरपा है, अपना कॉलम बंद करके चौकसे जी ने (शायद) दैनिक भास्कर के (वर्तमान) सम्पादकों को भी राहत प्रदान करने का काम कर दिया है।चौकसे का लिखा कॉलम जब तक सम्पादकों के टेबलों तक नहीं पहुँच जाता था, उनमें धुकधुकी बनी रहती थी कि उन्होंने कोई ऐसी नहीं टिप्पणी कर दी हो (या नाम जोड़ दिए हों ) कि उसे हटाने या काटने के लिए ‘ऊपर’ से निर्देश लेना पड़ें! इसे हिंदी पत्रकारिता की बड़ी उपलब्धि माना जाना चाहिए कि एक कॉलम लेखक के सम्मान में अख़बार के पहले पन्ने पर उसके मालिक विदाई-गीत लिख रहे हैं।
चौकसे जी ने अपने विदाई कॉलम में रणधीर कपूर , सलीम साहब , जावेद अख़्तर ,बोनी कपूर आदि का ज़िक्र किया है। रणधीर कपूर से उनके सम्बंध उस लम्बी यात्रा की लगभग अंतिम कड़ी है जो राज साहब के साथ शुरू हुई थी और जो उन्हें उनके (राजकपूर के )तीनों बेटों के साथ इंदौर भी लाई थी। सलीम खान साहब तो चौकसे जी और राजेंद्र माथुर साहब के इंदौर शहर के ही हैं।आज के जमाने के नायक-नायिकाओं के सम्पर्क में तो चौकसे साहब के छोटे बेटे आदित्य हैं जो मुंबई में ही बस गए हैं।पर आदित्य ने अभी लिखना शुरू नहीं किया है।
मुझे थोड़ी जानकारी है कि अपने कॉलम को लेकर चौकसे जी कितने दबाव में रहते आए हैं।कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से लड़ते हुए भी वे उनका लिखा कॉलम जब तक हरकारे द्वारा घर से कलेक्ट किया जाकर , फ़ैक्स होकर दैनिक भास्कर के ऑफ़िस तक ठीक-से पहुँच नहीं जाता और बिना किसी काट-छाँट के अगली सुबह प्रकाशित नहीं हो जाता चौकसे जी का तनाव क़ायम रहता था ;और तब तक तो अगले दिन का नया कॉलम लिखने का दबाव शुरू हो जाता था।
छब्बीस सालों तक बिना एक दिन का भी चैन लिए की गई लगभग दो बनवासों जितनी यात्रा की समाप्ति के बाद प्राप्त हुई इस आराम और इत्मिनान की ज़िंदगी के चौकसे साहब पूरी तरह से हक़दार हैं।देश भर में फैले हुए चौकसे साहब के लाखों पाठकों को इस उपलब्धि पर जश्न मनाना चाहिए कि वे अब और ज़्यादा सालों तक हमें उपलब्ध रहेंगे।उनके उस सारे अनलिखे को भी उनकी आँखों की भाषा के ज़रिए या बातचीत में हम पढ़ सकेंगे जो अन्यान्य कारणों से व्यक्त होने से रह गया है।चौकसे साहब के ‘परदे से बाहर’ आ जाने का स्वागत किया जाना चाहिए !
जन्मदिन पर स्मरण :प्रो प्रकाश दीक्षित हस्तक्षेप के पक्षधर
राकेश अचल
ये पहला मौक़ा है जब हम सब प्रो प्रकाश दीक्षित का जन्मदिन उनके बिना मना रहे हैं. कोरोना ने उन्हें बीते साल हमसे छीन लिया. वे आज होते तो 86 साल के हो गए होते .आज के दिन मै हमेशा उनके पास एक पुष्पहार ,शाल,श्रीफल और मिठाई लेकर जाता था .वे अपना जन्मदिन मनाते नहीं थे लेकिन मुझे कभी उन्होंने ऐसा करने से रोका भी नहीं .मेरी हरकतों को देख वे मुस्करा उठते थे .
एक जमाने में जबरदस्त ठहाके लगाने वाले प्रो प्रकाश दीक्षित के बारे में लिखना आसान काम नहीं है. वे अपने जमाने के उन साहित्यकारों में से थे जो सचबयानी से कभी नहीं हिचके और इसके लिए उन्होंने हर कीमत अदा की .प्रो प्रकाश दीक्षित ने साहित्य की हर विधा में लिखा .कम लिखा लेकिन महत्वपूर्ण लिखा .उपन्यास लिखा,नाटक ,और कविता भी लिखी .आलोचना भी उनसे बची नहीं .लेकिन छपने पर उन्होंने कभी ज्यादा ध्यान नहीं दिया सो उनके संग्रह गिने-चुने ही हैं ,किन्तु वे सब हैं हिंदी साहित्य की धरोहर .
प्रो दीक्षित के साथ चार दशक की संगत में मैंने उनसे जो चीज सीखी वो ये कि बेमतलब तटस्थ नहीं रहना चाहिए. जहां जरूरी है वहां हस्तक्षेप करना ही चाहिए .मुझे लगता है कि यदि वे आज होते तो परम प्रगतिशील होते हुए भी वे यूक्रेन पर रूसी हमले के विरुद्ध कुछ न कुछ अवश्य लिखते .दीक्षित जी कहते थे कि आप यदि आसमान की और ऊँगली उठाकर घुमाएंगे तो मुमकिन है कि सौर मंडल पर इसका कुछ असर न हो किन्तु इसे एक हस्तक्षेप अवश्य माना जाएगा .एक हलचल अवश्य होगी .
साहित्य में प्रो प्रकाश दीक्षित के योगदान का मूल्यांकन जितना होना चाहिए था ,उतना नहीं हुआ .उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया .देश के तमाम बड़े प्रकाशकों के लिए अनुवाद करने वाले प्रो दीक्षित गजब के पढाका थे .उनके निजी संग्रह में अनेक दुर्लभ पुस्तकें थीं. मै जब भी अपने बेटे के पास अमेरिका जाता था उनके लिए अंग्रजी के एक-दो उपन्यास लेकर जरूर आता था .मजे की बात ये है कि वे हर विषय को अद्यतन पढ़ते थे ,चाहे वो उनकी रूचि का हो या न हो .उनकी स्मरण शक्ति गजब की थी .उनके पास संदर्भों की कोई कमी नहीं थी .
अपने आधी सदी से भी अधिक के साहित्यिक जीवन में प्रो प्रकाश दीक्षित ने कभी डाक्टर आफ फिलासफी की उपाधि हासिल नहीं की किन्तु न जाने कितने छात्रों को ये उपाधि बहुत आसानी से दिला दी .शोधार्थी उनके मार्गदर्शन के लिए कतार लगाए खड़े रहते थे .वे गाइड न होकर भी सबसे बड़े गाइड थे .शहर की साहित्यिक गतिविधियों में वे लगातार सक्रिय रहे लेकिन ‘होम सिकनेस’ और आत्मकेंद्रित रहने के स्वभाव ने उन्हें ग्वालियर तक ही सीमित कर दिया .वे किस्मत आजमाने मुंबई भी गए लेकिन मुंबई उन्हें रास नहीं आई .वे फिल्मों,नाटकों के लिए पटकथा,गीत ,संवाद सब लिख सकते थे लेकिन बात बनी नहीं .वे शायद पढ़ने और पढ़ने के लिए ही बने थे .
प्रो दीक्षित के छात्रों में अनेक बड़े नाम हैं ,वे उनके ऊपर गर्व भी करते थे किन्तु उन्होंने कभी भी गुरुदक्षिणा में अपने छात्रों से कुछ हासिल करने की कोशिश नहीं की .उनके जीवन काल में मेरी आधा दर्जन पुस्तकें आईं लेकिन मैंने कभी उनसे न अपनी पुस्तकों की भूमिका लिखवाई और न समीक्षा ,जबकि देश के अनेक लेखक नियमित रूप से उनसे ये काम करते रहते थे .मै उनके ज्ञान से आतंकित रहता था ,इसलिए उनके सामने न अपने को कवि के रूप में प्रकट करता था न साहित्यकार के रूप में .मै उनके सामने एक पत्रकार ही बना रहा हालाँकि वे मेरी हरेक पुस्तक पूरी लगन से पढ़ते थे,प्रतिक्रिया भी देते लेकिन मुस्करा कर .
. .पिछले साल जब मै जनवरी में अमरीका केलिए रवाना हो रहा था तब उन्होंने दीर्घ श्वांस लेते हुए कहा था -‘ राकेश जल्द लौट आना ,पता नहीं अब क्यों बहुत डर लगने लगा है ‘.वे अनहोनी से आशंकित रहने लगे थे ,हालाँकि उन्हें कोई रोग नहीं था .मैंने उनके लिए हमेशा कि तरह उपहार के रूप में अंग्रजी का एक उपन्यास खरीद लिया था ,लेकिन वे उसे पढ़ नहीं पाए.मेरे स्वदेश लौटने से पहले ही कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया.मात्र चौबीस घंटे में ही वे स्मृतिशेष हो गए .मै उन्हें समर्पित अपना पहला उपन्यास ‘ गद्दार’ भेंट नहीं कर सका .वे हमेशा हमारी स्मृतियों में जीवित रहेंगे .
यूक्रेन में फंसे भारतीयों के नहीं थम रहे आंसू, खाने को भी तरसे
TIO
यूक्रेन के बॉर्डर एरिया में फंसा हुआ हूं। गुरुवार सुबह 5 बजे धमाकों से नींद खुली। देखा तो चारों ओर आग और धुआं था। मैं और दूसरे स्टूडेंट बचने के लिए यहां-वहां भागे। 24 घंटे अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशन में छिपे रहे। कुछ खाने को नहीं मिला तो मुश्किल से हॉस्टल पहुंचे। हर आधे घंटे में धमाके की आवाज सुनाई दे रही है। बिल्डिंग के नीचे भी छिपने के लिए बंकर बनाए गए हैं।
छतरपुर के हेमंत श्रीवास के साथ यूक्रेन में फंसे इंडियन स्टूडेंट्स जान बचाने के लिए यहां-वहां छिप रहे हैं। बंकर में ईंट-पत्थरों पर सोना पड़ रहा है। बालगढ़ की शिवानी प्रजापति भी यूक्रेन से MBBS कर रही हैं। दूसरे स्टूडेंट्स की तरह वह भी जल्द देश लौटना चाहती हैं। विधायक गायत्री राजे पवार ने शिवानी से VIDEO कॉल पर बात की। शिवानी ने बताया कि अभी हम सब हॉस्टल में हैं, लेकिन हालात बहुत खराब हैं।
यूक्रेन के खार्किव शहर से MBBS कर रही अंजलि वेणीपुरी ने बताया- यहां हालत ठीक नहीं हैं। लगातार ब्लास्ट हो रहे हैं। लोग डरे हुए हैं। मैं और मेरे 9 फ्रेंड मेट्रो स्टेशन बंकर में आकर छिपे हुए हैं। इंडिया के और भी लोग हैं। मेरा फ्लैट बंकर से 1 किलोमीटर दूर है। खाना खाने ही फ्रेंड्स के साथ फ्लैट तक पैदल जाते हैं। हमारा खाना भी खत्म हो रहा है। अंजलि हरदा की रहने वाली हैं। उनकी फैमिली अभी बुरहानपुर में रह रही है।
यूक्रेन-रूस में जंग छिड़ने से पहले देवास के रजत गलोदिया भारत लौट आए। रजत MBBS करने के लिए सितंबर में यूक्रेन गए थे। यूक्रेन जब जंग के मुहाने पर था, तभी परिवारवालों ने उन्हें लौट आने को कहा। रजत ने बताया कि उन्हें घर आने में 4 दिन लगे। रजत ने बताया कि अचानक वहां पर इमरजेंसी इंटिमेशन दिए जाने लगे थे। इमरजेंसी या कोई वॉर होने की स्थिति में बिल्डिंग और घरों के नीचे बने बंकर्स में सेफ रहने की हिदायत दी जा रही थी। लगातार इंडियन एम्बेसी से हम स्टूडेंट्स संपर्क बनाए हुए थे। वह तो लौट आए, लेकिन उनके कई फ्रेंड्स अब भी फंसे हुए हैं।
भिंड के ऋषिकेश नरवरिया यूक्रेन के जकारपटि्टया के ओब्लास्ट में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। उन्होंने बताया- यूनिवर्सिटी ने हॉस्टल खाली करा दिया है। हम सभी 40 स्टूडेंट्स को शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर जंगल के एक हॉस्टल में ठहराया गया है। बाजार, होटल सब कुछ बंद है। ATM पर भीड़ लगी हुई है। हम जहां ठहरे हुए हैं, वहां से 200 किलोमीटर दूर रूस ने हमला किया है। आसमान में लड़ाकू विमान उड़ रहे हैं और नीचे मिलिट्री व्हीकल्स दौड़ रही हैं। यूनिवर्सिटी ने हमें हंगरी बॉर्डर तक पहुंचाने की बात कही है, लेकिन वो 400 डॉलर मांग रहे हैं। मेरे पास 200 डॉलर ही हैं। यही हालात दूसरे स्टूडेंट्स की भी है। हम 40 स्टूडेंट्स में झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार से भी हैं। यूक्रेन में रहना खतरे से खाली नहीं है।
मां दुर्गा, दुर्गा सप्तशी के कुछ अंशों पर सुंदर नृत्य की प्रस्तुति ने मोहा मन
TIO भोपाल
अंतरराष्ट्रीय महिला संस्थान “इनर विल” द्वारा आयोजित वार्षिक कांफ्रेंस समारोह “गर्विता” के कांफ्रेंस चेयरमैन रीता वर्मा तथा प्रज्ञा पारीक की उपस्थिति में कार्यक्रम हुआ। गणेश वंदना श्रीमती कीर्ति सुद द्वारा हुई। इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में पधारी नुसरत मेहदी (निदेशक उर्दू अकादमी) उन्होंने इस अवसर पर रीता वर्मा को बधाई देते हुए कहा कि इनर विल समाज में महिलाओं के विकास उत्थान एवं उनके विकास के लिए जो कार्य कर रहा है वो अति महत्वपूर्ण कार्य है, साथ ही उन्होंने महिलाओं पर पाबन्दी को लेकर अपने विचार रखते हुए आगे कहा की “समाज के किसी भी वर्ग पर पाबन्दियां लागू की जाती है जब वो सीमा के पार हो जाता है तब विद्रोह होने लगता है और इसकी आशंका उस तानाशाही वर्ग को हो जाती है तो वो पुराने कानूनों को सख़्त करने लगते हैं या नए कानून बनाने लगते हैं। ये सहुलियत का पर्दा है, सहूलियत का हिजाब है इसे आप प्रतीक के रूप में भी के सकते हैं।

साथ ही रोटरी क्लब गवर्नर महेन्द्र मिश्रा भी उपस्थित रहे, साथ ही इनर विल के सभी डिस्टिक के प्रतिनिधि सदस्यों के साथ फर्स्ट लेडी आॅफ डिस्टिक आदि भी उपस्थित रहे। डॉ लता सिंह मुंशी शिष्याओं द्वारा मां दुर्गा, दुर्गा सप्तशी के कुछ अंशों पर सुंदर नृत्य की प्रस्तुति भी दी गई साथ ही उन सभी का सम्मान भी किया गया। साथ ही नारी शक्ति को प्रदर्शित करती हुई पुस्तक का विमोचन भी सभी सदस्यों एवं अतिथियों ने मिलकर किया। ये आयोजन रीता वर्मा के सशक्त प्रयासों से संपन् न हुआ। कार्यक्रम के अंत में आए सभी लोगों ने रीता वर्मा के प्रयासों की सराहना की।
