राकेश अचल
दिल्ली से कुछ हजार किमी दूर स्थित यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद यूक्रेन को लेकर भारत की नीति और नीयत को लेकर सबकी नजरें भारत पर टिकी हैं,लेकिन भारत हमेशा की तत्काल प्रतिक्रिया देने से बच रहा है. भारत मौजूदा हालात में हमलावर रूस के साथ खड़ा होगा या पीड़ित यूक्रेन के साथ ये बात प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के अलावा कोई दूसरा नहीं जानता .यूक्रेन में भारत के हजारों छात्र फंसे हुए हैं .
रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के कारण क्या हैं ,ये बताने की जरूरत नहीं है. पूरी दुनिया जानती है कि रूस और यूक्रेन की लड़ाई का भारत या सीधे तौर पर अमरीका से कोई लेना-देना नहीं है किन्तु जब बात विश्व राजनीति की आती है तो रूस और अमरीका यूक्रेन जैसे मुद्दे पर आमने-सामने खड़े नजर आते हैं .रूस ने अमरीकी पाबंदियों और नाटो संगठन की परवाह किये बिना यूक्रेन पर हमला किया है .दुर्भाग्य से नाटो संगठन भी इस हमले के बाद मूक दर्शक बना हुया है ,कायदे से नाटो को यूक्रेन की मदद करना चाहिए थी ,किन्तु नाटो अपनी सेनाएं यूक्रेन की मदद केलिए नहीं भेज रहा ,इसका अर्थ ये है कि नाटो भी रूस के तेवरों से खौफ खा रहा है .
यूक्रेन और भारत के द्विपक्षीय संबंध है। भारत, यूक्रेन को पहले मान्यता देने वाले देशों में से एक है। इसलिए यहां के निवासियों में भारतीयों के लिए बहुत सम्मान है। भारत ने यहां की राजधानी कीव में अपना दूतावास मई 1992 में खोला गया। वहीं यूक्रेन ने एशिया में अपना पहला मिशन फरवरी 1993 में दिल्ली में खोला। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।पिछले 25 वर्षों में और 2018-19 में लगभग 2.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार हुआ है। यूक्रेन से भारत में निर्यात की जाने वाली मुख्य वस्तुएं कृषि उत्पाद, प्लास्टिक और पॉलिमर हैं। कीव खाना पकाने के तेल का एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता रहा है पिछले साल भारत में लगभग 74 फीसदी सूरजमुखी तेल की यूक्रेन से हुई थी। जबकि भारत फार्मास्यूटिकल्स, मशीनरी, रसायन, खाद्य उत्पादों का आयात करता है।
मौजूदा हालात में भारत हमलावर रूस के साथ भी अपने रिश्तों को दांव पर नहीं लगना चाहेगा .भारत के चीन के साथ रिश्ते पहले से कड़वाहट भरे हैं,ऐसे में यदि रूस से भी बिगड़ गयी तो मुश्किलें और बढ़ सकती हैं .परेशानी ये है कि यदि इस मामले में भारत रूस के साथ खड़ा होता है तो अमेरिका नाराज होता है और रूस के खिलाफ जाता है तो चीन के बाद उसका एक और शत्रु तैयार हो सकता है .आज भारत के पास जवाहरलाल नेहरू या इंदिरा गाँधी नहीं हैं जो पंचशील और निर्गुट सिद्धांत के आधार पर अपने आपको इस आग से बचा सकें .आज भारत के पास नरेंद्र मोदी हैं ,जिनकी अपनी विदेश नीति है .अफगानिस्तान के मुद्दे पर भी इसी तरह की अनिश्चितता हम देख चुके हैं .
भारत में यूक्रेन संकट के दौरान बेचैनी है ,क्योंकि यहां के करीब पंद्रह हजार छात्र फंसे हुए हैं. इन छात्रों की निकासी को लेकर भारत की रणनीति लोगों को ठीक नहीं लग रही. संकट में फंसे छात्रों को एयर इंडिया लूट रहा है .कायदे से इस समय सरकार को पूरा अभियान अपने नियंत्रण में रखना चाहिए था .लेकिन आम भारतीय सर्वशक्तिमान सरकार के सामने असहाय है .सरकार की प्राथमिकताएं कुछ और ही हैं. फिर भी हम ये नहीं कह सकते कि सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी होगी .सरकार अपने स्तर पर कुछ न कुछ तो कर रही होगी .क्योंकि आखिरकार सरकार को देश की सम्प्रभुता की फ़िक्र तो होगी ही .
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की इस मामले में रूस और अमेरिका के राष्ट्रपतियों से अभी तक बात नहीं हुई है ,बात होगी भी तो क्या हासिल होगा ,ये किसी को नहीं पता .अब सब भाग्य भरोसे हैं .भारतीय छात्र युद्ध के दौरान सकुशल रहें और सुरक्षित घर लौट आएं ये पूरे देश की कामना है .इस युद्ध से दुनिया का शक्ति संतुलन न बिगड़े ये बहुत जरूरी है .बिसंगति ये है कि आप न रूस को समझा सकते हैं और न यूक्रेन के साथ डटकर खड़े हो सकते हैं. दोनों ही स्थितियों में खतरा है. ऐसे में तटस्थता भी कितने काम आएगी कहा नहीं जा सकता ,क्योंकि अब दुनिया का परिदृश्य बदल चुका है .पुराने सिद्धांत खारिज किये जा चुके हैं या ख़ारिज किये जा रहे हैं .अब जो होगा सो आज के हिसाब से होगा न कि नेहरू युग के हिसाब से .हालाँकि इस संकट में भी गांधी का सिद्धांत काम आ सकता है .
यूक्रेन की राजनीति में रूस का दखल शुरू से रहा है.रूस को यूक्रेन की स्वायत्ता और आजादी हजम नहीं होती. रूस यूक्रेन में अलगाववादियों का समर्थन करता आया है. रूस ने यूक्रेन के उस राष्ट्रपति विक्टर का समर्थन किया था जिसका विरोध वहां की जनता ने किया था .सात साल पहले रूस व यूक्रेन में लगातार तनाव व टकराव को रोकने व शांति कायम कराने के लिए पश्चिमी देशों ने पहल की। फ्रांस और जर्मनी ने 2015 में बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में दोनों के बीच शांति व संघर्ष विराम का समझौता कराया किन्तु अंतत:ये भी नाकाम ही साबित हुआ .
भारत सरकार का रुख भले ही अस्पष्ट हो लेकिन भारत की जनता तो यूक्रेन की जनता के साथ ही सहानुभूति रखती है .युद्ध से आप देश जीत सकते हैं,वहां की जनता का दिल नहीं .दिल मुहब्बत से ही जीते जा सकते हैं .दिल जीतने का ये विकल्प रूस पहले ही खो चुका है .उम्मीद की जाना चाहिए कि ये युद्ध बहुत जंलद समाप्त होगा .वैसे भी महाबली रूस के सामने यूक्रेन कितने दिन टिक पायेगा,अंतत:संधि होगी और रूस की शर्तों पर होगी ,क्योंकि नाटो मौन है और अमेरिका अनिश्चय कि स्थिति में .अमेरिका की दशा सांप-छछूंदर जैसी हो गयी है .अमेरिका इस मामले में भारत का साथ चाहता है ,जो शायद ही उसे मिले .यूक्रेन और रूस के बीच जितनी जल्दी हो युद्ध समाप्त हो अन्यथा ये आग और ज्यादा फैलकर विश्व शान्ति के लिए खतरनाक साबित हो सकती है
युद्ध की विभीषका और हम
चैनल बंदी प्रतिशोध भरी कार्रवाई है
राजेश बादल
ख़बर विचलित करने वाली है । उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बीच में वहां का एक सर्वाधिक लोकप्रिय ख़बरिया समूह फोर पीएम के यू ट्यूब चैनल अचानक परदे से विलुप्त हो गया । तीन लाख से अधिक सब्सक्राइबर वाला यह चैनल अपने जन्म से ही धारदार समाचार विश्लेषण और वरिष्ठ पत्रकारों की बेबाक बयानी के लिए जाना जाता है । मौजूदा चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी समाजवादी गठबंधन तथा कांग्रेस की असल स्थिति को यह चैनल बड़ी निष्पक्षता से प्रस्तुत कर रहा था । देखते ही देखते किसी शो की दर्शक संख्या लाखों को पार कर जाए तो उसकी ज़िम्मेदारी और परिपक्वता का अनुमान लगाया जा सकता है ।चैनल के संपादक संजय शर्मा कहते हैं कि इसके पीछे यकीनन पेशेवर हैकर्स अथवा यू ट्यूब चैनल के प्रबंधन का हाथ है । पिछले तीन चरणों के मतदान का इस चैनल का सार यह था कि समाजवादी पार्टी बढ़त बना चुकी है और बीजेपी घाटे में है ।
संजय के मुताबिक़ उन्होंने मामले की एफ आई आर करा दी है और यू ट्यूब को नोटिस भेजा है । संदेह है कि कहीं इस चैनल को बंद करने के पीछे सत्तारूढ़ दल या सरकार का हाथ तो नहीं है । संपादक संजय शर्मा की ताबड़तोड़ कार्रवाई का अंजाम यह निकला कि चैनल की चरणबद्ध बहाली हो रही है ।एक एक करके पुराने शो और विश्लेषण दर्शक देखने लगे हैं। संजय शर्मा को मीडिया के तमाम वर्गों से भरपूर समर्थन मिला। जैसी कि फोर पीएम के संपादक को आशंका है कि इस मामले में उस व्यवस्था का हाथ हो सकता है ,जो उनके चैनल से प्रसन्न नहीं है।
दरअसल चैनल बंद होने से बीजेपी और सरकार की किरकिरी हुई । चुनाव के दौरान निष्पक्ष पत्रकारिता पर आक्रमण हो और सरकार चुप्पी साधे रहे ,तो अनेक संदेह जन्म लेते हैं । सवाल यह भी उठता है कि आम नागरिक की तरह पत्रकारों को मिली अभिव्यक्ति की आज़ादी उन्हें हासिल है या नहीं ? संचार के आधुनिक उपकरणों ने एक ओर काम में कुछ सहूलियतें प्रदान की हैं, वहीं मौलिक अधिकारों को कुचलने की साज़िशों में भी उनकी मदद ली जा रही है।कारोबारी होड़ हो तो बात समझ में आती है लेकिन विचार की स्वतंत्रता के खिलाफ़ सियासी षड्यंत्र सभ्य लोकतंत्र में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव भारतीय राजनीति के नज़रिए से हमेशा ही बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। सरकारें इन चुनावों में अपनी स्थिति को मज़बूत बनाए रखने के लिए नाना प्रकार की तिकड़में करती हैं।आशंका उपजती है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में निष्पक्ष पत्रकारिता पर दबाव डालने की कोशिशें हो सकती हैं। चूँकि केंद्र में सरकार बनाने का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर ही जाता है इसलिए इस राज्य में हिंदी पत्रकारिता की चुनौतियों का आकार विकराल होगा। विडंबना है कि जिस प्रदेश ने पत्रकारिता के कई गौरवशाली अध्याय लिखे ,वह आज उत्पीड़न की चपेट में है। इसे गंभीरता से लेने की ज़िम्मेदारी किसकी है मिस्टर मीडिया !
माता शबरी जयंती 24 फरवरी पर विशेष धैर्य, भक्ति और जूठे बेर?
पूर्णिमा दुबे
शबरी माता का असली नाम श्रमणा था। वह भील समुदाय के शबर जाति से संबंध रखती थी। इसी कारण उनका नाम शबरी पड़ गया। उनके पिता भीलों के मुखिया थे। उन्होंने श्रमणा का विवाह एक भील कुमार से तय किया। शबर जाति में विवाह से पहले अनेक पषुओं की बलि देने की प्रथा थी। यह देखकर श्रमणा बहुत दुखी हुई। पषुओं को बलि देने से रोकने के लिए विवाह से एक दिन पहले वो घर छोड़कर दंडकारण्य वन में चली गई।
मतंग ऋषि से भेंट
दंडकारण्य वन में मतंग ऋषि तपस्या करते थे। उनका एक आश्रम था जहां अन्य ऋषि मुनि भी रहकर तपस्या किया करते थे। श्रमणा भी वहां रहना और सेवा करना चाहती थीं। परन्तु भील जाति की होने के कारण मन में शंका भी थी। फिर भी वह सबके उठने के पहले ही आश्रम से नदी तक के पथ को साफ कर देती। कांटे-कंकड़ हटाकर साफ रेत बिछा देती कि किसी के पैरांे मंे कंकड़ न चुभे। यह सब कार्य वो चुपचाप किया करती।
एक दिन वो बड़ी लगन और समर्पण के भाव के साथ सफाई कार्य कर रही थी तभी मतंग ऋषि ने उन्हें देख लिया। वो उनका सेवाभाव देखकर बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने शबरी को अपने आश्रम में रहने के लिए आज्ञा दे दी। माता शबरी को तो मन चाही मुराद मिल गई। वह पूरी लगन और समर्पण के भाव के साथ आश्रम में रहते हुए सेवा कार्य करने में जुट गई। मतंग ऋषि का अंत समय आया तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम में ही रहकर भगवान श्री राम की प्रतीक्षा करें। वे इस आश्रम में आएंगे तो उनकी सेवा करके पुण्य प्राप्त करना।
मतंग ऋषि की मृत्यु के बाद शबरी का पूरा जीवन हर क्षण मात्र भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा। वह प्रातः उठकर नदी से स्वच्छ जल लाती, रास्तें को बुहारकर उसमें साफ रेत बिछाती और ताजे फूलों को बिछाती। स्वादिष्ट फल वन से तोड़कर लाती और उसे साफ करती। भगवान राम की प्रतीक्षा उन्होंने बड़ी लगन और समर्पण के साथ लंबे समय तक की। एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं। वे समझ गयी कि भगवान राम आए हैं। अब तक वृद्ध हो चली माता शबरी के शरीर में तो मानो नवजीवन का संचार हो गया। बेहद प्रसन्नता के कारण उन्हें मानो सूझ ही न रहा था कि क्या करें। वृद्ध शरीर में युवा समान चुस्ती आ गई और वह भागती हुई भगवान राम के पास पहुंची।
भगवान राम का आगमन
भगवान राम को पूर्ण सम्मान और आदर के साथ आश्रम में लाई और उन्हें आसन पर बिठाया। चरण धोकर स्वादिष्ट फल परोसे। यह सुनिष्चित किया कि फल स्वादिष्ट हों और उनमें किसी तरह की कमी न हो।
जूठे बेर?
कहा जाता है कि माता शबरी ने अपने जूठे बेर भगवान श्री राम को खिलाए। पर इस तथ्य का वर्णन घटना के मूल स्त्रोत महर्षि वाल्मीकि की रामायण में है और न ही तुलसीदास रचित रामचरित मानस में। फिर यह तथ्य प्रचारित कैसे हुआ? बचपन से या कहूं जब से बुद्धि ने परखना-समझना शुरु किया तब से मन में आता रहा है कि हम बिना स्नान किये भगवान की ना तो पूजा करते हैं और ना ही उन्हें भोग अर्पित करते हैं। यदि हम सामान्य जन ऐसा नहीं करते तो माता शबरी जो भक्ति की पर्याय रहीं वो अपने जूठे बेर कैसे भगवान को खिला सकती हैं? शहर के बुद्धिजनों से चर्चा की तो समझ आया कि जंगल में फल ही भोजन के लिए उपलब्ध होते हैं। माता शबरी भी बेर एवं अन्य फल तोड़कर लाती और उसी का भोजन किया करती थी। यदि कोई अतिथि आता तो उन्हें भी फल ही परोसती। फल चखकर या जूठा करके नहीं। फिर उनके भक्तिमय व्यक्तित्व के साथ ऐसा अन्याय क्यों किया गया, यह समझ से परे है। अब यदि मां रसोई में भोजन बनाते हुए परिवार के सदस्यों को भोजन करवा रही है तो दूसरे या तीसरे नंबर पर भोजन करने वाले सदस्य को जूठा भोजन परोसा जा रहा है, ऐसा तो कतई नहीं कहा जा सकता।
नवधा भक्ति
भगवान श्री राम ने शबरी को नवधा भक्ति का संदेष दिया और सीता माता को ढूंढने के लिए सहायता भी मांगी। माता शबरी ने कहा कि सृष्टि के रचियता जो सब कुछ जानने वाले हैं उन्हें सीता माता का पता न मालूम हो, ऐसा कैसे संभव है। पर ससम्मान जो जानकारी उनके पास थी वो उन्होंने भगवान श्री राम को दी। उन्होंने पंपा सरोवर की तरफ जाने और सुग्रीव से मित्रता करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सुग्रीव उन्हें माता सीता के पास तक ले जाएंगे। इसके बाद योगाग्नि से शरीर को त्याग कर मोक्ष प्राप्त किया।
धैर्य और भक्ति का पर्याय
कहते हैं कि माता शबरी को भगवान राम के आने के बारे में जब बताया गया तब वह अल्पायु थीं और उस समय तो भगवान श्री राम का जन्म भी न हुआ था। उन्होंने अपना पूरा जीवन गुरु की सेवा और भगवान राम की प्रतीक्षा में बिता दिया। धैर्य और भक्ति का इससे अच्छा उदाहरण इस संसार में नहीं है।
शबरी धाम
दक्षिण-पष्चिम गुजरात के डांग जिले के आहवा से 33 किलोमीटर और सापुतारा से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर सुबीर गांव के पास स्थित है। माना जाता है कि शबरी धाम वही स्थान है जहां शबरी और भगवान राम की मुलाकात हुई थी। शबरी धाम अब एक धार्मिक पर्यटन स्थल में परिवर्तित होता जा रहा है।
चेला पस्त,गुरु अस्त
राकेश अचल
ज्योतिष में गुरु के अस्त होने के मायने अलग हैं ,लेकिन लोकजीवन में गुरु के अस्त होने के मायने अलग हैं .अस्त होना यानि डूबना .अदृश्य होना समाप्त होना माना जाता है .ये तीनों ही क्रियाएं अशुभ मानी जाती हैं .गुरु के अस्त होते ही ज्योतिषी कह देते हैं कि अब कोई शुभ कार्य नहीं होगा .बावजूद राजनीति के लोग नहीं मानते .वे अपनी धुन में मस्त रहते हैं .
हमारे एक प्रिय कवि थे प्रदीप चौबे. अब नहीं हैं किन्तु उनकी कविताएं आज भी हैं .उन्होंने एक बार लिखा था –
‘ जिस पे देवी का हस्त है प्यारे
उसका पिल्ला भी मस्त है प्यारे
मुझे लगता है कि प्रदीप जी की बात भी गुरु के अस्त होने से जुड़ी हुई है ,अन्यथा गुरु के अस्त होने की खबर से ही चेलों के चेहरों पर उदासी की स्याही उभरती न दिखाई देती .भारत की राजनीति में इन दिनों गुरु-चेले का युग चल रहा है. परिवारवाद का युग पीछे चला गया है ,हालांकि परिवारवाद पूरी तरह अस्त नहीं हुआ है .उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में गुरु के अस्त होने के आसार मतदान के हर चरण के बाद बढ़ते दिखाई देते हैं .लेकिन मै उन लोगों में से हूँ जो तब तक किसी बात पर भरोसा नहीं करते जब तक की उसे आँखों से देख न लें .
गुरु का अस्त होना एक तय क्रिया है ,लेकिन गुरु कोई हमेशा के लिए तो अस्त नहीं होता ! वापस उदय भी होता है .इसीलिए मुझे लगता है कि उत्तर प्रदेश में भी गुरु और गुरु घंटाल मिलकर कोई खेल आखरी वक्त में न कर दिखाएँ .सत्ता में बने रहने के लिए केवल गुरु होने से काम नहीं चलता.गुरु का गुरुघंटाल होना बहुत जरूरी है .संयोग से इस मामले में हमारे नेता एक से बढ़कर एक हैं .वे केवल सत्तारूढ़ दल में ही नहीं अपितु हर दल में हैं.गुरु घंटाल हर दल की जरूरत है .
पंचांग के अनुसार गुरु 32 दिनों के लिए अस्त हो रहे हैं. 27 मार्च 2022 को गुरु उदय होंगे. गुरु अस्त होने से मेष से मीन राशि तक के जातकों पर इसका प्रभाव पड़ेगा.सुना है कि गुरु की राशि बृश्चिक और चेले की कुम्भ राशि है इसलिए इनके अस्त होने और न होने के अवसर फिफ्टी-फिफ्टी हैं. गुरु के अस्त होने से क्या-क्या अस्त हो सकता है कह पाना कठिन है ,क्योंकि आने वाले 32 दिन देश पर भारी लगते हैं .इन दिनों में देश की राजनीति क्या करवट लेगी,कोई नहीं जानता .कम से कम मै तो नहीं जानता .
अब देखिये न राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गुरु अस्त होने से पहले ही एक के बाद एक लोक लुभावन घोषणाएं कर डालीं. वे पुरानी पेंशन बहाल करने जा रहे हैं. एक लाख नौकरियां देने जा रहे हैं ,50 यूनिट बिजली मुफ्त में देने जा रहे हैं .विधानसभा चुनाव से पहले ही इस तरह की घोषणाएं या तो कोई जादूगर कर सकता है या फिर कोई गुरुघंटाल .संयोग से अशोक गहलोत दोनों का समिश्रण हैं . वे बीते वर्षों में अपना जादू भी दिखा चुके हैं और गुरुत्वाकर्षण भी .भाजपा ऐडही-छोटी का जोर लगाकर भी राजस्थान की सत्ता नहीं हथिया पाई .भाजपा को वहां कोई राजघराना इस काम के लिए नहीं मिला .
हमारे ज्योतिषी ने गुरु को सलाह दी है कि गुरु आपके चतुर्थ भाव में अस्त हो रहे है। जिसे सुख या माता का स्थान कहा जाता है। इस दौरान माता की सेहत का ध्यान रखें। कार्यस्थल पर आपको मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।कुम्भ राशि वाले चेले कि लिए ज्योतिषियों की सलाह है कि गुरु अस्त आपके लिए स्वास्थ्य संबंधी परेशानी ला सकता है। इस दौरान किसी भी तरह का फैसला जल्दबाजी में न लें। नौकरी में स्थान परिवर्तन संभव है।संयोग से गुरु कि अस्त होने का हमारी राशि वालों पर ज्यादा असर नहीं पड़ता दिखाई दे रहा .हालाँकि तुला राशि वालों के गुरु अस्त की अवधि में सुख-सुविधाओं में कमी आएगी। जमीन-जायदाद लेने की सोच रहे हैं तो, मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। किसी भी तरह का जल्दबाजी में फैसला न लें।
फैसला करने में हम तुला राशि वाले पहले से फिसड्डी हैं और शायद इसीलिए भाजपा वाले तुला राशि कि नेताओं को नेता नहीं मानते और उन्हें पप्पू कहते हैं .ये बात और है कि इन पप्पूओं की वजह से गुरु जी की रातों की नींद और दिन का चैन हराम रहता है .तुला राशि वालों कि पास बिच्छू जैसा डंक नहीं होता फिर भी वे सबसे अलग होते हैं .वे कुम्भ राशि वालों की तरह भगवाधारी भी नहीं होते .बहरहाल बात गुरु कि अस्त होने की है .भगवान न करे की किसी का भी गुरु अस्त हो .
गुरु कि अस्त होते ही तमाम शुभ कार्यों पर ब्रेक लग जाता है .इस वजह से हमारे जैसे दिहाड़ी मजदूरों की रोजी-रोटी पर बन आती है .हम दिहाड़ी मजदूरों कि लिए तो चुनाव भी किसी उत्सव से कम नहीं होता .इस दौरान कम से कम हमें दो जून की रोटी तो हासिल हो ही जाती है .हम मजदूर मेहनत करते हैं और सबके लिए करते हैं.दलगत भाव से ऊपर उठकर करते हैं .हमें हमारी मजदूरी से मतलब .किसका गुरु डूब रहा है और किसका उदित हो रहा है ,इससे हमें कोई लेना-देना नहीं होता .फिर भी हर दिहाड़ी मजदूर चाहता है कि गुरु कम से कम दिनों केलिए अस्त हो ताकि देश में शुभ कार्य चलते रहें,बंद हों .
ज्योतिषी हर वक्त सही हों ये भी सच नहीं है. अब देखिये न हमारे हत्यारे राम-रहीम और कवियारे कुमार विश्वास का भाग्य गुरु अस्त होने से पहले ही उदित हो गया .दोनों को जेड और वाय श्रेणी की सुरक्षा मिल गयी .हम जैसे आम आदमी तो कल भी असुरक्षित थे और आज भी असुरक्षित हैं .हमारी सुरक्षा की परवाह किसी को नहीं है .ये विशेष सुरक्षा चक्र भी गुरु घंटालों कि लिए बने हैं .कोई अदालत इन्हें गैरकानूनी नहीं मानती .मुमकिन है कि आने वाले दिनों में सरकार ऐसा क़ानून ही बना दे कि फर्लो जैसी जमानतों पर जेल से बाहर आने वाले हर बाबा-बैरागी और चारण-भाट को सरकार की और से निशुल्क विशेष श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की जाएगी .वैसे भी सरकार ने अनेक नेताओं की सुरक्षा कम कर दी है इसलिए राम-रहीम बिरादरी कि लोगों को विशेष सुरक्षा चक्र उपलब्ध करने में कोई परेशानी नहीं हैं .
यूक्रेन पर हमले का तीसरा दिन: कीव में रूसी सैनिक घुसे, आमने-सामने की जंग शुरू
TIO NEW DELHI
रूस की सेना यूक्रेन पर हमलों की रफ्तार तेज करते हुए जल्द ही कीव पर कब्जा कर सकती है। पिछले तीन दिनों में रूसी सेना ने यूक्रेन पर चार तरफ से हमला कर उसकी सेना को पीछे हटने पर मजबूर किया है। हालांकि, राजधानी कीव अभी तक रूसी सेना के कब्जे से दूर रही थी। अब खुद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने चिंता जताई है कि कीव पर रूसी सेना के कब्जे का खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने कहा कि आज की रात हमारे लिए सबसे कठिन होने वाली है, लेकिन हमें खड़े रहना होगा। बताया गया है कि जेलेंस्की को अमेरिका की तरफ से यूक्रेन छोड़ने का प्रस्ताव मिला था। लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। यूक्रेन पर रूस के हमले का आज तीसरा दिन है। शनिवार को राजधानी कीव समेत यूक्रेन के सभी अहम शहरों में धमाके हुए हैं। रूसी सैनिक राजधानी कीव में दाखिल हो गए हैं और यूक्रेनी सैनिकों से उनकी आमने-सामने की लड़ाई शुरू हो चुकी है। इस बीच यूक्रेन ने 300 रूसी पैराट्रूपर्स से भरे दो प्लेन मार गिराने का दावा किया है। रूसी सैनिकों ने कीव के एयरपोर्ट पर कब्जा कर लिया है।
रूस की ओर से यूक्रेन पर जारी हमलों के बीच भारत ने अपने नागरिकों को निकालने की कोशिश तेज कर दी है। एयर इंडिया का एक रेस्क्यू विमान शनिवार सुबह ही रोमानिया के बुखारेस्ट पहुंच गया। यह विमान रूस की सीमा तक पहुंचने वाले भारतीयों को लेकर वापस आएगा।
यूक्रेन संकट: भारतीय दूतावास की अपील- बिना बताए सीमाई इलाकों पर न जाएं
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद वहां फंसे भारतीय नागरिकों को निकालने के प्रयासों के बीच यूक्रेन में भारतीय दूतावास ने नागरिकों से उसके अधिकारियों के साथ समन्वय के बिना सीमा चौकियों पर नहीं जाने को कहा है। भारतीय दूतावास ने कहा, ‘‘सीमा जांच चौकियों पर स्थिति संवेदनशील है। भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए हम पड़ोसी देशों में हमारे दूतावासों के साथ काम कर रहे हैं।’’ उसने कहा,‘‘ हमारे लिए उन भारतीयों को निकालना मुश्किल हो रहा है जो बिना सूचना दिए सीमा जांच चौकियों पर पहुंच गए हैं। जो भारतीय नागरिक पूर्वी क्षेत्र में हैं, उनसे अगले निर्देश तक अपने निवास स्थान पर रहने का अनुरोध किया जाता है।’’ दूतावास ने भारतीय नागरिकों से कहा कि वे अनावश्यक गतिविधि से बचे, सावधानी बरतें, अपने आसपास की घटनाओं और हाल के घटनाक्रम को लेकर चौकन्ना रहें।
यूक्रेन ने मार गिराए रूस के दो सैन्य परिवहन विमान
रूस के दूसरे इल्युशीन 1आई-76 सैन्य परिवहन विमान को बिला सेरकवा के निकट मार गिराया गया। यह स्थान राजधानी कीव से 85 किलोमीटर दक्षिण में है। यूक्रेन में जमीनी हकीकत पर निगाह रखने वाले दो अमेरिकी अधिकारियों ने यह जानकारी दी। शुक्रवार को यूक्रेन की सेना ने कहा था कि उसने रूस के सैन्य परिवहन विमान को मार गिराया है। सेना के जनरल स्टॉफ की ओर से जारी बयान के अनुसार पहले 1आई-76 भारी परिवहन विमान को कीव के दक्षिण में स्थित शहर वासेकीव के निकट मार गिराया गया। रूस की सेना ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है और खबर की तत्काल पुष्टि नहीं हो सकी है।
एयर इंडिया का विमान यूक्रेन में फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए बुखारेस्ट रवाना
एयर इंडिया के एक विमान ने रूस के आक्रमण के चलते यूक्रेन में फंसे भारतीयों को स्वदेश लाने के वास्ते रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट के लिए शनिवार सुबह मुंबई हवाईअड्डे से उड़ान भरी। वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने बताया कि उड़ान संख्या एआई1943 ने तड़के करीब तीन बजकर 40 मिनट पर मुंबई हवाईअड्डे से उड़ान भरी और उसके भारतीय समयानुसार सुबह करीब दस बजे बुखारेस्ट हवाईअड्डे पर पहुंचने की संभावना है। उन्होंने बताया कि जो भी भारतीय नागरिक सड़क मार्ग से यूक्रेन-रोमानिया सीमा पर पहुंच गये हैं, उन्हें भारत सरकार के अधिकारी बुखारेस्ट ले जायेंगे ताकि उन्हें एअर इंडिया की उड़ानों के जरिए स्वदेश लाया जा सके। एयर इंडिया यूक्रेन में फंसे भारतीय नागरिकों को स्वदेश लाने के लिए बुखारेस्ट और हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट के लिए शनिवार को और उड़ानें संचालित करेगी।
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास किया गया। इस प्रस्ताव के पक्ष में 11 और विपक्ष में 1 वोट पड़ा। भारत, चीन और UAE ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। हालांकि, रूस ने वीटो पावर का इस्तेमाल कर इस निंदा प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
जरूरी अपडेट्स…
रूस से लड़ने के लिए अमेरिका यूक्रेन को 600 मिलियन डॉलर की मदद देगा। इसके तहत यूक्रेन को घातक रक्षा हथियार दिए जाएंगे।
रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा है कि रूस का यूक्रेन पर कब्जे का कोई इरादा नहीं है। अगर यूक्रेन की सेना हथियार डालती है तो मॉस्को बातचीत के लिए तैयार है।
यूक्रेन ने दावा किया कि उसने रूसी विमान को मार गिराया है। इस विमान में 150 रूसी पैराटूपर्स सवार थे। कितने मारे गए और कितने बचे.. यह जानकारी नहीं दी।
यूक्रेन के प्रेसिडेंट जेलेंस्की ने कहा कि आज रात राजधानी कीव पर रूसी सैनिकों का हमला होगा। उन्होंने नागरिकों से जंग में कूदने की अपील की है।
यूक्रेन स्थित भारतीय दूतावास ने भारतीय नागरिकों को बिना अधिकारियों के साथ बातचीत किए बॉर्डर के इलाकों में जाने से मना किया है।
अमेरिका ने यूक्रेन जाने वाले नागरिकों के लिए लेवल-4 की वॉर्निंग ट्रैवल एडवाइजरी जारी की, इसमें नागरिकों को संवेदनशील जगहों पर न जाने की चेतावनी दी गई है।
ब्रिटेन ने पुतिन और उनके विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की सभी संपत्तियों को जब्त करने का आदेश दिया। कनाडा और यूरोपियन यूनियन ने रूस को स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम से बाहर करने की बात कही।
इंटरनेशनल न्यूज एजेंसी AP के मुताबिक, अगर पश्चिमी देशों के साथ युद्ध शुरू होता तो पुतिन परमाणु हथियार का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
फ्रांस ने यूक्रेन को 300 मिलियन यूरो की सहायता और मिलिट्री इक्विपमेंट भेजने की पेशकश की। EU में पुतिन की यूरोप में मौजूद सभी सम्पत्ति जब्त करने पर सहमति बन गई है।
भारत ने रूस के खिलाफ प्रस्ताव पर वोट नहीं किया, जानिए 3 वजहें
- संयुक्त राष्ट्र में भारत के रिप्रेजेंटेटिव टीएस तिरुमूर्ति ने कहा- इस बात का अफसोस है कि डिप्लोमैसी का रास्ता छोड़ दिया गया है, हमें उस पर लौटना होगा। इन सभी वजहों से भारत ने इस प्रस्ताव पर परहेज करने का विकल्प चुना है।
- तिरुमूर्ति बोले- सभी सदस्य देशों को कंस्ट्रक्टिव तरीके से आगे बढ़ने के लिए यूएन के सिद्धांतों का सम्मान करना जरूरी है। आपसी मतभेदों और विवादों को निपटाने के लिए डायलॉग ही एकमात्र तरीका है, हालांकि इस समय यह मुश्किल लग सकता है।
- भारत ने कहा कि यूक्रेन में हाल के घटनाक्रम से भारत बहुत ज्यादा परेशान हैं। हिंसा और दुश्मनी को जल्द खत्म करने की सभी कोशिशें की जाएं। इंसानी जान की कीमत पर कोई भी हल नहीं निकाला जा सकता है।
मतदानकर्मी पर साइकिल का बटन दबवाने का आरोप
यूपी में आज चौथे चरण का मतदान जारी है। लखनऊ, सीतापुर, खीरी, हरदोई, उन्नाव, रायबरेली, बांदा, फतेहपुर और पीलीभीत जिले में आज वोटिंग हो रही है। 11 बजे तक 22.62 प्रतिशत वोटिंग हो चुकी है। मोहनलालगंज में नगराम नगर पंचायत के बूथ संख्या 389 पर भाजपा समर्थकों ने अंदर कर्मचारी पर वोटर से साइकिल वाला बटन दबाने का आरोप लगाते हुए हंगामा किया। वहीं, केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी ने कड़ी सुरक्षा में मतदान किया।
सरोजनीनगर में फर्जी वोटिंग का आरोप
लखनऊ जिले की 170 सरोजनीनगर विधानसभा के बूथ नंबर 472 पर फर्जी वोटिंग की जा रही है मतदाताओं को कहा जा रहा है कि आपका वोट पहले ही पड़ गया। चुनाव आयोग संज्ञान लें और फर्जी वोटिंग पर रोक लगवाई जाए।
यूपी विधानसभा के चौथे चरण में आज 9 जिलों की 59 सीटों पर वोटिंग हो रही है। यहां दोपहर एक बजे तक 37.45% मतदान हुआ है। इनमें सबसे ज्यादा 41.21% वोट पीलीभीत में पड़े हैं। 40.97% के साथ लखीमपुर खीरी दूसरे नंबर पर है। कुछ देर पहले लखीमपुर खीरी के बनबीरपुर में केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी वोट डालने पहुंचे। उनकी सुरक्षा में बड़ी तादाद में जवान तैनात थे। इस दौरान पत्रकार उनसे सवाल करते रहे, लेकिन जवाब नहीं मिला। टेनी के बेटे अजय पर लखीमपुर में किसानों को जीप से कुचलकर मार देने का आरोप है।
- लखीमपुर में सिसैया बूथ नंबर 145 पर मतदान कर्मी को दिल का दौरा पड़ा। उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया है।
- लखीमपुर में दो बड़ी शिकायतें मिली हैं। यहां के कादीपुरसानी गांव के बूथ नंबर 109 पर शरारती तत्व ने ईवीएम में फेवीक्विक डाल दी। सपा प्रत्याशी का आरोप है कि उनकी पार्टी का बटन चिपकाया गया। हंगामा होने के बाद यहां मतदान रोक दिया गया है।
- लखीमपुर के ही बूथ नंबर 85 पर मॉकपोल के दौरान कोई भी बटन दबाने पर कमल की पर्ची निकल रही थी। इसको लेकर मतदान दो घंटे रुका रहा। मामला सामने आने के बाद अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर नई ईवीएम मशीनें दीं। इसके बाद करीब 9 बजे मतदान दोबारा शुरू हो सका।
- उन्नाव की कई विधानसभाओं में लोगों ने बिजली और पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं न होने से मतदान बहिष्कार किया है। मल्झा, मिर्जापुर अझिगांव और पैगम्बरपुर गांव में लोग वोट डालने नहीं जा रहे हैं। इसके चलते 5 घंटे बाद भी मतदान शुरू नहीं हुआ।
- बांदा जिले में नरैनी के संगमपुर मतदान केंद्र पर कुछ महिला वोटर ने मतदान से रोके जाने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि उन्हें पीठासीन अधिकारी ने यह कहकर रोक दिया कि पहले पुरुष वोट डालेंगे।
अपनी-अपनी जीत के दावे
यूपी में चुनावी पंडित चाहे जो अनुमान लगाएं, लेकिन फिलहाल हर पार्टी के नेता अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ में वोट डाला। इसके बाद उन्होंने मीडिया से कहा- उत्तर प्रदेश में भाजपा न सिर्फ इतिहास दोहरा रही है, बल्कि इस बार हम पहले से अधिक सीटों के साथ जीत दर्ज करेंगे। डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने दावा किया कि चौथे चरण के बाद बीजेपी दोहरा शतक लगाएगी।
इससे पहले लखनऊ में वोट डालने के बाद मायावती ने कहा कि इस बार मुसलमान पूर्व सीएम अखिलेश से खुश नहीं हैं। लोगों ने सपा को नकार दिया है, क्योंकि उसे वोट देने का मतलब गुंडा राज और माफिया राज है, उनकी सरकार में विकास नहीं दंगे होते हैं।
इन्हर व्हील का 24 फरवरी का भोपाल में होगा आयोजन
TIO BHOPAL
अंतरराष्ट्रीय महिला संस्था “इन्हर व्हील “द्वारा अतंर्राष्ट्रीय संस्था “इन्हर व्हील “का 37 वां वार्षिक समारोह “गर्विता”भोपाल में 24 फरवरी 2022 को सुबह 11 बजे से ‘सफल रिट्रीट में किया जाएगा। ये जानकारी समारोह की अध्यक्ष सुश्री रीता वर्मा ने दी। समारोह में मुख्य अतिथि, इन्हर व्हील डिस्ट्रक्ट 304 की चैयरमेन सुश्री प्रज्ञा पारीक होंगी व विशेष वक्ता एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित होंगी मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की निदेशक, सुश्री नुसरत मेहंदी साहिबा विशेष अथिति होंगे रोटरी गवर्नर, कर्नल महेंद्र मिश्रा..समारोह में प्रसिध्द नृत्यांगना सुश्री लता मुंशी एवं शिष्याओं का नृत्य और प्रसिद्ध गायिका सुश्री कीर्ति सूद का गायन भी होगा। उन्होंने बड़ी संख्या में महिलाओं से उपस्थित होने की अपील की है।
1857 का गदर और राकेश अचल का ‘गद्दार’
राकेश अचल
1857 का गदर, भारतीय इतिहास का पहला आजादी का आंदोलन कहा जाता है। हालांकि मेरी राय हमेशा से इससे अलग रही है। खैर, मेरी राय से फर्क भी क्या पड़ता है। आज तो बात हम ‘गद्दार’ की कर रहे हैं। पत्रकारिता की दुनिया के भीष्म Rakesh Achal जी ने एक ऐसी किताब लिखने की गुस्ताखी की है, जिसमें वो किसी भी पक्ष के साथ खड़े नहीं हो सकते हैं। हालांकि सबसे महत्वपूर्ण यही है कि किताब नाम से उतना ही मेल खाती है, जितना कि अचल जी अपने नाम से। वो हमेशा चलायमान ही रहते हैं, जबकि नाम पर अचल जोड़कर रखते हैं।
खैर, किताब 1857 के गदर पर है और सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता के तथ्यों को उकेरती है। उत्तर प्रदेश बोर्ड से पढ़ा हूं तो इस कविता में एक लाइन भी पढ़ी थी…’अंग्रेजों के मित्र सिंधिया’। इस बात को पूरे इतिहास पटल पर ऐसे प्रचारित किया गया कि पूरा गदर सिर्फ सिंधिया परिवार की वजह से विफल रहा। यह बात और है कि इतिहास इससे अलग कहता और बोलता है। उसी इतिहास की कुछ बातों पर प्रकाश डालने का प्रयास इस किताब में नजर आता है। उस दौर के घटनाक्रम को एक कथानक के साथ जोड़ने का प्रयास किया गया है। बताया गया है कि कैसे अंग्रेजों के साथ संधि और अपने राज्य के हालातों के दबाब में तत्कालीन सिंधिया शासक जयाजीराव वो नहीं कर सके, जो वह करना चाहते थे।
यह बात सही है कि सिंधिया रियासत उस दौर में निजामों के बाद सबसे बड़ी रियासत थी, लेकिन उस वक्त की सच्चाई भी यही है कि वह अंग्रेजों के रहम पर ही थी। अगर सिंधिया ने तात्कालिक घटनाक्रमों को मद्देनजर अंग्रेजों से संधि और मित्रता नहीं की होती तो शायद ग्वालियर का अस्तित्व वैसा शेष नहीं रहता, जैसा आज बचा है। अंग्रेजों से उनके पनिहार युद्ध की कुछ घटनाओं पर यह किताब प्रकाश डालती है। दूसरी बात यह भी है कि जिस तरीके से सिंधिया से मदद मांगी गई थी, उस तरीके से सिंधिया ने हमेशा विद्रोहियों की मदद की।
फिर जब रानी खुद अपनी रियासत बचाने की लड़ाई लड़ रही थीं। बहादुरशाह जफर खुद अपनी बादशाहत को बचाने के लिए बेमन से बागियों के नेता बने थे। ऐसे में कौन बिना परिणाम के युद्ध में कूद जाता। मैं सिंधिया परिवार के उस समय के घटनाक्रम को आज के वक्त में सफाई के तौर पर नहीं देख रहा हूं। लेकिन अगर उस समय के तात्कालिक घटनाक्रमों को जोड़कर देखें तो शायद उस खानदान ने वही किया जो ग्वालियर को जरूरत थी।
दूसरों की लड़ाई में अपना घर फूंक देना ठीक वैसा ही कहा जाएगा कि रूस और यूक्रेन की लड़ाई में भारत जबरन का एक पक्ष बनकर खड़ा हो जाए। आज रूस भी भारत का मित्र है और अमरीका भी भारत के साथ है। ऐसे में भारत कौन सा पक्ष चुनेगा। संभव है कि भारत खामोशी का रास्ता अख्तियार करेगा और अपने करीबी दोस्त की खामोशी से मदद करेगा। ‘अंग्रेजों के मित्र’ होने के बाद भी सिंधिया ने विद्रोहियों के लिए वो सब कुछ किया।
हमेशा हार का ठीकरा फोड़ने के लिए कोई बहाना चाहिए होता है, वही हुआ। झांसी की रानी पर सवार होकर यह गदर शुरू हुआ और पेशवाओं की बेवकूफी के साथ खत्म भी हो गया। अपनी गलतियों का ठीकरा ग्वालियर रियासत पर थोप दिया। इतिहास को करीब से जाकर देखो तो कुछ यही कहता है। राकेश अचल की किताब भी कुछ इन्हीं तथ्यों के साथ आगे बढ़ती है और इस धुंधलके से पर्दा हटाती है।
किताब का कथानक उन लोगों के लिए हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है, जो इतिहास को करीब से देखना और समझना चाहते हैं। भाषा तो खैर आपको एक बार में ही किताब पढ़ने के लिए उत्तेजित करेगी। हां, एक बात की शिकायत जरूर रही कि कई मौकों पर किताब इतनी तेजी से कथानक को छोड़कर गुजरी है कि वहां पर लगा कि कहानी का थोड़ा सा ठहराव और विस्तार यहां पर होना चाहिए था। कुल मिलाकर एक बेहतरीन कहानी।
खैर, वो इस किताब को बिलकुल न पढ़ें, जो अपनी राय बनाकर बैठे हैं। बेहतर यही होता है कि इतिहास को कभी एक नजरिए से देखने की कोशिश कभी न करें। दोनों पक्ष देखें और फिर खुद बेहतर तरीके से समझें।
इंदौर :सफाई और कायरता में नंबर एक
राकेश अचल
आज का शीर्षक पढ़कर तय है कि इंदौर के लोग बिलबिला जायेंगे ,लेकिन जो सच है सो सच है .मै इंदौर का प्रशंसक नंबर एक हूँ, तो इंदौर से ईर्ष्या करने वालों में भी शुमार किया जा सकता हूँ ,लेकिन इंदौर के सिस्टम की कायरता ने इंदौर के बारे में मेरी धारणा बदल दी है .दो साल पहले एक विधायक के हाथों मार खाने वाले नगर निगम कर्मियों का अदालत के सामने साफ़-साफ़ झूठ बोलना मुझे परेशान कर गया .
इंदौर केवल सफाई के मामले में ही अग्रणीय नहीं है बल्कि विकास के मामले में भी अग्रणीय है .मै जब भी इंदौर आता हूँ यहां कुछ न कुछ नया होता देखता हूँ ,यहां मशीन और मजदूर हमेशा व्यस्त दिखाई देते हैं और ये बात मुझे अच्छी लगती है. विकास कार्यों की भरमार की वजह से इंदौर में केवल ईंट,गिट्टी.रेत ही नहीं बल्कि सभी कुछ दूसरे शहरों के मुकाबले 30 फीसदी से भी ज्यादा मंहगा है .इंदौर का विकास अनेक मामलों में चतुर्दिक है .इसमें असंतुलन कम है ,यहां महानगरों में होने वाली दुश्वारियों की भी कमी नहीं है बावजूद इसके इंदौर एक अव्वल शहर है .
हर साल साफ़ सफाई में अव्वल आने वाला इंदौर झूठ बोलने और कायरता का प्रदर्शन करने में भी अव्वल निकलेगा,ये मैंने कभी सोचा नहीं था. सत्तारूढ़ पार्टी के एक विधायक के आपराधिक कृत्य के खिलाफ अदालत में होस्टाइल होना दर्शाता है कि इंदौर में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है .यहां के चतुर्दिक विकास में बाहुबल भी एक बड़ा कारक है ,यदि ऐसा न होता तो दिन -दहाड़े मदाखलत अमले पर क्रिकेट का बल्ला चलने वाले विधायक को सजा जरूर मिलती ,लेकिन ऐसा नहीं हुआ .जाहिर है कि फरयादी को इंदौर में रहना है तो बाहुबलियों की जय-जय भी कहना ही होगी,अन्यथा इंदौर में रहना आसान नहीं होगा .
मामला चूंकि इंदौर का है इसलिए जो हुआ उसके बारे में इंदौर के लोग मंथन करें किन्तु मै इस घटना को पूरे प्रदेश के सन्दर्भ में देखता हूँ और परेशान होता हूँ .सवाल ये है कि ऐसे विकास का क्या फायदा जिसमें आम आदमी डर-डर कर जीता हो ? निर्भयता विकास की पहली शर्त और जरूरत होती है .इंदौर में जैसे दूसरे क्षेत्रों में विकास हो रहा है वैसे ही जन प्रतिनिधियों के आतंक में भी इजाफा हो रहा है .ये खतरनाक है. आगे-पीछे यही आतंक जनता का ही नहीं बल्कि सिस्टम और सरकार का सिरदर्द बन जाएगा .
इंदौर खुशनसीब है कि उसके ऊपर हमेशा से सत्ता का वरदहस्त रहा है. प्रदेश के नेता किसी भी दल के हों इंदौर में निवेश करते हैं .मै अपने इलाके के ही बहुत से नेताओं और नौकरशाहों को जानता हूँ जिनका तमाम निवेश इंदौर में है.नेताओं और नौकरशाहों का निवेश खेती-बाड़ी की आमदनी से नहीं आता .कैसे आता है ये सब जानते हैं ,इसलिए इंदौर ने हर मामले में दूसरे शहरों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही पाया है .निवेश के अनुकूल वातावरण की वजह से यहां जर,जमीन और इसी से वास्ता रखने वाली दूसरी चीजों की कीमतें आसमान छू रहीं हैं .जैसे नेताओं के लिए इंदौर प्रदेश का स्वर्ग है वैसे ही नौकरशाही के लिए भी इंदौर स्वर्ग है. क्योंकि यहां सेवाएं देकर कोई भी मेवा हासिल कर सकता है और अपनी हैसियत से ज्यादा हासिल कर सकता है किन्तु ये सम्पन्नता ही इंदौर में रहने की कीमत आपको कायर बनाकर वसूल करती है .
बात एक विधायक के आपराधिक कृत्य के मामले में अदालत के सामने झूठ बोलने की थी लेकिन बात निकली तो दूर तक चली गयी .मै बीते पांच दशकों से इंदौर आता जाता रहता हूँ .यहां मेरा भी एक छोटा सा आशियाना है ,लेकिन मुझे यहां की भागमभाग और गलाकाट प्रतिस्पर्धा देखकर घबड़ाहट होती है ,इसलिए कभी-कभी लगता है कि मै इस शहर के लायक हूँ ही नहीं .इस शहर में मेरे जैसे तमाम लोग हैं जो एडजस्ट हो गए हैं. दूसरे शहरों के लेखकों और पत्रकारों के यहां के लेखक और पत्रकार ज्यादा समर्थ और सम्पन्न हैं .पिछले दिनों यहां के एक प्रमुख दैनिक के पत्रकार को एक करोड़ की रिश्वत देने के मामले में नौकरी से निकाला गया था .उससे पहले यहीं के एक नामचीन्ह सम्पादक को रहस्य्मय हालात में अपनी जान देना पड़ी थी .
इस तरह मै जिस शहर में रहता हूँ वो भी इंदौर की तरह ही अतीत का एक सामंती चरित्र वाला शहर है .वहां भी बाहुबली पनप रहे हैं ,लेकिन वहां कायरता का प्रतिशत इंदौर के मुकाबले काफी कम है जिस शहर में मै बीते पचास साल से रह रहा हूँ वहां अभी कम से कम लोगों को बोलनेकी आजादी तो है .मेरे शहर ग्वालियर का विकास हालांकि इंदौर की तरह नहीं हुआ है लेकिन जितना भी हुआ है ठीक ही है .हम अपने नसीब को कोसते हैं लेकिन कायरता का प्रदर्शन नहीं करते .हम यानि ग्वालियर भी इंदौर बनना चाहता है किन्तु दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं पा रहा क्योंकि हमारे यहां से आजतक कोई मुख्यमंत्री नहीं बना .हमारे यहां निवेश का वातावरण नहीं है.हमारे नेता अपनी गर्भनाल का सम्मान नहीं करते और अपने शहर के बजाय इंदौर ,भोपाल पर जान छिड़कते हैं .
आम आदमी की मुश्किल ये है कि वो अपना नसीब खुद नहीं लिख सकता.ये कहता केवल और केवल नेताओं और नौकरशाहों के पास है .आम आदमी केवल तमाशबीन है .तमाशा देख सकता है.आम आदमी का प्रतिनिधित्व करने वाले अखबार और टीवी चैनल भी अब आम आदमी के नहीं रहे .ऐसे में जो हो रहा है सो हो रहा है .हम केवल ईश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं. हम इंदौर के लिए भी प्रार्थना ही कर सकते हैं कि वो इस शहर को भय मुक्त बनाये और यहां की आवोहवा में आतंक का जहर न घुलने दे .मेरी बात मन की बात है यदि इंदौर को ये बुरी लगे तो मै क्षमायाचना पहले ही किये लेता हूँ .उन्हें मुझसे असहमत होने का हक है ,लेकिन वे यदि हकीकत के साथ भी खड़े हों तो और बेहतर है .
प्रदेश के कौन होंगे नए पुलिस मुखिया
शशी कुमार केसवानी
मध्यप्रदेश में नए डीजीपी के सवाल पर मुख्यमंत्री ने यक्षप्रश्न बना रखा है। प्रदेश के सारे आईपीएस अधिकारियों को समॐक्क नहीं आ रहा कि अगला डीजीपी आखिर कौन होगा। प्रदेश भर में इसलिए कानून व्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है। मुख्यमंत्री की चुप्पी का कोई अंदाज लगा नहीं पा रहा। जिससे प्रदेशभर में एक अलग ही माहौल बना हुआ है। हालांकि मध्यप्रदेश का अगला डीजीपी कौन होगा। सुधीर सक्सेना, राजीव टंडन या पवन जैन। मौजूदा डीजीपी विवेक जौहरी का कार्यकाल 4 मार्च को खत्म हो रहा है लेकिन नए डीजीपी के लिए नामों का पैनल अब तक यूपीएससी को नहीं भेजा गया है।
ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि जब मौजूदा डीजीपी का कार्यकाल खत्म हो जाएगा तो फिर नया कौन डीजीपी होगा ? एक संभावना यह भी है कि हो सकता है नए डीजीपी की नियुक्ति तक प्रभारी डीजीपी की व्यवस्था को लागू किया जाए।
सोशल मीडिया पर कुछ पुराने पत्रकार अपने अनुमानों के आधार पर डीजीपी का नाम चलाते रहते है। उन्हें लगता है शायद उनका नाम चलाने से वहीं डीजीपी बनेंगे। पर यह हकीकत बहुत दूर की बात है। डीजीपी के नए नाम को लेकर एक खबर तेजी से वायरल हुई। उसमें ये बताया गया कि डीजीपी के लिए नया नाम तय कर लिया गया है। जब यह खबर हद से ज्यादा वायरल हुई तो गृह विभाग की ओर से इस पर सफाई जारी की गई।
सफाई में यह बताया गया कि डीजीपी के लिए नामों की जानकारी यूपीएससी को भेजे जाने का प्रकरण उच्च स्तर पर विचाराधीन है। इसलिए अभी नामों का पैनल यूपीएससी को भेजा ही नहीं गया है। नए डीजीपी के लिए अभी नाम भले तय न किए गए हों लेकिन जिन नामों की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है उनमें सुधीर सक्सेना जो प्रदेश के कई पदों पर रहे है और मुख्यमंत्री के ओएसडी भी रहे है, जिससे मुख्यमंत्री के काफी करीबी माने जाते है तथा उनके भरोसेमंद अफसरों में से एक है। राजीव टंडन भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भरोसेमंद अधिकारियों में हैं पर तीन माह में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। लगता नहीं है कि ऐसे अधिकारी जो तीन माह बाद रिटायर्ड हो जाए उसे डीजीपी बनाएंगे। वहीं पवन जैन के नाम शामिल हैं। कहा जाता है कि वे प्रदेश में कई पदों पर रहे है वे प्रदेश को अच्छी तरह से जानते है।
यह कहा जा रहा है कि इन्हीं में से कोई एक नाम नए डीजीपी के लिए तय होगा। इन तीनों में भी सुधीर सक्सेना का नाम सबसे आगे चल रहा है। फिलहाल वो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर कैबिनेट सचिवालय में सुरक्षा सचिव हैं। उनके बाद उन्हीं के बैच के पवन जैन का नाम भी तेजी से चर्चा में हैं। वो फिलहाल डीजी होमगार्ड हैं।