जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में सोमवार को सात नए न्यायाधीशों को मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ ने सीजे कोर्ट में शपथ ग्रहण कराई। इसके साथ ही सातों ने पदभार संभाल लिया। इनमें दो अधिवक्ता व पांच न्यायिक अधिकारी शामिल हैं। नवागत न्यायमूर्ति विनय सराफ, विवेक जैन, राजेन्द्र कुमार वाणी, प्रमोद कुमार अग्रवाल, बिनोद कुमार द्विवेदी, देवनारायण मिश्रा और गजेंद्र सिंह के आने के साथ ही हाइकोर्ट में जजों की संख्या बढ़ गई है। अब तक जजों के कुल स्वीकृत 53 पदों में से 34 जज कार्यरत थे। सात नए जजों के आने से इनकी संख्या 41 हो गई। इसके बाद भी 12 पद खाली रहेंगे। पिछले दिनों दूसरे हाई कोर्ट से तीन जज ट्रांसफर होकर आए थे। सोमवार को शपथ ग्रहण समारोह में महाधिवक्ता, स्टेट बार चेयरमैन, हाई कोर्ट व एडवोकेट्स बार अध्ययक्ष, सीनियर एडवोकेट्स कौंसिल अध्यक्ष, डिप्टी सालिसिटर जनरल व मुख्य न्यायाधीश ने नए न्यायाधीशों का व्यक्तित्व-कृतित्व रेखांकित किया। सातों ने अपने संबोधन में अपनी प्रगति के सूत्र बताए। जिनका सहयोग मिला उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। इस दौरान सभी न्यायाधीश मंचासीन रहे।
एम्स भोपाल में मेगाओसोफेगस नामक दुर्लभ बीमारी से पीडि़त 75 वर्षीय बुजुर्ग महिला की सफल सर्जरी
भोपाल । बोलने, सांस लेने, खान खाने और पानी पीने तक में आसमर्थ 75 साल की बुजुर्ग महिला की आहर नली की एम्स में सफल सर्जरी की गई। यह जटिल सर्जरी सर्जिकल गैस्ट्रोएंटकोलाजी और इएनटी विभाग के विशेषज्ञों की टीम ने मिलकर की है। महिला में समस्या की शुरूआत कुछ खाने पर सीने में दर्द के साथ हुई। जिसे महिला ने नजर अंदाज किया। जिसके कारण समस्या ने गंभीर रूप ले लिया। जिसके बाद महिला एम्स भोपाल पहुंची। जहां जांच में दस लाख में से एक को होने वाली मेगाओसोफेगस नामक दुर्लभ बीमारी होने की बात सामने आई। इसके बाद डाक्टरों की एक बैठक के बाद आपरेशन का फैसला लिया गया।
क्या है यह बीमारी
महिला मरीज को मेगाओसोफेगस के साथ अचलासिया कार्डिया भी था। यह ऐसी स्थिति है, जिसमें भोजन नली की मसल्स और नसों में सूजन आ जाती है। साथ ही वे सक्त हो जाती हैं, जिसके कारण खाना या पानी अंदर नहीं पहुंच पाता है। ऐसे में आहर नली में अटके भोजन के कारण ही सीने में दर्द व भारीपन जैसी परेशानी का मरीज को सामना करना पड़ता है।
सामान्य से चार गुना ज्यादा फैल गई थी आहर नली
मरीज को सांस लेने में गंभीर तकलीफ, तरल पदार्थ भी ना निगलन पाना और बोलने में भी समस्या हो रही थी। जिसे देख तत्काल आपरेशन का फैसला लिया गया। इस दौरान सर्जरी से पहले सीटी स्कैन करने में सामने आया कि भोजन नली बड़े पैमाने पर फैली हुई थी। डाक्टरों के अनुसार यह सामान्य आकार से लगभग चार गुना बढ़ गई थी। जिसके कारण श्वास नली, हृदय और छाती में मौजूद प्रमुख नसों (रक्त वाहिकाओं) को दबा रही थी।
एक प्रक्रिया में निकला फंसा भोजन, दूसरे में किया समस्या का हल
सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलाजी के एडिशनल प्रोफेसर डा. विशाल गुप्ता ने बताया कि सबसे पहले भोजन नली में एक ट्यूब डाल कर दबाने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद ईएनटी विभाग के डा विकास गुप्ता और उनकी टीम ने एक आपातकालीन डीकंप्रेसिंग प्रक्रिया की। जिसमें आहर नली से लगभग 800 मिलीलीटर भोजन और तरल पदार्थ निकाला गया। इसके कुछ दिन बाद दूसरी प्रक्रिया में सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलाजी विभाग के विशेषज्ञों ने भोजन नली में सुधार करने के लिए दूसरा आपरेशन किया गया। मरीज अब सामान्य रूप से खाना खा रही है और पूरी तरह से ठीक है।
इन डाक्टरों की भी रही अहम भूमिका
प्रोफेसर डा.वैशाली वेंडेस्कर, सहायक प्रोफेसर डा.प्रणिता मंडल, सहायक प्रोफेसर डा. संदीप कुमार और सहायक प्रोफेसर डा. अभिनव भगत के साथ रेडियोडायग्नोसिस व एनेस्थीसिया टीम के समय पर सहयोग से रोगी की सफल सर्जरी की गई। एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक और सीईओ प्रो. डा अजय सिंह ने सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलाजी, ईएनटी, एनेस्थीसिया और रेडियोडायग्नोसिस विभागों के विशेषज्ञों के कार्यों को सराहा है।
बदला मौसम, ठंड गायब, दिन में बढ़ रहा तापमान
भोपाल। मध्य प्रदेश में मौसम अनमना बना हुआ है। प्रदेश के अधिकांश जिलों का अधिकतम तापमान तो बढ़ ही रहा है। न्यूनतम तापमान में भी बढ़त दिख रही है। राजधानी भोपाल, ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर के न्यूनतम तापमान में भी पिछले दिनों के मुकाबले वृद्धि हो रही है। मौसम वैज्ञानिक इस बात से हैरान हैं कि आम तौर पर नवंबर के दूसरे हफ्ते में गुलाबी ठंडी दस्तक दे देती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है। प्रदेश के अधिकांश जिलों का अधिकतम तापमान ज्यादा होने से लोगों को ठंडक का अहसास नहीं हो रहा है। प्रदेश के अधिकतम तापमान में वृद्धिदर रविवार को भी जारी रही। दो जिले मंडला और गुना में तो तापमान 34 डिग्री सेल्सियस पार कर गया। मंडला में 34.4 तो वहीं गुना में 34.2 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज हुआ।
प्रमुख शहरों के तापमान की बात करें तो भोपाल में भी तापमान बढक़र 33.9 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। रतलाम में 33.2, उज्जैन में 33.4, जबलपुर में 32.4, रीवा में 32.6, सतना में 33.4, ग्वालियर में 33.1, इंदौर में 31.3, खंडवा में 32.5, खरगोन में 33.2 डिग्री सेल्सियस अधिकतम तापमान दर्ज हुआ।
वहीं, न्यूनतम तापमान की बात की जाये तो प्रदेश के सात जिलों का तापमान 15 डिग्री सेल्सियस की नीचे रिकार्ड हुआ। इसके अलावा अन्य सभी जिलों का तापमान में वृद्धि दर्ज हुई। प्रदेश में सबसे कम तापमान छिंदवाड़ा जिले में 13.4 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड हुआ। मंडला में 13.5, बालाघाट के मलाजखंड में 14.1, उमरिया में 14.2 बैतूल में 14.5, खंडवा में 14, रायसेन में 14.6, राजगढ़ में 14 डिग्री सेल्सियस तापमान पहुंच गया। वर्तमान में मौसम को देखते हुए लग रहा है कि प्रदेश में दीपावली यानि की 12 नवंबर तक ठंड दस्तक दे सकती है। 15 नवंबर के बाद से अधिकतम तापमान के साथ ही न्यूनतम पारा में भी गिरावट आने का अनुमान है। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान में पश्चिमी डिस्टरबेंस कमजोर हो गया है। प्रदेश के उत्तरी हिस्से में एक प्रति चक्रवात बना हुआ है। यह प्रति चक्रवात प्रदेश में उत्तर भारत से ठंडी हवा आने से रोक रहा है। इस कारण प्रदेश की हवा का रुख पूर्वी हो गया है। इसी के चलते प्रदेश की ज्यादातर हिस्सों में तेज ठंड नहीं पड़ रही है। मौसम विभाग में अनुमान जताया है कि अभी कुछ दिनों तक रात का तापमान सम्मान से अधिक रह सकता है।
भूकंप से मरने वालों की संख्या बढक़र हुई 1३५
काठमांडू
पश्चिमी नेपाल में भीषण भूकंप से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। पहले 128 लोगों की मौत की जानकारी सामने आई थी। अब यह संख्या बढक़र 13५ हो गई है। वहीं, सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। भूकंप से कई घर ध्वस्त हो गए हैं। नेपाली अधिकारियों ने पुष्टि की है कि रुकुम पश्चिम में 37 लोगों की मौत हो हुई है, जबकि जाजरकोट जिले में 95 लोगों की जान गई है। भूकंप के बाद से रेस्क्यू फोर्स बचाव अभियान में जुटी है। बता दें, शुक्रवार रात करीब 11.30 बजे नेपाल के पश्चिमी इलाके में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 6.4 मापी गई है। वहीं, प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड जाजरकोट पहुंच गए हैं। उन्होंने कल रात क्षेत्र में आए भूकंप से प्रभावित लोगों से मुलाकात की। साथ ही, भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने भूकंप के कारण हुई जान-माल की हानि पर दुख व्यक्त किया है।
40 सेकंड तक लगे झटके: नेपाल के राष्ट्रीय भूकंप मापन केंद्र के अधिकारियों के अनुसार, रात 11.47 बजे भूकंप आया, जिसका केंद्र जाजरकोट में जमीन के नीचे 10 किलोमीटर की गहराई में था। भूकंप का असर भारत और चीन में भी महसूस किया गया। भारत में भी करीब 40 सेकंड तक झटके महसूस किए गए।
काठमांडू में सडक़ों पर डरे सहमे दिखे लोग: वहीं, नेपाल की राजधानी काठमांडू और आसपास के इलाकों में भूकंप का तेज झटका महसूस किया गया। जाजरकोट काठमांडू से लगभग 500 किलोमीटर पश्चिम में है। भूकंप का झटका महसूस होते ही काठमांडू में लोग अपने घरों से बाहर निकल आए। इस दौरान लोग सडक़ों पर डरे सहमे दिखे।
प्रधानमंत्री प्रचंड ने जान-माल के नुकसान पर दुख जताया: नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने भूकंप के कारण जान-माल के नुकसान पर दुख व्यक्त किया है। नेपाल के पीएमओ ने ट्वीट किया, प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ने शुक्रवार रात 11.47 बजे जाजरकोट के रामीडांडा में आए भूकंप से हुई मानवीय और घरों की क्षति पर गहरा दुख व्यक्त किया है। घायलों के तत्काल बचाव और राहत के लिए सभी तीन सुरक्षा एजेंसियों को लगाया गया है। वहीं, उन्होंने देश के भूकंप प्रभावित इलाकों का दौरा करने का फैसला लिया है। वो रवाना हो गए हैं।
भारतीय पीएम ने भी जताया दुख: भारत के पीएम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल में भूकंप के कारण हुई जान-माल की हानि पर दुख व्यक्त किया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्वीट कर कहा, भारत नेपाल के लोगों के साथ एकजुटता से खड़ा है और हर संभव सहायता देने के लिए तैयार है। हमारी संवेदनाएं शोक संतप्त परिवारों के साथ हैं और हम घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं।
इन अस्पतालों में घायलों को रखा जाएगा: नेपाल के एक अधिकारी ने बताया कि भेरी अस्पताल, कोहलपुर मेडिकल अस्पताल, नेपालगंज के सेना अस्पताल और पुलिस अस्पताल को भूंकप से प्रभावितों लोगों के लिए समर्पित कर दिया गया है। इसके अलावा, हेली ऑपरेटरों को तैयार रहने को कहा है। साथ ही साथ घायलों को प्रभावित क्षेत्रों से लाने की सुविधा के लिए नियमित उड़ान आवाजाही निलंबित कर दी गई है।
नेपालगंज हवाई अड्डे और सैन्य बैरक हेलीपैड पर एक एंबुलेंस तैनात करने के निर्देश दिए गए हैं।
2015 में आया था 7.8 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप
बता दें, हिमालयी देश नेपाल में भूकंप आना आम बात है। वर्ष 2015 में 7.8 तीव्रता के शक्तिशाली भूकंप ने पूरे देश का हिलाकर रख दिया था, जिसमें 12,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी और हजारों घर ध्वस्त हो गए थे।
जाति की फांस में फंसी बीजेपी का कास्ट सेंसस पर क्यों नरम हुआ रुख?
नई दिल्ली। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से बने माहौल ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए भी स्टेज सेट कर दिया है। इन रायों के नतीजे आने के बाद तो चर्चा सिर्फ 2024 की होगी। विधानसभा चुनाव के नतीजों के प्रिम में 2024 की व्याख्याओं, भविष्यवाणियों, अनुमानों, अटकलों का दौर चलेगा। इन 5 रायों के विधानसभा चुनाव की अहमियत इसी से समझी जा सकती है। इन चुनावों में जो मुद्दा सबसे यादा गरम है, वह है जातिगत जनगणना का। विपक्ष इस मुद्दे पर हमलावर है। कभी कास्ट सेंसस की विरोधी रही कांग्रेस जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी का नारा बुलंद कर रही है। अपने चुनावी वादों की पोटली में राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना की गारंटी दे रही है। बिहार में जाति जनगणना हो चुकी है। तमाम क्षेत्रीय दल अपने-अपने रायों में भी इसकी मांग कर रहे हैं। विपक्ष खासकर कांग्रेस लगातार ये पूछ रही है कि बीजेपी की अगुआई वाली केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर कास्ट सेंसस का विरोध क्यों कर रही है। विपक्ष को भी पता है कि ओबीसी वोट बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत और लगातार दो बार केंद्र में उसकी पूर्ण बहुमत की सरकार के सूत्रधार हैं। इसलिए विपक्ष को कास्ट सेंसस में बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत को कमजोर करने का बड़ा हथियार नजर आ रहा है। बीजेपी ने भी आक्रामक विपक्ष की इस रणनीति को भांप लिया है और कास्ट सेंसस पर अब उसका रुख नरम हुआ है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि बीजेपी ने कभी भी कास्ट सेंसस का विरोध नहीं किया है, वह बस जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहती। विपक्ष को घेरते हुए उन्होंने यह भी कहा कि हम राष्ट्रीय पार्टी हैं, हम कभी कास्ट सेंसस पर वोट की राजनीति नहीं करेंगे।
कास्ट सेंसस पर बीजेपी के रुख में नरमी : कांग्रेस पर कास्ट सेंसस के बहाने बांटो और राज करो की राजनीति करने का आरोप लगाने वाली बीजेपी अब खुद कहने के लिए मजबूर हुई है कि वह कभी भी कास्ट सेंसस के विरोध में नहीं रही। छत्तीसगढ़ के लिए पार्टी के मैनिफेस्टो को जारी करने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि बीजेपी ने कभी भी जातिगत जनगणना के विचार का विरोध नहीं किया लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पार्टी जल्दबाजी में कोई फैसला करे। इस पर बहुत सोच समझकर फैसला लिया जाएगा। शाह ने कहा कि सभी से राय मशवरे के बाद पार्टी कास्ट सेंसस पर उचित फैसला करेगी। उन्होंने कहा, हम एक राष्ट्रीय पार्टी हैं और हम इस मुद्दे पर वोट की राजनीति नहीं करते। कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ के लिए जिन 17 गारंटियों का चुनावी वादा किया है, उसमें कास्ट सेंसस कराना भी शामिल है। इस पर शाह ने कहा कि इस आधार पर चुनाव लडऩा सही नहीं है।
जाति की राजनीति और ओबीसी कार्ड क्यों इतना अहम
जाति भारतीय राजनीति की कड़वी हकीकत है। कई क्षेत्रीय दलों का तो वजूद ही सिर्फ जाति की राजनीति पर टिका है। जातियों में सबसे बड़ा शेयर ओबीसी का है। यही वजह है कि ओबीसी वोट 2024 के लिए काफी अहम हैं। हर राजनीतिक दल यादा से यादा ओबीसी वोट को अपने पाले में खींचने की जुगत में हैं क्योंकि ये उनके लिए सत्ता की सीढ़ी का काम कर सकती हैं। देश की कुल आबादी में करीब आधा तो सिर्फ ओबीसी हैं। नैशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (हृस्स्ह्र) के मुताबिक, देश की कुल आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 42 प्रतिशत है और मंडल कमिशन के मुताबिक ये आंकड़ा 52 प्रतिशत है। यह आंकड़ा ही ये बताने के लिए काफी है कि राजनीतिक दलों में ओबीसी को लुभाने की होड़ क्यों मची रहती है।
जाति जनगणना पर आक्रामक विपक्ष
बिहार में कास्ट सेंसस के बाद अब अन्य रायों से भी इसकी मांग जोर पकड़ रही है। कांग्रेस तो राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना का वादा कर रही है। राहुल गांधी के तेवर काफी आक्रामक हैं। वह चुनावी मंचों से बार-बार जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात कर रहे हैं। केंद्र सरकार की टॉप ब्यूरोक्रेसी में ओबीसी के बेहद कम प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठा रहे हैं। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी तो यूपी में पीडीए (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) यात्रा निकालकर जातिगत समीकरण साधने की बिसात बिछा रहे हैं। सपा मुखिया तो भारतीय क्रिकेट टीम की वल्र्ड कप में जीत तक में पीडीए एंगल तलाशने से नहीं चूक रहे। वैसे भी तमाम क्षेत्रीय पार्टियों की तो पूरी राजनीति ही जाति के ईर्द-गिर्द घूमती हैं। वर्षों से कुछ खास जातियों और अल्पसंख्यक वोटों पर ही उनका पूरा सियासी समीकरण टिका हुआ है।
जाति के तिलिस्म को बीजेपी तोडऩे में कामयाब, विपक्ष इसीलिए आक्रामक
बीजेपी की नजर केंद्र की सत्ता में हैटट्रिक लगाने पर है। आंकड़े गवाह हैं कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में उसकी प्रचंड जीत की कुंजी कहीं न कहीं ओबीसी वोट के हाथ में थी। सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे के मुताबिक, 1996 में बीजेपी को महज 19 प्रतिशत ओबीसी वोट मिले थे लेकिन 2014 में यह बढक़र 34 प्रतिशत और 2019 में तो 44 प्रतिशत पर जा पहुंचा। पिछड़ा वर्ग पर कभी कांग्रेस की मजबूत पकड़ हुआ करती थी लेकिन मंडल पॉलिटिक्स ने उसकी पकड़ को बेहद कमजोर कर दिया। 2014 और 2019 में कांग्रेस को महज 15 प्रतिशत ओबीसी वोट मिले। 90 के दशक के बाद से 2014 के लोकसभा चुनाव तक ओबीसी वोटों में 50 प्रतिशत से यादा हिस्सेदारी क्षेत्रीय दलों की थी। गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी दलों के खाते में आधे से अधिक ओबीसी वोट जाया करते थे। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी इस तिलिस्म को तोडऩे में कामयाब हुई। पहली बार गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेस दलों का ओबीसी वोट में शेयर 50+ प्रतिशत से घटकर 41 प्रतिशत पर आ गया।
बीजेपी की इस कामयाबी के पीछे हिंदुत्व और पिछड़ों को साधने वाली खास सोशल इंजीनियरिंग है। उसने ओबीसी में उन जातियों को खास तवजों दी जिनका सियासी दबदबा नहीं था। उसने इस नैरेटिव के जरिए उन्हें लुभाने की कामयाब कोशिश की कि नॉन-डॉमिनेंट ओबीसी को उनके वाजिब सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हक और हिस्सेदारी नहीं मिल रही। रोहिणी आयोग की रिपोर्ट भी इसकी तस्दीक करती है। इस साल जुलाई में रोहिणी आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। उसके मुताबिक, सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ओबीसी को मिलीं कुल सीटों में 97 प्रतिशत महज एक चौथाई ओबीसी जातियों के खाते में जाती हैं। यानी 75 प्रतिशत ओबीसी जातियों के लिए सिर्फ 3 प्रतिशत जॉब या एजुकेशन सीट ही मयस्सर हो पाती हैं। बीजेपी इन नॉन-डॉमिनेंट ओबीसी जातियों को साधने के लिए विशेष योजनाओं का भी सहारा ले रही है। पीएम मोदी ने इसी साल विश्वकर्मा जयंती पर पीएम विश्वकर्मा योजना को लॉन्च किया जिसका ऐलान उन्होंने लाल किले की प्राचीर से किया था। इस योजना का लाभ लोहार, बढ़ई, नाई, मोची, कुम्हार, धोबी, दर्जी जैसी पारंपरिक हुनरमंद जातियों को मिलेगा। इसके तहत उन्हें 2 लाख रुपये तक का लोन महज 5 प्रतिशत ब्याज पर मिलेगा।
पिछले दो चुनावों से बीजेपी की नॉन-डॉमिनेंट ओबीसी में पैठ मजबूत हुई है। यादव, कुर्मी, जाट, वोक्कालिगा जैसी डॉमिनेंट-ओबीसी जातियों को भी लुभाने में बीजेपी कामयाब हो रही है। 2014 में बीजेजीप को डॉमिनेंट ओबीसी का 30 प्रतिशत वोट मिला था जबकि नॉन-डॉमिनेंट ओबीसी में उसका वोटशेयर 43 प्रतिशत था। 2019 में ओबीसी पर उसकी पकड़ और मजबूत हुई। पिछले लोकसभा चुनाव में 40 प्रतिशत डॉमिनेंट ओबीसी और 48 प्रतिशत नॉन-डॉमिनेंट ओबीसी ने बीजेपी को वोट दिया।
बीजेपी के सबसे मजबूत स्तंभ को गिराने की कोशिश में विपक्ष
ऊपर दिए आंकड़े बताते हैं कि किस तरह बीजेपी ने जातियों खासकर ओबीसी को साधने में कामयाबी हासिल की है। अगर वह लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता में आना चाहती है तो उसके सामने ओबीसी पर अपनी पकड़ को बरकरार रखने या उसे और मजबूत करने की चुनौती होगी। ओबीसी वोटरों में बीजेपी के दबदबे को खत्म करने के लिए ही विपक्ष कास्ट सेंसस के मुद्दे पर आक्रामक है। उसे भी पता है कि बीजेपी के इस मजबूत स्तंभ को गिराए बिना उनके हाथ सत्ता नहीं आने वाली। आने वाले समय में जाति की राजनीति की धार और तेज होगी।
नक्सलियों ने ग्रामीण की गोली मारकर की हत्या, मुखबिरी का था शक
बालाघाट। नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले में विधानसभा चुनाव निर्वाचन के लिए आगामी 17 नवंबर को मतदान की प्रक्रिया पूर्ण की जानी है। वहीं पुलिस भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांतिपूर्ण तरीके चुनाव कराने सुरक्षा के इंतजाम पुख्ता कर रही है, लेकिन इसके पूर्व ही नक्सलियों ने बड़ी वारदात को अंजाम दिया है।
दरअसल, लांजी थाना क्षेत्र के ग्राम भक्कू टोला में नक्सलियों ने एक ग्रामीण की मुखबिरी के शक पर हत्या कर दी। मिली जानकारी के अनुसार मृतक का नाम शंकरलाल पंद्रे है और वह पूर्व में सरपंच रहे हैं।
नक्सलियों ने फेंका पर्चा
वहीं मौके पर नक्सलियों ने पर्चा भी फेंका है। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव और नक्सली पर्चों को बरामद कर लिया है और मामले की जांच में जुट गई है।
इनका कहना
लांजी थाना क्षेत्र के भक्कूटोला में शंकर पंद्रे नामक वृद्ध ग्रामीण की नक्सलियों द्वारा मुखबिर होने के शक में आज सुबह गोली मारकर हत्या कर दी गई है। पुलिस की टीम चारों तरफ एरिया डोमिनेशन और सर्चिंग में लगे हैं।
-समीर सौरभ, पुलिस अधीक्षक बालाघाट
दिल्ली की हवा में घुला जहर, सरकार ने बुलाई बैठक; तस्वीरों में देखें राजधानी की हालत
नई दिल्ली
देश की राजधानी दिल्ली में हवा लगातार जहरीली होती जा रही है। लोगों को सांस लेने में समस्या हो रही है। हर साल की तरह इस साल भी दिवाली से पहले ही एक्यूआई 400 के पार जा पहुंचा है। हवा की गति कम होने की वजह से वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। प्रदूषण को लेकर दिल्ली सरकार ने आज बैठक बुलाई है। जिसमें ग्रैप का तीसरा चरण को कड़ाई से लागू कराने को लेकर चर्चा होगी।
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि सबसे पहले तो ये सोचना ग़लत है कि दिल्ली सरकार प्रदूषण पर पूरी तरह से नियंत्रण कर सकती है क्योंकि प्रदूषण का मामला अकेले दिल्ली का नहीं है। यहां दिल्ली के बाहर के स्रोत अंदर के स्रोतों की तुलना में दोगुना प्रदूषण फैलाते हैं। इसलिए दिल्ली सरकार युद्ध स्तर पर काम कर रही है। 1 नवंबर के बाद 10-15 दिनों में मौसम में बदलाव होता है। हम स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अधिक ध्यान केंद्रित करेंगे।
बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली सरकार ने दो दिनों तक स्कूलों को बंद करने का आदेश जारी किया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर जानकारी दी। अरविंद केजरीवाल ने एक्स पर पोस्ट साझा कर बताया कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। जिसे देखते हुए दिल्ली में सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूल अगले दो दिनों तक बंद रहेंगे।
दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 के पार चला गया है। ग्रैप का तीसरा चरण भी लागू हो गया है, जिसके कारण वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए छोटे बच्चों के स्कूल बंद करने का सुझाव दिया। इस सुझाव को गंभीरता से लेते हुए दिल्ली सरकार ने स्कूल बंद करने का फैसला किया। सीएम अरविंद केजरीवाल ने देर शाम इसकी जानकारी दी। दिल्ली सरकार के साथ-साथ दिल्ली नगर निगम के सभी प्राइमरी स्कूल भी दो दिन बंद रहेंगे। दिल्ली नगर निगम के शिक्षा विभाग के निदेशक विकास त्रिपाठी ने बताया कि सभी जोनों के डीडीई और स्कूल प्रिंसिपल को इसकी सूचना दे दी गई है।
गुरुवार को दिल्ली में हवा की क्वालिटी बेहद खराब श्रेणी में रही। दिल्ली के अलावा नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हवा बेहद खराब कैटेगरी में दर्ज की गई। ग्रैप-3 लागू होने के साथ सभी गैर-आवश्यक निर्माण और तोडफ़ोड़ के कार्यों पर रोक लग गई है। इसके अलावा दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद और गौतम बुद्ध नगर में पेट्रोल से चलने वाले बीएस-3 इंजन और डीजल से चलने वाले बीएस-4 चार पहिया वाहनों के इस्तेमाल पर रोक लग गई है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक के अनुसार, शुक्रवार सुबह आठ बजे तक दिल्ली के मुंडका इलाके का औसत एक्यूआई 500, आईटीओ में 451, नजफगढ़ में 472, आईजीआई एयरपोर्ट में 500, नरेला में 500 दर्ज किया गया। वहीं नोएडा के सेक्टर-125 में एक्यूआई 400 पर ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच गया है। सेक्टर-62 में 483, सेक्टर-1 में 413 और सेक्टर-116 में 415 पर ‘गंभीर’ श्रेणी में एक्यूआई रहा।
कोयले व लकड़ी से खाना बनाने पर रोक
दिल्ली के तीन सौ किलोमीटर के अंदर प्रदूषण फैलाने वाली इंडस्ट्रियल यूनिट और थर्मल पावर प्लांट पर नजर रखा जाएगा व कार्रवाई भी हो सकती है। होटल व रेस्तरां के तंदूर में कोयले और लकड़ी के इस्तेमाल पर भी पूरी तरह से रोक लग गई है।
पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू ने छोड़ी कांग्रेस, पत्र में लिखा- पट्टावाद के कारण मुझे नहीं दिया टिकट
उज्जैन
आलोट विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी द्वारा अपना उम्मीदवार न बनाए जाने से नाराज पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को एक पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की है और यह बताया है कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने किस तरीके से अपने-अपने पों को मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में टिकटों का वितरण कर दिया है। प्रेमचंद गुड्डू ने पत्र में लिखा है कि मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के द्वारा टिकट वितरण में बहुत ज्यादा अनियमितता की गई है। चुनाव के पहले तक यह दावा किया जाता रहा है कि जीतने लायक प्रत्याशियों को टिकट दिया जाएगा। सर्वेक्षण के आधार पर टिकट जीतने वाले प्रत्याशियों को ही दिया जाएगा। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में वातावरण बना हुआ था। इस वातावरण का लाभ उठाने के लिए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के द्वारा आपस में टिकटों का बंटवारा कर लिया गया। अपने समर्थकों के बीच में टिकट बांट लिए गए। इस दौरान इस बात को नजरअंदाज किया गया कि विधानसभा क्षेत्र में जीतने लायक प्रत्याशी कौन है? मेरे द्वारा मध्यप्रदेश के रतलाम जिले की अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित आलोट विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांगा गया था। इस विधानसभा क्षेत्र से मैं पूर्व में विधायक रह चुका हूं। इसके साथ ही में उज्जैन संसदीय क्षेत्र से सांसद भी रहा हूं। इस संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत भी यह विधानसभा क्षेत्र आता है। कांग्रेस के द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में भी रिपोर्ट मेरे अनुकूल थी। इसके बावजूद मुझे कांग्रेस के पावाद के कारण टिकट नहीं दिया गया। इस स्थिति से खिन्न होकर मेरे द्वारा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लडऩे का फैसला लिया गया है। अत: में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता हूं।
इंदौर आईआईटी में बेखौफ दिखे तेंदुए, एक गेस्ट हाउस के पास पहुंचा, दो तेंदुए सडक़ पर मिले
इंदौर आईआईटी में बेखौफ दिखे तेंदुए, एक गेस्ट हाउस के पास पहुंचा, दो तेंदुए सडक़ पर मिले
इंदौर
इंदौर के आसपास तेंदुओं का मूवमेंट तेजी से बढ़ता जा रहा है। पिछले दिनों महू, चोरल के जंगलों में तेंदुए के दिखने के बाद अब आईआईटी इंदौर परिसर में तेंदुए का मूवमेंट बढ़ गया है। पिछले दिनों यहां पर तीन तेंदुओं का मूवमेंट नजर आया है। तेंदुए को पकडऩे के लिए वन विभाग ने आईईटी परिसर में दो पिंजरे लगाए हैं लेकिन अभी तक तेंदुआ उसमें नहीं फंसा है। दावा किया जा रहा है कि दस दिन में पांच बार तेंदुए को देखा गया है।
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर ने शेयर किया वीडियो
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर एण्ड रिसर्चर (आईआईटी, मुंबई एल्युमनस) राहुल लखमानी ने इंस्टाग्राम पर परिसर में तेंदुए के मूवमेंट का वीडियो शेयर किया है। इसमें बताया गया है कि यहां पर तीन तेंदुए हैं। तीनों को ही अलग-अलग परिस्थितियों में देखा गया है। इनमें से एक तेंदुए का मूवमेंट गेस्ट हाउस के पास था, जबकि दो तेंदुए सडक़ से जाते हुए दिखाई दिए थे। इसके बाद आईआईटी ने वन विभाग को भी सूचना दी है।
आईआईटी ने नहीं दी जानकारी
इस विषय में आईआईटी ने जानकारी देने से मना कर दिया है। आईआईटी ने गोपनीयता का हवाला देते हुए वन विभाग के पिंजरों से संबंधित सीसीटीवी फुटेज नहीं दिए हैं। जिससे स्पष्ट नहीं हो सका है कि वहां कितने तेंदुओं का मूवमेंट है।
बकरी के पास आकर लौट जाता है तेंदुआ
डीएफओ महेंद्रसिंह सोलंकी का कहना है कि जहां तक अनुमान है वहां एक ही तेंदुआ है। आईआईटी परिसर में जहां तेंदुए का मूवमेंट है वहां दो पिंजरे अलग-अलग स्थानों पर लगाए गए हैं। पिंजरे में बकरियां बांधी गई हैं। तेंदुआ बकरी के पास आता है और कुछ देर बाद लौट जाता है। उसका मूवमेंट पता चल रहा है। हमने आईआईटी से उक्त सीसीटीवी फुटेज मंगवाए हैं, लेकिन प्रबंधन ने गोपानीयता का हवाला देकर फुटेज नहीं दिए। हाल ही में एसडीओ ने भी इस संबंध में आईआईटी को पत्र लिखा है ताकि तेंदुए को पकडऩे की दिशा तय हो सके। विभाग का मानना है कि हो सकता है यह तेंदुआ एक ही हो, क्योंकि एक साथ तीन तेंदुए का मूवमेंट कम ही संभव है।
तीन तेंदुओं की थ्योरी कैसे सामने आई
अपलोड वीडियो में बताया गया कि तेंदुओं का मूवमेंट विंध्याचल गेस्ट हाउस, शिप्रा फैकल्टी हाउस तथा डायरेक्टर के रेसीडेंस के पास देखा गया है। खास बात यह कि तीनों तेंदुए एक घंटे में ही इन अलग-अलग स्थानों पर देखे गए हैं। ये फुटेज 22 अक्टूबर के हैं। इसके बाद से 2& अक्टूबर की देर शाम इन्हीं में से एक तेंदुआ दिखा और फिर दूसरे दिन एक और तेंदुआ नजर आया। इनमें से एक ने रोड क्रॉस किया, फिर दोनों तेंदुओं ने भी उसके पीछे रोड क्रॉस किया।
यह कहते हैं वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट दिनेश कोठारी कहते हैं कि तेंदुआ कभी एक साथ या समूह के रूप में नहीं घूमता। यह स्वभाव से एकांकी होता है। तेंदुआ सिर्फ दो ही स्थितियों में दो या इससे अधिक संख्या में होता है। या तो मादा तेंदुआ और शावक छोटे होने पर उसके साथ हो। दूसरा या फिर मेटिंग के समय उसके साथ एक साथ उससे ’यादा मेल हो।
निर्माण कार्य की वजह से तेंदुए आने की संभावना बढ़ी
वन्य क्षेत्र होने से पहले भी आईआईटी और इसके आसपास के क्षेत्र में तेंदुए का मूवमेंट रहा है। चूंकि अभी खंडवा-इ‘छापुर रोड का सिक्स लेन चौड़ी-करण का काम चल रहा है इसलिए संभावना है कि इनका रुख इधर बढ़ गया हो।
ग्राउंड रिपोर्ट: गांव की टूटी सडक़ से लेकर पटवारी परीक्षा तक, मध्य प्रदेश के चुनाव में यह भी हैं बड़े मुद्दे
जबलपुर
जबलपुर के महंगवां गांव में रहने वाली इंदोबाई को प्रदेश में कितना विकास हुआ, उससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। वह कहती हैं कि उनके गांव को जाने वाली सडक़ कई साल से कच्ची की कच्ची ही है। वह इशारा करके बताती है कि हाईवे के एकदम किनारे बसे उनके गांव में जाने वाली यह सडक़ बरसात में लबालब पानी से भरी होती है। इसी हाईवे से न जाने कितने बड़े अधिकारी नेता और मंत्री गुजर जाते हैं, लेकिन कोई यह पूछने नहीं आता कि गांव में जाने के लिए आखिर लोग कितना परेशान होते हैं।
इसी तरह गांव के जगदंबा भी अपने बेटे की बेरोजगारी को लेकर बड़े परेशान हैं। कहते हैं कि बेटे ने पटवारी की परीक्षा दी थी, लेकिन उसका अंजाम क्या हुआ यह सबको पता है। ऐसी न जाने कितनी छोटी-बड़ी परेशानियों से जबलपुर के महंगवां गांव के लोग रूबरू होते हैं। अमर उजाला डॉट कॉम ने मध्य प्रदेश में ऐसे ही कुछ अलग-अलग गांव के लोगों से बात कर विधानसभा के चुनाव के मुद्दे समझे। आइए पढ़ते हैं ग्राउंड रिपोट…
जबलपुर शहर से तकरीबन 32 किलोमीटर दूर नागपुर हाईवे पर एक गांव है महंगवां। इस गांव में रहने वाले लोगों का दर्द यह है कि जब चुनाव आता है तो लोग वोट मांगने तो आ जाते हैं, लेकिन सुविधाओं की बारी आती है तो किसी के दर्शन नहीं होते। इस गांव में अपनी पूरी जिंदगी गुजार देने वाली इंदोबाई कहती है कि उनको प्रदेश के विकास से क्या मतलब जब उनके गांव की सडक़ ही नहीं बनी।
रोज खेतों में बकरियों को चराने जाने वाली इंदोबाई कहती है कि उनकी उम्र 74 साल हो चुकी है, लेकिन उन्होंने अपने गांव में पक्की सडक़ का मुंह आज तक नहीं देखा। यह पूछे जाने पर की गांव के भीतर तो कुछ पक्की सडक़े दिख रही है, तो वह नाराज होकर कहने लगी की पूरा गांव घूम कर देख लोगे तो असलियत का अंदाजा हो जाएगा। वह कहती है कि यहां पर बरसात में कभी आकर देखना तो पता चल जाएगा कि उनका दर्द कितना गहरा है। वह कहती है कि अगर हमारे गांव की थोड़ी सी सडक़ बन जाती तो शायद बरसात के दिनों में घरों में कैद रहने की जलालत से बच जाती।
इसी गांव में रहने वाले जागेश्वर कुशवाहा सडक़ के किनारे चाट बताशे की दुकान लगाते हैं। वह कहते हैं कि दिन में दुकान लगाकर कुछ पैसा तो कमा ही लेते हैं कि उनके घर की गुजर बसर हो सके। जागेश्वर बताते हैं कि उनके गांव में बिजली भी आती है और लोगों के घर भी बने हैं, लेकिन जो सबसे बड़ी समस्या है वह सडक़ों की है। बरसात के दिनों में गांव के अंदर जाने का रास्ता पूरी तरीके से तालाब बन चुका होता है।
वह नाराजगी जताते हुए कहते हैं कि जिस सडक़ पर उनका गांव बसा है वहां से न जाने कितने लोग गुजरते हैं, लेकिन किसी जिम्मेदार अधिकारी की नजर उनके गांव की इस सडक़ पर आज तक नहीं पड़ी। उनका कहना है कि ऐसा नहीं है कि गांव के लोगों ने जिम्मेदार अधिकारियों, मंत्रियों विधायक को और नेताओं से जाकर बात नहीं की। लेकिन उनकी समस्याओं का निराकरण कभी नहीं हुआ।
उनकी दुकान पर खड़े गांव के ही जगदंबा कहते हैं कि उनका बेटा 23 साल का हो गया है। पटवारी की परीक्षा उसने दी थी, लेकिन पटवारी परीक्षा का हश्र क्या हुआ, यह सबको पता है। अब उनका बेटा जबलपुर में रहकर सरकारी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है। उनका कहना है कि अगर उनका इकलौता बेटा आज सरकारी नौकरी में आ गया होता तो शायद उनका भी जीवन सुधर जाता। वह कहते हैं कि मध्य प्रदेश में पटवारी की परीक्षा एक बहुत बड़ा मुद्दा है। कोई जाकर उन बच्चों और उनके घर वालों से पूछे कि सरकारी नौकरी की चौखट पर खड़े ऐसे लोगों की क्या मनोदशा होती होगी।
इसी तरह मध्य प्रदेश सरकार की योजनाओं के लाभ को लेकर महिलाओं के अलग-अलग मत हैं। इसी गांव की रहने वाली सुकुमारी कहती है कि कुछ लोगों को लाडली बहना योजना का लाभ मिल रहा है तो कुछ लोगों को नहीं मिल रहा। वह कहती है कि उनके पति शहर में काम करते हैं इसलिए वहां से उनको राज्य सरकार की योजनाओं के बारे में जानकारी तो मिलती है लेकिन उसका लाभ उनको कैसे मिलेगी इसका कोई भी पता बताने वाला नहीं होता है। हालांकि, गांव की सुनंदा बताती है कि ग्राम पंचायत स्तर पर भी राज्य की सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए जिम्मेदार अधिकारी पूरी तरीके से जानकारियां देते हैं। वह बताती हैं कि उनको लाडली बहना योजना का लाभ भी मिल रहा है।
मध्य प्रदेश के इस गांव से आगे चलने पर सडक़ के किनारे ही एक गांव पड़ा बमोरा। गांव की रहने वाली चौकसी देवी का कहना है कि उनको पता है कि आने वाली 17 नवंबर को यहां पर विधानसभा का चुनाव होना है, लेकिन उनके गांव में अब तक कितने नेता है इसके सवाल पर कहती है कि आए होंगे लोग, लेकिन उनके पास अब तक कोई नहीं आया। पूछे जाने पर कि अगर कोई वोट मांगने आता भी है तो वह उनसे क्या सवाल करेंगी। चौकसी देवी कहती हैं कि वह किसी से क्या सवाल करेंगी। क्या गांव में आने वाले लोगों को इस बात का अंदाजा नहीं है कि यहां पर किस तरीके की सुविधाओं की जरूरत है और क्या सुविधा उनको मिल रही हैं। हालांकि, उनका इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि यहां से चुनाव कौन लड़ रहा है। वह कहती है कि पंजा और कमल दोनों लड़ रहे हैं। चुनाव में कौन आगे चल रहा है? के सवाल पर उनका कहना है कि कोई भी आगे चले, लेकिन जब तक उनकी समस्याएं दूर नहीं होगी, तब तक वह वोट देने नहीं जाएंगी।