उठो बेटियों

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डॉ कीर्ति काले

उठो बेटियों मत घबराओ
अपने आँसू पोंछ लो
बुरी नजर से जो भी देखे
उसकी आँखें नोंच लो।।

अपनी शक्ति स्वयं पहचानों
खुद को अबला कभी न मानो
तुम हो दुर्गा तुम हो काली
दुष्टदलन संहारन वाली
डर डर कर अब जीना छोड़ो
निर्भयता से नाता जोड़ो
उद्दंडों को सबक सिखाने
कमर कटारी खोंस लो।

बुरी नजर से जो भी देखे
उसकी आँखें नोंच लो।।

साहस का पर्याय बनो तुम
बलशाली अध्याय बनो तुम
फूल नहीं तुम हो चिंगारी महिमामय भारत की नारी
आँखों में अंगारे भर लो
तन-मन को ज्वाला-सा कर लो
भस्म करो निर्लज्जों को
मत मन में कुछ संकोच लो।

बुरी नजर से जो भी देखे
उसकी आँखें नोंच लो।।

कदम कदम पर देह पुजारी
घूम रहे सब ओर शिकारी
टीवी फिल्मों अखबारों में
गलियों सड़कों बाजारों में
चारों ओर नग्न बालाएँ
झिलमिल करतीं मधुशालाएँ
संस्कृति के माथे पर धब्बे
हैं ये इन्हें खँरोंच लो।

बुरी नजर से जो भी देखे
उसकी आँखें नोंच लो।।

घड़ी- घड़ी घेरे आशंका
कभी निर्भया कभी प्रियंका
व्यभिचारी को खौफ नहीं है
अपराधों पर रोक नहीं है
मोमबत्तियाँ जलतीं बुझतीँ
न्याय प्रक्रिया बरसों चलती
जनता का आक्रोश करेगा
तुरत न्याय अब सोच लो।

बुरी नजर से जो भी देखे
उसकी आँखें नोंच लो।।

उठो बेटियों मत घबराओ
अपने आँसू पोंछ लो
बुरी नजर से जो भी देखे
उसकी आँखें नोंच लो।।