आएँ हाएँ ये शोक सभाएँ

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दिमाग से व्यंग्य लेख

डॉ कीर्ति काले

कल एक शोक सभा में जाना हुआ।शोक सभाएं तो पहले भी कई देखीं , एक से बढ़कर एक देखीं लेकिन ऐसी सेवन स्टार शोक सभा देखकर सच कहें मन में मरने की इच्छा कुलांचे भरने लगी।किसी राजा महाराजा का शादी समारोह भी इस शोक सभा के सामने दो टके का लगा।शोक सभा स्थल से चार किलोमीटर पहले से शोक सभा के बोर्ड लगे हुए थे। दो किलोमीटर पहले से अत्याधुनिक महंगी कारों की कतारें अच्छे बच्चों की तरह सड़क के दोनों ओर सिर झुकाए विश्राम मुद्रा में पीछे हाथ बांधे खड़े होकर आगे आने वाले दृश्य की भव्यता का आभास करा रहीं थीं।एक किलोमीटर पहले से सोफेस्टिकेटेड जूता घर बने हुए थे। आधा किलोमीटर पहले लक दक सफेद चादरों की कनातें शोकार्थियों के स्वागत को आतुर थीं। मुख्य द्वार पर शोकसभा की उत्सवमूर्ति का प्रसन्न मुद्रा में भव्य चित्र लगा था।
केवड़े की रिमझिम फुहार करते हुए विशिष्ट प्रकार के पंखे मेन गेट पर आगन्तुक शोकार्थियों का शोकसभा के योग्य मूड बना रहे थे। फिल्म, राजनीति, क्रिकेट, साहित्य, कवि सम्मेलन, टीवी, और पत्रकारिता जगत की एक से बढ़कर एक हस्तियां , सेलिब्रिटीज झकाझक श्वेत परिधानों में चेहरे पर यथोचित मेकअप और तथोचित शोक की मात्रा धारण किए पधार रहीं थीं।हाँ सभी के आँखों पर ब्रांडेड काले चश्मे चढ़े हुए थे।दूर तक बैठने के लिए सफेद सोफे सजे थे।शोक सभा के मंच पर विदेशी फूलों की भव्य सजावट थी। अनूप जलोटा टाइप भजन गायक पूरे साजो समान के साथ भजन गा रहे थे। कुल मिलाकर सब कुछ भेरेंट था,धांसू था लेकिन हाँ एलीट और सोफेस्टिकेटेड।मंच पर मरणमूर्ति का भव्यतम चित्र खड़ा था। चित्र के समक्ष सुलगते हुए धूप के श्वेत धूम्र से पूरा परिसर महकायमान हो रहा था।गुलाब की पंखुड़ियों से भरी बड़ी सी सुनहरी टोकरी रखी थी। पुष्पांजली अर्पित करने वालों की लम्बी लाइन देखकर तो आए हाए हम क्या बताएं हम मरने वाले पर फिदा हो गए। किस तरह हमने अपने उफनते जज़्बातों को कंट्रोल किया ये हम ही जानते हैं।
थोड़ी देर बाद भजन प्रवचन बन्द हुए और एक फिल्मी हीरो जैसे सुकुमार ने माइक पर बोलना शुरू किया। उसने पहला वाक्य बोला आप देख ही रहे हैं कितनी बड़ी मौत हुई है।इस शोक सभा में उपस्थित एक एक व्यक्ति अरबपति है। हमारे पूज्य गरीबदास जी का सम्पर्क क्षेत्र विस्तृत था। इसीलिए फिल्मी,इल्मी, खेल से लेकर, बड़े बड़े संत महात्मा, और पोलिटीशियन्स आज यहाँ पधारे हैं।स्वर्गीय गरीबदास जी की अमीरी आकाश तक है। उनके चारों बेटे और दो बेटियां विदेश में होने के कारण शोक सभा में सम्मिलित नहीं हो सके हैं लेकिन उनकी भावनाएँ यहीं है । इसीलिए उन्होंने भव्य शोक सभा आयोजित की है। और विशेष निर्देश दिए हैं कि उनके पिता जी की शोक सभा में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए।
बाबूजी के बारे में बोलने वालों की बहुत लम्बी लिस्ट है और समय सीमित है इसलिए मैं सभी से क्षमा चाहते हुए प्रत्येक क्षेत्र से एक एक व्यक्ति को माइक पर आमंत्रित करूंगा। मेरे इस निर्णय को आप अन्यथा नहीं लेंगे ऐसा विश्वास है।
सबसे पहले फिल्मी दुनिया से टुच्चन कपूर जी।
टुच्चन जी ने माइक पर आते ही सबसे पहले कैमरे की ओर देखकर पोज बनाया।10, 12 फोटो खिंचवाने के बाद बोले वैल आज यहाँ आकर बहुत अच्छा फील हो रहा है। भगवान ऐसी मौत सबको दे।मेरी नयी सुपर डुपर हिट फिल्म का म्यूज़िक लॉन्च हुआ है। आपने सुना ही होगा।डिंग्चिक डिंग्चिक गाने ने तो सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।आप लोग फिल्म जरूर देखें। अपनी  फिल्म के प्रमोशन का इतना अच्छा चांस आज मुझे मिला है । इसके लिए सेठ गरीबदास जी को बहुत बहुत धन्यवाद।
उसके बाद माइक पर आए क्रिकेटर
आते ही लच्छेदार गलत अंग्रेजी के चौके छक्के लगाने लगे।साथ में उनकी प्रेमिका भी थी।कनखियों से बीच बीच में उसे निहारकर तरोताजा हो जाते और फिर बोलने लगते अपने आगामी क्रिकेट दौरों के बारे में।उनका आत्मालाप सुनकर तो मुझे दौरे पड़ने की स्थिति आ गई।सजी संवरी विदेशी बालाओं द्वारा सर्व किए जाने वाले ठण्डे शरबत से यदि हमने अपना कण्ठ तर नहीं  किया होता तो सच बताते हैं हमें दौरा पड़ ही जाता।
तीसरे वक्ता ज्ञानपीठ पुरस्कार लौटाए हुए चोटी के साहित्यकार थे। गरीबदास जी पर शुरू हुए और पाताल की गहराई से लेकर ब्रह्माण्ड के रहस्यों को लपेटते हुए राजनीति, खेल, भ्रष्टाचार, मौसम की जानकारी से लेकर स्वयं की उपलब्धियों को महिमामण्डित करते हुए गरीबदास जी की अमीरी का गुणगान करते करते स्वयं के गुणगान पर विरामित हुए। एक बात इन साहित्यकार महोदय की खास लगी कि वे टॉपिक चेंज करते समय ये कहना नहीं भूलते थे कि समय की सीमा है इसलिए गागर में सागर भर रहा हूँ।अन्यथा बोलने के लिए तो इतना है कि दो दिन भी कम रहेंगे। खैर
चौथे तो और भी घुटे घुटाए थे।उनका नाम पुकारा गया तो दो चेले विशेष प्रकार का सिंहासन माइक के पीछे स्थापित कर गए।एक चेला सिंहासन पर लाल मखमल का आसन बिछा गया। फिर चार चेलियों से संरक्षित एक प्रभावशाली,व्यक्तित्व धीरे धीरे आकर सिंहासन पर विराजमान हो गया।चेलियाँ सिंहासन के पीछे खड़ी होकर पंखा झलने लगीं। जैसे ही उन्होंने धीमे स्वर में मंत्रोच्चार प्रारम्भ किया वैसे ही
अॉडिएंस में फैले हुए उनके चेले चेलियों ने स्वामी जी का चित्र,क्वालिफिकेशन सहित विशिष्ट उपलब्धियों से लबरेज पर्चो के वितरण का दायित्व मुस्तैदी से सम्हाल लिया।सब कुछ प्री प्लान्ड,सधा हुआ चल रहा था।सच बताऊं इतनी देर में मुझे ऐसा लगने लगा जैसे यहाँ उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति मंझा हुआ शोकसभालू है।बस हम ही न्यू कमर हैं।हम तो सादे से कपड़े पहनकर बिना क्रीम पाउडर लगाए बिना हेयरस्टाइल किए लल्लू से आ गए। यहाँ देखो तो हर तरफ लक दक  ,चका चक । गरीबदास जी के विदेशी बेटे बेटियों की अमीरी झकाझक टपक रही है। हमें अपने ऊपर बहुत कोफ्त हुई। अलमारी में रखी शिफान की सफेद लखनवी कढ़ाई वाली साड़ी नजरों के सामने दिखाई देने लगी।आज के फंग्शन के लिए ये साड़ी ठीक थी।हम तो गंवार के गंवार ही रहेंगे। दिल्ली में रहते हुए पच्चीस बरस हो गए लेकिन यहाँ के तौर-तरीके अभी तक नहीं सीख पाए।लानत है हम पर।जब हम ग्वालियर में रहते थे तब वहाँ शोकसभाओं का चलन ही नहीं था। किसी के घर में गमी हो जाने पर नाते रिश्तेदार और परिचित तेरह दिनों में कभी भी मिलने जाते थे। कई लोग तो कई कई बार आते थे।परिवार का हालचाल पूछते थे। स्वयं होकर काम करने लगते थे। सभी हृदय से दुख में सहभागी होते थे।
तब वहाँ बड़ी मौत होने का चलन नहीं था।अब पिछले पच्चीस वर्षों में हमारे ग्वालियर ने भी तरक्की कर ली है।अब वहाँ भी मौतें छोटी बड़ी होने लगीं हैं। ऐसा सुनने में आया है कि पिछले दिनों  एक बड़ी मौत हुई थी हमारे गवालियर में । लेकिन दिल्ली जितनी बड़ी फिर भी नहीं थी।
 उफ़ यही तो हम औरतन की कमी है। ससुराल में छप्पन भोग बने हों तब भी ससुरा मन मायके की दाल रोटी में ही अटका रहता है जनम भर।
हीरो टाइप एनाउंसर ने घोषणा की कि केवल दो वक्ता बोलने के लिए शेष हैं। सभी से विनम्र निवेदन है कि भोजन प्रसादी ग्रहण किए बिना कोई न जाए। भोजन प्रसादी का नाम सुनते ही जीभ की स्वादेन्द्रियाँ सक्रिय हो उठीं।पेट की जठराग्नि षटरस भोजन को पचाने के लिए आतुर हो गई। शोक सभा में शोकांजली सुनने का धैर्य जवाब देने लगा और पाँव स्वत:ही यन्त्रचलित से देह को उठाकर वहाँ ले आए जहाँ से स्वादिष्ट सुगन्ध आ रही थी।आय हाय भोजन प्रसादी की महिमा तो क्या ही बताएं।क्या नहीं था वहाँ।देसी विदेसी सभी पेय और पकवान आहा। अब और वर्णन नहीं करेंगे। कहीं हम आपको बताने के चक्कर में भूखे ही न रह जाएं।
चलते चलते एक बात फिर भी बताए देते हैं कि शोक सभा हो तो ऐसी।खा पीकर बाहर निकले तो गेट पर बने काउंटर पर पर्चे बांटे जा रहे थे। एक पर्चा हमें भी मिला। किसी इवेंट कम्पनी का था।जिसमें लिखा था जन्म से लेकर मरण तक के सभी कार्यक्रमों के लिए सम्पर्क करें। अवसर के अनुसार सेलिब्रिटी अरेंज करने की विशेष सुविधा। टीवी पर दिखाए जाने की ग्यारेंटी। आएँ हाएँ ये शोक सभाएँ।
लेखिका देश की जनि मानी कवियत्री हैं