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अबकी दफ़े वो जो न फिर लौटे तो ,
बच्चों को स्कूल ले जाने वाली बस का क्या होगा ,
कौन खोलेंगे उनके स्कूल अल्ल सुबह ,लगायेगा झाड़ू -पोंछा कौन !
दोपहर का गर्म खाना उनकी टेबल तक कौन पहुँचाएगा ?
कौन रात भर उसमें पहरा लगाएगा !
कौन खोलेगा दरवाज़े -खिड़कियाँ हर क्लास की |
कौन माँजेगा हर बच्चे के लिये स्टील के ग्लास !
कौन उनको मुस्कुरा कर -डाँट -डपट कर चढ़ाएगा
बस में , गिन -गिन कर !
कौन सीयेगा उनकी पोषक ,
कभी सोचा है ,अबकी जो न लौट वो तो फिर क्या होगा ?
फोन करके झट से सब्जी मंगवाना !
अन्दर अगर कीड़ा निकले तो उसे
डपटकर बुलाना ,गुस्से में अपने पैसे वापिस लेना |
उस अपराधी के सामने ही पूरे पैसे फिर गिन लेना !
वो सभी ठेले ,वो सभी दुकाने
शायद बीते समय की बात हो जाएं !
मॉल जाकर शायद तुम्हारा काम बन जाए ,
पर अब यूँ मटर उठा कर न खा पाओगी ,
सीधे कैमरे में कैद हो जाओगी !
दोपहर में कपडा ले दर्ज़ियों के पास जाना ,
अपनी ऊल -जलूल फरमाइश को सामने रखना ,
उनका पूरी शिद्दत से सुनना ,फिर कहाँ पाओगी तुम ?
एक केस हुआ दिल्ली में ,
और पूरे -पूरे स्कूल से माओं ने निकाला ,
पुराने ,ईमानदार नौकरों को ,
जिनका अपराध इतना था कि ,
कोई कागज़ात न था उनके पास
अपनी विश्वनीयता का ,
सिर्फ आदमी होने का अपराध था उनका ,
सज़ा दी तुमने !
अब वो भी न मिलेगी ,
जो तुरंत मिल गयी थीं ,उन्हीं परिवारों से निकली औरतें !
वो भी तो चल पड़ी हैं न !
ये अधूरी इमारतें ,ये अधूरे निर्माण ,
एक बच्चे का पलना टूटा था ,वो कल ही बनवाना था |
वो रेल को झंडी ,वो पटरियों की मरम्मत ,
वो फलों के ठेले ,
आलू की टिक्की ,पानी पूरी और समोसे ,
तुम अब घर पर बनाना ,
या महंगे होटल में आर्डर करना।
खाते हुए कुछ अधूरा तो लगेगा तुम्हे ,
पर हाईजीन की दुहाई देना ,
और सब अपने अंदर समा लेना !
अबकी जो वो न लौटे ,
तो टूट जायेगें ,सारे पहरे तुम्हारे !
नेहा शरद।