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उलझनें हैं बहुत..
मग़र, सुलझा लिया करती हूँ
मैं अक्सर मुस्कुरा लिया करती हूँ..
क्यूँ नुमाइश करुँ अपने माथे पर शिकन को
अक्सर मुस्कुरा के
इन्हें मिटा दिया करती हूँ
क्योंकि..
जब लड़ना है, खुद को खुद ही से अपने और अपनों के लिए
तो,
हार-जीत में..कोई फ़र्क
नहीं करती हूँ..हारुँ या जीतूं..
कोई रंज नहीं
कभी खुद को जिता लिया करती हूँ..
तो कभी खुद से जीत लेती हूँ..
यदि खुशिया आती है तो धीरे से खुश हो जाया करती हूँ
और यदि गम पास आये तो
लड़ के भगा दिया करतीं हुं
बस यूं ही ऐसे ही जी लिया करती हूँ
ज़िंदगी तुम बहुत खूबसूरत हो..
इसलिए मैंने तुम्हें..
सोचना बंद कर दिया हैं और..
जीना शुरु कर दिया है..
ए जिंदगी तूने क्या दीया क्या नही
गरीबो को देख ये भी भूल जाया
करती हूं
बस यूं ही बहुत से उलझनों को सुलझा लिया लिया करती हूं
फिर खुद ही मुस्कुरा लिया करती हूं।
नीता शुक्ला
छिंदवाड़ा