कत्थई आँखों की उजास, गर्म हथेलियों की ऊष्मा…….

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कत्थई आँखों की उजास
गर्म हथेलियों की ऊष्मा
डार्क चॉकलेट से कुछ मीठे कुछ कसैले होंठ
रेशमी ज़ुल्फों का जाल
सपनीले दिन और चाँद रातें
होने को तो ये भी हो सकती थी मेरी दुनिया
लेकिन दुनिया में और भी बहुत कुछ था

एक धुंधला आकाश
जिसे झाड़ पोंछकर
फिर सही-सही तानना था
धरती जो सरक चुकी थी पैरों के नीचे से
उसे बराबर नाप में बैठाना था
रूठे मौसमों को मनाना था
कुछ बंजर खेत थे
कुछ बंजर मन
कहीं नदियां उफन रही थी
कहीं सूख रही
आंखों का पानी भी तो सूख ही रहा अब
चीखों में बदल चुकी आवाज़ें
या चुप्पियों में
कुल्हाड़ियों में बदल चुके पेड़
या कुर्सियों में
सांस लेने के लिये
कुछ पौधे लगाने थे
कुछ उम्मीदें रोपनी थी
दुनिया जो आग का गोला बन चुकी
उसे बच्चों का प्लेग्राउंड बनाना था

अब समझे मेरी जान
और भी ग़म है ज़माने में मुहब्बत के सिवा…