भारतीय राजनीति में हॉर्स ट्रेडिंग कोई नया शब्द नहीं है। इसका उपयोग पहले भी होता रहा और अब भी हो रहा है। इसमें नया बदलाव ये आया है कि पहले कोई, किसी भी स्तर पर इसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इसे स्वीकार करने का साहस नहीं करता था, लेकिन अब लगता है कि कर्नाटक चुनाव के बाद इसे ‘मौन’ स्वीकृति मिल गई है।
Point of mind: ‘Silent’ acceptance of Horse Trading
‘मौन’ स्वीकृति इसलिए क्योंकि सामने आकर तो आज भी कोई नहीं कहेगा कि हार्स ट्रेडिंग हो रही है या वे कर रहे हैं, लेकिन नेताओं के हाल में आए बयानों पर गौर कीजिए। इन बयानों को पढ़कर इसकी हकीकत जान सकते हैं। बस करना इतना है कि इन बयानों के ‘बिटविन द लाइन’ देखना होगा। कई नेताओं के बयान आए कि यदि विधायकों को बंधक बनाकर नहीं रखा गया होता, तो भाजपा बहुमत साबित कर देती। कैसे, ये हम और आप सब जानते हैं। तस्वीर का दूसरा पहलू देखिये।इधर भाजपा बहुमत साबित नहीं कर पाई, उधर जेडीएस और कांग्रेस ने सरकार बना ली। ये कैसे हुआ, एक तरह से ये भी तो हॉर्स ट्रेडिंग है। व्यंग्य भी किया जा रहा है कि घोड़े के बजाय पूरा अस्तबल बिक गया। आप सोशल मीडिया का ट्रेंड देख लीजिए, हॉर्स ट्रेडिंग की ‘मौन’ स्वीकृति का मतलब समझ में आ जायेगा। यहां खुलकर कहा गया कि इतने विधायकों की जरूरत फलां पार्टी पूरा कर लेगी। और उससे बढ़कर इस काम के समर्थन में पोस्ट डाली गई।
Point of mind: ‘Silent’ acceptance of Horse Trading
‘मौन’ स्वीकृति इसलिए क्योंकि सामने आकर तो आज भी कोई नहीं कहेगा कि हार्स ट्रेडिंग हो रही है या वे कर रहे हैं, लेकिन नेताओं के हाल में आए बयानों पर गौर कीजिए। इन बयानों को पढ़कर इसकी हकीकत जान सकते हैं। बस करना इतना है कि इन बयानों के ‘बिटविन द लाइन’ देखना होगा। कई नेताओं के बयान आए कि यदि विधायकों को बंधक बनाकर नहीं रखा गया होता, तो भाजपा बहुमत साबित कर देती। कैसे, ये हम और आप सब जानते हैं। तस्वीर का दूसरा पहलू देखिये।इधर भाजपा बहुमत साबित नहीं कर पाई, उधर जेडीएस और कांग्रेस ने सरकार बना ली। ये कैसे हुआ, एक तरह से ये भी तो हॉर्स ट्रेडिंग है। व्यंग्य भी किया जा रहा है कि घोड़े के बजाय पूरा अस्तबल बिक गया। आप सोशल मीडिया का ट्रेंड देख लीजिए, हॉर्स ट्रेडिंग की ‘मौन’ स्वीकृति का मतलब समझ में आ जायेगा। यहां खुलकर कहा गया कि इतने विधायकों की जरूरत फलां पार्टी पूरा कर लेगी। और उससे बढ़कर इस काम के समर्थन में पोस्ट डाली गई।
ऐसी पोस्ट डालने वालों का मत था कि कैसे भी सरकार बनाई जाए। इसमें नैतिक-अनैतिक का कोई मोल नहीं रहा। तर्क ये था कि पहले भी ऐसा हुआ है, तो अब करने में क्या बुराई है। सोशल मीडिया ही क्यों, अखबारों में भी 100-100 करोड़ का दाम लगा दिया गया। पहले भी ये काम होता था और आने वाले समय में भी होता रहेगा, लेकिन चिंता की बात इसे इस तरह से स्वीकृति मिलना है। ये खतरनाक है
क्योंकि हंसना जरूरी है
हॉर्स ट्रेडिंग से सबसे ज्यादा दुखी गधे हैं। उनका कहना है कि वो घोड़ों से ज्यादा मेहनत करते हैं इसलिये ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ के बजाय इस टर्म का नाम ‘डंकी ट्रेडिंग’ किया जाए। वैसे देखा जाये तो गधों की मांग जायज भी लगती है।
सुधीर निगम
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं