हिंदुत्व की अवधारणा भी बाँट दी सियासत ने

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राजेश बादल

अब हिंदुत्व पर होड़ है।तेरे हिंदुत्व से मेरा हिंदुत्व उजला है।तेरा हिंदुत्व नक़ली,मेरा हिंदुत्व असली है।इस तरह की कुचर्चाओं से इन दिनों माध्यमों के सारे अवतार भरे पड़े हैं।पाँच प्रदेशों में चुनाव सर पर हैं इसलिए मतदाता मंडी में नफ़रत,उन्माद,घृणाऔर उग्र भावनाओं के भाव आसमान पर हैं।सत्ता हथियाने के लिए चुनाव के दिनों में समाज को बाँटने का अभियान तेज़ हो जाया करता है।चुनाव ख़त्म होने के बाद यह कहीं विलुप्त हो जाएगा।पहले हमारे देश में निर्वाचन सरकार के पाँच साल तक काम काज के मूल्यांकन का आधार बनते थे।अब किसी के खाते में उपलब्धियों का भण्डार लबालब नहीं होता लिहाज़ा निंदा और नफ़रत बेची जा रही है।उसी के आधार पर लुभाने की कोशिश है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में नरम और गरम हिंदुत्व भुनाने की होड़ मची है।मतदाता खिन्न और निराश है।भारतीय राष्ट्र राज्य की स्थापना के सिद्धांत अपना मख़ौल उड़ते देख रहे हैं।
बीते दिनों कांग्रेस के एक नेता की किताब बाज़ार में आई।उसके कुछ अंशों को बीजेपी ने लपक लिया।किताब में लेखक ने दोनों धर्मों में कट्टरता की आलोचना की है ।लेकिन बीजेपी को उसमें केवल हिंदुओं की आलोचना दिखाई दी।उसके बाद कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी ने हिन्दू और हिंदुत्व के मसले पर नई बहस छेड़ दी।भारतीय जनता पार्टी को हिन्दुओं को रिझाने का यह कांग्रेसी तरीक़ा पसंद नहीं आया।उसका विचार है कि हिंदू मतदाताओं पर उसका ही हक़ है और कांग्रेस तो हरदम मुस्लिमपरस्त रही है।संसार की सबसे बड़ी पार्टी को यह अफ़सोस नहीं है कि वह मुस्लिमों को आज़ादी के पचहत्तर साल बाद भी नहीं अपना सकी है ।
लेकिन अभी तो सवाल यह है कि कांग्रेस बार बार बहुसंख्यकों को यह बताने का प्रयास क्यों कर रही है कि वह उनकी विरोधी नहीं है।आज़ादी के कुछ समय पहले से बाद के अनेक दशकों तक कांग्रेस की छबि हिन्दू पार्टी की ही रही है।कुछ उदाहरण पर्याप्त होंगे।स्वतंत्रता से ठीक पहले अपने वतन लौटते लौटते बरतानवी हुकूमत ने आज़ाद हिन्द फौज के तीन सेनानियों पर मुक़दमा चलाने का फ़ैसला किया।इनमें एक हिन्दू,दूसरा सिख और तीसरा मुस्लिम था।सुनवाई के दरम्यान कर्नल गुरुबख्श ढिल्लन के सिख पिता बेटे के पास गए और उससे कहा कि वह माफी माँग ले। बेटे ने इंकार कर दिया। पिता ने कहा कि माफ़ी नहीं माँगनी तो मत माँगो,लेकिन अपना केस अकाली दल को लड़ने दो।वही सिखों की पार्टी है।कांग्रेस तो हिंदुओं की पार्टी है। वह तुम्हें न्याय नहीं दिला सकेगी।ढिल्लन ने उत्तर दिया कि यह पार्टी सभी धर्मों की पार्टी है।नेताजी सुभाषचंद्र बोस इसके अध्यक्ष रहे हैं।गांधी जी इसके प्राण हैं । हम सब पहले भारतीय हैं।मज़हब उसके बाद है।मत भूलिए कि हमारा मुक़दमा भूला भाई देसाई और नेहरू जी जैसे विद्वान लड़ रहे हैं।पिताजी अपना सा मुँह लेकर लौट गए।इस सन्दर्भ के ज़िक्र का अर्थ यह है कि कांग्रेस की पहचान हिन्दू पार्टी के रूप में ही थी। उससे सब संबद्ध थे।पर ,किसी भी धर्म के अनुयाई को ऐतराज़ नहीं था।सारी उमर नेहरूजी अपने नाम के आगे पंडित लगाते रहे मगर पार्टी ने मतदाताओं को यह बताने की ज़रुरत कभी नहीं समझी कि वह हिन्दुओं की हितैषी है।ख़ुद पंडित जवाहरलाल नेहरू अपनी पुस्तक मेरी कहानी के पृष्ठ क्रमांक 283 पर लिखते हैं,”भारतमाता अनेक रूपों में अन्य बालकों की भाँति मेरे हृदय में विराजमान है और अंदर के किसी अनजान कोने में कोई सौ पीढ़ियों के ब्राह्मणत्व के संस्कार छिपे हुए हैं।मैं अपने संस्कारों और नूतन ज्ञान से मुक्त नहीं हो सकता “।इसके बाद भी कांग्रेस की प्रतिपक्षी पार्टी नेहरूजी के हिंदुत्व पर सवाल करती है।
मुझे याद है कि बांग्लादेश जन्म के समय पाकिस्तान से जंग छिड़ गई थी और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दतिया के पीतांबरापीठ में बगुलामुखी माता के मंदिर में विजय यज्ञ कराने पहुँची थीं।उनके गले में हमेशा शिवमंत्र संरक्षित रुद्राक्ष रहता था।उस समय भी किसी राजनीतिक दल ने इसे उनका सॉफ्ट हिंदुत्व का प्रदर्शन नहीं माना।यही नहीं,स्वतंत्रता के बाद भी कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ही चीन -पाकिस्तान से युद्धों के दरम्यान सेनाएँ हर हर महादेव और बजरंग बली के नारे गुंजाते हुए मोर्चे पर बढ़ती थीं।नौसेना में जब कोई युद्धपोत शामिल होता था और अंतरिक्ष में जब उपग्रह प्रक्षेपण होता था तो वैदिक रीति रिवाज़ के अनुसार ही विधि विधान से अनुष्ठान होता था।आज भी होता है।आज भी प्रत्येक बड़ी परियोजना हिंदू विधि से मंत्रोच्चार के बीच शुरू होती है।यह प्रथा पंडित नेहरू के ज़माने से चली आ रही है।लेकिन किसी भी पार्टी ने कभी विरोध नहीं किया।नेहरू जी तो भाखड़ा नांगल बाँध हो या भिलाई स्टील प्लांट सबको आधुनिक तीर्थ कहते थे।उस समय के हिंदुस्तान ने इन उपमाओं का दिल खोलकर स्वागत किया था।
दृष्टिदोष तो राजीव गाँधी के समय प्रारंभ हुआ,जब अयोध्या में रामलला के मंदिर का ताला खुलवाया गया।तब तक भारतीय जनता पार्टी का जन्म हो चुका था,जो हिन्दू वोट बैंक पर अधिकार करना चाहती थी।ठीक वैसा ही,जैसे बहुजनसमाज पार्टी ने कांग्रेस का दलित वोट बैंक हड़पा और समाजवादी पार्टी ने ओबीसी और अल्पसंख्यक मतों में सेंध लगाईं।ले देकर कांग्रेस के खाते में सवर्ण और हिन्दू वोट बचा था,जिसे बाद में भारतीय जनता पार्टी ने काफी हद तक अपने खाते में ट्रांसफर कर लिया।वर्तमान राजनीति में धर्म के नाम पर वोट माँगे जा रहे हैं,जाति -उप जाति के नाम पर वोट मांगे जा रहे हैं तो यदि कांग्रेस पुराने दिनों को याद करते हुए बहुसंख्यकों से मत की अपेक्षा करती है तो किसी भी पार्टी को आपत्ति करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं दिखाई देता।भारतीय जनता पार्टी के प्रचार अभियानों में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता है।इसकी इजाज़त भारतीय संविधान नहीं देता। प देश की सबसे बूढी पार्टी ऐसा नहीं करती।उसके प्रति विपक्षी दलों के इस व्यवहार का अर्थ स्पष्ट है कि वे नहीं चाहते कि कांग्रेस का पुराना वोटबैंक वापस एक झंडे तले एकत्रित हो।