केवडिया। पीएम मोदी ने सरदार वल्लभभाई पटेल के जन्मदिन पर दुनिया में सबसे ऊंची उनकी प्रतिमा ‘स्टैचू आॅफ यूनिटी’ का उद्घाटन किया। मोदी ने इस मौके पर ‘देश की एकता, जिंदाबाद’ का नारा लगाते हुए ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के लिए पटेल के दिखाए रास्ते पर चलते रहने का आह्वान किया। मोदी ने कांग्रेस समेत विरोधियों पर हमले का मौका भी नहीं गंवाया।
Prime Minister of Iron Man Patel’s Staue of Unity inaugurated, said- Criticism has begun to honor the great tribals
पीएम ने कहा कि आज देश के उन सपूतों का सम्मान हो रहा है जिन्हें चाह कर भी इतिहास में भुलाया नहीं जा सकता। मोदी ने परोक्ष रूप से कांग्रेस पर पटेल का सम्मान नहीं करने का आरोप लगाते हुए निशाना साधा। हालांकि उन्होंने अपने संबोधन में कांग्रेस या किसी पार्टी का जिक्र नहीं किया लेकिन यह जरूर कहा कि आज महापुरुषों की प्रशंसा के लिए भी हमारी आलोचना होने लगती है।
इतिहास में दर्ज इन पलों को मिटाना मुश्किल: मोदी
पीएम मोदी ने कहा, ‘किसी भी देश के इतिहास में ऐसे अवसर आते हैं जब वे पूर्णता का एहसास कराते हैं। ये वे पल होते हैं जो किसी राष्ट्र के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो जाते हैं और उसे मिटा पाना बहुत मुश्किल होता है। आज का यह दिवस भी भारत के इतिहास के ऐसे ही कुछ क्षणों में से एक महत्वपूर्ण पल है। भारत की पहचान, भारत की सम्मान के लिए समर्पित एक विराट व्यक्तित्व को उचित स्थान नहीं दे पाने का एक अधूरापन लेकर आजादी के इतने वर्षों तक हम चल रहे थे। आज भारत के वर्तमान ने अपने इतिहास के एक स्वर्णिम पुरुष को उजागर करने का काम किया है।’
‘मुझे नहीं पता था कि कि पीएम के तौर पर मैं ही करूंगा उद्घाटन’
पीएम मोदी ने स्टैचू आॅफ यूनिटी का अनावरण करने के बाद कहा, ‘आज जब धरती से लेकर आसमान तक सरदार साहब का अभिषेक हो रहा है जब भारत ने न सिर्फ अपने लिए एक नया इतिहास रचा है बल्कि भविष्य के लिए प्रेरणा का गगनचुंबी आधार तैयार किया है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे सरदार साहब की इस प्रतिमा को देश को समर्पित करने का अवसर मिला है। जब गुजरात के सीएम के तौर पर इसकी कल्पना की थी तो एहसास नहीं था कि पीएम के तौर पर मुझे ही यह पुण्य काम करने का मौका मिलेगा।’
‘जब मैंने इसकी कल्पना की तो ढेरों आशंकाएं खड़ी की गईं’
पीएम मोदी ने कहा, ‘मुझे वे पुराने दिन याद आ रहे हैं और आज जी भरकर बहुत कुछ कहने का मन करता है। जब यह विचार मैंने सामने रखा था तो शंकाओं का वातावरण भी सामने आया था। देशभर के गांवों के किसानों से मिट्टी मांगी गई थी, खेती में इस्तेमाल किए गए पुराने औजारों को इकट्ठा करने का काम चल रहा था। जब उनके द्वारा दिए गए औजारों से सैकड़ों मीट्रिक टन लोहा निकला तब प्रतिमा का ठोस आधार तैयार किया गया।’
‘मैंने पहाड़ों में चट्टानें ढूंढी पर इतनी बड़ी नहीं मिली’
पीएम मोदी ने बताया कि पहले उन्होंने सोचा था कि एक बड़ी चट्टान को काटकर प्रतिमा बनाई जाए। उन्होंने कहा, ‘उस समय मैं पहाड़ों में चट्टान खोज रहा था ताकि नक्काशी से प्रतिमा बने। उतनी बड़ी और ताकतवर चट्टान नहीं मिली। मैं लगातार सोचता रहता था, विचार करता रहता था। आज जन-जन ने इस विचार को शीर्ष पर पहुंचा दिया। दुनिया की यह सबसे ऊंची प्रतिमा पूरी दुनिया को, हमारी भावी पीढ़ी को उस व्यक्ति के साहस संकल्प की याद दिलाती रहती रहेगी, जिसने मां भारती को खंड-खंड करने की साजिश को नाकाम किया था। जिस महापुरुष ने उस समय की सारी आशंकाओं को नकार दिया जो उस समय की दुनिया भविष्य के भारत के लिए जता रही थी। ऐसे लौह पुरुष सरदार पटेल को शत-शत नमन।’
‘राजा-रजवाड़ों का त्याग भी नहीं भुलाया जा सकता’
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में देश के एकीकरण में सरदार पटेल के प्रयासों को याद किया। उन्होंने कहा, ‘सरदार पटेल का सामर्थ्य तब भारत के काम आया था जब मां भारती साढ़े पांच सौ से अधिक रियासतों में बंटी पड़ी थी। दुनिया में भारत के भविष्य के प्रति घोर निराशा थी। निराशावादी उस जमाने में भी थे। उन्हें लगता था कि भारत अपनी विविधताओं की वजह से भी बिखर जाएगा। निराशाओं के उस दौर में सभी को उम्मीद की एक किरण दिखती थी और वह थे सरदार वल्लभभाई पटेल।
उनमें कौटिल्य की कूटनीति और शिवाजी महाराज के शौर्य का समावेश था। उन्होंने 5 जुलाई 1947 को रियासतों को संबोधित करते हुए कहा था कि विदेशी आक्रांताओं के सामने हमारे आपसी झगड़े, आपसी दुश्मनी, वैर का भाव हमारी हार की बड़ी वजह थी। अब हमें इस गलती को नहीं दोहराना है और न ही दोबारा किसी का गुलाम होना है।’
मोदी ने कहा, ‘सरदार साहब के इसी संवाद से एकीकरण की शक्ति को समझते हुए राजा रजवाड़ों ने अपने राज्यों का विलय कर दिया था। देखते ही देखते भारत एक हो गया। सरदार साहब के आह्वान पर देश के सैकड़ों राजे-रजवाड़ों ने त्याग की मिसाल कायम की थी। हमें राजा-रजवाड़ों के इस त्याग को भी कभी नहीं भूलना चाहिए। मेरा एक सपना है कि इसी स्थान से जोड़कर राजे-रजवाड़ों का भी एक वर्चुअल म्यूजियम तैयार हो ताकि उनका योगदान भी याद रहे।’