नई दिल्ली। राफेल डील पर मचे सियासी घमासान के बीच फ्रांस की सरकार ने शुक्रवार को स्पष्ट किया है कि भारतीय औद्योगिक पार्टनर के चुनाव में उसकी किसी तरह की भूमिका नहीं रही है। फ्रांस सरकार ने जोर देकर कहा कि फ्रेंच कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट के लिए भारतीय कंपनी का चुनाव करने की पूरी आजादी रही है। फ्रांस सरकार ने यह भी कहा कि दैसॉ ने सबसे बेहतर विकल्प को चुना। फ्रेंच कंपनी दैसॉ ने भी बयान जारी कर कहा है कि उसने आॅफसेट पार्टनर के रूप में खुद रिलायंस का चुनाव किया था।
Rafael Deal: Daisau Aviation did not have the second option, hence the name of Reliance as the partner.
यूरोप ऐंड फॉरेन अफेयर्स मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस पर बयान जारी कर सफाई दी है। इस तरह फ्रांस सरकार ने स्पष्ट किया कि इस डील में पार्टनर के चुनाव का काम दैसॉ ने किया था ना कि भारत सरकार ने। यह स्पष्टीकरण मीडिया की उस रिपोर्ट के बाद आया है जिसके मुताबिक पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कहा था कि 58,000 करोड़ रुपये के राफेल डील में दैसॉ एविएशन के पार्टनर के लिए रिलायंस डिफेंस का नाम भारत सरकार ने प्रस्तावित किया था और दैसॉ एविएशन कंपनी के पास दूसरा विकल्प नहीं था
फ्रांस सरकार ने कहा, ‘भारतीय अधिग्रहण प्रक्रिया के तहत, फ्रेंच कंपनी के पास भारतीय साझेदार कंपनी को चुनने का पूरा अधिकार है जिसे वो सबसे अधिक प्रासंगिक समझते हैं, तब उसे वह भारत सरकार के पास आॅफसेट प्रॉजेक्ट की मंजूरी के लिए प्रस्तावित करते हैं जिसे भारत में स्थानीय पार्टनर के साथ पूरा किया जाना है।’
उधर, दैसॉ ने बयान जारी कर कहा है कि इसने ‘मेक इन इंडिया’ के तहत रिलायंस डिफेंस को अपना पार्टनर चुना है। उसने कहा, ‘इस साझेदारी से फरवरी 2017 में दैसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड जॉइंट वेंचर तैयार हुआ। दैसॉ और रिलायंस ने नागपुर में फॉल्कन और राफेल एयरक्राफ्ट के मैन्युफैक्चरिंग पार्ट के लिए प्लांट बनाया है।’ दैसॉ ने कहा कि उनके सीईओ एरिक ने इस साल अप्रैल में भारत में दिए गए एक इंटरव्यू में इसे एक्सप्लेन किया थआ।
दैसॉ ने कहा कि उन्हें इस बात का गर्व है कि भारत ने राफेल खरीदने का फैसला किया। हालांकि तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति ओलांद ने अलग ही कहानी बताई है और उनके बयान पर अब राजनीतिक संग्राम मचा हुआ है। ओलांद ने कहा, ‘भारत की सरकार ने जिस सर्विस ग्रुप का नाम दिया, उससे दैसॉ ने बातचीत की। दैसॉ ने अनिल अंबानी से संपर्क किया। हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। हमें जो वातार्कार दिया गया, हमने स्वीकार किया।’ राफेल डील में बड़ी गड़बड़ी का आरोप लगाने वाला विपक्ष ओलांद के बयान के बाद बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर और हमलावर हो गया है।
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने ट्वीट कर ओलांद से पूछा, ‘कृपया आप हमें यह भी बताएं कि राफेल की 2012 में 590 करोड़ की कीमत 2015 में 1690 करोड़ कैसे हो गई। मुझे पता है कि यूरो की वजह से यह कैलकुलेशन की दिक्कत नहीं है।’ वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत तौर पर इस मामले में नेगोशिएट किया और बंद दरवाजों के पीछे राफेल डील को बदलवाया। फ्रांस्वा ओलांद का धन्यवाद, हम अब जानते हैं कि उन्होंने (पीएम) ने व्यक्तिगत तौर पर दिवालिया अनिल अंबानी को अरबों रुपये की डील दिलवाई थी।’