सत्ता वापसी का राहुल गांधी का फॉर्मूला साबित हो रहा कमजोर

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भोपाल। मप्र में राहुल गांधी के ट्रंप कार्ड माने जा रहे प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया फेल होते नजर आ रहे हैं। राज्य में चौदह साल से वनवास काट रही कांग्रेस की सत्ता में वापसी का राहुल गांधी फॉर्मूला कमजोर साबित हो रहा है। दरअसल, पिछले साल नौ सितंबर को जब प्रदेश प्रभारी के रूप में दीपक बावरिया को भेजा गया तो लगा पार्टी में अनुशासन के साथ ही मजबूत विपक्ष की भूमिका अदा हो सकेगी।
दीपक बावरिया ने भी एक के बाद एक बैठक कर राहुल गांधी का पार्टी नेताओं को संदेश साफ पढ़ा दिया कि अबकी बार कांग्रेस सरकार बनाने के लिए नेताओं को एकजुट होना पड़ेगा।

सोई पार्टी में जान फूंकने के लिए बावरिया के शुरुआती कदम पार्टी को मजबूत संगठन की दिशा में ले जाते दिखे, लेकिन सात महीने बाद तस्वीर बदलती नजर आ रही है। अब तो बावरिया की बैठकों में पार्टी के नेता ही नजर नहीं आ रहे हैं, न ही पार्टी आयोजन में शामिल हो रहे हैं। इसके साथ ही बावरिया के फैसलों को मान रहे हैं। आलम ये है कि बावरिया अपनी बेबसी खुद कई बार मीडिया में बयां कर चुके हैं। वहीं, कांग्रेस के अंदर मचे घमासान पर बीजेपी भी हवा देने का काम कर रही है।

इतना ही नहीं प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया बेबसी इस बात को लेकर भी जाहिर होती है कि बुजुर्ग नेताओं को चुनाव में टिकट नहीं देने के फॉर्मूले को वापस लेने पर कई बार सफाई देनी पड़ी। साथ ही टिकट के दावेदारों से आवेदन के साथ पचास हजार रुपए जमा कराने का भी फैसला बावरिया को वापस लेना पड़ा। कुल मिलाकर प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के रसूख और अपनी-अपनी सियासत के कारण बावरिया अब बुरे फंसे नजर आ रहे हैं और आलम ये है कि चुनाव से पहले राहुल गांधी का मप्र में बावरिया फॉर्मूला फ्लाप होता नजर आ रहा है। एक बार फिर पार्टी ने न्याय यात्रा के बहाने पार्टी के दिग्गज नेताओं को एक मंच पर लाने की कोशिश की गई, लेकिन ये भी बेअसर साबित रहा।