प्रदेश में सड़क, रोजगार और किसानों तक सिमटी सियासत, पानी की ओर नहीं किया का ध्यान, जनता मांग रही जवाब

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भोपाल। सड़क ऐसा मुद्दा है जिसके इर्द-गिर्द चुनावी साल में सूबे की सियासत घूमती रही, लेकिन पीने का पानी भी एक ऐसा सवाल जिसका जवाब कई दशकों से सूबे की जनता सियासतदानों से मांग रही है, क्योंकि कांग्रेस की सरकार रही हो या बीजेपी की, पिछले 25 सालों से ग्रामीण इलाकों में पानी की समस्या जस की तस है.
Roads, employment and farmers in the state, not limited to the limited politics, water, the public demanding answers
पथरीली राहों पर पानी की तलाश में निकलती महिलाएं, कीचड़ वाले गंदे पानी को पीने लायक बनाने की जद्दोजहद करते लोग, पानी की टंकियों पर सुरक्षाकर्मियों का पहरा, ये दृश्य रेगिस्तानी इलाके के नहीं बल्कि सबसे ज्यादा नदियों वाले प्रदेश यानी मध्यप्रदेश के हैं. सूबे में गर्मी जैसे-जैसे जोर पकड़ने लगती है ये दृश्य आम हो जाते हैं. इसका सबसे ज्यादा असर दिखता है बुंदेलखंड में जहां सूरज की तपिश से टूटती जमीन न अपनी प्यास बुझा पाती है और न ही यहां के बाशिंदों की.

इन हालात को देखकर सबके मन में सवाल उठता है कि सबसे ज्यादा नदियों वाले प्रदेश में भी रेगिस्तान की तरह पीने के पानी की समस्या आखिर क्यों है. इसके जवाब में जानकार कहते हैं कि पानी के असमान वितरण और सरकारों द्वारा लोगों तक पानी पहुंचाने के कृतिम साधनों को बढ़ावा न देना इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है. इस सबके बावजूद दोनों दलों के नेता इन इलाकों में आजादी के बाद से अब तक लगातार यही दावा करते जा रहे हैं कि वे सत्ता में आने पर पानी की समस्या खत्म कर देंगे.

आम लोगों से किए गए इन वादों की भुलभुलैया के बीच बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियां कई बार सत्ता में आईं और गईं, लेकिन इस समस्या को जड़ से मिटाने का विजन या यूं कहें कि इच्छाशक्ति शायद किसी के पास नहीं है या फिर वे सियासतदान अपने फायदे के लिए इन मुद्दों को जिंदा रखना चाहते हैं ताकि उनकी अहमियत बनी रहे.