TIO, सोलन
अशोक गौतम
मन कर रहा था कि जो कहीं वह मिले तो उसे कॉलर से पकड़ कर पूछूं , यार! ये क्या कर दिया तुमने? उनको चपेट में लेने से पहले उनकी पॉलिटिकल हिस्ट्री तो देख लेते। तुमने उनको भी अपनी चपेट में लिया? खुदा से डर यार! खुदा से! सदा को एक सी तो चांद सूरज की भी नहीं रही।
तुमने उनको चपेट में लिया, हम चुप रहे। तुमने उनको चपेट में लिया, हम फिर भी चुप रहे। सोचा, वे इतने बड़े नहीं थे कि तुम उनसे डरो। तुम ही क्या, उनसे तो मेरे जैसे भी नहीं डरते। तबसे बस, मन में एक ही इच्छा थी कि जो कहीं तुम गलती से मिलो तो आव देखूं न ताव ,तुम्हारे गाल पर इतनी जोर का तमाचा जड़ूं कि उसकी आवाज चीन के कानों तक सुनाई दे। तुम मिलो तो तुम्हारे गाल पर इतनी जोर से घूंसा जड़ू कि उसकी गूंज पाकिस्तान तक सुनाई दे। ये दूसरी बात है कि घर में आज तक मैं ही पिटता रहा हूं।
अभी गुस्से में लाल पीला, हरा नीला, मतलब, पल पल गुस्से से रंग बदलता उससे कभी इस कोण से तो कभी उस कोण से दो दो हाथ करने की सोच ही रहा था कि वह सामने! पर मैं भी डरा नहीं। मैंने उसे देख मास्क किनारे फेंका,सैनिटाइजर वाले हाथ धोए और उसके सामने आक्रामक मुद्रा में,‘ तो तुम अपने को चालीस मार खां समझने वाले वही बहुरूपिए हो न जिसके चलते कोई भी दूल्हा डरते डरते घोड़ी चढ़ , कंधे पर जैसे कैसे कटार धरे, मुंह पर मास्क लगाए, हाथों को मेहंदी के बदले सैनिटाइजर से सजाए, दूल्हे वाली किराए वाली पोशाक की जगह पीपीई किट पहने जब दुल्हन के घर की ओर मुट्ठी भर बारातियों के साथ कूच करता है…और जब रास्ते में उसे पता चलता है कि उसकी दुल्हन तो कंटेनमेंट जोन में आ गई है, तब तुमने कभी इतना भर भी सोचा है कि उस वक्त उसके मन पर क्या बीतती होगी? तुम दूल्हे होते तो फील करते यार! तुम क्या जानो बिन दुल्हन लिए घर लौटने वाले दूल्हे का दर्द! काश! तुम भी प्रेम किसीसे तो विवाह किसी और से करने का दुस्साहस कभी करते। अच्छा चलो, जिंदा जी मरने वाले दूल्हे की तो छोड़ो! वह बेचारा इस बहाने कुछ और मस्ती कर लेगा। पर अब तो तुमने हमारे लोकप्रिय नेता को भी अपनी शरण में ले लिया? तुम्हें शर्म वर्म भी कुछ है कि नहीं? किसीको चपेट में लेने से पहले उसकी हैसियत तो देख लिया कर यार! कल को जो लेने के देने पड़ गए तो….’
‘ तो क्या हो गया!’ बंदा मुंह पर मूंछें न होने के बाद भी मूंछों को ताव देता।
‘तुम्हें पता भी है कि वे कौन हैं? किस लेवल के हैं?’
‘ये तो तुम्हें पता रखना चाहिए। मेरे लिए तो हर आदमी एक मास्क है, सैनिटाइजर की शीशी है। मैं बड़े छोटे में भेद नहीं करता दोस्त! अपनी डिक्शनरी में तो बस, समाजवाद ही समाजवाद है,’ बंदा मेरे पड़ोसी भी अधिक मुंह फट्ट! मैंने तो सोचा था कि मेरा पड़ोसी ही सबसे अधिक मुंह फट्ट है तीनों लोकों में। कुएं का मेंढक हूं न! कुंए से बाहर निकलो तो आपको एक से एक मुंह फट्ट मिल जाएंगे। मुंह फाड़े हुए।
‘पर यार! ये जो तुम कर रहे हो ,ये ठीक नहीं! आखिर तुम रहते कहां हो?’ मैंने पता नहीं किस इरादे से उससे पूछा तो वह मुंह फाड़ता पूरा दार्शनिक हो बोला, जिस तरह भगवान सृष्टि के कण कण में विद्यमान हैं, उसी तरह मैं भी जन जन में विद्यमान हूं। कुत्ते से लेकर अपर क्लास के लुच्चे तक में। रेस्ट से लेकर हर टेस्ट में। शक हो तो अपना भी टेस्ट करा तो देखो। अब रही बात गलत ठीक की तो डियर! यहां क्या ठीक है, क्या गलत, ये मुंह टू मुंह मैटर करता है। सच पूछो तो सृष्टि में न कुछ गलत है, न कुछ सही। दूसरे , क्या गलत है, क्या सही, ये सोचना पावर वाले का काम होता है, तुमसे फटी कपीन वाले का नहीं। जो पावरहीन होते हैं,वे तुम्हारी ही तरह सड़क पर चिल्लाते हैं, संसद में चिल्लाते हैं। चिल्लाने का जो मिल जाए उसे अपना नसीब समझ चुपचाप खाते हैं,’ सुन मैं परेशान! परेशान इसलिए कि भाईजी की कोई भी बात मेरी समझ में नही आ रही थी। यह मेरे गुस्से का नतीजा था या फिर…
‘तो उनके बदले उनके किसी खास को हो जाते? विकास का पहिया रुक गया तो??’
‘तुम बच सकते हो तो बचो! मुझे किसे होना है, किसे नहीं, यह देखना मेरा काम है। तुम सरकार के बुद्धिजीवी प्रकाष्ठ में प्र भी नहीं, और मुझे नसीहत देने का दुस्साहस कर रहे हो?’
‘पर फिर भी….’ मैंने अपने मुंह पर जेब से मास्क निकाल लगाते कहा तो वह बोला,‘ गुड! हर अच्छे नागरिक के मुंह पर मास्क और जुबान पर ताला ही शोभा देता है,’ और जनाब गुनगुनाता आगे हो लिए। राम ही जाने! कल कौन उनकी चपेट में आ अखबार की सुर्खियां बने?
अशोक गौतम