निंदक रोज डराइए, ताकि दूर भाग जाए

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राकेश अचल

ऊपर वाला जब चौंच देता है ,तो दानों का इंतजाम भी कर ही देता है.मई हर रोज पौ फटते ही सोचता हूँ कि आज किस मुद्दे पर अपने मित्रों के बीच जाऊंगा ,और कमाल देखिये कि मुझे रोज एक न एक नया और ताज़ा मुद्दा मिल ही जाता है. आज बात ‘ निंदक ‘ की करते हैं. ‘ निंदक ‘ यनि रोजनामा यानि रिसाला यानी अखबार और एक न्यूज चैनल की है .अब रियाया के साथ-साथ मुल्क के अखबार भी सत्ता के निशाने पर हैं ,क्योंकि वे दूसरे धंधों के साथ-साथ सरकार की निंदा करने का काम भी जैसे-तैसे कर ही रहे हैं .
इस समय जब आप ये आलेख पढ़ रहे होंगे तब देश के इनकम टैक्स वाले देश के एक बहुसंस्करणीय हिंदी अखबार दैनिक भास्कर के मालिकों के प्रतिष्टाह्नों और घरों को खंगाल कर लौटने की तैयारी कर रहे होंगे .इनकम टैक्स वालों का काम ही है कर अपवंचन करने वालों का पता लगाना .अखिर ये महकमा बना ही इसलिए है लेकिन जब ये महकमा किसी के ‘ छू ‘ करने पर खोजी कुत्ते की तरह किसी संस्थान पर टूट पड़ता है ,तब कुछ न कुछ शंका होती है .इधर अखबार ने जासूसी के मामले में अपना एक ट्वीट क्या किया ,उधर अखबार के मालिकों को देश का सबसे बड़ा कर अपवंचक मानकर उस पर छापामार कार्रवाई शुरू कर दी .
दैनिक भास्कर ही नहीं कोई दूसरा अखबार हो यदि कर चोरी करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई से भला किसे इंकार हो सकता है ? लेकिन जब झुंझलाहट में कोई सरकार खिसियानी बिल्ली की तरह खम्बा नोचती है तो हँसी भी आती है और तरस भी बीते पचास साल में इस देश का हर आदमी जान चुका है कि इस देश में संवैधानिक ही नहीं अपितु कानूनन स्थापित संस्थाएं कैसे सत्ता के लिए तोते,मैंने या केंचुओं की तरह काम करती हैं ? लेकिन इससे क्या होता है ,कुछ नहीं होता.कोई टूटता है ,कोई छूटता है और कोई टिका रहता है .
मुझे याद है,तो जाहिर है कि आपमें से बहुतों को भी याद होगा कि एक जमाने में तत्कालीन केंद्र सरकार ने कैसे एक बड़े अखबार समूह की इमारत पर रात के अँधेरे में बुलडोजर चढ़वा दिए थे .उस अखबार के मालिक उस समय ऐसे लोगों के पनाहगार या समर्थक थे जो कि आपातकाल के खिलाफ थे .लेकिन आपने देखा होगा कि बुलडोजर हारे थे और जीत अखबार की हुई थी .ये अजीब इत्तफाक है कि मुझे तबके आपातकाल का शिकार हुए एक्सप्रेस समूह और आज के नए शिकार दैनिक भास्कर समूह में काम करने का लंबा और अच्छा तजुर्बा है .आज फर्क सिर्फ इतना है कि सत्ता से टकराने वाले नाम बदल गए हैं .तब ये नाम राम नाथ गोयनका का होता था,आज उनकी जगह सुधीर अग्रवाल हैं .
निस्संदेह भास्कर समूह बहुधंधी है.उसके खिलाफ शिकायतों और आरोपों की एक ना खत्म होने वाली फेहरिश्त भी है भास्कर समूह संतों का समूह है ऐसे भी मुझे नहीं लगता,लेकिन मुझे पता है कि बहुधंधी होते हुए भी दैनिक भास्कर समूह ने सत्ता प्रतिष्टान से जितना लाभ लिया है उतना ही निकट रिश्ता पाठकों से भी बनाया है .ये रिश्ता ही समूह की ताकत है.इसी की बिना पर समूह पत्रकारिता के इतर दूसरे धंधे कर रहा है और निश्चित ही अखबार की वजह से समूह को अपने हर धंधे में कुछ न कुछ फायदे भी होते होंगे .लेकिन सवाल ये है कि भास्कर समूह को बीते सात साल में रडार पर क्यों नहीं लिया गया ?
दैनिक भास्कर समूह के दिवंगत स्वामी रमेश अग्रवाल के इस देश की केंद्रीय सत्ता के साथ ही राज्यों की सत्ता से मधुर संबंध रहे हैं ,बावजूद इसके दैनिक भास्कर खुले रूप से किसी सत्ता का या दल का ‘ माउथपीस ‘जैसा तो कभी नहीं लगा .समूह ने जो फायदे उठाये होंगे वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को गिरवी रखकर हासिल किये होंगे ऐसा नहीं लगता .अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को गिरवी रखना और कुछ समझौते करना दो अलग चीजें हैं .दैनिक भास्कर के खिलाफ इस वक्त ये कार्रवाई सिर्फ इसलिए की गयी क्योंकि एक अखबार के नाते उसने दौरे हाजिर के मुद्दों पर अपनी तरफ से पर्दे नही ताने ,उन्हें छिपाया नहीं .अखबार चाहता तो ऐसा कर सकता था ,लेकिन उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि उसमें थोड़ी लाज-शर्म बाक़ी थी.उसने पाठकों का साथ नहीं छोड़ा जबकि सरकार ने अपनी उस जनता का साथ छोड़ दिया जिसने उसे जनादेश देकर सत्ता तक पहुंचाया था .
आज देश की हिंदी पत्रकारिता में एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो दैनिक भास्कर समूह से अपनी रोजी-रोटी हासिल कर एक मुकाम पर पहुंचे हैं. इनमें से अनेक ऐसे होंगे जिनके इस समूह के साथ हकों को लेकर विवाद भी चल रहे होंगे ,लेकिन इनमें से शायद ही ये कहने की स्थिति में होगा की इस समूह ने अपना जमीर बेचकर अखबार निकाला और इसी की सजा उसे मिल रही है .भास्कर समूह ने कर अपवंचन किया है तो उसके खिलाफ मामले दारज कीजिये,मुकदमे चलाइये ,जुर्माने कीजिये और अगर क़ानून में कर अपवंचन के लिए फांसी की सजा हो तो वो भी दे दीजिये .इससे प्रतिकार की पत्रकारिता पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है .
मीडिया के खिलाफ जो केंद्र की सर्कार ने किया उसी का अनुशरण यूपी में माननीय योगी जी की सरकार ने किया यूपी में भी योगी सरकार की वो ही दशा देश में मोदी सरकार की है.दोनों सरकारें लोकनिंदा से आतंकित हैं,दोनों सरकारें सियासत में प्रतिशोध का सहारा ले रहीं हैं. विरोधियों को जेलों में डाल रहीं हैं,मुठभेड़ें करा रहीं हैं और सड़कों पर प्रदर्शन करने वालों को धमका रहीं हैं .खैर …
आज अखबार या टीवी केवल संचार का माध्यम हैं ,ये जनमत नहीं बनाते .अखबार और टीवी चैनलों के इतर आज सम्प्रेषण और अभिव्यक्ति के इतने तरीके हैं कि सरकार चाहे भी तो सबको ‘ नथ ‘ नहीं पहना सकती .किसी भी देश में ये नामुमकिन है .नथी हुई अभिव्यक्ति केवल तानाशाहों के बूते का काम है. भारत जैसे देश में यदि ऐसे प्रयोग किये जा रहे हैं तो ये उन्हें मुंह की खाना ही पड़ेगी .दैनिक भास्कर समूह और यूपी के न्यूज चैनल पर आयकर के छापों को लेकर संसद में अनुगूंज सुनाई दे रही है ,लेकिन सरकार के कान बंद हैं. उसे न संसद के भीतर की आवाजें सुनाई देती हैं और न संसद के बाहर की.संसद के बाहर देश का किसान बैठा है .उसके पीछे भी क्या सरकार अपने पालतू तोते,मैने या केंचुए छोड़कर उन्हें तीतर-बितर करेगी .
अब भी वक्त है कि सत्ता प्रतिष्ठान हकीकत को समझे.निंदकों को अपने नियरे आंगन में कुटिया तैयार कर रखे,उनके ऊपर पानी की बौछारे,अश्रु गैस के गोले और पुलिस की लाठियां न बरसाए ,अन्यथा गरीब की है लगेगी. गरीब की हाय से लोहा तक भस्म हो जाता है .भास्कर समूह गरीब की है नहीं है ,वो गरीब की जोरू भी नहीं है,भास्कर एक बड़े जन समूह का प्रतिनिधित्व करता है बस.उसके ऊपर हिंदी को बिगाड़ने के सच्चे आरोप हैं .पत्रकारिता का चेहरा बदलने के दर्जनों आरोप हैं बावजूद इसके भास्कर जनता के सरोकारों के साथ खड़ा दिखाई देता है .