भाजपा में सिंधिया समर्थक: मिश्री की तरह घुले न दूध में पानी तरह मिले…

0
419

TIO राघवेंद्र सिंह

मध्य प्रदेश भाजपा में संगठन और सरकार को लेकर सीज़फायर के हालात बनते दिख रहे हैं। इसके पीछे प्रदेश में होने वाले एक लोक सभा और तीन विधान सभा के क्षेत्रों के उपचुनाव व नगरी निकायों का चुनाव खास वजह माना जा रहा है। हालांकि इन चुनावों की अभी कोई तारीख नही आई है, लेकिन हाई कमान कुनबे में किसी तरह की कोई कलह नही चाहता है। इस सबके बीच करीब डेढ़ साल पहले भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों का एकरस नही हो पाना बड़ी चिंता का विषय है।
कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए सिंधिया महाराज तो काफी हद तक पार्टी लाइन पर चलने और संघ के संस्कारों को आत्मसात कर रहे हैं, लेकिन उनकी टीम इस मामले में पिछड़ रही है। संगठन और संघ के थिंक टैंक को यही चिंता दिन- रात लगी हुई है।

सिंधिया के साथ आए विधायक शिवराज सरकार में मंत्री तो बन गए मगर उनकी कार्यशैली अभी भी कांग्रेसी कल्चर पर ही चल रही है। भाजपा कार्यकर्ताओं से उनकी दूरी और प्रदेश कार्यालय से उनका परहेज बताता है कि सत्ता की गंगोत्री में गंगा-जमुना के पानी की तरह इनकी धाराएं अलग अलग नीली और हरे रंग की हैं। सिंधिया कैम्प के मंत्रियों का प्रदेश कार्यालय से दूरी बनाना आज नही तो कल विवादों का सबब बनने वाला है। अभी भी सिंधिया समर्थक मंत्री पार्टी के भीतर एक अलग आयलैंड की तरह नज़र आते हैं।सिंधिया के आने पर उनका गुट बनाकर आना जाना और अन्य केंद्रीय मंत्रियों के आगमन पर गैरहाज़िर रहना भाजपा की निर्गुटीय नीति से मेल नही खाता। आगे जाकर इसे असंतोष और अलगाव की तरफ जाने के खतरे पैदा होने के संकेत के रूप में माना जा रहा है। लगता है कि सिंधिया भी अपने मंत्री, विधायक और नेता व कार्यकर्ताओं को भाजपा की रीति नीति के अनुसार काम करने के निर्देश नही दे पाए हैं। कांग्रेस आए मंत्री व विधायक आदि भी सिंधिया की भाजपा नेतृत्व की समर्पित लाइन पर अमल नही कर पा रहे हैं। दिल्ली में जिस तरह सिंधिया भाजपा है कमान के निर्देशों का पालन कर रहे हैं और संघ के मुख्यालय नागपुर से लेकर झंडेवालान और भोपाल में संघ कार्यालय समिधा से तालमेल बनाकर भविष्य की राजनीति को मजबूत कर रहे हैं। इस तुलना में उनके मंत्री विधायक पिछड़ गए हैं। पार्टी व संघ के नेताओं का मानना है की सिंधिया तो संगठन में मिश्री की तरह घुल रहे है लेकिन उनके समर्थक दूध में पानी की तरह न तो मिल पा रहे है और न ही मिलने की कोशिश करते दिख रहे हैं। हो सकता है आने वाले समय में संगठन व संघ, सिंधिया को समर्थकों के बारे में कुछ समझाइश भी दे।

भाजपा में प्रवक्ताओं को लेकर अनिश्चित्ता
प्रदेश भाजपा में यूं तो कई काम आधे अधूरे हैं लेकिन प्रवक्ता, मुख्य प्रवक्ता व पैनलिस्ट को लेकर अनिश्चित्ता के बादल छाए हुए हैं। इस इस सम्बंध में सूची महीनों से तैयार लेकिन घोषणा लटकी हुई है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि भाजपा सोशल, प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछड़ रही है। भोपाल में पिछले दिनों हुई कार्यसमिति की बैठक के दौरान भी इस पर कमजोरी पर चर्चा हुई। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से लेकर दिल्ली से आये शिवप्रकाश जैसे दिग्गजों ने भी नाराजगी जताई। इस मुद्दे पर प्रदेश भाजपा संगठन के नंबर कम हो रहे हैं। भाजपा नेताओं ने अपनी टीम को कांग्रेस की तुलना में कमज़ोर माना। कांग्रेस और उसकी टीम मीडिया भाजपा से बढ़त बनाये हुए है। संकेत मिले है कि भाजपा की मीडिया टीम में आने वाले दिनों में कुछ बड़े बदलाव हो सकते हैं। इन हालातों के बीच सरकार पर संगठन के अप्रत्यक्ष हमलों में भी कमी आ सकती है। इसे हम सीज़फायर के रूप में देखते हैं।