परिंदों की परवाज़ है ये
क्षितिज का आगाज़ है
ऊंचाई कि बुलंदियों पे
दी गई आवाज़ है
कदम तेरे थके नहीं
राह में तू रुके नहीं
दे हिम्मतों को हौसला
बना इक ज़मीं नई
है राह ये लंबी तो क्या
वो मंज़िलें भी आएंगी
प्यासे के पास देखना
खुद नदी भी आएगी
हर एक से जुड़ यूँ
फिर ज़िन्दगी सँवार दे
इस ज़िन्दगी के दर्द तू
आ ठोकरों पे मार दे
हौसलों के आगे फिर
हर एक डर डर जाए
जो देखे तुझे एक बार
हौसले से भर जाए
निकल इस स्वार्थ से
ऐसा एक काम कर
आ ज़िन्दगी अपनी तू
दूसरों के नाम कर
दूसरों कि मदद का
क्यों इतना तलबगार है
भीतर अपने देख तू
खुद ख़ुदा मददगार है
दरकार नहीं पंख की
हौसलों कि उड़ान है
परिंदा तू क्षितिज का है
क्षितिज तेरी पहचान है
फकीरा(Ansh)~