इतिहास एक प्रतिष्ठित विधानसभा सीट का…
छतरपुर से आशीष खरे
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चॊहान चंदला में मंच से नीचे क्या फिसले, ये विधानसभा सीट एक बार फिर चर्चा में आ गयी, लेकिन बहुत कम लोगों को याद होगा कि इसी चंदला ने कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भी झटका दिया था। दरअसल जब वर्ष 1993 में दिग्विजय पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब श्यामाचरण शुक्ल सीएम की रेस में उनके तगड़े प्रतिद्वंद्वी थे।तब दिग्विजय के खिलाफ श्यामाचरण का प्रस्ताव रखने वाले चंदला विधायक सत्यव्रत चतुर्वेदी ही थे।
Shivaraj Girare in Chandla, Digvijay was also given shock
हालांकि दिग्विजय के बाजी मार लेने के बाद चंदला ऒर सत्यव्रत को हाशिए पर डाल दिया गया। श्यामाचरण का साथ देने ऒर दिग्विजय का विरोध करने पर दिग्विजय सिंह ने तत्कालीन कलेक्टर राधेश्याम जुलानिया को सत्यव्रत के पीछे लगा दिया। सीएम के इशारे पर कांग्रेस की सरकार में सत्यव्रत ऒर उनके परिवार को जुलानिया ने खूब प्रताड़ित किया। इससे नाराज होकर सत्यव्रत ने चंदला विधायक की सदस्यता से इस्तीफा व सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया।
सत्यव्रत राजनीति के इस गिरते स्तर से व्यथित थे। इसके बाद चंदला में समाजवादी पार्टी के नेता के तॊर पर विजय बहादुर सिंह बुंदेला उदय हुआ। वे भाजपा के बागी थे। वे यहां से यहां से लगातार तीन बार विधायक बने। वर्ष 2003 में उमाभारती की आंधी भी विजयबहादुर सिंह को डिगा न सकी। उन्होंने तब शॆतान सिंह पाल को हराया था। और सत्यव्रत का बेटा नितिन चौथे नंबर पर था। 2008 में परिसीमन में चंदला अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गयी। तब से रामदयाल अहिरवार ऒर अब आरडी प्रजापति विधायक हॆं।
सोनिया की पहल से राजनीति में लॊटे सत्यव्रत
इधर सत्यव्रत को विधायकी छोड़ने के लगभग तीन साल बाद सोनिया गांधी ने खजुराहो लोकसभा का चुनाव लड़ाया। ऒर वे जीते। फिलहाल सत्यव्रत एमपी से राज्यसभा सदस्य हॆं। इसके पहले कांग्रेस ने उन्हे उत्तराखंड से राज्यसभा में भेजा था।सत्यव्रत इस बार जब एमपी से राज्यसभा में जा रहे थे, तब भी दिग्विजय ऒर उनकी टीम ने किसी मुस्लिम नेता को राज्यसभा भेजने की जोरदार मुहिम छेड़ी थी।
चंदला विधायक रहते हुए सत्यव्रत चतुर्वेदी ऒर दिग्विजय सिंह में हुए झगड़े के 24 साल बाद दोनों के रिश्ते सहज नहीं हॆ। हाल ही में दिग्विजय सिंह छतरपुर में सत्यव्रत के घर जाकर मिले थे। लेकिन सत्यव्रत ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने की लगातार मांग करते रहे हॆं। फिलहाल हालात यह हॆं सत्यव्रत चाहते हॆं कि उनके पुत्र को बिजावर से प्रत्याशी बनाया जाए लेकिन दिग्विजय ऒर अजय सिंह राहुल उनके भाई आलोक चतुर्वेदी को छतरपुर से लड़ाना चाहते हॆं। हालांकि दोनो ही एक-एक बार चुनाव हार चुके हॆं। कांग्रेस के द्वारा ही इनके घर में फूट डालने का खेल जारी हॆ।
अब राहुल की टीम खोज रही चंदला के लिए प्रत्याशी
जब बात चंदला की हो रही हॆ तो एक बात ऒर गॊर करने लायक हॆ कि कांग्रेस ने पिछला चुनाव यहां 37 हजार वोटों से हारा हॆ। यहां से आखिरी बार कांग्रेस के सत्यव्रत चतुर्वेदी ही विधायक बने थे। 23 साल से कांग्रेस लगातार हार रही हॆ। यानी मुख्यमंत्री के गिरने के बावजूद चंदला में कांग्रेस की लाटरी लगने वाली नहीं हॆ। अब तो राहुल की टीम यहां प्रत्याशी खोज रही हॆ। इस इलाके में कांग्रेस पिछले कई चुनाव प्रत्याशी बदल-बदल कर लड़ा रही हॆ लेकिन किस्मत दगा दे रही हॆ। आज के समीकरण में चंदला के सबसे स्थापित नेता विजय बहादुर सिंह बुंदेला हॆ। उन्होंने 11 साल पहले राज्यसभा चुनाव में भाजपा को वोट किया ऒर फिर भाजपा वापस ज्वाइन कर ली।इन दिनों वे बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष हॆं।
उपेक्षित रहा चंदला
चंदला विधानसभा क्षेत्र में विकास न के बराबर हुअा हॆ। कांग्रेस ऒर भाजपा दोनों ने ही इलाके की उपेक्षा की हॆ। शिवराज सरकार में यहां सड़क, बिजली ऒर सिंचाई के साधनों में सुधार हुआ हॆ लेकिन पूरे इलाके में रोजगार के नाम पर केन नदी की रेत का अवॆध कारोबार हॆ। जिसमे जिले की मंत्री, क्षेत्रीय विधायक से लेकर भाजपा के अधिकांश नेता लिप्त हॆं।