शिवराज, राकेश और भार्गव की तिकड़ी के मुकाबले नाथ-दिग्‍गी की जोड़ी

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पंकज शुक्ला
मिशन 2019 की औपचारिक घोषणा हो गई है। मप्र में चार चरणों में मतदान होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि दोनों ही प्रमुख दलों कांग्रेस और भाजपा को प्रचार के लिए अपनी ताकत को उचित रूप से विभाजित करने का मौका मिल जाएगा। चार माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा ने तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एकल नेतृत्‍व में चुनाव लड़ा था वहीं अब पार्टी ने अपने तीन प्रमुख नेताओं पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराज, प्रदेश अध्‍यक्ष राकेश सिंह और नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव को केन्‍द्र में रख चुनावी रणनीति बनाई है। कांग्रेस ने मुख्‍यमंत्री और पार्टी अध्‍यक्ष कमलनाथ, सांसद ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया और पूर्व मुख्‍यमंत्री दिग्विजय सिंह की अगुआई में विधानसभा चुनाव फतह किया है। अब सिंधिया को राष्‍ट्रीय महासचिव बना कर उप्र का प्रभार दे दिया गया है। जाहिर है, उनकी ताकत और अधिकांश समय उप्र में गुजरेगा। तो मप्र में कांग्रेस को बेहतर उम्‍मीदवार के साथ अपने दोनों वरिष्‍ठ नेताओं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के मैदानी परिश्रम के भरोसे रहना होगा। यही इस बार के चुनाव प्रचार का दिलचस्‍प पहलू होगा क्‍योंकि प्रदेश में 29 में से 26 सीटों पर भाजपा के सांसद हैं और कांग्रेस इस बार अपना आंकड़ा 3 से बढ़ा कर दो अंकों में लेना जाना चाहती है।
विधानसभा चुनाव सम्‍पन्‍न होने के बाद ही लोकसभा चुनाव की तैयारियां आरंभ कर दी गई थी। अब तक पूरा ध्‍यान उपयुक्‍त प्रत्‍याशी चयन की ओर था। अब दोनों पार्टियों को प्रचार और कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने की रणनीति पर काम करना होगा। भाजपा ने प्रदेश के शीर्ष नेताओं के बीच बढ़ी खींचतान को भांपते हुए पहले ही प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव को एक साथ ला खड़ा किया है। ये तीनों नेता अलग-अलग दौरे व सभाएं कर रहे थे। इसका गलत संदेश जाता देख पार्टी नेतृत्‍व ने तीनों नेताओं को एक साथ सभाएं करने का जिम्‍मा दे दिया। 10 मार्च को नीमच जिले के सरवानिया महाराज में विजय संकल्प जनसभा के साथ यह काम शुरू भी हो गया। राकेश सिंह, शिवराज और भार्गव एक साथ संसदीय क्षेत्रों में जाएंगे। इन नेताओं के साथ केन्‍द्रीय मंत्री नरेन्‍द्र सिंह तोमर, राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष प्रभात झा, संगठन महामंत्री सुहास भगत, प्रदेश उपाध्‍यक्ष विजेश लूनावत आदि की ताकत काम करेगी।
कांग्रेस की तैयारी इस मामले में थोड़ी पिछड़ी है। सांसद सिंधिया को महासचिव बना कर उप्र भेज कर उनका कद तो बढ़ाया गया लेकिन मप्र में कांग्रेस की ताकत बंट गई। उनकी अनुपस्थित या कम उपस्थिति में ग्‍वालियर-चंबल क्षेत्र में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधारने की जिम्‍मेदारी उनके समर्थक नेताओं, विधायकों और मंत्रियों पर होंगी। प्रदेश के प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया और प्रदेश अध्‍यक्ष कमलनाथ टिकट वितरण को लेकर बैठकें और चर्चाएं कर रहे हैं मगर दिग्विजय सिंह की भूमिका अभी तय नहीं हुई है। सहज ही आकलन हो सकता है कि मप्र में सबसे अधिक सक्रिय कांग्रेस नेता के रूप में दिग्विजय सिंह की राय न केवल टिकट चयन में बल्कि प्रचार रणनीति और प्रबंधन में भी महत्‍वपूर्ण रहेगी। मुख्‍यमंत्री नाथ के साथ दिग्विजय को ही प्रचार रणनीति पर काम करना होगा। पार्टी को पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी की भूमिका का निर्धारण भी करना होगा क्योंकि जब प्रदेश के अधिकांश शीर्ष नेता चुनाव मैदान में होंगे अत: 29 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस के समग्र प्रचार व प्रबंधन अभियान के लिए पचौरी के साथ वरिष्‍ठ नेता महेश जोशी, रामेश्‍वर नीखरा, सांसद विवेक तन्‍खा, राष्‍ट्रीय सचिव महेन्‍द्र जोशी आदि को विभिन्‍न मोर्चें संभालने होंगे।