साहब की आशीर्वाद यात्रा

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हास्य/व्यंग्य
@ राकेश अचल

ऊपर वाले की इनायत है कि साहब का यात्रा करने का ख्वाब जैसे-तैसे पूरा हो गया .साहब करना तो धार्मिक यात्रा चाहते थे लेकिन ये मरदूद कोरोना बीच में आ टपका .आफ़तें बीच में ही आकर टपकतीं हैं .कोरोना भी किसी आफत से कम तो नहीं है. कोरोना ने साहब के डेढ़ साल बरबाद कर दिए.डेढ़ साल से घर में नजरबंद थे,वरना साहब के तो पांवों में चक्कर है.घर में कभी रुकते ही कहाँ हैं ? हमेशा यात्राओं पर ही रहते हैं .
साहब की बड़ी हसरत थी कि इस बार कैलाश मानसरोवर यात्रा नहीं जा पाएं तो कम से कम अमरनाथ की यात्रा तो कर ही लेंगे. साहब के पास बजट-सजट सब था ,लेकिन नसीब नहीं था यात्रा का .बदनसीबी कहिए कि सरकार ने अमरनाथ यात्रा को रद्द कर दिया .साहब के अरमानों पर तो जैसे गाज ही गिर गयी .गाज जानते हैं न आप ? गाज माने आसमानी बिजली ! जहाँ गिरती है,तबाही मचा देती है .साहब के अरमानों पर गिरी तो साहब के अरमान तबाह हो गए .
हमारे साहब बड़े ही इम्पोर्टेन्ट आदमी हैं. इतने इम्पोर्टेन्ट कि साहब के लिए हमारी सरकार कुछ भी कर सकती है .साहब ने सरकार के लिए अपना दिल,दिमाग और इष्ट तक बदल लिया था पिछले साल .ये तीनों चीजें बदलने को सियासी हलकों में दल-बदल कहते हैं .साहब ने दल-बदल किया तो बदले में उन्हें बड़ा साहब यानी वजीर बना दिया गया ,कलियुग में वजारत सबसे ज्यादा रुतबे की चीज होती है .
बड़े साहब को जैसे ही छोटे साहब की तकलीफ का पता चला तो वे परेशान हो गए. उन्होंने साहब का गम गलत करने के लिए योजना मंडल की आपात बैठक बुलाई और साहब के लिए कोई यात्रा प्लान करने का हुक्म दे डाला .हमारी सरकार का जो सिस्टम है वो प्लानिंग में विश्वस्तरीय है. हमारा सिस्टम और कुछ करे या न करे लेकिन प्लानिंग सबसे अच्छी करता है .सिस्टम ने बड़े साहब के हुक्म पर छोटे साहब के लिए एक यात्रा की रूप रेखा बनाई और नाम दे दिया ‘जन आशीर्वाद यात्रा ” का
बड़े साहब ने छोटे साहब समेत जितने भी नए दलबदलू थे उन सबको ‘ जन आशीर्वाद यात्रा ‘ पर निकल जाने का हुक्म सुना दिया .औरों का तो पता नहीं लेकिन हमारे दोस्त ये सूचना सुनकर बल्लियों उछल पड़े .वे तो यात्रा पर जाने के लिए बैठे ही उपासे थे .फौरन तैयारियों में जुट गए .पूरा रोड मेप तैयार कराया. रास्ते के लिए खान-पान और तम्बू -संबू का इंतजाम करने के लिए इंतजामियां कमेटी को कह दिया.
हमारे छोटे साहब के साथ वैसे इस मर्तबा जनता ने दगा किया.उन्हें सत्ता में रहने का जनादेश नहीं दिया .जनता जो न करे सो थोड़ा. जनता ने साहब की पीठ पर पराजय लिखकर पूरे खानदान के नाम पर बट्टा लगा दिया .लेकिन खुदा मेहरबान तो सदा पहलवान वाला मामला बन गया. जनता ने आशीर्वाद नहीं दिया तो बड़े साहब से आशीर्वाद लेकर काम चला लिया साहब के आर्शीवाद से छोटे साहब धम्म-धम्म दो -दो सीढ़ियां अचानक चढ़ गए .कहते हैं कि हारे का हरिनाम हो जाता है .और जीतने वाले का हर काम हो जाता हैं .
जनता की बेमुरव्वती के चलते जनादेश से वंचित हमारे नेता अब खुद ही चलकर जनता से आशीर्वाद से आशीर्वाद मांग रहे हैं. पूर्व से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक आशीर्वाद यात्राओं की धूम है .यात्राएं यदि सरकारी हों तो धूम के साथ धाम भी हो ही जाती है .जनता का आशीर्वाद लेने के लिए जनता का धन पानी की तरह बहने लगता है. ये रघुकुल की रीति जैसा है .जनता के भले प्राण निकल जाएँ लेकिन यात्रा पर निकलने वाले जनता के टेंटुए में हाथ डालकर आशीर्वाद हासिल कर ही लेते हैं .जनता के पास भी सिवाय आशीर्वाद के होता भी क्या है,इसलिए जनता को राजी कहिए या गैर राजी आशीर्वाद देना ही पड़ता है.
साहब की जन आशीर्वाद यात्रा की धूमधाम देखकर कोरोना ने अपनी तीसरी लहर को ही स्थगित कर दिया .बेचारी तीसरी लहर आती तो जनता क्या करती ? जनता को भी खुशियां मनाने का हक है .कोरोना ने जनता और सरकार का ख्याल रखते हुए जन आशीर्वाद यात्रा के लिए रास्ते खाली कर दिए .कोरोना जानता है कि जन आशीर्वाद यात्राओं की कामयाबी में ही उसकी कामयाबी छिपी है.अरे तीसरी लहर सितंबर की जगह अक्टूबर में आ जाएगी ! क्या फर्क पड़ने वाला है ,थोड़ा-बहुत आगे पीछे होने से ?कोरोना जानता है कि सब्र का फल मीठा होता है .
आप जानते ही हैं कि यदि जनता जनार्दन जितनी ज्यादा होती है नेताओं को उतना ज्यादा आशीर्वाद और कोरोना को उतने ज्यादा वाहक मिल जाते हैं .आज की दुनिया में सबको ज्यादा,ज्यादा चाहिए .बहरहाल साहब की जन आशीर्वाद यात्रा पूरे उफान पर है. साहब यात्रा पर जब निकलते हैं तो उनके गले में फूलों की एक माला होती है लेकिन जब रात को वापस लौटते हैं तब उनकी कार की छत पर एक बैलगाड़ी भरने लायक मालाएं होती हैं .उनका माली तो इन्हीं मालाओं के जरिये मालामाल हो रहा है. अल सुबह मंडी में जाकर तमाम मालाएं हुए-पौने दामों पर ठिकाने लगा आता है .
यात्राओं का एक मात्र मकसद मोक्ष की प्राप्ति है.ये मोक्ष चाहे कैलाश मानसरोवर की यात्रा करके ले लो ,चाहे अमरनाथ यात्रा करके.अब तो मोक्ष जन आशीर्वाद यात्राओं के जरिये भी हासिल होने लगा है .जन आशीर्वाद यात्रा दल-बदल से लेकर और दूसरे सियासी पापों को धोने में समर्थ है .हमारे यहां तो ऐसी यात्राओं की लम्बी परम्परा है. महान रथ यात्री लालजी भाई से आप इसकी माहिती ले सकते हैं .उन्होंने तो अपनी रथ यात्रा से बहुत कुछ हासिल कर लिया था सिवाय एक पंत प्रधान की कुर्सी के .
यात्राओं के सुख से अपने राम भली भांति वाकिफ हैं,इसलिए हर जन आशीर्वाद यात्री का तहे दिल से सम्मान करते हैं .हमारी तो मान्यता है कि हर आदमी को जिंदगी में एक न एक यात्रा अवश्य करना चाहिए ,अन्यथा अंतिम यात्रा पर जाते वक्त आत्मा कलपती रह जाती है .हमने तो जनता से चन्दा लेकर तक यात्राएं की हैं और वापसी में अपनी यात्राओं का तमाम प्रतिफल अपने दान दाताओं में समान भाग बनाकर बाँट दिया .आपने अगर अब तक कोई यात्रा न की हो तो अभी वक्त भी है और मौसम भी ,निकल जाइये किसी न किसी यात्रा पर .

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