रूह की कोई तो सुने मयखाने में, तृष्णगी दिला दूं तसल्ली पैमाने में

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रूह की कोई तो सुने मयखाने में,
तृष्णगी दिला दूं तसल्ली  पैमाने में ।
बलन्द इमारतों के कहकहे चुप से हैं,
बरसात इक रोज़ की आई इसे ढहानें में ।
गुफ्तगू जख्मों में
कुछ ना कुछ होती हैं,
उमर  निकल ही गई
इसे सुखाने में ।
क़दम क़दम पर
अंजान राहें हैं,
और फिर भरोसा किसका ।
जिस्म भी क्या एक कतरा है ,
छुपा है हुश्न में कुछ
देर चेहरा हैं ।
तूफान कौन सा किधर से कब आएं ,
ये कौन यहां बैठ के सोचे ,
समंदर सामने  है हम  निशानें में ‌।
रूह की कोई तो सुने मयखाने में,
तृष्णगी चल दिला दूं तसल्ली पैमाने में
अनूपसहर
Anup Shrivastava
Indore