नई दिल्ली
कांग्रेस उस समय एक तरह से काफी बुरी स्थिति में थी जब लोकसभा चुनावों में हार के बाद राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। कांग्रेस की हालत ऐसी थी कि उसके पास फंड भी नहीं था और महाराष्ट्र में उम्मीदवारों को पार्टी से मदद नहीं मिली। कांग्रेस ने वहां अपने 145 उम्मीदवारों को कोई पैसा नहीं भेजा और उन्हें खुद अपने लिए फंड इकट्ठा करना पड़ा। राहुल गांधी ने 7 रैलियों को संबोधित किया और वहां भी गए जहां स्थानीय उम्मीदवारों ने उन्हें बुलाया। हालांकि इस दौरान काफी भीड़ जुटी और पार्टी वर्कर उस समय हैरान रह गए जब राहुल ने राफेल मुद्दा उठाना जारी रखा।
प्रियंका गांधी ने यू.पी. से बाहर कदम नहीं रखने का फैसला किया। प्रचार के लिए बहुत कम पोस्टर और बैनर लगाए गए। यहां तक कि महाराष्ट्र में वोटरों को कांग्रेस का जो चुनावी घोषणापत्र बांटा गया उसकी तादाद हजारों में भी नहीं थी। पार्टी का कोई ऐसा स्थानीय नेता नहीं था जिसकी राज्य स्तर पर अपील हो और प्रचार का काम शरद पवार पर छोड़ दिया गया। इन मुश्किलों के बावजूद राकांपा और कांग्रेस का 99 सीटें जीत जाना एक तरह से चमत्कार ही है। इस जीत से सोनिया गांधी का कद बढ़ा है।
उधर हरियाणा में मामला अलग था जहां राहुल गांधी की इच्छा के विपरीत पार्टी की बागडोर भूपिंद्र सिंह हुड्डा को सौंपी गई। सोनिया गांधी को अपनी कमजोरी पता थी, पार्टी के पास पैसा नहीं था। सोनिया ने पार्टी की कमान हुड्डा को सौंप दी और कुमारी शैलजा को उनके साथ मिलकर काम करने को कहा। यह हुड्डा ही थे जिन्होंने राज्य भर में प्रचार किया और उम्मीदवारों को फंड दिया। जाट समुदाय मजबूती से उनके साथ था और भाजपा के असंतुष्ट नेता भी उनका समर्थन कर रहे थे। उन्हें मिल रहा जाट समुदाय का समर्थन इतना मजबूत था कि चौधरी बिरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेम लता उचाना कलां में 45,000 से ज्यादा वोटों से हार गईं।
वहीं जे.जे.पी. राज्य में देवी लाल की विरासत की उत्तराधिकारी के रूप में उभरी। हरियाणा के चुनाव परिणाम भाजपा के लिए खतरे की घंटी हैं। महाराष्ट्र के नतीजे भी भाजपा के लिए चिंताजनक हैं क्योंकि शिवसेना ने उसे आंखें दिखाना शुरू कर दिया है। उधर राहुल गांधी ने चुनाव परिणाम के बाद सायं तक इस बारे में कोई ट्वीट तक नहीं किया।