सूत्र का दावा: उर्जित पटेल की अनिच्छा ने मोदी सरकार को मजबूर किया धारा 7 के इस्तेमाल के लिए

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नई दिल्ली। रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की विभिन्न पक्षों से बातचीत को लेकर अनिच्छा ने मोदी सरकार को आरबीआई ऐक्ट की धारा 7 के तहत मिले अधिकारों के इस्तेमाल का अत्यंत कठोर फैसला लेने को मजबूर कर दिया। सरकार के उच्चपदस्थ सूत्रों ने यह दावा किया है। पूरे मामले को करीबी से समझ रहे एक व्यक्ति ने कहा, ‘वह बैंकरों, इंडस्ट्री और मार्केट प्लेयर्स से बेहद चुनौतीपूर्ण मसलों पर भी बात नहीं करते थे। हमारे पास कोई चारा नहीं रह गया था। केंद्रीय बैंक को बातचीत की मेज पर लाने का एक यही तरीका बच गया था।’
Sources claim: Urjit Patel’s reluctance forced the Modi government to use Section 7
आरबीआई ने तोड़ी सरकार की उम्मीद?
सरकार को उम्मीद थी कि आरबीआई फाइनैंशल सेक्टर के लिए नीतियां तय करते वक्त अपने बोर्ड के सामूहिक विचार को तवज्जो देगी, न कि गवर्नर और उनके डेप्युटीज की सोच को। लेकिन, केंद्रीय बैंक, जिसके अधीन बैंक और कुछ मार्केट सेगमेंट्स भी आते हैं, डायरेक्टर्स के नजरिए के साथ आगे बढ़ता नहीं दिखा। सेंट्रल बोर्ड के 18 डायरेक्टरों में 11 इंडिपेंडेंट हैं जबकि पांच आरबीआई के ही अधिकारी और दो वित्त मंत्रालय के नौकरशाह हैं।

पिछले सप्ताह हुई बोर्ड मीटिंग के फैसलों को सार्वजनिक करने पर रजामंदी हुई थी। हालांकि, ऐसा जान पड़ता है कि आरबीआई ने बहुमत के फैसले को भारी मन से मौन स्वीकृति दी थी। इसलिए, उसने मन-ही-मन अलग फैसला ले लिया और कुछ ‘अज्ञात’ लोगों के सवालों पर चुप्पी ठान ली। आरबीआई की यह चुप्पी से डायरेक्टर्स हैरान रह गए क्योंकि उन्हें लगा था कि आरबीआई के अधिकारियों की सहमति के बाद ही मीटिंग खत्म हुआ।

जब मौन रह गए उर्जित पटेल
इस मैराथन मीटिंग के अजेंडे में 20 विषय शामिल थे, जिन पर आरबीआई के अधिकारियों ने कहा था कि जिन मुद्दों पर फैसला नहीं हो पाएगा, उनपर अगली मीटिंग में विचार किया जाएगा, जो दिवाली के बाद होनी है। इसी के मुताबिक, गवर्नर उर्जित पटेल को तारीख तय करनी थी, लेकिन उनके एक अधिकारी ने उन्हें इशारा किया और तारीख का ऐलान नहीं हुआ। सूत्रों ने कहा कि आरबीआई ने अगली मीटिंग के लिए 19 नवंबर का ऐलान तब किया जब कुछ स्वतंत्र निदेशकों ने बुधवार को मैनेजमेंट पर दबाव बनाया।

‘सेक्शन 7 का जिक्र हुआ, वास्तविकता में लागू नहीं हुआ’
मंगलवार को टीओआई ने खबर दी थी कि सरकार ने आरबीआई के साथ हालिया संवाद के जरिए तीन प्रमुख क्षेत्रों पर कंसल्टेटिव प्रोसेस शुरू कर दिया है और ऐसा करते वक्त उसने सेक्शन 7 का जिक्र किया, लेकिन वास्तविक तौर पर इसे लागू किए बिना। रिपोर्ट में कहा गया था, ‘यह कदम महत्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि कंस्लटेटिव प्रोसेस से सहमति नहीं बना पाने की स्थिति में सरकार के लिए आरबीआई को निर्देश देने का मंच तैयार हो जाता है।’

83 साल के इतिहास में कभी इस्तेमाल नहीं
आरबीआई के 83 सालों के इतिहास में रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया, 1934 के सेक्शन 7 का इस्तेमाल किसी भी सरकार ने नहीं किया। यह सेक्शन कहता है, ‘अगर केंद्र सरकार किसी विषय को सार्वजनिक हित के लिए अनिवार्य मानती है, तो वह गवर्नर के साथ मशविरा करके आरबीआई को निर्देश दे सकती है।’ बुधवार को वित्त मंत्रालय ने सावधानी से चयनित शब्दों में एक बयान जारी किया और कहा कि ‘सरकार और आरबीआई को जनहित और भारतीय अर्थव्यवस्था की जरूरतों का ख्याल रखते हुए ही फैसले लेने चाहिए।’