राघवेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
कई बरसों से पटरी से उतरती मध्यप्रदेश भाजपा को संवारने,सुधारने उसमे सात्विकता के साथ सक्रियता लाने के शिव’प्रयास’ होते दिख रहे हैं। सब कुछ ठीक रहा तो प्रवक्ताओं की टीम व जिलों के साथ मोर्चों की लम्बित टीम की घोषणा हो जाए। इस काम में प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा के साथ संगठन महामंत्री और उनकी टीम तो लगी थी मगर वह फलीभूत होते नही दिख रही थी। अबकी बार भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश ने जमीन पर उतर कर प्रयास किए तो उसके प्रभाव भी दिखने लगे। पूरे मसले में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की जुगलबंदी भी इसमें असरदार हो रही है। उनसे सहयोग लेना भी कम महत्वपूर्ण नही है। कम ही देखने में आता है कि राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री ने संभाग के दौरे कर भाजपा की खोखली होती शक्ति को रीवा,सतना और सागर संभाग के कार्यकर्ताओं से सीधे बात की। नतीजतन कोमा में पड़े प्रदेश मोर्चा व जिला संगठनों को प्रभारी मिले। हालांकि यह आधा अधूरा मामला है। क्योंकि जब मोर्चा व सम्पूर्ण जिलों की कार्यकारणी ही गठित नही हुई तो मंडल व प्रभारी करेंगे क्या? लेकिन कार्यकर्ताओं के लिए तस्सली की बात ये है कि सही दिशा में शुरुआत तो हुई अब नतीजे भी अच्छे आएंगे।
मप्र भाजपा में संगठन स्तर पर खराब होते हालात की खबरें कोई नई बात नही है। लेकिन इस पर ध्यान देने की ईमानदार कोशिशें शायद कम ही हुई हैं। परिणामस्वरूप लगभग पांच साल से भाजपा अपनी पूरी शक्ति से काम ही नही कर पाई। पन्द्रह साल से ज्यादा की सत्ता ने कार्यकर्ताओं की कारपोरेट एकज्युकेटिव्स ने ले ली थी। बैठक, रैली और सभाओं की सफलता संगठन से नही बल्कि ठेके पर की जाने लगी थी। पता नही आगे भी यह व्यवस्था चलती है या शिवप्रकाश के शिवराजी प्रयासों से सीन बदलेगा। बहरहाल जो आहट शिवप्रकाश के विंध्य और बुन्देलखण्ड के दौरे से मिली है उसने उम्मीद तो जगाई है। कार्यकर्तओं के साथ एमपी,एमएलए से चर्चाओं ने संगठन के सोने और कार्यकर्ताओं के रोने की आवाज सुन ली। इसलिए थोड़ा अटपटे ढंग से ही सही सुधार की रस्म आरम्भ हुई। मसलन भाजपा के 57 जिलों में लगभग आधे की जिला कमेटियां ही बन पाई हैं। मण्डल अध्यक्ष जिलों से निर्देश की आशा में बैठा है लेकिन कमेटी नही बनने से उसे कुछ दिशानिर्देश नही मिल पा रहे हैं। इस कारण भाजपा संगठन सफेद हाथी बनता जा रहा है। पैसों का हिसाबकिताब नही होने से जिलों के संचालन के राशि नही मिल पा रही है। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व सदस्यता शुल्क और चंदा की रकम मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है। प्रदेश भाजपा फंड के मामले में भण्ड हो रही है। प्रदेश से लेकर जिलों तक में कोष के लिए नवीन व्यवस्था में चार्टड एकाउंटेंट की व्यवस्था लागू करने की कोशिश ने वित्तीय संग्रहन को ग्रहण लगा दिया है। इसे लेकर अकर्मण्यता के चलते पार्टी कुछ निर्णय नही कर पा रही है।
लंबे इंतजार के बाद भाजपा ने पदाधिकारियों के मध्य कार्य विभाजन किया है। लेकिन चावल की हांडी के तौर इसमें उदाहरण लेते हैं। महामंत्री कविता पाटीदार को युवा मोर्चा का प्रभारी का जिम्मा सौंपा गया है। आगे पीछे यह काम उन्हें कितना सूट करता है यह भाजयुमो के परफार्मेंस से तय हो जाएगा। कार्यालय महामंत्री के रूप में भगवानदास सबनानी को जिम्मेदारी उनके कामकाज को निखारने में अहम हो सकती है। बताते हैं कि भोपाल जिला अध्यक्ष से लेकर प्रदेश महामंत्री तक आजमाए गए सबनानी को इंदौर का प्रभारी बनाना कांटों भरा ताज है। बाहर से आने वाले कार्यकर्तओं को चिंता करना और उन्हें सन्तुष्ट करना टेढ़ी खीर होगा। लेकिन भाजपा ने सबनानी के बाद भोपाल के दो नेताओं आलोक शर्मा और रामेश्वर शर्मा को अपेक्षाकृत कम अहमियत दी है।
भाजपा में कुछ होने की उम्मीद
प्रदेश भाजपा के लेबररुम में लम्बे समय से प्रवक्ताओं की सूची अटकी पड़ी है। रविवार को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और उनके महामंत्री इस पर निर्णय करने के लिए बैठे थे। इस तरह के मामलों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की इसमें अहम भूमिका रहेगी। शिवप्रकाश और शिवराज के साथ विष्णुदत्त की जुगलबन्दी पटरी से उतरती भाजपा के कायाकल्प में शानदार भूमिका अदा कर सकती है। यह हो सकता है बशर्ते एकदूसरे का सहयोग लिया जाए और दिया तब। अभी तो लगता है दिल्ली के दखल से कुछ सुधरेगा जरूर…