प्रदेश कांग्रेस को रावण वध के बाद मिल सकता है नया चीफ…

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राघवेंद्र सिंह

राजनीति में कोई भी फैसला हो बड़ी मुश्किल से होता है। चुनाव में तो नामांकन की तारीख तय होती है तब भी उम्मीदवार की घोषणा अंतिम तिथि के आखिरी घंटे तक होती रहती है। मसला अगर कांग्रेस का हो और वह भी तब जब पार्टी सत्ता में हो तो फिर मामला समझ लीजिए करेला और नीम चढ़ा हो गया।

वैसे अच्छा अध्यक्ष मिल गया तो कांग्रेस में ये कहावत बदल भी सकती है। मसलन नीम के पेड़ पर करेले के बजाए गिलोए के बेल चढ़ जाएं तो उसे अमृता भी कहा जाता है और यह पुराने से पुराने बुखार और बीमारी को खत्म करने में रामबाण होती है। औषधी के जानकार इसका उपयोग कैंसर जैसी बीमारी को ठीक करने के लिए भी करते हैं। लिहाजा कांग्रेस के कार्यकर्ता और सत्ता में बैठे लोग कांग्रेसरूपी संगठन और सरकार पर गिलोए के रूप में किसी भले मानुष को अध्यक्ष देखना चाहते हैं। यद्पि ऐसी ख्वाहिश तो हर पार्टी में कार्यकर्ता और जनता करती है मगर पूरी होती है मुकद्दर वालों की। भाजपा जैसी पार्टी भी अब अच्छे अध्यक्ष के लिए तरसती नजर आती है। वहां भी अब पहले जैसी बात नहीं रही। उम्मीद की जा रही है कि अध्यक्ष की घोषणा वीरबल की खिचड़ी की तरह ही सही रावण वध के बाद दशहरे तक हो सकती है।

प्रभारी दीपक बावरिया हालांकि काफी पहले इसके संकेत दे भी चुके हैं।

कांग्रेस में अनुभवी लेकिन उम्र दराज कमलनाथ के कंधों पर पहले संगठन और अब उसके साथ सत्ता का बोझ भी है। नाथ उन भाग्यशाली नेताओं में हैं जिन्होंने प्रदेश की तरफ से केन्द्र सरकार में सबसे ज्यादा सत्ता का भोगविलास किया। और वे मुकद्दर के ऐसे अब तक के इकलौते बादशाह हैं जिन्होंने चुनाव के छह माह पहले रसातल में पहुंची कांग्रेस को सत्ता के आसमान पर पहुंचा दिया।

जाहिर है सरकार के साथ संगठन चलाना कठिन काम है।आर्थिक रूप से दिवालिया राज्य में हुकुमत करना और कांग्रेस जैसी पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष के साथ दोहरी भूमिका निभाना बहुत दुरुह कार्य है। कह सकते हैं यह सब एक साथ दो घोड़ों पर  सवारी करने जैसा काम है। यह मुश्किल है और इसका दुष्प्रभाव सरकार और संगठन पर दिखने भी लगा है। कैबिनेट में विवाद और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को ब्लैकमेलर जैसे घोर आपत्तिजनक आरोप लगाने वाले नौसिखिए नेता उमंग सिंघार की बदजुबानी कमलनाथ की ढीली पड़ती पकड़ की निशानी है। ऐसे में नाथ को नए अध्यक्ष घोषित होने तक संगठन की कमान रस्मी तौर पर संभालने के लिए कहा गया है।

इस साल के आखिरी तक नगरीय निकाए,पंचायत और कृषि मंडी के चुनाव होना है। इसमें टिकट वितरण के साथ गुटबाजी में संतुलन समन्वय का काम मुख्यमंत्री रहते कमलनाथ के बूते का नहीं है। जाहिर है प्रदेश अध्यक्ष के लिए जमीन से जुड़े और छोटे बड़े नेताओं से समन्वय बनाने वाले अनुभवी और निर्विवाद नेता की दरकार है। पन्द्रह साल बाद जो नेता मंत्री बने हैं उनमें से शायद ही कोई सत्ता सुख छोड़ संगठन में कार्यकर्ताओं की व्यथा सुनना चाहेगा और न ही ऊपर का दबाव सहने के मूड में होगा। जब सत्ता की रस मलाई मिल रही हो तो संगठन में रहकर भला प्रदेश का खाक खाना कौन पसंद करेगा।

कांग्रेस हाईकमान के लिए मध्यप्रदेश में अध्यक्ष चुनना आग के दरिये में डूब कर जाने जैसा कठिन काम है। और जो अध्यक्ष बनेगा उसके लिए काम करना सर्कस में रस्सी पर चलने जैसा करतब दिखाना होगा। अब इसके लिए कौन कौन नेता मुफीद हो सकते हैं उस पर भी एक नजर डाली जाए। प्रदेश कांग्रेस में लंबे समय से काम करने वाले नेताओं की फेहरिस्त में महामंत्री राजीव सिंह का नाम भी है। कई अध्यक्षों के साथ काम कर चुके राजीव उन नेताओं में हैं जिन्हें कमलनाथ ने अपनी पसंद की पहली सूची में रखा था। इन्दिरा जी से लेकर

राजीव,सोनिया,राहुल गांधी की सदारत में काम करने का अनुभव है। अभी तक ये किसी विवाद में भी नहीं हैं। भोपाल का होने की वजह से स्थानीय और प्रदेश के कार्यकर्ताओं से उनका जीवंत संपर्क है। अक्सर कठिन टास्क इनके खाते में आते रहे हैं। सभाओं के प्रबंधन से लेकर वीआईपी के इंतजाम में इनकी सेवाएं पार्टी लेती रही है। कमलनाथ,दिग्विजय,सुरेश पचौरी और ज्योतिरादित्य सिंधिया से इनका खासा समन्वय है। जब पार्टी सत्ता में हो लो प्रोफाइल लीडरों की दरकार संगठऩ में ज्यादा रहती है। अभी तक ये हाईप्रोफाइल लीडरों में शुमार नहीं हुए हैं। इसी तरह रामनिवास रावत का नाम भी अध्यक्ष पद की दौड़ में महत्ता के साथ बना हुआ है। ये भी लो प्रोफाइल  हैं। विवादों से इनका भी नाता नहीं है। चंबल क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले रावत एक बार जनहित में जरूर बंदूक लेकर बीहड़ में उतरने की धमकी दे चुके हैं। सिंधिया कैंप के भरोसे मंद सिपहसालारों में शामिल रावत ओबीसी से ताल्लुक रखते हैं।

गुटीय राजनीति के कांटे इनकी गाड़ी को पंचर न करें तो ये भी पीसीसी चीफ तक पहुंच सकते हैं।

इसी तरह एक और धमाकदार और ग्लैमरस नेता के रूप में शोभा थामस ओझा का नाम भी सुर्खियों में है। इन दिनों प्रदेश संगठन में इनका जलवा है और सरकार में इनके रसूख की तपिश हर कोई महसूस करता है। दिल्ली में हाईकमान से इनके क्लोज टू हार्ट वाले रिश्ते अध्यक्ष की दौड़ में बाकी नेताओं से ज्यादा दमदार साबित करते हैं। इनसे जब कोई भारी भरकम निगम मंडल की कमान संभालने की बात करता है तो नजदीकी लोग बताते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा में जाना इनकी ख्वाहिश है। अब ये अलग बात है कि राजनीति में ऐसे कई लोग हैं जिनकी …हजारों ख्वाहिशें हैं और वे ऐसी हैं कि हर ख्वाहिश पे दम निकले।वे तेज तर्रार नेता हैं और क्रश्चियन कनेक्शन भी उनके नाम में वजन पैदा करता है।

इसी तरह प्रदेश की एक और महिला नेता हैं मीनाक्षी नटराजन। मंदसौर से सांसद रहीं मीनाक्षी प्रदेश युवक कांग्रेस की कमान भी संभाल चुकी हैं। जोरदार भाषण प्रभावी हिन्दी और हाईकमान के साथ उनकी निकटता और दिल्ली दरबार में उनका दखल प्रदेश अध्यक्ष के लिए बाकी दावेदारों की तुलना में युवा होने के नाते असरदार है। यह अलग बात है कि वे अपने संसदीय कार्यकाल में क्षेत्र में उतनी लोकप्रिय नहीं हो पाईं जितनी जनता,कार्यकर्ता और कांग्रेस अपेक्षा करती थी। यही वजह है कि वे एक बार के बाद दोबारा लोकसभा नहीं पहुंच पाई। इसके अतिरिक्त जो मंत्री अध्यक्ष बन सकते हैं उनमें जीतू पटवारी,बाला बच्चन के नाम भी प्रमुख हैं। लेकिन इनकी रुचि सत्ता को समझने में ज्यादा है। पटवारी युवक कांग्रेस अध्यक्ष के साथ बच्चन की तरह कमलनाथ के साथ प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष का काम रस्मी तौर पर देख ही रहे हैं।

नाथजी…नाक कटा रहे हैं कलेक्टर-एसडीएम…
मध्यप्रदेश सरकार पर लगता है किसी की बुरी नजर लग गई है। हाल ही में दिग्विजय सिंह और वन मंत्री उमंग सिंघार के बीच विवाद हुआ था। सिंघार के आरोप सबको पता हैं अभी इस मामले कि स्याही सूखी भी नहीं थी कि कलेक्टर पर एसडीएम को बंधक बनाने का आरोप लग गया। यानि पहले राजनीतिक अराजकता और अब प्रशासनिक अनुशासनहीनता।

मसला होशंगाबाद कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह और एसडीएम रवीश श्रीवास्तव के बीच का है। घटना भी गंभीर है और आरोप भी। एसडीएम का कहना है कि वे रेत माफिया के पचास डंपर पकड़ने गए थे। कलेक्टर ने उन्हें एक फाईल के मामले में घर बुलाया और तीन घंटे तक बंधक बनाकर रखा। वजह यह थी कि वे डंपर क्यों पकड़ रहे हैं ? लेकिन बताया जा रहा है कि फाईल को लेकर पूछताछ की थी। लेकिन इस पर एसडीएम से प्रभार लेना उनकी गाड़ी छीन लेना बहुत ही गंभीर संकेत दे रहा है। सोशल मीडिया में मजाक चल रहा है कि रेत माफिया को बचाने वाले कलेक्टर को तो मंत्री होना चाहिए। मसले की जांच की जा रही है लेकिन सरकार की जो छीछालेदर होना थी वो हो चुकी है। दोनों घटनाएं सरकार को कृष्णमुखी बना रही हैं। कमलनाथजी के नेतृत्व में इस तरह की गिरावट की अपेक्षा नहीं थी। कुलमिलाकर भगवान भला करे।

लेखक IND24 के प्रबंध संपादक हैं