शांत अद्वैत एक तरीका है जीवन जीने का बिना अवसाद के- स्वामी शैलेषानन्द गिरी जी का अवसाद के खिलाफ अभियान एक सर्व सामयिक आवश्यकता

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अवसाद यानी डिप्रेशन एड्स , कैंसर व कोविड19 से भी ज्यादा जानलेवा है। सुशांत सिंह राजपूत, प्रेक्षा मेहता , आदि ने मात्र इस ओर ध्यानाकर्षित किया है। अवसाद इस समय की सबसे तेजी से उभरने वाली बीमारी में से एक रहेगा। .
बच्चो से ले कर बड़ो तक ये तेजी से अपना जाल फैला चुकी है। मन के इस नकारात्मक स्तर से संघर्ष में लगातार मानव हार रहा है। इसके प्रभावित हम से अनेक प्राथमिक उपचारको के पास तक नही पहुच पा रहे। साथ ही सामाजिक प्रतिष्ठ के चलते प्रारंभिक उपचार भी लेने से कतरा रहे। स्वामी शैलेषानन्द गिरी, जुना अखाड़े के महामंडलेश्वर, अवसाद के खिलाफ अभियान करीब 16 वर्षों से चला रहे। जिंदगी के प्रति आनन्दमयी प्रेम को उत्पन्न करने के भिन्न भिन्न तरीको के जरिये।

वे कहते है कि एकरस या समरस जीवन मन को अनमना कर देता, व निरसगावाद व अरुचि को जन्म देता। इसलिए जीवन को भिन्नता से जीना ही उत्साह व जीवन के प्रति आनन्द का भाव देता। कोई भी मानव जीवनपर्यंत विजेता बने रहने के लिए नही जन्मता व ना ही पराजित रहने के लिए। जीत व हार बेहद रुचिपूर्ण व चटपटी प्रेरणा होती जीवन आनन्द की।इसलिए जीवन को मस्त कृत्रिम सामाजिक बंधनो से मुक्त रख विस्तृत अबाध्य जीने के प्रयास निंरन्तर करना चाहिए।
आत्महत्याओं के संदर्भ में स्वामी जी का कथन है कि ये दर्दनाक है कि आत्महत्या दर में सम्पूर्ण दक्षिण एशिया में भारत सबसे उपर स्थान पर है ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कथन है कि भारत मे आत्महत्या की दर 16.5 प्रति एक लाख जनसंख्या है। भारत का विश्व मे महिला आत्महत्या में तृतीय स्थान है जो की लेसोथो व रिपब्लिक ऑफ कोरिया के बाद है। हम सनातन धर्म जैसे वैज्ञानिक व समृद्ध संस्कृति होने पर अब कैसे गर्व कर सकते। जबकि सनातन न सिर्फ इस जन्म का बल्कि पूर्व के जन्म व पुनर्जन्म जैसे ज्ञान को हमारी रग रग में प्रवाहित करता।

स्वामीजी जिन्हें ध्यानश्री शैलेश के नाम से भी जाना जाता है , कहते है कि भारत मे महिला आत्महत्या के अनेकानेक कारण है। जैसे कि तलाक,प्रेम प्रसंग, शादी में देरी, शादी का निरस्त होना,अनीतिक गर्भवती होना,दहेज प्रताड़ना इत्यादि।
जबकि सपरिवार आत्महत्या मुख्यतः सामाजिक कारणों से है, जो कि शर्मनाक व चिंतनीय है। नदी, नारी व न्याय की सर्वव्यापी गम्भीर समीक्षा होना बाकी है। सामाजिक सम्मान प्रति अतिरिक्त ध्यान रखा जाता जब यह टूटता तो सभी आत्मघाती हो जाते। जो कि वास्तव में मन की बगावत है समाज व न्याय व्यवस्था के प्रति।

परीक्षा में अनुत्तीर्णता या गलियों में बैठे आवारा शोहदेबाजो की प्रताड़ना से स्कूल जाती छात्रा के आत्महत्या के किस्से भी आम है। पूर्व में अवसाद से जूझ रहे कुछ बच्चो को जीवन मे पुनः लाने हेतु किये गए एक प्रयास में मुझ तक पर लांछन लगे । आम के द्वारा नही बल्कि सामाजिक महत्वपूर्ण स्तम्भ द्वारा। किन्तु मेरा अभियान जारी है।

वर्तमान में इसी प्रकार से एक परिवार जो की न्यायलयीन मुकदमे में उलझे मुखिया के चलते अवसाद में जा रहा था, के लिए प्रयासरत हु। आज परिवार के 10 बच्चे हंसते खिलखिलाते है तो मन महादेव के आनन्द से भर जाता।
वो ही बच्चे जब कहते कि इस व्यवस्था को सुधारने हेतु वे बड़े हो कर जज वकील इत्यादि बनेंगे तो मानो पूर्णाहुति हो गयी जीवन यज्ञ की लगता।

मानसिक बीमारियों के चलते There are cases of suicides from आत्महत्या के जाल में 90 प्रतिशत मृत्यु के मामले देखे गए है। मनोसामाजिक व मनोवेज्ञानिक तरीक़े निकालने होंगे इन्हें ढूंढने के लिए। व पोस्टमॉर्टेम की नवीन शोध तकनीकी भी। अपेक्षाएं ही सदमो का कारण होती

सामाजिक परिवर्तन जैसे कि सामाजिक आर्थिक व सामाजिक दर्शन परिवर्तन हर कोई सहन नही कर पाता।ये भी अवसाद के प्रमुख कारण है।  हमने अनुभव किया है कि पर्सनालिटी डिसऑर्डर का आत्मघात में 12 ℅ योगदान रहा है, चिकित्सा दौरान मनोरोग के योगदान 30 प्रतिशत। यहां तक कि सरकार सत्ता प्राप्ति हेतु किये गए वाडोने भी अवसाद को फैलाया सदैव।मंडल कमीशन के आरक्षण निर्णय व उत्पन्न आंदोलन ने 31 आत्महत्याओं को दर्ज करवाया था। सैनिक, पुलिसकर्मी इत्यादि भी आत्मघाती अनेकानेक बार रहे है। किसी प्रसिद्ध फिल्मी , खिलाड़ी या राजनैतिक व्यक्ति के जाने पर भी विश्व नेआत्महत्याये देखी है।
लॉक डाउन के दौरान माना जा सकता कि मार्च अप्रैल माह में ही 300 से ज्यादा मृत्यु आत्महत्या प्रकार से ही हुई है। टेस्ट में पॉजिटिव आ जाने का भय, अकेलापन, स्वतंत्रता की कमी , शराब न मिलने के विथड्रॉवल सिम्पटम, कुछ ने आफ्टर शेव व सैनिटाइजर तक पी लिए, आदि भी रहे मामले।

अवसादग्रस्त होने के सर्वाधिक मामले मजदूरों के आये। परिवार की याद, सरकार की उनको पहुचाने में असफलता, पदयात्रा, थकान 24 मौत, राशन की कतार, पुलिस की सख्ती 11 मौत, लोकडाऊन सम्बंधित अपराध 12 मौत, समय से स्वास्थ्य परीक्षण न होना या न करवाना 38 मृत्यु, आंकड़े दर्शा रहे। ये सब अवसाद ही तो है।

शांत अद्वैत आश्रम, स्वामीजी के मार्गदर्शन में हर व्यक्ति के प्राथमिक व्यक्तित्व के लक्षणों का अध्धयन करता है। जैसे कि अत्यधीक भूख, या भूख की कमी, कमजोरी, एकाग्रता में कमी,धीमापन या अरुचि जीवन के प्रति,ज्यादा वजनबढ़ना, या घटना, चिड़चिड़ापन, व्याकुलता, अपराधभाव,आशा या विश्वास खो देना, निद्रा न आना, बैचेनी रहना, आदि।
व्यक्ति आश्रम में रहे या घर, अकेले नही रहने देना। स्वामीजी कहते है कि जो सामान्य आनन्द में आनन्दित न हो तो समझो कि वो अवसाद के अन्धकार के मार्ग पर बढ़ रहा। इसलिए चलना, व सुकून के पल की जरूरत उसे।
ये अक्सर देखा गया ई अवसादग्रस्त को ज्यादा अटेंशन मिल जाता तो वो इसे औजार बना लेता दुनिया की सहानुभूति व आकर्षण प्राप्त करने के लिए। इसलिए उसे मालूम न पड़े ऐसा ध्यान देना जरूरी। व उज़क मन व कर्म को अन्यंत्र विषयो की और मौड़ देना बेहतर। हम उन्हें समझ स्थापित करते कि जीवन को इतना एजन व गम्भीरता से नही लेना चाहिए। उन्हें आश्रम में गीत गाना, सुन्ना, मूवी देखना, खेल खिलाना, नृत्य इत्यादि के अलावा प्रमुख रूप से योग, यज्ञ व ध्यान करवाया जाता। प्रकृति से जुड़ने के लिए बागवानी भि नियमित करवाई जाती।
स्वामी शैलेषानन्द जी कहते है कि जीवन के कुछ सहज सूत्र है। जैसे कि “प्रेम, विश्वास व शांति”
व “सेवा ,साधना व मन्त्र’ इन्हें जो आत्मसात कर लेगा व जीवन व जीवन के बाद भी आनंद यात्रा ही करेगा। आप सभी को आमंत्रण है शांत अद्वैत आश्रम पधार आत्मयात्रा करने का।

ॐ नमो नारायण
शांत अद्वैत आश्रम परिवार