डॉ कीर्ति काले, कवियित्री
बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं कि सम्मान देने से सम्मान मिलता है ।बचपन में यह बात समझ में नहीं आती थी लेकिन जब से इस मुंए शाहित्य ने अपनी चपेट में लिया है तब से हमारे भी सम्मान चक्षु पूरी तरह खुल गए हैं ।बुजुर्ग कितने भी सठियाएँ लेकिन सठियापे में भी कहते ठीक ही हैं । अपने पंच वर्षीय सुदीर्घ शाहित्यिक जीवन को भरपूर जीने के बाद भी जब कोई पुरस्कार या सम्मान प्राप्त करने का अवसर नहीं आया तब हमारा भेजा सम्मानित होने के लिए बुरी तरह भड़भड़ाया। अनेक सम्मान समारोहों के सभागारों में एक श्रोता की महत्त्वपूर्ण संख्या बढ़ाते-बढ़ाते दिन पर दिन बीतते गए लेकिन गली- मोहल्ला स्तरीय सम्मान तक का ऑफर नहीं आया।
हमारा सम्मान पिपासु कलेजा कसमसाया। एक दो वर्ष की अल्प अवधि वाले शिशु शाहित्यकार भी जहाँ-तहाँ सम्मान पाने लगे हैं , अपने नाम से पहले डॉक्टर , साहित्य विद्यावाचस्पति टाइप के विशेषण लगाने लगे हैं और हम जैसे पंचवर्षीय योग्यता रखने वालों को जीभ चिढ़ाने लगे हैं।सम्मानों के अभेद्य किले की दीवार में सेंध लगाने की युक्ति सोचते सोचते भेजा फ्राई होने लगा है। लेकिन कोई रास्ता नहीं मिल पाने से आपा खोने लगा है।
एक युक्ति सूझी
पहले छः महीने शाहित्यिक दद्दुओं की अटैचियाँ उठाईं, चरण पादुकाएँ साफ कीं, उनके लिए बीड़ी सिगरेट आदि आदि की व्यवस्था जुटाई लेकिन सारे दद्दा घुटे घुटाए घाघ निकले ।अपने सम्मान पर सम्मान करवाते रहे। स्वयं बधाईयों की मलाई उड़ाते रहे और हमें खाली कुल्हड़ दिखाते रहे। अब न्यूटन की गति का दूसरा नियम हमारे सामने अपने अर्थ खोलने लगा है ।सोते जागते यही बोलने लगा है कि जैसे प्रत्येक क्रिया की बराबर किन्तु विपरीत प्रतिक्रिया होती है वैसे ही बिना कुछ भेजे कुछ नहीं मिलता है। बिना मरे स्वर्ग नहीं दिखता है। अपनी इज्जत अपने हाथ । जैसे पैसा पैसे को खींचता है वैसे ही सम्मान सम्मान को खींचता है ।आत्मनिर्भरता ही सफलता की कुंजी है। इन सूक्तियों के गूढ़ रहस्य सिर चढ़कर बोलने लगे हैं। अपने अर्थ स्वयं ही खोलने लगे हैं।खोखले आत्मसम्मान पर विजय प्राप्त कर हमने आत्मनिर्भरता का रास्ता अपनाया और अपना सम्मान समारोह स्वयं ही आयोजित करवाया ।
फूल ,माला ,शॉल ,श्रीफल ,माइक ,वक्ता ,श्रोता फोटोग्राफर, चाय ,बिस्कुट का इंतजाम हमने भेरेंट किया।क्या हुआ जो स्वयं का सम्मान स्वयं को दिया। सम्मान पत्र पर अपने सम्मान में स्वयं ही कसीदे काढ़कर छपवाए । घर के बरामदे में सम्मान समारोह के बैनर भी खुद ही लगाए ।अड़ौसियों-पड़ोसियों को बेशर्मी से 10 -10 बार टाइम बेटाइम फोन कर- कर के बुलाया ।हमारी मेहनत रंग लाई ।सम्मान समारोह में दस श्रोताओं की भारी भरकम भीड़ उमड़ कर आई। मुख्य अतिथि स्कूटर द्वारा लाने और पहुंचाने के फाइव स्टारीय नाजों नखरों के साथ पधार गए और माइक पर आते ही तब तक बोलते रहे जब तक दस के दसों श्रोता उबासियाँ ले लेकर घर नहीं सिधार गए। जैसे भी हो सम्मान हुआ। बाकायदा ससम्मान हुआ।सम्मान समारोह की विभिन्न कोणों से खींची गई फोटुएँ हमने सोशल मीडिया पर महीने भर तक क्रमशः इस धूमधाम से चिपकाईं कि चारों तरफ हमारा सम्मान समारोह ही देने लगा दिखाई। तीर निशाने पर लगा। हमारा सोया हुआ भाग्य जगा। वो दिन है और आज का दिन हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा । लांघते रहे चाटुकारिता और बेशर्मी की रेखा पर रेखा।
अनेक मोहल्ला स्तरीय ,नगर स्तरीय, जिला स्तरीय ,संभाग स्तरीय ,राज्य स्तरीय और अब तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अनेक सम्मान पत्र हमारे शो केस में सजे हैं।हम जान गए हैं कि सम्मान देने और लेने में मजे ही मजे हैं।