बहुमत से दूर हुई भाजपा, अब सरकार हुई सहयोगी दलों पर निर्भर

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नई दिल्ली। 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जनता ने पूर्ण बहुमत दिया। उस समय बीजेपी और पीएम मोदी की लहर ऐसी थी कि भाजपा को रिकॉर्ड तोड़ 282 सीटें मिली थीं। लेकिन 2018 आते-आते भाजपा का भ्रम टूटने लगा और उनकी सीटें कम होती जा रही हैं। चार साल होते होते बीजेपी की सीटें 282 से घटकर 270 पर पहुंच गई हैं। स्पीकर को छोड़कर उसके पास लोकसभा में केवल 270 सीटें बची है। इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी ने अपने सांसद कीर्ति झा आजाद को निलंबित कर दिया है और साथ हीं उनके एक सांसद शत्रुघ्न सिन्हा अभी बागी तेवर अपनाए हुए हैं। लेकिन सरकार पर अभी कोई खतरा नहीं है और पार्टी अब अपने सहयोगी दलों पर निर्भर हो गई है।
The BJP, away from the majority, is now dependent on the allies which were formed by the government.
बता दें कि 2014 में मोदी लहर जोरों पर थी। 2014 में हुए बीड और नरेंद्र मोदी की सीट वडोदरा में बीजेपी ने करीब 7 लाख और 3 लाख वोटों से उपचुनाव जीता था। माना जा रहा था कि मोदी लहर अभी बाकी है। लेकिन 2015 में इस लहर को झटका लगा। मध्य प्रदेश की रतलाम सीट बीजेपी ने कांग्रेस के हाथों गंवा दी।

हालांकि, अभी भी एनडीए के पास बहुमत से काफी अधिक सीटें हैं लेकिन अब भाजपा अकेले दम पर सरकार में बने रहने की स्थिति में नहीं रही है। भाजपा की यह स्थिति कर्नाटक चुनाव के बाद हुई, जब स्पीकर ने कर्नाटक के दो सांसद बीएस यदियुरप्पा और बी श्रीरामुलु के इस्तीफे को स्वीकार कर लिया।

बता दें कि दोनों नेता कर्नाटक विधान सभा चुनाव में उम्मीदवार बने और जीत भी हासिल की। दोनों नेताओं ने विधान सभा सदस्य के रूप में शपथ लिया और अपनी संसदीय सदस्यता से इस्तीफा दे दिया, जिसे लोकसभा अध्यक्ष ने स्वीकर कर लिया। इसके बाद भाजपा की 2 सीटें कम हो गई।

हालांकि इससे भाजपा सरकार को फिलहाल कोई खतरा नहीं है लेकिन चार सालों में पार्टी की सीटें घटने के अहम मायने हैं। इससे एनडीए के सहयोगी दलों पर पार्टी की निर्भरता बढ़ गई है। लेकिन एनडीए में भी शिवसेना के सुर बदलते रहते हैं। भाजपा की सीटें कम होने का कारण पिछले कुछ दिनों में हुए लोकसभा उपचुनावों में उसकी हार और उसके कुछ सांसदों का इस्तीफा रहा है। पिछले दिनों भाजपा को कई उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा है।