राजेश बादल
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर महाभियोग से साफ़ बच निकले। इसलिए नहीं कि कैपिटल हिल की हिंसा में उनका कोई हाथ नहीं था बल्कि इसलिए कि सीनेट में हुए मतदान में उनके ख़िलाफ़ दो तिहाई मत नहीं पड़े। यह अलग बात है कि उनकी अपनी ही रिपब्लिकन पार्टी के कई सांसद खुलकर पूर्व राष्ट्रपति के विरोध में और महाभियोग के समर्थन में सामने आए और उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप को सार्वजनिक रूप से हिंसा के लिए ज़िम्मेदार ठहराया। डोनाल्ड ट्रंप की पार्टी के चंद और सांसद यदि उनके विरोध में वोट डालते तो विश्व इतिहास में लोकतंत्र का एक नया अध्याय लिखा जाता।
ऐसा हो सकता था , क्योंकि प्रस्ताव के विरोध में मतदान करने वाले रिपब्लिकन पार्टी के अनेक सदस्य इसके समर्थन में थे। लेकिन अगर वे ऐसा करते तो उनकी अपनी पार्टी के माथे राजनीतिक कलंक का स्थाई टीका लग जाता।आने वाले चुनाव में पार्टी की अपनी साख़ दाँव पर लग जाती।इसलिए दल की ख़ातिर उन्हें उस झूठ का समर्थन करना पड़ा ,जिसे अमेरिका का एक एक मतदाता जानता था ।कह सकते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप का इस बेहद गंभीर आरोप से बरी होना अमेरिकी लोकतंत्र की एक ऐसी फाँस है ,जो लंबे समय तक पूरे मुल्क़ को चुभती रहेगी।अब इस विशाल देश को अपने दो सौ बरस पुराने संविधान के अनेक प्रावधानों पर पुनर्विचार करना होगा। अगर महाभियोग को बहुमत का समर्थन था तो स्पष्ट था कि ट्रंप लोकतंत्र के एक बड़े उपकरण के पैमाने पर खरे साबित नहीं हुए हैं।प्रसंग के तौर पर भारतीय लोकतंत्र की एक घटना का सन्दर्भ आवश्यक है ,जब केवल एक मत से प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी।
दरअसल किसी भी जागरूक जम्हूरियत का तक़ाज़ा यही है कि वह जिन राजनेताओं को हुक़ूमत करने का अवसर दे ,उन पर कड़ी निगरानी भी रखे ताकि देश की देह में तानाशाही का घुन नहीं लगे। यह एक आदर्श स्थिति मानी जा सकती है। विडंबना है कि इन दिनों समूचे विश्व पर अधिनायक वादी घुड़सवार चढ़ाई करते दिखाई दे रहे हैं। इसलिए भले ही ट्रम्प की करतूत पर उनके ही दल के सांसदों ने ख़िलाफ़ होते हुए भी बचा लिया हो ,पर वे जाने -अनजाने लोकतंत्र और अपने राष्ट्र को गंभीर क्षति पहुँचा चुके हैं। इसका अफ़सोस उन्हें हमेशा रहना चाहिए।यह इतिहास के पन्नों में लिखा जाएगा कि लोकतंत्र पर संकट की घड़ी में वे दल के साथ खड़े हुए ,देश के साथ नहीं। आने वाले दिनों में अमेरिका को इसका खामियाज़ा भुगतना ही होगा। डोनाल्ड ट्रंप तो इससे क्या सबक़ लेंगे। अलबत्ता उनकी पार्टी यदि इस अवसर पर नैतिक साहस दिखाती और महाभियोग को समर्थन देती तो विश्व इतिहास में यह प्रसंग स्वर्ण अक्षरों में लिखा जा सकता था।
लेकिन इसी आधार पर अमेरिकी लोकतंत्र की परिपक्वता को खारिज़ नहीं किया जा सकता। असहमति के अधिकार का वहां सम्मान होता है और किसी तरह की व्हिप जारी करके व्यक्तिगत मान्यताओं को क्षति पहुँचाने का काम नहीं किया जाता।अंतरात्मा की आवाज़ का आदर भी इस व्यवस्था का अनिवार्य अंग है। डोनाल्ड ट्रंप से असहमत उनके दल के सदस्य ख़िलाफ़ वोट करने के बाद पिछले दरवाज़े से चुपचाप नहीं निकल गए। उन्होंने बाक़ायदा सार्वजनिक तौर पर ट्रंप के बच निकलने पर दुःख प्रकट किया। वरिष्ठ सीनेटर मिच मैककोनेल ने इस प्रक्रिया पर अपनी टिप्पणी में कहा ,” मेरा अडिग मानना है कि ट्रंप ने अपना संवैधानिक दायित्व निभाने के बजाए संसद में हथियारों के साथ हिंसा के लिए अपने समर्थकों को उकसाया था। वे इसके अपराधी हैं। लेकिन हमारे हाथ बँधे हुए थे। हमारे पास इतनी ताक़त नहीं थी कि राष्ट्रपति के पद पर बैठकर ट्रंप की करतूतों के लिए अयोग्य ठहरा सकते “।
तनिक सोचिए। क्या भारत में यह संभव है ? भारतीय लोकतंत्र के हितैषियों के बीच यकीनन यह चर्चा का विषय होना चाहिए कि किसी दाग़दार नेता का दल के समर्थन से बेदाग़ बरी होना कितना जायज़ है ।यही नहीं, व्हिप की आड़ में उसके ख़िलाफ़ मतदान करने वालों पर कार्रवाई की तलवार भी चल सकती है।किसी भी सूरत में यह उचित नहीं माना जा सकता।एक तरह से लोकतंत्र की डाल को अपने हाथों तोड़ने जैसा है और सियासी पार्टी को अधिनायक की तरह व्यवहार करने का अवसर देता है। क्या भारतीय मतदाता और नियंता अमेरिका की इस घटना से कोई सबक़ लेंगे ?
दूसरी ओर इसे स्वीकार करने में भी हिचक नहीं होनी चाहिए कि जनतांत्रिक प्रणाली में जिसके साथ बहुमत है ,उसे दण्डित नहीं किया जाए। यदि अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ दो तिहाई बहुमत नहीं जुटा सके तो सन्देश है कि पूर्व राष्ट्रपति के व्यवहार को राजनेताओं का एक वर्ग सही तथा उचित मानता है।उचित और अनुचित के बीच की सीमा रेखा कई बार धुँधली हो जाती है। इस स्थिति में कभी निर्दोष भी दंड का भागी बन सकता है और दोषी भी आरोप से मुक्त हो सकता है।ऐसे में न्याय का यह सिद्धांत संतुलित माना जा सकता है कि सौ दोषी भले ही छूट जाएँ मगर एक निर्दोष को प्रताड़ना नहीं मिलनी चाहिए। यही लोकतान्त्रिक मर्यादा है।इस मर्यादा की आड़ लेकर डोनाल्ड ट्रम्प जैसे शातिर कारोबारी बच न सकें ,यह व्यवस्था भी अमेरिका के सभी जम्हूरियत पसंद लोगों को बनानी होगी।