बिल माफी के फेर में लोक हितैषी नहीं रह जाने का खतरा

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पंकज शुक्ला

लोकतंत्र की यह खूबी है कि तंत्र हमेशा लोक के हित में काम करने को तैयार रहता है या उसका लक्ष्य लोक हितैषी कार्य होते हैं। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने कार्यकाल में ऐसे ही लोक हितैषी कार्यों की लंबी सूची तैयार कर दी है। इस बार भी वे संबल योजना के सहारे चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। ऐसी योजनाओं का लाभ वास्तव में वंचितों को मिले तो यह पं. दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय की संकल्पना का साकार होना होगा लेकिन यदि कर्ज/बिल माफी और मुआवजा पाना सामाजिक आदत बन जाए और यह राजनीतिक मोलभाव का औजार बन जाए तो ऐसी लोक हितैषी योजनाओं का न होना ही भला।
The danger of not being a philanthropist in the bill waiver
यह अस्वीकार भाव इसलिए कि संबल योजना के तहत प्रदेश सरकार ने 80 लाख परिवारों का 5179 करोड़ रुपए का बिजली बिल माफ किया है। सोशल मीडिया पर बिल माफी का एक प्रमाण पत्र वायरल हुआ। इसमें 3 लाख 93 हजार का बिजली बिल माफी दी गई है। यदि एक घर में प्रतिमाह 5 हजार रुपए बिजली बिल आये तो 5 साल तक बिल न भरने पर कुल राशि होती है 3 लाख।

यहाँ तो 3 लाख 93 हजार का बिजली बिल माफ किया गया है। इस वायरल फोटो को सही मानते हुए सवाल उपजा कि क्या किसी श्रमिक के घर इतनी बिजली जलाई जा सकती है और जलाई जा सकती है तो उसने राशि जमा क्यों नहीं की बिजली महकमे ने भी कनेक्शन क्यों नहीं काटा क्या वह भी बिल माफी होने की प्रतीक्षा कर रहा था

बीते माह भोपाल में संबल योजना के शुभांरभ अवसर की एक घटना है। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने महिलाओं को बिल माफी के प्रमाण पत्र वितरीत किए थे। प्रमाण पत्र पाने के बाद एक महिला लक्ष्मी ने मीडिया को बताया कि 78 हजार र्स्पए बिजली बिल जमा करने के लिए सक्षम आर्थिक स्थिति नहीं थी। मुख्यमंत्री ने बिल माफ कर प्रमाण पत्र देकर बहुत बड़ी राहत दी। कितने समय का बकाया हो सकता है इतना बिल एक साल,दो साल, पांच साल क्या बिजली विभाग इतने लंबे बकाया बिल होने पर कनेक्शन बना रहने देता है मध्यम वर्ग के लिए ऐसे उदाहरण दिल जलाने वाले हैं।

यह ठीक है कि चुनावी साल है और सरकार कर्ज ले कर भी जरूरतमंदों की हर संभव सहायता कर रही है मगर ऐसे लाखों के बिल क्यों माफ होने चाहिए जरूरतमंद की तो हर मुमकिन मदद होना अलग बात है और सहायता का दोहन अलग बात। ऐसे ही उदाहरण सरकार की मंशा को कठघरे में खड़ा करते, जनता की आदतें बिगाड़ते।

पहला तो यह कि ऐसे में बिल माफी सहित अन्य सुविधाओं की सीमा तय होना चाहिए। दूसरा, बेहतर हो कि सरकारें इस तरह की लोक लुभावनी घोषणाओं की पूर्ति में पैसा व्यय करने की जगह शिक्षा, स्वास्थ्य सहित अन्य आवश्यक सेवाओं का दायरा तथा गुणवत्ता सुधार के लिए बजट बढ़ाए। स्कूलों की संख्या बढ़ाई जाएं, बच्चों के स्वास्थ्य सुधार के उपाय हों, सरकारी अस्पतालों में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा मिले। स्वच्छ पेयजल के उपाय हों।

ऐसे लोक हितैषी कार्य लाखों के बिल माफ करने के लोकप्रिय कार्यों से अधिक स्थायित्व वाले होते हैं। अन्यथा तो सरकारी घोषणाओं और बजट के मुक्त हस्त से खर्च पर समाज में मनभेद की खाइयां अधिक गहरी होंगी। असंतोष बढ़ेगा। आवश्यक और गैरआवश्यक सरकारी मदद का अंतर समाप्त होगा और जरूरतमंद को दी गई सहायता भी समाज के एक वर्ग को नागवार गुजरेगी तो सहायता पाने का आदी हुआ समाज अकर्मण्य होने लगेगा। अभी समय है, ऐसी स्थितियों को हर संभव तरीकों से टालना चाहिए। यह लोक हित है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है